लखनऊ
गैर यादव ओबीसी वोटों की गोलबंदी में जुटे समाजवादी पार्टी चीफ अखिलेश यादव का फॉर्म्युला फेल होने की एक बड़ी वजह उनके पास सही टीम न होना बताया जा रहा है। जानकार कहते हैं कि अखिलेश यादव के पास मुलायम सिंह यादव की तरह टीम का न होना उनकी सबसे बड़ी विफलता साबित हुई। मुलायम के पास हर जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले बड़े नेता थे। मसलन मुलायम की टीम में बेनी प्रसाद वर्मा, मोहन सिंह, जनेश्वर मिश्र जैसे नेताओं का साथ था। लेकिन अखिलेश के पास इस तरह की कोई टीम नहीं है।
ओबीसी को साधने में कोर वोटरों में भी लग गई सेंध
2019 के चुनाव में अखिलेश ने लोहिया का दिया नारा 'संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ' को आगे बढ़ाकर गैर यादव ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश तो की। लेकिन इसकी जमीनी गोलबंदी के लिए पसीना बहाने से परहेज किया। इसलिए पिछड़ा वोट बैंक में उनकी भागीदारी यादवों तक ही सीमित रह गई। गठबंधन की फेल केमिस्ट्री के चलते इसमें भी बीजेपी ने कुछ हद तक सेंध लगा दी। वहीं दूसरी ओर गैर यादव ओबीसी वोटों की गोलबंदी करने में जुटे अखिलेश यादव से सवर्ण वोटरों ने भी दूरी बना ली, जिसका खामियाजा पार्टी को चुनावों में भुगतना पड़ा और उन सीटों पर भी पार्टी जीत नहीं हासिल कर पाई। जिन्हें 2014 के चुनावों में बचाने में कामयाब रही थी।
मेनिफेस्टो के जरिए अखिलेश ने खेला था दांव
एसपी ने जो घोषणापत्र जारी किया था। उसमें कहा गया, ' देश के 10 प्रतिशत समृद्ध (सामान्य वर्ग) के लोग 60 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं।' इस घोषणा पत्र को जारी करने के दौरान जब अखिलेश से पूछा गया तो उन्होंने कहा, हर जगह अपर कास्ट ही तो है, इसीलिए समाजिक न्याय है। मैं उनके साथ हूं, लेकिन उनको गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करना चाहिए।' इसके जरिए अखिलेश ने यादव के साथ-साथ गैर यादव ओबीसी को अपने पक्ष में करने की असफल कोशिश की थी।
कम सवर्णों को दिया टिकट
पिछड़ों पर दांव लगाने की छाप समाजवादी पार्टी द्वारा टिकट बंटवारे में भी दिखी। जिन 37 सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ी। उसमें 8 लोकसभा सीटों पर पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया। इनमें से पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को जीत नहीं मिली। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ी। उसमें बड़ी संख्या में ऐसी सीटें थीं। जहां सवर्ण वोटर बड़ी तादाद में था। 2012 के विधानसभा चुनावों में इन वोटरों ने एसपी का साथ दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने अकेले 6 ब्राह्मणों को टिकट दिया था।
गैर यादव ओबीसी वोटों की गोलबंदी में जुटे समाजवादी पार्टी चीफ अखिलेश यादव का फॉर्म्युला फेल होने की एक बड़ी वजह उनके पास सही टीम न होना बताया जा रहा है। जानकार कहते हैं कि अखिलेश यादव के पास मुलायम सिंह यादव की तरह टीम का न होना उनकी सबसे बड़ी विफलता साबित हुई। मुलायम के पास हर जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले बड़े नेता थे। मसलन मुलायम की टीम में बेनी प्रसाद वर्मा, मोहन सिंह, जनेश्वर मिश्र जैसे नेताओं का साथ था। लेकिन अखिलेश के पास इस तरह की कोई टीम नहीं है।
ओबीसी को साधने में कोर वोटरों में भी लग गई सेंध
2019 के चुनाव में अखिलेश ने लोहिया का दिया नारा 'संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ' को आगे बढ़ाकर गैर यादव ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश तो की। लेकिन इसकी जमीनी गोलबंदी के लिए पसीना बहाने से परहेज किया। इसलिए पिछड़ा वोट बैंक में उनकी भागीदारी यादवों तक ही सीमित रह गई। गठबंधन की फेल केमिस्ट्री के चलते इसमें भी बीजेपी ने कुछ हद तक सेंध लगा दी। वहीं दूसरी ओर गैर यादव ओबीसी वोटों की गोलबंदी करने में जुटे अखिलेश यादव से सवर्ण वोटरों ने भी दूरी बना ली, जिसका खामियाजा पार्टी को चुनावों में भुगतना पड़ा और उन सीटों पर भी पार्टी जीत नहीं हासिल कर पाई। जिन्हें 2014 के चुनावों में बचाने में कामयाब रही थी।
मेनिफेस्टो के जरिए अखिलेश ने खेला था दांव
एसपी ने जो घोषणापत्र जारी किया था। उसमें कहा गया, ' देश के 10 प्रतिशत समृद्ध (सामान्य वर्ग) के लोग 60 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं।' इस घोषणा पत्र को जारी करने के दौरान जब अखिलेश से पूछा गया तो उन्होंने कहा, हर जगह अपर कास्ट ही तो है, इसीलिए समाजिक न्याय है। मैं उनके साथ हूं, लेकिन उनको गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करना चाहिए।' इसके जरिए अखिलेश ने यादव के साथ-साथ गैर यादव ओबीसी को अपने पक्ष में करने की असफल कोशिश की थी।
कम सवर्णों को दिया टिकट
पिछड़ों पर दांव लगाने की छाप समाजवादी पार्टी द्वारा टिकट बंटवारे में भी दिखी। जिन 37 सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ी। उसमें 8 लोकसभा सीटों पर पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया। इनमें से पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को जीत नहीं मिली। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ी। उसमें बड़ी संख्या में ऐसी सीटें थीं। जहां सवर्ण वोटर बड़ी तादाद में था। 2012 के विधानसभा चुनावों में इन वोटरों ने एसपी का साथ दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने अकेले 6 ब्राह्मणों को टिकट दिया था।