Thursday 2 May 2024

भारतीय कारपोरेट को भाये परदे

लखनऊ। देश बदल रहा है। उद्योगपतियों का अंदाज बदल रहा है। भारतीय उद्योगपति विदेशों में हजारों करोड़ का निवेश कर रहे हैं। आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूके सिंगापुर उनकी पसंद बन रहे हैं। यह ट्रेंड कुछ भारतीयों को गर्व से भर सकता है। मगर स्याह पहलू यह है कि निवेश के रूप में जितनी पूंजी भारत से बाहर जा रही है, उस तुलना में निवेश आ नहीं रहा है। इससे आर्थिक नीतियों पर ढेरों सवाल उठ रहे हैं। अलबत्ता, केन्द्रीय, सूबाई हुकूमतें विदेशी निवेशकों को रिझाने में करोड़ों रुपये फूंक रही हैं। आंकड़े गवाह हैं कि भारतीय उद्योगपतियों के विदेशी निवेश के प्रस्तावों में 77 से 78 फीसद का इजाफा हुआ है। यही नहीं, देश के ढेरों उद्योगपतियों ने 'अपनी फेमिली' दूसरे देशों में शिफ्ट करनी शुरू कर दी है। अगर थोड़ा कठोर शब्दों में कहें तो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में यह सिलसिला दो दशक पहले शुरू हुआ था, क्या हम उसी राह पर हैं ?

वैसे भी यह राष्ट्रवाद का नहीं, मुनाफा कमाने का मामला है। इसलिए देश के उद्योगपतियों ने विदेशी धरती की ओर रुख कर लिया है। गत अप्रैल से फरवरी तक के रिजर्व बैंक के आंकड़ें कहते हैं कि विभिन्न देशों में निवेश के लिए भारतीय उद्योगपतियों के प्रस्तावों में तकरीबन 78 फीसद बढ़ोत्तरी हुई है। यह निवेश भारतीय कंपनियों और तकनीकी रूप से रजिस्टर्ड पार्टनरशिप फर्मो के जरिये किया गया है। सूत्रों का कहना है कि इस अवधि में देसी कारोबारियों ने 2830 प्रस्ताव सौंपे। जिनके जरिए 1635.20 करोड़ डॉलर का निवेश किया। सूत्रों का कहना है कि गुजरे कुछ सालों के दौरान कारोबार में भी मोनोपॉली का दौर चल पड़ा है। ऐसे में मझोले उद्योगपतियों ने विदेशी निवेश बढ़ाने का फैसला किया है। कारोबार जगत के सूत्रों पर भरोसा करें तो दिल्ली, मुंबई, गुजरात, कर्नाटक के दो सौ से अधिक मझोले कारोबारियों ने यूके, आस्ट्रेलिया, कनाडा में कारोबारी ठौर बनाना शुरू कर दिया है। कुछ ने फेमिली भी शिफ्ट करनी शुरू कर दी है। सूत्रों का कहना  है कि इस पीछे नौकरशाही की अडंगेबाजी बड़ी वजह है। बिजली, पानी कनेक्शन से लेकर पर्यावरण क्लीयरिंग तक में खड़ी की जाने वाली दुश्वारियां मझोले कारोबारियों को विदेशी धरती पर निवेश को प्रेरित कर रही हैं। कथित रूप से बीमारू कहे जाने वाला उत्तर प्रदेश की नजर से देखें तो यहां के भी कई बड़े कारोबारी घरानों ने कनाडा, आस्ट्रेलिया में पैर जमा लिया है। दक्षिण अफ्रीका में भी यहां कारोबारी माइन्स के क्षेत्र में निवेश कर रहे हैं। जबकि सूबे की सरकार निवेश लाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके समिट आयोजित  कर रही है। कारोबार समेट रहे एक व्यापारी का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तमाम प्रयासों के बाद भी सिंगल बिन्डो सिस्टम धरातल पर नहीं उतरा। 150 वॉट का बिजली कनेक्शन लेने के लिए तीन माह से इंजीनियर इधर से उधर दौड़ा रहे हैं। घूस की मांग हो रही है। वह कहते हैं कि हम छोटे व्यापारी हैं, इसलिए दूसरे राज्य में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं, जिनके पास बड़ी पूंजी कै वे विदेश का रुख करते हैं। सिंगापुर, आस्ट्रेलिया ऐसी जगह हैं जहां पेपर तैयार होते ही क्लियिरिंग मिलती है।

Wednesday 1 May 2024

पूर्व मेरे बेटे की हत्या थाना

 



सेवा में,

आदरणीय मुख्यमंत्री जी,

उत्तर प्रदेश शासन

लखनऊ।


विषयःविगत लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व मेरे बेटे की हत्या थाना कृश्णानगर लखनऊ में हुई थी, जिसका मुकदमा सं0 452/2015

     धारा 302 आईपीसी दर्ज है, की समयबद्ध पुलिस की जिम्मेदार एजेंसी से जांच कराए जाने के सम्बन्ध में।


आदरणीय महोदय,

निवेदन है कि प्रार्थी दल सिंगार के इकलौते बेटे स्व0 श्री अखिलेश कुमार की हत्या कर उसके षव को पुलिस चैकी विजय नगर थाना कृश्णानगर लखनऊ स्थित रेलवे ट्रैक पर दिनांक 19.12.2015 केा फेंक दिया गया था। काफी दौड़-भाग के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी लेकिन आज तक दोशियों केा कोई भी सजा नहीं मिल पायी है। 

थाना कृश्णानगर में काफी दौड़ भाग करने के बाद मैंने लखनऊ की एसएसपी महोदया से 13जून 2016 को उपरोक्त जांच को क्राइम ब्रांच से कराने का आग्रह किया था। लेकिन जब तक क्राइम ब्रान्च से जांच हो पाती इसके पूर्व ही माननीय सीजेएम साहब के न्यायालय में चार्जषीट दाखिल कर दी गयी थी।

मैंने माननीय सीजेएम न्यायालय में प्रार्थनापत्र देकर पुलिस द्वारा बरती गयी लापरवाही की चर्चा करते हुए पुनः जांच कराने का आग्रह किया था जिसको मानते हुए माननीय न्यायालय द्वारा 7फरवरी 2017 को पुनः पुलिस द्वारा जांच कराये जाने के आदेष पारित किए जिसके परिप्रेक्ष्य में मैंने ज्येश्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया लखनऊ से 27फरवरी 2017 को पुनः क्राइम ब्रान्च से जांच कराने का आग्रह किया। जिसको उन्होने मानते हुए आदेश पारित कर दिये जिसके तहत श्री मोहन लाल वर्मा जी विवेचक क्राइम ब्रान्च को जांच सौंप दी गयी।

महोदय, मुझे आपसे यह आग्रह करना है कि मेरा दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है। एक तरफ दिसम्बर 2015 में मेरे बेटे की हत्या कर दी जाती है जो केस आज तक नहीं थाना कृश्णानगर लखनऊ द्वारा नहीं खोला गया है दूसरी तरफ माननीय एसएसपी महेादया लखनऊ 27फरवरी 2017 केा पुनः जांच क्राइम ब्रान्च को सौंपे जाने पर यह बात सामने आयी कि जब मेरे बेटे की हत्या हुई थी उस समय जो चैकी इंचार्ज विजय नगर थाना कृश्णानगर लखनऊ थे वह आज क्राइम ब्रान्च के प्रभारी हैं तथा जो उस समय थाना इंचार्ज कृश्णानगर थे वह आज क्राइम ब्रान्च में ही विवेचक के पद पर तैनात हैं। 

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन थाना इंचार्ज एवं चैकी इंचार्ज की लापरवाही के कारण ही आज तक केस नहीं खुल पाया है जिनके खिलाफ मैंने एसएसपी महोदया से आग्रह कराकर केस क्राइम ब्रान्च ट्रान्सफर कराया था आज उन्हीं लोगों के इस ब्रान्च में तैनात होने से मुझे न्याय नहीं मिल पायेगा न ही मेरे बेटे की हत्या में शामिल अपराधियों को सजा हो पायेगी। 

मेरा आपसे सादर अनुरोध है कि लखनऊ पुलिस केा आदेशित कर पुलिस की किसी सक्षम एजेंसी से समयबद्ध जांच कराकर मेरे बेटे की हत्या में षामिल मुल्जिमों केा कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का कष्ट करंे।

मैं आपका आभारी रहूँगा।

सादर,

प्रार्थी,

दिनांकः-4.04.2017

    दल सिंगार पुत्र श्री हरीराम षर्मा

563ख/10, मंगलखेड़ा, आलमबाग

     लखनऊ

      फोन- 93899004484






सेवा में,

श्रीमान ज्येश्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया,

लखनऊ।


विषयःविगत लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व मेरे बेटे की हत्या थाना कृश्णानगर लखनऊ में हुई थी, जिसका मुकदमा सं0 452/2015 धारा 302 आईपीसी दर्ज है, की समयबद्ध पुलिस की जिम्मेदार एजेंसी से जांच कराए जाने के सम्बन्ध में।


आदरणीय महोदया,

निवेदन है कि प्रार्थी दल सिंगार के इकलौते बेटे स्व0 श्री अखिलेश कुमार की हत्या कर उसके षव को पुलिस चैकी विजय नगर थाना कृश्णानगर लखनऊ स्थित रेलवे ट्रैक पर दिनांक 19.12.2015 केा फेंक दिया गया था। काफी दौड़-भाग के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी लेकिन आज तक दोशियों केा कोई भी सजा नहीं मिल पायी है। 

थाना कृश्णानगर में काफी दौड़ भाग करने के बाद मैंने आपसे 13जून 2016 को मिलकर उपरोक्त जांच को क्राइम ब्रांच से कराने का आग्रह किया था। लेकिन जब तक क्राइम ब्रान्च से जांच हो पाती इसके पूर्व ही माननीय सीजेएम साहब के न्यायालय में चार्जषीट दाखिल कर दी गयी थी।

मैंने माननीय सीजेएम न्यायालय में प्रार्थनापत्र देकर पुलिस द्वारा बरती गयी लापरवाही की चर्चा करते हुए पुनः जांच कराने का आग्रह किया था जिसको मानते हुए माननीय न्यायालय द्वारा 7फरवरी 2017 को पुनः पुलिस द्वारा जांच कराये जाने के आदेष पारित किए जिसके परिप्रेक्ष्य में मैंने आपसे 27फरवरी 2017 को पुनः क्राइम ब्रान्च से जांच कराने का आग्रह किया। जिसको मानते हुए आपने आदेश पारित कर दिये जिसके तहत श्री मोहन लाल वर्मा जी विवेचक क्राइम ब्रान्च को जांच सौंप दी गयी।

महोदया, मुझे आपसे यह आग्रह करना है कि ऐसा लगता है कि मेरा दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है। एक तरफ दिसम्बर 2015 में मेरे बेटे की हत्या कर दी जाती है जो केस आज तक थाना कृश्णानगर लखनऊ द्वारा नहीं खोला गया है दूसरी तरफ आप द्वारा 27फरवरी 2017 केा पुनः जांच क्राइम ब्रान्च को सौंपे जाने पर यह बात सामने आयी कि जब मेरे बेटे की हत्या हुई थी उस समय जो चैकी इंचार्ज विजय नगर थाना कृश्णानगर लखनऊ थे वह आज क्राइम ब्रान्च के प्रभारी हैं तथा जो उस समय थाना इंचार्ज कृश्णानगर थे वह आज क्राइम ब्रान्च में ही विवेचक के पद पर तैनात हैं। 

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन थाना इंचार्ज एवं चैकी इंचार्ज की लापरवाही के कारण ही आज तक केस नहीं खुल पाया है जिनके खिलाफ मैंने आपसे आग्रह कराकर केस क्राइम ब्रान्च ट्रान्सफर कराया था आज उन्हीं लोगों के इस ब्रान्च में तैनात होने से मुझे न्याय नहीं मिल पायेगा न ही मेरे बेटे की हत्या में शामिल अपराधियों को सजा हो पायेगी। 

मेरा आपसे सादर अनुरोध है कि पुलिस की किसी अन्य सक्षम एजेंसी से समयबद्ध जांच कराकर मेरे बेटे की हत्या में षामिल मुल्जिमों केा कड़ी से कड़ी सजा दिलाने एवं प्रार्थी को न्याय दिलाने की कृपा करंे।

मैं आपका आभारी रहूँगा।

सादर,

प्रार्थी,

दिनांकः-4.4.2017

दल सिंगार पुत्र श्री हरीराम षर्मा

563ख/10, मंगलखेड़ा, आलमबाग

    लखनऊ

      फोन- 93899004484


20 लोगों को पीछे छोड़ डीजीपी बने

परवेज अहमद

लखनऊ। फरवरी की पहली सुबह जब मौसम खुशगवार होगा। देश श्रीराम की आस्था में सराबोर होगा, तब यूपी पुलिस की ऊंची डीजीपी की कुर्सी रिक्त होगी। मई 2022 से ये कुर्सी कार्यवाहक अधिकारी संभालते आ रहे हैं। परम्परा आगे बढेगी ? तकनीकी स्थितियां कहती हैं कि मार्च 2024 तक यूपी पुलिस को कार्यवाहक डीजीपी ही संभालेंगे। रेस में आनंद कुमार आगे हैं। उनका कार्यकाल दो माह हो सकता है। वैसे, सरकार असीमित शक्तियों प्रयोग कर डीजी स्तर के किसी अधिकारी को दायित्व दे सकती है। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र को छह माह का तीसरा सेवा विस्तार मिलने के बाद यह सवाल जोर पकड़ रहा है। अगर, कार्यवाहक डीजीपी चुनाव कराते हैं तो यूपी पुलिस के नये इतिहास में यह नया अध्याय होगा।

प्रदेश सरकार ने 11 मई 2022 को डीजीपी मुकुल गोयल को हटाकर डॉ.डीएस चौहान को डीजीपी नियुक्त किया। उन्होंने पांच आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया था। मगर लोकसेवा आयोग व सरकार के  बीच विधिक पत्राचार की पेंच ऐसी उलझी कि वह पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बन सके। उनके रिटायर होने पर राजकुमार विश्वकर्मा को यह ओहदा मिला। फिर विजय कुमार की बारी आई। मगर ये सभी कार्यवाहक डीजीपी हैं। 31 जनवरी को विजय कुमार सेवानिवृत हो रहे हैं। नया डीजीपी कौन ? दरअसल, 11 मई 2022 को मुकुल गोयल को हटाने के बाद लोकसेवा आयोग ने जो पेंच फंसाया था, वह अभी सुलझा नहीं है क्योंकि मुकुल 28 फरवरी 2024 को रिटायर होंगे।

ऐसे में सवाल ये है कि आखिर देश की सबसे बड़ी यूपी पुलिस का चौथा मुखिया भी कार्यवाहक होगा ?  क्या सरकार मुकुल गोयल के रिटायर होने तक दो माह के लिए आनंद कुमार को कार्यवाहक डीजीपी का जिम्मा देगी, क्योंकि मार्च 24 में वह भी रिटायर हो जाएंगे। सुभाष चन्द्रा भी मार्च में सेवा की अवधि पूरी कर लेंगे। तनुजा श्रीवास्तव, सतीश कुमार माथुर भी सेवानिवृति की ओर बढ़ चलेंगे। ऐसे में प्रशांत कुमार प्रथम को डीजीपी बनाने में सुपरशीट करने वाले अधिकारियों की संख्या आठ के आसपास ही बचेगी। इससे पहले सपा सरकार में जावीद अहमद को डीजीपी बनाने के लिए आधा दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया गया था। नजीर का लाभ प्रशांत कुमार को मार्च में मिल सकता है, परन्तु सरकार ने विजय कुमार के सेवानिवृत्त होते ही प्रशांत कुमार-प्रथम को डीजीपी का दायित्व दे दिया तो वह भी कार्यवाहक डीजीपी बनकर ही रह जाएंगे। क्योंकि वरिष्ठता सूची में उनसे ऊपर शफी अहसान रिजवी, आशीष गुप्ता, आदित्य मिश्र, पीवी रमाशास्त्री, संदीप सांलुके, रेणुका शास्त्री, वीके मौर्य भी होंगे। इन अधिकारियों की छवि, प्रशासनिक क्षमता को भी चुनौती देना कठिन है। जाहिर है, इनके रहते लोकसेवा आयोग पूर्णकालिक डीजीपी की लिस्ट में प्रशांत कुमार-प्रथम के नाम का चयन करे, इसमें संदेह है। इतने ही नहीं अविनाश चन्द्र, संजय एम तरडे भी वरिष्ठता कोटि में उनसे ऊपर हैं।

प्रकाश सिंह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी प्रशांत कुमार-प्रथम के पूर्णकालिक डीजीपी बनने की राह में बाधा होगा। ऐसे में सरकार पहले आनंद कुमार दो माह के लिए कार्यवाहक डीजीपी बनाकर मुकुल गोयल के रिटायरमेन्ट के साथ पांच अधिकारियों को डीजीपी की रेस से बाहर कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी तकनीकी पक्षों का अध्ययन करने में जुट गये हैं।

वैसे, सरकार ने कानून व्यवस्था की बदहाली के इल्जाम में मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से विदा किया था और डीएस चौहान को दायित्व सौंपा था। यह इत्तिफाक ही चौहान के कार्यकाल में प्रयागराज में उमेश पाल व दो सिपाहियों की सनसनीखेज हत्या हो गयी। जिससे सरकार की किरकिरी हुई, मगर उन्होंने उस वारदात का खुलासा करने के लिये जिन अधिकारियों को मुस्तैद कराया, वह परिणाम देते उससे पहले ही डीएस चौहान विदा हो गये और क्रेडिट बिना कुछ किये ही राजकुमार विश्वकर्मा के हिस्से में चला गया। तीसरे कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार के दौर में यूपी पुलिस कोई बड़ा आपरेशन करने में सफल नहीं रही है। अलबत्ता कई सनसनीखेज वारदातें हो गयीं। एसटीएफ में भी सरकार की छवि बेहतर करने वाले आपरेशनल तजुर्बे वाले अधिकारियों की कमी है।

सूत्रों का कहना है कि 31 जनवरी को नये डीजीपी पर कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार ने इन सभी पहलुओं पर अभी से मंथन शुरू कर दिया है। जिससे संकेत तो यही हैं कि प्रशांत कुमार-प्रथम को कमान से पहले आनंद कुमार को कार्यवाहक डीजीपी की जिम्मा दिया जा सकता है।

 

1-मुकुल गोयल

मेरिटः पुलिसिंग का लंबा अनुभव। डीजीपी रह चुके। एडीजी एलओ भी रहे।

डिमेरिटः फरवरी 24 में रिटायरमेंट। डीजीपी पद से अचानक हटाये गये। जिसके बाद से यूपी को पूर्णकालिक डीजीपी नहीं मिला। सरकार की पसंद नहीं।

2- आनंद कुमार

मेरिटः सरल, ईमानदार, न्याय और पुलिसिंग को समर्पित अधिकारी। एडीजी एलओ के पद पर रहते हुये ईमानदारी से प्रदेश में पुलिसिंग का अनुभव।

डिमेरिटः मार्च-24 में रिटायरमेन्ट। डीजी जेल रहते मुख्तार अंसारी के विधायक बेटे अब्बास अंसारी की जेल अधिकारियों से सांठगांठ कर नियम विरुद्ध मुलाकात। जेल अधिकारियों की मिलीभगत से उनकी पत्नी का जेल प्रवास व विश्राम का खुलासा। जिससे सरकार नाराज।

3-शफी अहसान रिजवी

मेरिटः यूपी में कई जिलों के कप्तान, डीआईजी, आईजी जोन संभालने का अनुभव। केन्द्र की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी आईबी में कार्य का लंबा अनुभव।

डिमेरिटः मुस्लिम (अघोषित)। लंबे समय से केन्द्र की सेवा में हैं, यूपी की बदली पुलिसिंग से वाकिफ नहीं

4-आदित्य मिश्र

मेरिटः साफ-सुथरी पुलिसिंग। सहज उपलब्धता। मानवीयता प्रथम के मूल सिद्धांत पर वर्किग

डिमेरिटः एडीजी (एलओ) रहते मातहातों पर सख्ती नहीं करने का आरोप। दिसम्बर 2019 में केन्द्रीय सेवा में गये। यूपी वापस आने को कम इच्छुक।

5-पीवी रमा शास्त्री

मेरिटः साफ-सुथरी छवि। यूपी में कप्तान के रूप में तैनाती के दौरान भी विवादों से दूरी।

डिमेरिटः आंध्र प्रदेश के निवासी। लंबे समय से उत्तर प्रदेश की पुलिसिंग के दूर हैं।

6-संदीप सांलुके

मेरिटः हीनियस क्राइम ट्रैकिंग सिस्टम यूपी पुलिस में लागू किया। साइबर एक्सपर्ट। सिपाहियों, उपनिरीक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता का प्रयोग किया। कई जिलों के कप्तान रहे।

डिमेरिटः व्यवहारिक नहीं होने का इल्जाम। पिक एन्ड चूज की कार्यशैली। जेन्युइन सिफारिशों की अनदेखी का भी इल्जाम।

7-दलजीत चौधरी-1990 बैच

मेरिटः डकैत आपरेशन का तजुर्बा, व्यवहारिक। यूपी में एडीजी (कानून व्यवस्था) रहते अधिकारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण। जनता से ओपन संवाद में विश्वास। फरियादियों को समय देने की प्रतिबद्धता। सरकार की छवि सुधारने वाले अधिकारी।

डिमेरिटः सपा सरकार के करीबी का आरोप। मुलायम सरकार में पुलिस भर्ती में जिन आईपीएस पर गड़बड़ी करने के आरोप लगे उनमें से एक। वैसे, इस प्रकरण में उन्हें क्लीन चिट मिल गयी है। केन्द्रीय सेवा में हैं , यूपी आने को इच्छुक नहीं।

 

8-रेणुका मिश्र शास्त्री-1990 बैच

मेरिटः परफेक्शनिस्ट, न्यायवादी। ईमानदार। जेंडर इश्यू (यह सरकार की प्राथमिकता है) पर मुखर। पुलिस व समाज में स्त्री-पुरुष समानता की पक्षधर। स्पोर्ट्स परसन, अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की पक्षधर। अच्छे अधिकारियों की समर्थक लेकिन भ्रष्ट पर मुखर।

डिमेरिटः महिला (अघोषित), लंबे समय से फील्ड की पुलिसिंग से बाहर।

9-वीके मौर्य-1990 बैच

मेरिटः स्पष्टवादी परन्तु व्यावहिरक। परम्परागत पुलिसिंग में विश्वास।

डिमेरिटः लंबे समय से फील्ड में नहीं है। एडीजी रेलवे के पद तैनाती के दौरान उनकी कार्यशैली पर कुछ सवाल उठे।

10-सत्य नारायण सावंत-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी।

डिमेरिटः डीजी जेल रहने के दौरान पत्नी के राजस्थान में एक विवि में कुलपति बनने पर उनके ओहदों की भूमिका को लपेटा गया। लेकिन वह थम गयी। कैदियों को लेकर कोई भी अभिनव प्रयोग नहीं कर पाये हैं।

11-अविनाश चन्द्र-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी।

डिमेरिटः कुछ खास नहीं

12-संजय तरडे-1990 बैच

मेरिटः  औसत अधिकारी।

डिमेरिटः सपा सरकार में तैनाती के दौरान उनको लेकर एक मुहावरा प्रचलित हुआ, जो कभी प्रमाणित नहीं हुआ।

13-एमके बशाल-1990 बैच

मेरिटः जनता के लिए सरल उपलब्ध। कई जिलों की कप्तानी, रेंज पुलिसिंग का अनुभव।

डिमेरिटः लंबे समय से फील्ड की तैनाती से बाहर। मायावती सरकार में प्रमुख पदों पर रहे।

14-तनुजा श्रीवास्तव-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी

डिमेरिटः जुलाई 24 में रिटायरमेंट। महिला (अघोषित)

15-सुभाष चन्द्र-1990 बैच

मेरिटः साफ सुथरे अधिकारी। लखनऊ में आईजी रहते जनता के लिये सदैव उपलब्ध रहने,   जनहित के त्वरित फैसले लेने वाले अधिकारी। गोल्फ क्लब के अध्यक्ष होने के चलते निवेशकों, उद्योगपतियों में पकड़।

डिमेरिटः मार्च 24 में रिटायरमेंट। सपा सरकार के करीब होने का आरोप। पत्नी अनीता सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के विधानसभा क्षेत्र बाराबंकी की लबे समय डीएम, मुलायम सिंह य़ादव सरकार में विशेष सचिव मुख्यमंत्री, अखिलेश सरकार में प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री रहीं।

16- प्रशांत कुमार-प्रथम-1990 बैच

मेरिटः शांत स्वभाव के अधिकारी। सरकार की फिलासिपी पर चलने वाले, मेरठ में एडीजी जोन रहने के दौरान कावंडियों पर हेलीकाप्टर से फूल बरसाने पर चर्चा में आये। उसके बाद से सरकार की नीतियों में फिट। पुलिस अधिकारियों में शक्तिशाली आईपीएस की छवि।

डिमेरिटः सामान्य जनता के लिये उपलब्धता कम।

(नोटः अधिकारियों की मेरिट, डिमेरिट जनता, पुलिस कर्मियों से बातचीत के आधार पर लिखी गयी है। जरूरी नहीं है, उससे हर कोई इत्तिफाक रखे। धारणा बनाने से पहले स्वयं परखें )

 

कोआपरेटिव बैंकों से सपा का सफाया, भाजपा के 49 चेयरमैन

( दो साल, पुरानी खबर)

-यूपी में कोआपरेटिव बैंकों की संख्या-50 और ब्रांचों की संख्या 1266

-रिजर्व बैंक के नियमों से चलते हैं बैंक, यूपी सरकार भी देती है धन

परवेज़ अहमद

लखनऊ। गांव-गिरांव की राजनीति से केन्द्रीय सत्ता की हिस्सेदारी तक पहुंची समाजवादी पार्टी अब सहकारी पॉलिटिक्स में हाशिये पर चली गयी जबकि भाजपा ने इस क्षेत्र पर पूर्ण आधिपत्य हासिल कर लिया। प्रदेश के 50 जिला कोआपरेटिव बैंकों में से 49 के चेयरमैन पद भाजपा ने बिना मुकाबले जीत लिया। भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों से संचालित इन बैंकों की पॉलिसी अब भाजपानीत होंगी। इटावा जरूर अपवाद रहा जहां सहकारी पॉलिटिक्स के दिग्गज व जसवंतनगर के विधायक शिवपाल यादव समर्थकों का आधिपत्य है।

उत्तर प्रदेश में 50 जिला कोआपरेटिव बैंक हैं, जिनकी 1266 ब्रांच हैं। किसान समितियों से चयनित डायरेक्टरों और फिर डायरेक्टरों के जरिये चुने गये चेयरमैनों के जरिये बैंक प्रशासन संचालित होता है। इन बैंकों पर राजनीति के प्रभाव हमेशा से रहा है लेकिन 1977 में सहकारिता मंत्री बनने पर यूपी में मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले सहकारिता की ताकत को पहचाना और मंत्री रहते हुए ही अपने करीबियों को इससे जोड़ा। 1992 में मुलायम ने सपा नाम से अपनी पार्टी बनाई और अपने भाई शिवपाल यादव को न सिर्फ राजनीति में लाये बल्कि सहकारिता का विशेषज्ञ बना दिया। उसके बाद से सपाईयों का सहकारी समितियों, बैंकों, पीसीएफ समेत अन्य ब्रांचों में कब्जा रहा। बसपा, भाजपा की पूर्व की सरकारों में सपा का दबदबा घटा जरूर लेकिन प्रभाव बना रहा। 2012 से 2017 की सरकार में फिर सपाईयों ने सहकारिता क्षेत्र में कब्जा कर लिया। लेकिन इसके बाद से सपा ने सहकारिता क्षेत्र में अपनी जो पकड़ खोनी शुरू की, वह शून्य तक पहुंच गयी।

सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कोआपरेटिव बैंकों के पिछले तीन महीने से चल रहे चुनावों में सपा के लिए स्थितियां इतनी विकट हुईं, कापरेटिव क्षेत्र के उसके दिग्गजों ने डेलीगेट्स पद के लिए नामांकन तक नहीं किया। नतीजा कमोवेश सभी बैंकों में भाजपा के डेलीगेट्स जीतकर आ गये। सूत्रों का कहना है कि चुनाव के दौरान सहकारिता क्षेत्र के कुछ प्रभावी नेतों ने नेतृत्व से कोआपरेटिव बैंकों के चुनाव लड़ने के लिए सरकुलर जारी करने की मांग की लेकिन प्रदेश नेतृत्व ने चुप्पी साधे रखी।

नतीजे में आज संम्पन्न हुए जिला कोआपरेटिव बैंक के चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों ने बिना मुकाबले ही जीत हासिल कर ली। अब प्रदेश के 50 से 49 बैंकों पर भाजपा का कब्जा है। उपाध्यक्ष पदों पर तो भाजपा बनाम भाजपा की स्थिति रही। किसी दूसरे दल ने इस पद के लिए दावेदारी तक नहीं की। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहना है कि बैंकों में भाजपा प्रत्याशियों की जीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता, किसानों के लिए उनके द्वारा किये जा रहे कार्यो का परिणाम है। उनका कहना है कि सपा किसानों, गरीबों का सिर्फ वोट लेती है। उसके गुमराह करती है। जिसका परिणाम सहकारी चुनावों में भी दिखाई दिया है। जनता ने पहले लोकसभा, विधान सभा, निकाय और सहकारी समितियों के चुनाव और अब बैंकों के चुनाव में समाजवादी पार्टी को धूल चटा दी है। अब बैंकों के जरिये किसानों को आसानी से लाभ मिल सकेगा और 2024 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी, यूपी की जता को भाजपा का मिशन-80 पूरा करायेगी।


 

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क्या किसी नई राजनीति के दिशा में कदम बढ़ा रहे अखिलेश यादव

 कन्नौज के सपा अध्यक्ष ने कहा-अखिलेश यादव कन्नौज से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे

-अगर वह जीते तो सांसद या नेता प्रतिपक्ष में से एक पद छोड़ना होगा

-वह कौन सा पद छोड़ेंगे, इस सवाल का सही जवाब 4 जून के बाद ही मिलेगा

-2022 में अखिलेश यादव ने कन्नौज संसदीय सीट छोड़कर करहल से लड़ा था विधानसभा का चुनाव

लखनऊ । यूपी के चुनावी अखाड़े में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के उतरने की संभावना क्षीण होने के साथ यह सवाल रहस्यमय था कि क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा के चुनावी समर में उतरेंगे या नहीं ? रमजान के दौरान उन्होंने कन्नौज में कहा था-नवरात्रि आ रही है, अच्छे दिन आने दीजिए, पता चल जाएगा। कार्यकर्ता जिसें कहेंगे, वही चुनाव लड़ेगा। नवरात्रि गुजर गयी। सपा में खामोशी रही। गुरुवार को कन्नौज के सपा जिलाध्यक्ष की ओर से घोषणा हुई- अखिलेश यादव कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे। माना जा रहा है दलीय अध्यक्ष के आदेश पर ही यह ऐलान किया गया है। हालांकि पार्टी ने अभी नाम घोषित नहीं किया है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कन्नौज संसदीय सीट से निर्वाचित हो गये तो उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद या कन्नौज के सांसद पद से इस्तीफा देना होगा। कोई व्यक्ति एक ही संसदीय पद रख सकता है। अब सवाल यह है कि क्या अखिलेश यादव ने नेता प्रतिपक्ष पद छोड़ने का मन बना लिया ? क्योंकि सांसद की तुलना में नेता प्रतिपक्ष का पद न सिर्फ अधिकारों से लैस है बल्कि उस प्रदेश की राजनीति में उसका सीधा दखल होता है। नेता प्रतिपक्ष ही वह पद है जिसके जरिये सरकार पर अंकुश रखा जाता है। उसकी जिम्मेदारी है कि सरकार को दिशाहीन होने से रोके। इसीलिये संसदीय व्यवस्था में नेता प्रतिपक्ष को बहुत अधिकार दिये गये हैं। दूसरा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में जनाधार वाली सपा के मुखिया क्या प्रदेश की राजनीतिक कमान दूसरे नेता को सौंपने की रणनीति पर काम कर रहे हैं ?  यदि वह सांसद निर्वाचित होते हैं और सांसद बने रहना चाहेंगे तो सिर्फ कन्नौज की विकास योजनाओं के सदस्य होंगे। अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री वाला प्रोटोकाल जरूर मिलेगा। लेकिन राज्य सरकार के सांविधानिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों में उनका सीधा अधिकार नहीं होगा। हाल के दिनों में राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने अपने करीबियों का चयन कराया था। वैसे यह सामान्य प्रैक्टिस है सरकारें नेता प्रतिपक्ष के सुझाये गये नाम पर सहमति प्रदान करती हैं। तो क्या सपा अध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष के अधिकार किसी विधायक को देने पर विचार कर रहे हैं ? और वह सांसद के रूप में दिल्ली में किस तरह की राजनीति करने की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि एक सांसद के रूप में उन्होंने लोकसभा में कोई अधिकार नहीं होगा। अगर 2024 में लोकसभा में उनके सदस्यों की संख्या 10 से कम रहती है तो उन्हें दलीय प्राथमिकता का दर्जा भी नहीं होगा। ऐसे में संसद में वह अधिकतम सपा सांसदों के दलीय नेता हो सकते हैं। तो क्या अखिलेश यादव अब राज्य की राजनीति से बाहर निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में रहना चाहते हैं ? वैसे अखिलेश यादव 2022 में आजमगढ़ लोकसभा से इस्तीफा देकर करहल विधानसभा चुनाव लड़े थे। तब यह माना गया था कि यूपी की राजनीति में पकड़ मजबूत रखने के लिए उन्होंने यह फैसला किया है। उस समय उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना गया था लेकिन 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ने की संभावना से अखिलेश यादव की नई राजनीति को मर्म खोजने का प्रयास किया जा रहा है। वैसे इन सवालों का सही जवाब 4 जून को ही मिलेगा। जब चुनाव परिणाम सामने आयेंगे। तभी यह भी साफ होगा कि अखिलेश यादव कौन सा पद अपने पास रखना चाहते हैं।

 

 

नेता प्रतिपक्ष को वित्तीय सुविधा

-मंत्री का दर्जा

-मंत्री स्तर का सरकारी आवास

-सत्कार भत्ता

-निर्वाचन भत्ता

-टेलीफोन भत्ता

-विधान भवन के अंदर कार्यालय

-पीएस व स्टाफ

-यूपी और उसके बाहर की यात्रा के दौरान विपक्ष के नेता के प्रोटोकाल की सुविधा

 

नेता प्रतिपक्ष को अधिकार

-लोकायुक्त, उप लोकायुक्त चयन समिति के सदस्य

-यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त व आयुक्तों की चयन समिति के सदस्य

-राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों की नियुक्ति की चयन समिति में सदस्य

-विधानसभा की कार्यवाही के दौरान सरकार किसी भी विषय पर मत व्यक्त करने का अधिकार

-विधान भवन में बात रखने के लिये असीमित समय

-विधानसभा के उपाधयक्ष के निर्वाचन में की भूमिका

-सामान्य तौर पर परम्परा है कि विपक्ष से ही विधानसभा का उपाध्यक्ष होता है, ऐसे में उनकी सहमति

-किसी भी प्रकरण में गिरफ्तारी के पूर्व संसदीय विशेषाधिकार प्रक्रिया का पालन किया जाना अनिवार्य

-विधानसभा के अंदर कही गई किसी भी बात पर न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है।

 

सामान्य सांसद के अधिकार

-संसद को सदन और उसकी समितियों में स्वतंत्र विचार की छूट। संसद सदस्य द्वारा संसद में कही गई बात, मत पर उसके विरूद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।

-सरकार द्वारा प्रस्तावित राजस्व और व्यय की मंजूरी में वोट देना और उनकी निगरानी करना।

-संसदीय क्षेत्र की जिला योजना, विकास योजना का सदस्य

-संसदीय क्षेत्र के दौरे या सरकारी कार्यक्रम के दौरान वाहन की सुविधा

-अपने संसदीय क्षेत्र में सांसद निधि के आवंटन का अधिकार

- दस से ऊपर सदस्यों वालों दल का सांसद होने पर संसद के अंदर दलीय मुखिया बनने की संभावना, उसी के अनुरूप संसद में सीट आवंटित होती है ( यह पार्टी अध्यक्ष पर निर्भर करता है)

- सांसद की गिरफ्तारी पर लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय को तत्काल सूचना देना व अनापत्ति लेना जरूरी होता है। 

-सरकार की विभिन्न संसदीय समितियों का सदस्य अथवा अध्यक्ष बनाये जाने की सुविधा

 

 

चित्रकूट का एयरपोर्ट

 

 तुलसीदास की रामायण। महर्षि बाल्मीकि रामायण। प्रभु श्रीराम की तपस्थली...और राहुल सांकृत्यानन की शरणस्थली, अब्दुल रहीम खानखाना की रचनाधर्मिता का स्थान...फिर भी विकास वंचित कस्बे, गांव अगर का एक शब्द में नाम लिया जाए तो वह है चित्रकूट। उत्तर प्रदेश का वह हिस्सा जहां ये सारी विशेषताएं हैं मगर विकास की रोशनी से महरूम हैं। हां, अब यहां के देवस्थल देवांगना घाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी का पहला टेबल टॉप देवांगना एयरपोर्ट शुरू किया है। 145 करोड़ की लागत से यह एयरपोर्ट शुरू तो हो गया, मगर यह लोकप्रिय हो जाए, इसके लिये जरूरी संसाधन नहीं जुटाये गये हैं। अभी हफ्ते में सिर्फ दो दिन चित्रकूट-लखनऊ का एक छोटा से जहाज चलता है। जो अभी कामयाब इसलिए नहीं हो रहा है कि एयरपोर्ट से यूपी-एमपी तक जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है।

 

ऐसा है एयरपोर्ट
देवांगनी घाटी पर एयरपोर्ट बनने की शुरूआत 12 साल पहले हुई थी, जिसके लिये मायावती सरकार ने स्थल चयन का कार्य पूरा किया था। अखिलेश यादव सरकार में इसके लिए 278 एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ और योगी आदित्यनाथ सरकार ने एयरपोर्ट को कार्यशील किया। इस एयरपोर्ट के टर्मिनल भवन का क्षेत्रफल 1542 वर्ग मीटर है। जिसकी सेवा क्षमता 100 यात्रियों की हैं। इस एयपोर्ट से लखनऊ की उड़ान भरने वाले यात्रियों को 2500 रुपये किराया खर्च करना होगा। टिकट के लिए एयरपोर्ट परिसर में भी हवाई जहाज कंपनी ने एक काउंटर खोल दिया है।

क्या होता है टेबल टॉप एयरपोर्ट
चारों ओर गहरी खाईं वाली ऊंची पहाड़ी पर बने एयरपोर्ट को टेबल टॉप एयरपोर्ट कहा जाता है। ऐसी हवाई पट्टी से उड़ान भरने और लैंडिंग में पायलट को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है। चित्रकूट का एयरपोर्ट सामान्य तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। भारत में लेंगपुई (मिजोरम), शिमला और कुल्लू (हिमाचल प्रदेश), पाक्योंग (सिक्किम), मंगलुरु (कर्नाटक) कोझिकोड और कन्नूर (केरल) में भी टेबल टॉप एयरपोर्ट हैं।

 

कैसे सफल होगा यह एयरपोर्ट

यह एयरपोर्ट तभी सफल हो सकेगा जब वाराणसी, अयोध्या और दिल्ली से इसकी हवाई कनेक्टीविटी हो और चित्रकूट का जिला प्रशासन कम से कम जिला मुख्यालय से दो टूरिस्ट बसों का संचालन करे। अगर चित्रकूट प्रशासन दो टूरिस्ट बसों का संचालन शुरू कर दे और हवाई जहाजों के लैडिंग, उडान के समय से बसे एयरपोर्ट पर मौजूद रहें तो निश्चित रूप से इसकी उपयोगिता भी बढ़ जाएगी और श्रद्धालुओं, सैलियों की संख्या में भी इजाफा हो जाएगा। वरना आने वाले दिनों में यह एयरपोर्ट भी सफेद हाथी बनेगा।

टूरिस्ट बसें का रूट क्या हो

टूरिस्ट बसें, राजापुर के तुलसी स्मारक से चलकर महर्षि बाल्मीकि आश्रम लालापुर से एयरपोर्ट और फिर उधर से ही रामघाट. स्फटकशिला, गुप्त गोदवारी, कामतानाथ होते हुए रामघाट, रामायण मेला स्थल, भरतकूप तक चलाई जा सकती हैं। इससे रोडवेज को आर्थिक लाभ भी होगा और चित्रकूट का समग्र विकास भी संभव होगा। यहां के रहने वाले समाजसेवी हनुमंत कहते हैं कि प्रशासन के अधिकारी सकारात्मक दिशा में कार्य करने वालो तैयार ही नहीं होते हैं। राम के नाम पर बनी सरकार श्रीराम के उपासना स्थल की अनदेखी कर रही है।

एक स्त्री से माफी, कई का शपथ पत्र पर राज-फाश किया !

 

एक स्त्री से माफी, कई का शपथ पत्र पर राज-फाश किया !

-किसी स्त्री का राजफाश करना निजता का हननः कानून विशेषज्ञ

-खुद बचने को बनाये शपथ पत्र में गैर महिलाओं के नाम का उल्लेख आपराधिक षणयंत्र

-इसी शपथ पत्र  के चलते कुछ महिलाओं की दाम्पत्य डोर टूटी

-कानून का जानकार अगर ऐसा अपराध करे तो गंभीरता बढ़ेगीः सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग

-वह कौन लोग हैं जो मुख्यमंत्री को पूरा सच नहीं बता रहा हैः बृजलाल खाबरी


लखनऊ। अगर कोई आईपीएस ( भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी छह स्त्रियों से जिस्मानी रिश्ते स्वीकार कर ले। और नोटरी शपथ पत्र पर उनकी पहचान उजागर कर दे। जिससे कुछ का दाम्पत्य जीवन टूट जाए। तब क्या ये किसी स्त्री की निजता भंग करने का अपराध नहीं ? क्या ऐसे अधिकारी को परिक्षेत्र (रेंज) पुलिस का नियंत्रण सौंपा जाना चाहिए ? ये सवाल वाराणसी परिक्षेत्र के उपमहानिरीक्षक अखिलेश कुमार चौरसिया से जुड़ा है। उनकी तैनाती, शपथ पत्र में दर्ज आचरण को लेकर सिपाही से शीर्ष अधिकारी तक बंद कमरों में इस पर किस्सागोई कर रहे हैं।

निजी जिंदगी में व्यक्ति, अधिकारी क्या करता है ? इस पर प्रश्न उठाने का अधिकार किसी को नहीं है। परन्तु उसका आचरण अदालत के सबसे शक्तिशाली साक्ष्य समझे जाने वाले दस्तावेज (नोटरी शपथ पत्र) पर दर्ज हो जाए। और उस व्यक्ति का 75 लाख नागरिकों की सुरक्षा का जिम्मा हो, तब सवाल उठना लाजिम है। वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक ने गत वर्ष पत्नी ( अब तलाक हो गया) के समक्ष सौंपे माफीनामा, स्वीकारोक्ति” (  अपोलॉजी, एक्सेप्टेंस एफीडेविट) में यूपी, दिल्ली, पंजाब के प्रभावशाली परिवार की महिलाओं, लड़कियों से अवैध रिश्ते स्वीकार किये हैं। इस शपथ पत्र में उन्होंने यह भी कहा है कि वे अंतिम बार माफी मांग रहे हैं। अब अवैध रिश्तों से दूर रहेंगे। माफीनामे को दाम्पत्य जीवन बचाने का प्रयास कहा जा सकता है। पर, शपथ पत्र में उन महिलाओं का नाम, पिता / पति का नाम, रिहायशी पतों का खुलासा किया गया है। कानून विशेषज्ञ कहते हैं यह खुलासा उन स्त्रियों की निजता भंग करने, उन्हें आपराधिक षणयंत्र का हिस्सेदार बनाने जैसा अपराध है। ऐसा अगर अपराध पुलिस अधिकारी कर रहा तो उसकी गंभीरता कई गुना अधिक होती है। सूत्रों का कहना है कि आईपीएस अधिकारी ने शपथ पत्र में जिन स्त्रियों की पहचान उजागर की है, उनमें से कुछ के पतियों ने इसी कथित फैक्ट को आधार बनाकर पत्नियों से तलाक ले लिया। नैतिक दृष्टि कहती है कि शपथ पत्र देने वाला अधिकारी स्त्रियों का दाम्पत्य जीवन तबाह करने का जिम्मेदार है। शपथ पत्र में इस आईपीएस अधिकारी ने स्वतः यह खुलासा किया है कि वह बेहद जिम्मेदार पदों पर तैनाती के दौरान सरकारी गाड़ियों से महिलाओं के साथ आता-जाता था। वह कब किस तिथि और कहां किस महिला से मिला इसका विस्तार से शपथ पत्र में उल्लेख है। सूत्रों कहना है कि अधिकारी की पत्नी (पहली) ने पति की आदतों को जानने के बाद दाम्पत्त जीवन बचाने का सभी संभव प्रयास किया। उनके पति के झांसे में आई लड़कियों के अभिभावकों को सच बताया। आखिर में उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को साक्ष्यों के पुलिंदे के साथ पत्र लिखा। इसमें अधिकारी को सीबीआई से वापस यूपी कैडर भेजने व कार्रवाई की मांग की गयी थी। चैट, वीडियो, फोटोग्राफ, सीडीआर, लोकेशन के साथ की गई इस शिकायत पर केन्द्र सरकार ने त्वरित अधिकारी की। आरोपों के घेरे में आये आईपीएस अधिकारी की प्रतिनियुक्ति मिड टर्म में ही खत्म कर दी और उसे वापस यूपी भेजा दिया। सरकार में उससे जवाब भी तलब किया गया। पर वापस यूपी पहुंचते ही तत्कालीन पुलिस महानिदेशक की संस्तुति पर पहले उसे बरेली का एसएसपी बनाया गया। फिर वाराणसी की डीआईजी नियुक्त कर दिया गया। प्रश्न ये है कि वे कौन से लोग हैं जो मुख्यमंत्री को पूरे सच से अवगत नहीं करा रहे हैं। छह सालों के कार्यकाल में ईमानदारी से काम करते आ रहे मुख्यमंत्री की छवि कौन लोग खराब करने का प्रयास कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनीष सिंह का कहना है कि इस अधिकारी की पत्नी ने जब गत वर्ष राज्य महिला आयोग को शिकायत भेज दी थी, तो उन्होंने कार्रवाई क्यों शुरू नहीं की। उनकी व्यक्तिगत फाइल में सीबीआई से वापसी का कारण भी दर्ज होगा, तब वाराणसी के डीआईजी जैसे पद पर उनकी तैनाती कैसे हो गयी ? यह रेंज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस सचाई को छिपाने के जिम्मेदार कौन लोग हैं, उन पर पहले कार्रवाई की जानी चाहिए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी कहते हैं कि यूपी के अधिकारी ही पूरी सरकार चल रहे हैं। मुख्यमंत्री को सचाई पता नहीं होती है जबकि जनता सारा सच जानती है। वह खामोश है पर 2024 के चुनाव में इसका जवाब देगी।