Monday 26 December 2022

भाषा विवि में गड़बड़ियों पर याचिका, पुराने मामले में सहायक प्रोफेसर निलंबित

 -प्रो.मसऊद आलम की जांच कमेटी की रिपोर्ट पर पर्शियन विभाग डॉ.आरिफ अब्बास पर कार्रवाई

-विश्वविद्यालय में शिक्षकों की गुटीय प्रतिद्वंदिता तेज होने की संभावना, नुकसान छात्रों का होगा

-कुलपति ने कार्य परिषद की इमरजेंट मीटिंग बुलाई, आरिफ ने सदस्यों को लीगल स्थिति बताई

-सिविल जज सीनियर डिवीजन मलिहाबाद और हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में चल रहा मुकदमा

 

परवेज़ अहमद

लखनऊ । निर्माण कार्य, वित्तीय स्वीकृतियों के विरोध और प्रो.विनय पाठक के कार्यकाल से अभी तक ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय की दस कार्य परिषद मीटिंगों को अवैध ठहराते हुये अदालत में चुनौती देने वाले सहायक प्रोफेसर डॉ.आरिफ अब्बास को निलंबित कर दिया गया। उन पर विवि के दूसरे शिक्षक के साथ विवाद के पुराने मामले में कार्रवाई हुई है। इससे विवि में शिक्षकों की प्रतिद्वंदिता और तेज होने के संकेत हैं। निलंबन के फैसले पर मुहर के लिये कुलपति प्रो.एनबी सिंह ने 23 दिसंबर को कार्य परिषद की इमरजेंट मीटिंग बुलाई है।

भाषा विवि के पर्शियन विभाग के सहायक प्रोफेसर आरिफ अब्बास ने पांच महीने पहले सिविल अदालत, जिला अदालत में मई 2022 में दो वाद दाखिल किये थे, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि भाषा विवि के पूर्व कुलपति प्रो.विनय पाठक व मौजूदा कुलपति प्रो.एनबी सिंह नियम विरुद्ध वित्तीय व प्रशासनिक निर्णय कर रहे हैं। गुजरे साल से अभी तक की कार्य परिषद की दस मीटिंगों की वैधता को भी याचिका में चुनौती दी गयी। याचिका में  गय कि विवि की परिनियमावली में निर्धारित पद धारकों को नजर अंदाज कर मनमाने तरीके से कार्य परिषद के सदस्य नामित किये गये। छात्रों की फीस व सरकारी अनुदान का दुरुपयोग हो रहा। सुनवाई के बाद सिविल जज (सीडि) मलिहाबाद ने आरोपों के संबंधित मूल दस्तावेज संरक्षित करने, कुलपति आवास, गेस्ट हाउस का निरीक्षण कर रिपोर्ट अदालत को सौंपने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया। इस पर अमल से पूर्व भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनबी सिंह व कुलसचिव अजय कृष्ण यादव ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में ई-फाइलिंग के जरिये आदेश पर रोक के लिए याचिका दाखिल की थी, जिस पर 20 दिसंबर को सुनवाई हुई। ई-याचिका करने वाले विवि ने ही तथ्य उपलब्ध कराने के लिए हाईकोर्ट से और समय देने की मांग की परन्तु उस समय डॉ.आरिफ अब्बास के अधिवक्ता ने अदालत के सामने अपना पक्ष रखा। अदालत ने जनवरी 2023 की तारीख दे दी लेकिन सिविल जज के आदेश पर स्थगन आदेश नहीं दिया। गुरुवार को भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनबी सिंह ने पार्शियन विभाग के सहायक प्रोफेसर अब्बास आरिफ को निलंबित कर दिया है। उन पर 27 मई 2022 को दिये गये उनके प्रार्थना पत्र को मनगढ़ंत, झूठा और विश्वविद्यालय की गरिमा गिराने वाला बताकर निलंबित कर दिया गया है।

 

 

मसऊद कमेटी की रिपोर्ट को कार्रवाई की आधार बनाया

पर्शियन विभाग के सहायक प्रोफेसर आरिफ अब्बास पर कार्रवाई के लिये कला एवं मानविकी संकाय के प्रो. मसऊद आलम कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है। इस कमेटी में  वाणिज्य विभाग के प्रो.एहतेशाम अहमद व डॉ.रुचिता सुजय चौधरी सदस्य थीं। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा- सहायक प्रोफेसर आऱिफ अब्बास ने पेशबंदी में 25 मई 2022 को डॉ.सिद्धार्थ सुदीप के विरुद्ध गाली-गलौच, मारपीट के जो आरोप लगाये थे, वह मनगढ़ंत एवं कपोलकल्पित पाये गये हैं। शिक्षकों व कर्मचारियों के प्रति अशोभनीय टिप्पणी इनकी आम-शैली है। जांच रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि शिक्षक के रूप में दायित्वों का निवर्हन न लेकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने एवं शांति भंग करने वाले अराजकतत्वों को उकसाने में सक्रियता दिखायी जा रही है। इसलिए इन्हें निलंबित किया जा रहा है।

 

कुलपति ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया

पार्शियन विभाग के सहायक प्रोफेसर आरिफ अब्बास को निलंबित करने का आदेश जारी करने के लिये ख्वाजा मोइनउद्दीन भाषा विवि के कुलपति प्रो.एनबी सिंह ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया। नियमों के आधार पर शिक्षक निलंबन का आदेश विवि के कुलसचिव को जारी करना चाहिए परन्तु अब्बास के निलबंन का आदेश सीधे प्रो.एऩबी सिंह ने किया, जो उनका विशेषाधिकार है।

 

शिया धर्म गुरु कल्बे जवाद ने सीएम, रक्षामंत्री को लिखा पत्र

शियाधर्म गुरु मौलाना कल्बे जवाद ने मुख्यमंत्री, केन्द्रीय रक्षामंत्री व लखनऊ के सांसद राजनाथ को पत्र लिखकर डॉ.आरिफ अब्बास के निलंबन को उत्पीड़नात्मक कार्रवाई ठहराया है। मौलाना ने कहा है यदि कभी दो शिक्षकों के बीच विवाद था भी तो वह सांप्रदायिक कैसे हो सकता है। जांच अधिकारिय़ों ने रिपोर्ट में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की बात किन साक्ष्यों के आधार पर लिखी। मौलाना कहा है कि प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए। गुण दोष के आधार पर कार्रवाई की जानी चाहिए। यही बातें उन्होंने लखनऊ के सांसद व केन्द्रीय रक्षा मंत्री को भी लिखी हैं।

 

कोट-एक

मैंने, अदालत में कुलपति प्रो. एनबी सिंह, प्रो.मसऊद, प्रो.ऐहतशाम को जांच कमेटी बनाये जाने से पहले  ही पार्टी बना रखा है। निचली अदालत ने उनकी कार्यशैली की परख के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर रखा है। हाईकोर्ट में वाद लंबित हैं। ऐसे में मेरे विरुद्ध उस मामले में जिसमें लिखित समझौता हो चुका था, उस मामले में कार्रवाई भेदभाव का स्पष्ट प्रतीक है। सारी स्थिति से अब हाईकोर्ट को अवगत कराया जाएगा। ईसी के सदस्यों को भी वस्तु-स्थिति से आज ही अवगत करा दिया है, निलंबन के निर्णय पर विधिक तरीके से पक्ष रखा जाएगा।– डॉ.आरिफ अब्बास, सहायक प्रोफेसर, पार्शियन विभाग, ख्वाजा मोईनउद्दीन भाषा विवि लखनऊ

 

कोट-2

डॉ.आरिफ अब्बास एक शिक्षक के रूप में अपने पदीय दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करने में रुचि न लेकर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने एवं शांति भंग करने वाले अराजकतत्वों को उकसाने में अत्यधिक सक्रियता दिखा रहे हैं, जिससे एक शिक्षक की गौरवगरिमा का ह्रास होने के साथ विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है। तत्क्रम में सम्यक विचारोपरान्त विवि की प्रथम नियमावली व राज्य विवि अधिनियम-1973 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें निलंबित किया गया- प्रो.एनबी सिंह, कुलपति मोईनउद्दीन भाषा विवि, लखनऊ

 

Tuesday 20 December 2022

अदालतों की कुंडियां खटखटाने का दौर तेज !

 कुलपति निर्माता मशीन जैसे गंभीर आरोपों से घिरे, अंबेडकर विवि आगरा के परीक्षा कार्यों के ठेका आवंटन में डेढ़ करोड़ की घूस में नामजदगी के एक माह बाद प्रो.विनय पाठक पर कार्रवाई नहीं हुई। जिस पर प्रभावित पक्षों में से कुछ ने अदालत की ड्योढ़ी खटखटानी शुरू की है। लंबित याचिकाएं नये सिरे से सुनने की गुहार है। भाषा विवि के शिक्षक डॉ.आरिफ अब्बास ने कार्य परिषद की दस मीटिंगों को अवैध ठहराते उन्हें रद करने की अदालत से मांग की है। लविवि के वाणिज्य विभाग से सेवानिवृत प्रो.नरसिंह ने प्रो.विनय पाठक की कुलपति पद पर नियुक्ति, अर्हता पर सवाल उठाते हुये उन्हें बर्खास्त करने की हाईकोर्ट से गुहार लगाई। दो समाजसेवियों ने एकेटीयू के मामले में लोकायुक्त संगठन में परिवाद दाखिल किये हैं। प्रो.पाठक की कार्यशैली को लेकर 2017 से हाईकोर्ट में दाखिल याचिका जल्द सुनने कानूनी प्रयास तेज हो गये हैं।  

 

प्रो.विनय पाठक की अर्हता कुलपति के योग्य नही, बर्खास्त किया जाएः हाईकोर्ट में याचिका

परवेज़ अहमद

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने एकेटीयू का कुलपति रहते हुये आईईटी के कुलसचिव का धारणाधिकार ( प्रतिनियुक्ति पर रहने पर मूल पद रिक्त न होना ) समाप्त करने की कार्रवाई कर दी, परन्तु हरकोर्ट बटलर तकनीकी विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) के कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रोफेसर का अपना पद   सुरक्षित रखने के दांव-पेंच चल रहे हैं। लविवि के अर्थशास्त्र विभाग से रिटायर व शिक्षाविद प्रो.नरसिंह की ओर से हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल याचिका में  प्रो.विनय पाठक कुलपति पद पर अयोग्य बताते हुए उन्हें बर्खास्त करने, अर्जित वेतन वूसली की मांग की गयी है। अदालत ने सरकार, कुलाधिपति, यूजीसी समेत आधा दर्जन फरीकों को जबाव का अंतिम मौका दिया है। दिसम्बर के दूसरे हफ्ते में अगली सुनवाई संभव है।

उच्च शिक्षा कानूनों में कोई शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी दो वर्ष तक अवकाश पर रह सकता है। प्रतिनियुक्ति मिलने पर मूल पद पर उसका धारणाधिकार तीन साल तक रहता है। कुछ विश्वविद्यालयों की परिनियमावली में धारणाधिकार पांच साल तक बढ़ाने का नियम है। परन्तु, प्रो.विनय पाठक एचबीटीआई के कम्प्यूटर साइंस विभाग से 13 सालों से अवकाश पर हैं। फिर भी उनका धारणाधिकार बना है। सूत्रों कहना है कि एचबीटीयू के तत्कालीन निदेशक प्रो.जयशंकर राय ने उत्तराखंड के ओपन विवि में कुलपति नियुक्त होने पर प्रो.विनय पाठक को तीन साल की प्रतिनियुक्ति मंजूरी दी थी। जिसे उन्होंने पुनः बढ़ाया। पांच साल बाद जब प्रो.विनय पाठक ने एचबीटीयू में धारणाधिकार बरकरार रखने का दबाव बनाया। तब तत्कालीन निदेशक ने उत्तर प्रदेश के प्राविधिक शिक्षा विभाग को जानकारी देकर मार्ग दर्शन मांगा। सरकार ने कहा एचबीटीयू की बीओजी ( बोर्ड आफ डायरेक्टर्स) प्रो.विनय पाठक के आवेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर लें। सहानुभूति पर जोर दिया गया था, उसके बाद से लगातार अवकाश स्वीकृत किया जा रहा है, धारणाधिकार भी बना हुआ है। इसे मुख्य सवाल वाली प्रो.नरसिंह की याचिका के अधिवक्ता डॉ.वीके सिंह का कहना है कि एक व्यक्ति को लाभ के लिए नियमों को खिलौना बनाया जा रहा ? प्रो.विनय पाठक की शैक्षिक योग्यता भी कुलपति बनने योग्य नहीं थी। बायोडेटा में प्रो.पाठक ने एचबीटीयू के जिन पदों का उल्लेख किया है, वह पद परिनियमावली में नहीं हैं। कुलपति बनने के लिए दस साल का प्रोफेसर होना अनिवार्य है, ये अवधि भी विनय पाठक ने पूरी नहीं की है। ऐसे व्यक्ति को बार-बार कुलपति कैसे बनाया जा रहा है ? उनका कहना है कि याचिका में प्रो.विनय पाठक के शोध, कार्यशैली, भ्रष्टाचार का उल्लेख करते पद से बर्खास्त करने, कुलपति के कार्यकाल के वेतन की वसूली करने और एचबीटीयू के कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रोफेसर पद से उनका धारणाधिकार खत्म करने की अदालत से मांग की गयी है। प्रो.नरसिंह के अधिवक्ता डॉ.वीके सिंह का कहना है कि प्रो.विनय पाठक को बार-बार कुलपति बनाया जाना उच्च शिक्षा के साथ खिलवाड़ है, जिसकी सचाई अदालत के सामने रखी जा रही है। उन्होंने बताया कि इस याचिका में प्रदेश सरकार, प्राविधिक शिक्षा विभाग, कुलाधिपति, एचबीटीयू के कुलपति, छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक को पार्टी बनाया गया है। अदालत ने इन प्रतिवादियों शपथ पत्र देने का अंतिम मौका दिया है। इस केस में दिसम्बर के दूसरे हफ्ते में सुनवाई संभव है। कुलपति प्रो.विनय पाठक 13 सालों से एचबीटीयू के कम्प्यूटर साइंस विभाग से अवकाश पर हैं। अपना धारणाधिकार बनाये रखना चाहते हैं, परन्तु एकेटीयू के कुलपति के रूप में घटक संस्थान आईईटी के कुलसचिव एसएन शुक्ला का धारणाधिकार तीन साल में खत्म कराने का प्रस्ताव कार्य परिषद से पास करा दिया। अधिवक्ता डॉ.वीके सिंह का कहना है कि न्यायालय के सामने इन विधि विरुद्ध हो रहे इन सभी बातों को रखा जाएगा।

 

 

भाषा विवि की ईसी की अवैध, फैसलों पर रोक लगाई जाएः जज से गुहार

विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ। ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय कुलपति रहने के दौरान प्रो.विनय पाठक के फैसलों को नियम विरुद्ध ठहराते हुये सिविल डिवीजन जज की अदालत में सिविल वाद दायर किया गया है। जिसमें विवि कार्य परिषद की दस मीटिंगों को विधि विरुद्ध बताया गया है। विवि की परिनियमावली में निर्धारित पद धारकों को सदस्य बनाये बगैर मनमाने तरीके से सदस्य नामित किये गये। छात्रों की फीस व सरकारी अनुदान का दुरुपयोग किया जा रहा है।

राज्य विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने प्रो.विनय पाठक को ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया था, उस समय लोक निर्माण विभाग के पास लंबित विवि का 25 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था। विनय पाठक ने इस राशि को खर्च करने के लिए जो कार्य परिषद गठित करायी, उसमें पूर्व कुलपति व विश्वविद्यालय के सबसे वरिष्ठ को सदस्य नहीं बनाया। विवि के शिक्षक डॉ.आरिफ अब्बास की ओर से अदालत में सिविल वाद दाखिल करने वाले अधिवक्ता सैयद अजीजुल हसन रिजवी ने कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक द्वारा कराई गयी छह और मौजूदा कुलपति एऩबी सिंह द्वारा कराई गई कार्य परिषद विवि की परिनियमावली के आधार पर अवैध है।

सिविल वाद दायर करने के लिये याची के अधिवक्ता की ओर से चार लाख रुपये शुल्क भी जमा किया गया है। याची का कहना है कि कार्य परिषद की इन दस मीटिंगों में करोड़ों रुपये के निर्माण कार्य, खरीद-फरोख्त की गयी है। प्रोन्नितयों और नई भर्ती के फैसले भी हैं। इस वाद पर अदालत ने प्रो.विनय पाठक, नये कुलपति प्रो.एनबी सिंह, कुलसचिव समेत आधा दर्जन लोगों को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस भेज रखा है। अधिवक्ता रिजवी का कहना है कि भाषा विश्वविद्यालय में राज्य सरकार, विवि की परिऩियमावली और कुलाधिपति के आदेशों की अवहेलना की जा रही है।

आरोप लगाया गया है कि पूर्णकालिक कुलपति की नियुक्ति की सर्च कमेटी के लिए सिद्दार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के पूर्व कुलपति प्रो.सुरेन्द्र दुबे को नामित किया गया है, उनका प्रो.विनय पाठक की पहले से ही नजदीकी है। इसी तरह स्ववित्त योजना के तहत संचालित पाठ्यक्रमों के लिए वित्त समिति कार्य परिषद द्वारा सृजित शिक्षणेत्तर श्रेणी के पदों को संविदा के आधार पर नियुक्ति की गयी, जिसमें पूर्व से कार्य कर रहे कर्मचारियों को सेवा मुक्त कर दिया गया, जबकि उत्तर प्रदेश शासन के नियमों के मुताबिक सेवा प्रदाता कंपनी के जरिये कार्य रहे लोगों को बिना किसी ठोस कारण के सेवा से बाहर नहीं किया जा सकता है। प्रो.विनय पाठक की अध्यक्षता वाली कार्य परिषद ने परिसर में दीन दयाल शोध पीठ स्थापित करने का निर्णय कराया और उस पर लाखों रुपये खर्च कर दिय गये। अदालत से इस गंभीर विषय पर कार्रवाई करते हुए कार्य परिषद के सभी दस निर्णयों पर रोक लगाने की मांग की गयी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रो.विनय पाठक को है रिश्तेदारों को कॉफी, नाश्ता कार्नर ठेका देने का शगल

 -जिस विश्वविद्यालय के कुलपति बने कैंटीन ठेकेदार भी बदले

-नये ठेकेदारों ने बिजली बिल, भवन किराया भी नहीं जमा किया

-ठेका बदलने पर छात्रों ने दुकानदार की उधारी लौटाने से मना किया

परवेज अहमद

लखनऊ । उत्तर प्रदेश की उच्च, तकनीकी शिक्षा के प्रभावशाली कुलपति प्रो.विनय पाठक की दिलचस्पी विश्वविद्यालयों, सबंद्ध सरकारी कालेजों की कैंटीन (चाय, नाश्ता, भोजन) के ठेकों में भी रहती है। जिस विश्वविद्यालय के वह कुलपति नियुक्त होते हैं, वहां संचालित कैंटीनों के पुराने ठेकेदारों को हटाकर पसंदीदा के ठेकेदार को ठेका आवंटित करते हैं। एकेटीयू, उसके घटक संस्थान आईईटी, ख्वाजा मोइनउद्दीन भाषा विवि, भीमराव आंबेडकर विवि और छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि के कैंटीनों का पुराना ठेका रद कर नये लोगों को ठेका दे दिया। जिनमें से कई संचालकों ने भवन किराया, बिजली बिल तक जमा नहीं किया है।

डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के परीक्षा कार्यों के लिए डेढ़ करोड़ घूस लेने के एक प्रकरण में कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक नामजद हैं। एसटीएफ जांच कर रही। जिसमें लगातार खुलासा हो रहा है कि उन्होंने यूपी के पांच विश्वविद्यालयों का कुलपति रहते हुये नियमों के विपरीत प्रोफेसरों, सहायक प्रोफेसर और सह प्रोफेसरों की नियुक्तियां की । यौन उत्पीड़न , गुंडागर्दी के आरोपियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। अधूरी शैक्षिक योग्यता वालों को शिक्षक बनाया। मुखौटा कंपनियों को परीक्षा, स्टेशनरी जैसे करोड़ों के कार्य दिये। उन पर अपने से जुड़े लोगों को कुलपति बनवाने का भी आरोप है। एसटीएफ की जांच में ढेरों वित्तीय, प्रशासनिक गड़बड़ियों के साथ भ्रष्टाचार के तत्थ सामने आये हैं। फिर भी अभी तक उन पर सरकार या कुलाधिपति कार्यालय से कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अब ये भी खुलासा हो रहा है कि प्रो.विनय पाठक का बड़े मामलों के साथ छोटे-छोटे मामलों में भी सीधे हस्तक्षेप था। कैंटीन जैसे कार्य जिसका कस्टोडियन कुलसचिव होता है, उसमें भी उनके इन्वॉल्वमेंट का खुलासा हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त होने के बाद प्रो.विनय पाठक के नेतृत्व वाले प्रबंधन ने परिसर में 20 लाख रुपए खर्च कर कैंटीन बनवाई। उसका ठेका दूर के रिश्तेदार को दिया गया। विश्वविद्यालय के घटक संस्थान आईईटी में बरसों से चल रहे अमूल पार्लर को बंद कराकर ठेका करीबी को दिया गया। ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय का कुलपति बनने पर प्रो.विनय पाठक ने यहां के पुराने कैंटीन संचालक को हटाकर उसके स्थान पर करीबी मित्र के मित्र को ठेका आवंटित कराया। ठेका आवंटन के प्रस्ताव पर कार्य परिषद की मंजूरी की मुहर भी लगवाई गयी।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय का कुलपति बनने पर प्रो.विनय पाठक ने बरसों से परिसर में जीराक्स कॉपी ( फोटो कापी) की दुकान चलाने वाले व्यक्ति को तीन दिनों के अंदर हटा दिया। उसके स्थान पर एचबीटीयू की एक महिला प्रोफेसर के परिचित को यह कार्य दिया गया। दस साल पुरानी चाय-नाश्ता की दुकान बंद कराकर कानपुर की होटलचेन संस्था को ठेका दे दिया गया। सूत्रों का कहना है कि इस होटल चेन संचालक ने लंबे समय से विवि के बिजली का भुगतान नहीं किया। कैंटीन के रूप में इस्तेमाल स्थान का किराया भी नहीं दिया है। सूत्रों का कहना है कि तीन दिनो के नोटिस पर ही कानपुर विवि की कैन्टीन बंद कराने से संचालक को 20 लाख से अधिक की चपत लग गई। दरअसल, लंबे समय से कैन्टीन चलाने के चलते बड़ी संख्या में छात्र उसके यहां उधार चाय-काफी करते रहे हैं। अचानक कैन्टीन बंद होने से छात्रों ने उधार रकम देने से इंकार दिया है।  

 

हाईलाइटर

कैंटीन आवंटन की प्रक्रिया क्या है ? ये सवाल भाषा विवि, एकेटीयू और कानपुर विवि के रजिस्ट्रार से जानने का प्रयास किया गया, सब का एक ही जवाब था ये विवि का आंतरिक मामला है।

 

नियम क्या है ?

उत्तर प्रदेश सरकार के बिजनेस रूल और अधिकतर विश्वविद्यालयों की परिनियमावली में कैंटीन, छात्रावास मेस संचालन का ठेका टेंडर से दिये जाना आवश्यक है। प्रो.विनय पाठक ने इन कानूनों के शिंकजे से बचने की कार्य परिषद की मीटिंगों में टेंडर प्रक्रिया पूरी होने की प्रत्याशा में पसंदीदा लोगों को ठेका आवंटित कर दिया।

 

 

 

विरोधी स्वर घोंटने को प्रो. आलोक, प्रो.विनय ने ईसी सदस्य का चुनाव नहीं कराया

 यूपी राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 में चार सदस्यों का चुनाव होना चाहिए

परवेज़ अहमद

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक और लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.आलोक राय ने विरोध के संभावित स्वर कुचलने के लिए कार्य परिषद में आवश्यक चार निर्वाचित सदस्यों का चुनाव ही नहीं कराया। निर्वाचित सदस्यों की गैरमौजूदगी में ढेरों ऐसे निर्णय हुये जिससे विश्वविद्यालयों को वित्तीय नुकसान हुआ और प्रशासनिक असंतुलन बढ़ गया। नियुक्ति और प्रोन्नतियों में भेदभाव किये गये, जिसकी शिकायत कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्य़नाथ से की गयी।   

यूपी राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 के मुताबिक सरकारी विश्वविद्यालय में नई नीतियां, प्रोफेसर, छात्र हितों के नाम पर कुलपति, रजिस्ट्रार, डीन, प्रॉक्टर के प्रशासनिक, वित्तीय फैसले तभी पूर्ण होते हैं जब कार्य परिषद की मंजूरी मिल जाती है। किसी सदस्य की आपत्ति पर बहुमत से अंतिम निर्णय होता है। आपत्ति के बिन्दु मिनट बुक्स में दर्ज कर दिये जाते हैं। नियमों के मुताबिक राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति अध्यक्ष, प्रतिकुलपति सदस्य, कुलसचिव पदेन सचिव होते हैं। वरिष्ठ प्रोफेसर, एससी और ओबीसी के दो-दो नुमाइंदे भी सदस्य होते हैं। चार सदस्य कुलाधिपति नामित करता है, जिनमें से एक हाईकोर्ट का प्रतिनिधि होता है। चार सदस्य कोर्ट सभा से निर्वाचित होते हैं। वर्ष 2014 के बाद का इतिहास है कि कुलपतियों की अनियमितता, सरकारी धन के दुरुपयोग, नियम विरुद्ध प्रोन्नतियों पर आपत्तियां निर्वाचित सदस्यों ने ही दाखिल की हैं। क्योंकि इन चार सदस्यों के अतिरिक्त सभी सदस्य शिक्षक होते हैं जो सीधे कुलपति के प्रशासनिक प्रेक्षण में कार्य करते हैं, लिहाजा आपत्ति से गुरेज करते हैं। सवाल उठाने पर ईसी से बाहर कर दिया जाने या उनके विरुद्ध किन्ही मामलों में जांच समितियां बना देने का इतिहास भी रहा है।

लिहाजा लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.आलोक राय, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक व उनके करीबी कुलपतियों ने विरोध का स्वर घोंटने के लिए कार्य परिषद के सदस्यों का निर्वाचन नहीं कराया। निर्वाचित सदस्यों की कार्य परिषद में नुमाइंदही न होने के चलते कुलपतियों ने यदि  गलत फैसले किये तो भी त आवाज नहीं उठी। यही नहीं, दोनों कुलपतियों ने  मनमानी तरीके से इमरजेंट मीटिंग बुलाई। फैसलों पर सहमति की मुहर लगवा ली। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय कार्यकाल के अंतिम दिनों में ताबड़तोड़ प्रोन्नतियां कर रहे हैं, जिसमें नियमों की अनदेखी के आरोप लग रहे हैं। फिर भी इमरजेंट मीटिंग बुलाकर प्रोन्नतियों पर कार्य समिति की मंजूरी ली जा रही है। सूत्रों का कहना है कि प्रो.राय के कार्यकाल में दस से अधिक इमरजेंट मीटिंग हुईं, जिसमें कोई ऐसा प्रस्ताव पास नहीं हुआ,  जिसकी इमरजेंसी रही हो। इसी तरह छत्रपति शाहू जी महाराज, भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा, भाषा विश्वविद्यालय का कुलपति रहते प्रो.विनय पाठक ने निर्माण, नियुक्ति, सिक्योरिटी, कैन्टीन के ठेकों की मंजूरी के लिए कार्य परिषद की कई मीटिंग की परन्तु परिषद के चार सदस्यों का चुनाव नहीं कराया। सूत्रों का कहना है कि एक दूसरे की मदद से जिन शिक्षाविदों ने कुलपति पद हासिल किया है, उन्होंने भी कार्य परिषद के सदस्यों के लिए चुनाव नहीं कराया। चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ, बरेली के विवि में कार्य परिषद के सदस्यों का चुनाव नहीं कराया गया है। इसे विरोध का स्वर कुचलने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

 

 

कैसे होता है चुनाव

 यूपी राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 की धारा 22, 23 और 24 में कोर्ट सभा का उल्लेख है। यह एक तरह का कोलेजियम है। जिसमें विश्वविद्यालय के आजीवन सदस्य, अध्यापकों के प्रतिनिधि, छात्र-छात्राओं के प्रतिनिधि, राज्य विधान मंडल के प्रतिनिधि सदस्य होते हैं। इनमें से ही चार सदस्यों को चुनाव के जरिये कार्य परिषद का सदस्य चुना जाता है। ये चुनाव कुलपति व कुलसचिव का आदेश पर ही होते हैं। निर्वाचित सदस्य विश्वविद्य़ालय के नियमित कर्मचारी नहीं होते हैं इसलिए वह धडल्ले से विरोध के स्वर बुलंद करते हैं। कुलपतियों ने इसी स्वर को गुम करने के लिए चुनाव न कराने की राह चुन लगी है।

 

नागरिकों को ‘ गिनी पिग ’ बनाने में प्रो.विनय पाठक ने नहीं छोड़ी कसर

 -प्रोफेसर, विभाग, न एक्सपर्ट पैनल फिर एमफार्मा, बी-फार्मा, पीएचडी करा रहे

-140 निजी कालेजों को बी-फार्मा, 50 को एम-फार्मा की मान्यता प्रदान की

-विदेशों में विशेषज्ञ डॉक्टरों से ज्यादा अहमियत रखते हैं फार्माकॉलाजिस्ट

-दवा बनाना, मानव शरीर पर दवा का असर जानना, बीमारी के कारण ढूंढना भी कार्य

परवेज़ अहमद

लखनऊ। घूसखोरी के आरोपी व छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने करोड़ों नागरिकों को गिनी पिग ’ ( नई दवाओं के शोध में इस्तेमाल पशु-पक्षी) बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) में फार्माकॉलॉजी विभाग व संवर्ग का प्रोफेसर न होने के बाद भी 140 निजी कालेजों को बी-फार्मा ( बेचलर ऑफ फार्मेसी) की मान्यता प्रदान कर दी। आश्चर्यजनक रूप  पीएचडी कोर्स शुरू कराया। दर्जनों छात्र-छात्राओं को फार्माकॉलॉजी में पीएचडी डिग्री अवार्ड भी हो रही है। सवाल ये कि आखिर मानव जीवन व स्वास्थ्य से जुड़ी शिक्षा से खिलवाड़ क्यों और जिम्मेदार कौन?

राजस्थान, उत्तराखंड के ओपन विश्वविद्यालयों के कुलपति रहने के बाद 2015 में उत्तर प्रदेश के अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि का कुलपति बनने के बाद प्रो.विनय कुमार पाठक ने बेचलर ऑफ फार्मेसी ( बी-फार्मा), मास्टर ऑफ फार्मेसी (एम-फार्मा) कोर्स की निजी कालेजों को मान्यता देना शुरू दिया। एकेटीयू मुख्य रूप से इंजीनियरिंग विवि हैं। यहां न तो फार्माकॉलॉजी विभाग है न  फार्माकॉलॉजी के प्रोफेसर हैं। सवाल ये जब विवि के पास प्रोफेसर, विभाग, विशेषज्ञ ही नहीं हैं तो निजी कालेजों को मान्यता कैसे दी जा रही है ? फार्मेसी काउंसिंल के नियमों का पालन कैसे हो रहा ? फार्मेसी काउंसिल क्या कर रहा ?  सवाल ये भी है कि जिन छात्र, छात्राओ को एकेटीयू पीएचडी डिग्री अवार्ड कर रहा-उन छात्र, छात्राओं के गाइड कौन हैं ? बिना प्रोफेसरों का एकेटीयू पीएचडी छात्र, छात्राओं की डीआरसी (  डिपार्टमेन्टल रिसर्च कमेटी) कैसे करा रहा ? कौन से और कहां के प्रोफेसर इसमें शामिल होते हैं। रिसर्च वर्क की क्रास चेकिंग कौन कर रहा और लिट्रेचर रिव्यू की गुणवत्ता कौन परख रहा है ?  

कितने कालेजों को है मान्यता

अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय ने उत्तर प्रदेश के 140 कालेजों को बी-फार्मा की मान्यता प्रदान कर रखी है, जिसने जरिये प्रतिवर्ष 15 हजार छात्र, छात्राएं बी-फार्मा की डिग्री लेकर निकल रहे हैं। और कुछ इसी विवि से मान्यता लेने वाले 50 से अधिक कालेजों में मॉस्टर ऑफ फार्मेसी (एम.फार्मा) की डिग्री ले रहे हैं। एमफार्मा के छात्रों का डिजर्टेशन कौन करा रहा है और मेडिसिन बनाने कैंसर के कारक खोजने जैसे कार्य कौन करा रहा है।

प्रो.विनय पाठक पर आरोप

प्रो.विनय पाठक पर आरोप है कि उन्होंने आईईटी के वित्त अधिकारी बीरेन्द्र चौबे से मारपीट  और सरकारी दस्तावेज फाड़ने के आरोप में चार्जशीटेंड गार्ड से डिप्टी रजिस्ट्रार बने आरके सिंह के माध्यम से निजी कालेजों को मान्यता प्रदान करायी गयी। प्रो. विनय पाठक ने निजी कालेजों को कोर्स की मान्यता, कालेजों की सबंद्धता का सारा कार्य डिप्टी रजिस्ट्रार आरके सिंह को दे रखा था। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की शिकायत भी शासन में हुई है। सवाल ये है कि आखिर मान्यता और सबद्धता से पहले शुद्ध चिकित्सा विज्ञान के इस कोर्स के लिए आवश्यक उपरकणों, लैब, पशुशाला आदि का निरीक्षण किसने किया ?

 

एम.फार्मा, बी.फार्मा में पढ़ाई

एम-फार्मा, बी-फार्मा की डिग्रीधारी का मुख्य कार्य मानव हित में नई दवा पर शोध, उपलब्ध दवा की गुणवत्ता, मानव शरीर पर प्रभाव और विभिन्न बीमारियों के कारक खोजना मुख्य कार्य है। यही कारण हैं यूरोप और पश्चिमी देशों में चिकित्सकों (डॉक्टरों) से अधिक अहमियत फार्माकॉलॉजी के विशेषज्ञों की होती है। शोध के क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीय चिकित्सक भी फार्माकॉलॉजी के विशेषज्ञों के साथ मिलकर ही बीमारियों पर शोध कार्य करते हैं। पर, प्रो.विनय पाठक की एक अदूरदर्शी नीति के चलते हर साल 15 हजार छात्र, छात्राएं गुणवत्ता विहीन डिग्री लेकर फार्माकॉलॉजी के क्षेत्र में जा रहे हैं।

 

रिसर्च की प्रक्रिया क्या है ?

प्रवेश परीक्षा, साक्षात्कार के बाद कोई छात्र, छात्रा पीएचडी में इनरोल होती है। जिसके बाद वह गाइड के साथ मिलकर टापिक तय करता है और उस पर काम करता है। निय़म के मुताबिक किसी भी प्राइवेट कालेज का प्रोफेसर बिना सरकारी को-गाइड के शोध नहीं करा सकता है। इत्तिफाक से फार्माकॉलॉजी में पीएचडी के लिए एकेटीयू के पास एक भी प्रोफेसर नहीं हैं, तो फिर निजी कालेज शोध करा कैसे रहे हैं  ? और मेडिकल कालेजों, चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपने छात्रों को छोड़कर निजी कालेजों के फार्मा के छात्रों के को-गाइड बन कैसे रहे हैं  ? यही नहीं शोध कार्यों की प्रगति परखने के लिए न्यूनतम प्रत्येक तीन माह में डीआरसी ( डिपार्टमेन्ट ऑफ रिसर्च कमेटी) होनी जरूरी होती है। जिस विश्वविद्यालय ने कोर्स की मान्यता दी होती है, उसके प्रोफेसरों को इसमें शामिल होना अनिवार्य होता है। जब एकेटीयू के पास कोई प्रोफेसर ही नहीं है तो फिर डीआरसी किसके जरिये कराई जा रही है।

कुलपति भूमिगत, खडाऊं प्रति कुलपति ने संभाली, कानपुर विवि चला कौन रहा ?

-49 दिनों से कुलपति के भूमिगत होने पर क्यों नहीं हो रही इमरजेंट कार्य परिषद

-तबादला होने पर कार्यमुक्त करने का अहसान उतार रहे कुलसचिव डॉ.अनिल यादव

-ऑनलाइन लीव मैनेजमेंट सिस्टम में वीसी माह में सिर्फ ढाई दिन अवकाश ले सकता

 

परवेज़ अहमद

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति उन्नचास (49 दिन ) दिन से भूमिगत हैं ? ऑनलाइन लीव मैनेजमेंट पोर्टल पर भी प्रो.विनय पाठक ने अवकाश नहीं लिया। पांच माह पहले यूपी सरकार कुलसचिव डॉ.अनिल यादव को विवि का कार्य छोड़ने का आदेश दे चुकी है, फिर भी पद नहीं छोड़ा। सवाल ये है कि कानपुर विवि प्रशासन क्या निरंकुश है। इन परिस्थितियों में सेमेस्टर परीक्षा, एडमीशन, निर्माण और नीतिगत निर्णय कौन ले रहा ?  विश्वविद्यालय कार्य परिषद की इमरजेंट मीटिंग क्यों नहीं हो रही ? दस हजार से अधिक छात्रों का भविष्य उज्जवल बनाने की जिम्मेदारी उठा रहे विश्वविद्यालय को संचालित कौन रहा ? कुलाधिपति कार्यालय, उच्च शिक्षा विभाग आंख क्यों मूंदे है।

लखनऊ के इंदिरानगर कोतवाली में 29 अक्टूबर को छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक के विरुद्ध डेढ़ करोड़ घूस लेने की एफआईआर हुई। वादी मुकदमा डेविड मारियो डेनिस ने कहा है कि प्रो.विनय पाठक कहते हैं कि उन्हें ऊपर तक पैसा देना होता है। ये ऊपर कौन है ? इसका जवाब  स्पेशल टॉस्क फोर्स ढूंढ रही है। पड़ताल बढ़ने के साथ ही प्रो.विनय पाठक पर भ्रष्टाचार के इल्जामों की श्रंखला भी लंबी होती जा रही। कुलपति प्रो. विनय पाठक भूमिगत हैं। जब कुलपति के अवकाश के लिए कुलाधिपति कार्यालय ने नियम निर्धारित कर रखे हैं। ऑन लाइन लीव मैनेजमेंट सिस्टम बनाया है, तब फिर प्रो. विनय पाठक के 49 दिन से भूमिगत होने की विवि प्रबंधन को अधिकृत सूचना नहीं तो कार्य परिषद (ईसी) की इमरजेंट मीटिंग क्यों नहीं हो रही ?  कुलपति साल में सिर्फ 30 दिन का अवकाश ले सकता है। कुलपति पदधारी अगर जीवन जोखिम वाली बीमारी की चपेट में आ जाता है और बिना सूचना अस्पताल में भर्ती होता है तो कार्य परिषद की इमरजेंट मीटिंग में चर्चा होनी चाहिए, ये ही नैतिकता है ? इस मीटिंग में विवि संचालित करने का जिम्मा किसी को सौंपकर सूचना कुलाधिपति कार्यालय को दी जानी चाहिए ? पर कानपुर विवि में अब तक में ऐसा नहीं हुआ। नियम कहता है कि बिना सूचना या निर्धारित अवधि से अधिक समय तक कुलपति के गैर हाजिर होने पर पर पदेन सचिव यानी कुलसचिव डॉ.अनिल यादव को ईसी की इमरजेंट मीटिंग बुलाकर उसकी सूचना देनी चाहिए। पर, उनका तो खुद का स्थानांतरण पांच माह पूर्व हो चुका है लेकिन प्रो.विनय पाठक के अति करीब के चलते शासन के आदेशों को दरकिनार कर दिया गया है। लिहाजा वह इमरजेंट ईसी  नहीं बुला रहे। यही नहीं, विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षकों को नजर अंदाज कर प्रो.विनय पाठक ने अपने करीबी प्रो. सुधीर अवस्थी को प्रतिकुलपति नियुक्त किया था। वह भी वो  कर्ज उतारने में लगे हैं, भले इसका खामियाजा विश्वविद्यालय के ढेरों शिक्षक, कर्मचारी व उससे संबंद्ध कालेजों के दस हजार छात्र भुक्त रहे हैं। छात्रों की अंक तालिकाओं में गड़बड़ियां हैं। छात्र फेल किये गये हैं, विरोध में आंदोलित भी हैं पर प्रो.विनय पाठक के प्रतिनिधि प्रो.सुधीर अवस्थी व डॉ.अनिल यादव छात्र समस्या व नियमों को हवा में उड़ा रहे हैं। डॉ.अनिल यादव की एक खास दल से राजनीतिक प्रतिबद्धता जगजाहिर है, आरोप है कि विवि के असमंजस में वे उस दल का लाभ तलाश रहे हैं।

 

संविधान पीठ का फैसला भी बेअसर

केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की पैरवी करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि 2015 के एक फैसले पर पुर्नविचार का अवसर है। इसके बाद दो दिन पहले हुई सुनवाई में इसी प्रकरण में न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना, न्यायमूर्ति रामा सुब्राम्णयम और न्यायमूर्ति नागरत्ना की संविधान पीठ ने कहा-शासन को प्रभावित करने में भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका होती है। इससे ईमानदार अधिकारियों, नागरिकों का मनोबल कम होता है। संविधान पीठ ने  कहा- प्रत्यक्ष सबूतों या फिर मौखिक या दस्तावेजी प्रकृति के सबूतों को आधार पर लोकसेवक को दोषी ठहराया जा सकता है। मगर कानपुर विश्वविद्यालय पर ये फैसला अभी बेअसर है। कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ घूसखोरी की एफआईआर उनकी मुखौटा कंपनी को ऑनलाइन धन ट्रांसफर होने के साक्ष्य उपलब्ध होने और पांच अन्य विश्वविद्यालयों की खामियों का पुलिंदा बिखरा होने के बाद भी कुलाधिपति कार्यालय ने चुप्पी साध रखी है। कानपुर विवि की कार्य परिषद के सदस्य भी खामोश हैं।

 

कानपुर विवि के ईसी मेम्बर

छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि की कार्य परिषद में 24 लोग हैं। इनमें से कई बड़े शिक्षाविद, उद्योगपति भी हैं लेकिन सबके सब खामोश हैं। सूत्रों के मुताबिक प्रो.विनय पाठक अध्यक्ष, डॉ. सुधीर अवस्थी, प्रतिकुलपति सदस्य, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति श्रीकांत त्रिपाठी, डॉ.जेएऩ गुप्ता जागरण एजूकेशन फाउंडेशन, डॉ. महेन्द्र अग्रवाल आईआईटी, प्रो.आरसी मिश्र, डॉ.संजय काला, प्रो.मुकेश रंगा, डॉ.सुधांशु पांडिया, डॉ.अंशू यादव, डॉ.एसके श्रीवास्तव, डॉ.रिपुदमन सिंह, डॉ.जोसफ डेनियल, डॉ.एमएच सिद्दीकी, डॉ.राजेश कुमार त्रिपाठी, डॉ.राजेश कुमार, डॉ.प्रमोद कुमार यादव, डॉ.उमेश चन्द्र वाजपेयी, डॉ.सुधीर कुमार वर्मा, प्रेम शंकर चौधरी वित्त अधिकारी, डॉ.अंजनी कुमार मिश्र और कुलसचिव अनिल कुमार यादव शामिल हैं।

 

कुलपति के अवकाश का नियम

 

-    वर्तमान तिथि से आगामी 10 दिनों के लिए अवकाश का आवेदन नहीं कर सकेंगे। (अर्थातः 10 दिन का अवकाश लेने के लिए प्रॉयर सूचना देनी होगी)

-    अवकाश कैलेंडर में बतौर अवकाश चिन्हित तिथियों के लिए अवकाश नहीं ले सकेंगे । (अर्थातः होली, दीपावली, ईद, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस का अवकाश नहीं ले सकेंगे)

-    शनिवार और रविवार के दिन कुलपति अवकाश नहीं ले सकता।

-    वर्तमान तिथि व पूर्व की तिथि (अर्थातः सोमवार को अवकाश लेना है तो सोमवार को ही आवेदन नहीं कर सकते, इसके लिए रविवार को ही आवेदन करना होगा और एडवांस में कोई छुट्टी नहीं ले सकते)

-    एक जनवरी से 31 दिसम्बर तक यानी एक साल में तीस दिन अवकाश ले सकता हैं। अर्थात माह में सिर्फ ढाई दिन की छुट्टी अनुमन्य है।

 

कोट

मैं, बहुत व्यस्त हूं। बहुत काम है। सब ठीक चल रहा है। कार्य परिषद और कुलपति जी के संबंध में सही जानकारी जनसंपर्क अधिकारी ही दे सकते हैं, ( ध्यान रहे जनसंपर्क अधिकारी संविदा कर्मचारी हैं। कुछ माह पहले प्रो.विनय पाठक ने उन्हें नियुक्त किया) उनसे बात कीजिए। हम जानकारी नहीं दे सकते। बात में बात करेंगे- प्रति कुलपति सुधीर अवस्थी

 

Friday 2 December 2022

इंजीनियरिंग गुणवत्ता सुधार का धन दूसरे विश्वविद्यालयों को बांटा !

 राजस्थान, उत्तराखंड से साक्ष्य लेकर एसटीएफ के पास पहुंच रहे हैं लोग

परवेज़ अहमद

 लखनऊ। छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय का कुलपति रहते हुए सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की गुणवत्ता बेहतर करने, संसाधन बढ़ाने वाले करोड़ों रुपये दूसरे विश्वविद्यालयों को आवंटित कर दिये थे। एसटीएफ की जांच में यह खुलासा हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान विवि में वित्तीय व प्रशासनिक अनियमितताओं से जुड़े दस्तावेज लोग स्वतः ही स्पेशल टॉस्क फोर्स (यूपीएसटीएफ) को उपलब्ध करा रहे हैं। इनमें से कुछ लोग एसटीएफ के गवाह बनने तक को तैयार हैं।

डेढ़ दशक से लंबे समय से लगातार किसी न किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बनते आ रहे प्रो.विनय पाठक के खिलाफ उच्च शिक्षा से जुड़े लोगों की नाराजगी का आलम ये है कि वे उत्तराखंड व राजस्थान से दस्तावेज लेकर लखनऊ में एसटीएफ के अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं। सामन्यतः जब किसी प्रकरण की जांच करती है कि शिकायतकर्ता के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति साक्ष्य उपलब्ध कराने को पुलिस के सामने नहीं आता है। मगर, प्रो.विनय पाठक के मामले में यह उल्टा है। सूत्रों का कहना है कि प्रो.विनय पाठक ने दीनदयाल उपाध्याय क्वालिटी इमप्रूवमेंट प्रोग्राम (डीडीयूक्यूआईपी) मिले 300 करोड़ रुपये में भारी राशि बीआईटी झांसी, मदन मोहन मालवीय विवि गोरखपुर और एचबीटीआई को आवंटित कर दिया। यह राशि राज्य सरकार द्वारा इंजीनियिरंग कालेज में प्रवेश परीक्षा शुल्क के जरिये जुटाये गये थे, जिसे प्राविधिक शिक्षा विभाग ने एकेटीयू को सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों को आवंटित करने के लिए आवंटित किया था। सूत्रों का कहना है कि बीआईटी को 15 करोड़, एचबीआईटी को 10 और मदन मोहन मालवीय विवि को दस-दस करोड़ रुपया आवंटित किया गया था। सूत्रों का कहना है कि इतना ही नहीं कुलपति प्रो.विनय पाठक के कार्यकाल में कम्प्यूटर लैब बनाने के नाम पर भी भारी वित्तीय गड़बड़ी की गयी है।

प्राविधिक शिक्षा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि एचबीटीआई, बीआईटी और मदनमोहनल मालवीय खुद स्वायत्तशासी व स्वतंत्र संस्था हैं। ये संस्थाएं अपनी प्रवेश परीक्षाएं स्वतः कराती है। इन संस्थाओं को एकेटीयू ने आखिर किस आधार पर धन आवंटित किया। वित्तीय हैंडबुक के मुताबिक कोई विवि दूसरे विवि को योजनामद का धन आवंटित नहीं कर सकता है। इस प्रकरण की शिकायत हुई लेकिन उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सूत्रों का कहना है कि इस मामले की शिकायत कुलाधिपति व राजभवन कार्यालय को भी की गयी थी, मगर उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी।

   

राजभवन की खामोशी पर चर्चा !

लखनऊ। कानपुर विवि के कुलपति के खिलाफ घूसखोरी की एफआईआर, भ्रष्टाचार की नित्य नई परतें खुलने के बाद कुलाधिपति व राजभवन कार्यालय की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं। कल छह पूर्व विधायकों के पत्र में कानपुर विवि के कुलपति के खिलाफ कार्रवाई न होन पर सवाल उठाया गया था। सूत्रों का कहना है कि प्रो.विनय पर लगे आरोपों की जांच कर रहे एसटीएफ के शीर्ष अधिकारियों ने भी राजभवन को बताया है कि जिन विवि का प्रो.विनय के पास चार्ज था, वहां से बड़े पैमाने पर दस्तावेजी शिकायतें मिल रही हैं। कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी राजभवन जाकर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की थी, जाहिरा तौर पर यह शिष्टाचार मुलाकात थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कानपुर विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक पर लगे आरोपों, जांच की दिशा पर भी चर्चा की है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं है। इस  संबंध में पक्ष जानने के लिए राज्यपाल की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी से बात का कई बार प्रयास किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।