2 june
बीबीएयू के प्रोफेसर घूस लेते गिरफ्तार
संविदा शिक्षक की शिकायत पर सीबीआइ ने की कार्रवाई
लखनऊ : सीबीआइ ने शिक्षकों की संविदा बढ़ाने के बदले घूस लेने के आरोप में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय को प्रोफेसर विपिन सक्सेना व उनके विभाग में कार्यरत सहायक विजय द्विवेदी को गिरफ्तार कर लिया है। उनके पास मिले दस्तावेजसील कर दिये गये हैैं।
भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के एक संविदा शिक्षक ने सीबीआइ की लखनऊ ब्रांच में संविदा अवधि बढ़ाने के बदले कमेटी के प्रमुख द्वारा घूस की मांग की जा रही है। एसपी प्रणव कुमार ने घूस के रूप में मांगी गई 50 हजार की राशि के साथ शिकायतकर्ता को प्रो.विपिन सक्सेना के पास भेजा। उनके साथ सीबीआइ अधिकारियों की एक टीम भी भेजी गयी। जिसने प्रो.विपिन को घूस लेते हुए गिरफ्तार कर लिया। उनके पास से घूस की रकम भी बरामद हुयी है। सीबीआइ अधिकारियों ने बताया कि प्रो.विपिन सक्सेना पर 27 संविदा शिक्षकों से घूस मांगने का आरोप है। इसकी जांच पड़ताल की जा रही है। प्रो.विपिन के कार्यालय के दस्तावेज जब्त करने लिये गये और छानबीन की जा रही है।
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2 june रिवर फ्रंट घोटाले
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जांच समिति ने आलोक रंजन व दीपक सिंघल से मांगा जवाब
रिवर फ्रंट घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई निर्धारित करने को गठित समिति की पहली बैठक का फैसला
- मंत्री सुरेश खन्ना, आइएएस अधिकारी प्रवीर कुमार, अनूप पांडेय, प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ की समिति कर रही है जांच
लखनऊ : रिवर फ्रंट के निर्माण में गड़बड़ी के लिए चिह्नित दोषियों पर कार्रवाई की संस्तुति से पहले मंत्री सुरेश खन्ना की जांच समिति ने तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल का पक्ष सुनने का निर्णय किया है। दोनों अधिकारियों को लिखित जवाब के लिए तीन दिन की मोहलत दी जाएगी। समाजवादी सरकार की गोमती चैनलाइजेशन योजना में करोड़ों का घोटाला व नियमों की अनदेखी का न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट में खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोपितों पर कार्रवाई निर्धारित करने के लिए मंंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। जिसमें राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीर कुमार, अपर मुख्य सचिव वित्त अनूप पांडेय, प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय को सदस्य नियुक्त किया गया है। शुक्रवार को समिति की पहली बैठक हुई, जिसमें न्यायमूर्ति आलोक समिति की संस्तुतियों व जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया। सूत्रों का कहना है कि समिति ने पाया कि जांच के दौरान तत्कालीन मुख्यसचिव आलोक रंजन व प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल का पक्ष नहीं लिया गया। खन्ना समिति ने दोनों का पक्ष जांच में शामिल कराने का निर्णय लिया है। सूत्रों का कहना है कि इन दोनों को लिखित बयान देने के लिए तीन दिन का समय देने का निर्णय लिया गया है।
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वर्ष 2014-15 में शुरू हुई थी योजना
वर्ष 2014-15 में गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की थी जो बढ़कर 1,513 करोड़ हो गई थी। इस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट का निरीक्षण किया और सेवानिवृत न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में समिति गठित कर 45 दिन में रिपोर्ट मांगी थी। उन्होंने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी थी।
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विलंब के लिए भी जिम्मेदार
परियोजना को पूरा करने में विलंब के लिए अभियंताओं को प्रथम दृष्टतया दोषी ठहराया गया है। तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई, तत्कालीन प्रमुख अभियंता समेत विभागाध्यक्ष सिंचाई के शामिल थे। दो वर्ष में 23 बैठक करने के बावजूद समय से कार्य पूरा नहीं हुआ, जिसके लिए अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष भी जिम्मेदार ठहराया गया है।
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5 june
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विजिलेंस ने यूपीएसआइडीसी घोटाले की जांच पर मांगा निर्देश
-यूपीएसआइडीसी के घोटाले पर सतर्कता अधिष्ठान से जांच आख्या मांगने का मामला
- नियमों का हवाला देकर सतर्कता अधिष्ठान ने शासन से पूछा कैसे करें जांच?
लखनऊ : उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआइडीसी) के कथित टेंडर घोटाले जांच करने की मुख्यमंत्री कार्यालय की 'अपेक्षाÓ पर नियमों का पेंच फंस गया है। विजिलेंस निदेशालय ने मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश को सतर्कता विभाग को वापस करते हुये इस पर कार्रवाई के लिए दिशा निर्देश मांगा है। नियमों के मुताबिक किसी महकमें, अधिकारी की विजिलेंस जांच का आदेश सतर्कता विभाग के अधिकारी ही कर सकते हैैं।
मनी लांड्रिंग, धोखाधड़ी जैसे गंभीर इल्जामों से घिरे यूपीएसआइडीसी के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा ने पूर्व एमडी व आइएएस अधिकारी अमित घोष पर 300 करोड़ का घोटाला करने की जांच कराये जाने काप्रार्थना पत्र दिया था। 29 मई को इस प्रार्थना पत्र पर ही मुख्यमंत्री के विशेष सचिव डॉ.आदर्श सिंह ने महानिदेशक सतर्कता को लिखा कि-'प्रकरण की गंभीरता के दृष्टिगत 15 दिनों में आख्या प्रस्तुत करना सुनिश्चित किये जाने की अपेक्षा की गई है।Ó आदेश की प्रति हाथों-हाथ महानिदेशक सतर्कता के यहां पहुंची। मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश पर अमल करते हुए सतर्कता अधिष्ठान के अधिकारियों ने कानपुर इकाई को आख्या जुटाने का मौखिक आदेश दिया। इस बीच शिकायतकर्ता के खुद मनी लांडिं्रग, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे होने को लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया। सवाल यह भी उठाया कि आखिर ढेरों से इल्जामों से घिरा इंजीनियर मुख्यमंत्री के यहां तक कैसे पहुंचा? रविवार को अचानक मुख्यमंत्री के निजी सचिव दीपक श्रीवास्तव व अपर निजी सचिव काशीनाथ तिवारी को उनके पदों से हटा गिया गया। इस कार्रवाई को यपूएसआइडीसी प्रकरण से जुड़ा माना गया था।
सोमवार को महानिदेशक सतर्कता भूपेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री के विशेष सचिव के आदेश की प्रति प्रमुख सचिव सतर्कता को वापस लौटते हुए इस संदर्भ में शासन का दिशा निर्देश मांगा है। विजिलेंस के सूत्रों का कहना है कि शासन के निर्देश के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई की जाएगी।
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सतर्कता जांच का नियम
किसी भी व्यक्ति, संस्था के विरुद्ध सतर्कता जांच के लिए प्रमुख सचिव या सचिव सतर्कता की ओर से आदेश अथवा अधिसूचना जारी होनी जरूरी होती है। इस प्रक्रिया के बिना सतर्कता जांच नहीं हो सकती। मुख्यमंत्री सतर्कता विभाग के मंत्री भी हैैं। ऐसे में उनके विशेष सचिव सतर्कता जांच कराने या आख्यमा मांगने का सीधे आदेश दे सकते हैैं, मगर आदेश सतर्कता विभाग को भेजना चाहिए था, जहां सेअधिसूचना या आख्या मांगने का आदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस निदेशालय) भे्जा जाता।
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मामला क्या है?
यूपीएसआइडीसी के दागी अभियंता अरुण मिश्र ने मुख्यमंत्री कार्यालय को दिये प्रार्थना पत्र में तत्कालीन एमडी अमित घोष पर दो अगस्त 2016 से 14 अप्रैल 2017 के बीच 1100 करोड़ रुपये के ठेकों के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप था। इल्जाम यह भी था कि टेंडरों में कमीशनखोरी के जरिये घोष ने 200 से 300 करोड़ रुपए का आर्थिक लाभ लिया। ट्रांस गंगा सिटी और सरस्वती हाइटेक सिटी परियोजनाओं में सीमेंट-कंक्रीट रोड के लिए आवंटित 600 करोड़ रुपये के टेंडर में गड़बड़ी का भी शिकायती पत्र में उल्लेख था। अरुण मिश्रा ने यह आरोप भी लगाया है कि 2016-17 की कार्ययोजना में 1668 एकड़ जमीन विकसित करने के लिए 970 करोड़ रुपये का खर्च प्रस्तावित था। उक्त वित्तीय वर्ष में 100 एकड भी जमीन विकसित नहीं हो पायी। इसी शिकायत पर विशेष सचिव मुख्यमंत्री डॉ.आदर्श सिंह ने महानिदेशक सतर्कता से जांच आख्या मांगी थी।
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कोट:
विजिलेंस से कोई दिशा निर्देश मांगे जाने की अभी जानकारी नहीं है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने अगर कोई आदेश किया है तो उसका पालन कराया जाएगा-अरविंद कुमार, प्रमुख सचिव गृह, सतर्कता
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5 june
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सीबीआइ जांच की आंच में तपेंगे पूर्व मुख्यमंत्री के सचिव
तत्कालीन मुख्यमंत्री के सचिव आलोक कुमार ने 13 पट्टा आवंटन का प्रस्ताव मंजूर किया था
लखनऊ : अदालत की रोक बावजूद खनन पट्टा आवंटित करने, बाधित अवधि का परमिट करने की सीबीआइ जांच की आंच में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सचिव रहे आइएएस अधिकारी आलोक कुमार भी तपेंगे। सीबीआइ उनसे जल्द ही पूछताछ करेगी।
अदालत के आदेश पर सीबीआइ बांदा, कौशांबी, हमीरपुर, शामली जिलों में अवैध खनन, नियमों की अनदेखी कर पट्टे आवंटित करने की जांच कर रही है। सीबीआइ अधिकारी अब तक चार आइएएस अधिकारियों, पट्टाधारकों व खान अधिकारियों से पूछताछ कर चुकी है। इस छानबीन में ही सीबीआइ के हाथ फरवरी 2013 में हमीरपुर में जारी 13 पट्टों की पत्रावली लगी है। जिसमें चंद दिनों के अंदर डीएम से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक की मंजूरी मिल जाने का साक्ष्य हैैं। सीबीआइ अधिकारियों का कहना है कि बमुश्किल एक हफ्ते के अंदर पट्टा आवंटन की प्रक्रिया पूरी होना सवाल खड़े कर रहा है। हमीरपुर के तत्कालीन डीएम ने फरवरी 2013 में दो माह के अंदर स्वच्छता प्रमाण पत्र हासिल करने का हवाला देते हुए ठेकेदारों को 13 पट्टे जारी करने का प्रस्ताव भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग को भेजा था।
15 फरवरी 2013 को भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के अनुसचिव सुरेन्द्र कुमार ने डीएम की संस्तुतियों पर सहमति जताते हुए पत्रावली विशेष सचिव विवेक वाष्र्णेय को भेजी। जन्होंने इसी तिथि में हाईकोर्ट के एक मुकदमे का हवाला देते हुये पट्टे आवंटन की संस्तुति तत्कालीन प्रमुख सचिव भूतत्व एवं खनिकर्म जीवेश नंदन को भेजी। उन्होंने पत्रावली पर कुछ लिखे बगैर ही उसे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सचिव आलोक कुमार के पास भेज दिया।
सीबीआइ सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री के सचिव आलोक कुमार ने पत्रावली पर लिखा-'मा.मुख्यमंत्री जी ने अनुमोदित किया।Ó उस पर अपने हस्ताक्षर भी किये मगर तिथि नहीं डाली। उनकी मंजूरी के आधार पर 17 फरवरी को विशेष सचिव विवेक वाष्र्णेय ने पट्टा आवंटन की मंजूरी का आदेश डीएम हमीरपुर को भेज दिया। सीबीआइ इस सवाल का जवाब तलाश रही है कि मुख्यमंत्री के तत्कालीन सचिव ने फाइल पर तिथि क्यों नहीं डाली? पूरे हस्ताक्षर क्यों नहीं किये। पत्रावली इतनी तेजी से कैसे बढ़ी? यह बिन्दु जांच का विषय है। सीबीआइ सूत्रों का कहना है वह लिहाजा आलोक कुमार से जल्द पूछताछ की तैयारी है। आलोक कुमार केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में तैनात है। इस प्रकरण की जांच सीबीआइ की दिल्ली इकाई कर रही है, ऐसे में उनसे वहीं पूछताछ संभव है।
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जांच के घेरे में हैैं आधा दर्जन आइएएस
अवैध खनन की जांच के घेरे में उत्तर प्रदेश कैडर के आधा दर्जन अधिकारी हैैं। इनमें से दो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में कार्यरत हैैं। एक जिलाधिकारी का ओहदा संभाल रहे हैैं और तीन विशेष सचिव के पद पर कार्यरत हैैं। एक प्रतीक्षारत हैैं।
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6 june स्मारक घोटाला
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ब्नियम विरुद्ध थे पत्थर आपूर्ति करने वाले समूह
- विजिलेंस ने स्मारक घोटाले की जांच का एक हिस्सा पूरा किया
- दोषियों के विरुद्ध एफआइआर की शासन से अनुमति मांगने की तैयारी
लखनऊ : बसपा सरकार में लखनऊ व नोएडा में बने स्मारकों में इस्तेमाल पत्थरों की आपूर्ति के लिये गठित कंसोर्टियम (समूह) नियम विरुद्ध थे। इनके जरिये पत्थर खरीदने से सरकार को करोड़ों रुपये की चपत लगी। जांच में यह खुलासा होने के बाद अब विजिलेंस अधिकारी खनन विभाग के दो पूर्व निदेशक, तीन भूवैज्ञानिकों, कंसोर्टियम संचालकों विरुद्ध एफआइआर की शासन से अनुमति मांगने की तैयारी में है।
वर्ष 2007-2012 की बसपा सरकार के दौरान लखनऊ व नोएडा (गौतमबुद्धनगर) में बने स्मारकों के निर्माण में 500 करोड़ का घोटाला होने का खुलासा तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने अपनी जांच में किया था। न्यायमूर्तिमेहरोत्रा ने घोटाले की सीबीआइ अथवा विशेषज्ञ एजेंसी से जांच कराने की तत्कालीन मुख्यमंत्री से संस्तुति की थी। जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकायुक्त की संस्तुतियों की विवेचना का जिम्मा जांच सतर्कता अधिष्ठान को सौंपा था।
सतर्कता अधिष्ठान स्मारक घोटाले को कई हिस्सों में बांटकर जांच कर रहा है। पत्थर आपूर्ति के लिए कंसोर्टियम गठित करने की जांच पूरी हो गयी है। सूत्रों का कहना है कि निदेशक भानु प्रताप सिंह की अगुवाई वाले जांच दल ने अपनी विवेचना में कंसोर्टियम के गठन को नियम विरुद्ध पाया है। पत्थर आपूर्ति, पत्थर तराशी के नाम पर करोड़ों का गोलमाल होने के साक्ष्य जुटाये हैैं। जांच अधिकारियों ने यह भी पाया है कि पत्थर लखनऊ व मीरजापुर में तराशे गये जबकि ठेकेदारों को भुगतान राजस्थान की दरों से किया गया।
विजिलेंस निदेशालय के सूत्रों का कहना है कि कंसोर्टियम गठन व पत्थर आपूर्ति की जांच पूरी हो गई है। इसके लिए तत्कालीन खनन निदेशक राम बोध मौर्य, सलाहकार सुहैल फारूकी, भूवैज्ञानिक नवीन दास, सतीश कुमार सिंह, अनिल शर्मा और निर्माण निगम के कुछ प्रोजेक्ट इंजीनियरों को जिम्मेदार माना गया है। जिनके विरुद्ध एफआइआर कराने की शासन से जल्द इजाजत मांगी जाने की तैयारी है।
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शासन के बगैर कुछ नहीं कर सकती विजिलेंस
सतर्कता अधिष्ठान के नियम ऐसे हैैं कि वह जांच में दोषी व्यक्ति पर तभी कार्रवाई कर सकता है जब शासन उसकी अनुमति प्रदान करे। अगर शासन अनुमति नहीं देता है तो कार्रवाई नहीं हो सकती है। नियय है कि सतर्कता अधिष्ठान जांच रिपोर्ट प्रमुख सचिव सतर्कता के जरिये विभागीय मंत्री को भेजा था, जिस पर आगे की कार्रवाई की इजाजत पर निर्णय होता है।
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19 लोगों के नाम थे कंसोर्टियम
राजेश कुमार, पीयूष श्रीवास्तव, मंगला द्विवेदी, मु्न्नीदेवी, बच्चू सिंह, अंकुर अ्रग्रवाल, अशोक कुमार द्वितीय, किशोरी लाल, विनोद श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव, रमेश कुमार, अंजना दुबे, पन्नालाल, लाल बहादुर सिंह के नाम कंसोर्टियम थे। इनके आधीन 60 फर्मो ने स्मारकों के लिए पत्थर आपूर्ति का कार्य किया था।
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6 june-गोमती रिवर फ्रन्ट घोटाला
आलोक रंजन व दीपक सिंघल ने कहा वे निर्दोष
लखनऊ : पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और पूर्व प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल ने गोमती रिवर फ्रन्ट परियोजना में गड़बड़ी के दोषियों की सजा तय करने को गठित समिति को मंगलवार को अपना जवाब सौंप दिया है। जवाब में दोनों ने नियमों का हवाला देते हुए खुद को पूरी तरह से निर्दोष बताया है। न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट में परियोजना में भ्रष्टाचार के लिए सिंचाई विभाग के कई इंजीनियरों के साथ इन दोनों अधिकारियों की ओर भी अंगुली उठाई गई थी।
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोमती चैनलाइजेशन परियोजना का निरीक्षण किया था और उसमें भ्रष्टाचार होने की शिकायत पर न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति गठित कर 45 दिन में रिपोर्ट मांगी थी। न्यायमूर्ति सिंह ने गत दिनों मुख्यमंत्री को सौंपी रिपोर्ट में परियोजना भ्रष्टाचार होने, परियोजना की लागत बढ़ाने, टेंडरों में गड़बड़ी के लिए सिंचाई विभाग के आधा दर्जन से अधिक इंजीनियरों को दोषी ठहराते हुए तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन व प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल की ओर अंगुली उठाई थी। इस रिपोर्ट पर कार्यवाही के मुख्यमंत्री ने संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक और समिति गठित की है। समिति ने दोनों अधिकारियों से उनका पक्ष पूछा था। सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को आलोक रंजन व दीपक सिंघल ने जांच समिति को अलग-अलग जवाब भेज दिया है। रंजन ने जवाब में कहा है कि बतौर मुख्य सचिव वह अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष थे और 16 बैठकें की थी। जिसमें अन्तर विभागीय समन्वय बनाया गया। उन्होंने कोई वित्तीय स्वीकृति नहीं प्रदान की थी। इसके अलावा भी रंजन ने जांच के कई बिन्दुओं पर उत्तर दिया है। दीपक सिंघल ने सिंचाई से जुड़े कानूनों का हवाला देते हुए कहा है कि उनके कार्यकाल में सिर्फ 600 करोड़ के कार्य कराये गये। परियोजना की लागत बढ़ाने का फैसला व्यय वित्त समिति ने लिया, जिसमें 11 विभागों के प्रतिनिधि होते हैैं। सूत्रों का कहना है कि दीपक ने यह भी कहा है कि टेंडर करने का दायित्व इंजीनियरों का होता है जिसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
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समिति की 10-11 को फिर हो सकती है बैठक : गोमती रिवर फ्रन्ट घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई तय करने के लिए गठित नगर विकास व संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता वाली जांच समिति 10 या 11 जून को बैठक कर सकती है। समिति में राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीर कुमार, अपर मुख्य सचिव अनूप चन्द्र पाण्डेय, प्रमुख सचिव (न्याय) रंगनाथ पांडेय सदस्य हैैं। समिति को 15 जून तक अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपनी है।
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वर्ष 2014-15 में शुरू हुई थी योजना : वर्ष 2014-15 में गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की थी जो बढ़कर 1,513 करोड़ हो गई थी। इस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट का निरीक्षण किया और सेवानिवृत न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में समिति गठित कर 45 दिन में रिपोर्ट मांगी थी। उन्होंने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी थी।
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10
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सीबीआइ ने ब्यौरा जुटाया, जांच पर निर्णय जल्द
-17 मई को स्टेट गेस्ट हाउस के करीब मिला था आइएएस अनुराग का शव
-योगी सरकार ने 23 मई को सीबीआइ जांच कराने संस्तुति की थी
लखनऊ : सीबीआइ अधिकारियों ने आइएएस अनुराग तिवारी की 17 मई को लखनऊ में मौत व उसकी पुलिस तफ्तीश का ब्यौरा जुटा लिया है। जिसे सीबीआइ मुख्यालय के जरिये केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेज दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि सीबीआइ इस वारदात की जांच करने को तैयार है। ऐसे में जांच के लिए जल्द नोटिफिकेशन जारी हो सकता है।
लाल बहादुर शास्त्री अकादमी मसूरी से मिड कारिअर प्रशिक्षण लेकर लखनऊ आये कर्नाटक कैडर के आइएएस अधिकारी अनुराग तिवारी यहां के वीआइपी गेस्ट हाउस में अपने बैचमेट आइएएस के साथ ठहरे थे। 17 मई की सुबह गेस्ट हाउस के चंद कदम पर उनका शव पाया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण दम घुटना बताया गया था। अनुराग के भाई व परिवार के अन्य सदस्यों ने हत्या की आशंका जाहिर करते हुए हतरतगंज कोतवाली में एफआइआर दर्ज करायी थी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर मौत की सीबीआइ जांच की मांग की थी। अनुराग के परिवार के लोगों का कहना था कि वह कर्नाटक में खाद्य एवं रसद के घोटाले का पर्दाफाश करने वाले थे। उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही थी।
अनुराग के परिवार की मांग पर योगी सरकार ने 23 मई को इस प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने का निर्णय लिया और उसका प्रोफार्मा भेज दिया था। एक पखवारे के अधिक का समय बीतने के बाद भी जांच को लेकर निर्णय नहीं होने पर गृह विभाग के अधिकारियों ने शुक्रवार को केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय के अधिकारियों से संबंध में वार्ता की। सूत्रों का कहना है कि केन्द्र के अधिकारियों ने बताया है कि प्रक्रिया चल रही है। उधर, सीबीआइ सूत्रों का कहना है कि अनुराग की मौत की जांच से जुड़ा ब्यौरा दिल्ली स्थित सीबीआइ मुख्यालय भेज दिया गया है। अधिकारियों ने यह संकेत भी दिया है कि सीबीआइ इस मामले की जांच लेने को तैयार है।
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कैसे होती है सीबीआइ जांच
राज्य सरकार किसी प्रकरण प्रकरण की सीबीआइ से जांच के लिये निर्धारित प्रोफार्मा पर केस के सारांश व गंभीरता का उल्लेख कर उसे केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेजती है। कार्मिक मंत्रालय उस पर सीबीआइ से राय मांगती है। अगर सीबीआइ केस की जांच को तैयार नहीं होती तो वह केस सामान्यत: उसे नहीं दिया जाता। मगर, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट अगर किसी मामले की जांच का आदेश करता है तो सीबीआइ उसे मानने के लिए बाध्य होती है। अनुराग के मामले में केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय ने सीबीआइ से उसके राय मांग ली है।
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गोमती रिवर फ्रंट का आज निरीक्षण करेगी समिति
-15 जून तक मुख्यमंत्री को सौंपनी है रिपोर्र्ट
लखनऊ : गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में भ्रष्टाचार व गड़बड़ी के लिए चिन्हित इंजीनियरों, अधिकारियों की सजा तय करने से पहले नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में गठित समिति बुधवार को मौका-मुआयना करेगी। इंजीनियरों से पूछताछ का क्रम जारी रहेगा। 15 जून तक समिति को अपनी सिफारिश मुख्यमंत्री को सौंपनी है।
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोमती चैनेलाइजेशन (गोमती रिवर फ्रंट) परियोजना का निरीक्षण किया था। उन्होंने योजना में धन का दुरुपयोग होने की बात कहते हुए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी जिसने अपनी जांच में ढेरों गड़बडिय़ां पायी थीं। इसके बाद मुख्यमंत्री ने मंत्री सुरेश खन्ना को अध्यक्ष, राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीर कुमार, अपर मुख्य सचिव वित्त अनूप चन्द्र पांडेय और प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय को सदस्य सचिव बनाते हुए 'कार्रवाई निर्धारण समितिÓ बनाई। तीन चरणों की बैठक के बाद समिति ने अब गोमती फ्रंट परियोजना का स्थलीय निरीक्षण करने का निर्णय लिया है। बुधवार को यह समिति मौका मुआयना करने पहुंचेगी। इस दौरान इंजीनियरों के बयान भी दर्ज किये जाएंगे।
वर्ष 2014-15 में गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई थी जो बढ़कर 1,513 करोड़ रुपये हो गई थी। इस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ।
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14 june
यूपीएसआइडीसी के चीफ इंजीनियर अरुण मिश्रा के विरुद्ध जांच पूरी
लखनऊः उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (एसआइटी) ने यूपीएसआइडीसी के बहुचर्चित मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा के बेनामी बैैंक खातों की जांच लगभग पूरी कर ली है। इस मामले में उनके विरुद्ध अभियोजन की जल्द इजाजत मांगे जाने की संभावना है।
ट्रोनिका सिटी, फर्जी मार्कशीट के आरोपों से घिरे अरुण मिश्र के बेनामी बैैंक खातों की जांच एसआइटी को सौंपी गयी थी। सूत्रों का कहना है कि यह जांच पूरी हो गई। जांच एजेंसी जल्द ही उनके विरुद्ध एफआइआर की शासन से इजाजत मांगेगी। दूसरी ओर आइएएस अधिकारी अमित घोष के विरुद्ध विजिलेंस जांच के मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश के सतर्कता विभाग ने परीक्षण शुरू करा दिया है। सूत्रों का कहना है कि सतर्कता विभाग ने यूपीएसआइडीसी के अधिकारियों इल्जामों के संदर्भ में रिपोर्ट मांगी है।
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16 june
गोमती रिवर फ्रंट की जांच रिपोर्ट सीएम को सौंपी गई
-परियोजना पूरी करने के लिए 350 करोड़ जारी करने पर सहमति
लखनऊ : गोमती चैनेलाइजेशन (रिवर फ्रंट) परियोजना के दोषियों पर 'कार्रवाई निर्धारितÓ करने के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट संस्तुतियों के साथ मुख्यमंत्री को सौंप दी है। रिपोर्ट के परीक्षण के बाद कार्रवाई का निर्णय लिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इस परियोजना को पूरा करने के 350 करोड़ रुपये जारी करने तथा सिंचाई, जल निगम व पर्यावरण विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई की भी संस्तुति की गई है। सूत्रों के मुताबिक समिति ने न्यायिक जांच में दोषी पाये गए किसी भी अधिकारी को बरी नहीं किया है।
अखिलेश सरकार के 'ड्रीम प्रोजेक्टÓ रहे गोमती चैनलाइजेशन (गोमती रिवर फ्रन्ट) परियोजना की जांच के लिए न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट में दोषी पाये गए अफसरों पर कार्रवाई निर्धारित करने के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। समिति ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है। इससे पहले समिति ने रिवर फ्रंट का मौका मुआयना किया था। परियोजना को परवान चढ़ाने वाले इंजीनियरों, दो आइएएस अधिकारियों (इनमें से एक रिटायर हैैं) से उनका पक्ष पूछा था।
सूत्रों का कहना है कि कार्रवाई निर्धारण समिति ने जनहित में परियोजना को पूरा करने पर जोर दिया और गोमती में गिर रहे नालों के पानी का शोधन करने के लिए 350 करोड़ की राशि जारी करने की संस्तुति की है। कम धन में परियोजना पूरी करने के लिए तकनीक विशेषज्ञों की राय ली। सूत्रों का कहना है कि डायफ्राम वाल, इंटरसेप्टिंग ड्रैन, रबर डैम की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी व डायफ्राम की दीवार सीधी बनाने में शामिल रहे सिंचाई व जल निगम के आधा दर्जन इंजीनियरों पर सीधी कार्रवाई और पयर्वेक्षण में लापरवाही करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध सांकेतिक कार्रवाई की संस्तुति की गयी है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।
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वर्ष 2014-15 में शुरू हुई थी योजना
वर्ष 2014-15 में गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की थी जो बढ़कर 1,513 करोड़ हो गई थी। इस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ।
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16 june
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आइएएस अफसर अनुराग की मौत की सीबीआइ जांच शुरू
-सीबीआइ की स्पेशल क्राइम ब्रांच ने दिल्ली में दर्ज की एफआइआर
-17 मई को स्टेट गेस्ट हाउस के पास मिला था अनुराग का शव
-योगी सरकार ने 23 मई को सीबीआइ जांच के लिए की थी संस्तुति
लखनऊ : आइएएस अधिकारी अनुराग तिवारी की 17 मई को लखनऊ में हुई मौत की जांच सीबीआइ ने अपने हाथ में ले ली है। स्पेशल क्राइम ब्रांच ने दिल्ली में इस वारदात का मुकदमा दर्ज किया है। एएसपी संतोष कुमार को विवेचनाधिकारी नियुक्त किया गया है।
सीबीआइ ने अनुराग तिवारी के भाई मयंक तिवारी की तहरीर पर अपने यहां मुकदमा दर्ज किया है जिसमें कहा गया है कि 2007 बैच व कर्नाटक कैडर के आइएएस अनुराग की दस साल की सेवा में सात बार तबादला हुआ। आयुक्त खाद्य एवं रसद के पद पर रहते हुये उन्होंने कई जांचें की थी, जिससे ढेरों लोग उनके दुश्मन थे। तहरीर में मंयक ने कहा कि है कि वह कर्नाटक के बड़े घोटाले का खुलासा करने वाले थे। इसी तहरीर पर सीबीआइ ने हत्या (302 आइपीसी) का मुकदमा दर्ज किया गया।
ध्यान रहे, 17 मई की सुबह गेस्ट हाउस के चंद कदम पर अनुराग तिवारी का शव पाया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण दम घुटना बताया गया था। अनुराग के भाई व परिवार के अन्य सदस्यों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर भाई की हत्या की आशंका जाहिर करते हुए सीबीआइ जांच की मांग की थी। अनुराग के परिवार की मांग पर योगी सरकार ने 23 मई को इस प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने का निर्णय लिया। उसका प्रोफार्मा भेज दिया था। जिसके परीक्षण के बाद केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय ने एफआइआर दर्ज करने की अधिसूचना जारी की और सीबीआइ की स्पेशल ब्रांच ने मामला दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी है। जांच अधिकारियों के टीम ने लखनऊ पुलिस से पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एफआइआर की प्रति व अन्य साक्ष्य हासिल कर लिये हैैं।
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19 june
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रिवर फ्रन्ट में फंसेगी कई बड़ों की गर्दन
- सीबीआइ जांच की सिफारिश से मचा हड़कंप
- व्यय वित्त समिति के सदस्य, अनुश्रवण कमेटी, जल निगम, सिंचाई विभाग के इंजीनियर आएंगे चपेट में
लखनऊ : सीबीआइ ने गोमती चैनलाइजेशन (रिवर फ्रन्ट) परियोजना की जांच अपने हाथ में ली तो राज्य सरकार के कई बड़े अफसरों की गर्दन फंसेगी। व्यय वित्त समिति के सदस्य, अनुश्रवण कमेटी, जल निगम, सिंचाई विभाग के इंजीनियरों का दल भी चपेट में आएगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा सरकार के ड्रीम प्रोजेक्टों में शुमार रिवर फ्रन्ट में भ्रष्टाचार की सीबीआइ जांच का फैसला लिया है। सीबीआइ जांच शुरू होने पर प्रोजेक्ट राशि को मंजूरी देने वाली वित्त व्यय समिति के तत्कालीन सदस्य (इसमें पांच सदस्य थे), बजट राशि पुनरीक्षित करने वाले अधिकारी, परियोजना को अनुमोदन देने वाली मंत्रिपरिषद के सदस्यों से पूछताछ किये जाने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इससे प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों-इंजीनियरों में हड़कंप मचा है।
परियोजना की सीबीआइ जांच के आदेश से पहले योगी सरकार ने न्यायमूर्ति आलोक सिंह से जांच कराई। फिर मंत्री सुरेश खन्ना की समिति बनाकर उसे कार्रवाई निर्धारित करने का जिम्मा दिया। खन्ना समिति ने 16 जून को मुख्यमंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में तकनीकी जांच की विशेषज्ञता न होने का जिक्र करते हुए सीबीआइ से जांच कराने की संस्तुति की थी। उधर, सरकार ने सीबीआइ जांच के लिए केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को अनुरोध पत्र भेजने की औपचारिकता पूरी कर ली है। सूत्रों का दावा है कि सीबीआइ जांच की आंच तत्कालीन मुख्यमंत्री के एक ओएसडी तक भी पहुंचेगी।
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सीबीआइ जांच की प्रक्रिया
राज्य सरकार किसी मामले की सीबीआइ जांच कराने के कारण स्पष्ट करते हुए केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को एक प्रोफार्मा भेजती है। जिस पर कार्मिक मंत्रालय सीबीआइ निदेशक से टिप्पणी मांगता है। सीबीआइ ने अगर जांच लेने से इंकार कर दिया तो सामान्यत: कार्मिक मंत्रालय जांच के लिए बाध्य नहीं करता है। अगर सीबीआइ तैयार होती है, उसे जांच सौंप दी जाती है। गोमती रिवर फ्रन्ट प्रकरण राज्य सरकार प्रोफार्मा तैयार हो गया है।
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वर्ष 2014-15 में शुरू हुई योजना
वर्ष 2014-15 में गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की थी जो बढ़कर 1,513 करोड़ हो गई थी। जिसका 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ। इस परियोजना की जांच के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी।
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आलोक समिति ने ये खामियां रेखांकित की
1-इंजीनियरों द्वारा सेन्टेज चार्जेज नहीं चार्जेज नहीं जमा कराये
2-डायफ्राम वाल, इंटरसेप्टिंग ड्रैन, रबर डैम की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई। डायफ्राम की दीवार सीधी बनाई गई, जबकि इसे ढलान वाला होना चाहिए था।
3-इंटरसेप्टिंग ड्रैन, रबर ड्रैन, म्यूजिकल फाउंटेशन शो आदि के लिए कैबिनेट ने जुलाई 2016 में मंजूर की और कार्य 2015 में शुरू हो गया।
4-पर्यावरण नियमों का पालन नहीं किया
5-विभिन्न आइटम में निर्धारित में कई गुना अधिक व्यय किया गया
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कार्रवाई निर्धारण समिति
न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री ने मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में कार्रवाई निर्धारण समिति बनायी थी। जिसमें 16 जून को मुख्यमंत्री को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि समिति के पास तकनीकी बिन्दुओं की जांच की विशेषज्ञता नहीं है, वह प्रशासनिक खामियों की जांच कर सकती है। ऐसे में विशेषज्ञ एजेंसी अथवा सीबीआइ से जांच कराई जाए। इसी रिपोर्ट के आधार पर सीबीआइ जांच का निर्णय लिया है।
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22 june
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सचल पालना घोटाले की सीबीआइ जांच शुरू
हाईलाइटर
सीबीआइ की भ्रष्टाचार निवारण शाखा लखनऊ ने उप्र राज्य समाज कल्याण बोर्ड, उप्र भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड और वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के अज्ञात अधिकारी, पदाधिकारी, अज्ञात स्वयंसेवी संस्था व प्राइवेट व्यक्ति के विरुद्ध एफआइआर दर्ज कर विवेचना शुरू की है।
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-मजदूरों के बच्चों को डे केयर देने लिए वर्ष 2013 में शुरू हुई थी परियोजना
-सीबीआइ ने श्रम विभाग, समाज कल्याण बोर्ड से तलब की पत्रावली
lucknow : माता-पिता भले मजदूरी करें, मगर उनके बच्चों की अच्छी परवरिश की मंशा से शुरू 'सचल पालना गृहÓ योजना का करोड़ों हड़पने वाले अधिकारियों, एनजीओ व बोर्डो के विरुद्ध सीबीआइ की भ्रष्टाचार निवारण शाखा ने एफआइआर दर्ज कर ली है। श्रम विभाग से इस परियोजना की पत्रावली तलब की गयी है। सूत्रों का कहना है कि परियोजना से जुड़े आइएएस, पीसीएस अधिकारियों समेत दर्जनों लोगों का जांच के कटघरे में खड़ा होना तय है।
वर्ष 2016 में हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका पर 29 मई 2017 को न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की पीठ ने सचल पालना गृह योजना की सीबीआइ का आदेश दिया था। तीन माह में जांच की स्टेट्स रिपोर्ट भी मांगी थी। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ के डिप्टी एसपी आलोक शाही की ओर से मुकदमा दर्ज किया गया है। इसमें उत्तर प्रदेश श्रम विभाग के आधीन कार्यरत दो दो बोर्डों, राज्य समाज कल्याण बोर्ड के तत्कालीन पदाधिकारियों, एनजीओ व निजी क्षेत्र के अज्ञात व्यक्तियों को आरोपित किया गया है। सूत्रों का कहना है कि एफआइआर दर्ज करने के बाद सीबीआइ अधिकारियों ने श्रम विभाग, समाज कल्याण बोर्ड के अधिकारियों से परियोजना से जुड़े दस्तावेज तलब किये हैैं। ध्यान रहे, सीबीआइ जांच से पहले हाईकोर्ट ने महिला व बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव रेणुका कुमार से इस प्रकरण में रिपोर्ट मांगी थी। जबकि उनका इस परियोजना से सीधा ताल्लुक नहीं था। हाईकोर्ट ने उनसे पूछा था कि कितने शिशु गृहों की स्थापना की गई। जो सेवाएं बच्चों को प्रदान की जानी थी, क्या वह मिलीं? वे कौन लोग हैं जिन्होंने बिना कार्य किए पैसे प्राप्त कर लिए। कौन से अधिकारी हैं जो धोखाधड़ी भरेभुगतान के लिए जिम्मेदार हैं। कुमार ने हाईकोर्ट को सौंपे शपथ पत्र में परियोजना में भ्रष्टाचार होने का उल्लेख किया था। हालांकि उन्होंने इसके लिए सीधे किसी को दोषी नहीं ठहराया था। इस प्रकरण की सीबीआइ जांच कराने के लिए याचिका हरीश कुमार वर्मा ने दाखिल की थी।
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बंद है परियोजना
मजदूरों के बच्चों को सुविधा देने वाली यह परियोजना शुरूआती दौर में ही भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे के चलते आगे नहीं बढ़ सकी। योजना के लिए आवंटित धन भी सरकारी खजाने में वापस हो गया। जिससे जिन पंजीकृत मजदूरों के बच्चों को अच्छी परवरिश मिल सकती थी, वह भी नहीं मिल पायी। सच्चाई यह है कि गंगनचुंबी इमारतें खड़ी करने वाले मजदूरों के बच्चे कार्य क्षेत्र में भी खुले मैदान में पलने-बढऩे को मजबूर हैैं।
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योजना से जुड़े तथ्य
-वर्ष 2013-14 में सचल पालना गृह योजना शुरू हुई, जिसमें पहले यूपी व केन्द्र की धनराशि का औसत 40: 60 था, जो बाद में 50: 50 हो गया।
-1100 करोड़ की परियोजना की पहली किश्त के रूप में 48.92 जारी हुए, जिसका उपभोग कागजों में कर लिया गया था
-पालना गृह योजना में पंजीकृत मजदूरों के नवजात शिशु से छह वर्ष तक के बच्चों को डे केयर (खाना, खिलौना से लेकर दिन भर रखना) दिया जाना था।
-72 जिलों में परियोजना चलनी थी, जिसके लिए तत्कालीन अधिकारियों ने 280 स्वयं सेवी संस्थाएं चयनित की थीं।
-लखनऊ का कार्य जिस संस्था को दिया गया, वह एक आइएएस अधिकारी की रिश्तेदार थीं, इन्ही संस्था को भुगतान को लेकर सबसे पहले बखेड़ा हुआ
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कोट:
मैने कार्य संभालने के बाद बोर्ड के भ्रष्टाचार की जांच के लिए प्रधानमंत्री व सीबीआइ को भी पत्र लिखा था। अब सीबीआइ जांच शुरू हो गयी है, सब कुछ साफ हो जाएगा- डॉ.रूपल अ्रग्रवाल, अध्यक्ष उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड
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24 june
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ईडी के नाम पर घूस लेते कस्टम अधिकारी बंदी
-गिरफ्तारी से एक माह पहले ही ईडी से मूल कैडर कस्टम विभाग वापस हुए थे एनबी सिंह
-ईडी से कार्यमुक्त होने के बाद भी पत्रावलियों का निस्तारण करने कार्यालय जाते थे
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lucknow : सीबीआइ की भ्रष्टाचार निवारण शाखा ने एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) घोटाले के आरोपित से घूस लेने के आरोप में केंद्रीय उत्पाद, सीमा शुल्क एवं सेवा कर (कस्टम) विभाग के अधीक्षक एनबी सिंह व उनके बिचौलिए सुभाष कुमार गिरफ्तार कर लिया है। उनके पास सेचार लाख रुपये भी बरामद हुए हैं। सिंह, 18 मई तक प्रतिनियुक्ति पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की लखनऊ शाखा में सहायक निदेशक के पद पर तैनात थे। और ईडी की कार्रवाई की धौंस दिखाकर एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त से 50 लाख की घूस मांग रहे थे, जिसकी पहली किश्त के रूप में चार लाख रुपए लेते हुए पकड़े गये हैैं। उनकी गिरफ्तारी इस बात की संकेत है कि जिन पर भ्रष्टाचारियों की नकेल कसने का जिम्मा है, उनमें से कुछ घूसखोरी में लिप्त हैं।
मेरठ के सोतीगंज निवासी सुरेंद्र चौधरी बहुचर्चित एनआरएचएम (अब एनएचएम) घोटाले के अभियुक्त हैं। सीबीआइ ने उनके विरुद्ध चार मुकदमे दर्ज कर रखे हैं जिनमें से मनी लांड्रिंग के एक मामले की जांच ईडी कर रही है। यह जांच केंद्रीय उत्पाद, सीमा शुल्क एवं सेवा कर (कस्टम) से प्रतिनियुक्ति पर ईडी में तैनात एनबी सिंह के पास था। सुरेन्द्र चौधरी ने सीबीआइ के एसपी प्रणव कुमार को भेजे शिकायती पत्र में कहा था कि ईडी में कार्यकाल पूरा होने के बाद भी एनबी सिंह उसे फोन कर केस में राहत देने के बदले 50 लाख रुपये की रिश्वत मांग रहे हैैं। एप्पल कंपनी के दो आइफोन-7 मांगे हैं, जिसका भुगतान करने के लिए श्रीबालाजी मोबाइल के मालिक का बैैंक खाता नम्बर-053011020002....(नम्बर का दुरुपयोग न हो इसलिए पूरा नंबर नहीं दिया जा रहा) देते हुए इसमें धन जमा कराने को कहा गया था। एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त से घूस मांगे की शिकायत पर सीबीआइ ने पहले फौरी जांच कराई। तथ्यों की तस्दीक होने पर केस दर्ज किया। फिर सुरेंद्र चौधरी से एनबी सिंह को फोन कराकर रिश्वत देने के लिए गोमतीनगर स्थित जेन नेक्स्ट होटल बुलाया। एनबी सिंह ने पैसा लेने के लिए सुभाष को वहां भेजा। सीबीआइ ने उसे रोक लिया। काफी देर तक जब सुभाष वापस नहीं लौटा तो सिंह ने उसे फोन किया। इस पर सीबीआइ के इशारे पर सुभाष ने कहा कि वह होटल में है। सुरेंद्र उन्हें बुला रहे हैैं। एनबी सिंह जैसे पहुंचे सीबीआइ ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ के बाद एमिटी विश्वविद्यालय के नजदीक के ठिकानों पर ले जाकर तलाशी ली गई।
सूत्रों का कहना है प्रतिनियुक्ति का कार्यकाल पूरा होने पर ईडी के उपनिदेशक (प्रशासन) ए एस बधवार ने 18 मई को उन्हें कार्यमुक्त करने का आदेश जारी कर दिया था, उन्हें पत्रावलियां संबंधित सहायक निदेशक को सौंपने का निर्देश दिया गया था। मगर लंबित पत्रावली निस्तारित करने को एनबी सिंह प्रवर्तन निदेशालय की लखनऊ शाखा जाते थे। इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया गया, मगर कोई उपलब्ध नहीं हुआ। बताया गया कि एनबी सिंह इसी महीने सेवा से रिटायर होने वाले हैं।
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कौन है बिचौलिया सुभाष
घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार कस्टम अधिकारी का बिचौलिया सुभाषराजधानी के खुर्रमनगर इलाके में स्थित 'अतिथि पैराडाइज इनÓ नाम के गेस्ट हाउस के संचालक हैैं। सीबीआइ अधिकारियों के अनुसार वह कई वर्षों से एनबी सिंह के संपर्क में है। उनके कहने पर ही वह होटल 'जेन नेक्स्टÓ पहुंचा था जहां सीबीआइ टीम ने रिश्वत की रकम लेते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। सीबीआइ ने दोनों आरोपितों को विशेष न्यायाधीश के आवास पर पेश किया जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। हालांकि सीबीआइ ने दोनों को दस दिनों की पुलिस अभिरक्षा में देने की मांग की है। इस पर 27 जून को सुनवाई होगी।
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क्या थी शिकायत
एनआरएचएम घोटाले के आरोपित सुरेंद्र चौधरी ने सीबीआइ से शिकायत की थी कि एनबी सिंह ने अपने सरकारी दफ्तर के नंबर-0522-2288782 से फोन कर बुलाया और पांच जून को सुभाष की मौजूदगी में रिश्वत मांगी। ऐसा न करने पर मुझे और मेरे भाई को केस में फंसाने और सारी संपत्तियां जब्त करने की धमकी दी। सुरेंद्र की शिकायत में कहा गया है कि एनबी सिंह से कहा कि सरकार को हुए नुकसान के दो करोड़ रुपये उन्होंने जमा कर दिए हैं। सीबीआइ के केस से उन्हें राहत की उम्मीद है। इस पर सिंह नाराज हो गए। पचास लाख रुपये की रिश्वत मांगी। कहा कि उन पर 21 करोड़ की देनदारी हो रही है। इसको निपटाने के लिए 50 लाख रूपये की मांग की गयी थी। बाद में सुभाष ने कहा कि कम से कम 25 लाख रुपये एनबी सिंह को देने होंगे। उनके बीच पांच लाख रुपये की पहली किश्त देने की बात हुई थी।
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19 july
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सपा सरकार में हुई भर्तियों की होगी सीबीआइ जांच
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-विधान सभा सत्र में बोले योगी
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हाईलाइटर
'अच्छा हुआ श्वेत पत्र लेकर सरकार नहीं आई। जिस दिन श्वेत पत्र जारी होगा, कहीं ऐसा न हो कि उत्तर प्रदेश सपा-बसपा मुक्त हो जाए। जिस निर्ममता से इन दोनों दलों ने लूट-खसोट की, जिस तरह प्रदेश को नोचा, मुझे लगता है कि यह सभ्य समाज कभी इन्हें स्वीकार नहीं करेगा।Ó
-योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री (विधानसभा में)
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- केवल शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में सड़ रहे हरियाणा के नेता
-बजट चर्चा में शामिल हुए पक्ष-विपक्ष के 73 सदस्य
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लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा सरकार में हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच कराने का एलान किया है। उन्होंने कहा है कि भर्तियों में धांधली की सारी जांचें होगी और कोई दोषी बचेगा नहीं। 'याद रखना केवल शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के एक नेता (ओमप्रकाश चौटाला) दस वर्षों से जेल में सड़ रहे हैं। कागज जलाने से कोई बच नहीं सकता।Ó
विधानसभा में बुधवार को बजट चर्चा पर विपक्ष के सदस्यों का जवाब देते हुए योगी आक्रामक थे। पौने दो घंटे के अपने भाषण में वह सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारों की खामियां गिनाकर प्रदेश की बदहाली के लिए निरंतर विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। योगी ने कहा कि 'पुलिस के डेढ़ लाख पद खाली हैं और दस वर्षों में कोई नियुक्ति ऐसी नहीं हुई जिस पर अंगुली न उठी हो। यह पद इसलिए नहीं भरे गए क्योंकि नीयत साफ नहीं थी।Ó उन्होंने बजट सत्र में भाग लेने वाले मंत्री और विधायकों समेत 73 सदस्यों के प्रति आभार जताया। योगी ने वित्त मंत्री और उनकी टीम की बजट के लिए सराहना की। इस चर्चा में सत्ता पक्ष की ओर से 46 लोग बोले जबकि बाकी विपक्ष के रहे। योगी ने बजट की सराहना करते हुए कहा कि यह अविस्मरणीय होगा क्योंकि पहली बार बजट के केंद्र में किसान है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि 25 वर्षों से राजनीति का केंद्र जाति और परिवार बनता रहा है। इससे सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हुआ और जातिवादी राजनीति से प्रदेश पिछड़े पायदान पर है।
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अमन-चैन में खलल डालने वालों का हराम कर देंगे जीना
मुख्यमंत्री पूरे तेवर में थे। खराब कानून-व्यवस्था पर पिछली सरकार पर तंज कसते हुए बोले 'बहुत जल्द फिर सत्र बुलाएंगे। हम कानून बनाने जा रहे हैं। प्रदेश में हर नागरिक को जीने का अधिकार है। जो अमन-चैन में खलल डालेगा, उसका जीना हराम कर देंगे।Ó मुख्यमंत्री ने भूमि कब्जा करने के 1.53 लाख मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि 'अभी तो कब्जे की जानकारी हासिल की जा रही है लेकिन, दो माह बाद जब भूमाफिया के खिलाफ अभियान चलेगा तो उनकी स्थिति क्या होगी, सोच लेना चाहिए। जिन लोगों ने राजनीतिक संरक्षण में जमीनें कब्जा की उनके खिलाफ अभियान चलेगा और अब जवाहर बाग कांड की पुनरावृत्ति नहीं होगी।Ó योगी ने खनन माफिया, अपराधियों और अवैध ढंग से काम कर रहे कारोबारियों को भी चेतावनी दी। कहा 'कुछ लोग बालू-मौरंग के दाम बढ़ाए हैं। उन पर भी डंडा चलेगा। सरकार इनसे सख्ती से पेश आएगी।Ó वह यहीं नहीं रुके। आतंकी मददगारों पर भी बरसे। कहा, आतंकवाद को फाइनेंस करने वालों की कमर तोड़ डालेंगे।
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तो सरकार स्ववित्त पोषित स्कूलों को अधिग्रहीत कर लेगी
योगी ने नेता प्रतिपक्ष की ओर इशारा कर कहा कि वित्त विहीन शिक्षक नियमित नहीं हुए तो इसके लिए आप लोग दोषी हैं। अगर शिक्षकों को सरकार वेतन देगी तो स्ववित्त पोषित विद्यालयों को अधिग्रहीत करेगी। योगी ने दावा किया कि तीन वर्ष में पुलिस में डेढ़ लाख भर्ती होगी। यह भर्ती धर्म, मजहब और जाति के आधार पर नहीं होगी। यह पूरी तरह पारदर्शी होगी।
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बोलने लग जाएं तो बहुत लोग एक्सपोज होंगे
सीतापुर में निर्दोष व्यापारी के हत्यारे को संरक्षण देने का आरोप लगाकर योगी ने कहा कि 'आप लोग कानून-व्यवस्था की बात करते हैं लेकिन, बोलने लग जाएंगे तो बहुत लोग एक्सपोज हो जाएंगे। राजनीतिक शिष्टाचार रहने दीजिए।Ó आजमगढ़ में अवैध शराब से मरने वालों का जिक्र कर योगी ने सपा पर मुख्य अभियुक्त मुलायम यादव को संरक्षण देने का आरोप लगाया। कहा, पिछले वर्ष उसके चलते 60 लोग मरे थे लेकिन, उसे बचाने का काम किया गया। योगी ने कहा कि हमारी सरकार में मुलायम समेत उसके 14 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। उन्होंने रायबरेली की घटना पर सवाल उठाया कि क्या वहां दोनों पक्षों के लोग सपा के नहीं हैं? क्या उन्हें संरक्षण नहीं है। एलान किया कि अपराधियों पर सख्त कार्रवाई होगी। योगी ने अपराधों में कमी का दावा करते हुए आंकड़े भी गिनाए।
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विवादों से घिरी रही सपा सरकार की हर भर्ती
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- 600 से अधिक भर्तियां आएंगी जांच के दायरे में
- दो लाख पदों की नियुक्ति में हुई मनमानी का उजागर होगा सच
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-पीसीएस समेत लोक सेवा आयोग की सभी भर्तियां पर विवाद
-उच्चतर और माध्यमिक शिक्षा में शिक्षकों की भर्ती पर उठे थे सवाल
-सिपाही और दारोगा भर्ती में पुलिस भर्ती बोर्ड पर लगे आरोप
-अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में रहीं तमाम गड़बडिय़ां
-विद्युत सेवा आयोग की सहायक और अवर अभियंता भर्ती में मनमानी
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लखनऊ : भाजपा सरकार ने पिछले पांच साल तक भर्तियों में हुए भ्रष्टाचार की जांच का आदेश देकर उन प्रतियोगी छात्रों की मुरादें पूरी कर दी हैं, जिनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दब जा रही थी। प्रतियोगी छात्र अलग-अलग स्तर पर कई सालों से भर्तियों की जांच के लिए आंदोलन चला रहे हैं और उन्होंने अदालत में भी लंबी लड़ाई लड़ी। अब उन्हें उम्मीद है कि भर्तियों का सच सामने आएगा।
समाजवादी पार्टी की सरकार में लगभग हर भर्ती को लेकर विवाद खड़े हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों का चयन करने वाले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग तक की भर्तियां भी इससे अछूती नहीं रहीं। तत्कालीन सपा सरकार में अध्यक्ष और सदस्यों को मनमानी का पूरा संरक्षण हासिल था। यही वजह थी कि डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में मनमाने फैसले लिए गए और हजारों छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा। अंतत: हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध करार दिया। जिन भर्तियों को लेकर आरोप लगे हैं, उनमें अधिकांश अनिल यादव के कार्यकाल की ही हैं। पीसीएस 2011 से लेकर पीसीएस 2015 तक की भर्ती पूर्व अध्यक्ष डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में हुई तो इस दौरान लोअर सबआर्डिनेट की चार भर्ती परीक्षाएं संपन्न हुईं। इनमें प्रशासनिक पद की सूबे की सबसे बड़ी पीसीएस की पांच परीक्षाएं भी शामिल हैं। पीसीएस जे, समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी और सहायक अभियोजन अधिकारी की तीन-तीन भर्तियों के परिणाम इस दौरान घोषित किए गए। उनके कार्यकाल में 236 सीधी भर्तियां भी हुईं। अब सीबीआइ की जांच में इन भर्तियों का सच उजागर होगा। गौरतलब है कि अनिल यादव के कार्यकाल में ही एसडीएम पद पर एक ही जाति के अभ्यर्थियों का चयन किए जाने के आरोप लगे थे।
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जांच दायरे में होंगे पीसीएस-लोअर के साढ़े छह हजार पद
सपा शासनकाल में पीसीएस 2011 से लेकर 2015 तक लगभग ढाई हजार पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। 2011 में एसडीएम और डिप्टी एसपी समेत विभिन्न श्रेणी के 389 पदों पर भर्ती की गई तो 2012 में 345, 2013 में 650, 2014 में 579 और पीसीएस 2015 में 521 पद भरे गए। इसी तरह बीते पांच साल में लोअर सबार्डिनेट के 4138 पदों पर भर्तियां हुई हैं। प्रतियोगी छात्र समिति की ओर से यह मुद्दा उठाने वाले अशोक पांडेय कहते हैं कि जांच में कई अध्यक्ष व सदस्यों पर शिकंजा कस सकता है।
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कृषि तकनीकी सहायक सबसे बड़ी भर्ती
सपा शासनकाल में आयोग द्वारा सबसे बड़ी भर्ती कृषि तकनीकी सहायकों की हुई है। इसमें 6628 पद भरे गए। इस भर्ती में ओबीसी के लिए आरक्षित पदों में बड़े पैमाने पर हेरफेर की शिकायत मिली थी। मामला अभी न्यायालय में है। राजस्व निरीक्षक के 617, खाद्य सुरक्षा के 430 पद भी सपा शासनकाल में भरे गए।
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साढ़े पांच सौ मुकदमे लंबित
लोक सेवा आयोग की भर्तियों को लेकर विवाद किस कदर है, इसका अंदाजा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में दाखिल मुकदमों की संख्या से लगाया जा सकता है। हाईकोर्ट में लगभग 500 और सुप्रीम कोर्ट में 50 से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
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पीसीएस का पेपर भी हुआ आउट
भर्तियों में गड़बडिय़ों का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आयोग में पहली बार पीसीएस का पेपर आउट हुआ। डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में हुई पीसीएस 2015 प्री परीक्षा का पेपर लखनऊ के एक सेंटर से आउट हुआ था।
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टीजीटी-पीजीटी में भी खेल
लोक सेवा आयोग की ही तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक परीक्षा (टीजीटी) और प्रवक्ता परीक्षा (पीजीटी) के आठ हजार पदों पर हुई भर्तियां भी जांच के दायरे में आएंगी। यह परीक्षाएं 45 विषयों के लिए हुई थीं और 39 विषयों के परिणाम घोषित होकर नियुक्तियां की जा चुकी हैं। बोर्ड में भी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां विवादित रहीं।
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असिस्टेंट प्रोफेसर के 1652 पदों पर भर्ती
इसी कड़ी में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग भी रहा, जहां अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां को लेकर उठा विवाद हाईकोर्ट तक पहुंचा। 1652 पदों के लिे हुई पहली बार भर्ती परीक्षा विवादों में रही। कापियां सादी छोड़ देने के आरोप भी लगे। आयोग के सचिव को अभी भाजपा शासनकाल में बर्खास्त किया गया है।
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35 हजार सिपाही व चार हजार दारोगा भर्ती
सपा सरकार में पुलिस भर्ती बोर्ड की ओर से हुई ये भर्तियां शुरू से ही विवादों में रहीं। भर्ती शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव किए गए। आरक्षण नियमों की अनदेखी ने नियुक्तियों को कोर्ट का विषय बना दिया। भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिरी ये नियुक्तियां जांच का हिस्सा होंगी।
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फिर से हुई अवर अभियंता भर्ती
पावर कारपोरेशन में सहायक और अवर अभियंताओं की भर्ती में अभ्यर्थियों ने मनमानी का आरोप लगाया। अवर अभियंता भर्ती परीक्षा में तो पूरा एक पेपर ही रिपीट किया गया। इसकी वजह से एक विषय की परीक्षा दोबारा हुई। विद्युत सेवा आयोग की इस भर्ती में भी गड़बडिय़ों की जांच सीबीआइ करेगी।
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