Wednesday 11 January 2023

कुलपति, कुलपति फिर कुलपति मशीन बने प्रो.विनय पाठक –420 !

 हां या ना, प्रो.विनय पाठक प्रकरण में ढूंढे जा रहे इस सवाल की सीबीआई पर का जवाब-हां

एसटीएफ की जांच, फैक्ट फाइंडिंग पर अब सीबीआई को खड़ी करनी होगी सत्य की इमारत

 

परवेज अहमद

लखनऊ । उत्तर प्रदेश की उच्च, तकनीकी शिक्षा के बाजीगर और छत्रपति शाहू जी महाराज (सीएसजेएमयू) कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ जांच की संस्तुति स्वीकारने के बाद सीबीआई की दिल्ली स्थित एसी-सेकेन्ड ब्रांच ने पुर्नएफआईआर दर्ज कर ली, जिसमें आईपीसी की वे धाराएं भी शामिल की गयी, जिनका अपराध यूपीएसटीएफ की विवेचना में सामने आया। विवेचना के तथ्य कहते हैं कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक ने खूब चार सौ बीसी ( बोलचाल की भाषा, अधिकारिक धोखाधड़ी) की। सीबीआई की एफआईआर में जांच क्षेत्र लखनऊ, कानपुर, आगरा व अन्य स्थान दर्ज है। यानी उन विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार की भी जांच होगी, जहां प्रो.विनय पाठक कुलपति या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में रहे। साफ है कि एसटीएफ ने जो नींव और बाउंड्री निर्धारित की है, सीबीआई को उस पर जांच परिणाम की बुलंद इमारत खड़ी करने की चुनौती का सामना करना होगा क्योंकि पहली बार सीबीआई जांच से पहले जनता सोशल प्लेटफार्म पर परिमाण पर कयास लगा रही है।

देश की सबसे प्रतिष्ठित और प्रशिक्षित अधिकारियों से लैस जांच सीबीआई यूपी में 50 से अधिक प्रकरणों की जांच कर रही है। अब उच्च शिक्षा में घूसखोरी की नई जांच उसकी फेहरिश्त में हैं। 29 अक्टूबर को लखनऊ के इंदिरानगर कोतवाली में सीएसजेएमयू के कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ आगरा विवि के कुलपति रहने के दौरान के परीक्षा कार्यो के बदले डेढ़ करोड़ की घूस लेने की एफआईआर हुई थी। दो माह की लंबी जांच में तीन लोगों की गिरफ्तारी, चार लोगों के कलमबंद बयान और दो सौ से अधिक लोगों से हुई पूछताछ हुई। बड़ी गिरफ्तारियों की क्रम शुरू होता इससे पहले ही 29 दिसंबर यानी दो माह बाद राज्य सरकार ने इस पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति कर दी। 9 दिनों तक सीबीआई की जांच को लेकर असमंजस रहा आखिर 7 जनवरी को सीबीआई ने रि-एफआईआर दर्ज करने के साथ विवेचना अपने हाथ में ले ली। सीबीआई अधिकारियों ने एसटीएफ से संपर्क कर विवेचना की पत्रावलियां और संबंधित दस्तावेज हस्तानांतरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इस बीच सीबीआई जांच रोकने के लिए दाखिल की गयी याचिका को हाईकोर्ट खारिज कर दिया।

सीबीआई जांच शुरू होते ही सबसे ज्यादा खलबली अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि (एकेटीयू) में मची है क्योंकि यहां के प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे 60 फीसदी से अधिक लोगों की नियुक्तियां नियमों को शिथिल करके की गयी हैं। कई ऐसे लोगों की नियुक्तियां हुई हैं, जिनके पद ही रिक्त नहीं थे। ढेरों लोगों के चरित्र व डिग्री का सत्यापन नहीं कराया गया। इस विश्वविद्यालय के इंजीनियर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। कई सौ करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी की गयी है। कालेजों की संबद्धता में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है और ये सिलसिला अभी जारी भी है। इसी तरह ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विवि, छत्रपति शाहू जी महाराज विवि कानपुर, एबीटीयू और अन्य विवि शामिल हैं। भ्रष्टाचार का दायरा व्यापक है और एक करोड़ से अधिक लोग सीधे इससे प्रभावित हैं। फीस, परीक्षा, परीक्षा में शुचिता, नाकाबिल शिक्षकों की नियुक्तियों के चलते पीढ़ियों की जीवन दांव पर लगने की चलते राज्य की बहुसंख्यक जनता की नजर सीबीआई की जांच पर है। दरअसल, कुछ सालों में सीबीआई जांच को लेकर जन मानस में ढेरों सवाल हैं, इसलिए भी इस मामले में सीबीआई की जांच उनकी साख को बनाये और बिगाड़ेगी। क्योंकि ये मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी पकड़ रहा है, समाजवादी पार्टी खुलकर धरना-प्रदर्शन करने लगी हैं।

 

राजभवन भी आयेगा जांच की जद में

सीबीआई ने अगर सिर्फ डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के भ्रष्टाचार की जांच को आगे बढ़ाया तो सबसे पहली पूछताछ कुलाधिपति कार्यालय से ही शुरू होगी। आखिर किन परिस्थितियों में बार-बार प्रो.विनय पाठक को कुलपति का चार्ज दिया गया। क्योंकि इनके अलावा दूसरे कुलपति प्रो.आलोक राय हैं, जिन्हें बार-बार अन्य विश्वविद्लयों का चार्ज दिया गया है। इत्तिफाक है और जो तथ्य सामने आये हैं, उससे ये संकेत तो हैं कि दोनों ही प्रोफेसर जब  कुलपति नियुकित हुये तो ये पद ही अर्हता ही नहीं रखते थे। दोनों के पास दस साल के प्रोफेसर होने का अनुभव नहीं था। तब इन दोनों को ही बार-बार चार्ज क्यों दिया गया।

 

 

 

आईपीसी की इन धाराओं में नामजद विनय-अजय

120 बी- गैरकानूनी कार्य की साजिश करना

471- दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को कपटपूर्वक या बेईमानी से कूटरचित करना

386- किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर आघात के भय में डालकर ज़बरदस्ती वसूली

342- कोई किसी व्यक्ति को ग़लत तरीके से प्रतिबंधित करना

504- गाली-गलौज

506- जान से मारने की धमकी

409-लोक सेवक के नाते जिस संपत्ति पर प्रभुत्व हो उसके विषय में विश्वास का आपराधिक हनन

420- धोखाधड़ी, किसी व्यक्ति को बेईमानी से प्रेरित करना

467-मूल्यवान प्रतिभूति वसीयत या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को बनाने या हस्तांतरण करने का प्राधिकार, धन प्राप्त करने आदि के लिए कूटरचना।

468- इस आशय से कूटरचना करना ताकि दस्तावेज़ों को छल के लिए इस्तेमाल कर सके

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 : लोक सेवक द्वारा पदीय कार्य के संबंध में  परितोषण, घूस लेना

प्रो.अनुराग त्रिपाठी को नियम विरुद्ध प्रमोशन दिया फिर परीक्षा नियंत्रक बना दिया

 

 

परवेज अहमद

लखनऊ। घूसखोरी में नामजदगी के बाद छत्रपति शाहू जी महाराज (सीएसजेएमयू ) कानपुर विवि से भूमिगत प्रो.विनय पाठक ने एकेटीयू के कुलपति के रूप में परीक्षा नियंत्रक के चयन में कानून हवा में उड़ा दिया था। उन्होंने प्रो.अनुराग त्रिपाठी को नियम विरुद्ध प्रमोशन दिया फिर परीक्षा नियंत्रक बना दिया। जिन्होने परीक्षा संचालक फर्म से इंजीनियरिंग छात्रों के नम्बरों में बदलाव कराया। परीक्षा की शुचिता बाधित की। कापियों के मूल्यांकन में रुकावट डाली। डिग्री वितरण और 28 हजार छात्रों के कैरीओवर परीक्षा परिणाम रोका। यह बातें एकेटीयू के प्रतिकुलपति के नेतृत्व वाली पांच प्रोफेसरों की जांच रिपोर्ट में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि परीक्षा नियंत्रक ने मौजूदा कुलपति पर अनावश्यक दबाव डाला। छात्रों में असंतोष फैलाने का प्रयास किया।

अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) में कई सालों से फैली भ्रष्टाचार बेल की ये  कड़ी कुलाधिपति की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी की एक नोटिस से सामने आयी। 29 दिसम्बर को पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो.अनुराग त्रिपाठी के शिकायती पत्र पर प्रमुख सचिव ने कुलपति प्रो.पदीप मिश्र को कारण बताओ नोटिस भेजा। जिसमें मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को परीक्षा कार्यो से हटाने, भुगतान रोकने का कारण पूछा गया, इस कंपनी को परीक्षा संबंधी कार्य तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक ने आवंटित किया था।  सूत्रों का कहना है कि कुलपति प्रो.प्रदीप मिश्र ने सवालों के जवाब में 40 पेज का उत्तर भेजा है। जिसमें प्रति कुलपति प्रो.मनीष गौड अध्यक्षता में गठित प्रो.एचके पालीवाल, प्रो. राजीव कुमार, प्रो.वाईएन सिंह और प्रो.गिरीश चन्द्र की छह पेज की जांच रिपोर्ट संलग्न की गयी है।  रिपोर्ट में परीक्षा नियंत्रक रहे प्रो.अनुराग त्रिपाठी को छात्रों के अंकों में फेरबदल करने का दोषी माना गया है। जिनके नम्बर बदले गये उनके नाम, रोलनम्बर का जिक्र भी है। एक विषय में फेल 28 हजार छात्रों के परीक्षा परिणाम रोकने का विस्तार से उल्लेख है। यह भी कहा गया है कि इसके पीछे छात्रों में आक्रोश पैदा करना, सत्र को विलंबित करने की मंशा थी। सीधे नहीं पर, इशारों में यह जरूर कहने का प्रयास किया गया है कि घूसखोरी में नामजद प्रो.विनय पाठक के इशारे पर उनसे उपकृत लोग विवि में अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। जांच कमेटी ने नौ बिन्दुओं की संस्तुतियां भी दी हैं, जिसमें परीक्षा कार्य विश्वविद्यालय के अपने कर्मचारियो से कराये जाने की बात है। निजी संस्था परीक्षा कार्य कराने से शुचिता बाधित होने का जिक्र है।

सूत्रों का कहना है कि कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल को भेजे गये जवाब में स्पष्ट कहा गया है कि परीक्षा से हटायी गई कंपनी मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन के विरुद्ध उत्तराखंड में परीक्षा प्रश्न पत्र लीक करने का मुकदमा दर्ज है।  संचालक, कर्मचारी जेल में हैं। जांच चल रही है। जवाब में ये भी कहा गया है कि ये तथ्य सामने आने पर कंपनी को नोटिस जारी किया गया तो वह हजारों छात्रों का डेटा लेकर भाग गयी। इसमें तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक अनुराग त्रिपाठी की भूमिका संदिग्ध है क्योंकि उन्हें इस बिन्दु पर अलर्ट रहने के लिये कहा गया था। सूत्रों का कहना है कि जवाब में प्रो.अनुराग त्रिपाठी की प्रोन्नति की एसटीएफ द्वारा जांच किये जाने का उल्लेख करते हुये ढेरों दस्तावेज लगाये गये हैं।

प्रमुख सचिव कुलाधिपति कल्पना अवस्थी के सवालों का बिन्दुवार विधिक जवाब दिया गया है। निर्णयों का कारण नियमों के साथ बताया गया है। सूत्रों का कहना है कि प्रमुख सचिव की एक कारण बताओ नोटिस से एकेटीयू के भ्रष्टाचार की सिर्फ एक बेल सामने आयी है। अभी नियुक्तियों, निर्माण कार्य और इंजीनियरिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के बट वृक्ष सामने आने बाकी हैं।

 

 

शिकायत पर कुलाधिपति की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी का सवाल

- परीक्षा के डिजिटल मूल्यांकन एवं रिजल्ट प्रासेसिंग करने वाली एजेंसी का एक साल से भुगतान क्यों नहीं किया गया ?

-भुगतान न होने से रिजल्ट अपडेशन, मार्कशीट प्रिंटिंग का कार्य 35 दिनों से बंद है, जिससे आगामी परीक्षा के फार्म भरे जाने में छात्रों को असुविधा हो रही है ?

-परीक्षा ठीक से कराने का उत्तरदाय़ित्व कुलपति का है। तीन माह के लिए एजेंसी कुलपति नियुक्त कर सकता है, परन्तु बिना टेंडर नई कंपनी को कार्य क्यों दिया गया, कारण स्पष्ट करें ?

-ऩई फर्म को कितनी दर पर कार्य दिया गया, नई फर्म बचे हुए 24 दिन में कार्य पूरा नहीं , जिससे छात्रों में असंतोष है ?

-डिजिटल मूल्यांकन एजेंसी का टेंडर 27 दिसम्बर को पूरा हो गया लेकिन कुलसचिव ने नए टेंडर की कार्रवाई नहीं की-ये सूचना कुलपति को दी फिर क्यो ऐसा हुआ ?

 

कुलपति की ओर से भेजा गया जवाब

- मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ उत्तराखंड में परीक्षा की शुचिता भंग करने समेत पेपर लीक करने की एफआईआर दर्ज है, मालिक, कर्मचारी जेल में हैं।

-एफआईआर और परीक्षा की शुचिता भंग करने से संबंधित प्रकरण पर नोटिस भेजे जाने के बाद कंपनी छात्रों का डेटा और अपना सिस्टम लेकर गायब हो गयी है। मूल डेटा उपलब्ध कराने पर ही भुगतान किया जाएगा

-परीक्षा कार्यों की शुचिता के लिये नियमों के मुताबिक डिप्टी रजिस्ट्रार आरके सिंह ने पांच सरकारी कंपनियों से कार्यदायी संस्था के लिये पत्राचार किया। यूपी इलेक्ट्रानिक्स ने ऑफर स्वीकारा। जिनके थ्रू आईआईएस को 89 दिनों का कार्य दिया गया।

-कंपनी को सात रुपये 12 पैसे प्रति कापी की दर से काम दिया गया जो पिछली दर से कम है।

-माइंडल़ॉजिक्स इंफ्राटेक लिमिटेड का अनुबंध 27 को खत्म हो गया। टेंडर प्रक्रिया से पहले ही परीक्षा नियंत्रक अनुराग त्रिपाठी ने खुद पत्र लिखकर इस कंपनी का कार्य संतोषजनक बताया। एक साल का अनुबंध बढ़ाने का अनुरोध किया, जिसे स्वीकारा नहीं गया है।

 

एकेटीयू में किसको क्या काम

1-मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड ( निदेशक मंडलः संजीव कुमार, सोनिका सिंह, डेविड मारियो डेनिस, ललित चौहान) :

एकेटीयू के कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक ने इस कंपनी को परीक्षा कार्यो का ठेका सौंपा। करोड़ों रुपये का भुगतान किया।

2-माइंडल़ॉजिक्स इंफ्राटेक लिमिटेड बंगलुरूः ( निदेशक मंडल: श्रीजीत सिद्धार्थ पल्लीवाल, सुरेश एलंगोवन, सोमनाथ राव कोनाजे , इसी कंपनी में यूपी एक आईएएस की पत्नी साइलेंट पार्टनर बतायी जा रही हैं)

प्रो.विनय पाठक ने कुलपति के रूप में इस कंपनी को उत्तर पुस्तिकाओं का स्कैनिंग और आन लाइन अपलोडिंग का करोड़ों का ठेका दिया।

3-इंटीग्रेटेड सॉफ्टवेयर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड ( निदेशकः हर्षनारायण, उदयनारायण और दीपनारायण, इस कंपनी में भी एक प्रभावशाली व्यक्ति की साइलेंट हिस्सेदारी)

एकेटीयू के मौजूदा कुलपति प्रो. प्रदीप मिश्र ने यूपी इलेक्ट्रानिक्स के जरिये इस कंपनी को 89 दिन का ठेका दिया। प्रति कापी 7 रुपया 12 पैसे की दर से।)

 

                           

Tuesday 3 January 2023

जांच की चुनौती स्वीकारी तो क्या कुलाधिपतियों से पूछताछ कर सकेगी सीबीआई

 -यूपी सरकार के गृह विभाग के प्रोफार्मा पर निर्भर, सीबीआई जांच करेगी या नहीं

--पांच दिन में स्पष्ट होगा कि सीबीआई प्रो. विनय पाठक की जांच करेगी या नहीं

 

परवेज अहमद

लखनऊ। उच्च, तकनीकी शिक्षा की नीतियां निर्धारक बन गये छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक की किन बिन्दुओं पर जांच की संस्तुति राज्य सरकार  ने की है ? इस सवाल का उत्तर अभी रहस्यमय है। अगर सिर्फ 29 अक्टूबर को इंदिरानगर में दर्ज घूसखोरी की जांच सीबीआई से कराने का केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय से अनुरोध किया गया है। तब केस खुला होने का तर्क देकर जांच से सीबीआई इंकार कर सकती है। यदि, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और यूपी के दो तकनीकी, तीन सामान्य विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार की जांच संस्तुति है तो विवेचना अस्वीकार करना सीबीआई के लिये कठिन होगा। क्योंकि दस्तावेज कहते हैं प्रो.विनय पाठक कुलपति बनने की अर्हता नहीं रखते थे। उनके शोध पत्र चोरी के हैं। लिहाजा कुलपति सर्च कमेटियों के सदस्य और तीन राज्यों के कुलाधिपति पूछताछ के दायरे में होंगे। अहम बात ये है कि सीबीआई अग जांच का अनुरोध स्वीकारती है तो क्या कुलाधिपतियों से पूछताछ कर सकेगी ? अगर पांच दिन में तस्वीर साफ होगी।

सूत्रों का कहना है कि विवेचना हाथ में लेने के बाद अगर सीबीआई ने साहस जुटाया तो 2015 से अब तक उत्तर प्रदेश के प्राविधिक शिक्षा, उच्च शिक्षा और राजभवन में तैनात रहे आधा दर्जन अधिकारियों से न सिर्फ पूछताछ होगी बल्कि कई अधिकारी यूपी के खनन, एनएचएम घोटाले की तरह सरकारी गवाह बन जाएंगे या अभियुक्त। उत्तराखंड, राजस्थान के पूर्व कुलाधिपति और कई आईएएस अधिकारी भी जांच के घेरे में आयेंगे। य़ोगी आदित्यनाथ सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट कल्याण सिंह कैंसर इंस्टीट्यूट की नियुक्तियां भी जांच की जद में आयेगी। कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रो.विनय पाठक के साथ राजस्थान की ओपन यूनिवसिर्टी में आरोपी रहे लोगों को नियमों के विपरीत नियुक्त किया गया है।

एकेटीयू के इंजीनियर आशीष मिश्र, सहायक कुलसचिव आरके सिंह समेत दो दर्जन लोग सीधे जांच के घेरे में होंगे। एकेटीयू को मौजूदा निजाम भी संबद्धता देने, वित्तीय अनियमितता करने की जांच से घिरेगा। डॉ.भीमराम आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में तो निर्माण कार्यों से लेकर चिकित्सा विज्ञान यानी मेडिकल छात्रों के दस्तावेजों में हेरफेर, मान्यता, स्क्रूटनी, निर्माण कार्य और नियुक्तियों, दागी संस्था से परीक्षा कार्य कराने का संजाल खुल जाएगा। लखनऊ के ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में नियुक्तियों, कुलपति आवास, गेस्ट हाउस और 11 करोड़ की वित्तीय स्वीकृतियों का मामला भी खुलेगा।

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में प्रतिकुलपति की नियुक्ति, कर्मचारियों की नियुक्ति, संबद्धता का मामला भी सामने आयेगा। एचबीटीयू का कच्चा-चिट्ठा भी खुलेगा। यही नहीं, इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार होने की रिपोर्ट लिखने वाले 41 सांसदों की रिपोर्ट भी खुलेगी। उत्तराखंड की तत्कालीन कुलाधिपति माग्रेट अल्वा, यूपी के तत्कालीन कुलाधिपति राम नाईक भी जांच के घेरे में होंगे। पर, अहम सवाल ये ही है कि उत्तर प्रदेश के गृह विभाग ने सीबीआई जांच के लिए केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेजे प्रोफार्मा में किन बिन्दुओं का उल्लेख किया है। नियमों के मुताबिक सीबीआई सिर्फ उतने बिन्दुओं की ही जांच करती है जितने की अपेक्षा की जाती है। उससे इतर वह विशेष परिस्थितियों में ही जाती है।

 

इंसेट-एक

सीबीआई की एफआईआर बतायेगी किसकी-किसकी जांच

सीबीआई जब तक जांच अपने हाथ में नहीं लेती है, तब तक सिर्फ कयास है लेकिन सीबीआई ने जांच हाथ में ली तो सबसे पहले नई एफआईआर दर्ज करेगी, जिससे साफ होगा कि उसकी जांच का दायरा क्या है ? अगर उसने जांच में प्रो.विनय पाठक जहां भी कुलपति, निदेशक, कार्य परिषद, बोर्ड आफ मैनेजमेन्ट के सदस्य रहे, उन सबकी जांच करने की एफआईआर लिखी तो उसके सामने पहला सवाल ही ये होगा कि 29 अक्टूबर 2022 को एफआईआर दर्ज होने के बाद कुलाधिपति कार्यालय ने उनसे क्या-क्या जवाब तलब किया। नियमों के विपरीत जाकर इतना लंबा अवकाश कैसे स्वीकृत हुआ और अगर प्रो.विनय पाठक गंभीर बीमार हैं तो किस डॉक्टर ने उन्हें गंभीर होने का प्रमाण पत्र दिया।

 

इंसेट-दो

एनएचएम घोटाले का जिन्न भी बाहर निकलेगा

प्रो.विनय पाठक के भ्रष्टाचार की सीबीआई ने जांच शुरू की तो एक बार फिर मायावती सरकार के बहुचर्चित एनएचएम घोटाले की पत्रावलियां खुलेंगी। क्योंकि प्रो.विनय पाठक  ने कुलपति के रूप में जिन चार कंपनियों को परीक्षा, सुरक्षा और ठेके-पट्टे का काम दिया, उनमें से दो एनएचएम घोटाले फंसी थी, दो के खिलाफ दो चार्जशीट भी दाखिल है। एक सरकारी संस्था भी जांच के दायरे में आयेगी।

 

इंसेट-3

लविवि की बीएड परीक्षा जांच घेरे में होगी

सीबीआई ने सिर्फ इंदिरानगर में दर्ज घूसखोरी की एफआईआर ही जांच की तो लखनऊ विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा कराई गई बीएड प्रवेश परीक्षा स्वतः जांच के घेरे में आ जाएगी। इस परीक्षा से जुड़े करोड़ों रुपये के ठेके उन्ही अजय मिश्र की कंपनी को दिये गये, जो एनएचएम घोटाले में चार्जशीटेड है और विनय पाठक के लिए घूसखोरी की रकम ठिकाने लगाने के आरोप में जेल में हैं। सूत्रों का कहना है कि इस परीक्षा की लागत गुजरे एक साल की लागत से 20 गुना ज्यादा बढ़ गयी थी। दूसरी बार लविवि कुलपति नियुक्त प्रो.आलोक राय भी जांच की आंच में तपेंगे।

 

 

क्या ठंडा कर दी गयी प्रो.विनय पाठक के खिलाफ जांच

 परवेज़ अहमद

लखनऊ । यूपी विश्वविदयालयों में भ्रष्टाचार की परत दर परत खुलने और उसके केन्द्र बिन्दु छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक भूमिका की पड़ताल सीबीआई से कराने की संस्तुति से कई सवाल उठ गये हैं। भ्रष्टाचार का दायरा  क्या इतना विस्तृत है कि यूपी एसटीएफ पड़ताल करने में सक्षम नहीं है या जांच के घेरे में ऐसी संस्थाएं हैं, जिन पर हाथ डालना इस एजेंसी के लिए संभव नहीं है ? या केन्द्रीय एजेंसी से जांच कराने की पीछे राजनीतिक कारण भी हैं। वैसे, अभी सीबीआई ने जांच अपने हाथ में नहीं ली है, परन्तु अगर उसने खुले हाथ से जांच की तो सांविधानिक पदों पर आसीन या इस पद पर रह चुकी हस्तियों का घिरना तय हैं। आधा दर्जन से अधिक आईएएस भी इसकी लपेट में आयेंगे।

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुये वर्ष 2015 में प्रो.विनय पाठक को अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) का कुलपति नियुक्त किया गया था। तत्कालीन प्राविधिक शिक्षा मंत्री ने प्रो.विनय पाठक को कुलपति बनाने की पत्रावली तैयार कराई। उस समय प्राविधिक शिक्षा की प्रमुख सचिव मोनिका.एस.गर्ग ने ऐतराज हाजिर किया। आपत्ति को नजर अंदाज कर तत्कालीन कुलाधिपति रामनाईक ने प्रो.विनय पाठक के शोध गाइड व कानपुर आईईटी के पूर्व निदेशक प्रो.संजय मोहन धांडे को कुलपति सर्च कमेटी का चेयरमैन बनाया। जिन्होंने पाठक को कुलपति बनाने की संस्तुति की। 2015 में प्रो.विनय पाठक ने कुलपति के रूप में जब नियम विरुद्ध निर्णय शुरू किये तो शिकायतों का क्रम चल पड़ा। कुलाधिपति कार्यालय और प्रदेश सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। हाईकोर्ट में तीन जनहित याचिका दाखिल हुई। पर उन्हें कुलपति का अतिरिक्त चार्ज मिलता रहा। आनंदीबेन पटेल के कुलाधिपति का कार्य संभालने के बाद प्रो.विनय पाठक की शक्ति में और इजाफा हो गया। उन्हें ख्वाजा मोईऩउद्दीन विवि, छत्रपति शाहू जी महाराज विवि और भीमराम आंबेडकर विवि का कुलपति बनाया गया।

29 अक्टूबर को लखनऊ के इंदिरानगर थाने में विश्वविद्यालयों में परीक्षा का कार्य करने वाली संस्था के निदेशक डेनिस मारियो ने प्रो.विनय पाठक पर डेढ़ करोड़ घूस मांगने और  राशि मुखौटा कंपनी के संचालक अजय मिश्र के जरिये राजस्थान की एक कंपनी को भेजने की एफआईआर हुई। एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश ने डिप्टी एसपी अवनीश्वर श्रीवास्तव व दीपक सिंह की दो टीमें बनाईं। जिसकी प्रारम्भिक जांच में नियुक्तियों, ठेके, सुरक्षा, कैन्टीन, परीक्षा, प्रोन्नतियों से लेकर शैक्षिक, गैरशैक्षिक कार्यों में भ्रष्टाचार साक्ष्य उपलब्ध होना शुरू हो गये। भ्रष्टाचार का दायरा भीम राव आंबेडकर विवि से निकलकर एचबीटीयू, ख्वाजा मोईनउद्दीन भाषा विवि, छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि, एकेटीयू तक फैला दिखा। एसटीएफ ने इन विश्वविद्यालयों से ढेरों दस्तावेज कब्जे में लिये। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भ्रष्टाचार से जुड़े तथ्यों की जानकारी दी गयी। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने जीरो टालरेंस के तहत भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आदेश दिया। जांच आगे बढ़ी तो राजभवन व वहां तैनात रहे अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गयी। दो माह की लंबी जांच में ये भी खुलासा हुआ कि प्रो.विनय पाठक कुलपतियों की नियुक्ति कराते थे। आधा दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का अतीत सवालों के घेरे में है। वे शैक्षिक योग्यता के मानक पूरे नहीं करते। फिर भी उन्हें कुलपति बनाया गया। इन विश्वविद्यालयों में अजय मिश्र और उनकी सहयोगी कंपनी सैकड़ों करोड़ का ठेका लिये है। इस बीच एसटीएफ ने अजय जैन, संजय सिंह को गिरफ्तार किया। प्रो.विनय पाठक को नोटिस भेजे गये लेकिन वह नहीं गए। एफआईआर की धारा में इजाफा किया गया। यूपी एसटीएफ ढेरों लोगों की गिरफ्तारी की तैयारी कर रही थी। कई कुलपति, कुलसचिव, सहायक और उपकुलसचिव, इंजीनियर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मिले।

शुक्रवार को अचानक राज्य सरकार ने प्रो.विनय पाठक प्रकरण की सीबीआई जांच की संस्तुति कर दी। सवाल ये है कि आखिर  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीबीआई जांच कराने का निर्णय क्यों लिया  ? क्या भ्रष्टाचार का दायरा कई राज्यों में है इसलिए सीबीआई जांच की संस्तुति हुई ? या फिर शुरूआती जांच में ही मौजूदा कुलाधिपति और एक पूर्व कुलाधिपति की भूमिका सवालों के घेरे में आने पर ये जांच सीबीआई को  सौंपी गयी। सूत्रों का कहना है कि जिस अवधि में प्रो.विनय पाठक ने भ्रष्टाचार का संजाल फैलाया, उस अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश के दोनों कुलाधिपति राजनीतिक रूप से बहुत शक्तिशाली हैं। सत्ता प्रतिष्ठान के बीच ठकराहट रोकने के लिए प्रो.विनय पाठक प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंपी गयी। आने वाले दिनों में इस जांच के फैसले और सीबीआई की एफआईआर से ये साफ होगा कि जांच केनद्रीय एजेंसी को सौंपने के पीछे सरकार की मंशा क्या थी ? 

 

यूपी में प्रमुख सीबीआई जांच

-पालना घोटाला :

-शत्रु संपत्ति कब्जा :

-पीसीएस भर्ती घोटाला :

-अपर निजी सचिव भर्ती घोटाला :

-जवाहर बाग अपर पुलिस अधीक्षक हत्याकांड :

-खाद्यान्न घोटाला :

-ऊर्जा विभाग का पीएफ घोटाला-2018 : 

- लखनऊ का रिवर फ्रन्ट घोटाला :

-यूपी का खनन घोटाला :

- प्रयागराज के 51 मामलों की सीबीआई :

- चीनी मिल बिक्री घोटाला :

-जल निगम भर्ती घोटालाः

-यमुना एक्सप्रेसवे घोटाला :

-उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े मनरेगा घोटाला:

-एनएचएम घोटाले की जांच :