मुलायम ने अधिवेशन टाल बंद रखी 'मुठ्ठीÓ
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-सपा का पांच जनवरी को प्रस्तावित राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित
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लखनऊ : रविवार को जिस मैदान पर अखिलेश यादव की राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी की गयी, उसी स्थान पर 5 जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन को टाल कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने मुठ्ठी बंद ही रहने देने का काम किया। प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने सोमवार को प्रात: करीब पौने पौ बजे ट्वीट के जरिये अधिवेशन को स्थगित करने की जानकारी दी।
इस जवाबी सम्मेलन को घोषणा के मात्र 17 घंटे के भीतर ही टाल देने को मुलायम सिंह यादव का रणनीतिक फैसला माना जा रहा है। दरअसल अपनों से सियासी वजूद बचाने की जंग में उलझे सपा सुप्रीमो अभी नहीं चाहते कि सम्मेलनों में भीड़ के जुटान को लेकर रस्साकसी बढ़ाई जाए। लोगों को यह आकलन करने का अवसर भी न मिले कि भीड़ किसने अधिक जुटायी और कौन नेता किस पाले में है? मुख्यमंत्री अखिलेश के सम्मेलन में अधिकतर मंत्री व विधायकों के पहुंचने के बाद से शिवपाल खेमा हैरान है। मुलायम सिंह को हटाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाते समय मंच पर अधिकतर मंत्री मौजूद थे। जिसमें कई ऐसे चेहरे भी थे जिनको शिवपाल के खेमे का माना जाता है। मंत्री व विधायकों को पाला बदलते देखकर शिवपाल खेमे को पांच जनवरी का अधिवेशन फ्लाप होने का डर भी सता रहा था। बता दे कि गत दिनों विधायकों की बैठक अलग अलग बुलाए जाने पर मुख्यमंत्री अखिलेश का पलड़ा भारी पड़ा था। तब मुख्यमंत्री आवास पर जहां दो सौ से अधिक विधायक एकत्र हुए थे, वहीं पार्टी कार्यालय में शिवपाल यादव के बुलावे पर दो दर्जन से ज्यादा विधायक जमा नहीं हो सके थे।
कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे का डर : अधिवेशन स्थगित करने की वजह कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे की आशंका को भी बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अखिलेश व रामगोपाल के अधिवेशन को जिन कारणों से असंवैधानिक करार देने की बात कही जा रही है। उसमें कई कारण पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन पर भी लागू होते। मसलन अधिवेशन आहूत करनेे से पहले अनिवार्य 15 दिन का समय भी नहीं दिया गया था। अखिलेश समर्थक विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने इन कारणों को प्रचारित करना शुरू कर दिया था। ऐसे में अधिवेशन की वैधानिकता पर सवाल खड़े होते तो मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रीय अध्यक्षता को चुनाव आयोग में बचाए रखना भी मुश्किल होता।
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अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, करीबी एमएलसी उदयवीर, सुनील यादव साजन व बर्खास्त युवा ब्रिगेड के साथ सदस्यों की चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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नेताजी निकालें अमर को और रामगोपाल को अखिलेश
-सपाइयों ने सुलह फार्मूले के साथ मुलायम-अखिलेश को लिखे पत्र
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लखनऊ : कहते हैं राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती ! इसी भरोसे कुछ समाजवादियों ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को आपस में सुलह कर लेने का सुझाव देना शुरू किया है। दोनों नेताओं को पत्र लिखे जा रहे हैं। कुछ ने सुलह का फार्मूला भी सुझाया है।
'साइकिलÓ चिन्ह जब्त होने की आशंका से युवा व बुजुर्ग दोनों ही पीढिय़ां भयभीत हैं। सपा में संग्र्राम शुरू होने के बाद जहां नेताओं के 'पत्र बमÓ आग में घी का काम कर रहे थे, वहीं इस बार के पत्र शांति बनाने का प्रयास हैं। युवा सोशल मीडिया पर विचार रख रहे हैं। ज्यादातर का मानना है कि पार्टी को मुलायम का आशीïर्वाद जरूरी है, वरना चुनाव में नुकसान होगा और पार्टी केपन्नों पर बदनुमा कहानी भी दर्ज होगी।
सपा के छठवें अधिवेशन के संयोजक रहे गोपाल अग्रवाल ने मुलायम व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों को पत्र लिखा है। मुलायम को भेजे पत्र में उन्होंने कहा है कि समाजवादी आंदोलन बिखरने से बचाने के लिए परिवार में एका जरूरी है। परिवार का सर्वेसर्वा होने के नाते मुलायम को खुद प्रयास करने में हिचक नहीं होनी चाहिए जबकि अखिलेश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि उन्हें पिता को मनाने का प्रयास करना चाहिए। बुंदेलखंड के एक प्रमुख सपा नेता इम्तियाज खां ने अपने पत्र में अखिलेश यादव को सपा का भविष्य बताते हुए नेताजी को हालात संभालने का सुझाव दिया गया है। कुछ कार्यकर्ताओं ने अमर सिंह के साथ राम गोपाल को भी बाहर का रास्ता दिखाकर हालात संभालने का सुझाव दिया है।
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सुलह का फार्मूला
-अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपने मनोनयन को स्वत: खारिज कर, मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकारें
-अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष व संसदीय बोर्ड का मुखिया बनाया जाए
-शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर, राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया जाए
-प्रो.राम गोपाल, अमर सिंह को सपा से निकालकर उनकी प्राथमिकता सदस्यता रद की जाए
-दोनों पक्ष चुनाव आयोग में दाखिल किए जा रहे दस्तावेज वापस लें
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हटो नहीं चाहिए, सुरक्षा
लखनऊ : सुरक्षा कर्मियों के प्रति रवैया नरम रखने वाले मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल होने की सूचना मिलने पर सुरक्षाकर्मियों पर भड़क गये। विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर तैनात 'सीएम सिक्योरिटीÓ के जवानों को डपटते हुए कहा कि 'हटो, नहीं चाहिए तुम्हारी सुरक्षा।Ó बाहर जाओ। अपनी सुरक्षा कर सकता हूं। हालांकि सुरक्षा कर्मी कुछ दूर हटकर रुक गये। ध्यान रहे, मुख्यमंत्री शाम को विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर रहते हैं, इसके चलते वहां सीएम सिक्योरिटी के जवान भी सुरक्षा के लिए नियुक्त हैं। सुरक्षा कर्मियों को डांटने के बाद मुलायम अलग-अलग कमरों में मौजूद समर्थकों से जाकर मिलते रहे। सामान्यत: वह आगंतुकों को अपने कक्ष में बुलाकर मिलते हैं।
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चाचा के फैसले का विरोध करना पसंद आया अखिलेश को
- ददुआ के भाई की सपा में दाखिले के खिलाफ थे नरेश उत्तम
- ददुआ के बेटे को टिकट का भी किया था विरोध
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परवेज अहमद, लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी ओर से नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर राजनीति के अपराधीकरण का विरोध करने वालों को महत्व देने का संदेश दिया है। प्रदेश में जब ददुआ के आतंक का डंका बजता था और वह बुंदेलखंड की सियासी दिशा तय करने में प्रभावी था, उस समय नरेश उत्तम ने उसके भाई बाल कुमार को पार्टी में लेने का मुखर विरोध किया था, हालांकि इसकी सजा के तौर पर उनका टिकट काट दिया गया था।
वर्ष 2000 में शिवपाल यादव की सिफारिश पर ददुआ के भाई बाल कुमार का सपा में प्रवेश कराया गया, जिसका नरेश उत्तम ने विरोध किया था। उन्होंने धरना प्रदर्शन तक किए। वह आंदोलन शिवपाल को इतना अखरा था कि 2002 के विधानसभा चुनाव में नरेश उत्तम का टिकट कट गया। उनकी परंपरागत जहानाबाद सीट पर मदन गोपाल वर्मा को प्रत्याशी बना दिया गया तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। इसके बाद मुलायम सिंह ने नरेश उत्तम को तवज्जो देना शुरू कर दिया और अपने संसदीय चुनावों का प्रभारी बनाया। लगातार दो बार उन्हें एमएलसी बनाया गया। 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने के अभियान में गायत्री के साथ उन्हें भी लगाया गया था। इस दौरान भी नरेश राजनीति के अपराधीकरण के विरोध में खड़े रहे। वर्ष 2012 में अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्होंने नरेश उत्तम को अपनी कमेटी में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया।
चाचा भतीजे के बीच शुरू हुई कलह के बाद शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई तो नरेश उनकी कमेटी से बाहर हो गए। राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के मुखर विरोधी नरेश उत्तम अखिलेश को इतना भाये कि उन्हें सीधे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ही सौंप दी। उनका कुर्मी होना भी उनके पक्ष में एक कारण बना। इस तरह अखिलेश ने भाजपा के पिछड़ा कार्ड का जवाब देने का प्रयास तो किया ही है, अपना दल के प्रभावशाली कुर्मी नेताओं का कद भी नापा है। सूत्रों का कहना है कि सोमवार को प्रदेश अध्यक्ष के साथ मीटिंग में अखिलेश यादव ने उन्हें कुर्मी वोटों को पाले में करने का जिम्मा दिया है। बाराबंकी की रामनगर सीट से बेनी वर्मा के बेटे को शिवपाल द्वारा प्रत्याशी घोषित करनेके दांव की घेरेबंदी करना भी इस नियुक्ति का मकसद हो सकता है।
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तीन घंटे कार्यालय में बैठे
नरेश उत्तम सोमवार को तकरीबन तीन घंटे तक सपा कार्यालय में रहे। हालांकि इस दौरान दफ्तर में पूरी तरह सन्नाटा रहा। आम दिनों में वहां मौजूद रहने वाले समर्थक, कर्मचारियों में से भी अधिकतर गायब थे। इसे बदले निजाम के प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। बताया गया है कि शीर्ष स्तर की ज्यादातर इकाइयां कुछ दिन बंद रखने की हिदायत दी गई थी जिसके चलते कर्मचारी भी नहीं पहुंचे।
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पिता-पुत्र की 'जंगÓ में खुद का नफा देख रही बसपा
- सपा में दंगल से मुस्लिम मतों में भ्रम का फायदा उठाने की कोशिश
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर पिता-पुत्र की 'जंगÓ में बहुजन समाज पार्टी खुद का नफा देख रही है। नेतृत्व को पूरा भरोसा है कि मुस्लिम मतों में फैलते भ्रम का सर्वाधिक फायदा उसे ही मिलेगा।
पांचवी बार सूबे की सत्ता में काबिज होने की कोशिश में लगी बसपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ को पुख्ता करने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। वर्ष 2012 में सपा के हाथों राज्य की सत्ता गंवाने वाली बसपा का मानना है कि यदि मुस्लिम उसके साथ आ जाएं तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ से सरकार बनना तय है। लेकिन सपा सरकार द्वारा मुस्लिम समाज के लिए किए गए कार्यों और मुलायम सिंह के प्रति मुस्लिमों के लगाव के चलते मुस्लिम समाज को सपा से अलग करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है। इस बात को बसपा भी समझ रही थी कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतों के कांग्रेस के बजाय सपा में धुव्रीकरण से उसका ही नुकसान होगा।
हालांकि, चार माह पहले सितंबर से समाजवादी परिवार में शुरू हुई कलह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अब जिस तरह से पिता-पुत्र के बीच जंग में तब्दील होती दिख रही है उसमें बसपा को खुद का फायदा दिखाई दे रहा है। 'जंगÓ पर बसपा के वरिष्ठ नेता खुल कर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि भले ही यह पारिवारिक ड्रामा हो लेकिन इससे मुस्लिम समाज में सपा को लेकर भ्रम ही पैदा हो रहा है। भ्रम के चलते मुस्लिम मतों में बटवारे से भाजपा को होने वाले फायदे का डर दिखाकर बसपा प्रमुख मायावती भी मुस्लिम समाज को यही समझाने में लगी हैं कि वह अपना मत सपा को न देकर बसपा को ही दें।
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दलित मुस्लिम एका जीत की गारंटी : बसपा अपनी पूरी ताकत मुस्लिमों को यह समझाने में लगी है कि भाजपा को हराना है तो दलित मुस्लिमों को एकजुट रहना होगा। 19 फीसद मुस्लिम व 21 प्रतिशत दलितों की आबादी का गणित भी भाईचारा समितियों की बैठकों में समझाया जा रहा है। बसपा शासन में मुस्लिम हित में किए कार्यो की एक पुस्तिका प्रकाशित कराकर वितरित की जा रही है।
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मुलायम बिन मुस्लिमों को नहीं लुभा पाएगी सपा
- राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से मुलायम सिंह को हटाने से मुस्लिमों की बेचैनी बढ़ी
- नाम न छापने की शर्त पर कई विधायकों ने खोली जुबान
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में आर-पार की लड़ाई ने मुस्लिमों को सबसे ज्यादा बेचैन किया है। वह मुलायम सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले को जोखिम भरा मान रहे हैं। मुख्यमंत्री से जुड़ा मामला होने के कारण वह जुबान नहीं खोल रहे हैं, मगर इशारे कहते हैं कि 'रहनुमाÓ (मुलायम) को हटाने का यह अंदाज उन्हें रास नहीं आया है।
रविवार को जनेश्वर मिश्र पार्क के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने आए पूर्वी उप्र के एक मुस्लिम नेता का कहना है कि मुसलमान अब तक मुलायम सिंह को ही अपना हमदर्द मानता है, जबकि प्रो.राम गोपाल को लेकर उसकी 'अरुचिÓ है। ऐसे में मुलायम को जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया, उससे उनके लाखों प्रशंसकों के दिल पर चोट लगी है। विधानसभा चुनाव से पहले हालात नहीं सुधारे गए तो मुश्किलें बढऩे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट से टिकट मांग रहे एक नेता का कहना है कि मुलायम को आगे किए बिना मुस्लिमों को लुभाना आसान नहीं होगा। पश्चिम उप्र में वैसे भी बसपा का दलित-मुस्लिम गणित समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचने वालों में भी मुस्लिम नेताओं की संख्या कम रहीं जबकि दिल्ली पहुंचे मुलायम से सबसे अधिक मुस्लिम ही मिले। गत दिवस के घटनाक्रम से हैरत में एक महिला मुस्लिम विधायक का कहना है कि भाजपा को रोकना है तो समाजवादी झगड़ा तत्काल रोकना होगा। उनका कहना है, मुख्यमंत्री की लोकप्रियता बेशक सबसे ज्यादा है मगर मुसलमान अभी मुलायम को ही अपना रहनुमा मानते है।
बिन साइकिल होगी मुश्किल : सपा का चुनाव साइकिल आपसी कलह में गवांने का डर भी कार्यकर्ताओं को सता रहा है। मुख्यमंत्री को बधाई देकर लौटे पश्चिम उप्र के एक विधायक का कहना है कि साइकिल चिन्ह बचना सबसे अधिक जरूरी है। चुनाव नजदीक है। साइकिल के स्थान पर नए चुनाव निशान को जनता में लोकप्रिय बनाना आसान नहीं होगा। इस मुस्लिम विधायक को अब भी उम्मीद है कि साइकिल के लिए सही समाजवादी परिवार में जल्द एका हो जाएगा।
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अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। मुख्यमंत्री से मिलने वालों में एमएलसी एसआरएस यादव, साहब सिंह सैनी, कांग्र्रेस से सपा में आये मुकेश कुमार श्रीवास्तव, मौलाना बुखारी का दामाद व एमएलसी उमर अली और कई प्रत्याशी शामिल थे। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के साथ चर्चा की। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पूर्व सांसद उदय प्रताप से भी मुलाकात की। उनसे मौजूदा परिस्थितियों पर चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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फैसले के बाद राय कायम करूंगा: आजम
लखनऊ : समाजवादी परिवार का संग्राम शांत कराने का प्रयास विफल होने के बाद मंत्री आजम खां ने भी चुप्पी साध ली है, जबकि लोगों की निगाहें उनके कदम की ओर ही लगी रहीं। शाम को कुछ लोगों से बातचीत में आजम ने कहा कि पूरा मामला निर्वाचन आयोग में चला गया है, मुलायम सिंह दिल्ली में हैं। सुना है कि सुप्रीम कोर्ट भी मामला जा रहा है। कोई फैसला आने के बाद राय कायम करूंगा।
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मुलायम सिंह मुझे पार्टी से नहीं निकाल सकते हैं, मैं समाजवादी हूं समाजवादी रहूंगा। समाजवाद के लिए जेल भी जा चुका हैं। मेरे निष्कासन का जो लेटर जारी हुआ है, उस पर संभवत: मुलायम के फर्जी हस्ताक्षर हैं।
-किरनमय नंदा (सपा से निकाले जाने के बाद)
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देखिए मैं बीमार नहीं हूं: मुलायम
लखनऊ : समाजवादी पार्टी में तख्ता पलट के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी मेरी है। प्रत्याशी घोषित हैं, वह चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी। चुनाव चिन्ह पर मेरे ही हस्ताक्षर होंगे। सोमवार को दिल्ली रवाना होने से पहले मुलायम ने मीडियाकर्मियों से कहा कि मैं बीमार नहीं हूं। आप देखिए, मैं ठीक हूं। मीडिया ने हमेशा मेरा साथ दिया है। मैंने कोई गलत काम नहीं किया। करप्शन नहीं किया है। इल्जाम लगा भी तो सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया है। साइकिल तो मेरी ही है। इसी पर प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी।
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-बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा, चुनाव आयोग करेगा निर्णय
-सपा में सब कुछ हो जाएगा ठीक : अंबिका चौधरी
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लखनऊ : सपा परिवार में मचा घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। रोज नया विवाद सामने आ रहा है। इस हाई वोल्टेज सियासी ड्रामे में सपाई दो खेमे में बंट गए हैं। वरिष्ठ नेताओं में भी कुछ मुलायम सिंह के साथ हैं तो कुछ अखिलेश यादव के। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कुंवर रेवतीरमण सिंह इलहाबाद से लखनऊ आकर डेरा डाले हुए हैं। वह बीच का रास्ता निकालने में जुटे हैं ताकि पिता-पुत्र में समझौता हो सके। उनका कहना है कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) चुनाव आयोग गए हैं। वहां से लौटने के बाद फिर दोनों के बीच बात कराई जाएगी। यह परिवार का झगड़ा है और इसे सुलझा लिया जाएगा। हमारी पूरी कोशिश होगी कि पार्टी में दो फाड़ न हो।
दूसरी ओर, बाराबंकी में पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा कि मुलायम ङ्क्षसह यादव चुनाव आयोग में गए हैं। आयोग के निर्णय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन टाल दिया गया है। यदि अधिवेशन होता तो वह उसमें जरूर शामिल होते। उन्होंने कहा कि जंग के वक्त रणनीति के बारे में बताया नहीं जाता। स्थिति को देखते हुए फैसले लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि राकेश को (बेनी के पुत्र) रामनगर विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ाएंगे। गौरतलब है कि जिन सीटों के प्रत्याशियों को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिद पर अड़े थे, उनमें बाराबंकी की रामनगर विधानसभा सीट भी शामिल है, जिस पर शिवपाल यादव की सूची में राकेश वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया है। इसी सीट से ग्राम्य विकास मंत्री अरङ्क्षवद ङ्क्षसह गोप विधायक हैं।
वहीं, वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी ने सोमवार देर रात टेलीफोन पर बताया कि मुलायम सिंह यादव हम सभी के सर्वमान्य नेता हैं और रहेंगे। उनकी बात कोई भी नहीं टालता। अखिलेश व मुलायम के बीच संबंधों की तल्खी पर अंबिका चौधरी ने माना कि कुछ दूरियां बढ़ीं हैं। मगर लगे हाथ यह भी कहा कि भरोसा रखिए, सब कुछ पहले जैसा ठीक हो जाएगा। सपा का यह शीर्ष कुनबा न टूटा है, न टूटेगा। मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ में पांच जनवरी को आहूत राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित करने के कारणों पर अंबिका चौधरी ने बताया कि राजनीति में यह सब चलता रहता है। इस अधिवेशन को राजनीतिक कारणों से ही रद किया गया है। भविष्य में नेताजी जब उचित समझेंगे, अधिवेशन की अगली तिथि तय कर देंगे। मुलायम सिंह यादव व मुझ समेत सपा के कुछ अन्य वरिष्ठ नेता चुनाव आयोग गए जरूर थे, मगर यह कार्यक्रम मुलाकात तक ही सीमित रहा। आयोग के साथ औपचारिक मुलाकात हुई, कुछ बातें हुईं और चाय पीकर हम सभी बाहर आ गए।
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मद्धिम ही निकला नए निजाम का पहला सूरज
- सपा का प्रदेश कार्यालय खुला पर नहीं दिखी पहले सी रौनक
लखनऊ : सोमवार को साल का पहला कार्यदिवस था तो समाजवादी पार्टी के नए निजाम का सूरज भी पहली बार निकला था। यह अद्भुत संयोग था कि आसमान में ढूंढने पर भी सूरज का नामोनिशान नहीं था तो इधर सपा के प्रदेश कार्यालय का भी नूर उड़ा हुआ था। खास तौर से प्रदेश में सरकार बनने के बाद बीते पांच साल से जिस माहौल को बिंदास और बेफिक्र जैसे अल्फाजों से पहचाना जाता था, वह सोमवार को पहले दिन ही पुलिस के पहरे में कड़ी पूछताछ के बीच सहमा सा कहीं दुबका हुआ था।
एक दिन पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री समर्थकों ने प्रदेश कार्यालय पर कब्जा कर लिया था। पुलिस ने भी घेरेबंदी बढ़ा दी थी। रविवार को हुए इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बाद सोमवार को पहला कार्यदिवस होने के नाते सबकी निगाहें दिन भर होने वाले घटनाक्रम पर टिकी थीं। सुबह से ही मुख्यमंत्री के पांच, कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास के बाहर जुटी फरियादियों की भीड़ बता रही थी कि परिवार का झगड़ा चाहे जो हो, लेकिन मुख्यमंत्री से लोगों की आस कम नहीं हुई है। जनता दरबार में इलाहाबाद से कई लोगों के साथ आए राकेश को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री तक उनकी शिकायत पहुंच जाएगी तो शायद उन्हें पुलिस उत्पीडऩ से भी छुटकारा मिल जाएगा।
उधर विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पहुंचे और दो घंटे काम किया। मुख्यमंत्री के ओएसडी जगजीवन प्रसाद ने भी कुछ देर काम निपटाया, लेकिन बाकी चहल पहल नदारत थी। न रोज की तरह वाहनों को कार्यालय में प्रवेश करने दिया जा रहा था और न ही सहज भाव से लोग भीतर आ पा रहे थे। गेट पर पूछताछ होने और भीतर जाने की स्पष्ट वजह होने पर ही लोगों को दाखिल होने दिया गया। इस बीच कार्यालय के गलियारे सन्नाटे में ही डूबे रहे। मुलायम के राजनीतिक सचिव रहे और वर्तमान में कार्यालय सचिव वीरेंद्र सिंह भी अपने दफ्तर नहीं पहुंचे। उधर मुलायम सिंह के आवास के बाहर भी सन्नाटा पसरा रहा।
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-सपा का पांच जनवरी को प्रस्तावित राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित
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लखनऊ : रविवार को जिस मैदान पर अखिलेश यादव की राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी की गयी, उसी स्थान पर 5 जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन को टाल कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने मुठ्ठी बंद ही रहने देने का काम किया। प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने सोमवार को प्रात: करीब पौने पौ बजे ट्वीट के जरिये अधिवेशन को स्थगित करने की जानकारी दी।
इस जवाबी सम्मेलन को घोषणा के मात्र 17 घंटे के भीतर ही टाल देने को मुलायम सिंह यादव का रणनीतिक फैसला माना जा रहा है। दरअसल अपनों से सियासी वजूद बचाने की जंग में उलझे सपा सुप्रीमो अभी नहीं चाहते कि सम्मेलनों में भीड़ के जुटान को लेकर रस्साकसी बढ़ाई जाए। लोगों को यह आकलन करने का अवसर भी न मिले कि भीड़ किसने अधिक जुटायी और कौन नेता किस पाले में है? मुख्यमंत्री अखिलेश के सम्मेलन में अधिकतर मंत्री व विधायकों के पहुंचने के बाद से शिवपाल खेमा हैरान है। मुलायम सिंह को हटाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाते समय मंच पर अधिकतर मंत्री मौजूद थे। जिसमें कई ऐसे चेहरे भी थे जिनको शिवपाल के खेमे का माना जाता है। मंत्री व विधायकों को पाला बदलते देखकर शिवपाल खेमे को पांच जनवरी का अधिवेशन फ्लाप होने का डर भी सता रहा था। बता दे कि गत दिनों विधायकों की बैठक अलग अलग बुलाए जाने पर मुख्यमंत्री अखिलेश का पलड़ा भारी पड़ा था। तब मुख्यमंत्री आवास पर जहां दो सौ से अधिक विधायक एकत्र हुए थे, वहीं पार्टी कार्यालय में शिवपाल यादव के बुलावे पर दो दर्जन से ज्यादा विधायक जमा नहीं हो सके थे।
कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे का डर : अधिवेशन स्थगित करने की वजह कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे की आशंका को भी बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अखिलेश व रामगोपाल के अधिवेशन को जिन कारणों से असंवैधानिक करार देने की बात कही जा रही है। उसमें कई कारण पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन पर भी लागू होते। मसलन अधिवेशन आहूत करनेे से पहले अनिवार्य 15 दिन का समय भी नहीं दिया गया था। अखिलेश समर्थक विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने इन कारणों को प्रचारित करना शुरू कर दिया था। ऐसे में अधिवेशन की वैधानिकता पर सवाल खड़े होते तो मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रीय अध्यक्षता को चुनाव आयोग में बचाए रखना भी मुश्किल होता।
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अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, करीबी एमएलसी उदयवीर, सुनील यादव साजन व बर्खास्त युवा ब्रिगेड के साथ सदस्यों की चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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नेताजी निकालें अमर को और रामगोपाल को अखिलेश
-सपाइयों ने सुलह फार्मूले के साथ मुलायम-अखिलेश को लिखे पत्र
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लखनऊ : कहते हैं राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती ! इसी भरोसे कुछ समाजवादियों ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को आपस में सुलह कर लेने का सुझाव देना शुरू किया है। दोनों नेताओं को पत्र लिखे जा रहे हैं। कुछ ने सुलह का फार्मूला भी सुझाया है।
'साइकिलÓ चिन्ह जब्त होने की आशंका से युवा व बुजुर्ग दोनों ही पीढिय़ां भयभीत हैं। सपा में संग्र्राम शुरू होने के बाद जहां नेताओं के 'पत्र बमÓ आग में घी का काम कर रहे थे, वहीं इस बार के पत्र शांति बनाने का प्रयास हैं। युवा सोशल मीडिया पर विचार रख रहे हैं। ज्यादातर का मानना है कि पार्टी को मुलायम का आशीïर्वाद जरूरी है, वरना चुनाव में नुकसान होगा और पार्टी केपन्नों पर बदनुमा कहानी भी दर्ज होगी।
सपा के छठवें अधिवेशन के संयोजक रहे गोपाल अग्रवाल ने मुलायम व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों को पत्र लिखा है। मुलायम को भेजे पत्र में उन्होंने कहा है कि समाजवादी आंदोलन बिखरने से बचाने के लिए परिवार में एका जरूरी है। परिवार का सर्वेसर्वा होने के नाते मुलायम को खुद प्रयास करने में हिचक नहीं होनी चाहिए जबकि अखिलेश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि उन्हें पिता को मनाने का प्रयास करना चाहिए। बुंदेलखंड के एक प्रमुख सपा नेता इम्तियाज खां ने अपने पत्र में अखिलेश यादव को सपा का भविष्य बताते हुए नेताजी को हालात संभालने का सुझाव दिया गया है। कुछ कार्यकर्ताओं ने अमर सिंह के साथ राम गोपाल को भी बाहर का रास्ता दिखाकर हालात संभालने का सुझाव दिया है।
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सुलह का फार्मूला
-अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपने मनोनयन को स्वत: खारिज कर, मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकारें
-अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष व संसदीय बोर्ड का मुखिया बनाया जाए
-शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर, राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया जाए
-प्रो.राम गोपाल, अमर सिंह को सपा से निकालकर उनकी प्राथमिकता सदस्यता रद की जाए
-दोनों पक्ष चुनाव आयोग में दाखिल किए जा रहे दस्तावेज वापस लें
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हटो नहीं चाहिए, सुरक्षा
लखनऊ : सुरक्षा कर्मियों के प्रति रवैया नरम रखने वाले मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल होने की सूचना मिलने पर सुरक्षाकर्मियों पर भड़क गये। विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर तैनात 'सीएम सिक्योरिटीÓ के जवानों को डपटते हुए कहा कि 'हटो, नहीं चाहिए तुम्हारी सुरक्षा।Ó बाहर जाओ। अपनी सुरक्षा कर सकता हूं। हालांकि सुरक्षा कर्मी कुछ दूर हटकर रुक गये। ध्यान रहे, मुख्यमंत्री शाम को विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर रहते हैं, इसके चलते वहां सीएम सिक्योरिटी के जवान भी सुरक्षा के लिए नियुक्त हैं। सुरक्षा कर्मियों को डांटने के बाद मुलायम अलग-अलग कमरों में मौजूद समर्थकों से जाकर मिलते रहे। सामान्यत: वह आगंतुकों को अपने कक्ष में बुलाकर मिलते हैं।
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चाचा के फैसले का विरोध करना पसंद आया अखिलेश को
- ददुआ के भाई की सपा में दाखिले के खिलाफ थे नरेश उत्तम
- ददुआ के बेटे को टिकट का भी किया था विरोध
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परवेज अहमद, लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी ओर से नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर राजनीति के अपराधीकरण का विरोध करने वालों को महत्व देने का संदेश दिया है। प्रदेश में जब ददुआ के आतंक का डंका बजता था और वह बुंदेलखंड की सियासी दिशा तय करने में प्रभावी था, उस समय नरेश उत्तम ने उसके भाई बाल कुमार को पार्टी में लेने का मुखर विरोध किया था, हालांकि इसकी सजा के तौर पर उनका टिकट काट दिया गया था।
वर्ष 2000 में शिवपाल यादव की सिफारिश पर ददुआ के भाई बाल कुमार का सपा में प्रवेश कराया गया, जिसका नरेश उत्तम ने विरोध किया था। उन्होंने धरना प्रदर्शन तक किए। वह आंदोलन शिवपाल को इतना अखरा था कि 2002 के विधानसभा चुनाव में नरेश उत्तम का टिकट कट गया। उनकी परंपरागत जहानाबाद सीट पर मदन गोपाल वर्मा को प्रत्याशी बना दिया गया तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। इसके बाद मुलायम सिंह ने नरेश उत्तम को तवज्जो देना शुरू कर दिया और अपने संसदीय चुनावों का प्रभारी बनाया। लगातार दो बार उन्हें एमएलसी बनाया गया। 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने के अभियान में गायत्री के साथ उन्हें भी लगाया गया था। इस दौरान भी नरेश राजनीति के अपराधीकरण के विरोध में खड़े रहे। वर्ष 2012 में अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्होंने नरेश उत्तम को अपनी कमेटी में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया।
चाचा भतीजे के बीच शुरू हुई कलह के बाद शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई तो नरेश उनकी कमेटी से बाहर हो गए। राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के मुखर विरोधी नरेश उत्तम अखिलेश को इतना भाये कि उन्हें सीधे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ही सौंप दी। उनका कुर्मी होना भी उनके पक्ष में एक कारण बना। इस तरह अखिलेश ने भाजपा के पिछड़ा कार्ड का जवाब देने का प्रयास तो किया ही है, अपना दल के प्रभावशाली कुर्मी नेताओं का कद भी नापा है। सूत्रों का कहना है कि सोमवार को प्रदेश अध्यक्ष के साथ मीटिंग में अखिलेश यादव ने उन्हें कुर्मी वोटों को पाले में करने का जिम्मा दिया है। बाराबंकी की रामनगर सीट से बेनी वर्मा के बेटे को शिवपाल द्वारा प्रत्याशी घोषित करनेके दांव की घेरेबंदी करना भी इस नियुक्ति का मकसद हो सकता है।
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तीन घंटे कार्यालय में बैठे
नरेश उत्तम सोमवार को तकरीबन तीन घंटे तक सपा कार्यालय में रहे। हालांकि इस दौरान दफ्तर में पूरी तरह सन्नाटा रहा। आम दिनों में वहां मौजूद रहने वाले समर्थक, कर्मचारियों में से भी अधिकतर गायब थे। इसे बदले निजाम के प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। बताया गया है कि शीर्ष स्तर की ज्यादातर इकाइयां कुछ दिन बंद रखने की हिदायत दी गई थी जिसके चलते कर्मचारी भी नहीं पहुंचे।
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पिता-पुत्र की 'जंगÓ में खुद का नफा देख रही बसपा
- सपा में दंगल से मुस्लिम मतों में भ्रम का फायदा उठाने की कोशिश
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर पिता-पुत्र की 'जंगÓ में बहुजन समाज पार्टी खुद का नफा देख रही है। नेतृत्व को पूरा भरोसा है कि मुस्लिम मतों में फैलते भ्रम का सर्वाधिक फायदा उसे ही मिलेगा।
पांचवी बार सूबे की सत्ता में काबिज होने की कोशिश में लगी बसपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ को पुख्ता करने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। वर्ष 2012 में सपा के हाथों राज्य की सत्ता गंवाने वाली बसपा का मानना है कि यदि मुस्लिम उसके साथ आ जाएं तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ से सरकार बनना तय है। लेकिन सपा सरकार द्वारा मुस्लिम समाज के लिए किए गए कार्यों और मुलायम सिंह के प्रति मुस्लिमों के लगाव के चलते मुस्लिम समाज को सपा से अलग करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है। इस बात को बसपा भी समझ रही थी कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतों के कांग्रेस के बजाय सपा में धुव्रीकरण से उसका ही नुकसान होगा।
हालांकि, चार माह पहले सितंबर से समाजवादी परिवार में शुरू हुई कलह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अब जिस तरह से पिता-पुत्र के बीच जंग में तब्दील होती दिख रही है उसमें बसपा को खुद का फायदा दिखाई दे रहा है। 'जंगÓ पर बसपा के वरिष्ठ नेता खुल कर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि भले ही यह पारिवारिक ड्रामा हो लेकिन इससे मुस्लिम समाज में सपा को लेकर भ्रम ही पैदा हो रहा है। भ्रम के चलते मुस्लिम मतों में बटवारे से भाजपा को होने वाले फायदे का डर दिखाकर बसपा प्रमुख मायावती भी मुस्लिम समाज को यही समझाने में लगी हैं कि वह अपना मत सपा को न देकर बसपा को ही दें।
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दलित मुस्लिम एका जीत की गारंटी : बसपा अपनी पूरी ताकत मुस्लिमों को यह समझाने में लगी है कि भाजपा को हराना है तो दलित मुस्लिमों को एकजुट रहना होगा। 19 फीसद मुस्लिम व 21 प्रतिशत दलितों की आबादी का गणित भी भाईचारा समितियों की बैठकों में समझाया जा रहा है। बसपा शासन में मुस्लिम हित में किए कार्यो की एक पुस्तिका प्रकाशित कराकर वितरित की जा रही है।
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मुलायम बिन मुस्लिमों को नहीं लुभा पाएगी सपा
- राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से मुलायम सिंह को हटाने से मुस्लिमों की बेचैनी बढ़ी
- नाम न छापने की शर्त पर कई विधायकों ने खोली जुबान
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में आर-पार की लड़ाई ने मुस्लिमों को सबसे ज्यादा बेचैन किया है। वह मुलायम सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले को जोखिम भरा मान रहे हैं। मुख्यमंत्री से जुड़ा मामला होने के कारण वह जुबान नहीं खोल रहे हैं, मगर इशारे कहते हैं कि 'रहनुमाÓ (मुलायम) को हटाने का यह अंदाज उन्हें रास नहीं आया है।
रविवार को जनेश्वर मिश्र पार्क के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने आए पूर्वी उप्र के एक मुस्लिम नेता का कहना है कि मुसलमान अब तक मुलायम सिंह को ही अपना हमदर्द मानता है, जबकि प्रो.राम गोपाल को लेकर उसकी 'अरुचिÓ है। ऐसे में मुलायम को जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया, उससे उनके लाखों प्रशंसकों के दिल पर चोट लगी है। विधानसभा चुनाव से पहले हालात नहीं सुधारे गए तो मुश्किलें बढऩे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट से टिकट मांग रहे एक नेता का कहना है कि मुलायम को आगे किए बिना मुस्लिमों को लुभाना आसान नहीं होगा। पश्चिम उप्र में वैसे भी बसपा का दलित-मुस्लिम गणित समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचने वालों में भी मुस्लिम नेताओं की संख्या कम रहीं जबकि दिल्ली पहुंचे मुलायम से सबसे अधिक मुस्लिम ही मिले। गत दिवस के घटनाक्रम से हैरत में एक महिला मुस्लिम विधायक का कहना है कि भाजपा को रोकना है तो समाजवादी झगड़ा तत्काल रोकना होगा। उनका कहना है, मुख्यमंत्री की लोकप्रियता बेशक सबसे ज्यादा है मगर मुसलमान अभी मुलायम को ही अपना रहनुमा मानते है।
बिन साइकिल होगी मुश्किल : सपा का चुनाव साइकिल आपसी कलह में गवांने का डर भी कार्यकर्ताओं को सता रहा है। मुख्यमंत्री को बधाई देकर लौटे पश्चिम उप्र के एक विधायक का कहना है कि साइकिल चिन्ह बचना सबसे अधिक जरूरी है। चुनाव नजदीक है। साइकिल के स्थान पर नए चुनाव निशान को जनता में लोकप्रिय बनाना आसान नहीं होगा। इस मुस्लिम विधायक को अब भी उम्मीद है कि साइकिल के लिए सही समाजवादी परिवार में जल्द एका हो जाएगा।
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अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। मुख्यमंत्री से मिलने वालों में एमएलसी एसआरएस यादव, साहब सिंह सैनी, कांग्र्रेस से सपा में आये मुकेश कुमार श्रीवास्तव, मौलाना बुखारी का दामाद व एमएलसी उमर अली और कई प्रत्याशी शामिल थे। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के साथ चर्चा की। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पूर्व सांसद उदय प्रताप से भी मुलाकात की। उनसे मौजूदा परिस्थितियों पर चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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फैसले के बाद राय कायम करूंगा: आजम
लखनऊ : समाजवादी परिवार का संग्राम शांत कराने का प्रयास विफल होने के बाद मंत्री आजम खां ने भी चुप्पी साध ली है, जबकि लोगों की निगाहें उनके कदम की ओर ही लगी रहीं। शाम को कुछ लोगों से बातचीत में आजम ने कहा कि पूरा मामला निर्वाचन आयोग में चला गया है, मुलायम सिंह दिल्ली में हैं। सुना है कि सुप्रीम कोर्ट भी मामला जा रहा है। कोई फैसला आने के बाद राय कायम करूंगा।
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मुलायम सिंह मुझे पार्टी से नहीं निकाल सकते हैं, मैं समाजवादी हूं समाजवादी रहूंगा। समाजवाद के लिए जेल भी जा चुका हैं। मेरे निष्कासन का जो लेटर जारी हुआ है, उस पर संभवत: मुलायम के फर्जी हस्ताक्षर हैं।
-किरनमय नंदा (सपा से निकाले जाने के बाद)
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देखिए मैं बीमार नहीं हूं: मुलायम
लखनऊ : समाजवादी पार्टी में तख्ता पलट के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी मेरी है। प्रत्याशी घोषित हैं, वह चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी। चुनाव चिन्ह पर मेरे ही हस्ताक्षर होंगे। सोमवार को दिल्ली रवाना होने से पहले मुलायम ने मीडियाकर्मियों से कहा कि मैं बीमार नहीं हूं। आप देखिए, मैं ठीक हूं। मीडिया ने हमेशा मेरा साथ दिया है। मैंने कोई गलत काम नहीं किया। करप्शन नहीं किया है। इल्जाम लगा भी तो सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया है। साइकिल तो मेरी ही है। इसी पर प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी।
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-बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा, चुनाव आयोग करेगा निर्णय
-सपा में सब कुछ हो जाएगा ठीक : अंबिका चौधरी
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लखनऊ : सपा परिवार में मचा घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। रोज नया विवाद सामने आ रहा है। इस हाई वोल्टेज सियासी ड्रामे में सपाई दो खेमे में बंट गए हैं। वरिष्ठ नेताओं में भी कुछ मुलायम सिंह के साथ हैं तो कुछ अखिलेश यादव के। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कुंवर रेवतीरमण सिंह इलहाबाद से लखनऊ आकर डेरा डाले हुए हैं। वह बीच का रास्ता निकालने में जुटे हैं ताकि पिता-पुत्र में समझौता हो सके। उनका कहना है कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) चुनाव आयोग गए हैं। वहां से लौटने के बाद फिर दोनों के बीच बात कराई जाएगी। यह परिवार का झगड़ा है और इसे सुलझा लिया जाएगा। हमारी पूरी कोशिश होगी कि पार्टी में दो फाड़ न हो।
दूसरी ओर, बाराबंकी में पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा कि मुलायम ङ्क्षसह यादव चुनाव आयोग में गए हैं। आयोग के निर्णय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन टाल दिया गया है। यदि अधिवेशन होता तो वह उसमें जरूर शामिल होते। उन्होंने कहा कि जंग के वक्त रणनीति के बारे में बताया नहीं जाता। स्थिति को देखते हुए फैसले लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि राकेश को (बेनी के पुत्र) रामनगर विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ाएंगे। गौरतलब है कि जिन सीटों के प्रत्याशियों को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिद पर अड़े थे, उनमें बाराबंकी की रामनगर विधानसभा सीट भी शामिल है, जिस पर शिवपाल यादव की सूची में राकेश वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया है। इसी सीट से ग्राम्य विकास मंत्री अरङ्क्षवद ङ्क्षसह गोप विधायक हैं।
वहीं, वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी ने सोमवार देर रात टेलीफोन पर बताया कि मुलायम सिंह यादव हम सभी के सर्वमान्य नेता हैं और रहेंगे। उनकी बात कोई भी नहीं टालता। अखिलेश व मुलायम के बीच संबंधों की तल्खी पर अंबिका चौधरी ने माना कि कुछ दूरियां बढ़ीं हैं। मगर लगे हाथ यह भी कहा कि भरोसा रखिए, सब कुछ पहले जैसा ठीक हो जाएगा। सपा का यह शीर्ष कुनबा न टूटा है, न टूटेगा। मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ में पांच जनवरी को आहूत राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित करने के कारणों पर अंबिका चौधरी ने बताया कि राजनीति में यह सब चलता रहता है। इस अधिवेशन को राजनीतिक कारणों से ही रद किया गया है। भविष्य में नेताजी जब उचित समझेंगे, अधिवेशन की अगली तिथि तय कर देंगे। मुलायम सिंह यादव व मुझ समेत सपा के कुछ अन्य वरिष्ठ नेता चुनाव आयोग गए जरूर थे, मगर यह कार्यक्रम मुलाकात तक ही सीमित रहा। आयोग के साथ औपचारिक मुलाकात हुई, कुछ बातें हुईं और चाय पीकर हम सभी बाहर आ गए।
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मद्धिम ही निकला नए निजाम का पहला सूरज
- सपा का प्रदेश कार्यालय खुला पर नहीं दिखी पहले सी रौनक
लखनऊ : सोमवार को साल का पहला कार्यदिवस था तो समाजवादी पार्टी के नए निजाम का सूरज भी पहली बार निकला था। यह अद्भुत संयोग था कि आसमान में ढूंढने पर भी सूरज का नामोनिशान नहीं था तो इधर सपा के प्रदेश कार्यालय का भी नूर उड़ा हुआ था। खास तौर से प्रदेश में सरकार बनने के बाद बीते पांच साल से जिस माहौल को बिंदास और बेफिक्र जैसे अल्फाजों से पहचाना जाता था, वह सोमवार को पहले दिन ही पुलिस के पहरे में कड़ी पूछताछ के बीच सहमा सा कहीं दुबका हुआ था।
एक दिन पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री समर्थकों ने प्रदेश कार्यालय पर कब्जा कर लिया था। पुलिस ने भी घेरेबंदी बढ़ा दी थी। रविवार को हुए इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बाद सोमवार को पहला कार्यदिवस होने के नाते सबकी निगाहें दिन भर होने वाले घटनाक्रम पर टिकी थीं। सुबह से ही मुख्यमंत्री के पांच, कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास के बाहर जुटी फरियादियों की भीड़ बता रही थी कि परिवार का झगड़ा चाहे जो हो, लेकिन मुख्यमंत्री से लोगों की आस कम नहीं हुई है। जनता दरबार में इलाहाबाद से कई लोगों के साथ आए राकेश को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री तक उनकी शिकायत पहुंच जाएगी तो शायद उन्हें पुलिस उत्पीडऩ से भी छुटकारा मिल जाएगा।
उधर विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पहुंचे और दो घंटे काम किया। मुख्यमंत्री के ओएसडी जगजीवन प्रसाद ने भी कुछ देर काम निपटाया, लेकिन बाकी चहल पहल नदारत थी। न रोज की तरह वाहनों को कार्यालय में प्रवेश करने दिया जा रहा था और न ही सहज भाव से लोग भीतर आ पा रहे थे। गेट पर पूछताछ होने और भीतर जाने की स्पष्ट वजह होने पर ही लोगों को दाखिल होने दिया गया। इस बीच कार्यालय के गलियारे सन्नाटे में ही डूबे रहे। मुलायम के राजनीतिक सचिव रहे और वर्तमान में कार्यालय सचिव वीरेंद्र सिंह भी अपने दफ्तर नहीं पहुंचे। उधर मुलायम सिंह के आवास के बाहर भी सन्नाटा पसरा रहा।
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