15 नवम्बर.
बिहार के चुनावी नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत पर नज़र लगाये राजनीतिक दलों में गठबंधन की सोंच जोर मारने लगी है. सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सोच वाले राजनीतिक दलों के गठबंधन से इनकार नहीं किया है तो सपा के कद्दावर नेता तथा वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कई दिन पहले विधानसभा चुनाव के पहले महागठबंधन की बात छेड़ी और. अखिलेश के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार फरीद महफूज़ किदवई तो एक क़दम आगे बढ़कर अपने दिल की ख्वाहिश जता चुके हैं कि सूबे में भाजपा के सफाए के लिए समाजवादी पार्टी का अपने धुर विरोधी बसपा से भी गठबंधन हो सकता है। दरअसल पिछले दो दिनों से यूपी के सियासी हलकों में सपा और बसपा के साथ आने की ऐसी चर्चाएँ शुरू हो गई हैं जिस पर सामान्य रूप से ऐतबार नहीं किया जा सकता है. किदवई की ख्वाहिश के तुरंत बाद आगरा में भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे शाहनवाज़ हुसैन ने कहा है कि यूपी में सपा और बसपा मिलकर भी भाजपा को छू नहीं सकती है।
वास्तव में इस देश की राजनीति में सपा और बसपा दो ऐसे दल हैं जिनका फिलहाल मिलन ठीक उसी तरीके से है जैसे सूरज का पश्चिम से उगना। मायावती और मुलायम सिंह के रिश्ते दो दशक पहले हुए स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड से इतने तल्ख़ हुए कि वे सियासत से कहीं ज्यादा निजी तौर पर लिए गए हैं। राजनीति में मायावती का स्वभाव बहुत जिद्दी माना जाता है और उनकी निजी सोच है कि सबकुछ बर्बाद हो जाए तो भी उनके रिश्ते मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी से कभी जुड़ नहीं सकते हैं। इसके पीछे स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड के अलावा एक और बड़ी वजह है। बसपा में अब कोई कांशीराम भी नहीं है तो इस दूरी को सियासी दोस्ती में बदलने की बात भी कर सके। दरअसल दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व में साझा सरकार में शामिल बसपा ने जब सरकार गिराकर अलग होने का फैसला किया तो सपा की ओर से कांशीराम के सामने एक बड़ा प्रस्ताव आया था। बसपा सुप्रीमो कांशीराम से मुलायम सिंह ने कहा था कि सरकार चलने दीजिये और मुख्यमंत्री अपना बना लीजिये। यहाँ मुलायम सिंह ने शर्त रखी थी कि मुख्यमंत्री बसपा का हो लेकिन वह मायावती न हों। कहा जाता है कि कांशीराम के सामने उस वक्त मुलायम सिंह ने दीना नाथ भास्कर का नाम प्रस्तावित कर दिया था जो मायावती को कतई मंज़ूर नहीं था। इसी बीच स्वर्गीय ब्रह्म दत्त द्विवेदी की पहल पर भाजपा के समर्थन से मायावती को मुख्यमंत्री बनाने की बात पक्की हो गई. मायावती का मानना है कि अगर मुलायम की चलती तो वे सूबे की मुख्यमंत्री नहीं होतीं और इसी वजह से सपा के प्रति उनकी निजी खुन्नस कई गुना बढ़ गई। अब जब वह बसपा की सर्वे-सर्वा हैं तब उनकी सपा से सियासी दोस्ती कैसे हो सकती है।
चर्चाओं की यह है वजह
उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल मिशन 2017 की तैयारियों में जुटे हैं। समाजवादी पार्टी अपने कार्यकाल के विकास का लेखाजोखा प्रचारित कर फिर से सत्ता में वापसी चाहती है तो उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी प्रदेश की कानून व्यवस्था को निशाने पर लेकर सत्ता में अपनी वापसी के दावे कर रही है। दोनों दलों के इन दावों के बीच विधानसभा चुनावों पर नज़र गडाए लोगों के सामने एक यक्ष प्रश्न भी आ खड़ा हुआ है कि अगले चुनाव में क्या बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव गठबंधन करेंगे? भले ही सुनने में यह दूर की कौड़ी लग रही हो लेकिन चर्चा यह भी है कि खुद समाजवादी पार्टी के अंदर से यह मांग उठने लगी है कि सपा-बसपा का गठबंधन हो जाए। अखिलेश यादव सरकार के मंत्री फरीद महफूज किदवई इसके लिए दुआएं कर रहे हैं, वह पहले बसपा के साथ रहे भी हैं। मुलायम सिंह यादव के भाई प्रो. राम गोपाल यादव पहले ही यह बात कह चुके हैं कि राजनीति में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह ने इन कयासों को सिर्फ कयास ही करार दिया है। उनका कहना है 2017 में समाजवादी पार्टी की सरकार अपने बल पर सत्ता में वापसी कर रही है। उधर उत्तर प्रदेश सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री फरीद महफूज किदवई ने सपा-बसपा गठबंधन के सवाल पर कहा कि इंशाअल्लाह गठबंधन जरूर बनेगा और हम बिहार की तरह यहां भी बीजेपी को शिकस्त देकर अपनी सरकार बनाएंगे।
समीकरणों की तलाश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मुद्दे पर इस बात की बहस छिड़नी लाजमी है कि यूपी में भाजपा के खिलाफ खड़े होने के लिए कौन सी पार्टी किसके साथ जा सकती है। जब कयासबाज़ी शुरू हुई तो यह बात भी उठी कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, आरएलडी, वाम दल और अन्य छोटी पार्टियां क्या एक गठबंधन बना सकती हैं? वैसे कांग्रेस और अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल पिछले चुनाव से साथ चल रहे हैं।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और पार्टी की राज्य इकाई के मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि यह तो सही है कि अगर एक विचारधारा के लोग एक हो जाएं तो उत्तर प्रदेश में भी बहुत अच्छे रिजल्ट आ सकते हैं, लेकिन इस सब पर हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व फैसला करेगा. हालांकि उन्होंने सपा-बसपा के एक होने के मुद्दे को हंसी में उड़ा दिया।सपा- बसपा ने 1993 में साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और साझा सरकार भी बनाई थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में दोनों पार्टियों का जो हश्र हुआ उससे भी इन दोनों पार्टियों के साथ आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि बसपा और सपा के वोट प्रतिशत को जोड़ने पर यह लगभग भाजपा के बराबर हो जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव के वोट प्रतिशत देखे जाएँ तो भाजपा को 42 .3 फीसदी वोट मिले थे जबकि सपा को 22 .2 और बसपा को 19 .6 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
काफी सतर्क हैं अखिलेश
2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव काफी सजग हैं. सरकार बनाने से लेकर अब तक लगातार विकास कार्यों पर ही नजर रखे हुए हैं. मिशन 2017 के मद्देनज़र उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल भी किया है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जोरदार जीत के बाद उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही गठजोड़ बनाने को लेकर जारी चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज कहा कि सूबे में साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसे महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।संत कबीर नगर जिले के सेमेरियावां में एक शादी के कार्यक्रम में आए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बातचीत में बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी से मुकाबले के लिए समान विचारों वाले दलों के महागठबंधन की सम्भावना सम्बन्धी सवाल पर कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में महागठबंधन के गठन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि अखिलेश ने यह नहीं बताया कि उस महागठबंधन में सपा के साथ बसपा होगी या नहीं। अखिलेश ने कहा कि बिहार की जनता ने विधानसभा चुनाव में जनादेश के जरिये यह संदेश दिया है कि अब सिर्फ विकास ही एकमात्र मुद्दा है। सपा भी अगला विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ने की तैयारी कर रही है।