Friday 30 October 2015

आठ मंत्री बर्खास्त, नौ के विभाग छिने

29.10.2015 ka faisla
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बड़ी सर्जरी में चली अखिलेश की
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-सरकार की छवि सुधारने के साथ मिशन-2017 की कमान युवा हाथों में सौंपने की कवायद
-विवादित मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से सवाल भी
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परवेज अहमद, लखनऊ :
मंत्रिमंडल की 'मेजर सर्जरीÓ सरकार की छवि सुधारने का प्रयास है या मिशन-2017 की पूरी कमान युवा हाथों में सौंपने की रणनीति? इस निर्णय को इन्ही सवालों के इर्द-गिर्द परिभाषित किया जा रहा है। इस आपरेशन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छाप महसूस की जा रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सर्जरी से रोग का निदान हो पाया है।
आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी ने यह तो साफ कर दिया कि खुद को सत्ता के करीबी समझने वाले ये मंत्री हकीकत में मुख्यमंत्री की कसौटी पर खरे नहीं थे। विकास की माडर्न नीति-रीति में भी युवा मुख्यमंत्री के साथ कदम ताल में वे पिछड़ रहे थे। ऊपर से तोहमतें भी कम नहीं थी। इनमें से कुछ की दलीय निष्ठाएं भी सवालों के सलीब पर थीं। ये लोग 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे। हालांकि ये लोग सपा मुखिया मुलायम सिंह के करीबियों में शुमार थे, मगर मुख्यमंत्री की मंशा को भांपकर पार्टी नेतृत्व ने 'वीटोÓ के जरिए इनकी विदाई रोकने का प्रयास नहीं किया। इससे पार्टी में भी अब 'युवा युगÓ का आगाज हो जाने का संदेश निकल रहा है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में भारी उलटफेर में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मंशा पूरी तरह से प्रभावी रही वरना कम से कम तीन मंत्रियों का विभाग वापस नहीं लिए जाते।
उधर पार्टी के अंदर यह चर्चा भी आम है कि जब छवि सुधारने के अलावा विकास की रफ्तार तेज करने की मंशा से फेरबदल हुआ तो भ्रष्टाचार, दबंगई के जरिये सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी कराने वाले मंत्री किसके 'वीटोÓ पर कार्रवाई की जद से बच गए? अवध क्षेत्र के एक मंत्री पर अक्सर दबंगई का इल्जाम लगता है तो तराई क्षेत्र के एक मंत्री पत्रकार को जलाने के मामले में फंसे जिससे सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। एक अन्य मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोपों का शोर है, बावजूद इनकी ओर आंच नहीं जाने को लेकर सवाल उठ रहा है।
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-मंत्रियों से हटाए गए विभाग अब मुख्यमंत्री के पास
-रिक्त पदों पर नए मंत्रियों को राज्यपाल 31 को दिलाएंगे शपथ
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 लखनऊ : आखिरकार सरकार सख्त हुई। इमेज सुधार की कोशिशों, गैर वफादारी और 2017 के चुनाव के दबाव में गुरुवार को किये गए एक बड़े फैसले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आठ मंत्रियों को बर्खास्त करने के साथ ही नौ मंत्रियों के विभाग छीन लिए।  बर्खास्त होने वालों में पांच कैबिनेट, स्वतंत्र प्रभार के एक और दो राज्यमंत्री हैं। रिक्त पदों पर नए मंत्रियों को 31 अक्टूबर की सुबह 10.30 बजे राज्यपाल शपथ दिलाएंगे। मुख्यमंत्री के पास अब रिकार्ड 89 विभाग हो गए हैं।
साढ़े तीन साल पुरानी सरकार में यूं तो मंत्री पहले भी बर्खास्त हुए पर पहली बार इतना कड़ा कदम उठाया गया। मुख्यमंत्री ने बुधवार को एक साथ आठ मंत्रियों को बर्खास्त करने और नौ के विभाग हटाने की सिफारिश राज्यपाल से की थी। गुरुवार सुबह उस पर मुहर लगाते हुए राज्यपाल ने आदेश जारी कर दिए। 31 अक्टूबर को नए मंत्रियों को शपथ दिलाने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। सूत्रों का कहना है रिक्त पदों पर युवा चेहरों को मौका मिलने की संभावना अधिक है। जिन मंत्रियों से विभाग छीने गए हैं, उन्हें नए मंत्रियों के शपथ ग्र्रहण के बाद दूसरे विभागों में समायोजित किया जाएगा। इनमें कुछ का कद बढ़ेगा लेकिन कुछ का घटेगा भी। 14 जून को हुए फेरबदल में जिन मंत्रियों के साथ नाइंसाफी की चर्चा ने जोर पकड़ा था, उन्हें पहले की तुलना में बेहतर विभाग दिए जा सकते हैं।
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पहले भी बर्खास्त हुए मंत्री
अखिलेश यादव पहले भी अपने कई मंत्रियों को बर्खास्त कर चुके हैं। शुरुआत अप्रैल 2013 में तत्कालीन खादी एवं ग्र्रामोद्योग मंत्री (अब स्वर्गीय) राजाराम पाण्डेय की बर्खास्तगी से हुई थी, जिन पर एक महिला आइएएस अधिकारी पर अशोभनीय टिप्पणी करने का इल्जाम लगा था। मार्च 2014 में मंत्री मनोज पारस और कृषि मंत्री आनंद सिंह बर्खास्त हुए। सिंह पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का इल्जाम था। लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ने मनोरंजन कर राज्यमंत्री पवन पाण्डेय को बर्खास्त किया। पाण्डेय पर फैजाबाद में अवैध खनन रोकने गए एक आइपीएस अधिकारी के साथ अभद्रता का इल्जाम लगा था।
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बर्खास्त मंत्री
-राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह-मंत्री, स्टाम्प तथा न्याय शुल्क पंजीयन व नागरिक सुरक्षा
- अंबिका चौधरी-मंत्री, पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं विकलांग कल्याण
-शिव कुमार बेरिया-मंत्री, वस्त्र उद्योग एवं रेशम उद्योग
- नारद राय-मंत्री, खादी एवं ग्रामोद्योग
- शिवाकान्त ओझा- मंत्री, प्राविधिक शिक्षा
- आलोक कुमार शाक्य-राज्यमंत्री, प्राविधिक शिक्षा
- योगेश प्रताप- राज्यमंत्री, बेसिक शिक्षा
-भगवत शरण गंगवार-राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन
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मंत्री जिनके छिने विभाग
-अहमद हसन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण मातृ एवं शिशु कल्याण
-अवधेश प्रसाद, समाज कल्याण अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण सैनिक कल्याण
-पारस नाथ यादव, उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण,
- राम गोविंद चौधरी, बेसिक शिक्षा
- दुर्गा प्रसाद यादव, परिवहन
- ब्रह्मïा शंकर त्रिपाठी, होमगाड्र्स प्रांतीय रक्षक दल
- रघुराज प्रताप सिंह, खाद्य एवं रसद
- इकलाब महमूद, मत्स्य, सार्वजनिक उद्यम
-महबूब अली, माध्यमिक शिक्षा
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निपटाते समय न देखी निकटता
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-बर्खास्तगी की जद में अगड़े, पिछड़े व दलित
-केवल मुस्लिमों पर मुख्यमंत्री रहे मेहरबान
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लखनऊ
बात जब निपटाने की आई तो कोई निकटता काम न आई। निकटता पुरानी थी, इलाकाई थी या फिर सजातीय, नतीजा एक ही रहा। बर्खास्तगी में संतुलन रखा गया और इसमें अगड़े, पिछड़े व दलित सभी शामिल थे। अलबत्ता मुस्लिमों पर मेहरबानी कायम रही और किसी को भी बर्खास्त नहीं होना पड़ा।
सबसे पहले बात बलिया के अंबिका चौधरी की जिन्हें 2012 के विधान सभा चुनाव में पराजित होने के बावजूद विधान परिषद भेजा गया और पहले राजस्व मंत्री और फिर विभाग बदलकर पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया। लोकदल का बंटवारा हुआ तो कुछ दिन चौधरी अजित सिंह के साथ रहने के बाद अंबिका चौधरी अपने सजातीय मुलायम सिंह यादव के साथ आ गए और धीरे-धीरे पायदान चढ़ते गए। सपा विपक्ष में थी तो विधान मंडल दल के मुख्य सचेतक रहे लेकिन बर्खास्तगी को लेकर उन्हें कोई सचेत नहीं कर सका।
अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले कानपुर देहात की रसूलाबाद सीट के विधायक शिव कुमार बेरिया भी सपा के पुराने सिपहसालार थे और पांच बार विधायक बनने के बाद पहली बार मंत्री बने थे। वह अखिलेश मंत्रिमंडल के अनुसूचित जाति के दो कैबिनेट मंत्रियों में थे लेकिन सरकार के पूरे कार्यकाल तक मंत्री नहीं बने रह सके।
बलिया के ही नारद राय छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा की अंगुली पकड़ कर राजनीति में आए थे और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहे। इस बार कद बढ़ा तो कैबिनेट मंत्री बने लेकिन बर्खास्तगी का अनुमान नहीं लगा सके। भाजपा से तीन बार विधायक व मंत्री रहने के बद शिवाकांत ओझा ने समाजवादी चोला पहन कर प्रतापगढ़ की रानीगंज सीट से चुनाव जीता व लगभग एक साल पहले 'टेक्निकल एजुकेशनÓ मंत्री बने लेकिन मंत्री की कुर्सी बचाने की 'टेक्निकÓ नहीं सीख सके।
सपा प्रमुख के प्रभाव क्षेत्र मैनपुरी की भोगांव सीट के विधायक आलोक शाक्य के पिता राम औतार शाक्य भी मुलायम सिंह यादव के सहयोगी थे और विधायक भी रहे। जातीय संतुलन साधने के लिहाज से सपा प्रमुख शाक्य बिरादरी का समायोजन करते रहे थे लेकिन ये फैक्टर भी उन्हें बचा नहीं सके। बसपा से विधायक बन सपा में आए व राज्य मंत्री बने गोंडा की करनैलगंज सीट के विधायक योगेश प्रताप सिंह सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव से सटने का कोई मौका नहीं चूकते थे लेकिन पता नहीं कौन सी चूक हुई कि कुर्सी चली गई।
बरेली की नवाबगंज सीट से पांचवी बार विधायक बने स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री भगवत शरण गंगवार मुलायम सिंह सरकार में भी राज्य मंत्री रहे चुके थे। यह देखना होगा कि सुर्खियों से दूर रहने वाले गंगवार को मंत्री पद गंवाने के बाद किसकी शरण में जाना पड़ता है।
...और आखिर में बात राजा भदावर के नाम से जाने वाले राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह की जो छठी बार आगरा की बाह सीट से विधायक हैं। मुलायम सिंह के साथ जनता दल में भी रहे। उनके पिता रिपुदमन सिंह भी कई बार विधायक व मंत्री रहे। कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह व मायावती सरकार में मंत्री रहे अरिदमन सिंह पहली बार समाजवादी सरकार में मंत्री बने थे लेकिन उनके साथ वह हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ। उन्हें बर्खास्त होना पड़ा।
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-अब मंत्री बनने को लामबंदी तेज
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-खुद को दावेदार मान रहे विधायक, विधान परिषद सदस्य लाबिंग में जुटे
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लखनऊ : अखिलेश यादव के छवि सुधार अभियान के अगले चरण में अब सबकी निगाह मंत्रिमंडल में रिक्त 13 स्थानों पर लगी है। इनमें से कितने पर नए चेहरे शामिल होंगे, किसे तरक्की मिलेगी? यह कयास दिनभर लगते रहे और खुद को दावेदार मान रहे विधायक, विधान परिषद सदस्य अपने पक्ष में लाबिंग करने में भी जुटे रहे।
मिशन 2017 के मद्देनजर अपनी नई टीम तैयार कर रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए क्षेत्रीय व जातिगत संतुलन साधने की असल चुनौती होगी। जाहिर है युवाओं व महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दे कर अखिलेश वर्ष 2012 के इतिहास को दोहराना चाहेंगे। महिला कोटे में रश्मि आर्य, शादाब फातिमा, गजाला लारी के साथ डॉ.मधु गुप्ता के नाम मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने वालों बताया जा रहा है। सुलतानपुर सदर के अरुण वर्मा को मंत्री बनाकर नेतृत्व जिले में मिले अभूतपूर्व समर्थन की संतुष्टि के साथ कुर्मी कोटा भी पूरा कर सकता है। पिछड़ों को साधे रखने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीब रहे शारदानंद अंचल के पुत्र जयप्रकाश को मौका मिलने की आस भी जतायी जा रही है, वहीं वरिष्ठ नेता अशोक वाजपेयी को भी मंत्रिमंडल में जगह देकर सदन के भीतर व बाहर का समीकरण बनाने का दांव भी चला जा सकता है। एमएलसी राम जतन राजभर, गढ़मुक्तेश्वर से मदन चौहान, जौनपुर ललई यादव, उन्नाव जिले के उदय राज को भी मंत्री पद मिलने की समर्थक उम्मीद लगाए हैं।
पश्चिम में गुर्जर कोटे से रामसकल गुर्जर की प्रोन्नत करने की चर्चा है तो वीरेंद्र सिंह जैसे बड़े नाम की अनदेखी करना भी आसान न होगा। एमएलसी आशु मलिक की पार्टी के लिए बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए उनका दावा मजबूत बनता है तो बागपत में रालोद की काट के लिए सिवालखास क्षेत्र से गुलाम मोहम्मद को लाभ मिल सकता है। पार्टी महासचिव व ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरविंद सिंह गोप को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री जाने की पूरी संभावना है। सपा सूत्रों का कहना है कि मंत्री पद हासिल करने के लिए लाबिंग कर रहे विधायक गुरुवार की देर रात बड़े-बड़े बंगलों के चक्कर काटते रहे। इसके अलावा मनोज पारस और पवन पाण्डेय को फिर से मंत्री बनाया जा सकता है।
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...और मुलायम कार्यकर्ताओं से मिलते रहे
आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी, कई मंत्रियों से विभाग छीने जाने की हलचल के बीच सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने गुरुवार को कार्यकर्ताओं, विधायकों और बिना विभाग के एक मंत्री से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को अभी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का आह्वïान किया और कहा कि युवाओं की मेहनत से फिर सरकार बनेगी। मंत्रिमंडल में फेरबदल की सूची राज्यपाल को भेजने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उड़ीसा के लिए रवाना हो गए और दूसरे प्रभावशाली मंत्री शिवपाल यादव ने दिल्ली की उड़ान भर ली। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पार्टी के प्रदेश कार्यालय पहुंचे जहां वह दिनभर कार्यकर्ताओं विधायकों से मिलते रहे। दोपहर बाद माध्यमिक शिक्षा विभाग वापस लिये जाने से बिना विभाग के मंत्री बने महबूब अली सपा मुखिया से मिलने पहुंचे, थोड़ी देर बाद वापस आ गए। पार्टी सूत्रों का कहना है मुलायम ने मुलाकात करने वाले कार्यकर्ताओं को अभी चुनाव की तैयारी में जुटने को कहा है। उन्होंने कहा कि पार्टी युवा वर्ग को पूरा महत्व दे रही है। उनकी मेहनत से ही फिर सरकार बनेगी। कुछ लोगों से उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार दर्द भी बयान किया।
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Tuesday 27 October 2015

आधा दर्जन मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया

17.09.2015 को हुआ था फेरबदल

लोकसभा चुनावों में हार के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जून में एक राज्यमंत्री को बर्खास्त करते हुए आधा दर्जन मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया था मगर क्षेत्रीय व जातीय समीकरण दुरुस्त नहीं हो पाया था, लिहाजा कुछ दिन बाद ही नए सिरे मंत्रिमंडल में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई। समाजवादी परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मंत्री शिवपाल यादव, प्रो.राम गोपाल यादव के साथ मंत्रिमंडल में फेरबदल पर चर्चा की और खराब कामकाज वाले मंत्रियों के हटाने के संकेत भी दिए। कई बार मिले इन संकेतों का कोई नतीजा सामने नहीं आया।
अब सोमवार को फिर विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रो.राम गोपाल यादव के बीच बैठक हुई। थोड़ी ही देर चली इस बैठक में राज्यपाल के बयानों से सरकार की किरकिरी, कानून व्यवस्था की हालत, मंत्रिमंडल में फेरबदल, नामित कोटे की पांच एमएलसी सीटों के लिए राजभवन से नये सिरे से मांगे गए नामों पर चर्चा के अलावा जनवरी में रिक्त होने वाली निकाय कोटे की 36 सीटों के प्रत्याशियों को लेकर भी चर्चा हुई। तय किया गया कि जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित कर दिये जाएं। इस बैठक  के तुरंत बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली रवाना हो गए और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री आवास चले गए। प्रो.राम गोपाल ने जरूर इतना कहा कि 'वह व्यक्तिगत रूप से मंत्रिमंडल में नये चेहरे देखना चाहते हैं मगर इस पर फैसला लेने का अधिकार मुख्यमंत्री का है। वही इस पर कोई निर्णय लेंगे।Ó प्रो.राम गोपाल यादव ने यह भी कहा मंत्रिमंडल में बदलाव हो सकता है, नहीं भी हो सकता है। कयासों को हवा देने वाले इसबयान से संकेत तो मिल ही रहा है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर समाजवादी परिवार 'एक रायÓ नहीं बना पायी है लेकिन मिशन-2017 की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले मंत्रिमंडल विस्तार व बदलाव होगा ही।
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सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इस बैठक के बाद मंत्रियों के सामूहिक इस्तीफे लिए जा सकते हैं। साथ ही अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल भी कर सकते हैं। हालांकि ऐसा कोई ठोस फैसले नहीं किया जा सका। प्रदेश सरकार के सभी  कैबिनेट मंत्री , स्वतंत्र प्रभार राÓयमंत्री भी बैठक में मौजूद रहे।
 चनावी हार की वजह से उठाया कदम
लोकसभा चुनावों में शिकस्त के बाद प्रदेश की सत्तारूढ़ सपा सरकार में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे थे। उम्मीद की जा रही थी यह बदलाव न केवल मंत्रिमंडल में होंगे बल्कि संगठनात्मक ढांचे में भी फेरबदल कि?ए जाएंगे। शुक्रवार को सीएम अखि?लेश की यूपी के गवर्नर से मुलाकात और शनिवार को सपा सुप्रीमो के निवास पर हुई बैठक के बाद यह तय माना जा रहा था। सपा सुप्रीमो के निवास पर शनि?वार को हुई बैठक में सीएम अखिलेश और शिवपाल यादव सहित सरकार के कुछ विश्वासपात्र अधिकारी भी शामिल थे। माना जा रहा है इस बैठक में मंत्रिमंडल में परिवर्तन और विस्तार को लेकर चर्चा हुई। अब इसे रवि?वार को अमलीजामा पहनाया जा सकता है।
 बीते तीन हफ्तों से यूपी के सीएम अखि?लेश लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद डैमेज कंट्रोल में लगे हैं। अभी तक जो भी फेरबदल हुए हैं वे ब्यूरोक्रेसी तक सीमित थे। इस बड़े फेरबदल में 150 से अधिक आईएएस, आईपीएस, पीसीएस और पीपीएस अधिकारी शामिल थे। इसके बाद अब मंत्रिमंडल में फेरबदल की तैयारी है। इस फेरबदल में कई मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इसी के साथ चुनावों के ठीक पहले हटाए गए मनोज पारस और आनंद सिंह को दोबारा मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।
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अखिलेश यादव भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हों लेकिन नेताजी जिस अंदाज मे अखिलेश सरकार की ओवर हालिंग कराने के लिये लगातार बोल रहे है उससे ऐसा लगने लगा है कि नेता जी ने सरकार की कमान अपने हाथ मे ले रखी है। पिछले करीब 2 माह से वे लगातार अफसरों और मंत्रियों की लगाम टाइट करने की ताकीद देते देते मुलायम सिंह यादव लगता है अब थक चुके है इसलिए अब उन्होंने अखिलेश सरकार को दुरुस्त करने का खाका तैयार कर लिया है। बुधवार को उनके रुख से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक अमले मे हड़कंप मच गया है।
अब मुलायम सिंह यादव सिर्फ अफसरों तक ही सीमित नही रहे, उन्होने अखिलेश के मंत्रियो को भी बुरी तरह से आड़े हाथों लिया है और सपा के पुख्ता सूत्रों का दावा है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से कम से कम दस मंत्रियो को पद मुक्त करने का फरमान जारी किया है।
उत्तर प्रदेश में दो जिलों के एसएसपी और डीएम को छोड करके पूरे प्रदेश के पुलिस प्रमुख और जिला प्रमुख सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पैमाने पर खरे नही उतर रहे है इसलिये उन्होने अपने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव से सभी को हटाने के लिये संकेतिक तौर पर कह दिया है। मुलायम सिंह यादव के इस बयान को लेकर कई मायने लगाये जा रहे है कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव काफी दिनो से अखिलेश सरकार के मंत्रियो और अफसरो से खासे नाखुस है पहले अफसरो और उसके बाद मंत्रियो की आयेगी बारी ऐसा माना जा रहा है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव ने आज यहां कहा कि प्रदेश के विकास की गाड़ी पिछले पांच साल में पटरी से उतर गई थी। बसपा राज में प्रदेश में जबरर्दस्त लूट हुई। विकास के काम ठप्प रहे। बिजली की एक यूनिट नहीं लगी। ऐसी मुख्यमंत्री थी जो मंत्री-विधायकों तक से नहीं मिलती थी, आम आदमी की तो बात ही बेकार है। समाजवादी पार्टी सरकार हालात बदल रही है। पांच साल के कई वायदे 10 माह के अन्दर पूरे हो गए हैं।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पार्टी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर एकजुट सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि अब आम आदमी को अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिल रहा है। किसानों का 50 हजार तक का कर्ज माफ है। सरकारी ट्यूबवेल और नहरों से सिंचाई का मुफ्त पानी दिया जा रहा है। कन्या विद्याधन और बेकारी भत्ता दिया गया है। लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को पेंशन मिलेगी। मुस्लिम लड़कियो को, जो हाईस्कूल पास हैं, &0 हजार रूपए आगे की पढ़ाई और शादी के लिए दिए जा रहे हैं। उर्दू को रोजी रोटी से जोड़कर मुस्लिमों को नौकरियों में अवसर दिए जा रहे हैं। इन सबकी नकल अब दूसरे प्रदेशों की सरकारें कर रही हैं।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शासनादेश सन् 2005 में जारी किया गया था। वर्ष 2007 में बसपा की सरकार बनने पर इन जातियों को मिल रही तमाम सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। अब 16 फरवरी,201& को इन जातियों का सम्मेलन बुलाया गया हैं। उन्होने कहा कि दलितों की छोटी जातियों की कहीं पूछ नहीं होती थी। समाजवादी पार्टी ने उनकी पहचान बनाई। छोटी जाति के नेताओं को विधायक तथा दूसरे पद देकर सम्मानित किया गया।
यादव ने माना कि पिछली बसपा संस्कृति के प्रदूषण से बहुत से अफसर बेलगाम हो गए थे। उनकी आदतें बिगड़ी हुई थी। धीरे-धीरे अब इनमे बदलाव भी हो रहा है। भ्रष्टाचार पर रोक लगी हैं। अधिकारी डरने लगे हैं। मुख्यमंत्री के लिए सुझाव है कि वे कुछ बड़े अधिकारियों के दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्यवाही करें। साथ ही उन्होने कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं को भी ताकीद दी कि वे अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग में रूचि न लें। उन्होने कहा उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है। इसलिए एक बार ब्यूरोक्रेसी की ओवर हालिंग होनी चाहिए। कार्यकर्ता अधिकारियों की चापलूसी करने से बचें। श्री यादव ने सलाह दी कि पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार की उपलब्धियों की ठीक से जानकारी लेकर जनता के बीच उनको प्रचारित प्रसारित करना चाहिए। कार्यकर्ताओं को अपने सभी लोकसभा प्रत्याशियों को जिताना चाहिए ताकि सन् 2014 में दिल्ली में समाजवादी पार्टी के निर्णायक हस्तक्षेप की स्थिति बन सके।

Wednesday 21 October 2015

राजभवन भेजे गए नौ नाम

लखनऊ. यूपी के गवर्नर राम नाइक ने राज्य सरकार द्वारा भेजे गए एमएलसी के नौ नामों की लिस्ट में से चार नामों पर अपनी सहमति दे दी है। वहीं, पांच अन्य नामों को वापस लौटा दिया है। गवर्नर ने एसआरएस यादव, लीलावती कुशवाहा, रामवृक्ष यादव और जीतेंद्र यादव एमएलसी के लिए नामित किया है। 
 
बता दें कि जितेंद्र यादव, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के संबंधी हैं। विधान परिषद में बीते 25 मई से एमएलसी की नौ सीटें खाली हैं। इन सीटों के लिए राज्य सरकार की ओर से राजभवन भेजे गए नौ नामों पर राज्यपाल आपत्ति जता चुके थे। गुरुवार को राजभवन के बुलावे पर सीएम अखि‍लेश यादव ने राज्‍यपाल राम नाइक से मिलने पहुंचे थे।
 
पांच नामों से राज्यपाल हैं असहमत
राज्‍यपाल ने सीएम अखिलेश को बताया कि सूची में शामि‍ल पांच नाम रोक लि‍ए गए हैं। इ‍नमें डॉ. कमलेश कुमार पाठक, संजय सेठ, रणविजय सिंह, अब्दुल सरफराज खां और डॉ. राजपाल कश्यप का नाम शामि‍ल है। इन लोगों की ओर से अपने पक्ष में शपथ पत्र भी राजभवन को सीएम के जरि‍ए उपलब्‍ध कराया गया था, लेकि‍न राजभवन को मि‍ली शि‍कायतों के आधार पर सभी के नाम रोक लि‍ए गए। मुलाकात के दौरान राज्‍यपाल ने रोके गए नामों को लेकर प्राप्‍त शि‍कायतों की जांच कराकर सीएम से आख्‍या भेजने को कहा है।

राजभवन ने राज्य सरकार से पूछे तीन सवाल
साहि‍त्‍य, कला, संस्‍कृति के जरि‍ए पहचान बनाने वाले लोगों की बजाए सरकार की तरफ से नौ सदस्‍यों की भेजी गई सूची में सभी नाम राजनीति‍क पृष्‍ठभूमि से हैं। ऐसे में नि‍यमावली के मुताबिक, राजभवन की तरफ से इन सभी नामों का परीक्षण कराया जा चुका है। पत्रावली के परीक्षण के बाद राजभवन ने सरकार से तीन बिंदुओं पर जवाब मांगा था। राजभवन से पूछे गए सवाल में सबसे पहले यह जानकारी मांगी गई है कि जो नाम मनोनयन को लेकर भेजे गए हैं, उनमें कि‍तने नाम लेखन, साहि‍त्‍य, कला, संस्‍कृति की पृष्‍ठभूमि से ताल्‍लुक रखते हैं। 
 
दूसरे सवाल में कि‍तने ऐसे नाम हैं, जि‍न पर मुकदमे या आपराधि‍क केस चल रहे हैं? कहीं इनमें से कि‍सी को पूर्व में कोर्ट से सजा तो नहीं हुई है। तीसरे सवाल में सूची में कि‍तने ऐसे नाम है, जि‍न्‍होंने बैंक से लोन लि‍या है? क्या उनको डि‍फॉल्‍टर घोषि‍त कर दि‍या गया है? राजभवन के इस तरह के सवाल पूछने के बाद फ्रांस दौरे से लौटकर सीएम अखि‍लेश यादव ने शपथपत्र के साथ सूची दी थी।

Sunday 18 October 2015

पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार


लेखक का नामकिस भाषा के साहित्यकार
मुनव्वर राणाउर्दू
काशीनाथ सिंहहिंदी
उदय प्रकाशहिंदी
नयनतारा सहगलअंग्रेजी
अशोक वाजपेयीहिंदी
साराह जोसेफमलयालम
गुलाम नबी ख्यालकश्मीरी
रहमान अब्बासउर्दू
वरयाम संधूपंजाबी
गुरबचन सिंह भुल्लरपंजाबी
अजमेर सिंह औलखपंजाबी
जी.एन. रंगनाथ रावकन्नड़
मंगलेश डबरालहिंदी
राजेश जोशीहिंदी
गणेश देवीगुजराती
श्रीनाथ डी.एन.कन्नड़
के. वीरभद्रप्पाकन्नड़
रहमत तारीकेरीकन्नड़
बल्देव सिंहपंजाबी
जसविंदरपंजाबी
दर्शन भट्टरपंजाबी
सुरजीत पाटरपंजाबी
चमन लालपंजाबी
होमेन बोरगोहेनअसमिया
मंदाक्रांत सेनबांग्ला
के.एन. दारूवालाअंग्रेजी
नंद भारद्वाजराजस्थानी
के. नीलाकन्नड़
काशीनाथ अंबाल्गीकन्नड़
किन लेखकों ने दिया साहित्य अकादमी से इस्तीफा
साहित्यकार का नामभाषा
शशि देशपांडेकन्नड़
के. सदचिदानंदनमलयालम
पी.के. पाराकाड्डवमलयालम
अरविंद मालागट्टीकन्नड़

Saturday 17 October 2015

आजम हैं कि बोलते ही जाते...

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-आजम हैं कि बोलते ही जाते...
-लगातार विवादित बयानों से किरकिरी, सपा ने पल्ला झाड़ा
-हलाल गोश्त के बयान से मुसलमानों में भी नाराजगी
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पहले दो बयान-
हम भगवा भारत के पीडि़त हैं।
16 अक्टूबर, लखनऊ में
-'मोदी सियासत छोड़ दें और मंदिर में जाकर घंटा बजाएं।
-14 अक्टूबर, कानपुर में
दोनों बयान सपा सरकार में नंबर दो की हैसियत वाले मंत्री आजम खां के हैं। वह ऐसा ही तीखा बोलते हैं, फिर चाहे उससे विवाद हो, उनकी पार्टी के लिए असहज स्थिति हो या उनके बोलने के बाद चारों तरफ से शुरू होने वाला बयान युद्ध हो।
आजम खां नगर विकास मंत्री हैं। यह ऐसा विभाग है जिसका काम और विफलता सबसे पहले दिखती है लेकिन, तीन साल में यह विभाग अपने काम की बदौलत कम, अपने मंत्री के कारण अधिक जाना गया। यही आजम हैं जिन्होंने बीते लोकसभा चुनाव के दौरान गाजियाबाद में कहा था कि, 1999 के कारगिल युद्ध में मुस्लिम सैनिकों ने भारत को फतह दिलाई। आजम के मुताबिक जब कारगिल मोर्चा जीता गया तो वहां कोई हिंदू सैनिक नहीं था। दो दिन पहले यह कहकर उन्होंने मुसलमानों को भी नाराज कर दिया कि, निर्यात किया जा रहा गोश्त हलाल का नहीं झटके का है और हज, उमरा पर जाने वाले वहां गोश्त न खाएं।Ó
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक आजम की पहचान सोशलिस्ट नेता की रही। वर्ष 2012 में समाजवादी सरकार बनने के बाद उनके  जुमलों ने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कीं। कारगिल की लड़ाई पर उनके बयान को चुनाव आयोग ने भी 'सद्भाव बिगाडऩेÓ वाला माना था। अपनी ही सरकार के डीजीपी को लिखे उनके खत, प्रधानमंत्री से लेकर अन्य नेताओं के लिए इस्तेमाल उनके जुमले और फैसलों विवादों में रहे। उनके अपर निजी सचिवों ने तो उनके साथ काम करने से ही इंकार कर दिया। दादरी के बिसाहड़ा कांड को यूएन ले जाने का एलान कर आजम ने अपनी ही सरकार को सकते में ला दिया। यही कारण था कि दूसरे ही दिन एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बयान को यह कहते हुए खारिज किया कि घर के मसले घर में सुलझाये जाने चाहिए।
मुलायम परिवार में आजम पर एकराय नहीं है। गुरुवार को मेरठ में समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव ने कह ही दिया कि आजम का यूएन वाला बयान उनकी निजी राय थी। इसके विपरीत इस दौरान मुलायम सिंह दो बार सार्वजनिक मंच पर आए मगर इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहे। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने भी कुछ कहने से साफ इंकार कर दिया। यह सवाल अब आम है कि क्या समाजवादी पार्टी को आजम के बयानों से सियासी नुकसान का खतरा सताने लगा है।
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आजम को अतिरिक्त आजादी : माथुर
आजम खां के बयानों से विवाद की स्थिति बनने पर कांग्रेस विधानमंडल दलनेता प्रदीप माथुर का कहना है कि अखिलेश सरकार में आजम खां को अतिरिक्त आजादी मिली है इसीलिए वह कुछ भी बयान दे सकते है और देते भी रहे है। इसबाबत इससे अधिक कुछ कहना मुनासिब न होगा।
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आजम के बोल
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-'गूगल में पर टॉप 10 क्रिमिनल सर्च करने पर नरेंद्र मोदी का नाम आता है।Ó
 -'बच्चे पैदा करने के लिए मर्दानगी की जरूरत होती है, पुरस्कार बांटने से बच्चे पैदा नहीं होते।Ó
-'मुसलमान खौफजदा है, उन्हें कुर्बानी से रोका जा रहा है, उनकी धार्मिक भावनाएं आहत की जा रही हैं।Ó

अखिलेश ने सहारा दिया अमर सिंह को...


-मेदांता अवध अस्पताल के शिलान्यास पर साथ दिखे मुलायम, अमर और अखिलेश
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लखनऊ : रिश्ता निभाने की अदा हो या दूर की सियासी कौड़ी, मगर यह साफ है कि समाजवादी परिवार में अमर सिंह की स्वीकार्यता बढ़ गयी है। जाहिर है, इससे उनकी 'घर वापसीÓ की संभावनाओं को और बल मिला है।
वर्ष 2009 में सपा से निकाले जाने के बाद पांच अक्टूबर, 2014 को हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अमर सिंह मंच पर दिखे थे। गुरुवार को वह फिर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सार्वजनिक मंच पर दिखे। एक अंतर जरूर है। अक्टबूर, 2014 में अमर सिंह मंच पर गुमसुम से थे और अग्रिम पंक्ति के नेताओं ने उनसे मुलाकात में गुरेज किया था पर एक साल बाद का दृश्य ठीक उल्टा था। मुलायम के साथ उनका अंदाज-ए-गुफ्तगू भी जल्द 'घर वापसीÓ का संकेत दे रहा था। गुरुवार को मेदांता अवध अस्पताल के शिलान्यास मंच पर अमर सिंह चढ़े तो मुलायम सिंह ने उनका हाथ थामा हुआ था। उन्होंने अमर सिंह को अपने बगल की कुर्सी दी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दूसरी ओर बैठने का इशारा किया। कार्यक्रम के दौरान मुलायम, अमर और डा. नरेश त्रेहन में गुफ्तगू होती रही। अमर सिंह ने कागज पर कुछ लिखा और मुख्यमंत्री की ओर इशारा किया, तो उन्होंने लपककर कागज पकड़ा। पढ़ा और फिर हंस पड़े। कागज का वह टुकड़ा मुख्यमंत्री ने जेब में रख लिया। कार्यक्रम खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री ने सीढिय़ां उतरने तक अमर सिंह को सहारा दिये रखा।
एक घंटे का कार्यक्रम अमर सिंह की सपा में वापसी की पटकथा तैयार हो जाने का संकेत दे रहा था। यह और बात है कि अमर सिंह इसे पारिवारिक रिश्ते की मिठास के रूप में रेखांकित करते हैं।
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रामगोपाल, आजम पक्ष में नहीं
सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद से अब अमर सिंह और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बीच हुई मुलाकातों में से छह सार्वजनिक हो चुकी हैं। वह जब-तब अखिलेश से भी मिलते रहे हैं। मुलायम भी अमर को अपना करीबी बता चुके हैं। ऐसे में उनकी वापसी की राह खुल जाने की चर्चा होती है लेकिन सूत्रों का कहना है कि सपा महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव और मोहम्मद आजम खां अमर की घर वापसी के पक्षधर नहीं हैं।
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हलाल गोश्त पर आजम ने छेड़ा नया विवाद


-निर्यात किए जाने वाले गोश्त पर दिया बयान
लखनऊ : 'व्यंग्य बाणोंÓ से विवादित रहने वाले मंत्री आजम खां ने निर्यात किए जाने वाला हलाल का गोश्त न होने की बात कह कर नया विवाद शुरू कर दिया है। इस विवादित मसले को लेकर मुस्लिमों के एक वर्ग में आक्रोश है।
मंत्री आजम खां जब-तब ऐसे जुमले उछालते रहे हैं, जो सरकार को मुश्किल में फंसता रहते है। कभी करगिल की लड़ाई को लेकर, कभी डीजीपी को खत लिखकर मुसलमानों के खौफ में जीने की बात, कभी बकरीद पर कुर्बानी से रोके जाने का बयान समाजवादी सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करता रहा है। दादरी के बिसाहड़ा में इकलाख की हत्या का मसला यूएन ले जाने के उनके बयान ने भी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी थीं, अब आजम खां ने निर्यात होने वाला गोश्त हलाल नहीं होने का बयान देकर नई बहस खड़ी कर रही है।
बुधवार को उन्होंने कानपुर में कहा कि स्लाटर हाउस में जिस तरह झटका दे कर जानवरों का गोश्त निकाला जाता है, वह इस्लामी तौर-तरीके के खिलाफ है। यह पूरी तरह हराम है। यही गोश्त बाहर निर्यात होता है।
स्लाटर हाउस में जानवरों के कत्ल का वीडियो दिखाते हुए नगर विकास मंत्री आजम ने कहा था कि यह दृश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नजर नहीं आ रहा है। यह तस्वीर तो प्रोजेक्टर लगाकर लोगों को दिखानी चाहिए ताकि वह भी जान सकें कि स्लाटर हाउस में किस तरह से जानवरों का कत्ल हो रहा है? आजम ने मुसलमानों को गोश्त खाना छोडऩे की सलाह भी दी, उनके बयान का सबब कुछ भी रहा हो लेकिन इससे नई बहस जरूर शुरू हो गई है।
दरअसल भारत गोश्त का सबसे बड़ा निर्यातक है। कई सौ टन मांस प्रतिदिन निर्यात किया जाता है। ऐसे में आजम खां के इस बयान से नई बहस शुरू हो गई है। कई स्लाटर हाउस के संचालकों का कहना है कि इस तरह के बयान व्यापार बंद कराने की साजिश है।
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आजम के बयान को बताया सियासी
कानपुर : मांस व्यवसायी सुलेमान ने आजम के इस बयान को पूरी तरह सियासी मसला बताया। उन्होंने कहा कि देश के कई स्लाटर हाउस में जानवरों से गोश्त निकालने की प्रक्रिया पूरी तरह इस्लामी है। आजम इसे सियासी चोला पहनाकर राजनीति गरमाना चाहते हैं। उद्यमियों को चाहिए कि ऐसे बयानों पर ध्यान न दें और अपना काम करें।
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वकीलों ने जताई नाराजगी
कानपुर : वकीलों ने गुरुवार को नगर विकास मंत्री आजम खां को कचहरी स्थित शताब्दी गेट पर प्रतीकात्मक अदालत लगाकर दोषी करार देते हुए सजा सुना दी। वकीलों ने बुधवार को आजम खां द्वारा दिए गए बयान पर यह नाराजगी जताई है। वकीलों ने आजम पर देश में हिंदु-मुस्लिम के बीच वैमनस्यता फैलाने और भारत के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) जाकर देश का बंटवारा करने का आरोप लगाया।

Thursday 15 October 2015

गाढ़ी हो रही मुलायम-मोदी की दोस्ती !

12 oct 2015



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 लखनऊ : समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच 'दोस्तीÓ गहरा रही है? एक-दूसरे की तारीफ फिर राजनीतिक वार में नरमी, अब अच्छे कामों की सराहना में हिचक नहीं होने के मुलायम सिंह यादव के एलान से सियासी हलकों में कुछ ऐसे ही निहतार्थ निकाले जा रहे हैं।
संसद के मानसून सत्र की कार्यवाही में अवरोध पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए सत्र चलाने की पक्षधरता जाहिर की थी, जिसके चंद दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेसहारनपुर में मुलायम को 'लोकतंत्र रक्षकÓ की उपमा से नवाज दिया। लोकसभा चुनाव में मुलायम पर वार के लिए इस्तेमाल '56 इंच की छातीÓ के जुमलों से इतर प्रधानमंत्री की इस सराहना को सपाइयों ने 'व्यवहारÓ निभाने की परम्परा के रूप में रेखांकित किया, मगर वक्त के साथ दोनों नेताओं के बीच चलने वाले सियासी तीरों का कसैलापन भी घटने लगा।
तीन सितंबर को बिहार में महागठंधन की अगुआ समाजवादी पार्टी ने अचानक गठबंधन से नाता तोड़ अपने बूते चुनावी जंग की घोषणा कर दी, इसकी जाहिरा वजह सीटों के बंटवारे में तवज्जो नहीं मिलना बतायी गई, मगर सियासी इकरार व इंकार की भाषा समझने का दावा करने वालों ने फैसले के पीछे मुलायम व मोदी में नजदीकी के रूप में देखा। यादव सिंह प्रकरण में सीबीआइ जांच को भी एक कारण बताया गया।
22 सितंबर को पूर्व सांसद मोहन सिंह की पुण्यतिथि पर मुलायम सिंह ने फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नरम रूख दिखाया और सवाल उठाया कि अच्छे कार्यो की तारीफ में बुराई क्या है?
और अब 12 अक्टूबर को लोहिया के विचारों व उनकी नीतियों का उल्लेख कर मुलायम सिंह ने कहा कि 'राष्ट्रहित, भाषा और सीमाÓ के मुद्दे पर वह भाजपा के साथ हैं। सीमा की सुरक्षा को लेकर वह पहले भी केन्द्र की सरकारों का समर्थन करते रहे हैं मगर डा.लोहिया के 'राजनीतिक छुआछूतÓ खत्म करने के विचारों की याद दिलाते हुए जिस अंदाज में कहा कि प्रधानमंत्री के अच्छे कामों की तारीफ करने में उन्हें हिचक नहीं है, उससे दोनों के बीच रिश्ते गाढ़े होने की सियासी चर्चाओं को बल मिला है। एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि मुलायम सिंह ने पार्टी के फोरमों पर भाजपा के नेता व प्रधानमंत्री की ऐसी तारीफ नहीं की। अटलजी को कुछ बातों के लिए सराहा लेकिन वह भी इस अंदाज में नहीं। उनका मानना है कि इस सराहना के पीछे कोई सियासी मजबूरी हो सकती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

Saturday 10 October 2015

मैनपुरी बतायेगी सपा की सियासी ताकत

मैनपुरी बतायेगी सपा की सियासी ताकत

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- रैली में जुटी भीड़ होगी सपा के प्रभाव का सूचकांक

जागरण ब्यूरो, लखनऊ : तीसरे मोर्चे के ऐलान और मुजफ्फरनगर में स्थायी तनाव के बीच सपा सु्प्रीमो मुलायम सिंह अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए अपने गढ़ से हुंकार भरेंगे। गुरुवार को मैनपुरी में सपा की देश बचाओ देश बनाओ रैली बदले हुए समीकरणों की रोशनी में महत्वपूर्ण हो चली है। आजमगढ़ की जुटान से सपा को उत्साह तो मिला था लेकिन सियासी वर्चस्व की झलक मैनपुरी से ही मिलेगी जो न केवल सपा सुप्रीमो की संसदीय सीट है बल्कि उस आलू पट्टी के केंद्र में है जहां सपा का डंका बजता है। मुलायम भले ही न चाहें लेकिन मैनपुरी की इस रैली की तुलना  प्रदेश में हुई और होने वाली रैलियों से होगी क्यों कि यहां जुटी भीड़ फिरोजाबाद, एटा, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, आगरा संसदीय क्षेत्र में सपा के प्रभाव का सूचकांक होगी।
समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ से चुनावी रैलियों का आगाज किया था जहां भीड़ भी जुटी थी लेकिन आजमगढ़ की रैली के बाद से सियासी समीकरण बदले हैं। उस रैली के अगले दिन दिल्ली में 17 राजनीतिक दलों के नेता एक मंच पर जुटे, जिसे तीसरे मोर्चे की पहल कदमी माना गया। इससे मुलायम के अभियान को ताकत मिली है। आजमगढ़ में मुलायम प्रधानमंत्री के प्रति नरम नजर आए थे लेकिन बदले हालात और प्रदेश सरकार पर राहुल के तीखे हमलों के मद्देनजर मैनपुरी में कांग्रेस को लेकर मुलायम का रुख उत्सुकता बढ़ा रहा है। क्यों कि अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी राहुल पर पलटवार शुरू कर दिये हैं।
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सपा ने अल्पसंख्यक व पिछड़ों पर अपना फोकस बढ़ाया है लेकिन चुनौती बहुजातीय संतुलन साधने की है क्यों कि मैनपुरी व जुड़े हुए संसदीय इलाकों में सपा का जनाधार सिर्फ अल्पसंख्यक व पिछड़ों तक सीमित नहीं है। मैनपुरी की रैली में मुलायम का जातीय संदेश काबिले गौर होगा। आजमगढ़ के बाद मुलायम की आजम से निकटता बढी है। मैनपुरी की रैली में बतायेगी सपा की भीतरी सियासत में आजम सचमुच सपा प्रमुख के करीब हुए हैं या फिर आजमगढ़ अपवाद था।
सपा ने चतुराई के साथ इस रैली को विकास योजनाओं से जोड़ा है इसलिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई परियोजनाओं का ऐलान करेंगे ताकि विकास व सियासत को एक साथ साधा जा सके। मैनपुरी से लगी फिरोजाबाद, एटा,फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, आगरा संसदीय क्षेत्र में अब तक सपा का ही वर्चस्व रहा है। भाजपा नेता कल्याण सिंह एटा से निर्वाचित हुए थे, मगर सपा ने उनके खिलाफ प्रत्याशी नहीं दिया था। अलबत्ता फिरोजाबाद उपचुनाव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कांग्र्रेस के राजबब्बर से चुनाव हार गयी थीं।
समाजवादी पार्टी की गुरुवार को यहां होने वाली देश बचाओ-देश बनाओ महारैली के लिए मंच सजकर तैयार है। पूरा शहर समाजवादी
पार्टी के रंग में रंगा हुआ है। महारैली के लिए सपा के तमाम मंत्री,
सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी बरेली पहुंच चुके हैं। मुजफ्फरनगर में
हुए जातीय संघर्ष के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का यह
पहला बड़ा कार्यक्रम है, लिहाजा पार्टी नेतृत्व ने महारैली को सफल बनाने
के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। महारैली में कहीं कोई कमी न रह जाए, इसके
लिए हर व्यवस्था को कई-कई बार परखा जा रहा है। महारैली के लिए सभी
तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
महारैली में लोगों की भारी भीड़ के आगमन को देखते हुए प्रशासन ने
गुरुवार को सभी स्कूल और कॉलेज बंद रखने का निर्देश दिया है। महारैली के
चलते शहर में जाम की स्थिति न पैदा हो, इसलिए बरेली में भारी वाहनों का
प्रवेश बुधवार की देर रात से प्रतिबंधित कर दिया गया है। दिल्ली-लखनऊ
राजमार्ग पर चलने वाले वाहनों को डायवर्ट करके दूसरे रास्तों से उनके
गंतव्य की ओर भेजा जाएगा। इमरजेंसी वाहनों के आने-जाने पर कोई रोक नहीं
रहेगी। महारैली में आने वाले वाहनों की पार्किंग के लिए शहर के बाहर कई
जगहों पर पार्किंग बनाई गई है। महारैली में आने वाले लोगों को कोई समस्या
होने पर उसके निदान के लिए प्रशासन ने दो हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए
हैं।
 समाजवादी पार्टी के
संयोजक सांसद धर्मेंद्र यादव ने बताया कि सभी तैयारियां पूरी हो चुकी
हैं। इस्लामिया कॉलेज के ग्राउंड में सुबह 10 बजे से होने वाली महारैली
कई मायनों में ऐतिहासिक होगी। उन्होंने बताया कि महारैली को लेकर लोगों
में जबरदस्त उत्साह है। महारैली में लोगों की रिकॉर्ड तोड़ भीड़ जुटेगी।
उन्होंने बताया कि महारैली को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर
राम गोपाल यादव, राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आजम खान और शिवपाल
यादव समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेता संबोधित करेंगे।
धर्मेंद्र यादव ने बताया कि रैली स्थल पर पार्टी नेताओं के लिए बने मुख्य
मंच के साथ ही एक और मंच बनाया गया है। इस मंच से स्थानीय नेता रैली को
संबोधित करेंगे। इसके साथ ही इस मंच से सासंकृतिक कार्यक्रम पेश किए
जाएंगे। समाजवादी पार्टी ने पूरे बरेली शहर को सपा के पोस्टर्स, बैनर्स
और झंडियों से पाट दिया है। शहर के सभी प्रमुख चौराहों को सपा की
रंग-बिरंगी झंडियों और रंगीन लाइटों से सजाया गया है।
बरेली शहर की तरफ आने वाले सभी रास्तों पर सपा नेताओं के मुस्कराते हुए
बड़े-बड़े कटआउट लगाए गए हैं। महारैली में आने वाले लोगों का इस्तक्बाल
करने के लिए सैकड़ों स्वागतद्वार बनाए गए हैं। देश बचाओ-देश बनाओ महारैली
को सफल बनाने के लिए समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कोई कोर-कसर
बाकी नहीं रखना चाहते हैं। रैली स्थल इस्लामिया कॉलेज ग्राउंड और उसके
बाहर लोगों की सहूलियत के लिए कई बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगाई जा रही हैं।
सांसद धर्मेंद्र यादव ने बताया कि महारैली सुबह 10 बजे शुरू होगी।
महारैली को देश-विदेश के करोड़ों लोग इंटरनेट पर लाइव देख सकेंगे।

संतुलन साधने की समाजवादी कोशिश

 जागरण ब्यूरो, लखनऊ: बदल रहे राजनीतिक समीकरणों में संतुलन साधने की समाजवादी पार्टी की कोशिशों का परिणाम शुक्रवार को मंत्रि परिषद विस्तार के रूप में दिखेगा। निर्दल विधायक रघुराज प्रताप ंिसंह उर्फ राजा भैया की मंत्रिपरिषद में वापसी होगी ही, उनके साथ एक राज्यमंत्री को प्रोन्नत और एक नए चेहरे के सरकार में शामिल होने के भी आसार हैं।
मुजफ्फरनगर के दंगे, भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की रैलियों के ऐलान के बाद से यूपी के सियासी समीकरणों में खासा बदलाव है। इसको लेकर समाजवादी पार्टी के रणनीतिकार खासे दबाव में थे। मंत्रियों के समूह से लेकर, राज्य संसदीय बोर्ड तक के मंथन में सियासी परिदृश्य को माफिक करने के लिए विधानसभा चुनाव के समय के समीकरणों को फिर साधने पर जोर दिया जा रहा था। इसका नतीजा  मंत्रिपरिषद के विस्तार के रूप में शुक्रवार को नजर आएगा।
इस दिन डेढ़ साल पुरानी अखिलेश यादव सरकार का चौथा मंत्रि परिषद विस्तार होगा। जिसमें रघुराज प्रताप ंिसह उर्फ राजा भैया की मंत्रिपरिषद में वापसी तय है। वह ऐसे दूसरे मंत्री होंगे, जिन्हें इसी सरकार में दूसरी बार  शामिल किया जाएगा। उनके मंत्रि परिषद में शामिल होने की बुनियाद  आजम खां और रघुराज के बीच मुलाकात में ही रखी गयी थी। सपा प्रमुख मुलायम ंिसह यादव की पहल पर दोनों नेताओं ने न सिर्फ गिले शिकवे दूर किये थे, बल्कि मुजफ्फरनगर के दंगों से बदले सियासी हालात पर एक दूसरे की मदद का भाव भी जगाया था। इस मुलाकात के बाद ही 'दैनिक जागरणÓ ने राजा भैया के मंत्रिपरिषद में शामिल होने की राह खुलने की खबर प्रकाशित की थी।
सूत्रों का कहना है कि रघुराज प्रताप ंिसह के अलावा खादी ग्र्रामोद्योग राज्यमंत्री रियाज अहमद, श्रम राज्यमंत्री मंजूर अहमद में से किसी एक को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जा सकता है। रियाज अहमद के पक्ष में बात ये जाती है कि उन्हें संगठन ने मण्डलीय अल्पसंख्यक सम्मेलन की जिम्मेदारी सौपी है। ऐसे ही श्रम राज्यमंत्री शाहिद मंजूर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी वर्गो के बीच स्वीकार्य और आक्रामक शैली वाला नेता माना जाता है। मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद लोगों में सदभाव कायम  करने में उन्होंने महती भूमिका निभायी है, इसी बिना पर उनकी प्रोन्नति का दावा सामने है।
सूत्रों का कहना है कि लम्बे समय से गंभीर रूप से बीमार श्रम मंत्री वकार अहमद के बेटे यासिर शाह को राज्यमंत्री का दर्जा मिल सकता है। उसके पीछे बहराइच और आसपास के क्षेत्र में समाजवादी पार्टी की ताकत को पुख्ता करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि महिला और शिया बिरादरी की इकलौती विधायकशादाब फातिमा का नाम भी मंत्री बनने वाले दावेदारों में है।
दरअसल, नियमों के मुताबिक सरकार में मुख्यमंत्री समेत 60 मंत्री ही बनाये जा सकते हैं। मौजूदा समय में मुख्यमंत्री समेत 58 मंत्री हैं। सिर्फ दो पद खाली है। इनमें से एक राजा भैया को मिलना तय है। दूसरे के लिए कई लोगों की दावेदारी है। यासिर और शादाब फातिमा की दावेदारी औरों से थोड़ा ऊपर मानी जा रही है।
विशेष विमान से आएंगे राज्यपाल: आनन-फानन में मंत्रि परिषद विस्तार की रणनीति तैयार करने के बाद प्रदेश सरकार ने अवकाश पर राजस्थान गए राज्यपाल बीएल जोशी को वापस बुलाने के लिए हवाई जहाज भेजा है। सुबह साढे दस बजे मंत्रिपरिषद का विस्तार होना है।

जांच दल के अगुवा को हटाया

पुलिस अधीक्षक के स्थान पर अब अपर पुलिस अधीक्षक होंगी जांच दल की मुखिया

जागरण ब्यूरो, लखनऊ: दंगों की तफ्तीश के लिए गठित एसआइसी (विशेष जांच प्रकोष्ठ) में अधिकारियों की तैनाती के कुछ घण्टों के अन्दर ही जांच दल के अगुवा (टीम लीडर) रहे पुलिस अधीक्षक के.एन.मिश्र को हटा दिया गया, उनका दायित्व अब मुजफ्फरनगर की एएसपी (अपराध) कल्पना सक्सेना को सौंपा गया है।
यह जानकारी एडीजी /आइजी राजकुमार विश्वकर्मा ने दी, आखिर आखिर चंद घण्टों के अन्दर ही एसआइसी का मुखिया क्यों बदला गया? इस सवाल का उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया। एडीजी ने बताया कि पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) लखनऊ में रहते हुए ही विवेचनाओं की निगरानी करेंगे। राहत शिविरों में रहे व्यक्तियों की ओर से एफआइआर के लिए दी जा रही तहरीरों पर बिना अपराध संख्या के मुकदमा दर्ज किया जा रहा है, इसे बाद में संबंधित थानों में भेज दिया जाएगा। एफआइआर कराने वालों की पुलिस पूरी मदद भी कर रही है। उन्होंने बताया कि फिलहाल केएन मिश्र के स्थान पर कल्पना सक्सेना को जांच दल की अगुवाई की जिम्मेदारी सौंपी गयी, बाकी जांच दल उनके साथ काम करेगी। शासन ने मुजफ्फरनगर के दंगों की जांच एसआइसी कराने का ऐलान किया था। 24 सितम्बर को एसआइसी में अधिकारियों की तैनाती की ऐलान किया गया, जिसमें पुलिस अधीक्षककेएन मिश्र की अगुवाई में 20 इंस्पेक्टर, तीन डिप्टी एसपी और दो अपर पुलिस अधीक्षकों को संबद्ध करने की जानकारी दी गयी थी। चौबीस घण्टों के अन्दर ही पुलिस अधिकारियों ने जांच दल का मुखिया ही बदल दिया। एसपी के स्थान पर अपर पुलिस अधीक्षक को जांच दल का मुखिया बना दिया, जबकि दो अपर पुलिस अधीक्षक पहले ही इस दल में शामिल हैं। एडीजी राज कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि विशेष जांच प्रकोष्ठ मुजफ्फरनगर के 106 एफआईआर के अलावा मेरठ, शामली और बागपत में दंगों को लेकर दर्ज हुई एफआइआर की विवेचना करेगी। उन्होंने बताया कि एफआइआर की संख्या बढऩे के भी आसार हैं।  एडीजी ने बताया कि अभी सभी पहलुओं का आकलन हो रहा है, उन्होंने जांच दल से एसपी स्तर के किसी अन्य अधिकारी को संबंद्ध किये जाने की उम्मीद से इनकार नहीं किया।

बिखरते सियासी कुनबे को फिर समेटने

शिवपाल की अगुवाई में मंत्रियों का समूह आज मुजफ्फरनगर, शामली के दंगा प्रभावित इलाकों का कर सकता है दौरा

जागरण ब्यूरो, लखनऊ: दंगों के चलते पश्चिमी यूपी में बिखरते सियासी कुनबे को फिर समेटने के लिए समाजवादी पार्टी ने महासचिव शिवपाल यादव की अगुवाई में 'संकट मोचकÓ दल बनाया है। जाट-मुस्लिम वर्ग के सदस्यों वाला यह दल सोमवार को मुजफ्फरनगर, शामली का दौरा करेगा।पीडि़तों से मिलेगा। राहत कार्यों का जायजा लेगा और सियासी नब्ज को भी टटोलेगा।
मुजफ्फरनगर, शामली के दंगों के चलते पश्चिमी यूपी में सियासी समीकरणों में बदलाव साफ नजर आ रहा है। दंगों के बाद से अब तक समाजवादी पार्टी के किसी बड़े नेता के वहां न जाने को लेकर भी समाजवादी पार्टी के परम्परागत वोटरों में भी खासी नाराजगी की चर्चाएं हैं, जिसको भांपकर पहले समाजवादी पार्टी की नीति निर्धारकों ने पार्टी प्रमुख मुलायम ंिसह यादव का मुजफ्फरनगर दौरा टलवाया और अब पार्टी के महासचिव शिव पाल ंिसह यादव को 'संकट मोचकÓ का जिम्मा सौंपते हुए एक दल गठित किया है। इसमें जाट नेता चौधरी साहब ंिसह, प्रदेश सरकार में श्रम राज्य मंत्री शाहिद मंजूर, चितरंजन स्वरूप, राम सकल गूर्जर को बतौर सदस्य शामिल किया है। इस दल को पहले रविवार को दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करना था लेकिन भाजपा के बंद के आह्रïवान के चलते जिला प्रशासन ने मंत्रियों को न आने की सलाह दी थी। जिससे दौरा टल गया और यह दल सोमवार को मुजफ्फरनगर का दौरा करेगा।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के कैबिनेट मंत्री संकट मोचक टीम के दो सदस्यों के साथ हवाई जहाज से मेरठ पहुंचेगे, जहां पहले से मौजूद अन्य सदस्यों के साथ वह हेलीकाप्टर से मुजफ्फरनगर के कांदला, काकड़ा, कबाल, मलकपुर और शरणार्थी शिविरों में जाकर पीडि़तों से मिलेंगे। बदले सियासी हालात का आकलन करने के लिए जाट-मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली से नेताओं से बातचीत भी करेंगे।
सपा सूत्रों का कहना है कि मुलायम ंिसह यादव ने दो दिनों के दौरान इन नेताओं से अलग-अलग मुलाकात कर मुजफ्फरनगर में हालात सामान्य करने और शरणार्थियों को सुरक्षित उनके घरों में वापस भेजने के प्रयास करने की पहल करने के लिए कहा था। इस दल के दौरे के बाद ही मुलायम ंिसह यादव मुजफ्फरनगर, शामली का दौरा करेंगे। उनके साथ सपा महासचिव आजम खां के भी मौजूद रहने के संकेत पार्टी की ओर से मिल रहे हैं।

हत्यारों में से तीन दर्जन लोग कौन

परवेज़ अहमद, लखनऊ: इंसानियत को शर्मसार करने वाले हत्यारों में से तीन दर्जन लोग कौन हैं, कहां रहते हैं? यह मुजफ्फरनगर पुलिस जानती है, फिर भी उसके हाथ अपराधियों की गिरेबान तक नहीं पहुंच रहे हैं। आखिर क्यों? ये सवाल शासन में उपलब्ध आंकड़ों से उठे हैं।
हजारों परिवार को तबाही के मुहाने पर खड़ा करने...और 64 लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले उन्मादी हत्यारों में से 78 को मुजफ्फरनगर पुलिस पहचानती है। शासन को भेजी  रिपोर्ट में मुजफ्फरनगर पुलिस ने खुद यह दावा किया है, उनकी ओर से कहा गया है कि हत्या में शामिल रहे अपराधियों में से 78 के नाम प्रकाश में आ गए लेकिन गिरफ्तारी सिर्फ 40 की हो सकती है यानी लगभग 50 फीसद से ज्यादा हत्यारे उसकी गिरफ्त से दूर हैं।
 इससे इतर गैर हत्या के दर्ज 101 मुकदमों की तफ्तीश में पुलिस 100 लोगों के नाम प्रकाश में आए फिर भी गिरफ्तारी 213 लोगों की कर डाली गयी।
इससे सवाल यह है कि  तफ्तीश में प्रकाश में आने, नाम, ठौर का पता होने के बाद भी हत्या का आरोपित पुलिस की पकड़ से दूर हैं? जबकि और गैर हत्या के मामलों की तफ्तीश में प्रकाश में 100 व्यक्तियों का नाम-पता पुलिस के सामने आया और गिरफ्तारी 253 व्यक्तियों की हो गयी।
 आंकड़ों पर नजर डालें तो दंगे के चलते मारे गए 64 लोगों के मामलों को सिर्फ 43 एफआइआर में समेट दिया गया। एक एफआइआर में कई-कई लोगों के मारे जाने का उल्लेख है। आइजी/ एडीजी राजकुमार विश्वकर्मा का कहना है कि विवेचना के लिए एसआइसी गठित है, जो पूरी निष्पक्षता से विवेचना करेगी। एफआइआर के तकनीकी पहुलओं की भी जांच होगी, जहां कोई चूक रह गयी होगी, उसे दूर किया जाएगा। दोषी गिरफ्तार होंगे। जिन लोगों का हत्या में नाम प्रकाश में आया है, उनको गिरफ्तार करने में शिथिलता नहीं होगी।
 
अपराध  मुकदमे  मृतक अभियुक्त
हत्या       43     65      78
गैर हत्या  102     00     100

गिरफ्तार      मरे हत्याभियुक्त
40              03
213             --
(स्रोत: शासन में उपलब्ध आंकड़े)

एमडी के लिए भी मान्यता नहीं

3.12.2013

एमडी के लिए भी मान्यता नहीं
- सीसीआइएम के सामने बौने साबित हुए प्रयास
- यूपीपीजी में केवल लखनऊ की सीटों पर हो सके दाखिले
- पीलीभीत इस बार भी रह गया खाली हाथ
- केवल लखनऊ के लिए ही लिए गए दाखिले
 पीलीभीत
आयुर्वेदिक कॉलेज में समायोजन के मामले के बाद छात्रों की नींद एक बार फिर उड़ गई है। आयुर्वेदिक कॉलेज में इस बार फिर एमडी का सेशन जीरो हो गया है। वजह फिर से सीसीआइएम (सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन)  का कड़ा रख और जिम्मेदारों की कमजोर पैरवी है।
यूपी में यूपीपीजी के अंतर्गत केवल लखनऊ और पीलीभीत में ही बीएएमएस के छात्रों को एमडी की शिक्षा का विकल्प है। एमडी की सीटों पर अबकी बार लेटलतीफी होने के बाद एक माह का अतिरिक्त समय प्रदेश के कालेजों को दिया गया था कि मूलभूत चीजें और मानक पूरे कर सत्र शुरु करा लें। पर इस पर कतई गौर नहीं किया गया। नतीजा यह रहा है कि गत कई सेशन जीरो होने के बाद बीच मे एक बार आस जगी। पर अब फिर से वहीं ढाक के तीन पात वाली बात सामने आ गई है। सेंट्रल काउंसिल आफ इंडियन मेडिसिन ने पीलीभीत कालेज को मान्यता न होने के कारण एमडी सीटों पर दाखिला न करने के निर्देश दिए हैं। लिहाजा एमडी के लिए भी मान्यता नहीं होने के कारण बढ़ाई गई मियाद बेमायने साबित हो गई है।
कालेज प्रशासन ने मजबूती से दावे किये थे कि एक माह का अतिरिक्त समय मिला है तो अब कहीं दिक्कतें नहीं हैं, सब कुछ ठीक करा लेंगे। सभी दावे खोखली जमीन पर हवा हवाई ही साबित हुए। केवल लखनऊ की सात एमडी सीटों पर ही दाखिले लिए गए हैं पीलीभीत की इस सत्र में सभी छह सीटे खाली ही रहेगी। इससे आयुर्वेद छात्रों में निराशा है और शासन व कालेज प्रशासन के प्रति रोष भी है।
काफी प्रयास किए गए
पीलीभीत से लखनऊ और लखनऊ से नई दिल्ली के बीच काफी प्रयास किए गए। पर निराशा है कि एमडी में इस बार दाखिले नहीं हो सके। केवल लखनऊ में ही यूपीपीजी सीटों के लिए दाखिले की अनुमति दी गई है।
  डा.प्रकाश चंद सक्सेना
प्राचार्य, आयुर्वेदिक कालेज

'खाली पतीली पर टिकीं आंखें 'पनीली

'खालीÓ पतीली पर टिकीं आंखें 'पनीलीÓ
दंगे के बाद
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- खाने-दाने को मोहताज हुए राहत शिविरों में रह रहे दंगा पीडि़त
- प्रशासन ने बंद किया राशन भेजना, दूध की आपूर्ति भी न के बराबर
- गन्ने के सहारे कट रही जिंदगी, सैकड़ों सो रहे भूखे पेट
 शामली
85 साल की मकसूदी भूख नहीं होने का बहाना कर बच्चों को कुछ खिला देने की बात कहती है तो उसके बहू-बेटे के चश्म तर हो जाते हैं। एक माह की रिजवाना भूख से बिलख रही है, क्योंकि खुराक की कमी से मां मोहसीना आंचल में दूध नहीं उतर रहा। एकाध नहीं, शामली के शिविरों में रह रहीं हजारों जिंदगी का यही फलसफा बन चुका है। खाने-दाने को मोहताज हुए दंगा पीडि़तों से हुकूमत ने आंखें मोड़ रखी हैं। शिविरों का अस्तित्व मानने से इंकार कर रहे हुक्मरानों ने राशन तक भेजना बंद कर दिया, जो दूध भेजा जा रहा है, उससे बच्चों के होठ भी गीले नहीं हो रहे। भूख से बेबस बच्चों की तसल्ली के लिए चूल्हों पर खाली पतीली में पानी पकाया जा रहा है तो उस पर टिकी विस्थापित परिवारों की आंखें भी आंसुओं से तर हैं।
शामली के दंगा राहत शिविरों की व्यथा और चुनौती व्यवस्था से जवाब मांग रही हैं। मलकपुर, खुरगान, बरनावी, कांधला, मन्ना माजरा के राहत कैंपों में रह रहे परिवार भूखे पेट रात गुजार रहे हैं। मलकपुर कैंप की बात करें तो यहां तकरीबन 700 परिवार शरण पाए हैं। शिविर को छह वार्डों में बांटकर करीब 5500 लोगों की खिदमत की जा रही है। इनमें पांच साल से कम उम्र के
 करीब 1200 बच्चे भी हैं। यहां सरकारी स्तर पर खाने-दाने के नाम पर सिर्फ ढाई कुंतल दूध की सप्लाई है। ऐसे में एक व्यक्ति के हिस्से में औसतन 50 ग्राम से भी कम और परिवार के हिसाब से 200 ग्राम दूध आ रहा है। खुरगान राहत कैंप की स्थिति भी ऐसी ही है। यहां रह रहे करीब 300 परिवार के प्रबंधन को संचालकों ने नौ वार्ड बनाए हैं। इन परिवारों को भी दो सौ ग्राम दूध मिल रहा है। शिविरों में परिवार हालात से मुकाबले के लिए मन मसोस रहे हैं।
एक माह से नहीं आया राशन
सीएम अखिलेश यादव भले ही शिविरों में खाने-दाने की व्यवस्था के दावे कर रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि तकरीबन एक महीने से सरकारी राशन पर रोक है। शिविरार्थियों अहमद, दिलशाद, रहमत आदि के मुताबिक, सर्दी में उन्हें व उनके बच्चों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है। शिविर में रह रहे परिवारों और खिदमत में जुड़े लोगों की माने तो इमदाद के इच्छुक लोग कंबल और गर्म कपड़े तो अच्छी तादाद में भेज रहे हैं, लेकिन राशन नहीं है। शिविर संचालक दिलशाद बताते हैं कि एनजीओ आदि जरूर खुद राशन भेज देते हैं। सारा शिविर इमदाद के भरोसे है। खुरगान, मन्ना माजरा, बरनावी व कांधला शिविर का हाल भी ऐसा ही है।
ढाई माह में 11 बार राशन आया
एक माह से राशन बंद है। शिविर में सिर्फ प्रशासन ढाई कुंतल दूध भेज रहा है। प्रत्येक परिवार को 200 ग्राम दूध दिया जा रहा है।ÓÓ
-हाजी दिलशाद, संचालक, मलकपुर शिविर

शिविर में दूध की आपूर्ति नाकाफी है। राशन भी इमदाद के भरोसे है। प्रशासन अनदेखी कर रहा है। बच्चे-बड़े भूखे पेट सो रहे हैं।ÓÓ
- मोहम्मद खलील चौहान, खुरगान शिविर
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''संचालकों ने खाद्य सामग्री की डिमांड नहीं की तो आपूर्ति रोक दी गई। शिविर संचालकों को दूध उपलब्ध कराया जा रहा है। वही अपने हिसाब से वितरण कर रहे हैं।ÓÓ
-पीके सिंह, डीएम शामली
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सम्भल के बसपा सांसद बर्क का टिकट कटा
-बसपा नेतृत्व ने अकीलुर्रहमान को बनाया प्रत्याशी
-मुनकाद ने की घोषणा, बरेली से सुधीर मौर्य का पत्ता भी साफ
जागरण संवाददाता,मुरादाबाद: लंबे अरसे से बसपा नेतृत्व की आंख की किरकिरी बने सम्भल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क को पार्टी नेतृत्व ने बड़ा झटका दिया है। सम्भल क्षेत्र से बर्क का टिकट काटकर पूर्व विधायक अकीलुर्रहमान को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। बसपा के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कोआर्डिनेटर मुनकाद अली ने यह भी एलान किया है कि बरेली से सुधीर मौर्य को भी नहीं लड़ाया जाएगा।
मुरादाबाद संसदीय क्षेत्र से सियासी पारी खेलने वाले सांसद बर्क परिसीमन के बाद 2009 में अपने गृह क्षेत्र सम्भल से बसपा के टिकट पर सांसद बने थे। इससे पहले वह तीन बार सपा के टिकट पर मुरादाबाद से सांसद चुने जा चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले जब सांसद के पौत्र जियाउर्रहमान बर्क का टिकट काटकर रफतउल्ला खां उर्फ नेता छिद्दा को पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया, बर्क की दावेदारी पर तभी से खतरा मंडराने लगा था। बाद में दूसरा कोई विकल्प न होने पर पार्टी नेतृत्व ने सांसद शफीकुर्रहमान बर्क को प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
असमोली से पूर्व विधायक रहे अकीलुर्रहमान की पार्टी नेतृत्व से निकटता बढऩे पर एक महीने से बर्क की फिर टिकट काटे जाने की चर्चा आम हो गईं थी। पार्टी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश कोआर्डिनेटर मुनकाद अली ने गुरुवार को सम्भल के अकीलुर्रहमान समर्थकों के बीच पत्रकारवार्ता में बताया कि पार्टी नेतृत्व ने शफीकुर्रहमान बर्क की जगह अकीलुर्रहमान को सम्भल से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि पार्टी मुखिया की ओर से बर्क को कोई बड़ी जिम्मेदारी भी दी जा सकती है। श्री अली ने बरेली से पार्टी प्रत्याशी सुधीर मौर्य को भी न लड़ाने का ऐलान करते हुए कहा कि पार्टी ने सुधीर मौर्य को टिकट दिया था। उनके स्थान पर किसी अन्य प्रत्याशी की घोषणा अगले माह की जाएगी।

दंगों के कारणों की तलाश से गुरेज, शांति और सद्भाव कायम करने के सुझाव


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मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद गठित 10 मंत्रियों की समिति ने मुख्यमंत्री, सपा प्रमुख मुलायम ंिसह यादव को सौंपी रिपोर्ट

जागरण ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार के दस मंत्रियों से सजी सद्भावना समिति ने मुजफ्फरनगर के दंगों के कारणों की तलाश से गुरेज करते हुए वहां फिर से शांति और सद्भाव कायम करने के सुझाव वाली रिपोर्ट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम ंिसह यादव को सौंप दी है।
मुजफ्फरनगर में दंगे के बाद सपा मुखिया मुलायम ंिसह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ पूरी स्थितियों पर चर्चा की थी और फिर वरिष्ठ मंत्री शिवपाल यादव की अगुवाई में दस मंत्रियों की सदभावना समिति गठित कर उन्हें मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत में शांति बहाल करने के लिए भेजा था। इस समिति से पूरे प्रकरण पर रिपोर्ट तलब की थी। सूत्रों का कहना है कि गत दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी प्रमुख मुलायम ंिसह को भेजी रिपोर्ट में समिति ने दंगों के कारणों का विस्तृत उल्लेख करने से गुरेज किया है। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में ये जरूर कहा गया है कि कबाल की घटना के बाद पुलिस को जिस तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। तनाव के दौरान डीएम, एसएसपी का तबादला हुआ तो निचले पुलिस व प्रशासन के अधिकारी शिथिल होती कार्रवाई पर अंकुश नहीं लगा पाये। बाद में तैनात हुए अधिकारी स्थिति का आकलन नहीं कर पाए। पंचायतों की इजाजत अदूरदर्शी कदम था। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए कुछ सियासी दलों की ओर इशारा किया गया है।
सद्भावना समिति के सुझाव:
-निष्पक्ष कार्रवाई होने के संदेश पीडि़तों को नजर आए।
-प्रभावित, पीडि़त परिवारों के पुर्नवास का इंतजाम सरकार करे
-दोनों पक्षों पर दर्ज फर्जी मुकदमें वापस लिये जाएं
-दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए
-वारदात के दौरान मूकदर्शक रहे पुलिस, प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए
-शिविरों में रह रहे लोगों की मदद के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से आ रही राहत सामग्र्री के वितरण की निगरानी जिला प्रशासन को सौंपी जाए।
-अब तक मिली मदद का ब्योरा तैयार किया जाए और बची हुई सामग्र्री प्रशासन की निगरानी में पीडि़तों के बीच वितरित करा दी जाए।
-दंगा भड़काने के दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, इसमें किसी को भी बख्शा नहीं जाए
सदभावना समिति में ये थे सदस्य: वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री शिव पाल ंिसह यादव अध्यक्ष सदभावना समिति, सदस्य पंचायतीराज मंत्री बलराम यादव, बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविन्द चौधरी, श्रम राज्य मंत्री शाहिद मंजूर, नगर विकास राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप, जाट नेता चौधरी साहब ंिसह, राजेन्द्र ंिसह आदि

तब बच्चों की मौतें क्यों हो रही हैं। कैम्प के लोग बेहाल क्यों


लखनऊ: प्रदेश सरकार दंगा पीडि़तों को दोजून की रोटी पर तीन करोड़। टेंट, कपड़े, बर्तन व मिट्टी के तेल पर एक करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। देश की मुख्तलिफ तंजीमें (संस्थाएं) करोड़ों की इमदाद भेज रही हैं। ऐसे में सवाल ये है कि तब बच्चों की मौतें क्यों हो रही हैं। कैम्प के लोग बेहाल क्यों हैं? सूत्रों का कहना है कि इमदाद में घोटालेबाजी हो रही है। पीडि़तों को जरूरत की खाद्य सामग्र्री नहीं मिल रही है।
27 अगस्त को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत में सांप्रदायिक उपद्रव की शुरूआत और फिर  दंगा भड़कने के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने गांव छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी शुरू की थी। स्थानीय लोगों के अलावा सरकार ने भी पीडि़तों के लिए खाद्य सामग्र्री के इंतजाम का दावा शुरू किया। सूत्रों का कहना है कि कुछ दिनों के अन्दर ही सरकारी मदद से कई गुना अधिक इमदाद दिल्ली, यूपी के मुख्तलिफ हिस्सों, उत्तराखण्ड़, पश्चिम बंगाल और क्षेत्रीय लोगों ने कैम्पों में भेजनी शुरू कर दी थी। बावजूद इसके कैम्पों का हाल-बदहाल है।
ठंड बढऩे के साथ ही बच्चों की मौतों का सिलसिला शुरू हो गया है। गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 50 बच्चों की मौत हो चुकी है। स्थानीय लोगों और स्वास्थ्य अधिकारियों ने दबी जुबान स्वीकार किया कि कई बच्चे निमोनिया जैसी बीमारियों के शिकार हो गए थे। यानी उन्हें सर्दी से बचाने और खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है। सवाल ये है कि आखिर सरकारी और गैर सरकारी इमदाद जा कहां रही है? क्या इसमें भी घोटाला हो रहा है। सूत्रों पर भरोसा करें तो दंगा पीडि़तों के लिए जुटाई जा रही इमदाद की रकम में भी खासा घोटाला हो रहा है।
सरकार ने इमदाद का पूरा ब्योरा तैयार करने की अधिकारियों को हिदायत दी थी लेकिन कुछ खास की नाराजगी के डर  और कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते वह ब्योरा भी तैयार नहीं हो रहा है। कैम्प चलाने वाले लोग यह तो स्वीकारते हैं कि राहत शिविरों को लिए इमदाद मिल रही है लेकिन कहां से क्या आया? इसका कोई ठोस ब्योरा किसी के पास उपलब्ध नहीं है। अलबत्ता यूपी के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने शुक्रवार को शाम आनन-फानन में बुलायी गयी पत्रकार वार्ता में कहा था कि राहत शिविरों में सब कुछ ठीक है। मीडिया लोगों को गुमराह कर रहा है। हालांकि बच्चों की मौतों पर उन्होंने जुबान बंद रखी। उन्होने कहा कि मेरठ का कमिश्नर बच्चों की मौत के कारणों की जांच कर रहे हैं, रिपोर्ट आने पर ही कुछ कह पाएंगे।


दंगा शिविर
-58 हजार लोगों ने दंगा राहत शिविर में शरण लिया (मुजफ्फरनगर में 41, शामली में 17 शिविर)
सरकारी भोजन सामग्र्री: राहत शिविर में रहने वालों के लिए खाद्य सामग्र्री आटा, दाल, चावल, नमक, खाद्य तेल, आलू, चीनी, साबुन, दूध और मसाला पर तीन करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। सरकार स्वीकारती है कि जन सामान्य के सहयोग से इन वस्तुओं से बना बनाया खाना भी कैम्पों में लगातार उपलब्ध करायी जा चुकी है।
निवास व अन्य: सरकार का दावा है कि स्टील के खाने के बर्तन, ग्लास, तौलिया, महिलाओं, बच्चों के कपड़े, पाउडर दूध, माचिस, टेंट, गैस सिलेण्डर पर आदि पर एक करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लकड़ी वन विभाग उपलब्ध करा रहा है।
यूपी, दिल्ली और उत्तराखण्ड की निजी संस्थाओं की मदद: आटा, दाल चावल, लकड़ी, कपड़े, टेन्ट, रोटियां, साबुन, तेल, कंबल, गद्दे, नकद राशि, स्टील की प्लेट, मिट्टी का तेल, बिस्किट के पैकेट, मिल्क पैकेट

तब बच्चों की मौत क्यों: इतनी बड़ी मात्रा में सरकारी और गैर सरकारी इमदाद के बावजूद आखिर कैम्पों में रह रहे बच्चों की असमय मौतें क्यों हो रही हैं। क्या दंगा पीडि़तों के लिए पहुंच रही सामग्र्री और धनराशि में भी घोटाला शुरू हो गया है।

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सरकारी आंकड़े
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-मेरठ, बागपत, सहारनपुर और शामली में सांप्रदायिक ंिहंसा में 65 व्यक्तियों की जान गयी और 85 लोग जख्मी हुए।
-मारे गए परिवार के आश्रितों को 10-10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता पर 6 करोड़ 35 लाख रुपए खर्च हुए।
- मृतकों के आश्रितों में 58 व्यक्तियों को सरकारी नौकरी दी गयी।
-प्रधानमंत्री सहायता कोष से मारे गए व्यक्तियों के परिवार को दो-दो लाख रुपए की मदद
-मारे गए पत्रकार के परिवार को 10 लाख की मदद
-गंभीर घायलों को 50-50 हजार की आर्थिक मदद
-साधारण रुप से घायल 51 व्यक्तियों को 20-20 हजार
-ंिहसक घटनाओं के 74 घायलों को रानी लक्ष्मी बाई पेंशन
-चल, अचल संपत्तियों का 50 हजार नुकसान पर 50 हजार और एक लाख के नुकसान पर एक लाख की मदद
-इससे एक लाख से ऊपर के नुकसान पर वास्तिवक आगणन के आधार पर सहायता
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मेरा दिल तपड़पता रहा।


मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और यूपी सरकार के वजीर आजम खां घिर गए हैं। बुधवार की शाम उन्होंने 'दैनिक जागरणÓ से विशेष बातचीत में  स्वीकारा था कि प्रभारी मंत्री के नाते  मुजफ्फरनगर के दंगों परअधिकारियों से संपर्क साधा था, जिन्होंने उनकी एक न सुनी। मगर, गुरुवार को मीडिया को दी सफाई में उन्होंने अधिकारियों से बातचीत पर इनकार कर दिया। अब विपक्षी दल उनको घेरने में जुट गये हैं। इस्तीफे की मांग भी उठ गयी है।
पेश है मुजफ्फरनगर के दंगे, सियासी हालात, उन पर लग रहे आरोपों पर बुधवार की शाम जागरण संवाददाता परवेज अहमद के साथ हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-

मुजफ्फरनगर के दंगों पर: मेरा दिल तपड़पता रहा। प्रभारी मंत्री के नाते अफसरों से कहता रहा, उन्हें राय देता रहा, मगर उस पर अमल नहीं हुआ,  कुछ लोगों को कुर्सी पर बैठने पर ही काबिलियत का गुमान हो जाता है,   सच्चाई ये है कि कुर्सी पर बैठकर अफसर तो कहलाया जा सकता है लेकिन 'अफसरीÓ नहीं की जा सकती। मुजफ्फरनगर में भी इनसे लापरवाहियां हुईं।
मुजफ्फरनगर नहीं जाने पर: बगैर गये इस कदर इल्जाम हैं। मैं, न जाकर भी हर धर्म, जाति के मजलूमों की मदद की कोशिश में हूं। दिल, दिमाग से वहीं मौजूद हूं, जल्द जाऊंगा भी...।
मुसलमानों से रिश्तों पर: समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के रिश्तों के बारे में लोग हल्की बातें कर रहे हैं। मुसलमानों का सपा से गहरा रिश्ता है। बात ये भी है कि मुसलमानों को किसी राजनैतिक दल की नहीं, राजनैतिक दलों को मुसलमानों की जरूरत है। 1500 सालों का मिजाज है यह कि मुसलमान यह देखता है कोई बात किसके जरिए कही जा रही है।
सपा सरकार में दंगों पर: दंगे हमेशा दुखद होते हैं। बहुत कुछ तबाह हो जाता है। अगर मुसलमान संजीदगी से सोचेंगे तो सपा के साथ और मजबूती से जुड़ेंगे। दूसरी सरकारों में मुसलमान दोयम दर्जे का नागरिक हो जाता है। उसे धमकाकर चुप करा दिया जाता है। देखिए, गुजरात में भी मुसलमानों ने मोदी (भाजपा) को वोट दिया लेकिन डर से कि कहीं बहन-बेटियां न उठा ली जाएं। कारोबार तहस-नहस न हो जाए। फर्जी मुकदमें न थोप जाएं।
दंगे खबर नहीं देने के प्रधानमंत्री के बयान पर: मुजफ्फरनगर दिल्ली सिर्फ 110 किलोमीटर है। फिर भी खबर नहीं मिली, आश्चर्य है। ऐसे में बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, आसाम और चीन की सीमा पर क्या हो रहा है, उसकी खबर कैसे पा सकेंगे?
मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर: यह भाजपा का मामला है। मगर, देखिए, 'कातिलÓ के जन्मदिन की खुशियां मनीं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ायी गयी, वह भी मुख्यमंत्री फण्ड से। बुर्के बांटे गए। मर्दों को बुर्का पहनाकर खड़ा किया गया, जिनका पर्दाअफगानिस्तान से भी सख्त था, स सच्चाई न खुल जाए इसके लिए किसी ने मुंह तक नहीं खोला। इतनी टोपी, बुर्के खरीदे गये कि बाजार में कम हो गए। ये ही मुलायम ंिसह यादव को 'मुल्ला मुलायमÓ और अखिलेश यादव को 'अखिलेश खानÓ कहते हैं। दरअसल,  फासिस्ट ताकतों को बुर्के और टोपी की सियासत रास आने लगी है।
यूपी में उन्माद और कत्ल पर: देखिए, एक वह कत्ल है जिसमें नस्लें कत्ल होती हैं, वह गुजरात में किया गया। दूसरी ओर ऐसी सियासी पार्टी की सरकार है जो गरीबों, अल्पसंख्यकों को हक देने में जुटी है। दस्तूरी और कानूनी फायदा पहुंचा रही है। दंगों व बदनामियों की लड़ी साबित करती है कि सरकार मुसलमानों को बराबरी पर लाने का प्रयास कर रही है। फिर भी कहता हूं कि पार्टी या सरकार कहीं गलती करेगी तो मुसलमानों के चौकीदार के रूप में हमेशा खड़ा मिलूंगा।
सपा से आजम की नाराजगी पर: जब यूपी में सरकार बनने के हालात बने, तब चर्चा झेड़ी गई कि मैं, डीपी यादव को पार्टी में शामिल करना चाहता था, नहीं होने पर नाराजगी हुई लेकिन यह सच नहीं है। हमारे कुछ साथियों की नादानी और मीडिया ने ये गफलत फैलायी।
 अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने से नाखुशी पर ...एक तरफ तो यह कहा जाता है कि मैं परिवार का सदस्य हूं, पार्टी के फाउंडरों में हूं। नेता जी (मुलायम ंिसह यादव) का सबसे खास हूं।उनके साथ तीन बार मंत्री रहा। आपको बताता हूं कि जब नेता जी ने पूछा कि मुख्यमंत्री के रूप में किसका नाम रखा जाए तो मैंने बिना झिझक अखिलेश जी के नाम का प्रस्ताव किया। मेरे अदब, एहतराम में कोई कमी नहीं है। विभागों में मेरे अख्तियार में कमी नहीं है। दरअसल, मैं, एक ऐसा हूं, जो पुल के एक सिरे से चढ़कर दूसरे सिरे से उतर रहा है।  समाजवादी पार्टी की खूबी ही यही है कि उसमें सबको सुनने और बर्दाश्त करने की काबिलियत है।
मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली पर: काम करने की जो कूवत मौजूदा वजीर-ए-आला (मुख्यमंत्री) में है, वह सामान्य लोगों में नहीं होती। जिस सूझ-बूझ की उनसे उम्मीद है, वह उससे बेहतर की कोशिश कर रहे हैं। वक्त दे रहे हैं। मैं, दावे के साथ कहता हूं कि इतना उर्जावान और धैर्यवान मुख्यमंत्री या नेता किसी दूसरे दल के पास नहीं है।
खुद की तुनक मिजाजी पर: ऐसी बातें मेरे नाम के साथ जोड़कर कहने का सियासी फैशन चल गया है। मैं, दीवार या पत्थर का टुकड़ा नहीं, इंसान हूं। अगर वसूलों के खिलाफ बात होगी तो फिर कहूंगा, बोलूंगा और नाराज भी होऊंगा। खामोश नहीं रह सकता। मेरे पास खोने के लिए वजारत (मंत्री पद) के सिवाय और कुछ नहीं।
अल्पसंख्यक इदारों में नियुक्तियों की अड़चनों पर: बसपा नेत्री मायावती ने अल्पसंख्यक आयोग को बहुसंख्यक बना दिया था। एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 21 सदस्य का कानून बना दिया। आयोग में सिर्फ चार अल्पसंख्यक सदस्य थे। उस कानून को बदलकर फिर अल्पसंख्यक  बनाया जा रहा है। हाइकोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी गई, इसीलिए उनकी ओर से आदेश हुआ। जल्द ही अल्पसंख्यक इदारों में नियुक्तियां होंगी।
सपा कार्यकारिणी में नहीं जाने पर: यह कोई ऐसी बात नहीं थी। किसी ने बुलाया नहीं, किन्ही वजहों से गया नहीं। उस बात को अफसाना बना दिया गया।
मुख्यमंत्री के घर आने पर: अक्सर एक साथ बैठते हैं। कई दिगर मामलात थे। मेरे शिकवे भी थे, जो निजी नहीं थे। ठेका, पïट्टा,परमिट के नहीं थे। वसूलों से जुड़े थे, पार्टी के हित के थे। सरकार के लिए थे, जिन पर बात हुई। दोहरा रहा हूं कि मेरे पास खोने के लिए वजारत के सिवा कुछ नहीं है।
मुलायम ंिसह से रिश्तों पर: मुलायम ंिसह यादव इस देश के एक ऐसे सियासी रहनुमा हैं, जिन्होंने धर्म निरपेक्षता के लिए बहुत कुर्बानी दी है। उनके साथ मेरा जज्बाती और वैचारिक रिश्ता है। एक दूसरे के लिए कुछ भी करने का जज्बा है।
लेकिन पार्टी में ही आजम, नरेश और दूसरे नेता आपसे इस्तीफा मांग रहे हैं?
इनका म्यार (कद) इतना नहीं है कि मैं जवाब दूं। इनके बारे में कुछ भी कहना खुद की जुबान खराब करना है।

कुछ को 'क्लीन चिट, कुछ 'गुनहगार


 परवेज़ अहमद, लखनऊ: जुर्म एक जैसा फिर भी कुछ को 'क्लीन चिटÓ मिल गयी, कुछ 'गुनहगारÓ ठहरा दिये गये। ये खामी सामान्य जांच एजेंसी से नहीं, सीबीआइ की तफ्तीश में हुई है। नतीजे में कई महिला डॉक्टर जेल के सीकचों के पीछे पहुंच गईं, कुछ आत्मसमर्पण की जुगत में हैं।
एनआरएचएम घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने लखनऊ के मामले में 32 डॉक्टरों को आरोपित किया। जिनमें से 17 महिला हैं। इन पर एम्बुलेंस और बाल स्वास्थ्य योजना के तहत चले 'चार पहियाÓ वाहनों के संचालन में गड़बड़ी। वाहनों के चले बिना भुगतान करने का आरोप है, मगर ऐसे ही आरोपों वाले कुछ डॉक्टरों का नाम सीबीआइ के आरोप पत्र में फिलहाल नहीं है, यहीं से सीबीआइ की जांच सवालों के घेरे में है। मसलन, डॉ  गीता भारती, डॉ. इंदुबाला को जिस तरह के बिलों के सत्यापन के लिए वित्तीय अनियमितता का दोषी पाया गया, वैसी ही अनियमितता के बिल उपलब्ध होने पर भी सीएचसी मलिहाबाद, सीएचसी माल और सीएचसी काकोरी के पुरुष डॉक्टरों को 'क्लीन चिटÓ मिल गई। इनमें से एक चिकित्सालय में तैनात रही महिला डॉक्टर ने बिलों पर दर्ज हस्ताक्षर फर्जी होने का बयान दिया  और वह आरोप पत्र से बाहर हो गयी लेकिन दूसरी महिला डॉक्टर के  ऐसे ही बयान को सीबीआइ के विवेचनाधिकारी ने तर्क संगत नहीं माना।
लखनऊ रेडक्रास के एक डॉक्टर के सत्यापित बिलों की छाया प्रतियां उपलब्ध होने के बावजूद उन्हें आरोप पत्र से बाहर रखा गया, जबकि ऐसी ही गलती के लिए डॉ.(श्रीमती) रेखा चौधरी को आरोप बनाकर जेल भेज दिया गया।
सिर्फ इन बिन्दुओं पर ही तफ्तीश पर उंगली नहीं उठ रही बल्कि जिस एम्बुलेंस का फर्जी रूप से चलने के आरोप में डॉ.(श्रीमती) चित्रा सक्सेना, डॉ(श्रीमती) अंजली पंत और  डॉ.साधना त्रिपाठी को सीबीआइ ने दोषी ठहराया, वह एम्बुलेंस इन डॉक्टरों की तैनाती से पहले राष्ट्रीय ग्र्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में पहले से ही चल रही थी, तब भी पहले के बिलों के सत्यापित करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। चार्जशीट में उनके नाम का उल्लेख तक नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि एम्बुलेंस और चौपहिया वाहनों के सेवा प्रदात्ता(सर्विस प्रोवाइडर) कम्पनी और  डीपीओ (जिला परियोजना अधिकारी) के बीच अनुबंध हुआ। इन वाहनों के भुगतान के लिए प्रथम हस्ताक्षरी डीपीओ होते हैं, उनकी ओर से बिलों के भुगतान करने के साक्ष्य उपलब्ध हैं, फिर भी सीबीआइ की नजर में वह दोषी नहीं पाये गए।  अलबत्ता डॉ. नीलिमा ंिसह, डॉ.केके सक्सेना और डॉ.चन्द्रजीत यादव को आरोपित ठहरा दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि एनआरएचएम घोटाले में आरोपित किये गये डॉक्टरों के परिजन सीबीआइ की कथित भेदभावपूर्ण कार्रवाई के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रही है।

हाइपावर जांच समिति गठित


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पांच सदस्यीय जांच समिति में आइपीएस, सेवानिवृत न्यायमूर्ति, एक संपादक और दो समाजसेवी रखने के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री ने जतायी सैद्धांतिक सहमति

जागरण ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार ने दो साल के दौरान हुए सांप्रदायिक उपद्रवों की जांच के लिए हाइपावर जांच समिति गठित करने पर सैद्धांतिक सहमति जता दी है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच सदस्यीय जांच समिति में एक आइपीएस, एक सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति, एक संपादक और सांप्रदायिक सौहार्द के क्षेत्र में कार्य कर रहे दो समाजसेवियों को नियुक्त करने पर सहमति दी है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार इस प्रस्ताव पर विधि विशेषज्ञों से राय लेने और जांच समिति के अधिकार, उनके दायित्व निर्धारित करने के बाद समिति के गठन का आदेश जारी करेगी।
इत्तेहाद मिल्लत काउंसिल पार्टी के अध्यक्ष और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त मौलाना तौकीर रजा ने सांप्रदायिक उपद्रवों की जांच के लिए हाइपावर कमेटी के गठन की मांग उठाई थी, उन्होंने कमेटी बने बगैरराज्यमंत्री का दर्जा स्वीकारने से इनकार कर दिया था। जिस पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम ंिसह यादव ने  मौलाना तौकीर रजा को बुलाकर बातचीत की और दो साल के दौरान हुए उपद्रवों की जांच के लिए हाइपावर समिति के गठन का भरोसा दिलाया था। उन्होंने मौलाना को जांच समिति का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव भी दिया था।
अब मंगलवार को मौलाना तौकीर रजा ने 5,कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भेंट की, जिसमें सांप्रदायिक उपद्रवों की जांच के लिए हाइपावर समिति के गठन और जांच समिति के सदस्य के नामों को अंतिम रूप दिया गया। सूत्रों का कहना है कि जांच समिति के प्रारूप पर जल्द ही सरकार विधिक राय ले लेगी। जिसके बाद ही समिति अस्तित्व में आएगी।
इस संबंध में पूछे जाने पर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त मौलाना तौकीर रजा ने स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री ने हाइपावर जांच समिति गठित बनाने पर सहमति दी है। समिति में पांच सदस्य होंगे, जिनमें से तीन हिन्दू और दो मुस्लिम होंगे। एक महिला सदस्य भी होगी। ताकि समिति में सभी वर्गो की नुमाइंदगी हो। निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो सके। उनका कहना है कि जल्द ही समिति के गठन का आदेश जारी हो जाएगा। मौलाना का कहना है कि वह इस समिति में नहीं रहेंगे, जिन लोगों का नाम प्रस्तावित किया गया है, वह कानून और समाज विज्ञान के विशेषज्ञ हैं।










लड़ाकों को सियासत में करवट का संदेश

हर चुनावी परिणाम कुछ खास संदेश देते हैं। इस बार के सूबाई परिणाम यूपी की 80
लोकसभा सीटों पर नजर गड़ाये लड़ाकों को सियासत में करवट का संदेश हैं। ग्र्रामीण और शहरी मतदाता का नजरिया जुदा है। शहरी मतदाता ठोस, त्वरित परिणाम के साथ पारदर्शिता की पक्षधरता में नजर आया तो ग्र्रामीण क्षेत्र सत्ता अनाज और बच्चों के मुस्तकबिल संवारने वाले योजनाओं के साथ एकजुट नजर आया। इत्तिफाक से यूपी की आबादी में अरबन और ग्र्रामीण पृष्ठभूमि का मिश्रण हैं। इसके पश्चिम हिस्से में अरबन और पूर्वी इलाके में ग्र्रामीण क्षेत्रों की बहुलता है। इस प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाल रही समाजवादी पार्टी का अब तक कस्बों और गांवों में मजबूत पकड़ रही है लेकिन पार्टी अब तक शहरी और ग्र्रामीण दोनों में मतदाताओं के बीच कोई स्पष्ट संदेश नहीं छोड़ पायी है, यहां के मुख्यमंत्री युवा है। सो, दूसरे की तुलना युवा मतदाताओं की उनसे उम्मीदें कुछ ज्यादा हैं। इन बातों को पार्टी को आत्मसात करना होगा और मौजूदा तौर-तरीकों में बदलाव लाना होगा।
अन्यथा, उनके लिए लोकसभा की राह मुश्किल हो तो आश्चर्य नहीं होगा, दूसरे
अखाड़ेबाजों में शुमार बहुजन समाज पार्टी ने मूल सियासी मंत्र बहुजन समाज
से सर्वजन तक की राह पर चली लेकिन उसका मूलाधार अब भी गांव में ही है। उस पर भ्रष्टाचार के आरोपों का भार भी है, जबकि युवा मतदाता अब जाति, धर्म के बंधन से बाहर निकलकर ईमानदार और सीधी राजनीति में पक्षधरता दिखाते नजर आ रहे हैं, यूपी के विधानसभा चुनावों में इस झलक नजर भी आयी थी। भाजपा को विरोधी दलों की इनकम्बेंसी और नरेन्द्र मोदी के चेहरे के चमत्कारÓ की उम्मीद से इतर धरातल पर उतरने का संदेश इन
राज्यों के चुनावों से है। कांग्रेस के लिए तो संगठन से लेकर अमूल चूल  परिवर्तन का संदेश है लेकिन वह इस दिशा में अब कितना ठोस कदम उठा पाती है, वह
देखने वाली बात होगी। लेकिन इतना तय है कि अब युवा मतदाता चाहे वह गांव का हो या शहर सिर्फ उम्मीदों की आस में किसी का इंतजार नहीं कर सकता और किसी की प्रतिबद्धता का कायल नहीं है। उसे चाहिए परिणाम

विशेष वक्फ न्यायाधिकरण बोर्ड गठित करने की तैयारी

लोकसभा चुनावों से पहले मुसलमानों को पाले में गोलबंद करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है फैसला

परवेज़ अहमद, लखनऊ: लोकसभा चुनावों की डुगडुगी से पहले मुसलमानों को गोलबंद करने की मुहिम में जुटी राज्य की समाजवादी सरकार ने विशेष वक्फ न्यायाधिकरण बोर्ड गठित करने की तैयारी पूरी कर ली है। बोर्ड में जिला जज स्तर के न्यायिक अधिकारी अध्यक्ष, वक्फ कानून की समझ रखने वाले किसी भी व्यक्ति को सदस्य सचिव और वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी को न्यायिक सदस्य नियुक्त किये जाने का प्रस्ताव है। आदर्श चुनावी आचार संहिता से पहले ही इस प्रस्ताव को मंजूर किये जाने के आसार हैं।
प्रदेश में सुन्नी व शिया वक्फ बोर्ड बना हुआ है, जहां उत्तर प्रदेश वक्फ एक्ट 1995 के नियमों की रोशनी में मदरसों, दरगाहों, इमामबाड़ों और वक्फ के रूप में दर्ज संपत्तियों के विवादों की सुनवाई और फैसले होते हैं। अब तक बोर्ड के फैसले के खिलाफ वादी या प्रतिवादी संबंधित जिलों के जिला जज के यहां अपील कर सकता था, क्योकि जिला जज में ही न्यायाधिकरण के अधिकार निहित थे। राज्य सरकार ने कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश वक्फ एक्ट 1995 में संशोधन कर वक्फ बोर्डो के फैसले के खिलाफ सुनवाई के लिए विशेष वक्फ न्यायाधिकरण बोर्ड गठित करने का अधिकार हासिल किया था।
  अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने सोमवार को विशेष न्यायाधिकरण बोर्ड का प्रस्ताव शासन भेजा, जिस पर सहमति जता दी गयी है। सूत्रों का कहना है कि प्रस्ताव में न्यायाधिकरण का अध्यक्ष रिटायर्ड जिला जज होगा या कार्यरत जिला जज इस खामोशी है लेकिन यह स्पष्ट है कि अध्यक्ष जिला जज स्तर का होगा। इसके अलावा वक्फ कानूनों की जानकारी रखने वाला कोई व्यक्ति सदस्य सचिव और एक वरिष्ठ पीसीएस सदस्य न्यायिक होगा। जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार करेगी।  इस प्रक्रिया से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि आदर्श  आचार संहिता से पहले ही सरकार विशेष न्यायाधिकरण बोर्ड के गठन को मंजूरी प्रदान कर देगी। वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारुकी का कहना है कि इससे मुकदमों का निस्तारण तेजी से होगा।



पश्चिम के दंगों के कोलाहल में


लखनऊ: प्रदेश सरकार ने अल्पसंख्यकों के हित में इस साल कई कदम उठाए। &0 महकमों की 85 योजनाओं का 20 फीसद लाभ देने का फैसला लिया। असर होने से पहले ही ये योजनाएं पश्चिम के दंगों के कोलाहल में छिप गयी हैं। अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों का तकरीबन एकमुश्त वोट लेकर राज्य की सत्ता में आयी समाजवादी पार्टी ने अगस्त 201& में &0 महकमों की 85 योजनाओं का लाभ अल्पसंख्यक बाहुल शहरों, कस्बों और गांवों में पहुंचाने का फैसला लिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अगुवाई वाली मंत्रि परिषद ने फैसला लिया है कि इन योजनाओं का 20 फीसद लाभ अल्पसंख्यकों तक पहुंचाया जाएगा, इस पर तेजी से अमल का फैसला लिया गया। लेकिन शिथिल गवर्नेंस के चलते योजनाओं की निगरानी के लिए गठित होने वाली जिला समितियों के गठन का कार्य भी पूरा नहीं हो पाया। योजनाओं की जानकारी गांव-गलियारे तक पहुंचाने का फैसले पर भी अब तक ठीक से अमल नहीं हुआ, नतीजे में पश्चिम के दंगों से उठे शोर में ये कल्याणकारी योजनाएं दब कर रह गयीं। उल्टे यह आवाज जरूर बुलंद हो गयी है कि अगर सरकार ने अब तक अल्पसंख्यक आयोग का गठन नहीं किया। मुसलमानों के एक बड़े तबके  को मलाल है कि अगर आयोग का गठन हो गया होता तो वह अपनी छोटी-मोटी शिकायतें तो वहां दर्ज करा पाते। जहां से उन्हें कुछ लाभ मिल पाता। अगर कुछ शब्दों में निष्कर्ष निकाला जाए तो ये होगा कि अल्पसंख्यकों के लिए सरकार की ओर से की गयी घोषणाएं और उसके फैसले वर्ष 201& में जमीन पर आकार नहीं ले सके।
योजनाएं जो शुरू हुई
-हमारी बेटी, उसका कल योजना में एक मुश्त तीस हजार रुपए की मदद
-इस योजना के तहत &0 विभागों में संचालित 85 योजनाएं शामिल
-अल्पसंख्यकों की 25 फीसद आबादी वाले क्षेत्र में हैण्डपम्पों की स्थापना, आंगनबाड़ी केन्द्र खोलने और ग्रामीण सम्पर्क मार्ग बनवाने का फैसला
- अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में
सामाजिक पेंशन योजनाएं, ग्रामीण एवं शहरी आवास, कन्या विद्याधन, नि:शुल्क बोरिंग का फैसला
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जो अब तक नहीं हुआ
-अल्पसंख्यक आयोग का गठन नहीं हुआ
-उर्दू अकादमी का गठन नहीं हुआ
-फखरूद्ीन अहमद कमेटी नहीं बनायी गयी
-शिया वक्फ बोर्ड का गठन नहीं हुआ
-सुन्नी वक्फ बोर्ड का गठन

ताजा शिकार स्वामी प्रसाद मौर्य

 लखनऊ: जब-तब सवालों के घेरे में रहने वाली नौकरशाही के कामकाज के तरीके के 'ताजा शिकारÓ नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य हुए हैं। इलाहाबाद प्रशासन ने उनकी सरकारी गाड़ी में पेट्रोल डलवाने से इंकार कर दिया।
लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने शिकायत दर्ज करायी। शासन ने जांच का आदेश दिया। प्रारम्भिक जांच में इलाहाबाद के तत्कालीन एडीएम प्रोटोकाल को लापरवाही का जिम्मेदार पाया गया है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य गत दिनों इलाहाबाद के दौरे पर थे। जहां उनकी सरकारी गाड़ी (नम्बर-यूपी 32 बीजी, 5818) में पेट्रोल खत्म हो गया। बताया गया कि मौर्य के निजी सचिव और सरकारी गाड़ी के चालक ने प्रशासन से पेट्रोल डलवाने का 'अनुरोधÓ किया। आरोप है कि इलाहाबाद प्रशासन ने गाड़ी में तेल डलवाने से इनकार कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं वहां के अधिकारियों पर चालक के साथ बदसलूकी की गई। इससे नाराज नेता प्रतिपक्ष ने अपनी जेब से सरकारी गाड़ी में तेल डलवाया और लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने प्रोटोकाल विभाग में शिकायत दर्ज करा दी।
नेता प्रतिपक्ष की गाड़ी को तेल नहीं दिये जाने की गंभीर शिकायत पर शासन ने आनन-फानन में जांच उच्चाधिकारियों को जांच के आदेश दिये। सूत्रों का कहना है कि बुधवार को कार्मिक विभाग में पहुंची शुरूआती जांच में रिपोर्ट में इलाहाबाद के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (प्रोटोकाल) को लापरवाही का जिम्मेदार ठहराया गया है। उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गयी।
नियम क्या है: विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की सरकारी गाडिय़ों में खर्च होने वाले डीजल पेट्रोल का भुगतान राज्य सरकार करती है। जिस जिले में गाडिय़ों को पेट्रोल, डीजल की जरूरत होगी, वहां प्रशासन को उसमें तेल डलवाना होता है। अगर ड्राइवर ने निजी धन से गाड़ी में तेल डलवा लिया तो नेता प्रतिपक्ष द्वारासत्यापित बिल का भुगतान भी सरकार करती है। 

फेसबुक पर प्रचार की तैयारी


समाजवादी पार्टी ने सोशल मीडिया के जरिए प्रचार की तैयारी पूरी कर ली है।  पार्टी फेसबुक पर प्रचार करने के लिए कई पेज बनाने की तैयारी है। सोशल मीडिया का सपोर्ट लेने में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है। हालांकि समाजवादी पार्टी का ऑफिशियल अकाउंट एफबी पर नहीं है।
सोशल मीडिया पर लोकल पार्टी की प्रेजेंस समाजवादी पार्टी के नेता लोग भी इस जगह एक्टिव है। केंद्र में रूल कर रही कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी भी सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। शहर अध्यक्ष शब्बीर अब्बास ने एफबी पर अपना अकाउंट बना रखा है। यहां कांग्रेस के बारे में काफी मटैरियल है। यहां काफी प्रचार किया जा रहा है। चुनाव में खड़े प्रत्याशी को सोशल मीडिया के सपोर्ट किया जा रहा है। आशू मलिक अपनी एक्टिविटीज को रेग्युलर फेसबुक पर अपडेट करते हैं। वह कहते हैं कि
 काफी पहले फेसबुक अकाउंट बना लिया था। अब मैं खुद लोकल लेवल पर फेसबुक पर एक्टिव नहीं दिखाई देती है।  लेकिन, अभी तक खेमा खुद को हाइटेक सिस्टम से थोड़ दूर ही रखे हुए है. पार्टी का मानना है कि उनकी पकड़ उस तबके के ऊपर है जिसके हाथ में स्मार्ट फोन की सुविधा बहुत ही कम है। व्हाट्सएप भी कर रहे यूज इन दिनों पॉलिटिकल पार्टीज के लीडर्स अपने कार्यकर्ताओं और लोगों से कनेक्ट रहने के लिए व्हाट्सएप का भी जमकर यूज कर रहे है। डिफरेंट एरियाज में प्रोग्राम की जानकारी भी व्हाट्स एप पर दी जा रही है।

चार ब्राह्मण मंत्रियों के पर कतरे


मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चार ब्राह्मण मंत्रियों के पर कतरे है। प्रदेश के मनोरंजन कर राज्यमंत्री पद से तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय की मंत्रिमंडल से छुट्टी करने के अलावा चुनाव से पहले कैबिनेट मंत्री बनाए गए मनोज पांडेय से कृषि जैसा अहम विभाग को लेकर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग थमा दिया गया है। इसी क्रम में ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को भी हलका किया गया है। त्रिपाठी के पास से व्यवसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग लेकर केवल होमगार्ड व प्रांतीय रक्षक दल विभाग तक समेट दिया गया। इतना ही नहीं विजय कुमार मिश्र राज्य मंत्री(स्वतंत्र प्रभार) का भी कद घटा। विजय के पास से अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग हटा उनको धर्मार्थ कार्य में लगा दिया गया।
 बलिया में सपा प्रत्याशी के चुनाव हारने की सजा देते हुए राम गोविंद चौधरी से बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग हटा दिया और नारद राय का खेल एवं युवा कल्याण विभाग बदल कर खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग दिया गया। फेरबदल की इस कड़ी में सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी को भी नुकसान हुआ। चौधरी से कारागार मंत्रालय ले कर राजनैतिक पेंशन जैसा महत्वहीन विभाग दे दिया गया है। जाट वोट न मिलना भी राजेंद्र चौधरी का कद कम होने की वजह माना जा रहा है परन्तु सूत्रों का कहना है कारागार विभाग में अधिक ध्यान न दे पाने के कारण भी उनका काम घटाया गया।
कैबिनेट मंत्री बलराम यादव से पंचायती राज विभाग लिए जाने के पीछे उनका लचर प्रदर्शन भी माना जा रहा है। भूख मुक्ति योजना के तहत गरीबों को कंबल व साड़ी बांटने की योजना पर अमल न हो पाने से सरकार की काफी किरकिरी हुई थीे। इतना ही नहीं निर्मल भारत अभियान में ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण कार्य सुस्त होने का खामियाजा भी बलराम को भुगतना पड़ा। माध्यमिक शिक्षा विभाग नवाब महमूद इकबाल से वापस लेना भी उनके समर्थकों को हजम नहीं हो पा रहा। माना जा रहा है कि आजम खां से पंगा लेना महमूद को भारी साबित हुआ। महमूद इकबाल से माध्यमिक शिक्षा विभाग लेकर उनके पडौसी महबूब अली को सौंपने से स्थानीय सियायत में उलटफेर होने के कयास लगाए जा रहे है।
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Friday 9 October 2015

-लोकायुक्त की जांच में हुआ खुलासा

-लोकायुक्त की जांच में हुआ खुलासा
-रजिस्ट्रेशन खत्म होने के बावजूद सौ करोड़ के ठेके का अनुबंध करने वाले पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों पर कसा शिकंजा
-लोकायुक्त संगठन जल्द ही जारी करेगा इंजीनियरों को भी नोटिस

जागरण ब्यूरो, लखनऊ : छात्र शक्ति इन्फ्राकांस्ट्रक्शन कम्पनी का रजिस्ट्रेशन खत्म होने के बाद बावजूद उसके साथ करोड़ों के ठेके का अनुबंध करने के आरोप में अब पीडब्ल्यूडी के आधा दर्जन इंजीनियरों भी फसंते नजर आ रहे हैं। इनके खिलाफ जल्दी ही लोकायुक्त संगठन से नोटिस जारी होगा। इस कम्पनी ने बसपा शासनकाल में सात अरब और  मौजूदा सरकार में अब तकरीबन चार अरब का ठेका हासिल कर चुकी है।
लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा की जांच में खुलासा हुआ है कि बसपा विधायक उमाशंकर ंिसह की साझेदारी में बनी छात्र शक्ति इन्फ्राकांस्ट्रक्शन कम्पनी का पंजीयन जुलाई 2012 में खत्म हो गया था, बावजूद इसके पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों ने इस कम्पनी के साथ ठेकों का अनुबंध जारी रखा है। अधिशासी अभियंता, अधीक्षण अभियंता और सहायक अभियंता स्तर के ऐसे अधिकारियों के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू हो गया है।
लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया है कि छात्र शक्ति का पंजीयन खत्म होने के बावजूद ठेके जारी किये जाने के साक्ष्य मिले हैं। ऐसे भी सभी इंजीनियरों से पूछताछ की जाएगी। लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने बताया कि कम्पनी के बारे में पड़ताल चल रही है। कानून में कोई विधायक ठेका हासिल कर सकता है या नहीं? उसकी कम्पनी ठेका हासिल कर सकती है या नहीं? इसके विधिक पहलुओं की पड़ताल चल रही है। इस कम्पनी का जिन बैंकों से खाता संचालित होता है, उसमें धन जमा होने और उसकी निकासी का ब्योरा भी बैंक अधिकारियों से मांगा गया है। उमाशंकर को पक्ष रखने के लिए 15 जनवरी तक समय दिया है। इसके बाद ही वह कोई फैसला लेंगे।

बिना रजिस्ट्रेश दिया कार्य
लोकायुक्त की जांच में सामने आए तथ्यों के मुताबिक छात्र शक्ति इंफ्राकांस्ट्रक्शन का पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) जुलाई 2012 में खत्म हो गया था। कम्पनी के निदेशकों में फेरबदल के बाद नया पंजीयन फरवरी 2013 में हुआ है, पंजीयन विहीन कम्पनी के साथ पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर करोड़ों के कार्यो का अनुबंध करते रहे।
बसपा सरकार में आवंटित कार्यो का ब्योरा
-वर्ष 2009 से मार्च 2012 तक छात्र शक्ति इन्फ्राकांस्ट्रक्शन कम्पनी को पीडब्ल्यूडी महकमे ने  6 अरब 7 करोड़ 51 लाख से अघिक के कार्य आवंटित किये।
-सिर्फ सोनभद्र में 145 करोड़ रुपए के कार्य आवंटित हुए
मौजूदा समाजवादी सरकार के कार्य
इस कम्पनी को मौजूदा समाजवादी पार्टी की सरकार में पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर इस कम्पनी को तीन अरब 7 करोड़ 22  लाख से अधिक के कार्यो का अनुबंध कर चुके हैं।

सोशल मीडिया के जरिए प्रचार की तैयारी



समाजवादी पार्टी ने सोशल मीडिया के जरिए प्रचार की तैयारी पूरी कर ली है।  पार्टी फेसबुक पर प्रचार करने के लिए कई पेज बनाने की तैयारी है। सोशल मीडिया का सपोर्ट लेने में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है। हालांकि समाजवादी पार्टी का ऑफिशियल अकाउंट एफबी पर नहीं है।
सोशल मीडिया पर लोकल पार्टी की प्रेजेंस समाजवादी पार्टी के नेता लोग भी इस जगह एक्टिव है। केंद्र में रूल कर रही कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी भी सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। शहर अध्यक्ष शब्बीर अब्बास ने एफबी पर अपना अकाउंट बना रखा है। यहां कांग्रेस के बारे में काफी मटैरियल है। यहां काफी प्रचार किया जा रहा है। चुनाव में खड़े प्रत्याशी को सोशल मीडिया के सपोर्ट किया जा रहा है। आशू मलिक अपनी एक्टिविटीज को रेग्युलर फेसबुक पर अपडेट करते हैं। वह कहते हैं कि
 काफी पहले फेसबुक अकाउंट बना लिया था। अब मैं खुद लोकल लेवल पर फेसबुक पर एक्टिव नहीं दिखाई देती है।  लेकिन, अभी तक खेमा खुद को हाइटेक सिस्टम से थोड़ दूर ही रखे हुए है. पार्टी का मानना है कि उनकी पकड़ उस तबके के ऊपर है जिसके हाथ में स्मार्ट फोन की सुविधा बहुत ही कम है। व्हाट्सएप भी कर रहे यूज इन दिनों पॉलिटिकल पार्टीज के लीडर्स अपने कार्यकर्ताओं और लोगों से कनेक्ट रहने के लिए व्हाट्सएप का भी जमकर यूज कर रहे है। डिफरेंट एरियाज में प्रोग्राम की जानकारी भी व्हाट्स एप पर दी जा रही है।