22 dec-2016
- जाति का जुगाड़ -
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- साढ़े 13 फीसद आबादी को मिलेगा लाभ
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लखनऊ : इस फैसले में भले ढेरों पेंच हों, मगर चुनावी ड्योढ़ी पर खड़ी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने का निर्णय लिया है। यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा। कैबिनेट ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में परिभाषित करके अनुमन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह फैसला लिया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में यूं तो 74 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई लेकिन, 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने का फैसला महत्वपूर्ण है। इस निर्णय को लेकर भले तकनीकी पेंच तलाशे जा रहे हों पर समाजवादी सरकार ने इन जातियों की तकरीबन साढ़े 13 प्रतिशत आबादी को पाले में करने का चुनावी दांव चल दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि ये 17 जातियां मूलरूप से केवल पांच जातियां हैं। इनका खानपान, रहन-सहन एक जैसा है। इनकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय है। विधि विशेषज्ञों व महाधिवक्ता के अनुसार इन जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में 'परिभाषितÓ करके व कार्मिक की अधिसूचना में एक बिन्दु जोड़कर एससी को उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधा दी जा सकती है।
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ये अब एससी
निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, मछुआ, बिन्द, बाथम, धीवर, धीमर, कहार, कश्यप, गोडिय़ा, तुराहा, रैकवार, कुम्हार, प्रजापति, भर और राजभर।
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केंद्र कर चुका था इन्कार
प्रदेश सरकार ने तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री अवधेश प्रसाद की अध्यक्षता में छह जुलाई, 2012 को पांच मंत्रियों की उपसमिति से 17 पिछड़ी जातियों पर रिपोर्ट मांगी थी। समिति ने फरवरी, 2013 में सरकार को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि इन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में परिभाषित कर लिया जाए। साथ ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा किये गए सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक अध्ययन की रिपोर्ट 18 बिंदुओं के साथ केन्द्र सरकार को भेजी जाए। अखिलेश कैबिनेट ने 28 फरवरी, 2013 को संस्तुति पर अपनी मंजूरी देकर केन्द्र सरकार को भेज दिया था। सूत्रों का कहना है कि केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 22 जुलाई, 2015 को भेजे पत्र में इन जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं पाया था। अब अखिलेश यादव कैबिनेट ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित कर उसका लाभ देने का फैसला लिया है।
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सामाजिक न्याय समिति में आबादी
राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में केवट, मल्लाह, मछुआ, निषाद की आबादी 4.33 फीसद, कुम्हार, प्रजापति 3.24 फीसद, भर, राजभर 2.44 फीसद, कहार-कश्यप धीमर, बाथम, तुरहा, बिंद, गोडिय़ा की आबादी 3.31 फीसद के करीब है।
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2004 में मुलायम का था प्रस्ताव
वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर उसे मंजूरी के लिए केन्द्र सरकार को भेजा था लेकिन तब भी उसे नामंजूर कर दिया गया था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी ने इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने का वादा किया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 15 फरवरी, 2013 को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था, जिसे रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया (आरजीआइ) केन्द्र सरकार ने निरस्त कर दिया था। इसके बाद मंत्री गायत्री प्रजापति के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 17 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के लिए प्रदेश में रैलियां आयोजित कीं और जिलों से प्रस्ताव पास कराकर केन्द्र सरकार को भेजा।
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अति पिछड़ी जातियों को अब एससी के समान सुविधा
- प्रमुख सचिव समाज कल्याण ने मंडलायुक्त, डीएम को भेजा निर्देश
- 17 अति पिछड़ी जातियां एससी के रूप में परिभाषित
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लखनऊ : दस साल दो माह बाद फिर सूबाई हुकूमत ने प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी (अनुसूचित जाति) केरूप में परिभाषित (एक तरह का दर्जा) किया है। मंडलायुक्तों, डीएम को नए शासनादेश के अनुरूप इन जातियों को फौरन सरकारी सुविधा उपलब्ध कराने को कहा गया है।
17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने का संघर्ष डेढ़ दशक पुराना है। वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित कराने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया था। 10 अक्टूबर, 2005 कार्मिक विभाग ने संबंधित जातियों को एससी के बराबर लाभ देने का शासनादेश जारी किया था जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। 20 दिसंबर, 2005 को न्यायमूर्ति सरोजबाला की पीठ ने फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके बाद इन जातियों को एससी का लाभ देने अथवा न देने को लेकर कई बार फैसले हुए, लेकिन नतीजा शून्य रहा।
गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कैबिनेट ने फिर से 17 जातियों को एससी के रूप में परिभाषित करने का फैसला लिया और गुरुवार की तिथि में ही प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने शासनादेश जारी कर दिया। मंडलायुक्त, डीएम और सचिवों को शासनादेश पर अमल के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री के सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने बताया कि अफसरों को शासनादेश की अनदेखी न करने की हिदायत दी गई है। 17 पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने का आंदोलन चला रहे परिवहन मंत्री गायत्री प्रजापति का कहना है कि सरकार का यह फैसला सामाजिक न्याय का प्रतीक है। हालांकि, जानकार इस फैसले को चुनौती मिलने से इन्कार नहीं कर रहे हैं।
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इनको मिलेगा लाभ
निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, मछुआ, बिन्द, धीवर, धीमर, कहार, कश्यप, बाथम, गोडिय़ा, तुराहा, रैकवार, कुम्हार, प्रजापति, भर और राजभर।
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जातियों की यह है आबादी
हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में केवट, मल्लाह, मछुआ, निषाद की आबादी 4.33 फीसद, कुम्हार, प्रजापति 3.24 फीसद, भर, राजभर 2.44 फीसद, कहार-कश्यप धीमर, बाथम, तुरहा, बिंद, गोडिय़ा की आबादी 3.31 फीसद के करीब है।
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कब क्या हुआ
- वर्ष 2004 में मुलायम सिंह ने 17 जातियों को एससी में शामिल करने का केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा।
- अक्टूबर, 2005 को मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित किया।
- 10 अक्टूबर, 2005 को कार्मिक विभाग ने 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी के रूप में सुविधा का शासनादेश जारी किया।
- फैसले के विरोध में प्रकाश चंद्र बिंद, जोगीलाल प्रजापति, प्रगतिशील प्रजापति समाज ने हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दाखिल की। लोटनराम प्रजापित ने इन याचिकाओं के साथ अपना प्रार्थना पत्र भी शामिल कराया।
- अंबेडकर जन कल्याण समिति गोरखरपुर की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल हो गई।
- 20 दिसंबर, 2005 को हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सरोज बाला ने सरकार के फैसले पर रोक लगा दी
- हुआ यह कि 10 अक्टूबर, 2005 से 13 अगस्त, 2006 तक इन जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग का भी लाभ नहीं मिला।
- 17 जातियों के बढ़ते दबाव के दबाव पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 14 अगस्त, 2006 को फिर से इन जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल करने का आदेश जारी किया।
- मई 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अति पिछड़़ी जातियों को एससी के दर्जे का प्रस्ताव खारिज किया और केन्द्र को भेजा गया प्रस्ताव वापस मंाग लिया।
- इसकी भनक लगते ही अति पिछड़ी जातियों का आंदोलन शुरू हो गया।
- 4 मार्च, 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने एससी का कोटा बढ़ाने की मांग के साथ 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव किया, जो खारिज हो गया।
- 15 फरवरी, 2013 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 17 जातियों को एससी का दर्जा देने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा जिसे खारिज कर दिया गया।
- जून, 2015 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने राज्य सरकार से शोध संस्थान की अध्ययन रिपोर्ट के साथ संस्तुति मांगी।
- अखिलेश यादव सरकार ने मंत्रिमंडल की उपसमिति गठित कर प्रस्ताव तैयार कराया।
- जाति का जुगाड़ -
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- साढ़े 13 फीसद आबादी को मिलेगा लाभ
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लखनऊ : इस फैसले में भले ढेरों पेंच हों, मगर चुनावी ड्योढ़ी पर खड़ी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने का निर्णय लिया है। यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा। कैबिनेट ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में परिभाषित करके अनुमन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह फैसला लिया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में यूं तो 74 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई लेकिन, 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने का फैसला महत्वपूर्ण है। इस निर्णय को लेकर भले तकनीकी पेंच तलाशे जा रहे हों पर समाजवादी सरकार ने इन जातियों की तकरीबन साढ़े 13 प्रतिशत आबादी को पाले में करने का चुनावी दांव चल दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि ये 17 जातियां मूलरूप से केवल पांच जातियां हैं। इनका खानपान, रहन-सहन एक जैसा है। इनकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय है। विधि विशेषज्ञों व महाधिवक्ता के अनुसार इन जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में 'परिभाषितÓ करके व कार्मिक की अधिसूचना में एक बिन्दु जोड़कर एससी को उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधा दी जा सकती है।
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ये अब एससी
निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, मछुआ, बिन्द, बाथम, धीवर, धीमर, कहार, कश्यप, गोडिय़ा, तुराहा, रैकवार, कुम्हार, प्रजापति, भर और राजभर।
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केंद्र कर चुका था इन्कार
प्रदेश सरकार ने तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री अवधेश प्रसाद की अध्यक्षता में छह जुलाई, 2012 को पांच मंत्रियों की उपसमिति से 17 पिछड़ी जातियों पर रिपोर्ट मांगी थी। समिति ने फरवरी, 2013 में सरकार को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि इन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में परिभाषित कर लिया जाए। साथ ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा किये गए सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक अध्ययन की रिपोर्ट 18 बिंदुओं के साथ केन्द्र सरकार को भेजी जाए। अखिलेश कैबिनेट ने 28 फरवरी, 2013 को संस्तुति पर अपनी मंजूरी देकर केन्द्र सरकार को भेज दिया था। सूत्रों का कहना है कि केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 22 जुलाई, 2015 को भेजे पत्र में इन जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं पाया था। अब अखिलेश यादव कैबिनेट ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित कर उसका लाभ देने का फैसला लिया है।
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सामाजिक न्याय समिति में आबादी
राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में केवट, मल्लाह, मछुआ, निषाद की आबादी 4.33 फीसद, कुम्हार, प्रजापति 3.24 फीसद, भर, राजभर 2.44 फीसद, कहार-कश्यप धीमर, बाथम, तुरहा, बिंद, गोडिय़ा की आबादी 3.31 फीसद के करीब है।
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2004 में मुलायम का था प्रस्ताव
वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर उसे मंजूरी के लिए केन्द्र सरकार को भेजा था लेकिन तब भी उसे नामंजूर कर दिया गया था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी ने इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने का वादा किया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 15 फरवरी, 2013 को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था, जिसे रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया (आरजीआइ) केन्द्र सरकार ने निरस्त कर दिया था। इसके बाद मंत्री गायत्री प्रजापति के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 17 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के लिए प्रदेश में रैलियां आयोजित कीं और जिलों से प्रस्ताव पास कराकर केन्द्र सरकार को भेजा।
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अति पिछड़ी जातियों को अब एससी के समान सुविधा
- प्रमुख सचिव समाज कल्याण ने मंडलायुक्त, डीएम को भेजा निर्देश
- 17 अति पिछड़ी जातियां एससी के रूप में परिभाषित
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लखनऊ : दस साल दो माह बाद फिर सूबाई हुकूमत ने प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी (अनुसूचित जाति) केरूप में परिभाषित (एक तरह का दर्जा) किया है। मंडलायुक्तों, डीएम को नए शासनादेश के अनुरूप इन जातियों को फौरन सरकारी सुविधा उपलब्ध कराने को कहा गया है।
17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने का संघर्ष डेढ़ दशक पुराना है। वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित कराने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया था। 10 अक्टूबर, 2005 कार्मिक विभाग ने संबंधित जातियों को एससी के बराबर लाभ देने का शासनादेश जारी किया था जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। 20 दिसंबर, 2005 को न्यायमूर्ति सरोजबाला की पीठ ने फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके बाद इन जातियों को एससी का लाभ देने अथवा न देने को लेकर कई बार फैसले हुए, लेकिन नतीजा शून्य रहा।
गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कैबिनेट ने फिर से 17 जातियों को एससी के रूप में परिभाषित करने का फैसला लिया और गुरुवार की तिथि में ही प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने शासनादेश जारी कर दिया। मंडलायुक्त, डीएम और सचिवों को शासनादेश पर अमल के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री के सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने बताया कि अफसरों को शासनादेश की अनदेखी न करने की हिदायत दी गई है। 17 पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिलाने का आंदोलन चला रहे परिवहन मंत्री गायत्री प्रजापति का कहना है कि सरकार का यह फैसला सामाजिक न्याय का प्रतीक है। हालांकि, जानकार इस फैसले को चुनौती मिलने से इन्कार नहीं कर रहे हैं।
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इनको मिलेगा लाभ
निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, मछुआ, बिन्द, धीवर, धीमर, कहार, कश्यप, बाथम, गोडिय़ा, तुराहा, रैकवार, कुम्हार, प्रजापति, भर और राजभर।
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जातियों की यह है आबादी
हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में केवट, मल्लाह, मछुआ, निषाद की आबादी 4.33 फीसद, कुम्हार, प्रजापति 3.24 फीसद, भर, राजभर 2.44 फीसद, कहार-कश्यप धीमर, बाथम, तुरहा, बिंद, गोडिय़ा की आबादी 3.31 फीसद के करीब है।
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कब क्या हुआ
- वर्ष 2004 में मुलायम सिंह ने 17 जातियों को एससी में शामिल करने का केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा।
- अक्टूबर, 2005 को मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट ने इन जातियों को एससी के रूप में परिभाषित किया।
- 10 अक्टूबर, 2005 को कार्मिक विभाग ने 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी के रूप में सुविधा का शासनादेश जारी किया।
- फैसले के विरोध में प्रकाश चंद्र बिंद, जोगीलाल प्रजापति, प्रगतिशील प्रजापति समाज ने हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दाखिल की। लोटनराम प्रजापित ने इन याचिकाओं के साथ अपना प्रार्थना पत्र भी शामिल कराया।
- अंबेडकर जन कल्याण समिति गोरखरपुर की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल हो गई।
- 20 दिसंबर, 2005 को हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सरोज बाला ने सरकार के फैसले पर रोक लगा दी
- हुआ यह कि 10 अक्टूबर, 2005 से 13 अगस्त, 2006 तक इन जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग का भी लाभ नहीं मिला।
- 17 जातियों के बढ़ते दबाव के दबाव पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 14 अगस्त, 2006 को फिर से इन जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल करने का आदेश जारी किया।
- मई 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अति पिछड़़ी जातियों को एससी के दर्जे का प्रस्ताव खारिज किया और केन्द्र को भेजा गया प्रस्ताव वापस मंाग लिया।
- इसकी भनक लगते ही अति पिछड़ी जातियों का आंदोलन शुरू हो गया।
- 4 मार्च, 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने एससी का कोटा बढ़ाने की मांग के साथ 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव किया, जो खारिज हो गया।
- 15 फरवरी, 2013 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 17 जातियों को एससी का दर्जा देने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा जिसे खारिज कर दिया गया।
- जून, 2015 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने राज्य सरकार से शोध संस्थान की अध्ययन रिपोर्ट के साथ संस्तुति मांगी।
- अखिलेश यादव सरकार ने मंत्रिमंडल की उपसमिति गठित कर प्रस्ताव तैयार कराया।