Thursday 2 February 2017

2 jan 2017- अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम

मुलायम ने अधिवेशन टाल बंद रखी 'मुठ्ठीÓ
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-सपा का पांच जनवरी को प्रस्तावित राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित
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लखनऊ : रविवार को जिस मैदान पर अखिलेश यादव की राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी की गयी, उसी स्थान पर 5 जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन को टाल कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने मुठ्ठी बंद ही रहने देने का काम किया। प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने सोमवार को प्रात: करीब पौने पौ बजे ट्वीट के जरिये अधिवेशन को स्थगित करने की जानकारी दी।
इस जवाबी सम्मेलन को घोषणा के मात्र 17 घंटे के भीतर ही टाल देने को मुलायम सिंह यादव का रणनीतिक फैसला माना जा रहा है। दरअसल अपनों से सियासी वजूद बचाने की जंग में उलझे सपा सुप्रीमो अभी नहीं चाहते कि सम्मेलनों में भीड़ के जुटान को लेकर रस्साकसी बढ़ाई जाए। लोगों को यह आकलन करने का अवसर भी न मिले कि भीड़ किसने अधिक जुटायी और कौन नेता किस पाले में है? मुख्यमंत्री अखिलेश के सम्मेलन में अधिकतर मंत्री व विधायकों के पहुंचने के बाद से शिवपाल खेमा हैरान है। मुलायम सिंह को हटाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाते समय मंच पर अधिकतर मंत्री मौजूद थे। जिसमें कई ऐसे चेहरे भी थे जिनको शिवपाल के खेमे का माना जाता है। मंत्री व विधायकों को पाला बदलते देखकर शिवपाल खेमे को पांच जनवरी का अधिवेशन फ्लाप होने का डर भी सता रहा था। बता दे कि गत दिनों विधायकों की बैठक अलग अलग बुलाए जाने पर मुख्यमंत्री अखिलेश का पलड़ा भारी पड़ा था। तब मुख्यमंत्री आवास पर जहां दो सौ से अधिक विधायक एकत्र हुए थे, वहीं पार्टी कार्यालय में शिवपाल यादव के बुलावे पर दो दर्जन से ज्यादा विधायक जमा नहीं हो सके थे।
कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे का डर : अधिवेशन स्थगित करने की वजह कानूनी कार्रवाई कमजोर पडऩे की आशंका को भी बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अखिलेश व रामगोपाल के अधिवेशन को जिन कारणों से असंवैधानिक करार देने की बात कही जा रही है। उसमें कई कारण पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन पर भी लागू होते। मसलन अधिवेशन आहूत करनेे से पहले अनिवार्य 15 दिन का समय भी नहीं दिया गया था। अखिलेश समर्थक विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने इन कारणों को प्रचारित करना शुरू कर दिया था। ऐसे में अधिवेशन की वैधानिकता पर सवाल खड़े होते तो मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रीय अध्यक्षता को चुनाव आयोग में  बचाए रखना भी मुश्किल होता।
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 अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, करीबी एमएलसी उदयवीर, सुनील यादव साजन व बर्खास्त युवा ब्रिगेड के साथ सदस्यों की चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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नेताजी निकालें अमर को और रामगोपाल को अखिलेश
-सपाइयों ने सुलह फार्मूले के साथ मुलायम-अखिलेश को लिखे पत्र
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लखनऊ : कहते हैं राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती ! इसी भरोसे कुछ समाजवादियों ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को आपस में सुलह कर लेने का सुझाव देना शुरू किया है। दोनों नेताओं को पत्र लिखे जा रहे हैं। कुछ ने सुलह का फार्मूला भी सुझाया है।
'साइकिलÓ चिन्ह जब्त होने की आशंका से युवा व बुजुर्ग दोनों ही पीढिय़ां भयभीत हैं। सपा में संग्र्राम शुरू होने के बाद जहां नेताओं के 'पत्र बमÓ आग में घी का काम कर रहे थे, वहीं इस बार के पत्र शांति बनाने का प्रयास हैं। युवा सोशल मीडिया पर विचार रख रहे हैं। ज्यादातर का मानना है कि पार्टी को मुलायम का आशीïर्वाद जरूरी है, वरना चुनाव में नुकसान होगा और पार्टी केपन्नों पर बदनुमा कहानी भी दर्ज होगी।
सपा के छठवें अधिवेशन के संयोजक रहे गोपाल अग्रवाल ने मुलायम व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों को पत्र लिखा है। मुलायम को भेजे पत्र में उन्होंने कहा है कि समाजवादी आंदोलन बिखरने से बचाने के लिए परिवार में एका जरूरी है। परिवार का सर्वेसर्वा होने के नाते मुलायम को खुद प्रयास करने में हिचक नहीं होनी चाहिए जबकि अखिलेश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि उन्हें पिता को मनाने का प्रयास करना चाहिए। बुंदेलखंड के एक प्रमुख सपा नेता इम्तियाज खां ने अपने पत्र में अखिलेश यादव को सपा का भविष्य बताते हुए नेताजी को हालात संभालने का सुझाव दिया गया है। कुछ कार्यकर्ताओं ने अमर सिंह के साथ राम गोपाल को भी बाहर का रास्ता दिखाकर हालात संभालने का सुझाव दिया है।
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सुलह का फार्मूला
-अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपने मनोनयन को स्वत: खारिज कर, मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकारें
-अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष व संसदीय बोर्ड का मुखिया बनाया जाए
-शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर, राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया जाए
-प्रो.राम गोपाल, अमर सिंह को सपा से निकालकर उनकी प्राथमिकता सदस्यता रद की जाए
 -दोनों पक्ष चुनाव आयोग में दाखिल किए जा रहे दस्तावेज वापस लें
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हटो नहीं चाहिए, सुरक्षा
लखनऊ : सुरक्षा कर्मियों के प्रति रवैया नरम रखने वाले मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल होने की सूचना मिलने पर सुरक्षाकर्मियों पर भड़क गये। विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर तैनात 'सीएम सिक्योरिटीÓ के जवानों को डपटते हुए कहा कि 'हटो, नहीं चाहिए तुम्हारी सुरक्षा।Ó बाहर जाओ। अपनी सुरक्षा कर सकता हूं। हालांकि सुरक्षा कर्मी कुछ दूर हटकर रुक गये। ध्यान रहे, मुख्यमंत्री शाम को विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर रहते हैं, इसके चलते वहां सीएम सिक्योरिटी के जवान भी सुरक्षा के लिए नियुक्त हैं। सुरक्षा कर्मियों को डांटने के बाद मुलायम अलग-अलग कमरों में मौजूद समर्थकों से जाकर मिलते रहे। सामान्यत: वह आगंतुकों को अपने कक्ष में बुलाकर मिलते हैं।

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चाचा के फैसले का विरोध करना पसंद आया अखिलेश को
- ददुआ के भाई की सपा में दाखिले के खिलाफ थे नरेश उत्तम
- ददुआ के बेटे को टिकट का भी किया था विरोध
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परवेज अहमद, लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी ओर से नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर राजनीति के अपराधीकरण का विरोध करने वालों को महत्व देने का संदेश दिया है। प्रदेश में जब ददुआ के आतंक का डंका बजता था और वह बुंदेलखंड की सियासी दिशा तय करने में प्रभावी था, उस समय नरेश उत्तम ने उसके भाई बाल कुमार को पार्टी में लेने का मुखर विरोध किया था, हालांकि इसकी सजा के तौर पर उनका टिकट काट दिया गया था।
 वर्ष 2000 में शिवपाल यादव की सिफारिश पर ददुआ के भाई बाल कुमार का सपा में प्रवेश कराया गया, जिसका नरेश उत्तम ने विरोध किया था। उन्होंने धरना प्रदर्शन तक किए। वह आंदोलन शिवपाल को इतना अखरा था कि 2002 के विधानसभा चुनाव में नरेश उत्तम का टिकट कट गया। उनकी परंपरागत जहानाबाद सीट पर मदन गोपाल वर्मा को प्रत्याशी बना दिया गया तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। इसके बाद मुलायम सिंह ने नरेश उत्तम को तवज्जो देना शुरू कर दिया और अपने संसदीय चुनावों का प्रभारी बनाया। लगातार दो बार उन्हें एमएलसी बनाया गया। 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने के अभियान में गायत्री के साथ उन्हें भी लगाया गया था। इस दौरान भी नरेश राजनीति के अपराधीकरण के विरोध में खड़े रहे। वर्ष 2012 में अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्होंने नरेश उत्तम को अपनी कमेटी में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया।
चाचा भतीजे के बीच शुरू हुई कलह के बाद शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई तो नरेश उनकी कमेटी से बाहर हो गए। राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के मुखर विरोधी नरेश उत्तम अखिलेश को इतना भाये कि उन्हें सीधे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ही सौंप दी। उनका कुर्मी होना भी उनके पक्ष में एक कारण बना। इस तरह अखिलेश ने भाजपा के पिछड़ा कार्ड का जवाब देने का प्रयास तो किया ही है, अपना दल के प्रभावशाली कुर्मी नेताओं का कद भी नापा है। सूत्रों का कहना है कि सोमवार को प्रदेश अध्यक्ष के साथ मीटिंग में अखिलेश यादव ने उन्हें कुर्मी वोटों को पाले में करने का जिम्मा दिया है। बाराबंकी की रामनगर सीट से बेनी वर्मा के बेटे को शिवपाल द्वारा प्रत्याशी घोषित करनेके दांव की घेरेबंदी करना भी इस नियुक्ति का मकसद हो सकता है।
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तीन घंटे कार्यालय में बैठे
नरेश उत्तम सोमवार को तकरीबन तीन घंटे तक सपा कार्यालय में रहे। हालांकि इस दौरान दफ्तर में पूरी तरह सन्नाटा रहा। आम दिनों में वहां मौजूद रहने वाले समर्थक, कर्मचारियों में से भी अधिकतर गायब थे। इसे बदले निजाम के प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। बताया गया है कि शीर्ष स्तर की ज्यादातर इकाइयां कुछ दिन बंद रखने की हिदायत दी गई थी जिसके चलते कर्मचारी भी नहीं पहुंचे।

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पिता-पुत्र की 'जंगÓ में खुद का नफा देख रही बसपा
- सपा में दंगल से मुस्लिम मतों में भ्रम का फायदा उठाने की कोशिश
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर पिता-पुत्र की 'जंगÓ में बहुजन समाज पार्टी खुद का नफा देख रही है। नेतृत्व को पूरा भरोसा है कि मुस्लिम मतों में फैलते भ्रम का सर्वाधिक फायदा उसे ही मिलेगा।
पांचवी बार सूबे की सत्ता में काबिज होने की कोशिश में लगी बसपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ को पुख्ता करने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। वर्ष 2012 में सपा के हाथों राज्य की सत्ता गंवाने वाली बसपा का मानना है कि यदि मुस्लिम उसके साथ आ जाएं तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ से सरकार बनना तय है। लेकिन सपा सरकार द्वारा मुस्लिम समाज के लिए किए गए कार्यों और मुलायम सिंह के प्रति मुस्लिमों के लगाव के चलते मुस्लिम समाज को सपा से अलग करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है। इस बात को बसपा भी समझ रही थी कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतों के कांग्रेस के बजाय सपा में धुव्रीकरण से उसका ही नुकसान होगा।
हालांकि, चार माह पहले सितंबर से समाजवादी परिवार में शुरू हुई कलह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अब जिस तरह से पिता-पुत्र के बीच जंग में तब्दील होती दिख रही है उसमें बसपा को खुद का फायदा दिखाई दे रहा है। 'जंगÓ पर बसपा के वरिष्ठ नेता खुल कर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि भले ही यह पारिवारिक ड्रामा हो लेकिन इससे मुस्लिम समाज में सपा को लेकर भ्रम ही पैदा हो रहा है। भ्रम के चलते मुस्लिम मतों में बटवारे से भाजपा को होने वाले फायदे का डर दिखाकर बसपा प्रमुख मायावती भी मुस्लिम समाज को यही समझाने में लगी हैं कि वह अपना मत सपा को न देकर बसपा को ही दें।
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दलित मुस्लिम एका जीत की गारंटी : बसपा अपनी पूरी ताकत मुस्लिमों को यह समझाने में लगी है कि भाजपा को हराना है तो दलित मुस्लिमों को एकजुट रहना होगा। 19 फीसद मुस्लिम व 21 प्रतिशत दलितों की आबादी का गणित भी भाईचारा समितियों की बैठकों में समझाया जा रहा है। बसपा शासन में मुस्लिम हित में किए कार्यो की एक पुस्तिका प्रकाशित कराकर वितरित की जा रही है।  
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मुलायम बिन मुस्लिमों को नहीं लुभा पाएगी सपा
- राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से मुलायम सिंह को हटाने से मुस्लिमों की बेचैनी बढ़ी
- नाम न छापने की शर्त पर कई विधायकों ने खोली जुबान
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी में आर-पार की लड़ाई ने मुस्लिमों को सबसे ज्यादा बेचैन किया है। वह मुलायम सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले को जोखिम भरा मान रहे हैं। मुख्यमंत्री से जुड़ा मामला होने के कारण वह जुबान नहीं खोल रहे हैं, मगर इशारे कहते हैं कि 'रहनुमाÓ (मुलायम) को हटाने का यह अंदाज उन्हें रास नहीं आया है।
रविवार को जनेश्वर मिश्र पार्क के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने आए पूर्वी उप्र के एक मुस्लिम नेता का कहना है कि मुसलमान अब तक मुलायम सिंह को ही अपना हमदर्द मानता है, जबकि प्रो.राम गोपाल को लेकर उसकी 'अरुचिÓ है। ऐसे में मुलायम को जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया, उससे उनके लाखों प्रशंसकों के दिल पर चोट लगी है। विधानसभा चुनाव से पहले हालात नहीं सुधारे गए तो मुश्किलें बढऩे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट से टिकट मांग रहे एक नेता का कहना है कि मुलायम को आगे किए बिना मुस्लिमों को लुभाना आसान नहीं होगा। पश्चिम उप्र में वैसे भी बसपा का दलित-मुस्लिम गणित समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचने वालों में भी मुस्लिम नेताओं की संख्या कम रहीं जबकि दिल्ली पहुंचे मुलायम से सबसे अधिक मुस्लिम ही मिले। गत दिवस के घटनाक्रम से हैरत में एक महिला मुस्लिम विधायक का कहना है कि भाजपा को रोकना है तो समाजवादी झगड़ा तत्काल रोकना होगा। उनका कहना है, मुख्यमंत्री की लोकप्रियता बेशक सबसे ज्यादा है मगर मुसलमान अभी मुलायम को ही अपना रहनुमा मानते है।
बिन साइकिल होगी मुश्किल : सपा का चुनाव साइकिल आपसी कलह में गवांने का डर भी कार्यकर्ताओं को सता रहा है। मुख्यमंत्री को बधाई देकर लौटे पश्चिम उप्र के एक विधायक का कहना है कि साइकिल चिन्ह बचना सबसे अधिक जरूरी है। चुनाव नजदीक है। साइकिल के स्थान पर नए चुनाव निशान को जनता में लोकप्रिय बनाना आसान नहीं होगा। इस मुस्लिम विधायक को अब भी उम्मीद है कि साइकिल के लिए सही समाजवादी परिवार में जल्द एका हो जाएगा।
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अखिलेश ने बदले सुर, कहा-पहले मुलायम
- मुख्यमंत्री का रुख नरम, साइकिल फ्रीज होने का डर
- कुछ विधायकों, प्रत्याशियों से मिले अखिलेश यादव
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लखनऊ : रविवार को विशेष अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को बेदखल कर समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को अपना रुख एकदम से नरम कर लिया। कुछ विधायकों, एमएलसी से मुलाकात में कहा 'पहले मुलायम सिंह जिंदाबाद, फिर मेरी बात होनी चाहिए। क्षेत्र में जाइए। चुनाव की तैयारी तेज कीजिए। 2017 में फिर सरकार बनानी है।Ó
यूं मुख्यमंत्री ने किसी को बुलाया नहीं था, मगर कई विधायक, एमएलसी साढ़े नौ बजे सुबह ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मुबारकबाद दी। साथ खड़े रहने का वादा किया। क्षेत्र में कार्य कराने का प्रार्थना पत्र दिया। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) से मिलते रहिए। उनका सम्मान कम नहीं होना चाहिए। मुझसे पहले नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाया जाए। मुख्यमंत्री आवास से निकले चरखारी के पूर्व विधायक कप्तान सिंह ने कहा कि क्षेत्र में रहने व जनता को सरकार के काम बताने का निर्देश मिला है। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह ने जिस अंदाज में चुनाव आयोग के साथ विशेष अधिवेशन व साइकिल चिन्ह को लेकर पत्राचार किया है, उससे 'साइकिलÓ फ्रीज होने की आशंका बढ़ी है। इससे होने वाले सियासी नुकसान से वाकिफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना रुख पहले से कहीं अधिक नरम किया है। विधायकों के जरिये यह संदेश दिया कि 'वह सपा के संस्थापक मुलायम सिंह का सम्मान कम नहीं होने देंगे।Ó आजमगढ़ से विधायक बृजलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि मुलायम नारा पहले लगाया जाए। विधायक नाहिद हसन ने मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह को सर्वोपरि मानकर नारा लगाने को कहा है। यह भी कही है कि बिना बुलाए लखनऊ न आएं। मुख्यमंत्री से मिलने वालों में एमएलसी एसआरएस यादव, साहब सिंह सैनी, कांग्र्रेस से सपा में आये मुकेश कुमार श्रीवास्तव, मौलाना बुखारी का दामाद व एमएलसी उमर अली और कई प्रत्याशी शामिल थे। विधायकों के बाद अखिलेश ने नवमनोनीत प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के साथ चर्चा की। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पूर्व सांसद उदय प्रताप से भी मुलाकात की। उनसे मौजूदा परिस्थितियों पर चर्चा की।
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फरियादियों से मिले, सरकारी काम निपटाया
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच कालिदास परिसर में बने जनसुनवाई सभागार में फरियादियों की समस्या सुनी। इनमें से कुछ लोग नौकरी की चाहत में आए थे। कुछ पुलिस उत्पीडऩ की शिकायत करने आए थे। जहानांबाद से आये राम निहोर, आकाश ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मुकदमा लिया दिया है। मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। कार्रवाई का आश्वासन मिला है। सूत्रों का कहना है सरकारी कामकाज के अलावा मुख्यमंत्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग में चल रही गतिविधियों पर भी नजर बनाए रखी।
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फैसले के बाद राय कायम करूंगा: आजम
लखनऊ : समाजवादी परिवार का संग्राम शांत कराने का प्रयास विफल होने के बाद मंत्री आजम खां ने भी चुप्पी साध ली है, जबकि लोगों की निगाहें उनके कदम की ओर ही लगी रहीं। शाम को कुछ लोगों से बातचीत में आजम ने कहा कि पूरा मामला निर्वाचन आयोग में चला गया है, मुलायम सिंह दिल्ली में हैं। सुना है कि सुप्रीम कोर्ट भी मामला जा रहा है। कोई फैसला आने के बाद राय कायम करूंगा।
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मुलायम सिंह मुझे पार्टी से नहीं निकाल सकते हैं, मैं समाजवादी हूं समाजवादी रहूंगा। समाजवाद के लिए जेल भी जा चुका हैं। मेरे निष्कासन का जो लेटर जारी हुआ है, उस पर संभवत: मुलायम के फर्जी हस्ताक्षर हैं।
-किरनमय नंदा (सपा से निकाले जाने के बाद)
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देखिए मैं बीमार नहीं हूं: मुलायम
लखनऊ : समाजवादी पार्टी में तख्ता पलट के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी मेरी है। प्रत्याशी घोषित हैं, वह चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी। चुनाव चिन्ह पर मेरे ही हस्ताक्षर होंगे। सोमवार को दिल्ली रवाना होने से पहले मुलायम ने मीडियाकर्मियों से कहा कि मैं बीमार नहीं हूं। आप देखिए, मैं ठीक हूं। मीडिया ने हमेशा मेरा साथ दिया है। मैंने कोई गलत काम नहीं किया। करप्शन नहीं किया है। इल्जाम लगा भी तो सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया है। साइकिल तो मेरी ही है। इसी पर प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी।

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-बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा, चुनाव आयोग करेगा निर्णय
-सपा में सब कुछ हो जाएगा ठीक : अंबिका चौधरी
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लखनऊ : सपा परिवार में मचा घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। रोज नया विवाद सामने आ रहा है। इस हाई वोल्टेज सियासी ड्रामे में सपाई दो खेमे में बंट गए हैं। वरिष्ठ नेताओं में भी कुछ मुलायम सिंह के साथ हैं तो कुछ अखिलेश यादव के। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कुंवर रेवतीरमण सिंह इलहाबाद से लखनऊ आकर डेरा डाले हुए हैं। वह बीच का रास्ता निकालने में जुटे हैं ताकि पिता-पुत्र में समझौता हो सके। उनका कहना है कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) चुनाव आयोग गए हैं। वहां से लौटने के बाद फिर दोनों के बीच बात कराई जाएगी। यह परिवार का झगड़ा है और इसे सुलझा लिया जाएगा। हमारी पूरी कोशिश होगी कि पार्टी में दो फाड़ न हो।
दूसरी ओर, बाराबंकी में पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा कि मुलायम ङ्क्षसह यादव चुनाव आयोग में गए हैं। आयोग के निर्णय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। पांच जनवरी को प्रस्तावित अधिवेशन टाल दिया गया है। यदि अधिवेशन होता तो वह उसमें जरूर शामिल होते। उन्होंने कहा कि जंग के वक्त रणनीति के बारे में बताया नहीं जाता। स्थिति को देखते हुए फैसले लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि राकेश को (बेनी के पुत्र) रामनगर विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ाएंगे। गौरतलब है कि जिन सीटों के प्रत्याशियों को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिद पर अड़े थे, उनमें बाराबंकी की रामनगर विधानसभा सीट भी शामिल है, जिस पर शिवपाल यादव की सूची में राकेश वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया है। इसी सीट से ग्राम्य विकास मंत्री अरङ्क्षवद ङ्क्षसह गोप विधायक हैं।
वहीं, वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी ने सोमवार देर रात टेलीफोन पर बताया कि मुलायम सिंह यादव हम सभी के सर्वमान्य नेता हैं और रहेंगे। उनकी बात कोई भी नहीं टालता। अखिलेश व मुलायम के बीच संबंधों की तल्खी पर अंबिका चौधरी ने माना कि कुछ दूरियां बढ़ीं हैं। मगर लगे हाथ यह भी कहा कि भरोसा रखिए, सब कुछ पहले जैसा ठीक हो जाएगा। सपा का यह शीर्ष कुनबा न टूटा है, न टूटेगा। मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ में पांच जनवरी को आहूत राष्ट्रीय अधिवेशन स्थगित करने के कारणों पर अंबिका चौधरी ने बताया कि राजनीति में यह सब चलता रहता है। इस अधिवेशन को राजनीतिक कारणों से ही रद किया गया है। भविष्य में नेताजी जब उचित समझेंगे, अधिवेशन की अगली तिथि तय कर देंगे। मुलायम सिंह यादव व मुझ समेत सपा के कुछ अन्य वरिष्ठ नेता चुनाव आयोग गए जरूर थे, मगर यह कार्यक्रम मुलाकात तक ही सीमित रहा। आयोग के साथ औपचारिक मुलाकात हुई, कुछ बातें हुईं और चाय पीकर हम सभी बाहर आ गए।
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मद्धिम ही निकला नए निजाम का पहला सूरज
- सपा का प्रदेश कार्यालय खुला पर नहीं दिखी पहले सी रौनक
लखनऊ : सोमवार को साल का पहला कार्यदिवस था तो समाजवादी पार्टी के नए निजाम का सूरज भी पहली बार निकला था। यह अद्भुत संयोग था कि आसमान में ढूंढने पर भी सूरज का नामोनिशान नहीं था तो इधर सपा के प्रदेश कार्यालय का भी नूर उड़ा हुआ था। खास तौर से प्रदेश में सरकार बनने के बाद बीते पांच साल से जिस माहौल को बिंदास और बेफिक्र जैसे अल्फाजों से पहचाना जाता था, वह सोमवार को पहले दिन ही पुलिस के पहरे में कड़ी पूछताछ के बीच सहमा सा कहीं दुबका हुआ था।
एक दिन पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री समर्थकों ने प्रदेश कार्यालय पर कब्जा कर लिया था। पुलिस ने भी घेरेबंदी बढ़ा दी थी। रविवार को हुए इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बाद सोमवार को पहला कार्यदिवस होने के नाते सबकी निगाहें दिन भर होने वाले घटनाक्रम पर टिकी थीं। सुबह से ही मुख्यमंत्री के पांच, कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास के बाहर जुटी फरियादियों की भीड़ बता रही थी कि परिवार का झगड़ा चाहे जो हो, लेकिन मुख्यमंत्री से लोगों की आस कम नहीं हुई है। जनता दरबार में इलाहाबाद से कई लोगों के साथ आए राकेश को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री तक उनकी शिकायत पहुंच जाएगी तो शायद उन्हें पुलिस उत्पीडऩ से भी छुटकारा मिल जाएगा।
उधर विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पहुंचे और दो घंटे काम किया। मुख्यमंत्री के ओएसडी जगजीवन प्रसाद ने भी कुछ देर काम निपटाया, लेकिन बाकी चहल पहल नदारत थी। न रोज की तरह वाहनों को कार्यालय में प्रवेश करने दिया जा रहा था और न ही सहज भाव से लोग भीतर आ पा रहे थे। गेट पर पूछताछ होने और भीतर जाने की स्पष्ट वजह होने पर ही लोगों को दाखिल होने दिया गया। इस बीच कार्यालय के गलियारे सन्नाटे में ही डूबे रहे। मुलायम के राजनीतिक सचिव रहे और वर्तमान में कार्यालय सचिव वीरेंद्र सिंह भी अपने दफ्तर नहीं पहुंचे। उधर मुलायम सिंह के आवास के बाहर भी सन्नाटा पसरा रहा।
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2017-jan 1 smajwadi partyःसपा में तख्तापलट


सपा में तख्तापलट
पिता को हटा कर अखिलेश बने राष्ट्रीय अध्यक्ष
- शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया, अमर सिंह भी निष्कासित
- एमएलसी नरेश उत्तम को बनाया गया प्रदेश अध्यक्ष
- जवाबी कार्रवाई में मुलायम ने रामगोपाल, किरनमय नंदा, नरेश अग्रवाल को निकाला
''मैं नेताजी का जितना सम्मान पहले करता था, राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उससे ज्यादा करूंगा। नेताजी का जो स्थान है, वह सबसे बड़ा है। मैं नेताजी का बेटा हूं और रहूंगा। यह रिश्ता कोई खत्म नहीं कर सकता। परिवार के लोगों को बचाना पड़ेगा तो वह काम भी करूंगा।ÓÓ
- अखिलेश यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद)
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''पार्टी के दो व्यक्तियों ने साजिश कर अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। इसके बाद जो हुआ सबके सामने है। यहां मौजूद लोगों में बहुतों को निष्कासित कर दिया गया। संसदीय बोर्ड की बैठक के बगैर टिकट बांट दिए, ये लोग नहीं चाहते कि अखिलेश फिर सीएम बनें।ÓÓ
- प्रो. रामगोपाल यादव (अधिवेशन में)
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''यह अधिवेशन अवैध है। पार्टी संविधान के विरुद्ध है। अनुशासनहीनता करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, संसदीय बोर्ड ने रामगोपाल के निष्कासन पर मंजूरी की मुहर लगाई है।ÓÓ -मुलायम सिंह यादव
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 लखनऊ : वर्चस्व की जंग में दो फाड़ हुई समाजवादी पार्टी (सपा) में नए साल की सुबह तख्तापलट हो गया। प्रतिनिधि अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर उनके पुत्र व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद और अमर सिंह को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया। मुलायम को पार्टी के संरक्षक की भूमिका दी गई है। बौखलाए मुलायम ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अधिवेशन को ही अवैध घोषित कर दिया, फिर अधिवेशन के सूत्रधार प्रो. रामगोपाल यादव, किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को सपा से निष्कासित कर दिया। मुलायम ने पांच जनवरी को सपा का राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया है। दूसरी ओर अखिलेश ने विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है।
ओहदा, अधिकार और वर्चस्व हासिल करने के प्रयासों में समाजवादी परिवार की कलह पहले संग्राम में बदली और फिर जनशक्ति प्रदर्शन के माध्यम से रविवार को राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन की शक्ल में सामने आई। राजधानी लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में 25 बरस पहले समाजवादी पार्टी के गठन से लेकर अब तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल रहे मुलायम सिंह को पद से बेदखल करने का अकल्पनीय फैसला किया गया। इसके साथ ही अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया। शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के साथ परिवार में लड़ाई की जड़ ठहराए जाने वाले राज्यसभा सदस्य अमर सिंह को सपा से ही निष्कासित कर दिया गया। नवघोषित राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश को संसदीय बोर्ड, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, आनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों के चयन का अधिकार भी सौंप दिया गया।
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नेताजी के खिलाफ भी साजिश
राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद चंद मिनट के भावुकता भरे भाषण में अखिलेश यादव ने कहा, मुझे प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए उस व्यक्ति ने (इशारा अमर सिंह की ओर) टाइपराइटर मंगवाया था। नेताजी ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था मगर इन लोगों ने मेरे खिलाफ साजिश कर न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाया बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष (मुलायम सिंह) के सामने भी संकट पैदा किया। नेताजी के खिलाफ साजिश हो तो यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं ऐसे लोगों के खिलाफ बोलूं और कार्रवाई करूं। अब कार्रवाई कर रहा हूं।
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नए प्रदेश अध्यक्ष का दफ्तर पर कब्जा
शिवपाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए नरेश उत्तम ने अपने समर्थकों के साथ पहुंच कर पार्टी दफ्तर पर कब्जा कर लिया। शिवपाल के नाम की नेमप्लेट भी हटा दी गई।
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अधिवेशन में फैसले
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-अखिलेश राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे।
-मुलायम संरक्षक होंगे।
-शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त।
-महासचिव अमर सिंह पार्टी से निष्कासित।
-अखिलेश पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और सभी राज्य संगठनों को जरूरत के मुताबिक  गठित करने को अधिकृत।
-इन फैसलों की सूचना यथाशीघ्र निर्वाचन आयोग को उपलब्ध कराई जाए।

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मुलायम का पलटवार
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-पार्टी का रविवार को हुआ राष्ट्रीय अधिवेशन असंवैधानिक।
-अधिवेशन में लिए गए सभी फैसले अवैध।
-रामगोपाल यादव पार्टी से तिबारा छह साल के लिए बाहर।
-अधिवेशन में शामिल होने पर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा के साथ नरेश अग्रवाल भी निष्कासित।
-पार्टी द्वारा जारी की गई उम्मीदवारों की सूची अब नहीं बदलेगी।
-5 जनवरी को लखनऊ में पार्टी का आकस्मिक राष्ट्रीय अधिवेशन।
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इन सवालों के जवाब बाकी
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-अधिवेशन के लिए रामगोपाल और  अन्य को पार्टी से निष्कासित किया गया तो अखिलेश को क्यों नहीं?
-क्या मुलायम अब भी बेटे को अपने पाले में कर लेने की संभावना देखते हैं?
-बेटे के भारी पडऩे पर शनिवार को अखिलेश और रामगोपाल का निष्कासन समाप्त किया था, क्या फिर से मुलायम वैसा ही करने को मजबूर होंगे?
-क्या पार्टी औपचारिक तौर पर टूट जाएगी? पार्टी टूटने पर चुनाव चिह्न साइकिल पर कब्जा किसका?
-चुनाव आयोग अखिलेश, मुलायम में से किसका दावा मानेगा?
-क्या साइकिल चिह्न 'जब्तÓ हो जाएगा और दोनों गुट अलग-अलग निशान पर लड़ेंगे?
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 नेताजी से तो कोई कुछ भी फैसला करा ले
- अधिवेशन के मंच से अखिलेश ने जताई आशंका
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लखनऊ : समाजवादी कलह में जारी आरोप प्रत्यारोपों में मुलायम सिंह यादव की क्षमता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो अधिवेशन के मंच से कहा कि नेताजी से कोई भी फैसले करा सकता है। ये तीन-चार महीने बहुत महत्वपूर्ण हैं। न जाने नेताजी से मिलकर कौन क्या फैसला करवा दे? न जाने कौन क्या टाइप करा दे?
बता दें कि राष्ट्रीय प्रतिनिधि अधिवेशन से पूर्व मुलायम सिंह यादव ने पत्र जारी कर अधिवेशन को असंवैधानिक और उसमें पारित हुए प्रस्तावों को अवैध करार दिया था। साथ ही अधिवेशन में शामिल होने वालों पर कार्रवाई की चेतावनी दी थी। दूसरे पत्र में उन्होंने कहा कि सीबीआइ से बचने और अपने कुकृत्य छिपाने के लिए अधिवेशन बुलाया गया है।
इसके अलावा रविवार को मुलायम सिंह के हस्ताक्षरों से अन्य पत्र भी जारी किये गए। इनमें से एक में रामगोपाल यादव को निष्कासित करने के साथ ही अधिवेशन की वैधानिकता पर प्रश्न भी उठाया गया। इसके बाद किरनमय नंदा व नरेश अग्रवाल को भी निष्कासित करने का पत्र जारी किया गया।
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लेटर पैड का इस्तेमाल क्यों नहीं : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने आरोप लगाया कि मुलायम के आदेश समाजवादी पार्टी के लेटर पैड से जारी क्यों नहीं हो रहे? पत्र पर मुलायम के दस्तखत तो हैं परंतु उनकेपद का हवाला नहीं दिया गया है। यदि मुलायम सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो पत्र में उसका जिक्र क्यों नहीं? उन्होने आरोप लगाया कि नेताजी से पत्रों पर हस्ताक्षर जो भी लोग करा रहे हैं, वहीं उन्हें भ्रम में डालकर पार्टी में षड्यंत्र भी कर रहे हैं।
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संगीनों का घेरा तोड़ सपा दफ्तर में घुसे नरेश उत्तम
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- कार्यकर्ताओं ने तोड़ी शिवपाल की नेम प्लेट
- पुलिस के साथ हुई कई बार झड़प
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लखनऊ : सपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम अपने लाव-लश्कर के साथ रविवार को दोपहर बाद सपा मुख्यालय पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए अंदर घुस गए। उन्होंने सपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर विधिवत कार्यभार ग्रहण किया। इस बीच प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव की नेम प्लेट कार्यकर्ताओं ने उखाड़ दी। भारी पुलिस बल देखकर यही लगा कि सत्ताधारी खेमे ने सपा मुख्यालय पर काबिज होने के लिए यह बंदोबस्त किया है।
 जनेश्वर मिश्र पार्क में सपा के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को हटाने समेत कई महत्वपूर्ण फैसले होने के साथ ही पुलिस महकमा हरकत में आ गया। विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा प्रदेश मुख्यालय को रैपिड एक्शन फोर्स और पीएसी जवानों ने घेर लिया। शासन और पुलिस के उच्चाधिकारी एक-एक पल की खबर लेते रहे। उधर, मुख्यमंत्री के पांच कालिदास मार्ग पर भी भारी संख्या में पीएसी जवानों के साथ ही आरएएफ तैनात कर दी गई। कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ दोनों स्थानों पर उमड़ पड़ी। सपा मुख्यालय पर भारी फोर्स ने संगीनों के साये में चौतरफा घेरेबंदी कर दी। मुख्य द्वार पर दोनों तरफ से बैरिकेडिंग करके रास्ता बनाया गया और जवान खड़े कर दिए गए। किसी को भी जाने पर रोक लगा दी गई थी। सपा मुख्यालय पुलिस की छावनी बन गया। सपा मुख्यालय पर एसपी पश्चिमी और मुख्यमंत्री आवास पर एसपी पूर्वी ने सुरक्षा की कमान संभाल ली। हर आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। सपा मुख्यालय में दोपहर बाद प्रदेश सरकार के मंत्री रविदास मेहरोत्रा समर्थकों के साथ पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। इस बीच कई बार कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प हुई। 20 मिनट बाद अकेले मेहरोत्रा को सपा दफ्तर में जाने दिया गया। करीब साढ़े चार बजे नरेश उत्तम समर्थकों के बड़े हुजूम के साथ सपा मुख्यालय पहुंचे। उन्होंने सुरक्षा की दीवारों को तोड़ दिया। उनके साथ ही बड़ी संख्या में समर्थक भी पार्टी कार्यालय के अंदर चले गए। सपा प्रदेश अध्यक्ष के कक्ष में उत्तम सीधे पहुंचे और कार्यभार ग्रहण किया। उनके अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठते ही कार्यकर्ताओं ने शिवपाल सिंह यादव से जुड़ी हर चीज को मिटाना शुरू कर दिया।
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हटाई गई आशु मलिक की सुरक्षा
लखनऊ : समाजवादी कुनबे की रार में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सर्वाधिक करीबी बनकर उभरे एमएलसी आशु मलिक की सुरक्षा हटा ली गई है। मुख्यमंत्री खेमे से पंगा लेने का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा है। आशु मलिक को वाई श्रेणी सुरक्षा मिली थी।
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मुलायम को नहीं निकालने का अधिकार : नरेश अग्रवाल
हरदोई : सपा नेता व राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल ने मुलायम सिंह द्वारा उन्हें पार्टी से निकालने की घोषणा के बाद कहा कि उन्हें पार्टी से निकालने वाले वह होते कौन हैं। वह सपाई हैं और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। मुलायम ङ्क्षसह के पास कोई अधिकार ही नहीं हैं। अग्रवाल ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मुलायम ङ्क्षसह ने ऐसा बयान देकर अपने लिए ही समस्या खड़ी की है और पूरे प्रदेश के वैश्य नेताओं का अपमान किया है। वह समाजवादी पार्टी में थे और हमेशा बने रहेंगे।
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तो साइकिल निशान पर नहीं लड़ पाएंगे अखिलेश
- संविधान विशेषज्ञों की राय में वैधानिक नहीं है राष्ट्रीय सम्मेलन
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लखनऊ: जनेश्वर मिश्र पार्क में रविवार को आयोजित समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रतिनिधि अधिवेशन की वैधानिकता पर सवाल उठ रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अखिलेश यादव की नियुक्ति पर विवाद के साथ ही पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल जब्त होने की आशंका भी जतायी जा रही है।
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि सपा के राष्ट्रीय प्रतिनिधि अधिवेशन को बुलाने का अधिकार केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही है। ऐसे में रविवार को जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित अधिवेशन की वैधानिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जाहिर है अधिवेशन में लिए फैसलों को अभी कानूनी कसौटी पर कसा जाना है।

क्या कहता है सपा का संविधान
संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र भूषण पाण्डेय का कहना है कि समाजवादी पार्टी के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अधिवेशन या विशेष सम्मेलन बुलाने की अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही है। इसके अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित कर सम्मेलन का स्थान व तिथि नियत की जा सकती है। विशेष परिस्थितियों में प्रतिनिधि सभा के 40 प्रतिशत सदस्य अधिवेशन को बुलाने की मांग करते हैं तो इस आशय का एक पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष को देना अनिवार्य है। पत्र मिलने के बाद ही अध्यक्ष अधिवेशन बुलाएगा। सूत्रों का कहना है कि रविवार के अधिवेशन को लेकर इनमें से किसी नियम के पालन की पुख्ता जानकारी नहीं दी गई है। इसके विपरीत सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अधिवेशन आरंभ होने से पहले ही एक पत्र लिखकर उसे असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
संसदीय कानून के विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का भी कहना है कि समाजवादी पार्टी के संविधान में अधिवेशन अथवा कार्यकारिणी बैठक बुलाने का अधिकार अध्यक्ष को ही है। जब अध्यक्ष मुलायम सिंह ने राष्ट्रीय अधिवेशन नहीं बुलाया तो उसमें लिए गए फैसलों की वैधानिकता पर सवाल लाजिमी है।

आयोग करेगा चुनाव निशान का फैसला :
 दो गुटों में बंटती दिख रही समाजवादी पार्टी का चुनाव निशान ÓसाइकिलÓ किसे मिल पाएगा? यह अब फैसला चुनाव आयोग ही करेगा। संविधान विशेषज्ञ चंद्र भूषण पाण्डेय का कहना है कि अभी 'साइकिलÓ चुनाव चिन्ह प्रयोग करने के वास्तविक हकदार मुलायम सिंह ही हैं। अखिलेश यादव को निर्वाचन आयोग के समक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपनी नियुक्ति की वैधानिकता सिद्ध करनी होगी। इसके लिए मुलायम सिंह यादव को नोटिस जारी कर उनका पक्ष जाना जाएगा। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद ही आयोग असली राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमाणित करेगा।

देर होने पर जब्त हो सकती है साइकिल :
 आयोग में विवाद देर तक लटक जाता है तो 'साइकिलÓ चुनाव निशान का प्रयोग करने पर अडंग़ा लग सकता है। पाण्डेय के मुताबिक समाजवादी पार्टी का साइकिल चुनाव चिह्न आयोग का फैसला आने तक होने तक सीज किया जा सकता है जिसकी संभावनाएं ज्यादा दिख रही हैं। अभी साइकिल निशान मुलायम सिंह यादव के कब्जे में ही है।

संसदीय बोर्ड में मुलायम का दबदबा :
समाजवादी पार्टी में अहम फैसले लेने के लिए संसदीय बोर्ड ही जिम्मेदार होता है। मौजूदा बोर्ड में मुलायम सिंह समर्थकों की संख्या अधिक है। संसदीय बोर्ड में मुलायम सिंह, अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, जॉय एंटोनी, किरनमय नंदा, रवि वर्मा, शिवपाल सिंह यादव, मोहम्मद आजम खां, सुरेंद्र मोहन अग्रवाल, अंबिका चौधरी व रामगोपाल यादव के अलावा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विशेष आंमत्रित सदस्य हैं। इसमें से रामगोपाल यादव व किरनमय नंदा को रविवार को निष्कासित किया जा चुका है।
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 कुकृत्य छिपाने को मेरा अपमान : मुलायम

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने रविवार को दो घंटे के अंतराल में दो पत्र लिखे। पहले पत्र में उन्होंने प्रो.राम गोपाल यादव द्वारा बुलाये राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन को अवैध ठहराया। दूसरे पत्र में और तल्ख होते हुए कहा कि कुछ लोग अपने कुकृत्य छिपाने, सीबीआइ से बचने और भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए लगातार मेरा अपमान कर रहे हैं। उनका इशारा राम गोपाल की ओर था। पत्र में लिखा कि ऐसे लोगों ने आज का तथाकथित सम्मेलन बुलाने की साजिश की है।
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पहला पत्र - सुबह आठ बजे
प्रिय साथी,
30 सितंबर को राम गोपाल यादव द्वारा हस्ताक्षरित एक सूचना एक जनवरी 2017 को लखनऊ में आयोजित एक तथाकथित विशेष आपातकालीन राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन में आमंत्रित किये जाने के संबंध में जारी की गई है। यह आयोजन पूरी तरह से पार्टी संविधान के विरुद्ध है तथा पार्टी अनुशासन के विपरीत और पार्टी को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया है। अत: आप ऐसे किसी तथाकथित सम्मेलन में भाग न लें। आपको अवगत कराना है कि ऐसे किसी सम्मेलन में भाग लेना या इससे संबंधित किसी प्रस्ताव या प्रपत्र पर हस्ताक्षर करना पार्टी हित के विरुद्ध व अनुशासनहीनता समझा जाएगा। ऐसा करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी।
-मुलायम सिंह यादव
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दूसरा पत्र - दोपहर दो बजे
1-आज दिनांक एक जनवरी 2017 को जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित पार्टी का तथाकथित आपातकालीन राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन असंवैधानिक है। यह सम्मेलन राष्ट्रीय अध्यक्ष की अनुमति के बगैर बुलाया गया है। इसमें पारित सभी प्रस्ताव व लिए गए निर्णय अवैध हैं। संसदीय बोर्ड इस आयोजन, इसमें पारित प्रस्तावों व सम्मेलन की संपूर्ण कार्यवाही को असंवैधानिक ठहराते हुए उसकी निंदा करता है तथा इसके कर्ताधर्ता प्रो.राम गोपाल यादव के पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासन की पुष्टि करता है।
2-राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा 2017 के विधान सभा चुनाव के लिए पूर्व में घोषित प्रत्याशियों की सूची का अनुमोदन किया जाता है और राष्ट्रीय अध्यक्ष को अधिकृत किया जाता है कि शीघ्र शेष बची हुई सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दें।
3-समाजवादी पार्टी को खड़ा करने एवं सांप्रदायिक शक्तियों से जान जोखिम में डालकर संघर्ष करने का मुलायम सिंह यादव का इतिहास रहा है। कुछ लोग अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए व सीबीआइ से बचने के लिए तथा भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए मुलायम सिंह का लगातार अपमान कर रहे हैं। उन्हीं लोगों ने आज का तथाकथित सम्मेलन बुलाने की साजिश की है।
4-संसदीय बोर्ड यह भी निर्णय करता है कि प्रदेश की जनता को जनमत का भ्रम न रहे। इसलिए पार्टी की आकस्मिक राष्ट्रीय अधिवेशन 05 जनवरी 2017 को पूर्वाह्न 11 बजे जनेश्वर मिश्र पार्क लखनऊ में आयोजित किया जाए।
-मुलायम सिंह यादव

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 अखिलेश के पैंतरे पर होंगी निगाहें
- पांच जनवरी को मुलायम चल सकते हैं चरखा दांव
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लखनऊ : विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर जैसे राजनीतिक सूरमाओं को चुनौती देकर मुलायम सिंह यादव ने चार अक्टूबर, 1992 को जब समाजवादी पार्टी की नींव रखी थी, तब शायद उन्हें यह भान नहीं होगा कि कभी उनके सगे ही उनकी बुनियाद हिला देंगे। इतिहास में ढेरों ऐसे उदाहरण हैं जब पिता को किनारे कर पुत्र ने वर्चस्व स्थापित किया। यह बात और है कि ऐसे कृत्यों की सामाजिक स्वीकारोक्ति मुश्किल होती है। पिता को किनारे कर खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश के इस पैंतरे का जनता कैसे मूल्यांकन करेगी, यह तो वक्त बताएगा।
कुनबे की कलह के बीच संतुलन साधते हुए पिछले पांच नवंबर को सपा ने जनेश्वर मिश्र पार्क में स्थापना की रजत जयंती मनाई तो एक उम्मीद थी कि मतभेद के बावजूद संगठन को आंच नहीं आएगी। किसी ने घरेलू ड्रामा तो किसी ने वर्चस्व की जंग समझकर यही आकलन किया कि चुनाव तक सब ठीक हो जाएगा। पर, घर में दोनों तरफ कुछ ऐसी ताकतें थी जिन्होंने अपने-अपने हितों में पिता और पुत्र के बीच में बड़ी दीवार उठानी शुरू कर दी। करीब दो माह बाद उसी जनेश्वर मिश्र पार्क में रविवार को यह दीवार मुकम्मल होती नजर आयी। सपा की नींव रखने वाले मुलायम सिंह यादव दीवार के उस पार हो गए और इस पार उन्हीं के रोपित वृक्षों की शाखाओं के कंधों पर सवार पुत्र अखिलेश यादव पिता से मुकाबिल होते नजर आए। हालांकि उनकी आंखों में जरूर इस बात का अहसास था। पार्टी में अपने पिता का ओहदा संभालते हुए उनकी जुबान पर मर्यादा और संकोच भारी था। शायद यही वजह थी कि अधिवेशन में उनका संक्षिप्त उद्बोधन पिता मुलायम के प्रति उनके समर्पण पर केंद्रित था। अभी शुक्रवार को ही अखिलेश के निष्कासन का एलान करते हुए बेबस और भावुक मुलायम ने कहा कि 'मैं तो अखिलेश को बेटा मानता हूं पर वह मुझे पिता माने तब नÓ। इसी कड़ी में मुलायम ने यह भी कहा कि यदि अखिलेश माफी मांगेंगे तो वह विचार करेंगे। यह एक पुत्र की हिमाकत के बावजूद उसके प्रति एक पिता का उदात्त भाव था। यह जरूर है कि अगले दिन अख्रिलेश ने ताकत दिखाई और इसका अहसास होते ही मुलायम ने बिना माफी मांगे ही अखिलेश को माफ कर दिया। वहीं अखिलेश को शायद अपनी सियासी ताकत का गुमान हो या फिर इर्द-गिर्द मौजूद चाचा, भाई, भतीजा और सहयोगियों का दबाव हो जिसने उन्हें पार्टी में पिता को किनारे कर उनका ओहदा हासिल करने के लिए बेचैन किया हो। अखिलेश को 'युवा जोशÓ के नारे राजधानी से लेकर उत्तर प्रदेश की सड़कों के किनारे 'लोहा तप कुंदन भयाÓ जैसे स्लोगन वाले पोस्टर भले सुहा रहे हों लेकिन अब भी पिता के खिलाफ पुत्र के सियासी दांव जनता को बेचैन करते हैं।
जिन्हें यह लगता है कि मुलायम कमजोर पड़ गये हैं, उन्हें यह भी याद रखने की जरूरत है कि 1992 में पार्टी गठित करने के बाद एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने कांशीराम की साझेदारी में उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली थी। जिन्हें यह भ्रम है कि दलित वोटों की बदौलत नेताजी ने दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उन्हें यह भी याद रखने की जरूरत है कि 2003 में जोड़-तोड़ में खुद को खरा साबित करते हुए मायावती की सत्ता छीन ली थी। वह चरखा दांव के लिए यूं ही याद नहीं किए जाते हैं। पांच जनवरी को उनके द्वारा बुलाए गये सम्मेलन को लेकर एक बड़ा तबका आस लगाए है कि वह अपने चरखा दांव से कोई करिश्मा दिखा सकते हैं।

बेनी हुए मुलायम, अखिलेश संग रेवतीरमण
- चढ़ते सूरज के प्रति ज्यादा आस्थावान दिखे सपाई
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लखनऊ : समाजवादी कुनबे में तख्तापलट के बाद सब की निगाहें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के कदम पर टिक गयीं। स्थापना काल में सपा को दम देने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम का हाथ थामा तो दूसरे पूर्व मंत्री और सांसद कुंवर रेवतीरमण सिंह ने अखिलेश यादव को प्राथमिकता दी। शनिवार को दोनों खेमों के बीच सुलह कराने में सक्रिय मोहम्मद आजम खां नाकाम होने के बाद रविवार को खुद को समेटे रहे। शनिवार को ही शक्ति प्रदर्शन में भारी पड़े अखिलेश के साथ वे लोग भी कदमताल करते दिखे जिन्हें मुलायम का बेहद करीबी माना जाता था। मंत्री अहमद हसन और बलराम यादव जैसे लोग भी मुलायम को छोड़ अखिलेश को मजबूत करने में लगे रहे। मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति, बर्खास्त मंत्री ओमप्रकाश सिंह, नारद राय, अंबिका चौधरी जैसे कुछ चुनिंदा लोगों की बात छोड़ दी जाए तो गिनाने के लिए मुलायम के साथ बड़े नाम बहुत ही कम थे। चढ़ते सूरज के प्रति यह समाजवादियों की आस्था थी जिसके चलते महारथी मुलायम को एक दायरे में सिमटना पड़ा।
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आदेश के बाद आशु मलिक से तत्काल वापस ली गई सुरक्षा

गाजियाबाद : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर शासन द्वारा एमएलसी आशु मलिक की सुरक्षा वापस लेने के बाद पुलिस ने तत्काल प्रभाव से सुरक्षा वापस मंगा ली। आशु मलिक को पूर्व में वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी। इस सुरक्षा में उनके साथ 17 पुलिसकर्मी रहते थे। हाल ही में आशु मलिक सपा कुनबे में रार की शुरुआत के बाद कई बार सुर्खियों में आए थे। एमएलसी आशु मलिक सपा सुप्रीमो मुलायम ङ्क्षसह के करीबी माने जाते हैं। सपा कुनबे में शुरू हुई रार में आशु मलिक दिलचस्पी दिखाते हुए कूद पड़े थे और उन्होंने पूरी दखलंदाजी भी की थी। माना जा रहा है कि इसके चलते ही उनसे सुरक्षा वापस ली गई है।

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लखनऊ : राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अखिलेश यादव ने नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने का पहला निर्णय लिया। उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने के पीछे पिछड़ी जाति के वोटों को साधने का दांव नजर आ रहा है।
फतेहपुर के लहुरी सरांय गांव के निवासी नरेश उत्तम कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। इस जाति के मतदाताओं का सौ से अधिक सीटों पर सीधा प्रभाव है। उत्तम ने कानपुर में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति शुरू की थी। 1989 में लोकदल के टिकट पर फतेहपुर की जहानाबाद सीट से विधायक चुने गए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम ङ्क्षसह यादव ने उन्हें वन विभाग का उपमंत्री बनाया था। प्रदेश अध्यक्ष का ओहदा संभालने के बाद नरेश ने कहा कि वह गरीबों, पिछड़ों की लड़ाई लड़ेंगे। जल्द कार्यकारिणी गठित होगी। कुछ अरसे से मीडिया से दूरी बनाकर चल रहे मंत्री राजेंद्र चौधरी भी सामने आए और कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश के नेतृत्व में फिर से सरकार बनाएंगे।
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शिवपाल गुनगुनाए- कसमें, वादे, प्यार, वफा ...
- पद से हटाए जाने के बाद भी उत्साह से की डिनर पार्टी की मेजबानी
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लखनऊ : हालात कोई भी हों, शिवपाल यादव के चेहरे पर मुस्कराहट हमेशा बनी रहती है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद रविवार शाम उन्होंने होटल ताज में डिनर पार्टी आयोजित की। इस पार्टी में उनके एक समर्थक ने बड़े मायूस होकर कहा -'तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छिपा रहे होÓ। शिवपाल बोले-गम काहे का। फिर तो गीत-संगीत का जो सिलसिला बढ़ा वह देर तक चलता रहा। आखिर आर्केस्ट्रा संचालक ने माइक थमाया तो शिवपाल गुनगुनाए -'कसमें, वादे, प्यार, वफा, सब बातें हैं, बातों का क्या, कोई किसी का नहीं है जग में, नाते हैं नातों का क्या।Ó ऐसा प्रतीत हुआ कि इन लाइनों के जरिये अतीत में परिवार को बांधे रखने के लिए जो कुर्बानी दी थी, वह गीत के रूप में सामने आयी। इस गीत के बाद एक समर्थक ने दूसरे गीत की लाइन कागज में लिखकर उन्हें थमाई, उसे गुनगुनाने का इसरार किया। शिवपाल ने चश्मा निकाला, देखा फिर हंसते हुए उन लाइनों को गुनगुनाने से इन्कार कर दिया।
शिवपाल सिंह यादव प्रतिवर्ष नव वर्ष के पहले दिन पार्टी देते हैं। इस पार्टी में मीडियाकर्मियों और उनके करीबी लोग आमंत्रित किए जाते हैं। इस बार भी कई दिन पहले से ही लोगों को आमंत्रित किया जा रहा था। रविवार को जब सपा में तख्तापलट का खेल शुरू हुआ तो भी शिवपाल ने यह पार्टी निरस्त नहीं की। उन्होंने तख्तापलट के बाद भी अपने कई शुभचिंतकों को फोन करके बुलाया। उनके साथ गीत-संगीत की महफिल में भी शरीक हुए।
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मैं मरते दम तक मुलायम के साथ : शिवपाल
इसी पार्टी में बातचीत करते हुए शिवपाल सिंह यादव ने कहा है कि मैं मरते दम तक मुलायम सिंह यादव के साथ हूं। साइकिल मुलायम सिंह की और हमारी थी, हमारी है और हमारी रहेगी। जिसको जहां जाना हो जाए। हमने रविवार को हुए घटनाक्रम की तथ्यों के साथ सारी जानकारी चुनाव आयोग को भेज दी है। यादव ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी खड़ी की है, संघर्ष किया है। ढेरों लोगों को संघर्ष करना सिखाया है। पांच जनवरी को राष्ट्रीय अधिवेशन में सब कुछ साफ हो जाएगा। जनता और कार्यकर्ताओं का सारा असमंजस खत्म हो जाएगा।
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...अरे समाजवादी पार्टी मेरी : मुलायम
- राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाए जाने की सूचना से हैरान रह गए सपा प्रमुख
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लखनऊ : करीब 25 वर्ष तक खून पसीने से सींची गई समाजवादी पार्टी को मुकाम देने वाले मुलायम सिंह यादव रविवार को उस वक्त हैरान हो गए जब उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की जानकारी मिली। यह सुनते ही उनके मुंह से बेसाख्ता निकला-'समाजवादी पार्टी मेरी है, इसे मैने बनाया है। अखिलेश और रामपाल (रामगोपाल) यह भी कर सकते हैं।Ó
 विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास से ही अधिवेशन पर मुलायम नजर रखे हुए थे और जनेश्वर मिश्र पार्क के घटनाक्रम की पल-पल की खबर भी ले रहे थे। सूत्रों का कहना है कि मुलायम को भरोसा नहीं हुआ कि उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया है। उन्हें उम्मीद थी कि अखिलेश कार्यकारी अध्यक्ष बनेंगे और उनका सम्मान बरकरार रखेंगे। मुलायम के आवास पर कई कैबिनेट मंत्री डटे रहे, जिसमें गायत्री प्रसाद प्रजापति प्रमुख थे। शिवपाल सिंह यादव अपने बेटे आदित्य के साथ मुलायम सिंह के आवास पर आते- जाते रहे।


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 घटनाक्रम की टाइम लाइन
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- 8.00 बजे सुबह- शिवपाल मुलायम के घर पहुंचे।
-10 बजे मुलायम ने पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक बुलाई।
-11 बजे भारी संख्या में पदाधिकारी जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित अधिवेशन में हिस्सा लेने पहुंचे।
-11.10 बजे अखिलेश यादव जनेश्वर मिश्र पार्क पहुंचे।
- 11.20 बजे रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा।
- 11.22 बजे अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए।
- 11.40 बजे रामगोपाल माइक पर आए और अधिवेशन में पारित प्रस्ताव पढ़ा।
- 12.00 बजे मुलायम सिंह ने रामगोपाल यादव को तीसरी बाद पार्टी से बाहर कर दिया।
- 1.30 बजे मुलायम ने सपा के उपाध्यक्ष किरनमंय नंदा व नरेश अग्र्रवाल को पार्टी से निकाला।
- 4 बजे नए अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया।
- 4.50 बजे समर्थकों के साथ नरेश उत्तम पार्टी आफिस कार्यालय पहुंचे, जहां समर्थकों ने शिवपाल यादव की नेम प्लेट तोड़ डाली। उत्साह में जमकर हंगामा किया।
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: आज दिल्ली जाएंगे मुलायम, शिवपाल
लखनऊ : समाजवादी पार्टी में कार्रवाई, दांव-पेंच के दौर में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव सोमवार को दिल्ली जाएंगे। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में वह पार्टी के घटनाक्रम के पहलुओं पर विधि विशेषज्ञों से चर्चा करने के साथ दूसरे दलों के कुछ नेताओं से मुलाकात भी करेंगे। दूसरी ओर राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को अध्यक्ष नामित किए जाने के बाद इससे जुड़े सारे दस्तावेज लेकर प्रो.राम गोपाल यादव रविवार को ही दिल्ली रवाना हो गए।
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मुलायम का स्वास्थ्य बिगड़ा
रविवार की देर शाम मुलायम सिंह यादव का स्वास्थ्य बिगड़ गया। जिसकी जानकारी मिलने पर ताज होटल में पार्टी कर रहे शिवपाल यादव सीधे मुलायम के घर पहुंचे। डॉक्टरों को बुलाया गया। बाद में बताया गया कि मुलायम के दांत में तेज दर्द था। डॉक्टरों ने दवा देने के साथ उन्हें आराम करने की सलाह दी।
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सपा में अब न कोई विवाद, न गुट : आजम
इलाहाबाद : प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां ने रविवार को यहां दो टूक कहा, समाजवादी पार्टी में न कोई गुट है न अब कोई विवाद। पूर्व महाधिवक्ता स्व. एसएमए काजमी के बेटे के दावत-ए-वलीमा में शिरकत करने आए आजम खां ने मीडिया से अनौपचारिक वार्ता में यह बातें कहीं।
केपी कम्युनिटी हाल में मीडिया से संक्षिप्त वार्ता में आजम खां ने इतना ही कहा कि पार्टी के लिए जो उचित है, वह वरिष्ठ नेता कर रहे हैं। परिवार में कुछ मनमुटाव है वह जल्द ही सुलझ जाएगा। लखनऊ में रविवार के घटनाक्रम पर उन्होंने कहा अब किसी तरह का कोई विवाद नहीं है। आजम खां के इलाहाबाद आने पर सपाइयों ने उनका स्वागत किया। सर्किट हाउस में बड़ी संख्या में पार्टीजन मौजूद रहे।
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'जिन्हें आप प्यार करते हैं, कभी उन्हें बचाने के लिए सही फैसला करना पड़ता है। मैंने आज कड़ा निर्णय लिया लेकिन यह मुझे लेना ही था।Ó
- देर रात अखिलेश यादव का ट्वीट
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बैठक बुलाना अध्यक्ष का अधिकार
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी के संविधान में राष्ट्रीय सम्मेलन या विशेष सम्मेलन बुलाने की अधिकार केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास होता है। धारा 16 ख में उल्लेखित है, राष्ट्रीय सम्मेलन की बैठक बुलाने का अधिकार केवल अध्यक्ष को होगा लेकिन 40 प्रतिशत सदस्यों द्वारा मांग करने पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाने को वह बाध्य होगा। धारा 23 में विशेष अधिवेशन को बुलाने का उल्लेख है। इसमें भी अध्यक्ष को ही विशेष अधिवेशन आहूत करने का अधिकार है। इसके अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित करने पर सम्मेलन का स्थान व तिथि नियत की जा सकती है। हालांकि इसको लेकर अलग अलग व्याख्या की जा रही है।