Monday 16 November 2015

गठबंधन दूर की कौड़ी

 15 नवम्बर.
 बिहार के चुनावी नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत पर नज़र लगाये राजनीतिक दलों में गठबंधन की सोंच जोर मारने लगी है. सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सोच वाले राजनीतिक दलों के गठबंधन से इनकार नहीं किया है तो सपा के कद्दावर नेता तथा वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कई दिन पहले विधानसभा चुनाव के पहले महागठबंधन की बात छेड़ी और. अखिलेश के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार फरीद महफूज़ किदवई तो एक क़दम आगे बढ़कर अपने दिल की ख्वाहिश जता चुके हैं कि सूबे में भाजपा के सफाए के लिए समाजवादी पार्टी का अपने धुर विरोधी बसपा से भी गठबंधन हो सकता है। दरअसल पिछले दो दिनों से यूपी के सियासी हलकों में सपा और बसपा के साथ आने की ऐसी चर्चाएँ शुरू हो गई हैं जिस पर सामान्य रूप से ऐतबार नहीं किया जा सकता है. किदवई की ख्वाहिश के तुरंत बाद आगरा में भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे शाहनवाज़ हुसैन ने कहा है कि यूपी में सपा और बसपा मिलकर भी भाजपा को छू नहीं सकती है।
वास्तव में इस देश की राजनीति में सपा और बसपा दो ऐसे दल हैं जिनका फिलहाल मिलन ठीक उसी तरीके से है जैसे सूरज का पश्चिम से उगना। मायावती और मुलायम सिंह के रिश्ते दो दशक पहले हुए स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड से इतने तल्ख़ हुए कि वे सियासत से कहीं ज्यादा निजी तौर पर लिए गए हैं। राजनीति में मायावती का स्वभाव बहुत जिद्दी माना जाता है और उनकी निजी सोच है कि सबकुछ बर्बाद हो जाए तो भी उनके रिश्ते मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी से कभी जुड़ नहीं सकते हैं। इसके पीछे स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड के अलावा एक और बड़ी वजह है। बसपा में अब कोई कांशीराम भी नहीं है तो इस दूरी को सियासी दोस्ती में बदलने की बात भी कर सके। दरअसल दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व में साझा सरकार में शामिल बसपा ने जब सरकार गिराकर अलग होने का फैसला किया तो सपा की ओर से कांशीराम के सामने एक बड़ा प्रस्ताव आया था। बसपा सुप्रीमो कांशीराम से मुलायम सिंह ने कहा था कि सरकार चलने दीजिये और मुख्यमंत्री अपना बना लीजिये। यहाँ मुलायम सिंह ने शर्त रखी थी कि मुख्यमंत्री बसपा का हो लेकिन वह मायावती न हों। कहा जाता है कि कांशीराम के सामने उस वक्त मुलायम सिंह ने दीना नाथ भास्कर का नाम प्रस्तावित कर दिया था जो मायावती को कतई मंज़ूर नहीं था। इसी बीच स्वर्गीय ब्रह्म दत्त द्विवेदी की पहल पर भाजपा के समर्थन से मायावती को मुख्यमंत्री बनाने की बात पक्की हो गई. मायावती का मानना है कि अगर मुलायम की चलती तो वे सूबे की मुख्यमंत्री नहीं होतीं और इसी वजह से सपा के प्रति उनकी निजी खुन्नस कई गुना बढ़ गई। अब जब वह बसपा की सर्वे-सर्वा हैं तब उनकी सपा से सियासी दोस्ती कैसे हो सकती है।
चर्चाओं की यह है वजह
उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल मिशन 2017 की तैयारियों में जुटे हैं। समाजवादी पार्टी अपने कार्यकाल के विकास का लेखाजोखा प्रचारित कर फिर से सत्ता में वापसी चाहती है तो उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी प्रदेश की कानून व्यवस्था को निशाने पर लेकर सत्ता में अपनी वापसी के दावे कर रही है। दोनों दलों के इन दावों के बीच विधानसभा चुनावों पर नज़र गडाए लोगों के सामने एक यक्ष प्रश्न भी आ खड़ा हुआ है कि अगले चुनाव में क्या बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव गठबंधन करेंगे? भले ही सुनने में यह दूर की कौड़ी लग रही हो लेकिन चर्चा यह भी है कि खुद समाजवादी पार्टी के अंदर से यह मांग उठने लगी है कि सपा-बसपा का गठबंधन हो जाए। अखिलेश यादव सरकार के मंत्री फरीद महफूज किदवई इसके लिए दुआएं कर रहे हैं, वह पहले बसपा के साथ रहे भी हैं। मुलायम सिंह यादव के भाई प्रो. राम गोपाल यादव पहले ही यह बात कह चुके हैं कि राजनीति में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह ने इन कयासों को सिर्फ कयास ही करार दिया है। उनका कहना है 2017 में समाजवादी पार्टी की सरकार अपने बल पर सत्ता में वापसी कर रही है। उधर उत्तर प्रदेश सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री फरीद महफूज किदवई ने सपा-बसपा गठबंधन के सवाल पर कहा कि इंशाअल्लाह गठबंधन जरूर बनेगा और हम बिहार की तरह यहां भी बीजेपी को शिकस्त देकर अपनी सरकार बनाएंगे।
समीकरणों की तलाश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मुद्दे पर इस बात की बहस छिड़नी लाजमी है कि यूपी में भाजपा के खिलाफ खड़े होने के लिए कौन सी पार्टी किसके साथ जा सकती है। जब कयासबाज़ी शुरू हुई तो यह बात भी उठी कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, आरएलडी, वाम दल और अन्य छोटी पार्टियां क्या एक गठबंधन बना सकती हैं? वैसे कांग्रेस और अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल पिछले चुनाव से साथ चल रहे हैं।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और पार्टी की राज्य इकाई के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि यह तो सही है कि अगर एक विचारधारा के लोग एक हो जाएं तो उत्तर प्रदेश में भी बहुत अच्छे रिजल्ट आ सकते हैं, लेकिन इस सब पर हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व फैसला करेगा. हालांकि उन्होंने सपा-बसपा के एक होने के मुद्दे को हंसी में उड़ा दिया।सपा- बसपा ने 1993 में साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और साझा सरकार भी बनाई थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में दोनों पार्टियों का जो हश्र हुआ उससे भी इन दोनों पार्टियों के साथ आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि बसपा और सपा के वोट प्रतिशत को जोड़ने पर यह लगभग भाजपा के बराबर हो जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव के वोट प्रतिशत देखे जाएँ तो भाजपा को 42 .3 फीसदी वोट मिले थे जबकि सपा को 22 .2 और बसपा को 19 .6 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
काफी सतर्क हैं अखिलेश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव काफी सजग हैं. सरकार बनाने से लेकर अब तक लगातार विकास कार्यों पर ही नजर रखे हुए हैं. मिशन 2017 के मद्देनज़र उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल भी किया है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जोरदार जीत के बाद उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही गठजोड़ बनाने को लेकर जारी चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज कहा कि सूबे में साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसे महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।संत कबीर नगर जिले के सेमेरियावां में एक शादी के कार्यक्रम में आए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बातचीत में बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी से मुकाबले के लिए समान विचारों वाले दलों के महागठबंधन की सम्भावना सम्बन्धी सवाल पर कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि अखिलेश ने यह नहीं बताया कि उस महागठबंधन में सपा के साथ बसपा होगी या नहीं। अखिलेश ने कहा कि बिहार की जनता ने विधानसभा चुनाव में जनादेश के जरिये यह संदेश दिया है कि अब सिर्फ विकास ही एकमात्र मुद्दा है। सपा भी अगला विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ने की तैयारी कर रही है।

सपा के नहीं, भाजपा के साथ हो सकती है बसपा: अखिलेश

सपा के नहीं, भाजपा के साथ हो सकती है बसपा: अखिलेश



akhilesh-yadavनयी दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड फेयर में उत्तर प्रदेश के पेवेलियन का उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आने वाले चुनावो में बसपा के साथ गठबंधन को साफ़ शब्दों में ख़ारिज कर दिया. अखिलेश यादव ने कहा कि बसपा और भाजपा का गठबंधन हो सकता है मगर बसपा और सपा का कभी नहीं. समाजवादी पार्टी के मंत्री फरीद महफूज किदवई के एक बयान के बाद इस तरह की संभावनाओं पर बहस शुरू हो गयी थी.
अखिलेश यादव ने इशारो इशारों में भाजपा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कम्युनल होना आसान मगर सेक्यूलर होना मुश्किल होता है. देश में माहौल ख़राब हुआ है. आदमी को मार रहा,सपा इसकी निंदा करती है. अखिलेश ने कहा कि मुजफ्फरनगर, दादरी और बदायूं की दुनिया मे चर्चा हुई और पंचायत चुनाव मे जनता ने भाजपा को करार जवाब दे दिया है.
उत्तर प्रदेश के विकास की चर्चा करते हुए अखिलेश ने कहा कि आज प्रचार का जमाना है और सपा ने यूपी की पहचान वापस करने को बहुत काम किया है,यूपी सरकार ने किसानो से जमीन अधिग्रहित की और किसानो ने एक्सप्रेस-वे के लिए जमीन दी. जेवर और आगरा में एयरपोर्ट बनाना चाहते हैं, सपा सरकार जमीन देने केलिए तैयार है और हम एयरपोर्ट के लिए प्रधानमंत्री को ख़त लिखेंगे.
अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड फेयर मे सीएम ने कहा कि यूपी के हर जिले की काम से पहचान है ,मेरठ बैट,अलीगढ ताले के लिए मशहूर है तो सहारनपुर मे लकड़ी का सामान मशहूर है ,कांच के काम के लिए फिरोजबाद मशहूर तो भदोही का कालीन अपने मे उदाहरण है.

Wednesday 4 November 2015

सपा युवा ब्रिगेड पर दांव, निशाना मिशन-2017

जागरण में तकनीकी कारणों से नहीं छपी
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सपा युवा ब्रिगेड पर दांव, निशाना मिशन-2017

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवा ब्रिगेड को महत्व देकर नई टीम बनाने का  किया प्रयास
 लखनऊ : मंत्रिमंडल विस्तार में 'समाजवादी परिवारÓ को साधने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कामकाज के बंटवारे में युवा ब्रिगेड को महत्वपूर्ण महकमे का जिम्मा सौंपकर नई टीम बनाने का प्रयास किया है। इसमें भी 'एम-वाईÓ (यादव-मुसलमान) समीकरण बनता दिख रहा है जो मिशन-2017 में कामयाबी की रणनीति माना जा रहा है।
31 अक्टबूर को मंत्रिमंडल के छठवें विस्तार में मुख्यमंत्री ने क्षेत्रीय, जातीय समीकरण में  साधने के प्रयासों के साथ 'समाजवादी परिवारÓ में सामंजस्य बनाने का प्रयास किया था। बदायूं, जौनपुर , हापुड़, गाजीपुर के विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान देने को इसी प्रयास के रूप में देखा गया तो बलवंत सिंह रामूवालिया को मंत्री बनाकर पार्टी मुखिया की पसंद को महत्व दिया गया था। बावजूद इसके मुख्यमंत्री ने युवा ब्रिगेड को प्रोन्नत कर या फिर स्थान देकर अपनी छाप छोडऩे का प्रयास किया था।
विस्तार के चौथे दिन विभागों के बंटवारे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवा ब्रिगेड को पूरा महत्व दिया है। पहली बार विधायक निर्वाचित यासर शाह को परिवहन जैसे महत्वपूर्ण महकमे की कमान सौंपी है। वह मुख्यमंत्री की युवा ब्रिगेड के सदस्यों में शुमार होते हैं। इस ब्रिगेड के दूसरे चेहरेव सफीपुर से दूसरी बार विधायक सुधीर रावत को आइटी, इलेक्ट्रानिक और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसे महकमों का राज्यमंत्री बनाया है, इन महकमों के कैबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री खुद हैं।
इसके अतिरिक्त जामिया मिलिया की छात्र राजनीति के समय से समाजवादी झंडा बुलंद करने वाले कमाल अख्तर को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया अब उन्हें खाद एवं रसद जैसा बड़े की उन पर जिम्मेदारी डाली है। सपा के दिग्गज मोहम्मद आजम खां से दूरी बनाकर राजनीति करने वाले कमाल को भी सपा की युवा ब्रिगेड का सदस्य माना जाता है।
राज्यमंत्री वसीम अहमद को बाल विकास-पुष्टाहार, बेसिक शिक्षा के साथ ऊर्जा विभाग का जिम्मा दिया जाना भी सपा के एम-वाई समीकरण को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा जा र हा है। युवा ब्रिगेड एक और सदस्य व राज्यमंत्री तेज नारायण उर्फ पवन पाण्डेय की मंत्रिमंडल में दोबारा वापसी पर जिम्मेदारी बढाई गयी और वन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया है। डा.शिव प्रताप यादव को जन्तु उद्यान के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और विनोद  उर्फ पंडित सिंह को कृषि (कृषि विदेश व्यापार, कृषि निर्यात एवं कृषि विपणन को छोड़कर), बलराम यादव को कम महत्व के कारागार विभाग से फिर बढ़ाकर माध्यमिक शिक्षा का जिम्मा भी समाजवादी पार्टी के लक्ष्य-2017 की रणनीति के रूप में देखा जा र हा है।

Monday 2 November 2015

सपा के जिलाध्यक्षों में बदलाव


पुरानी खबर है.....

समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में अपने संगठन में फेरबदल किया है. ज़िला अध्यक्ष और नगर अध्यक्ष पदों पर नई तैनाती की गई है. समाजवादी पार्टी ने यादव और मुस्लिम कार्यकर्ताओं पर ही भरोसा दिखाया है. वहीं पिछड़ी जातियों और ठाकुर बिरादरी को वोट बैंक बनाने की क़वायद के बावजूद इन जातियों की नुमाइंदगी न के बराबर है.
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी ने एक और जोखिम उठाया है. प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बीच ज़िला और नगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी गई. समाजवादी पार्टी के लखनऊ कार्यालय ने 58 ज़िला और नगर अध्यक्ष पदों पर नई तैनाती की. इनमें प्राथमिकता यादव बिरादरी के कार्यकर्ताओं को दी गई. यादव बिरादरी के कार्यकर्ताओं को 21 ज़िलों में अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा ने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष बनाने में प्राथमिकता दी है. समाजवादी पार्टी खुद को पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहती है, पर पिछड़ी जातियों में यादव के अलावा दूसरी किसी जाति को तवज्जो नहीं दी गई है. मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी यादव बिरादरी से ज़्यादा संख्या में हैं. अन्य पिछ़डा वर्ग में कुशवाहा समाज भी तीसरी ब़डी जाति है.
वहीं मुस्लिम समाज के 16 कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.
समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में बीस साल बाद कांग्रेस से चुनौती मिल रही है. कांग्रेस उसके मुस्लिम वोट बैंक पर हाथ रख रही है. समावादी पार्टी का आधार यादव और मुस्लिम वोट बैंक ही है. यादव मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में है, जबकि मुस्लिम पश्चिम और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रभावी हैं. मुस्लिम वोट समावादी पार्टी से हटा तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का जनाधार सिकुड़ जाएगा. इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा ने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ज़िला और नगर अध्यक्ष बनाने में प्राथमिकता दी है. समाजवादी पार्टी खुद को पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करने का दावा कर रहती है, पर पिछड़ी जातियों में यादव के अलावा दूसरी किसी जाति को तवज्जो नहीं दी गई है. मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी यादव बिरादरी से ज़्यादा संख्या में हैं. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में कुशवाहा समाज भी तीसरी बड़ी जाति है. निषाद और लोधी क़रीब 30 विधानसभा सीटों पर निर्णायक संख्या में हैं. सपा ने इसे भी अनदेखा किया. अन्य पिछड़ा वर्ग में जाट बिरादरी भी है. इस जाति पर रालोद की पकड़ है. लिहाज़ा सपा ने इसे पहले ही दूर कर रखा है.
ठाकुर बिरादरी में सपा घुसपैठ कर रही है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के संसद और प्रवक्ता मोहन सिंह और रघुराज प्रताप सिंह राजा भैइया सक्रिय हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भदावर समावादी पार्टी का झंडा उठाकर चल रहे हैं, पर संगठन के अहम चुनाव में इस जाति के कार्यकर्ता भी मुलायम सिंह का विश्वास नहीं जीत पाए. बांदा में बीपी सिंह, हमीरपुर में ज्ञान सिंह, वाराणसी में ओपी सिंह और बिजनौर में मूलचंद चौहान शामिल हैं.
वैश्य बिरादरी शहरों में बड़ी संख्या में है. सपा ने इस समाज को भी अनदेखा किया. कायस्थ, सिख, जैन, समाज के कार्यकर्ताओं को संगठन में ज़िला या नगर अध्यक्ष के योग्य नहीं समझा गया. हां, ब्राह्मण समाज के कुछ कार्यकताओं को जिलाध्यक्ष पद का दायित्व मिल गया है. इसमें फैज़ाबाद में जयशंकर पांडेय, छत्रपति शाहूजी महाराज नगर में प्रियंका हरि त्रिपाठी, शाहजहांपुर में प्रदीप पांडेय शामिल हैं.
समाजवादी पार्टी ने ज़िला और नगर अध्यक्ष पदों पर उन कार्यकर्ताओं की तैनाती की है, जो विधानसभा चुनाव में पूरी ताक़त से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. समाजवादी पार्टी ने संगठन में फेरबदल के बाद प्रत्याशियों को उनसे तालमेल बिठाने के निर्देश दिए  हैं.
समाजवादी पार्टी द्वारा जारी 58 ज़िलों के अध्यक्षों की सूची

सीतापुर- शमीम कौसर सिद्दीक़ी
उन्नाव-अनवार अहमद
बदायूं-बनवारी सिंह यादव
शाहजहांपुर शहर-तनवीर मोहम्मद
शाहजहांपुर ज़िला- प्रदीप पांडेय
मुरादाबाद ज़िला-गोपाल सिंह यादव
मुरादाबाद शहर-कौसर अली कुद्दूसी
मैनपुरी-खुमान सिंह वर्मा
मथुरा-किशोर सिंह
रमाबाई नगर-प्रमोद यादव
कानपुर ग्रामीण-नाहर सिंह यादव
फरुर्खाबाद ज़िला-चंद्रपाल यादव
इटावा- अशोक यादव
कन्नौज-कलीम उ़र्फ पप्पू
गोरखपुर ज़िला-अवधेश यादव
गोरखपुर शहर-हाजी शकील अंसारी
देवरिया- राम इक़बाल यादव
कुशीनगर-राम अवध यादव
महराजगंज-राजेश यादव
बस्ती-राजकपूर यादव
गोंडा-मह़फूज़ खां
बहराइच-रामहर्ष यादव
फैज़ाबाद- जयशंकर पांडेय
बाराबंकी-मौलाना मेराज अहमद (देहांत)
अंबेडकरनगर- रामसकल
सुल्तानपुर-रघुवीर प्रसाद
सीएसजेएम नगर- प्रियंका हरि त्रिपाठी
लखनऊ-अशोक यादव
हरदोई- शरा़फत अली
लखीमपुर-शशांक यादव
औरेया- चौधरी रामबाबू
झांसी ज़िला-संत सिंह सेरसा
झांसी नगर-असलम शेर खां
ललितपुर-आल्हा प्रसाद निरंजन
बांदा-शमीम बांदवी
हमीरपुर-ज्ञान सिंह
महोबा- शोभलाल
चित्रकूट-भइया लाल
इलाहाबाद- पंधारी यादव
इलाहाबाद शहर-सलमान
वाराणसी जिला- राजनाथ यादव
वाराणसी शहर-ओपी सिंह
चंदौली- प्रभूनाथ सिंह
मेरठ ज़िला-जयवीर सिंह
आगरा ज़िला- जितेंद्र वर्मा
आगरा शहर-वाजिद निसार
अलीगढ़ ज़िला- अशोक
अलीगढ़ शहर-अज्जू इशहाक
एटा- रमेश यादव
कांशीरामनगर-विक्रम
फिरोज़ाबाद शहर-शाहिद अंसारी
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