Saturday 12 December 2015

वे गली-गली धूल फांकते हैं, ताने-तिशने सुनते

२०.१२.२०१३
परवेज अहमद लखनऊ:...वे गली-गली धूल फांकते हैं, ताने-तिशने सुनते हैं। जोड़-तोड़ से जनसेवा तक में कसर नहीं छोड़ते, तब कहीं जाकर जनप्रतिनिधि (विधायक) का खिताब पाते हैं, फिर भी 'सरकार प्रतिनिधियोंÓ के जलवे-जलाल के आगे वह बिलकुल फीके रहते हैं।
प्रदेश की समाजवादी सरकार अब तक 84 लोगों को निगमों का चेयरमैन, सलाहकार और अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट, राज्य और उपमंत्री का दर्जा दे चुकी है। जिनमें से कई दर्जाधारी दफ्तर और अधिकार पाने के लिए विभागीय मंत्री के साथ 'संघर्षÓ कर रहे हैं, मगर  लालबत्ती वाली कार, पिस्तौलधारी शैडो, कार्बाइनधारी गनर और आठ-आठ घण्टे की ड्यूटी में रायफल धारी सिपाही जरूर मुस्तैद हैं, ये जवान दर्जाधारी के मूल जिले की नागरिक पुलिस से लेकर दिये गये हैं।
सूत्रों का कहना है कि सूबे के प्रत्येक जिले में एक और कई जिलों में दो से तीन तक दर्जाधारी राज्यमंत्री हैं। एक विधायक का कहना है कि दर्जा प्राप्त लोगों की जनता के बीच कोई जवाबदेही होती नहीं है। अधिकारी भी उन्हें सत्ताशीर्ष का करीबी मानते हैं, लिहाजा वह उन्हें विधायकों से ऊपर का मानते हैं। ऐसे में हर समय जनता के बीच रहने वाले विधायकों को कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अधिकारी भी विधायकों के कार्य के स्थान पर दर्जाधारी की सिफारिश को ज्यादा तवज्जो देते हैं।
सत्तारूढ़ दल के ही एक दूसरे विधायक का कहना है कि हाइकोर्ट ने लालबत्ती हटाने का आदेश देकर अच्छा कार्य किया है, इससे क्षेत्र में कम से कम विधायक की गरिमा तो बनी ही रहेंगी।
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विधायकों को सुविधा
-महंगाई और अन्य भत्तों को मिलाकर तकरबीन 65 हजार रुपए मासिक वेतन
-डेढ़ लाख रुपए के ट्रेन और वायुयान कूपन, इस धनराशि में क्षेत्रीय भत्ता भी शामिल है।
-आवास और मुफ्त बिजली की सुविधा
-टेलीफोन, मोबाइल खर्च के लिए छह हजार रुपए मासिक अधिकतम
-एक गनर की सुविधा, दूसरे गनर के लिए जवान के वेतन की 10 फीसद धनराशि जमा करनी होती है। (हालांकि सरकार ज्यादातर विधायकों को दूसरा गनर भी सरकारी खर्च पर भी उपलब्ध करा देती है)
-सचिवालय अथवा किसी भी सरकार भवन में कार्यालय की सुविधा नहीं
-कोई पीए, पीएस की सुविधा नहीं
-गाड़ी की भी सुविधा नहीं
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दर्जा प्राप्त को सुविधा
- राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त व्यक्ति को 40,000 उपमंत्री का दर्जा प्राप्त व्यक्ति को 35 हजार रुपए मासिक वेतन।
-दर्जा प्राप्त को लालबत्ती लगी सरकारी कार, ड्राइवर और उसमें खर्च होने वाला पेट्रोल राज्य सम्पत्ति विभाग की ओर से उपलब्ध कराया जाता है।
-दर्जा प्राप्त को सचिवालय के भवनों में से किसी एक में कार्यालय, निजी सचिव, वैयक्तिक सहायक और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उपलब्ध होते हैं।
-राज्य सम्पत्ति की ओर से सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाएगा, अगर राज्यमंत्री स्तर का व्यक्ति सरकारी आवास नहीं लेता है, उसे हर माह 10 हजार रुपए और उपमंत्री स्तर के व्यक्ति को आठ हजार मासिक आवास भत्ता।
-पदीय कर्तव्य के लिए यात्रा करने पर रेल गाड़ी के उच्चतम श्रेणी के कूपे अथवा वायुयान में एक सीट अनुमन्य है। जिसका भुगतान सरकारी कोष से होता है।
- यात्रा भत्ता, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, टेलीफोन, मोबाइल और आवश्यकतानुसार पर्सनल स्टाफ और कुछ मानदेय भी संबंधित महकमे की ओर से किया जाता है।
- राज्यमंत्री स्तर के व्यक्ति को प्रतिमाह 10 हजार और उपमंत्री स्तर के व्यक्ति को प्रतिमाह साढ़े सात हजार रुपए प्रतिमाह जलपान भत्ता
-निरीक्षण भवनों में मुफ्त ठहरने की सुविधा
- पदीय कर्तव्य के लिए सूबे के अन्दर यात्रा पर राज्यमंत्री स्तर के महानुभाव को 600 रुपए प्रतिदिन और सूबे के बाहर की यात्रा पर 750 प्रतिदिन यात्रा भत्ता।
-जिन निगमों, संस्था, परिषद की आर्थिक स्थिति खराब है और वह दर्जा प्राप्त महानुभाव पर आने वाला खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है, ऐसी संस्थाओं के प्रशासकीय विभाग वित्त विभाग की सहमति से अपने बजट में सुसंगत मदों में यथोचित धनराशि की व्यवस्था करें।
-एक शैडो, एक गनर और आठ घण्टे की ड्यूटी पर तीन पुलिस कर्मियों की सुरक्षा
-दर्जा प्राप्त के यात्रा वाले महानुभाव सत्तारूढ दल के रौब में एक थाने से दूसरे थाने तक पुलिस एस्कोर्ट तक चलवाते हैं हालांकि यह उन्हें अनुमन्य नहीं है। 
२१.१२.२०१३
लखनऊ: प्रदेश सरकार दंगा पीडि़तों को दोजून की रोटी पर तीन करोड़। टेंट, कपड़े, बर्तन व मिट्टी के तेल पर एक करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। देश की मुख्तलिफ तंजीमें (संस्थाएं) करोड़ों की इमदाद भेज रही हैं। ऐसे में सवाल ये है कि तब बच्चों की मौतें क्यों हो रही हैं। कैम्प के लोग बेहाल क्यों हैं? सूत्रों का कहना है कि इमदाद में घोटालेबाजी हो रही है। पीडि़तों को जरूरत की खाद्य सामग्र्री नहीं मिल रही है।
27 अगस्त को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत में सांप्रदायिक उपद्रव की शुरूआत और फिर  दंगा भड़कने के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने गांव छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी शुरू की थी। स्थानीय लोगों के अलावा सरकार ने भी पीडि़तों के लिए खाद्य सामग्र्री के इंतजाम का दावा शुरू किया। सूत्रों का कहना है कि कुछ दिनों के अन्दर ही सरकारी मदद से कई गुना अधिक इमदाद दिल्ली, यूपी के मुख्तलिफ हिस्सों, उत्तराखण्ड़, पश्चिम बंगाल और क्षेत्रीय लोगों ने कैम्पों में भेजनी शुरू कर दी थी। बावजूद इसके कैम्पों का हाल-बदहाल है।
ठंड बढऩे के साथ ही बच्चों की मौतों का सिलसिला शुरू हो गया है। गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 50 बच्चों की मौत हो चुकी है। स्थानीय लोगों और स्वास्थ्य अधिकारियों ने दबी जुबान स्वीकार किया कि कई बच्चे निमोनिया जैसी बीमारियों के शिकार हो गए थे। यानी उन्हें सर्दी से बचाने और खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है। सवाल ये है कि आखिर सरकारी और गैर सरकारी इमदाद जा कहां रही है? क्या इसमें भी घोटाला हो रहा है। सूत्रों पर भरोसा करें तो दंगा पीडि़तों के लिए जुटाई जा रही इमदाद की रकम में भी खासा घोटाला हो रहा है।
सरकार ने इमदाद का पूरा ब्योरा तैयार करने की अधिकारियों को हिदायत दी थी लेकिन कुछ खास की नाराजगी के डर  और कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते वह ब्योरा भी तैयार नहीं हो रहा है। कैम्प चलाने वाले लोग यह तो स्वीकारते हैं कि राहत शिविरों को लिए इमदाद मिल रही है लेकिन कहां से क्या आया? इसका कोई ठोस ब्योरा किसी के पास उपलब्ध नहीं है। अलबत्ता यूपी के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने शुक्रवार को शाम आनन-फानन में बुलायी गयी पत्रकार वार्ता में कहा था कि राहत शिविरों में सब कुछ ठीक है। मीडिया लोगों को गुमराह कर रहा है। हालांकि बच्चों की मौतों पर उन्होंने जुबान बंद रखी। उन्होने कहा कि मेरठ का कमिश्नर बच्चों की मौत के कारणों की जांच कर रहे हैं, रिपोर्ट आने पर ही कुछ कह पाएंगे।


दंगा शिविर
-58 हजार लोगों ने दंगा राहत शिविर में शरण लिया (मुजफ्फरनगर में 41, शामली में 17 शिविर)
सरकारी भोजन सामग्र्री: राहत शिविर में रहने वालों के लिए खाद्य सामग्र्री आटा, दाल, चावल, नमक, खाद्य तेल, आलू, चीनी, साबुन, दूध और मसाला पर तीन करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। सरकार स्वीकारती है कि जन सामान्य के सहयोग से इन वस्तुओं से बना बनाया खाना भी कैम्पों में लगातार उपलब्ध करायी जा चुकी है।
निवास व अन्य: सरकार का दावा है कि स्टील के खाने के बर्तन, ग्लास, तौलिया, महिलाओं, बच्चों के कपड़े, पाउडर दूध, माचिस, टेंट, गैस सिलेण्डर पर आदि पर एक करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लकड़ी वन विभाग उपलब्ध करा रहा है।
यूपी, दिल्ली और उत्तराखण्ड की निजी संस्थाओं की मदद: आटा, दाल चावल, लकड़ी, कपड़े, टेन्ट, रोटियां, साबुन, तेल, कंबल, गद्दे, नकद राशि, स्टील की प्लेट, मिट्टी का तेल, बिस्किट के पैकेट, मिल्क पैकेट

तब बच्चों की मौत क्यों: इतनी बड़ी मात्रा में सरकारी और गैर सरकारी इमदाद के बावजूद आखिर कैम्पों में रह रहे बच्चों की असमय मौतें क्यों हो रही हैं। क्या दंगा पीडि़तों के लिए पहुंच रही सामग्र्री और धनराशि में भी घोटाला शुरू हो गया है।

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सरकारी आंकड़े
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-मेरठ, बागपत, सहारनपुर और शामली में सांप्रदायिक ंिहंसा में 65 व्यक्तियों की जान गयी और 85 लोग जख्मी हुए।
-मारे गए परिवार के आश्रितों को 10-10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता पर 6 करोड़ 35 लाख रुपए खर्च हुए।
- मृतकों के आश्रितों में 58 व्यक्तियों को सरकारी नौकरी दी गयी।
-प्रधानमंत्री सहायता कोष से मारे गए व्यक्तियों के परिवार को दो-दो लाख रुपए की मदद
-मारे गए पत्रकार के परिवार को 10 लाख की मदद
-गंभीर घायलों को 50-50 हजार की आर्थिक मदद
-साधारण रुप से घायल 51 व्यक्तियों को 20-20 हजार
-ंिहसक घटनाओं के 74 घायलों को रानी लक्ष्मी बाई पेंशन
-चल, अचल संपत्तियों का 50 हजार नुकसान पर 50 हजार और एक लाख के नुकसान पर एक लाख की मदद
-इससे एक लाख से ऊपर के नुकसान पर वास्तिवक आगणन के आधार पर सहायता 

बदहवासी, बेचैनी और बेबसी

२४.१२.२०१३
लखनऊ:...बदहवासी, बेचैनी और बेबसी...समाजवादी पार्टी पूरे साल इन्ही हालात से मुकाबिल रही। उसके लिए तसल्लीबख्स कुछ रहा तो सिर्फ रैलियों में जुट गयी भीड़। जिससे वह मूल जनाधार (वोट बैंक) साथ होने की आस लगाकर  कठिन दिख रहे 'लक्ष्य-2014Ó को साधने में जुटी है।
यूं तो समाजवादी पार्टी वर्ष 2013 को याद नहीं रखना चाहेगी, क्योंकि इस साल उसके हिस्से में उपलब्धियों के नाम पर कुछ नहीं आया। अलबत्ता सत्तारूढ़ दल की खामियों के कई दाग उसके हिस्से में आ गए। पहले राज्य की सत्ता के चार केन्द्र होने के संदेश से गर्वेन्स प्रभावित हुआ फिर राज्य व कैबिनेट मंत्रियों के बीच अधिकारों की लड़ाई ने समाजवादी पार्टी का चैन छीना। पार्टी के लिए बेचैनी का सबब यहीं नहीं थमा।सीएमओ को अगवा करने, जानवर तस्करी के स्टिंग में राज्यमंत्री की भूमिका ने भी समाजवादी पार्टी को इस साल असहज किया। डिप्टीएसपी जिया उल हक की साजिश में मंत्री का नाम, नाच-गाना का शौक में विधायक की गिरफ्तारी, जमीनों पर कब्जे, पार्टी नेताओं की गुंडई,प्रतापगढ़, फैजाबाद, अंबेडकरनगर में सांप्रदायिक उपद्रव और फिर बागपत, शामली, मेरठ और मुजफ्फरनगर के दंगों ने पार्टी को इस साल की बार बदहवासी की स्थिति तक पहुंचाया। शायद इन्ही परिस्थितियों में पार्टी ने अपराधियों से दूरी बना लेने की छवि पर अतीक अहमद की अगवानी का 'दागÓ फिर से थोप लिया।
इससे उपजी सियासी परिस्थितियों को बारीकी से समझ रहे राजनीति के 'सुजानÓ मुलायम ंिसह यादव सावर्जनिक मच से गुबार निकाल चुके हैं, यह उनकी बेबसी है कि पार्टी का मूल जनाधार हाथ से बालू की तरह खिसक रहा है। दंगों से मुसलमान नाराज हैं। पूरी हिस्सेदारी नहीं मिलने से ब्राह्रïमण बिफरा हुआ है। जिन्हें समेटना चुनौती से कम नहीं है, इसीलिए वह यह कहने लगे हैं कि युवाओं को सत्ता तक पहुंचाया लेकिन क्या वे उन्हें सत्ता तक ले जाएंगे। यानी सपा के लिए अगर इस साल कुछ भी तसल्लीबख्श रहा तो सिर्फ इतना कि आजमगढ़, मैनपुरी, बरेली और बदायूं की उसकी रैलियों में खासी भीड़ जुटी। जिसके आधार पर ही वह मूल वोट बैंक साथ होने की आस में है।





दंगा राहत शिविर बंद कराने का प्रयास

२४,१२.२०१३

जागरण ब्यूरो, लखनऊ: चुनावी मुद्दा बनते जा रहे दंगा राहत शिविर बंद कराने का प्रयास शुरू हो गया है। पूरा खाका तैयार हो है। पीडि़तों अगर घर वापस लौटने को राजी नहीं हुए तो उन्हें दूसरे सुरक्षित ठिकाने पर भेजने की योजना है। वैकल्पिक स्थान की तलाश भी हो रही है।
दंगा राहत शिविरों के इंतजामों और कुछ शिविर संचालकों पर अमानत में खयानत, इमदाद में गड़बड़ी के आरोपों को लेकर सरकार को घेरने की सियासत तेज हो चली है। कांग्र्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के राहत शिविरों का दौरा दिया फिर मंगलवार को माकपा महासचिव प्रकाश करात ने मुख्यमंत्री से मिलकर राहत कैम्पों का हाल बयान किया। भाजपा पहले ही सरकार की कार्य प्रणाली पर हमलावर है, सरकार इस सबको चुनावी साजिश के रूप में देख रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी आरोप लगाया कि कुछ षणयंत्रकारी पीडि़तों को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने पीडि़तों से गांव वापस लौटने की अपील की है। सूत्रों का कहना है कि इस बीच शासन ने मुजफ्फरनगर, शामली के जिला प्रशासन को मौजूदा राहत शिविरों को जल्द से जल्द बंद कराने  व पीडि़तों को वापस गांव भेजने का अभियान चलाने का संदेश दिया है। सूत्रों का कहना है कि प्रशासन से कहा गया है कि पीडि़त अगर वापस गांव लौटने को तैयार नहीं होते तो उन्हें प्रशासन की देख रेख में सुरक्षित व पक्के भवनों में ले जाकर ठहराया जाए, मगर राहत शिविर बंद कराये जाएं।
इसके पीछे चुनावी समय में विरोधी दलों खासकर कांग्र्रेस और भाजपा के सियासी वार को नाकाम करने की कोशिश माना जा रहा है, गौरतलब है कि सपा प्रमुख मुलायम ंिसह य ादव ने सोमवार को कहा था कि भाजपा व कांग्र्रेस षणयंत्र कर रहे हैं, जिन्हे रोकने के लिए सतर्क रहने की जरूरत है।


प्रशासन का दावा-सब कुछ ठीक:
मुजफ्फरनगर के ग्राम लोई में चल रहे राहत शिविर में सफाई. खाने-पीने, दवा-इलाज के साथ ठंड से बचाव के व्यापक इंतजाम हैं। हर ब्लाक में दो-दो सफाई कर्मी तैनात हैं। जिला पंचायत राज अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाये गये हैं।  ये दावा सरकारी प्रवक्ता ने मुजफ्फरनगर के डीएम कौशलराज शर्मा के हवाले से दी। उन्होंने बताया कि लोई शिविर में स्वच्छ पेयजल के लिए 10 इण्डिया मार्क-।। हैंडपम्प लगाये गये हैं। जल निकासी के लिए सोकपिट बने हैं। गर्भवती महिलाओं, माता और 7 माह से तीन साल के बच्चों की विशेष देखभाल हो रही है। नियमित पोषाहार बंट रहा है। बच्चों कोपरिषदीय विद्यालयों, मान्यता प्राप्त विद्यालयों  प्रवेश दिलाकर शिक्षा के भी इंतजाम किये गये हैं।
शिविर वासियों को अब तक 132 क्विंटल आटा, 116 क्विंटल चावल, 28 क्विंटल दाल, 525 ली0 तेल, 38 क्विंटल आलू 24.50 क्विंटल चीनी, 5.6 क्विंटल नमक, 300 क्विंटल मसाला के साथ-साथ प्रत्येक परिवार को दैनिक उपयोग की वस्तुओं टूथ पेस्ट, दरी, तौलिया, बाल्टी, मग, थाली, गिलास, चादरें, साबुन भी वितरित किया गया है।   

तलाशी पर बखेड़ा

२७.१२.२०१३
1-आजम खां (अल्पसंख्यक कल्याण, नगर विकास, संसदीय कार्य मंत्री): आगरा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी से गैरहाजिर, हावर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका के दौरे के दौरान तलाशी पर बखेड़ा, विरोध स्वरूप मुख्यमंत्री को कार्यक्रम का बहिष्कार करना पड़ा। प्रमुख सचिव प्रवीर कुमार पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप मढ़ा। साल खत्म होते-होते मंत्री के निजी स्टाफ ने उनके खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया, उसके बाद से उनके कार्यालय में तैनात कर्मचारियों में से ज्यादातर गैर सचिवालय कर्मी हैं।
2-राम आसरे कुशवाहा: (रिमोट सेंसिंग के अध्यक्ष पद से बर्खास्त): वह पहले ऐसे दर्जा प्राप्त नेता हैं,  जिन्हें पार्टी लाइन से इतर बयानबाजी करने पर सरकारी पद से बर्खास्त किया गया। नोएडा की एक डील में कथित रूप से उनका नाम आने पर सरकार और पार्टी नेता असहज हुए।
3-कमाल फारूकी: (पूर्व राष्ट्रीय सचिव और दिल्ली की मीडिया में सपा चेहरा) आतंकवाद के आरोपी यासीन भटकल की गिरप्तारी पर उन्होंने कहा कि सिर्फ मुस्लिम होने के नाते उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। इस बयान ने विरोधी दलों ने सपा पर हमले का मौका दिया।  बेचैन सपा ने उन्हें पद और पार्टी से विदा कर दिया।
4-रघुराज प्रताप ंिसह उर्फ राजा भैया: (खाद्य एवं रसद मंत्री) हाइकोर्ट की निगरानी में चल रहे खाद्यान्न घोटाले की सीबीआइ जांच में उनकी भूमिका को लेकर सवाल। कुंडा के डिप्टी एसपी जिया उल हक की हत्या की साजिश में उनकी नामजदगी, मंत्री पद से इस्तीफा। सीबीआइ जांच में क्लीन चिट, फिर से मंत्री पद की शपथ, खाद्य एवं रसद विभाग को लेकर दबाव। आखिर महकमा मिला लेकिन मुख्य भवन में कार्यालय को लेकर अब भी रार जारी।
5-विनोद कुमार ंिसह उर्फ पंडित ंिसह: (माध्यमिक शिक्षा, राज्यमंत्री) गोंडा में एनआरएचएम की भर्ती को लेकर जिले के लोगों की दावेदारी को खारिज कर बाहर के लोगों को नियुक्त किये जाने से विरोध में गोंडा के सीएमओ को ही अगवा कर लिया। मुख्यमंत्री ने मंत्री पद से इस्तीफा लिया और कुछ दिनों बाद ही दोबारा मंत्री बना दिया।
7-नरेश अग्रवाल,( राज्यसभा सदस्य) भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को चायवाला का विवादित तमगा दिया। महिला उत्पीडऩ की बढ़़ती शिकायतों के बीच कहा था अब कोई महिला पीएस नहीं रखना चाहता।
8-अतीक अहमद पूर्व सांसद,(सुल्तानपुर से सपा के प्रत्याशी) मुकदमों की लंबी फेहरिश्त वाले पूर्व सांसद ने समाजवादी पार्टी में शामिल होने और सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनते ही दिखाया बाहुबल, असलहों की नुमाइंश और गाडिय़ों का जलवा। मुख्यमंत्री के आदेश पर हुई जांच में भी प्रशासन ने उन्हे दिया क्लीन चिट
9-अवधेश प्रसाद, (समाज कल्याण मंत्री): खांटी समाजवादी नेता के लैपटाप वितरण कार्यक्रम से लौटी लड़की के साथ दुराचार के बाद वह सवालों के घेरे में आए। देर शाम लैपटाप वितरण को लेकर पार्टी के अन्दर और बाहर से न सिर्फ उनकी घेरेबंदी हुई बल्कि समाजवादी पार्टी को भी किरकिरी का सामना करना पड़ा।
10-अंबिका चौधरी, (विकलांग कल्याण, पिछड़ा वर्ग मंत्री) विधानसभा चुनाव हारने के बाद सरकार ने उन्हे राजस्व जैसे अतिमहत्वपूर्ण महकमे का मंत्री बनाया लेकिन कुछ अरसे में ही पूर्वांचल के कई विवादों में घिरने और पार्टी के नेताओं से छत्तीस के आंकड़े के बाद सरकार ने उनका कद कम किये जाना चर्चा का विषय रहा। फिलहाल वह विकलांग कल्याण और पिछड़ा वर्ग महकमे के मंत्री हैं।
11-नरेन्द्र ंिसह भाटी: (मंत्री का दर्जा प्राप्त और नोएडा से सपा के प्रत्याशी) नोएडा में निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार गिरवाने के आरोप में प्रशिक्षु आइएएस दुर्गा नागपाल के निलंबन को लेकर उनके विवादित बयान ने सरकार के सामने मुश्किल खड़ी की, उन्होंने सार्वजनिक सभा में यहां तक कह डाला कि मैंने चंद मिनटों में ही दुर्गा को हटवा दिया। बाद में उन पर आरोप लगा कि अवैध खनन के चलते दुर्गा को हटवाया।
12-मनोज पारस: ( स्टाम्प एवं न्यायालय शुल्क, पंजीयन शुल्क राज्यमंत्री): बलात्कार की पुरानी घटना के मामले में अदालत से समन जारी होने और फिर लोकायुक्त के यहां पहुंची शिकायत को लेकर सरकार के लिए परेशानी की वजह बने।
13-ब्राह्रïमाशंकर त्रिपाठी: (होमगाडर््स एवं प्रांतीय रक्षक दल मंत्री) समाजवादी सरकार के पहले मंत्री जिनके खिलाफ पहुंची जांच में लोकायुक्त ने विह्रिवत जांच शुरू की। होमगार्डो की ड्यूटी लगाने को लेकर विवादों में आए, जिसमें मुख्यमंत्री ने दखल दिया और होमगार्डो की ड्यूटी कम्प्यूटराइज करायी।

मुलायम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की तैयारी

२७.१२.२०१३
परवेज़ अहमद, लखनऊ: समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम ंिसह यादव को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की तैयारी है। पार्टी में उच्च स्तर पर तैयारियों के बीच मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने के अहद (संकल्प) का आह्वïान करती होर्डिंगें  चस्पा हो गयी हैं। 11 जनवरी को झांसी में प्रस्तावित 'देश बचाओ, देश बनाओ रैलीÓ में उनकी उम्मीदवारी का ऐलान हो सकता है।
समाजवादी पार्टी के ओहदेदार केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनने और उसमें उनके दल की महत्वपूर्ण भूमिका का काफी दिनों से ऐलान कर रहे हैं, मगर मुलायम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार  उनकी ओर से घोषित नहीं किया गया। सपा मुखिया मुलायम ंिसह यादव भी कार्यकर्ताओं से यह तो कहते रहे हैं कि  मजबूती के साथ उनको संसद भेजो लेकिन खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उन्होने पेश नहीं किया।
कुछ दिन पहले शहर में लगी बड़ी-बड़ी होर्डिगों में 'मन से मुलायम, इरादे लोहा हैंंÓ के नारे और मुलायम की तस्वीर के साथ पार्टी ने यह तो संदेश दिया कि लोकसभा चुनाव में वह मुलायम के चेहरे और उनके दृढ़ इरादों के बल पर ही 'विजय यात्राÓ  पर निकलेगी।
सूत्रों का कहना है कि पांच राज्यों के चुनावों के परिणाम और दिल्ली में आम आदमी पार्टी के चमत्कारी विजय के बाद समाजवादी पार्टी अब मुलायम ंिसह यादव को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर ही देश की सत्ता की जंग में कूदेगी। पार्टी के अन्दर मंथन के बीच कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में शहर होर्डिंग लगाकर मुलायम ंिसह यादव को बकायदा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इन होर्डिंगों में जनता और समर्थकों से मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने का अहद का आह्रïवान भी किया गया है। पार्टी के एक महासचिव का कहना है कि अब जनता स्पष्ट संदेश चाहती है,इसीलिए चुनाव से पहले ही मुलायम ंिसह यादव को पार्टी की ओर से उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि मुलायम ंिसह यादव ने देश की धर्म निरपेक्षता के लिए सबसे अधिक कुर्बानी दी है। किसानों, मजदूरों बेरोजगारों और अल्पसंख्यकों के हितों के लिए संघर्ष किया है। सपा के सबसे बड़े नेता हैं। पार्टी के लाखों कार्यकर्ता और देश की जनता उन्हें प्रधानमंत्री बनते देखना चाहती है।
तैयार हो रहा है ट्रेनिंग प्रोग्र्राम
समाजवादी पार्टी अपने मुखिया मुलायम ंिसह यादव को प्रधानमंत्री पद बनाने में कोई कसर छोडऩे को तैयार नहीं है। उसके लिए कई कार्ययोजना बनी लेकिन, जिसमें कार्यकर्ता ट्रेनिंग प्रोग्र्राम भी शामिल है। सूत्रों का कहना है कि लंबे समय से बंद कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का कार्य जल्द ही शुरू करने की तैयारी है। इसमें डॉ. लोहिया के विचारों के साथ ही बूथ प्रबंधन की जानकारी देने की भी तैयारी है। 'चिन्तन सभाÓ को ट्रेनिंग की कमान सौंपे जाने के संकेत मिल रहे हैं।
२८.१२.२०१३
जागरण ब्यूरो, लखनऊ: नया साल राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी का साल होने के आसार हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश की तर्ज पर मातृ एवं शिशु चिकित्सा सुविधा के लिए 'कॉल 102 एम्बुलेंसÓ शुरू होगी। मुफ्त एक्स-रे के साथ ही बड़े सरकारी चिकित्सालयों में सुपर स्पेशियलिटी इकाइयां स्थापित होंगी। पीएचसी, सीएचसी में चौबीसो घण्टों इमरजेसी सेवाएं देने की भी तैयारी है।
समय से इलाज के अभाव में राज्य में हर साल 16 हजार गर्भवती दम तोड़ देती हैं। ऐसी महिलाओं को समय से चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्र्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के धन से डॉयल 102 एम्बुलेंस सेवा शुरू करने जारी है। इस योजना के तहत राज्य में 1972 एम्बुलेंस चलायी जाएंगी। एम्बुलेंस में जीवन रक्षक दवाओं के साथ प्रसूति कराने में प्रशिक्षित फार्मासिस्ट और आशा बहू भी तैनात रहेगी। सूचना मिलने के 30 मिनट के अन्दर यह एम्बुलेंस गर्भवती महिला को नजदीकी चिकित्सालय तक पहुंचाएगी। प्रसव के बाद उसे घर भी छोड़ेगी। डॉक्टरों का मानना है कि इससे मातृ-शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी। क्योंकि 40 फीसद मौत समय से ट्रांसपोर्ट की सुविधा न मिल पाने से होती है।
स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन कहना है कि वह सरकारी चिकित्सालयों में मुफ्त एक्सरे के साथ ही आशा बहुओं को मोबाइल की सुविधा भी जल्द ही उपलब्ध करा देंगे। कुछ बड़े चिकित्सालयों में सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधा के लिए इकाइयां स्थापित करने की तैयारी हैं। इस साल ये इकाइयां स्थापित हो जाएंगी। लखनऊ समेत पांच जिलों में दो-दो सौ बिस्तरों वाले चिकित्सालयों की स्थापना का कार्य भी इस साल पूरा जाएगा। यानी नया साल चिकित्सा सुविधाओं की बेहतरी का साल होगा।
तथ्य
-प्रदेश में हर से 16000 गर्भवती महिलाओं की मौत होती है, जिनमें से 40 फीसद की समय से ट्रांसपोर्ट की सुविधा न मिलने से मौत होती है।
-जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 53 की मृत्यु हो जाती है।
- 40 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं
-औसतन साल में 51 लाख बच्चों का जन्म होता है।
उम्मीदें
-102 नम्बर डॉयल करने के 30 मिनट के अन्दर गर्भवती को नजदीकी चिकित्सालय में पहुंचा दिया जाएगा।
-सरकार आशा बहुओं (कार्यकत्रियों ) को सीयूजी मोबाइल की सुविधा उपलब्ध करा देगी।
-लखनऊ समेत पांच जिलों में 200 बिस्तरों के चिकित्सालय शुरू हो जाएंगे।
-सरकारी चिकित्सालयों में एमसीएच (आपरेशन की विशेषज्ञ सुविधा) शाखा स्थापित होने के आसार
-जरूरतमंद मरीज को मुफ्त एक्स-रे की सुविधा की तैयारी
-पीएचसी, सीएचसी में 24 घण्टे की इमरजेंसी सेवा की उम्मीद 

यूपी में 'आपÓ प्रभाव से खुश है समाजवादी पार्टी

२९.१२.२०१३


-उसका मानना है कि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों में होगा, जिससे भाजपा का नुकसान होगा
-सपा का मुख्य जनाधार ग्र्रामीण क्षेत्रों में लिहाजा उस पर कोई असर नहीं होगा
-पार्टी के लोगों तर्क लैपटाप योजना से युवाओं के बीच अखिलेश और उनकी सरकार की बढी है लोकप्रियता

परवेज़ अहमद, लखनऊ : दिल्ली की सत्ता में काबिज होने के साथ ही यूपी में भी आम आदमी पार्टी (आप) का सियासी दखल बढऩे से समाजवादी पार्टी खुश है। वह मानती है कि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों में ही होगा, जिसका ज्दाया नुकसान भाजपा को होगा। सपा के प्रभाववाली लोकसभा सीटों पर अब भी जातीय संतुलन और राज्य सरकार के विकास कार्य ही गुल खिलायेंगे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के साथ ही 'आपÓ ने लोकसभा चुनाव में यूपी में प्रत्याशी उतारने का संकेत दिया है, जिससे सियासत के छोटे-बड़े अखाड़ेबाजों में बेचैनी है। शनिवार को अरविन्द केजरीवाल के शपथ ग्र्रहण में जिस तरह से युवाओं की भीड़ उमड़ी उससे यूपी के सूरमाओं की धड़कने बढ़ गयी हैं। ये और बात है कि  फिलहालसमाजवादी पार्टी इससे खुश है। वह आप की बढ़त में भाजपा का नुकसान देख रही है।  सपा के एक महासचिव का कहना है कि मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारक अखिलेश यादव युवाओं के बीच खासी लोकप्रियता है। इंटरमीडिएट उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को लैपटाप वितरित कर उन्होंने युवाओं को तकनीक से जोड़ा है ये युवा सपा के साथ हैं। ऐसे में 'आपÓ का प्रभाव उसके जनाधार पर नहीं पडऩे वाला है। दूसरे पार्टी की ग्र्रामीण क्षेत्रों में मजबूत पकड़ है। 1996 से लेकर अब तक लोकसभा चुनावों का परिणाम से ही साफ है कि पार्टी किसानों, गरीबो, दलितों औअल्पसंख्यकों और पिछड़ों को साथ लेकर चलती रही, उसके हितों का संरक्षण करती रही है। जहां जातीय संतुलन, विकास कार्यो के आधार पर वोट पड़ते हैं। सपा के एक और प्रदेश सचिव कहते हैं कि पार्टी के पास बांदा, जालौन, नगीना, मिर्जापुर, फतेहपुर जैसी सीटें भी हैं यहां खाद, बीज, सिंचाई की समस्या है, जिसे दूर करने में समाजवादी पार्टी की सरकार ने कसर नहीं छोड़ी है, ऐसे में इन क्षेत्रों में आप का प्रभाव नहीं होने वाला है।
वह कहते है ंकि सपा मुखिया मुलायम ंिसह यादव ने प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध कर और 17 पिछड़ी जातियों के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए लड़ाई लड़ी है। धर्म निरेपक्षता के लिए संघर्ष किया है। लिहाजा पार्टी का जनाधार पहले से बढ़ा है। आप का सपा पर कोई प्रभाव पडऩे वाला नहीं है।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लडऩे की आजादी है। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दरवाजा हर किसी के लिए खुला रहता है। उन्होंने लोकतंत्र बहाल किया है। ऐसे आम आदमी पार्टी से समाजवादी पार्टी पर कोई प्रभाव नहीं पढऩे वाला है।

घोटालेबाजों के पास है महत्वपूर्ण कार्य

.४.१.२०१४

घोटालेबाजों के पास है महत्वपूर्ण कार्य
परवेज़ अहमद, लखनऊ: दलित महापुरुषों की याद में नोएडा और लखनऊ में बने स्मारकों के घोटाले में पूर्व मंत्रियों, इंजीनियरों के खिलाफ भले एफआइआर हो गयी हो, मगर राजकीय निर्माण निगम (आरएनएन) पर उसका असर नहीं हुआ। घोटाले के आरोपितों में शामिल यहां के 20 इंजीनियरों को महत्वपूर्ण भवनों का निर्माण का जिम्मा सौंपा गया है। इसमें हाईकोर्ट, एनआरएचएम के  चिकित्सालय, सतर्कता अधिष्ठान, एसटीएफ दफ्तर का निर्माण तक शामिल है।
लोकायुक्त की जांच में बसपाराज में लखनऊ व नोएडा में दलित महापुरुषों की याद में बने स्मारक निर्माण घोटाले में पूर्व मंत्री बाबू ंिसह कुशवाहा, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी समेत 198 लोगों को आरोपित किया गया। इसमें  जिसमें आइएएस, ठेकेदार और राजकीय निर्माण निगम के तकरीबन 40 अधिकारी भी शामिल है। लोकायुक्त ने इन सभी के खिलाफ कार्रवाई की राज्य सरकार से संस्तुति की थी। जिस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एफआइआर दर्ज कराकर पूरे घोटाले की विवेचना सतर्कता अधिष्ठान को सौंपी थी। बुधवार को सतर्कता अधिकारियों ने पूर्व मंत्रियों समेत 19 के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराकर विवेचना शुरू कर दी, बावजूद इसके राजकीय निर्माण निगम पर फर्क नहीं पड़ा। घोटाले के ज्यादातर आरोपित अति महत्वपूर्ण निर्माण कार्य का जिम्मा संभाल रहे हैं। इनमें से कई तीन परियोजना प्रबंधकों के पास हाईकोर्ट भवन के निर्माण की जिम्मेदारी है। एक अधिकारी सपा मुखिया मुलायम ंिसह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी में होने वाले निर्माण कार्यो का जिम्मा संभाल रहे हैं। घोटालेबाजी में आरोपित महाप्रबंधक एसके अग्र्रवाल दिल्ली और एस कुमार वाराणसी इकाई में चल रहे करोड़ों के कार्य कर रहे हैं। गौतमबुद्धनगर के निर्माण कार्य भी स्मारक घोटाले के आरोपितों को ही सौंपा गया है। सतर्कता विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि घोटाले और एफआइआर में शामिल तथ्यों की विवेचना हो रही है। जो भी दोषी मिलेगा कानूनों के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी।
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कोट: राजकीय निर्माण निगम के पास उपलब्ध इंजीनियरों से ही कार्य लिया जा रहा है, अभी इंजीनियरों पर आरोप की बात सामने आयी है, उनका कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ है, लिहाजा उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। हां, आरोपितों में से कुछ के पास जरूर महत्वपूर्ण कार्य है, जिसकी समीक्षा करायी जाएगी।-आरएन यादव, प्रबंध निदेशक राजकीय निर्माण निगम
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कोट:
बसपा सरकार के घोटालों की जांच करा रही समाजवादी पार्टी की सरकार में भी आरोपितों को महत्वपूर्ण कार्य दिया जाने से राज्य सरकार की नियत पर संदेह साफ नजर आ रहा है।-अमरनाथ अग्र्रवाल, प्रदेश प्रवक्ता कांग्र्रेस
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घोटाले के  आरोपितों को खास काम
नाम              मौजूदा कार्य
एके सक्सेना-  इटावा में प्रोजेक्ट मैनेजर
पीके जैन- महाप्रबंधक महत्वपूर्ण पद
एसके अग्र्रवाल- महाप्रबंधक(दिल्ली)आरके ंिसह- प्रोजेक्ट मैनेजर यूनिट-21 जिसके पास (एसटीएफ, सतर्कता भवन, टाउन प्लानिंग का कार्य)
-एसके चौबे- डॉ.मनोहर लोहिया मेडिकल इंस्टीट्यूट का निर्माण कार्य
केके अस्थाना- मुख्य वास्तु विद, भवनों निर्माण को अंतिम रूप देने का जिम्मा
-एस कुमार- महाप्रबंधक वाराणसी का अतिमहत्वपूर्ण कार्यभार
-एके गौतम-  महाप्रबंधक झारखण्ड के पद से 31 दिसम्बर को सेवानिवृत
-अनिल कुमार- परियोजना प्रबंधक निर्माणाधीन हाईकोर्ट भवन
-एए रिजवी, अपर परियोजना प्रबंधक निर्माणाधीन हाईकोर्ट भवन


-राजेश चौधरी, परियोजना प्रबंधक निर्माणाधीन हाईकोर्ट भवन
-मसूद अहमद, इकाई प्रभारी, मैनपुरी
-सुनील कुमार त्यागी, इकाई प्रभारी गौतमबुद्धनगर
-छेदी लाल, इकाई प्रभारी गौतमबुद्धनगर
-राजवीर ंिसह, महाप्रबंधक झांसी
- अवनी कुमार, महाप्रबंधक (तकीनीकी) आरएनएन अति महत्वपूर्ण शाखा है यह।
-पीके शर्मा, परियोजना प्रबंधक निर्माणाधीन सहारनपुर मेडिकल कालेज
-आरएन यादव- तत्कालीन महाप्रबंधक विद्युत अंचल अब प्रबंध निदेशक
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इंसर्ट
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जांच की भी होगी जांच
जागरण ब्यूरो, लखनऊ: उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान स्मारक घोटाले की शुरूआती जांच करने वाली आर्थिक अपराध शाखा (इओडब्ल्यू) के विवेचनाधिकारियों से कुछ की भूमिका खंगालने की तैयारी में जुट गया है।
लोकायुक्त के आधीन स्मारक घोटाले की जांच करने वाली इओडब्ल्यू के विवेचनाधिकारियों ने अपनी जांच में तीन आइएएस अधिकारियों, लखनऊ के तत्कालीन मण्डलायुक्त, पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन प्रमुख अभियंता (विकास) की भूमिका को संदिग्ध तो ठहराया है लेकिन उनके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई की संस्तुति नहीं की है।
सूत्रों का कहना है कि इओडब्ल्यू की 117 पेज की जांच रिपोर्ट में ही संदेह के घेरे में आए कई इंजीनियरों, ठेकेदारों और अधिकारियों के बयानों का उल्लेख भी नहीं किया है। आखिर ऐसे क्यों हुआ? यही सवाल सतर्कता अधिकारियों को मथ रहा है। सूत्रों का कहना है कि इन्हीं सवालों के जवाब की तलाश के लिए सतर्कता अधिकारी इओडब्ल्यू के विवेचनाधिकारियों से उनके बयान लेने की तैयारी कर रहे हैं।सतर्कता अधिष्ठान के महानिदेशक ए.एल बनर्जी का कहना है कि अभी एफआइआर की विवेचना शुरू हुई लेकिन सभी पहलुओं की जांच होगी।

टिकट सपाइयों का

01.06.2014
1-पारसनाथ यादव
प्रदेश सरकार में उद्यान मंत्री जौनपुर से लोकसभ प्रत्याशी हंै, जिनकी उलझन है कि कुछ दिन पहले ही उनका बेटा पार्टी कार्यकर्ताओं से मारपीट के आरोपों में घिर गया, ऊपर से पूर्व में घोषित प्रत्याशी डॉ.केपी यादव बागी हो गये हैं। और उनकी सभाओं में खासी भीड़ उमड़ रही है।
2-सुकन्या कुशवाहा
यूं तो वह पहली बार चुनावी समर में हैं लेकिन उनके पति बाबू ंिसह कुशवाहा कभी दलित-पिछड़ा राजनीति के महारथी रहे हैं, उनकी दिक्कत ये हैं कि जिस गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से उन्हें टिकट दिया है, वहां के मौजूदा सांसद राधे मोहन ंिसह का टिकट कटा है और वह बगावती तेवर  अख्तियार किये हैं।
3-बलराम यादव
प्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्रियों में से एक बलराम यादव तो पार्टी ने आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩे के लिए लेकिन वह हिचक गये, उनकी पहल पर ही आजमगढ़ के जिलाध्यक्ष को प्रत्याशी बना दिया गया लेकिन उनकी उलझन ये है  कि अगर यहां परिणाम नकारात्मक हुए तो उनकी सियासत का क्या होगा, इसी लिए उनके खेमे से जब तक सपा मुखिया मुलायम ंिसह या उनके दूसरे बेटे प्रतीक यादव के चुनावी समर में कूदने की चर्चाएं छेड़ी जाती रही हैं।

4- राकेश सचान
फतेहपुर के सांसद राकेश को फिर से यहीं से चुनावी मैदान में उतारा गया लेकिन वह बन रहे समीकरणों को लेकर खासे विचलित हैं, लिहाजा अकबरपुर संसदीय सीट से टिकट हासिल करने की कवायद में हैं।
5-घनश्याम अनुरागी
जालौन के इस सांसद को पार्टी ने पहले दोबारा प्रत्याशी बनाया, फिर टिकट काट कर जिले एक विधायक को प्रत्याशी बनाया और फिर घनश्याम को प्रत्याशी बना दिया गया, उनकी परेशानी का सबब ये है कि बैठे-बैठाए पार्टी का एक विधायक उनसे खार खा बैठा है, अगर उसने खुले दिल से समर्थन न किया तो क्या होगा?
6- रामजी लाल सुमन
सपा के इस दिग्गज का चुनावी क्षेत्र आगरा रहा, लेकिन टिकट हाथरस से मिला है और यहां की मौजूदा सांसद सारिका बघेल को आगरा से प्रत्याशी बनाया गया है, दोनों के सियासी रिश्ते बहुत खुशगवार नहीं है, ऐसे में उनकी बेचैनी स्वाभावित की है।   

सांसद व विधायक से राज्य सरकार मुकदमा वापस नहीं लेने जा रही

1.06.2014
परवेज़ अहमद, लखनऊ : पश्चिम में दंगा भड़काने में नामजद मौलानाओं, सांसद व विधायक से राज्य सरकार मुकदमा वापस नहीं लेने जा रही है, केन्द्रीय गृह मंत्रालय की एक चिट्ठी से हड़बड़ाए यूपी के गृह व न्याय विभाग के अधिकारियों मुजफ्फरनगर प्रशासन से मुकदमों की स्थिति पर '13 बिन्दुओंÓ पर रिपोर्ट तलब राज्य सरकार को एक बार फिर सांसत में फंसा दिया है।
प्रदेश सरकार के गृह व न्याय विभाग ने 27 अगस्त को कबाल से शुरू होकर पश्चिम में फैले दंगों में अभियुक्तों का नाम, तफ्तीश की स्थिति, समेत 13 बिन्दुओं पर रिपोर्ट तलब की थी। इसमें यह भी पूछा गया था कि बसपा सांसद कादिर राणा पर दर्ज मुकदमें वापस लिये जा सकते हैं या नहीं? जिस पर हंगामा बरपा होने पर उच्च स्तरीय जांच शुरू हुई तो खुलासा हुआ कि राज्य सरकार ने तो मुकदमे वापसी का न कोई फैसला लिया है न ही अधिकारियों से रिपोर्ट मांगने के निर्देश दिये। अलबत्ता केन्द्र सरकार सरकार के गृह मंत्रालय (सीएस डिवीजन) के अनुसचिव मनिराम की ओर से नवम्बर माह में जारी पत्र में यूपी सरकार के गृह सचिव को निर्देशित करते हुए कहा गया है कि बसपा सांसद कादिर राना ने दंगा मामले में फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का आरोप लगाया है, प्रकरण राज्य सरकार की कानून व्यवस्था से जुड़ा है, लिहाजा सरकार इस मामले की वस्तु स्थिति से केन्द्रीय गृह मंत्रालय को अवगत कराये।
सूत्रों का कहना है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के इस पत्र से हड़बड़ाए राज्य सरकार के गृह व न्याय विभाग के अधिकारियों ने मनमानी तरीके सेमुजफ्फरनगर के जिला प्रशासन से 13 बिन्दुओं पर रिपोर्ट तलब कर ली। जिसमें आरोपितों से मुकदमा उठाने या न उठाने का बिन्दु भी शामिल था। गौरतलब है कि इससे पहले ही यूपी सरकार के गृह विभाग के अधिकारी 'सोमनाथ मंदिर निर्माणÓ संबंद्ध् में लापरवाही भरा पत्र लिखकर राज्य सरकार को मुसीबत में फंसा चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि दूसरी ओर मुजफ्फरनगर के जिला प्रशासन ने न्याय और गृह विभाग को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दंगा की एफआइआर पर अभी विवेचना चल रही है। अभी तो अदालत में प्रकरण गया है ही नहीं है। ऐसे में मुकदमा वापस लेने का कोई औचित्य नहीं है। जिला प्रशासन ने कानून व्यवस्था की स्थिति से भी इसे अनुचित माना है।
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मुख्यमंत्री बोले-
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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि सूचना मांगने का अर्थ यह नहीं होता है कि सरकार ने दंगों के आरोपितों से मुकदमा वापस ले लिया है। कानून अपना कार्य कर रहा है। कानून का पालन करने के मामले में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। कानून अपना कार्य करेगा। अलबत्ता किसी निर्दोष के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने दी जाएगी।
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जागरण ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार में गफलत और मनमानी का आलम ये है कि दंगा भड़काने में नामजद बसपा सांसद कादिर राणा की शिकायत परकेन्द्रीय गृह मंत्रालय से मांगी गयी सूचना पर मुजफ्फरनगर के जिला प्रशासन से मुकदमा वापसी से ताल्लुक रखने वाले 13 बिन्दुओ पर रिपोर्ट तलब कर ली। तथ्यों का खुलासा होने पर प्रमुख सचिव न्याय जेएस पाण्डेय ने आनन-फानन में प्रकरण की पत्रावली तलब सील करा दी है। रिपोर्ट मंागने की पत्रावली तैयार करने वाले सेक्शन अधिकारी व एक समीक्षा अधिकारी उनके पद से हटाकर वापस सचिवालय प्रशासन भेजने का निर्देश दिया है। दोनों समीक्षा अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी किये जाने के संकेत हैं। सूत्रों का कहना है कि गृह विभाग के उन अधिकारियों के बारे में भी छानबीन शुरू हो गयी है, जिन्होंने पत्रावली न्याय विभाग को बढ़ायी थी। 

Thursday 10 December 2015

-तलाक, मेहर, वसीयत व शरई कानून पर हुई चर्चा


-अल्पसंख्यकों की रहनुमाई करेगा पर्सनल ला बोर्ड
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अमरोहा : आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दीन व दस्तूर बचाओ कांफ्रेंस में मुसलमानों से कुरान व हदीस के मुताबिक ङ्क्षजदगी गुजारने के लिए कहा गया। मुसलमानों की तलाक, वसीयत व मेहर के साथ ही कानूनी अधिकारों के संबंध में आने वाली परेशानियों को भी शरई तौर पर खत्म करने का फैसला लिया गया। उलमा ने मुसलमानों के तालीम से जुड़ऩे पर जोर देते हुए कहा कि कुछ फिरकापरस्त ताकतें अपना मकसद पूरा करने के लिए मुल्क का माहौल बिगाडऩे की कोशिश कर रही हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व मुसलमान उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे।
गुरुवार को ईदगाह मैदान में शुरु हुई आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दीन व दस्तूर बचाओ कांफ्रेंस में देशभर से उलमा पहुंचे हैं। हालांकि बोर्ड के नायब सदर व सदारत कर रहे मौलाना कल्बे सादिक ने अपने ख्यालात का इजहार नहीं किया, लेकिन सचिव मौलाना वली रहमानी, बोर्ड के सदस्य अब्दुल्ला मुगीसी, मौलाना यासीन अली उस्मानी, आचार्य प्रमोद कृष्णम्, सरदार बलदीप ङ्क्षसह, बामन मेसन, जगद्गुरु मृत्युजंय, एसी माइकल, डॉ. जॉन दयाल ने मुल्क के मौजूदा हालात पर अपने ख्याल पेश किए। पांच घंटे चली कांफ्रेंस में मुसलमानों के हालात पर चर्चा की गई।
उलमा ने कहा कि मुसलमान अपने तलाक, मेहर, वसीयत जैसे मुद्दों को शरई कानून के मुताबिक ही निपटाएं। चूंकि यह मसले इतने पेचीदा हैं कि इनका हल सिर्फ शरई कानून में है। वह शरई कानून का पालन करते हुए देश के कानून का भी पालन करें। बोर्ड के पदाधिकारियों व सदस्यों ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम बोर्ड देश के मुसलमानों को किसी भी हालत में कमजोर नहीं होने देगा। बशर्ते मुसलमान कुरान व हदीस के रास्ते पर चलें। 

Monday 16 November 2015

गठबंधन दूर की कौड़ी

 15 नवम्बर.
 बिहार के चुनावी नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत पर नज़र लगाये राजनीतिक दलों में गठबंधन की सोंच जोर मारने लगी है. सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सोच वाले राजनीतिक दलों के गठबंधन से इनकार नहीं किया है तो सपा के कद्दावर नेता तथा वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कई दिन पहले विधानसभा चुनाव के पहले महागठबंधन की बात छेड़ी और. अखिलेश के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार फरीद महफूज़ किदवई तो एक क़दम आगे बढ़कर अपने दिल की ख्वाहिश जता चुके हैं कि सूबे में भाजपा के सफाए के लिए समाजवादी पार्टी का अपने धुर विरोधी बसपा से भी गठबंधन हो सकता है। दरअसल पिछले दो दिनों से यूपी के सियासी हलकों में सपा और बसपा के साथ आने की ऐसी चर्चाएँ शुरू हो गई हैं जिस पर सामान्य रूप से ऐतबार नहीं किया जा सकता है. किदवई की ख्वाहिश के तुरंत बाद आगरा में भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे शाहनवाज़ हुसैन ने कहा है कि यूपी में सपा और बसपा मिलकर भी भाजपा को छू नहीं सकती है।
वास्तव में इस देश की राजनीति में सपा और बसपा दो ऐसे दल हैं जिनका फिलहाल मिलन ठीक उसी तरीके से है जैसे सूरज का पश्चिम से उगना। मायावती और मुलायम सिंह के रिश्ते दो दशक पहले हुए स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड से इतने तल्ख़ हुए कि वे सियासत से कहीं ज्यादा निजी तौर पर लिए गए हैं। राजनीति में मायावती का स्वभाव बहुत जिद्दी माना जाता है और उनकी निजी सोच है कि सबकुछ बर्बाद हो जाए तो भी उनके रिश्ते मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी से कभी जुड़ नहीं सकते हैं। इसके पीछे स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड के अलावा एक और बड़ी वजह है। बसपा में अब कोई कांशीराम भी नहीं है तो इस दूरी को सियासी दोस्ती में बदलने की बात भी कर सके। दरअसल दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व में साझा सरकार में शामिल बसपा ने जब सरकार गिराकर अलग होने का फैसला किया तो सपा की ओर से कांशीराम के सामने एक बड़ा प्रस्ताव आया था। बसपा सुप्रीमो कांशीराम से मुलायम सिंह ने कहा था कि सरकार चलने दीजिये और मुख्यमंत्री अपना बना लीजिये। यहाँ मुलायम सिंह ने शर्त रखी थी कि मुख्यमंत्री बसपा का हो लेकिन वह मायावती न हों। कहा जाता है कि कांशीराम के सामने उस वक्त मुलायम सिंह ने दीना नाथ भास्कर का नाम प्रस्तावित कर दिया था जो मायावती को कतई मंज़ूर नहीं था। इसी बीच स्वर्गीय ब्रह्म दत्त द्विवेदी की पहल पर भाजपा के समर्थन से मायावती को मुख्यमंत्री बनाने की बात पक्की हो गई. मायावती का मानना है कि अगर मुलायम की चलती तो वे सूबे की मुख्यमंत्री नहीं होतीं और इसी वजह से सपा के प्रति उनकी निजी खुन्नस कई गुना बढ़ गई। अब जब वह बसपा की सर्वे-सर्वा हैं तब उनकी सपा से सियासी दोस्ती कैसे हो सकती है।
चर्चाओं की यह है वजह
उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल मिशन 2017 की तैयारियों में जुटे हैं। समाजवादी पार्टी अपने कार्यकाल के विकास का लेखाजोखा प्रचारित कर फिर से सत्ता में वापसी चाहती है तो उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी प्रदेश की कानून व्यवस्था को निशाने पर लेकर सत्ता में अपनी वापसी के दावे कर रही है। दोनों दलों के इन दावों के बीच विधानसभा चुनावों पर नज़र गडाए लोगों के सामने एक यक्ष प्रश्न भी आ खड़ा हुआ है कि अगले चुनाव में क्या बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव गठबंधन करेंगे? भले ही सुनने में यह दूर की कौड़ी लग रही हो लेकिन चर्चा यह भी है कि खुद समाजवादी पार्टी के अंदर से यह मांग उठने लगी है कि सपा-बसपा का गठबंधन हो जाए। अखिलेश यादव सरकार के मंत्री फरीद महफूज किदवई इसके लिए दुआएं कर रहे हैं, वह पहले बसपा के साथ रहे भी हैं। मुलायम सिंह यादव के भाई प्रो. राम गोपाल यादव पहले ही यह बात कह चुके हैं कि राजनीति में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह ने इन कयासों को सिर्फ कयास ही करार दिया है। उनका कहना है 2017 में समाजवादी पार्टी की सरकार अपने बल पर सत्ता में वापसी कर रही है। उधर उत्तर प्रदेश सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री फरीद महफूज किदवई ने सपा-बसपा गठबंधन के सवाल पर कहा कि इंशाअल्लाह गठबंधन जरूर बनेगा और हम बिहार की तरह यहां भी बीजेपी को शिकस्त देकर अपनी सरकार बनाएंगे।
समीकरणों की तलाश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मुद्दे पर इस बात की बहस छिड़नी लाजमी है कि यूपी में भाजपा के खिलाफ खड़े होने के लिए कौन सी पार्टी किसके साथ जा सकती है। जब कयासबाज़ी शुरू हुई तो यह बात भी उठी कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, आरएलडी, वाम दल और अन्य छोटी पार्टियां क्या एक गठबंधन बना सकती हैं? वैसे कांग्रेस और अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल पिछले चुनाव से साथ चल रहे हैं।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और पार्टी की राज्य इकाई के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि यह तो सही है कि अगर एक विचारधारा के लोग एक हो जाएं तो उत्तर प्रदेश में भी बहुत अच्छे रिजल्ट आ सकते हैं, लेकिन इस सब पर हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व फैसला करेगा. हालांकि उन्होंने सपा-बसपा के एक होने के मुद्दे को हंसी में उड़ा दिया।सपा- बसपा ने 1993 में साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और साझा सरकार भी बनाई थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में दोनों पार्टियों का जो हश्र हुआ उससे भी इन दोनों पार्टियों के साथ आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि बसपा और सपा के वोट प्रतिशत को जोड़ने पर यह लगभग भाजपा के बराबर हो जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव के वोट प्रतिशत देखे जाएँ तो भाजपा को 42 .3 फीसदी वोट मिले थे जबकि सपा को 22 .2 और बसपा को 19 .6 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
काफी सतर्क हैं अखिलेश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव काफी सजग हैं. सरकार बनाने से लेकर अब तक लगातार विकास कार्यों पर ही नजर रखे हुए हैं. मिशन 2017 के मद्देनज़र उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल भी किया है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जोरदार जीत के बाद उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही गठजोड़ बनाने को लेकर जारी चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज कहा कि सूबे में साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसे महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।संत कबीर नगर जिले के सेमेरियावां में एक शादी के कार्यक्रम में आए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बातचीत में बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी से मुकाबले के लिए समान विचारों वाले दलों के महागठबंधन की सम्भावना सम्बन्धी सवाल पर कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि अखिलेश ने यह नहीं बताया कि उस महागठबंधन में सपा के साथ बसपा होगी या नहीं। अखिलेश ने कहा कि बिहार की जनता ने विधानसभा चुनाव में जनादेश के जरिये यह संदेश दिया है कि अब सिर्फ विकास ही एकमात्र मुद्दा है। सपा भी अगला विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ने की तैयारी कर रही है।

सपा के नहीं, भाजपा के साथ हो सकती है बसपा: अखिलेश

सपा के नहीं, भाजपा के साथ हो सकती है बसपा: अखिलेश



akhilesh-yadavनयी दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड फेयर में उत्तर प्रदेश के पेवेलियन का उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आने वाले चुनावो में बसपा के साथ गठबंधन को साफ़ शब्दों में ख़ारिज कर दिया. अखिलेश यादव ने कहा कि बसपा और भाजपा का गठबंधन हो सकता है मगर बसपा और सपा का कभी नहीं. समाजवादी पार्टी के मंत्री फरीद महफूज किदवई के एक बयान के बाद इस तरह की संभावनाओं पर बहस शुरू हो गयी थी.
अखिलेश यादव ने इशारो इशारों में भाजपा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कम्युनल होना आसान मगर सेक्यूलर होना मुश्किल होता है. देश में माहौल ख़राब हुआ है. आदमी को मार रहा,सपा इसकी निंदा करती है. अखिलेश ने कहा कि मुजफ्फरनगर, दादरी और बदायूं की दुनिया मे चर्चा हुई और पंचायत चुनाव मे जनता ने भाजपा को करार जवाब दे दिया है.
उत्तर प्रदेश के विकास की चर्चा करते हुए अखिलेश ने कहा कि आज प्रचार का जमाना है और सपा ने यूपी की पहचान वापस करने को बहुत काम किया है,यूपी सरकार ने किसानो से जमीन अधिग्रहित की और किसानो ने एक्सप्रेस-वे के लिए जमीन दी. जेवर और आगरा में एयरपोर्ट बनाना चाहते हैं, सपा सरकार जमीन देने केलिए तैयार है और हम एयरपोर्ट के लिए प्रधानमंत्री को ख़त लिखेंगे.
अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड फेयर मे सीएम ने कहा कि यूपी के हर जिले की काम से पहचान है ,मेरठ बैट,अलीगढ ताले के लिए मशहूर है तो सहारनपुर मे लकड़ी का सामान मशहूर है ,कांच के काम के लिए फिरोजबाद मशहूर तो भदोही का कालीन अपने मे उदाहरण है.

Wednesday 4 November 2015

सपा युवा ब्रिगेड पर दांव, निशाना मिशन-2017

जागरण में तकनीकी कारणों से नहीं छपी
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सपा युवा ब्रिगेड पर दांव, निशाना मिशन-2017

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवा ब्रिगेड को महत्व देकर नई टीम बनाने का  किया प्रयास
 लखनऊ : मंत्रिमंडल विस्तार में 'समाजवादी परिवारÓ को साधने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कामकाज के बंटवारे में युवा ब्रिगेड को महत्वपूर्ण महकमे का जिम्मा सौंपकर नई टीम बनाने का प्रयास किया है। इसमें भी 'एम-वाईÓ (यादव-मुसलमान) समीकरण बनता दिख रहा है जो मिशन-2017 में कामयाबी की रणनीति माना जा रहा है।
31 अक्टबूर को मंत्रिमंडल के छठवें विस्तार में मुख्यमंत्री ने क्षेत्रीय, जातीय समीकरण में  साधने के प्रयासों के साथ 'समाजवादी परिवारÓ में सामंजस्य बनाने का प्रयास किया था। बदायूं, जौनपुर , हापुड़, गाजीपुर के विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान देने को इसी प्रयास के रूप में देखा गया तो बलवंत सिंह रामूवालिया को मंत्री बनाकर पार्टी मुखिया की पसंद को महत्व दिया गया था। बावजूद इसके मुख्यमंत्री ने युवा ब्रिगेड को प्रोन्नत कर या फिर स्थान देकर अपनी छाप छोडऩे का प्रयास किया था।
विस्तार के चौथे दिन विभागों के बंटवारे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवा ब्रिगेड को पूरा महत्व दिया है। पहली बार विधायक निर्वाचित यासर शाह को परिवहन जैसे महत्वपूर्ण महकमे की कमान सौंपी है। वह मुख्यमंत्री की युवा ब्रिगेड के सदस्यों में शुमार होते हैं। इस ब्रिगेड के दूसरे चेहरेव सफीपुर से दूसरी बार विधायक सुधीर रावत को आइटी, इलेक्ट्रानिक और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसे महकमों का राज्यमंत्री बनाया है, इन महकमों के कैबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री खुद हैं।
इसके अतिरिक्त जामिया मिलिया की छात्र राजनीति के समय से समाजवादी झंडा बुलंद करने वाले कमाल अख्तर को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया अब उन्हें खाद एवं रसद जैसा बड़े की उन पर जिम्मेदारी डाली है। सपा के दिग्गज मोहम्मद आजम खां से दूरी बनाकर राजनीति करने वाले कमाल को भी सपा की युवा ब्रिगेड का सदस्य माना जाता है।
राज्यमंत्री वसीम अहमद को बाल विकास-पुष्टाहार, बेसिक शिक्षा के साथ ऊर्जा विभाग का जिम्मा दिया जाना भी सपा के एम-वाई समीकरण को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा जा र हा है। युवा ब्रिगेड एक और सदस्य व राज्यमंत्री तेज नारायण उर्फ पवन पाण्डेय की मंत्रिमंडल में दोबारा वापसी पर जिम्मेदारी बढाई गयी और वन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया है। डा.शिव प्रताप यादव को जन्तु उद्यान के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और विनोद  उर्फ पंडित सिंह को कृषि (कृषि विदेश व्यापार, कृषि निर्यात एवं कृषि विपणन को छोड़कर), बलराम यादव को कम महत्व के कारागार विभाग से फिर बढ़ाकर माध्यमिक शिक्षा का जिम्मा भी समाजवादी पार्टी के लक्ष्य-2017 की रणनीति के रूप में देखा जा र हा है।

Monday 2 November 2015

सपा के जिलाध्यक्षों में बदलाव


पुरानी खबर है.....

समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में अपने संगठन में फेरबदल किया है. ज़िला अध्यक्ष और नगर अध्यक्ष पदों पर नई तैनाती की गई है. समाजवादी पार्टी ने यादव और मुस्लिम कार्यकर्ताओं पर ही भरोसा दिखाया है. वहीं पिछड़ी जातियों और ठाकुर बिरादरी को वोट बैंक बनाने की क़वायद के बावजूद इन जातियों की नुमाइंदगी न के बराबर है.
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी ने एक और जोखिम उठाया है. प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बीच ज़िला और नगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी गई. समाजवादी पार्टी के लखनऊ कार्यालय ने 58 ज़िला और नगर अध्यक्ष पदों पर नई तैनाती की. इनमें प्राथमिकता यादव बिरादरी के कार्यकर्ताओं को दी गई. यादव बिरादरी के कार्यकर्ताओं को 21 ज़िलों में अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा ने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष बनाने में प्राथमिकता दी है. समाजवादी पार्टी खुद को पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहती है, पर पिछड़ी जातियों में यादव के अलावा दूसरी किसी जाति को तवज्जो नहीं दी गई है. मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी यादव बिरादरी से ज़्यादा संख्या में हैं. अन्य पिछ़डा वर्ग में कुशवाहा समाज भी तीसरी ब़डी जाति है.
वहीं मुस्लिम समाज के 16 कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.
समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में बीस साल बाद कांग्रेस से चुनौती मिल रही है. कांग्रेस उसके मुस्लिम वोट बैंक पर हाथ रख रही है. समावादी पार्टी का आधार यादव और मुस्लिम वोट बैंक ही है. यादव मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में है, जबकि मुस्लिम पश्चिम और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रभावी हैं. मुस्लिम वोट समावादी पार्टी से हटा तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का जनाधार सिकुड़ जाएगा. इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा ने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष बनाने में प्राथमिकता दी है. समाजवादी पार्टी खुद को पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहती है, पर पिछड़ी जातियों में यादव के अलावा दूसरी किसी जाति को तवज्जो नहीं दी गई है. मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी यादव बिरादरी से ज़्यादा संख्या में हैं. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में कुशवाहा समाज भी तीसरी बड़ी जाति है. निषाद और लोधी क़रीब 30 विधानसभा सीटों पर निर्णायक संख्या में हैं. सपा ने इसे भी अनदेखा किया. अन्य पिछड़ा वर्ग में जाट बिरादरी भी है. इस जाति पर रालोद की पकड़ है. लिहाज़ा सपा ने इसे पहले ही दूर कर रखा है.
ठाकुर बिरादरी में सपा घुसपैठ कर रही है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के संसद और प्रवक्ता मोहन सिंह और रघुराज प्रताप सिंह राजा भैइया सक्रिय हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भदावर समावादी पार्टी का झंडा उठाकर चल रहे हैं, पर संगठन के अहम चुनाव में इस जाति के कार्यकर्ता भी मुलायम सिंह का विश्वास नहीं जीत पाए. बांदा में बीपी सिंह, हमीरपुर में ज्ञान सिंह, वाराणसी में ओपी सिंह और बिजनौर में मूलचंद चौहान शामिल हैं.
वैश्य बिरादरी शहरों में बड़ी संख्या में है. सपा ने इस समाज को भी अनदेखा किया. कायस्थ, सिख, जैन, समाज के कार्यकर्ताओं को संगठन में ज़िला या नगर अध्यक्ष के योग्य नहीं समझा गया. हां, ब्राह्मण समाज के कुछ कार्यकताओं को जिलाध्यक्ष पद का दायित्व मिल गया है. इसमें फैज़ाबाद में जयशंकर पांडेय, छत्रपति शाहूजी महाराज नगर में प्रियंका हरि त्रिपाठी, शाहजहांपुर में प्रदीप पांडेय शामिल हैं.
समाजवादी पार्टी ने ज़िला और नगर अध्यक्ष पदों पर उन कार्यकर्ताओं की तैनाती की है, जो विधानसभा चुनाव में पूरी ताक़त से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. समाजवादी पार्टी ने संगठन में फेरबदल के बाद प्रत्याशियों को उनसे तालमेल बिठाने के निर्देश दिए  हैं.
समाजवादी पार्टी द्वारा जारी 58 ज़िलों के अध्यक्षों की सूची

सीतापुर- शमीम कौसर सिद्दीक़ी
उन्नाव-अनवार अहमद
बदायूं-बनवारी सिंह यादव
शाहजहांपुर शहर-तनवीर मोहम्मद
शाहजहांपुर ज़िला- प्रदीप पांडेय
मुरादाबाद ज़िला-गोपाल सिंह यादव
मुरादाबाद शहर-कौसर अली कुद्दूसी
मैनपुरी-खुमान सिंह वर्मा
मथुरा-किशोर सिंह
रमाबाई नगर-प्रमोद यादव
कानपुर ग्रामीण-नाहर सिंह यादव
फरुर्खाबाद ज़िला-चंद्रपाल यादव
इटावा- अशोक यादव
कन्नौज-कलीम उ़र्फ पप्पू
गोरखपुर ज़िला-अवधेश यादव
गोरखपुर शहर-हाजी शकील अंसारी
देवरिया- राम इक़बाल यादव
कुशीनगर-राम अवध यादव
महराजगंज-राजेश यादव
बस्ती-राजकपूर यादव
गोंडा-मह़फूज़ खां
बहराइच-रामहर्ष यादव
फैज़ाबाद- जयशंकर पांडेय
बाराबंकी-मौलाना मेराज अहमद (देहांत)
अंबेडकरनगर- रामसकल
सुल्तानपुर-रघुवीर प्रसाद
सीएसजेएम नगर- प्रियंका हरि त्रिपाठी
लखनऊ-अशोक यादव
हरदोई- शरा़फत अली
लखीमपुर-शशांक यादव
औरेया- चौधरी रामबाबू
झांसी ज़िला-संत सिंह सेरसा
झांसी नगर-असलम शेर खां
ललितपुर-आल्हा प्रसाद निरंजन
बांदा-शमीम बांदवी
हमीरपुर-ज्ञान सिंह
महोबा- शोभलाल
चित्रकूट-भइया लाल
इलाहाबाद- पंधारी यादव
इलाहाबाद शहर-सलमान
वाराणसी जिला- राजनाथ यादव
वाराणसी शहर-ओपी सिंह
चंदौली- प्रभूनाथ सिंह
मेरठ ज़िला-जयवीर सिंह
आगरा ज़िला- जितेंद्र वर्मा
आगरा शहर-वाजिद निसार
अलीगढ़ ज़िला- अशोक
अलीगढ़ शहर-अज्जू इशहाक
एटा- रमेश यादव
कांशीरामनगर-विक्रम
फिरोज़ाबाद शहर-शाहिद अंसारी
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Friday 30 October 2015

आठ मंत्री बर्खास्त, नौ के विभाग छिने

29.10.2015 ka faisla
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बड़ी सर्जरी में चली अखिलेश की
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-सरकार की छवि सुधारने के साथ मिशन-2017 की कमान युवा हाथों में सौंपने की कवायद
-विवादित मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से सवाल भी
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परवेज अहमद, लखनऊ :
मंत्रिमंडल की 'मेजर सर्जरीÓ सरकार की छवि सुधारने का प्रयास है या मिशन-2017 की पूरी कमान युवा हाथों में सौंपने की रणनीति? इस निर्णय को इन्ही सवालों के इर्द-गिर्द परिभाषित किया जा रहा है। इस आपरेशन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छाप महसूस की जा रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सर्जरी से रोग का निदान हो पाया है।
आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी ने यह तो साफ कर दिया कि खुद को सत्ता के करीबी समझने वाले ये मंत्री हकीकत में मुख्यमंत्री की कसौटी पर खरे नहीं थे। विकास की माडर्न नीति-रीति में भी युवा मुख्यमंत्री के साथ कदम ताल में वे पिछड़ रहे थे। ऊपर से तोहमतें भी कम नहीं थी। इनमें से कुछ की दलीय निष्ठाएं भी सवालों के सलीब पर थीं। ये लोग 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे। हालांकि ये लोग सपा मुखिया मुलायम सिंह के करीबियों में शुमार थे, मगर मुख्यमंत्री की मंशा को भांपकर पार्टी नेतृत्व ने 'वीटोÓ के जरिए इनकी विदाई रोकने का प्रयास नहीं किया। इससे पार्टी में भी अब 'युवा युगÓ का आगाज हो जाने का संदेश निकल रहा है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में भारी उलटफेर में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मंशा पूरी तरह से प्रभावी रही वरना कम से कम तीन मंत्रियों का विभाग वापस नहीं लिए जाते।
उधर पार्टी के अंदर यह चर्चा भी आम है कि जब छवि सुधारने के अलावा विकास की रफ्तार तेज करने की मंशा से फेरबदल हुआ तो भ्रष्टाचार, दबंगई के जरिये सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी कराने वाले मंत्री किसके 'वीटोÓ पर कार्रवाई की जद से बच गए? अवध क्षेत्र के एक मंत्री पर अक्सर दबंगई का इल्जाम लगता है तो तराई क्षेत्र के एक मंत्री पत्रकार को जलाने के मामले में फंसे जिससे सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। एक अन्य मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोपों का शोर है, बावजूद इनकी ओर आंच नहीं जाने को लेकर सवाल उठ रहा है।
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-मंत्रियों से हटाए गए विभाग अब मुख्यमंत्री के पास
-रिक्त पदों पर नए मंत्रियों को राज्यपाल 31 को दिलाएंगे शपथ
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 लखनऊ : आखिरकार सरकार सख्त हुई। इमेज सुधार की कोशिशों, गैर वफादारी और 2017 के चुनाव के दबाव में गुरुवार को किये गए एक बड़े फैसले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आठ मंत्रियों को बर्खास्त करने के साथ ही नौ मंत्रियों के विभाग छीन लिए।  बर्खास्त होने वालों में पांच कैबिनेट, स्वतंत्र प्रभार के एक और दो राज्यमंत्री हैं। रिक्त पदों पर नए मंत्रियों को 31 अक्टूबर की सुबह 10.30 बजे राज्यपाल शपथ दिलाएंगे। मुख्यमंत्री के पास अब रिकार्ड 89 विभाग हो गए हैं।
साढ़े तीन साल पुरानी सरकार में यूं तो मंत्री पहले भी बर्खास्त हुए पर पहली बार इतना कड़ा कदम उठाया गया। मुख्यमंत्री ने बुधवार को एक साथ आठ मंत्रियों को बर्खास्त करने और नौ के विभाग हटाने की सिफारिश राज्यपाल से की थी। गुरुवार सुबह उस पर मुहर लगाते हुए राज्यपाल ने आदेश जारी कर दिए। 31 अक्टूबर को नए मंत्रियों को शपथ दिलाने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। सूत्रों का कहना है रिक्त पदों पर युवा चेहरों को मौका मिलने की संभावना अधिक है। जिन मंत्रियों से विभाग छीने गए हैं, उन्हें नए मंत्रियों के शपथ ग्र्रहण के बाद दूसरे विभागों में समायोजित किया जाएगा। इनमें कुछ का कद बढ़ेगा लेकिन कुछ का घटेगा भी। 14 जून को हुए फेरबदल में जिन मंत्रियों के साथ नाइंसाफी की चर्चा ने जोर पकड़ा था, उन्हें पहले की तुलना में बेहतर विभाग दिए जा सकते हैं।
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पहले भी बर्खास्त हुए मंत्री
अखिलेश यादव पहले भी अपने कई मंत्रियों को बर्खास्त कर चुके हैं। शुरुआत अप्रैल 2013 में तत्कालीन खादी एवं ग्र्रामोद्योग मंत्री (अब स्वर्गीय) राजाराम पाण्डेय की बर्खास्तगी से हुई थी, जिन पर एक महिला आइएएस अधिकारी पर अशोभनीय टिप्पणी करने का इल्जाम लगा था। मार्च 2014 में मंत्री मनोज पारस और कृषि मंत्री आनंद सिंह बर्खास्त हुए। सिंह पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का इल्जाम था। लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ने मनोरंजन कर राज्यमंत्री पवन पाण्डेय को बर्खास्त किया। पाण्डेय पर फैजाबाद में अवैध खनन रोकने गए एक आइपीएस अधिकारी के साथ अभद्रता का इल्जाम लगा था।
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बर्खास्त मंत्री
-राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह-मंत्री, स्टाम्प तथा न्याय शुल्क पंजीयन व नागरिक सुरक्षा
- अंबिका चौधरी-मंत्री, पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं विकलांग कल्याण
-शिव कुमार बेरिया-मंत्री, वस्त्र उद्योग एवं रेशम उद्योग
- नारद राय-मंत्री, खादी एवं ग्रामोद्योग
- शिवाकान्त ओझा- मंत्री, प्राविधिक शिक्षा
- आलोक कुमार शाक्य-राज्यमंत्री, प्राविधिक शिक्षा
- योगेश प्रताप- राज्यमंत्री, बेसिक शिक्षा
-भगवत शरण गंगवार-राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन
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मंत्री जिनके छिने विभाग
-अहमद हसन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण मातृ एवं शिशु कल्याण
-अवधेश प्रसाद, समाज कल्याण अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण सैनिक कल्याण
-पारस नाथ यादव, उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण,
- राम गोविंद चौधरी, बेसिक शिक्षा
- दुर्गा प्रसाद यादव, परिवहन
- ब्रह्मïा शंकर त्रिपाठी, होमगाड्र्स प्रांतीय रक्षक दल
- रघुराज प्रताप सिंह, खाद्य एवं रसद
- इकलाब महमूद, मत्स्य, सार्वजनिक उद्यम
-महबूब अली, माध्यमिक शिक्षा
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निपटाते समय न देखी निकटता
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-बर्खास्तगी की जद में अगड़े, पिछड़े व दलित
-केवल मुस्लिमों पर मुख्यमंत्री रहे मेहरबान
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लखनऊ
बात जब निपटाने की आई तो कोई निकटता काम न आई। निकटता पुरानी थी, इलाकाई थी या फिर सजातीय, नतीजा एक ही रहा। बर्खास्तगी में संतुलन रखा गया और इसमें अगड़े, पिछड़े व दलित सभी शामिल थे। अलबत्ता मुस्लिमों पर मेहरबानी कायम रही और किसी को भी बर्खास्त नहीं होना पड़ा।
सबसे पहले बात बलिया के अंबिका चौधरी की जिन्हें 2012 के विधान सभा चुनाव में पराजित होने के बावजूद विधान परिषद भेजा गया और पहले राजस्व मंत्री और फिर विभाग बदलकर पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया। लोकदल का बंटवारा हुआ तो कुछ दिन चौधरी अजित सिंह के साथ रहने के बाद अंबिका चौधरी अपने सजातीय मुलायम सिंह यादव के साथ आ गए और धीरे-धीरे पायदान चढ़ते गए। सपा विपक्ष में थी तो विधान मंडल दल के मुख्य सचेतक रहे लेकिन बर्खास्तगी को लेकर उन्हें कोई सचेत नहीं कर सका।
अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले कानपुर देहात की रसूलाबाद सीट के विधायक शिव कुमार बेरिया भी सपा के पुराने सिपहसालार थे और पांच बार विधायक बनने के बाद पहली बार मंत्री बने थे। वह अखिलेश मंत्रिमंडल के अनुसूचित जाति के दो कैबिनेट मंत्रियों में थे लेकिन सरकार के पूरे कार्यकाल तक मंत्री नहीं बने रह सके।
बलिया के ही नारद राय छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा की अंगुली पकड़ कर राजनीति में आए थे और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहे। इस बार कद बढ़ा तो कैबिनेट मंत्री बने लेकिन बर्खास्तगी का अनुमान नहीं लगा सके। भाजपा से तीन बार विधायक व मंत्री रहने के बद शिवाकांत ओझा ने समाजवादी चोला पहन कर प्रतापगढ़ की रानीगंज सीट से चुनाव जीता व लगभग एक साल पहले 'टेक्निकल एजुकेशनÓ मंत्री बने लेकिन मंत्री की कुर्सी बचाने की 'टेक्निकÓ नहीं सीख सके।
सपा प्रमुख के प्रभाव क्षेत्र मैनपुरी की भोगांव सीट के विधायक आलोक शाक्य के पिता राम औतार शाक्य भी मुलायम सिंह यादव के सहयोगी थे और विधायक भी रहे। जातीय संतुलन साधने के लिहाज से सपा प्रमुख शाक्य बिरादरी का समायोजन करते रहे थे लेकिन ये फैक्टर भी उन्हें बचा नहीं सके। बसपा से विधायक बन सपा में आए व राज्य मंत्री बने गोंडा की करनैलगंज सीट के विधायक योगेश प्रताप सिंह सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव से सटने का कोई मौका नहीं चूकते थे लेकिन पता नहीं कौन सी चूक हुई कि कुर्सी चली गई।
बरेली की नवाबगंज सीट से पांचवी बार विधायक बने स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री भगवत शरण गंगवार मुलायम सिंह सरकार में भी राज्य मंत्री रहे चुके थे। यह देखना होगा कि सुर्खियों से दूर रहने वाले गंगवार को मंत्री पद गंवाने के बाद किसकी शरण में जाना पड़ता है।
...और आखिर में बात राजा भदावर के नाम से जाने वाले राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह की जो छठी बार आगरा की बाह सीट से विधायक हैं। मुलायम सिंह के साथ जनता दल में भी रहे। उनके पिता रिपुदमन सिंह भी कई बार विधायक व मंत्री रहे। कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह व मायावती सरकार में मंत्री रहे अरिदमन सिंह पहली बार समाजवादी सरकार में मंत्री बने थे लेकिन उनके साथ वह हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ। उन्हें बर्खास्त होना पड़ा।
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-अब मंत्री बनने को लामबंदी तेज
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-खुद को दावेदार मान रहे विधायक, विधान परिषद सदस्य लाबिंग में जुटे
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लखनऊ : अखिलेश यादव के छवि सुधार अभियान के अगले चरण में अब सबकी निगाह मंत्रिमंडल में रिक्त 13 स्थानों पर लगी है। इनमें से कितने पर नए चेहरे शामिल होंगे, किसे तरक्की मिलेगी? यह कयास दिनभर लगते रहे और खुद को दावेदार मान रहे विधायक, विधान परिषद सदस्य अपने पक्ष में लाबिंग करने में भी जुटे रहे।
मिशन 2017 के मद्देनजर अपनी नई टीम तैयार कर रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए क्षेत्रीय व जातिगत संतुलन साधने की असल चुनौती होगी। जाहिर है युवाओं व महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दे कर अखिलेश वर्ष 2012 के इतिहास को दोहराना चाहेंगे। महिला कोटे में रश्मि आर्य, शादाब फातिमा, गजाला लारी के साथ डॉ.मधु गुप्ता के नाम मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने वालों बताया जा रहा है। सुलतानपुर सदर के अरुण वर्मा को मंत्री बनाकर नेतृत्व जिले में मिले अभूतपूर्व समर्थन की संतुष्टि के साथ कुर्मी कोटा भी पूरा कर सकता है। पिछड़ों को साधे रखने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीब रहे शारदानंद अंचल के पुत्र जयप्रकाश को मौका मिलने की आस भी जतायी जा रही है, वहीं वरिष्ठ नेता अशोक वाजपेयी को भी मंत्रिमंडल में जगह देकर सदन के भीतर व बाहर का समीकरण बनाने का दांव भी चला जा सकता है। एमएलसी राम जतन राजभर, गढ़मुक्तेश्वर से मदन चौहान, जौनपुर ललई यादव, उन्नाव जिले के उदय राज को भी मंत्री पद मिलने की समर्थक उम्मीद लगाए हैं।
पश्चिम में गुर्जर कोटे से रामसकल गुर्जर की प्रोन्नत करने की चर्चा है तो वीरेंद्र सिंह जैसे बड़े नाम की अनदेखी करना भी आसान न होगा। एमएलसी आशु मलिक की पार्टी के लिए बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए उनका दावा मजबूत बनता है तो बागपत में रालोद की काट के लिए सिवालखास क्षेत्र से गुलाम मोहम्मद को लाभ मिल सकता है। पार्टी महासचिव व ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरविंद सिंह गोप को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री जाने की पूरी संभावना है। सपा सूत्रों का कहना है कि मंत्री पद हासिल करने के लिए लाबिंग कर रहे विधायक गुरुवार की देर रात बड़े-बड़े बंगलों के चक्कर काटते रहे। इसके अलावा मनोज पारस और पवन पाण्डेय को फिर से मंत्री बनाया जा सकता है।
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...और मुलायम कार्यकर्ताओं से मिलते रहे
आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी, कई मंत्रियों से विभाग छीने जाने की हलचल के बीच सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने गुरुवार को कार्यकर्ताओं, विधायकों और बिना विभाग के एक मंत्री से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को अभी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का आह्वïान किया और कहा कि युवाओं की मेहनत से फिर सरकार बनेगी। मंत्रिमंडल में फेरबदल की सूची राज्यपाल को भेजने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उड़ीसा के लिए रवाना हो गए और दूसरे प्रभावशाली मंत्री शिवपाल यादव ने दिल्ली की उड़ान भर ली। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पार्टी के प्रदेश कार्यालय पहुंचे जहां वह दिनभर कार्यकर्ताओं विधायकों से मिलते रहे। दोपहर बाद माध्यमिक शिक्षा विभाग वापस लिये जाने से बिना विभाग के मंत्री बने महबूब अली सपा मुखिया से मिलने पहुंचे, थोड़ी देर बाद वापस आ गए। पार्टी सूत्रों का कहना है मुलायम ने मुलाकात करने वाले कार्यकर्ताओं को अभी चुनाव की तैयारी में जुटने को कहा है। उन्होंने कहा कि पार्टी युवा वर्ग को पूरा महत्व दे रही है। उनकी मेहनत से ही फिर सरकार बनेगी। कुछ लोगों से उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार दर्द भी बयान किया।
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Tuesday 27 October 2015

आधा दर्जन मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया

17.09.2015 को हुआ था फेरबदल

लोकसभा चुनावों में हार के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जून में एक राज्यमंत्री को बर्खास्त करते हुए आधा दर्जन मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया था मगर क्षेत्रीय व जातीय समीकरण दुरुस्त नहीं हो पाया था, लिहाजा कुछ दिन बाद ही नए सिरे मंत्रिमंडल में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई। समाजवादी परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मंत्री शिवपाल यादव, प्रो.राम गोपाल यादव के साथ मंत्रिमंडल में फेरबदल पर चर्चा की और खराब कामकाज वाले मंत्रियों के हटाने के संकेत भी दिए। कई बार मिले इन संकेतों का कोई नतीजा सामने नहीं आया।
अब सोमवार को फिर विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रो.राम गोपाल यादव के बीच बैठक हुई। थोड़ी ही देर चली इस बैठक में राज्यपाल के बयानों से सरकार की किरकिरी, कानून व्यवस्था की हालत, मंत्रिमंडल में फेरबदल, नामित कोटे की पांच एमएलसी सीटों के लिए राजभवन से नये सिरे से मांगे गए नामों पर चर्चा के अलावा जनवरी में रिक्त होने वाली निकाय कोटे की 36 सीटों के प्रत्याशियों को लेकर भी चर्चा हुई। तय किया गया कि जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित कर दिये जाएं। इस बैठक  के तुरंत बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली रवाना हो गए और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री आवास चले गए। प्रो.राम गोपाल ने जरूर इतना कहा कि 'वह व्यक्तिगत रूप से मंत्रिमंडल में नये चेहरे देखना चाहते हैं मगर इस पर फैसला लेने का अधिकार मुख्यमंत्री का है। वही इस पर कोई निर्णय लेंगे।Ó प्रो.राम गोपाल यादव ने यह भी कहा मंत्रिमंडल में बदलाव हो सकता है, नहीं भी हो सकता है। कयासों को हवा देने वाले इसबयान से संकेत तो मिल ही रहा है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर समाजवादी परिवार 'एक रायÓ नहीं बना पायी है लेकिन मिशन-2017 की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले मंत्रिमंडल विस्तार व बदलाव होगा ही।
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सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इस बैठक के बाद मंत्रियों के सामूहिक इस्तीफे लिए जा सकते हैं। साथ ही अखिलेश यादव अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल भी कर सकते हैं। हालांकि ऐसा कोई ठोस फैसले नहीं किया जा सका। प्रदेश सरकार के सभी  कैबिनेट मंत्री , स्वतंत्र प्रभार राÓयमंत्री भी बैठक में मौजूद रहे।
 चनावी हार की वजह से उठाया कदम
लोकसभा चुनावों में शिकस्त के बाद प्रदेश की सत्तारूढ़ सपा सरकार में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे थे। उम्मीद की जा रही थी यह बदलाव न केवल मंत्रिमंडल में होंगे बल्कि संगठनात्मक ढांचे में भी फेरबदल कि?ए जाएंगे। शुक्रवार को सीएम अखि?लेश की यूपी के गवर्नर से मुलाकात और शनिवार को सपा सुप्रीमो के निवास पर हुई बैठक के बाद यह तय माना जा रहा था। सपा सुप्रीमो के निवास पर शनि?वार को हुई बैठक में सीएम अखिलेश और शिवपाल यादव सहित सरकार के कुछ विश्वासपात्र अधिकारी भी शामिल थे। माना जा रहा है इस बैठक में मंत्रिमंडल में परिवर्तन और विस्तार को लेकर चर्चा हुई। अब इसे रवि?वार को अमलीजामा पहनाया जा सकता है।
 बीते तीन हफ्तों से यूपी के सीएम अखि?लेश लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद डैमेज कंट्रोल में लगे हैं। अभी तक जो भी फेरबदल हुए हैं वे ब्यूरोक्रेसी तक सीमित थे। इस बड़े फेरबदल में 150 से अधिक आईएएस, आईपीएस, पीसीएस और पीपीएस अधिकारी शामिल थे। इसके बाद अब मंत्रिमंडल में फेरबदल की तैयारी है। इस फेरबदल में कई मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इसी के साथ चुनावों के ठीक पहले हटाए गए मनोज पारस और आनंद सिंह को दोबारा मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।
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अखिलेश यादव भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हों लेकिन नेताजी जिस अंदाज मे अखिलेश सरकार की ओवर हालिंग कराने के लिये लगातार बोल रहे है उससे ऐसा लगने लगा है कि नेता जी ने सरकार की कमान अपने हाथ मे ले रखी है। पिछले करीब 2 माह से वे लगातार अफसरों और मंत्रियों की लगाम टाइट करने की ताकीद देते देते मुलायम सिंह यादव लगता है अब थक चुके है इसलिए अब उन्होंने अखिलेश सरकार को दुरुस्त करने का खाका तैयार कर लिया है। बुधवार को उनके रुख से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक अमले मे हड़कंप मच गया है।
अब मुलायम सिंह यादव सिर्फ अफसरों तक ही सीमित नही रहे, उन्होने अखिलेश के मंत्रियो को भी बुरी तरह से आड़े हाथों लिया है और सपा के पुख्ता सूत्रों का दावा है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से कम से कम दस मंत्रियो को पद मुक्त करने का फरमान जारी किया है।
उत्तर प्रदेश में दो जिलों के एसएसपी और डीएम को छोड करके पूरे प्रदेश के पुलिस प्रमुख और जिला प्रमुख सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पैमाने पर खरे नही उतर रहे है इसलिये उन्होने अपने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव से सभी को हटाने के लिये संकेतिक तौर पर कह दिया है। मुलायम सिंह यादव के इस बयान को लेकर कई मायने लगाये जा रहे है कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव काफी दिनो से अखिलेश सरकार के मंत्रियो और अफसरो से खासे नाखुस है पहले अफसरो और उसके बाद मंत्रियो की आयेगी बारी ऐसा माना जा रहा है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव ने आज यहां कहा कि प्रदेश के विकास की गाड़ी पिछले पांच साल में पटरी से उतर गई थी। बसपा राज में प्रदेश में जबरर्दस्त लूट हुई। विकास के काम ठप्प रहे। बिजली की एक यूनिट नहीं लगी। ऐसी मुख्यमंत्री थी जो मंत्री-विधायकों तक से नहीं मिलती थी, आम आदमी की तो बात ही बेकार है। समाजवादी पार्टी सरकार हालात बदल रही है। पांच साल के कई वायदे 10 माह के अन्दर पूरे हो गए हैं।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पार्टी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर एकजुट सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि अब आम आदमी को अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिल रहा है। किसानों का 50 हजार तक का कर्ज माफ है। सरकारी ट्यूबवेल और नहरों से सिंचाई का मुफ्त पानी दिया जा रहा है। कन्या विद्याधन और बेकारी भत्ता दिया गया है। लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को पेंशन मिलेगी। मुस्लिम लड़कियो को, जो हाईस्कूल पास हैं, &0 हजार रूपए आगे की पढ़ाई और शादी के लिए दिए जा रहे हैं। उर्दू को रोजी रोटी से जोड़कर मुस्लिमों को नौकरियों में अवसर दिए जा रहे हैं। इन सबकी नकल अब दूसरे प्रदेशों की सरकारें कर रही हैं।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शासनादेश सन् 2005 में जारी किया गया था। वर्ष 2007 में बसपा की सरकार बनने पर इन जातियों को मिल रही तमाम सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। अब 16 फरवरी,201& को इन जातियों का सम्मेलन बुलाया गया हैं। उन्होने कहा कि दलितों की छोटी जातियों की कहीं पूछ नहीं होती थी। समाजवादी पार्टी ने उनकी पहचान बनाई। छोटी जाति के नेताओं को विधायक तथा दूसरे पद देकर सम्मानित किया गया।
यादव ने माना कि पिछली बसपा संस्कृति के प्रदूषण से बहुत से अफसर बेलगाम हो गए थे। उनकी आदतें बिगड़ी हुई थी। धीरे-धीरे अब इनमे बदलाव भी हो रहा है। भ्रष्टाचार पर रोक लगी हैं। अधिकारी डरने लगे हैं। मुख्यमंत्री के लिए सुझाव है कि वे कुछ बड़े अधिकारियों के दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्यवाही करें। साथ ही उन्होने कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं को भी ताकीद दी कि वे अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग में रूचि न लें। उन्होने कहा उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है। इसलिए एक बार ब्यूरोक्रेसी की ओवर हालिंग होनी चाहिए। कार्यकर्ता अधिकारियों की चापलूसी करने से बचें। श्री यादव ने सलाह दी कि पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार की उपलब्धियों की ठीक से जानकारी लेकर जनता के बीच उनको प्रचारित प्रसारित करना चाहिए। कार्यकर्ताओं को अपने सभी लोकसभा प्रत्याशियों को जिताना चाहिए ताकि सन् 2014 में दिल्ली में समाजवादी पार्टी के निर्णायक हस्तक्षेप की स्थिति बन सके।

Wednesday 21 October 2015

राजभवन भेजे गए नौ नाम

लखनऊ. यूपी के गवर्नर राम नाइक ने राज्य सरकार द्वारा भेजे गए एमएलसी के नौ नामों की लिस्ट में से चार नामों पर अपनी सहमति दे दी है। वहीं, पांच अन्य नामों को वापस लौटा दिया है। गवर्नर ने एसआरएस यादव, लीलावती कुशवाहा, रामवृक्ष यादव और जीतेंद्र यादव एमएलसी के लिए नामित किया है। 
 
बता दें कि जितेंद्र यादव, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के संबंधी हैं। विधान परिषद में बीते 25 मई से एमएलसी की नौ सीटें खाली हैं। इन सीटों के लिए राज्य सरकार की ओर से राजभवन भेजे गए नौ नामों पर राज्यपाल आपत्ति जता चुके थे। गुरुवार को राजभवन के बुलावे पर सीएम अखि‍लेश यादव ने राज्‍यपाल राम नाइक से मिलने पहुंचे थे।
 
पांच नामों से राज्यपाल हैं असहमत
राज्‍यपाल ने सीएम अखिलेश को बताया कि सूची में शामि‍ल पांच नाम रोक लि‍ए गए हैं। इ‍नमें डॉ. कमलेश कुमार पाठक, संजय सेठ, रणविजय सिंह, अब्दुल सरफराज खां और डॉ. राजपाल कश्यप का नाम शामि‍ल है। इन लोगों की ओर से अपने पक्ष में शपथ पत्र भी राजभवन को सीएम के जरि‍ए उपलब्‍ध कराया गया था, लेकि‍न राजभवन को मि‍ली शि‍कायतों के आधार पर सभी के नाम रोक लि‍ए गए। मुलाकात के दौरान राज्‍यपाल ने रोके गए नामों को लेकर प्राप्‍त शि‍कायतों की जांच कराकर सीएम से आख्‍या भेजने को कहा है।

राजभवन ने राज्य सरकार से पूछे तीन सवाल
साहि‍त्‍य, कला, संस्‍कृति के जरि‍ए पहचान बनाने वाले लोगों की बजाए सरकार की तरफ से नौ सदस्‍यों की भेजी गई सूची में सभी नाम राजनीति‍क पृष्‍ठभूमि से हैं। ऐसे में नि‍यमावली के मुताबिक, राजभवन की तरफ से इन सभी नामों का परीक्षण कराया जा चुका है। पत्रावली के परीक्षण के बाद राजभवन ने सरकार से तीन बिंदुओं पर जवाब मांगा था। राजभवन से पूछे गए सवाल में सबसे पहले यह जानकारी मांगी गई है कि जो नाम मनोनयन को लेकर भेजे गए हैं, उनमें कि‍तने नाम लेखन, साहि‍त्‍य, कला, संस्‍कृति की पृष्‍ठभूमि से ताल्‍लुक रखते हैं। 
 
दूसरे सवाल में कि‍तने ऐसे नाम हैं, जि‍न पर मुकदमे या आपराधि‍क केस चल रहे हैं? कहीं इनमें से कि‍सी को पूर्व में कोर्ट से सजा तो नहीं हुई है। तीसरे सवाल में सूची में कि‍तने ऐसे नाम है, जि‍न्‍होंने बैंक से लोन लि‍या है? क्या उनको डि‍फॉल्‍टर घोषि‍त कर दि‍या गया है? राजभवन के इस तरह के सवाल पूछने के बाद फ्रांस दौरे से लौटकर सीएम अखि‍लेश यादव ने शपथपत्र के साथ सूची दी थी।

Sunday 18 October 2015

पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार


लेखक का नामकिस भाषा के साहित्यकार
मुनव्वर राणाउर्दू
काशीनाथ सिंहहिंदी
उदय प्रकाशहिंदी
नयनतारा सहगलअंग्रेजी
अशोक वाजपेयीहिंदी
साराह जोसेफमलयालम
गुलाम नबी ख्यालकश्मीरी
रहमान अब्बासउर्दू
वरयाम संधूपंजाबी
गुरबचन सिंह भुल्लरपंजाबी
अजमेर सिंह औलखपंजाबी
जी.एन. रंगनाथ रावकन्नड़
मंगलेश डबरालहिंदी
राजेश जोशीहिंदी
गणेश देवीगुजराती
श्रीनाथ डी.एन.कन्नड़
के. वीरभद्रप्पाकन्नड़
रहमत तारीकेरीकन्नड़
बल्देव सिंहपंजाबी
जसविंदरपंजाबी
दर्शन भट्टरपंजाबी
सुरजीत पाटरपंजाबी
चमन लालपंजाबी
होमेन बोरगोहेनअसमिया
मंदाक्रांत सेनबांग्ला
के.एन. दारूवालाअंग्रेजी
नंद भारद्वाजराजस्थानी
के. नीलाकन्नड़
काशीनाथ अंबाल्गीकन्नड़
किन लेखकों ने दिया साहित्य अकादमी से इस्तीफा
साहित्यकार का नामभाषा
शशि देशपांडेकन्नड़
के. सदचिदानंदनमलयालम
पी.के. पाराकाड्डवमलयालम
अरविंद मालागट्टीकन्नड़