Sunday 4 June 2023

अपनों को परखने की मंशा से चुनाव लड़ रही सपा

 

परवेज़ अहमद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान परिषद दो सीटों के उपचुनाव का मतदान 29 मई को होगा। ये सीटें विधानसभा सदस्य (एमएलए) कोटे की हैं, इसलिए विधायक मतदाता होंगे। जिसके लिये भाजपा व समाजवादी पार्टी दोनों ने दो-दो प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। चुनाव आयोग ने इन सीटों के लिए प्रथृक नोटिफिकेशन (अधिसूचना) किया है। जिससे विधायकों को दोनों सीटों के लिए अलग-अलग वोट डालने का अधिकार मिलेगा। संख्या बल के हिसाब से सत्तारूढ़ भाजपा व गठबंधन के पास 274 सदस्य हैं जबकि मुख्य विपक्षी दल के पास जाहिरा तौर पर सिर्फ 115 सदस्य हैं। एक सदस्य की जीत के लिए 203 वोटों की आवश्यकता है जाहिर है सपा इस संख्या से बहुत पीछे है। भारी उलट-पलट हो जाए तब भी जादुई संख्या तक नहीं पहुंचा जा सकता। भाजपा के दोनों प्रत्याशियों की जीत तकरीबन तय है। फिर भी सपा ने चुनावी अखाड़े में दोनों प्रत्याशी क्यों उतारे ?  अपने दो प्रत्याशियों की पराजय की फजीहत के लिए क्यों तैयार हुई ? क्या है उसकी राजनीतिक रणनीति ?

 

रिक्त सीटों की संख्या- 02

रिक्तता का कारण और कार्यकाल

-एक सीट लक्ष्मण प्रसाद आचार्य के राज्यपाल नियुक्त होने पर 15 फरवरी 2023 को रिक्त हुई थी। इस सीट पर निर्वाचित होने वाले सदस्य का कार्यकाल 30 जनवरी 2027 तक होगा।

-दूसरी सीट बनवारी लाल के निधन से रिक्त हुई जिसे 15 फरवरी 2023 को रिक्त घोषित किय गया, इस सीट पर निर्वाचित होने वाले सदस्य का कार्यकाल 6 जुलाई 2028 तक होगा।

 

फैक्ट फाइंडिंग

अधिसूचना : 11 मई 2023

नामांकन की अंतिम तिथिः 18 मई

नाम वापसी की अंतिम तिथिः 22 मई

मतदानः 29 मई (नौ बजे से शाम चार बजे तक)

मतगणनाः 29 मई शाम 5 बजे से परिणाम आने तक

 

एमएलए के मतों से होगा चुनाव

विधान परिषद के लिए रिक्त हुई दोनों सीटों का निर्वाचन विधायकों के मतों से होना है। मौजूदा समय में भाजपा के 255 हैं। उसके सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या 19 है। यानी कुल विधायकों की संख्या 274 है। समाजवादी पार्टी के पास 109 विधायक हैं। उसके गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल के विधायकों की संख्या 06 है। सुहैल देव समाज पार्टी 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ लड़ी थी लेकिन अभी वह गठबंधन से पृथक है। उसका एक विधायकों की संख्या 6 है लेकिन एक कासगंज जेल में बंद हैं।

 

जीत के लिए वोटों का गणित

भारत निर्वाचन आयोग ( चुनाव आयोग) ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए रिक्त दोनों सीटों के लिए पृथक ( सेपरेट) चुनाव अधिसूचना जारी की है, पर दोनों सीटों की मतदान की तिथि एक ही है। इसलिए विधायकों को दो प्रत्याशियों को वोट दे सकेंगे। दोनों सीटों के लिए मत बॉक्स अलग-अलग रखे जाएँगे। इस हिसाब से जो भी व्यक्ति प्रथम वरीयता के 203 वोट पा जाएगा, उसकी जीत सुनिश्चित होगी । हालांकि इस चुनाव में विधायकों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय वरीयता के मत देने का अधिकार होता है।

 

 

सदस्यों की दलीय स्थिति

भाजपा-255

सपा-109

अपनादल (सोनेलाल)-13

आरएलडी-09

कांग्रेस-02

बसपा-01

सुभासपा-06

निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल-06

जनसत्ता दल लोकतांत्रिक दल-02

 

 

बुलेट ट्रेन से तेज दौड़ी थी आयुष काउंसिलिंग की फाइल

 -6 दिसंबर को अपट्रान पावर ट्रानिक्स को कार्य देने का प्रस्ताव बना, उसी दिन निदेशालय, शासन के सेक्शन, अनुसचिव और अपर मुख्य सचिव आयुष ने दी मंजूरी

-7 दिसम्बर को ही आयुष मंत्री ने मंजूरी दी, उसी दिन आदेश आयुर्वेद निदेशालय पहुंच गया और कार्य आवंटन आदेश भी जारी हो गया

-और ये सारा कार्य एक फर्जी लेटर हेड पर हुआ था, एसटीएफ के आरोप में ये सारी बातें दर्ज हैं

-फिर भी अपर मुख्य सचिव को सीधे आरोपी नहीं बनाया गया, अब सीबीआई ढंढूगी खामियां

परवेज़ अहमद

लखनऊ। राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा( नीट 2021-22 सत्र) के जरिये बीएएमएस, बीयूएमएस और बीचएमएस में दाखिले की काउंसिलिंग एजेंसी के निर्धारण व उसकी दरे ( पैसा) निर्धारित करने में फर्जी, कूटरचित लेटर हेड का इस्तेमाल किया गया। यह फर्जी पत्र ने कुछ घंटों के अंदर ही अपट्रान पावर ट्रानिक्स से आयुर्वेद निदेशालय, लिपिक, निदेशक, शासन के सेक्शन अधिकारी, अनुसचिव की मंजूरी ही हासिल नहीं की बल्कि अपर मुख्य सचिव आयुष प्रशांत त्रिवेदी की सकारात्मक टिप्पणी भी हासिल कर ली और अगली तारीख लगते ही पत्र पर मंत्री डॉ.धर्म सिंह सैनी की स्वीकृति हो गयी और इसी दिन निदेशक ने पूर्ववर्ती दरों पर नीट काउंसिलिंग का कार्य अपट्रान पावर ट्रानिक्स को आवंटित करने का आदेश जारी कर दिया। यानी ये सारा कार्य बुलेट ट्रेन की रफ्तार से हुआ। एसटीएफ (स्पेशल टॉस्क फोर्स ) के विवेचनाधिकारियों ने तकनीकी, वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ ये सब उल्लेख किया मगर शीर्ष अधिकारी को सीधे आरोपी नहीं बनाया। क्यों ?  सीबीआई की विवेचना में शायद इसका उत्तर मिल सके।

आरोप पत्र में एसटीएफ के विवेचनाधिकारी संजीव कुमार दीक्षित ने एक स्थान पर उल्लेख किया गया है कि शासन से प्राप्त टेंडर डिटेल के अवलोकन में पाया गया कि अपट्रान पावर ट्रानिक्स लिमिटेड के लेटर पैड संख्या -1093 रिफरेंस नम्बर यूपीएल-202122-886 जो निदेशक आयुर्वेद को तकनीकी सलाहकार रूपेश श्रीवास्तव ने भेजा था, उस पर हस्ताक्षर शिवम श्रीवास्तव के थे। इसी आदेश को आयुर्वेद विभाग के निदेशक प्रो.एसएन सिंह ने पत्रांक  संख्या-1244-शिक्षा-2432-2021 (नीट 2021) 6 दिसम्बर 2012 को ही अपर मुख्य सचिव आयुष ( प्रशांत त्रिवेदी तैनात थे) को लिखा, इसमें पूर्ववर्ती दरों पर ही अपट्रान पावर ट्रानिक्स को कार्य आवंटित करने के लिए कहा गया था। इसी तिथि यानी 6 दिसम्बर को ही अनुसचिव ने भी सकारात्मक टिप्पणी लिख थी और उसी दिन अपर मुख्य सचिव ने भी अपनी टिप्पणी प्रेषित कर दी। और अगले दिन यानी 7 दिसम्बर 2021 को तत्कालीन मंत्री डॉ.धर्म सिंह सैनी का अनुमोदन हो गया और इसी दिन यानी 7 दिसम्बर को ही अपट्रान पावर ट्रानिक्स को कार्य आवंटित करने का आदेश भी जारी कर दिया गया।

एसटीएफ ने आरोप पत्र में लिखा है कि पूछताछ में रूपेश कुमार ने बताया कि उनके द्वारा लेटर पैड संख्या-1091 दिनांक सात दिसम्बर 2021 को निदेशक के लिये जारी किया गया था। जिससे साफ है कि फर्जी एवं कूटरचित पत्र पर टेंडर आवंटित कर दिया गया। विवेचनाधिकारी ने अदालत में दाखिल विवेचना के परचा नम्बर 11 में सारा ब्यौरा दर्ज किया है।

  

 

 

किस-किस के खिलाफ चार्जशीट

1-सत्य नारायण सिंह, निवासी कहलो गार्डेन सिटी वृंदावन कालोनी, लखनऊ

2- डॉ. उमाकांत, निलंबित प्रभारी अधिकारी शिक्षा आयुर्वेद निदेशालय

3- राजेश सिंह, वरिष्ठ सहायक आयुर्वेद निदेशालय

4-कैलाश चन्द्र भाष्कार, कनिष्ठ सहायक आयुर्वेद निदेशालय

5- कुलदीप सिंह वर्मा, बिचौलिया, आउटसोर्सिंग कंपनी कर्मी

6- प्रबोध सिंह, एजीएम अपट्रान पावर ट्रानिक्स लिमिटेड

7-रूपेश रंजन पांडेय, पार्टनर रिमार्क टेक्नोलॉजी लिमिटेड

8-इन्द्र देव मिश्र, पार्टनर रिमार्क टेक्नोलॉजी लिमिटेड

9-सौरभ मौर्य ( मौर्च) निदेशक, टेक्नोओशियन आईटी साल्यूशन

10-हर्षवर्धन तिवारी उर्फ सोनल डायरेक्टर टेक्नोओशिवान आईटी साल्युशन

11-गौरव कुमार गुमा डायरेक्टर वी-3 साफ्ट साल्युसन प्रा.लि.

12-रूपेश श्रीवास्तव, तकनीकी सहायक, अपट्रान पावर ट्रानिक्स लिमिटेड

 

 

प्राइवेट व्यक्ति

विजय यादव,  धर्मेन्द्र यादव, निवासीबरईपुर सारनाथ वरुणा वाराणसी और आलोक तिवारी मडियांव लखनऊ।

गवाह

एसटीएफ ने दो स्तर के गवाह बनाये हैं। सीधे गवाह के रूप में 12 लोगों का नाम दर्ज है और अन्य गवाह के रूप में 13 लोगों का नाम दर्ज है। इस मामले के विवेचनाधिकारियों को  साक्षी और गवाह के रूप में दर्ज किया गया है। इसमें एक डिप्टी एसपी, इंस्पेक्टर , सब इंस्पेक्टर व सिपाही शामिल हैं।

 

 

Sunday 12 February 2023

अनीस अंसारी ने फीस के पैसों से शौक की केएमसी में डाली बुनियाद

-निजी आवास पर मुर्गे, बकरे के गोश्त और फूलों की सुंगध पर उड़ाये थे हजारों

- लेखा परीक्षा रिपोर्ट में कार्रवाई की संस्तुति पर प्रो.विनय पाठक ने ओढ़ी खामोशी

-एनबी सिंह ने घर, गेस्ट हाउस पर फूंके करोड़ तो अनीस अंसारी ने दावतों में उड़ाया धन

परवेज अहमद

लखनऊ । ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनबी सिंह ने ही नहीं, घर-गेस्ट हाउस पर करोड़ों रूपये खर्च किये। बल्कि ये परम्परा विश्वविद्यालय की बुनियाद के साथ पड़ी थी। पहले कुलपति अनीस अंसारी (रिटायर आईएएस) ने तो निजी आवास पर बकरे-मुर्गे के गोश्त के स्वाद और दावत में फूलों की सुंगध पर गरीब छात्रों की फीस के हजारों रुपये फूंके थे। स्थानीय निधि लेखा परीक्षक की आपत्ति और दोषियों से वूसली की सिफारिश को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

यूपी कॉडर के आईएएस अधिकारी रहे अनीस अंसारी सेवाकाल में डिजाइनर कपड़े पहनने, ऊंचाई पर पहुंचे लोगों के लिये थीम पार्टियां करने के लिए चर्चा में रहते थे। अपर मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत होने पर तत्कालीन सरकार ने उन्हें गरीब छात्रों को ऊंची तालीम देने, भाषा के उत्थान की मंशा से ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय (केएमसी) का पहला कुलपति नियुक्त किया। कुलपति के रूप में उनके ढेरों फैसलों पर विवाद विचाराधीन हैं। गत वर्ष केएमसी के पांचवें कुलपति नियुक्त प्रो.एनबी सिंह ने कुलपति आवास की साज सज्जा पर 49 लाख, अतिथि गृह के सुंदरीकरण पर लाखों रुपये फीस मद से खर्च कर दिये। इस प्रकरण को लेकर विवि की वित्तीय अनियमितता व प्रशासनिक भेदभाव के प्रकरणों की पड़ताल में इस संवाददाता को सूत्रों से स्थानीय निधि लेखा परीक्षा की एक रिपोर्ट मिली। जिसमें 2010 से 2017 के वित्तीय व्यय, प्रशासनिक अनियमितता का ब्यौरा है।

जिसमें स्पष्ट दर्ज है कि कुलपति के रूप में सेवानिवृत आईएएस अधिकारी अनीस अंसारी ने गोमतीनगर स्थित निजी आवास पर फीस के पैसे से करीबियों के लिये आलीशान दावत का आयोजन किया। जिसमें बकरे-मुर्गे के गोश्त पर हजारों रुपये खर्च हुये। यही नहीं, दावत में शामिल मेहमानों को खुशनुमा खुशबू का अहसास होता रहे, इसके फूलों का डेकोरेशन किया गया। सवाल ये है कि अभिभावकों ने कमर कमान कर बच्चों की पढ़ाई के लिये जो राशि विवि को सौंपी उसको दावत पर उड़ाने  का अधिकार कुलपति को किसने दिया ? स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग ने भी यही सवाल उठाया है।

उपनिदेशक स्थानीय निधि लेखा नीरज कुमार गुप्ता ने संस्तुतियों में लिखा है कि छात्रों की फीस की ये राशि दावत पर खर्च हुई, जिसका कुछ भुगतान कारपोरेशन बैंक खातों से भी किया गया, मगर रोक़ड बही में इसका उल्लेख नहीं किया गया। ये विश्वविद्यालय की राशि का दुरुपयोग है, जिसका उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुये प्रभावी कार्रवाई की जाए। ये रिपोर्ट 10 दिसंबर 2020 को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक को सौंपी गयी, जिन्होंने कार्रवाई करने के साथ पर उसे एफओ (वित्तीय अधिकारी) लिखकर बढ़ा दिया। कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद के कुलपतियों ने भी निजी सुविधा पर विश्वविद्यालय का धन खर्च किया। नतीजा ये हुआ कि इसके बाद हर कुलपति ने छात्रों की फीस का राशि का अपने हितों में अपने तरीकों से उपयोग किया।

एक दावत पर ऑन रिकार्ड खर्च

स्नैक्स- 13,600

बकरे, मुर्गे का गोश्त-14,200

सुंदरता हेतु सुगंधित फूल-16,250

फल-फ्रूट-12,300

कैटरिंग-19,650

टेन्ट सामग्री-17,625

 

दावत के दौरान बीमार थे कुलपति, इलाज को दो लाख लिये

स्थानीय निधि लेखा रिपोर्ट से स्पष्ट है कि तत्कालीन कुलपति अनीस अंसारी ने निजी आवास में दावत पर छात्रों का पैसा ही नहीं उड़ाया बल्कि बीमारी के इलाज के नाम पर 2,04,297 रुपये का भुगतान लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनीस अंसारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, जिन्हें इलाज के लिये होम कॉडर से इलाज की राशि मिलती है, लेकिन उन्होंने छात्रों की फीस के पैसे खर्च किये। आडिटर ने रिपोर्ट में कहा है कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति का भुगतान संबंधित पूर्व अधिकारी के पेंशन भुगतानकर्ता विभाग द्वारा किया जाना चाहिए। ये शासन का नियम है, ये देखना समाचीनी होगा कि वहां से भी भुगतान लिया या नहीं। ये राशि विवि पर बोझ थी। जिसके लिए संबंधित पर विधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।

 

मायावती ने बनाया था ये विवि

एक अक्टूबर 2009 को उत्तर प्रदेश उर्दू, अरबी, फारसी विवि, लखनऊ स्थापना की। 4 मार्च 2011 को उन्होंने इस विवि से उत्तर प्रदेश शब्द हटाते हुये इसे मान्यवर कांशीराम जी उर्दू, अरबी फारसी विश्वविद्यालय नाम कर दिया। प्रदेश सपा सरकार बनने पर 16 अगस्त 2012 को इस विवि का नाम बदलकर ख्वाजा मोईन उद्दीन अरबी फारसी विवि किया गया। भाजपा सरकार बनने पर योगी आदित्यनाथ सरकार उर्दू, फारसी, अरबी शब्द हटाकर इसे भाषा विश्वविद्यालय कर दिया। इसी विवि के पहले कुलपति थे, अनीस अंसारी थी, प्रो.विनय पाठक के पास भी इस विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त चार्ज था। 

Friday 10 February 2023

अनीस अंसारी ने फीस के पैसों से शौक की केएमसी में डाली बुनियाद

 -निजी आवास पर मुर्गे, बकरे के गोश्त और फूलों की सुंगध पर उड़ाये थे हजारों

- लेखा परीक्षा रिपोर्ट में कार्रवाई की संस्तुति पर प्रो.विनय पाठक ने ओढ़ी खामोशी

-एनबी सिंह ने घर, गेस्ट हाउस पर फूंके करोड़ तो अनीस अंसारी ने दावतों में उड़ाया धन

परवेज अहमद

लखनऊ । ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनबी सिंह ने ही नहीं, घर-गेस्ट हाउस पर करोड़ों रूपये खर्च किये। बल्कि ये परम्परा विश्वविद्यालय की बुनियाद के साथ पड़ी थी। पहले कुलपति अनीस अंसारी (रिटायर आईएएस) ने तो निजी आवास पर बकरे-मुर्गे के गोश्त के स्वाद और दावत में फूलों की सुंगध पर गरीब छात्रों की फीस के हजारों रुपये फूंके थे। स्थानीय निधि लेखा परीक्षक की आपत्ति और दोषियों से वूसली की सिफारिश को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

यूपी कॉडर के आईएएस अधिकारी रहे अनीस अंसारी सेवाकाल में डिजाइनर कपड़े पहनने, ऊंचाई पर पहुंचे लोगों के लिये थीम पार्टियां करने के लिए चर्चा में रहते थे। अपर मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत होने पर तत्कालीन सरकार ने उन्हें गरीब छात्रों को ऊंची तालीम देने, भाषा के उत्थान की मंशा से ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय (केएमसी) का पहला कुलपति नियुक्त किया। कुलपति के रूप में उनके ढेरों फैसलों पर विवाद विचाराधीन हैं। गत वर्ष केएमसी के पांचवें कुलपति नियुक्त प्रो.एनबी सिंह ने कुलपति आवास की साज सज्जा पर 49 लाख, अतिथि गृह के सुंदरीकरण पर लाखों रुपये फीस मद से खर्च कर दिये। इस प्रकरण को लेकर विवि की वित्तीय अनियमितता व प्रशासनिक भेदभाव के प्रकरणों की पड़ताल में इस संवाददाता को सूत्रों से स्थानीय निधि लेखा परीक्षा की एक रिपोर्ट मिली। जिसमें 2010 से 2017 के वित्तीय व्यय, प्रशासनिक अनियमितता का ब्यौरा है।

जिसमें स्पष्ट दर्ज है कि कुलपति के रूप में सेवानिवृत आईएएस अधिकारी अनीस अंसारी ने गोमतीनगर स्थित निजी आवास पर फीस के पैसे से करीबियों के लिये आलीशान दावत का आयोजन किया। जिसमें बकरे-मुर्गे के गोश्त पर हजारों रुपये खर्च हुये। यही नहीं, दावत में शामिल मेहमानों को खुशनुमा खुशबू का अहसास होता रहे, इसके फूलों का डेकोरेशन किया गया। सवाल ये है कि अभिभावकों ने कमर कमान कर बच्चों की पढ़ाई के लिये जो राशि विवि को सौंपी उसको दावत पर उड़ाने  का अधिकार कुलपति को किसने दिया ? स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग ने भी यही सवाल उठाया है।

उपनिदेशक स्थानीय निधि लेखा नीरज कुमार गुप्ता ने संस्तुतियों में लिखा है कि छात्रों की फीस की ये राशि दावत पर खर्च हुई, जिसका कुछ भुगतान कारपोरेशन बैंक खातों से भी किया गया, मगर रोक़ड बही में इसका उल्लेख नहीं किया गया। ये विश्वविद्यालय की राशि का दुरुपयोग है, जिसका उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुये प्रभावी कार्रवाई की जाए। ये रिपोर्ट 10 दिसंबर 2020 को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक को सौंपी गयी, जिन्होंने कार्रवाई करने के साथ पर उसे एफओ (वित्तीय अधिकारी) लिखकर बढ़ा दिया। कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद के कुलपतियों ने भी निजी सुविधा पर विश्वविद्यालय का धन खर्च किया। नतीजा ये हुआ कि इसके बाद हर कुलपति ने छात्रों की फीस का राशि का अपने हितों में अपने तरीकों से उपयोग किया।

एक दावत पर ऑन रिकार्ड खर्च

स्नैक्स- 13,600

बकरे, मुर्गे का गोश्त-14,200

सुंदरता हेतु सुगंधित फूल-16,250

फल-फ्रूट-12,300

कैटरिंग-19,650

टेन्ट सामग्री-17,625

 

दावत के दौरान बीमार थे कुलपति, इलाज को दो लाख लिये

स्थानीय निधि लेखा रिपोर्ट से स्पष्ट है कि तत्कालीन कुलपति अनीस अंसारी ने निजी आवास में दावत पर छात्रों का पैसा ही नहीं उड़ाया बल्कि बीमारी के इलाज के नाम पर 2,04,297 रुपये का भुगतान लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनीस अंसारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, जिन्हें इलाज के लिये होम कॉडर से इलाज की राशि मिलती है, लेकिन उन्होंने छात्रों की फीस के पैसे खर्च किये। आडिटर ने रिपोर्ट में कहा है कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति का भुगतान संबंधित पूर्व अधिकारी के पेंशन भुगतानकर्ता विभाग द्वारा किया जाना चाहिए। ये शासन का नियम है, ये देखना समाचीनी होगा कि वहां से भी भुगतान लिया या नहीं। ये राशि विवि पर बोझ थी। जिसके लिए संबंधित पर विधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।

 

मायावती ने बनाया था ये विवि

एक अक्टूबर 2009 को उत्तर प्रदेश उर्दू, अरबी, फारसी विवि, लखनऊ स्थापना की। 4 मार्च 2011 को उन्होंने इस विवि से उत्तर प्रदेश शब्द हटाते हुये इसे मान्यवर कांशीराम जी उर्दू, अरबी फारसी विश्वविद्यालय नाम कर दिया। प्रदेश सपा सरकार बनने पर 16 अगस्त 2012 को इस विवि का नाम बदलकर ख्वाजा मोईन उद्दीन अरबी फारसी विवि किया गया। भाजपा सरकार बनने पर योगी आदित्यनाथ सरकार उर्दू, फारसी, अरबी शब्द हटाकर इसे भाषा विश्वविद्यालय कर दिया। इसी विवि के पहले कुलपति थे, अनीस अंसारी थी, प्रो.विनय पाठक के पास भी इस विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त चार्ज था। .

 

 

  

Wednesday 11 January 2023

कुलपति, कुलपति फिर कुलपति मशीन बने प्रो.विनय पाठक –420 !

 हां या ना, प्रो.विनय पाठक प्रकरण में ढूंढे जा रहे इस सवाल की सीबीआई पर का जवाब-हां

एसटीएफ की जांच, फैक्ट फाइंडिंग पर अब सीबीआई को खड़ी करनी होगी सत्य की इमारत

 

परवेज अहमद

लखनऊ । उत्तर प्रदेश की उच्च, तकनीकी शिक्षा के बाजीगर और छत्रपति शाहू जी महाराज (सीएसजेएमयू) कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ जांच की संस्तुति स्वीकारने के बाद सीबीआई की दिल्ली स्थित एसी-सेकेन्ड ब्रांच ने पुर्नएफआईआर दर्ज कर ली, जिसमें आईपीसी की वे धाराएं भी शामिल की गयी, जिनका अपराध यूपीएसटीएफ की विवेचना में सामने आया। विवेचना के तथ्य कहते हैं कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक ने खूब चार सौ बीसी ( बोलचाल की भाषा, अधिकारिक धोखाधड़ी) की। सीबीआई की एफआईआर में जांच क्षेत्र लखनऊ, कानपुर, आगरा व अन्य स्थान दर्ज है। यानी उन विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार की भी जांच होगी, जहां प्रो.विनय पाठक कुलपति या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में रहे। साफ है कि एसटीएफ ने जो नींव और बाउंड्री निर्धारित की है, सीबीआई को उस पर जांच परिणाम की बुलंद इमारत खड़ी करने की चुनौती का सामना करना होगा क्योंकि पहली बार सीबीआई जांच से पहले जनता सोशल प्लेटफार्म पर परिमाण पर कयास लगा रही है।

देश की सबसे प्रतिष्ठित और प्रशिक्षित अधिकारियों से लैस जांच सीबीआई यूपी में 50 से अधिक प्रकरणों की जांच कर रही है। अब उच्च शिक्षा में घूसखोरी की नई जांच उसकी फेहरिश्त में हैं। 29 अक्टूबर को लखनऊ के इंदिरानगर कोतवाली में सीएसजेएमयू के कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ आगरा विवि के कुलपति रहने के दौरान के परीक्षा कार्यो के बदले डेढ़ करोड़ की घूस लेने की एफआईआर हुई थी। दो माह की लंबी जांच में तीन लोगों की गिरफ्तारी, चार लोगों के कलमबंद बयान और दो सौ से अधिक लोगों से हुई पूछताछ हुई। बड़ी गिरफ्तारियों की क्रम शुरू होता इससे पहले ही 29 दिसंबर यानी दो माह बाद राज्य सरकार ने इस पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति कर दी। 9 दिनों तक सीबीआई की जांच को लेकर असमंजस रहा आखिर 7 जनवरी को सीबीआई ने रि-एफआईआर दर्ज करने के साथ विवेचना अपने हाथ में ले ली। सीबीआई अधिकारियों ने एसटीएफ से संपर्क कर विवेचना की पत्रावलियां और संबंधित दस्तावेज हस्तानांतरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इस बीच सीबीआई जांच रोकने के लिए दाखिल की गयी याचिका को हाईकोर्ट खारिज कर दिया।

सीबीआई जांच शुरू होते ही सबसे ज्यादा खलबली अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि (एकेटीयू) में मची है क्योंकि यहां के प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे 60 फीसदी से अधिक लोगों की नियुक्तियां नियमों को शिथिल करके की गयी हैं। कई ऐसे लोगों की नियुक्तियां हुई हैं, जिनके पद ही रिक्त नहीं थे। ढेरों लोगों के चरित्र व डिग्री का सत्यापन नहीं कराया गया। इस विश्वविद्यालय के इंजीनियर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। कई सौ करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी की गयी है। कालेजों की संबद्धता में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है और ये सिलसिला अभी जारी भी है। इसी तरह ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विवि, छत्रपति शाहू जी महाराज विवि कानपुर, एबीटीयू और अन्य विवि शामिल हैं। भ्रष्टाचार का दायरा व्यापक है और एक करोड़ से अधिक लोग सीधे इससे प्रभावित हैं। फीस, परीक्षा, परीक्षा में शुचिता, नाकाबिल शिक्षकों की नियुक्तियों के चलते पीढ़ियों की जीवन दांव पर लगने की चलते राज्य की बहुसंख्यक जनता की नजर सीबीआई की जांच पर है। दरअसल, कुछ सालों में सीबीआई जांच को लेकर जन मानस में ढेरों सवाल हैं, इसलिए भी इस मामले में सीबीआई की जांच उनकी साख को बनाये और बिगाड़ेगी। क्योंकि ये मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी पकड़ रहा है, समाजवादी पार्टी खुलकर धरना-प्रदर्शन करने लगी हैं।

 

राजभवन भी आयेगा जांच की जद में

सीबीआई ने अगर सिर्फ डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के भ्रष्टाचार की जांच को आगे बढ़ाया तो सबसे पहली पूछताछ कुलाधिपति कार्यालय से ही शुरू होगी। आखिर किन परिस्थितियों में बार-बार प्रो.विनय पाठक को कुलपति का चार्ज दिया गया। क्योंकि इनके अलावा दूसरे कुलपति प्रो.आलोक राय हैं, जिन्हें बार-बार अन्य विश्वविद्लयों का चार्ज दिया गया है। इत्तिफाक है और जो तथ्य सामने आये हैं, उससे ये संकेत तो हैं कि दोनों ही प्रोफेसर जब  कुलपति नियुकित हुये तो ये पद ही अर्हता ही नहीं रखते थे। दोनों के पास दस साल के प्रोफेसर होने का अनुभव नहीं था। तब इन दोनों को ही बार-बार चार्ज क्यों दिया गया।

 

 

 

आईपीसी की इन धाराओं में नामजद विनय-अजय

120 बी- गैरकानूनी कार्य की साजिश करना

471- दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को कपटपूर्वक या बेईमानी से कूटरचित करना

386- किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर आघात के भय में डालकर ज़बरदस्ती वसूली

342- कोई किसी व्यक्ति को ग़लत तरीके से प्रतिबंधित करना

504- गाली-गलौज

506- जान से मारने की धमकी

409-लोक सेवक के नाते जिस संपत्ति पर प्रभुत्व हो उसके विषय में विश्वास का आपराधिक हनन

420- धोखाधड़ी, किसी व्यक्ति को बेईमानी से प्रेरित करना

467-मूल्यवान प्रतिभूति वसीयत या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को बनाने या हस्तांतरण करने का प्राधिकार, धन प्राप्त करने आदि के लिए कूटरचना।

468- इस आशय से कूटरचना करना ताकि दस्तावेज़ों को छल के लिए इस्तेमाल कर सके

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 : लोक सेवक द्वारा पदीय कार्य के संबंध में  परितोषण, घूस लेना

प्रो.अनुराग त्रिपाठी को नियम विरुद्ध प्रमोशन दिया फिर परीक्षा नियंत्रक बना दिया

 

 

परवेज अहमद

लखनऊ। घूसखोरी में नामजदगी के बाद छत्रपति शाहू जी महाराज (सीएसजेएमयू ) कानपुर विवि से भूमिगत प्रो.विनय पाठक ने एकेटीयू के कुलपति के रूप में परीक्षा नियंत्रक के चयन में कानून हवा में उड़ा दिया था। उन्होंने प्रो.अनुराग त्रिपाठी को नियम विरुद्ध प्रमोशन दिया फिर परीक्षा नियंत्रक बना दिया। जिन्होने परीक्षा संचालक फर्म से इंजीनियरिंग छात्रों के नम्बरों में बदलाव कराया। परीक्षा की शुचिता बाधित की। कापियों के मूल्यांकन में रुकावट डाली। डिग्री वितरण और 28 हजार छात्रों के कैरीओवर परीक्षा परिणाम रोका। यह बातें एकेटीयू के प्रतिकुलपति के नेतृत्व वाली पांच प्रोफेसरों की जांच रिपोर्ट में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि परीक्षा नियंत्रक ने मौजूदा कुलपति पर अनावश्यक दबाव डाला। छात्रों में असंतोष फैलाने का प्रयास किया।

अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) में कई सालों से फैली भ्रष्टाचार बेल की ये  कड़ी कुलाधिपति की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी की एक नोटिस से सामने आयी। 29 दिसम्बर को पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो.अनुराग त्रिपाठी के शिकायती पत्र पर प्रमुख सचिव ने कुलपति प्रो.पदीप मिश्र को कारण बताओ नोटिस भेजा। जिसमें मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को परीक्षा कार्यो से हटाने, भुगतान रोकने का कारण पूछा गया, इस कंपनी को परीक्षा संबंधी कार्य तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक ने आवंटित किया था।  सूत्रों का कहना है कि कुलपति प्रो.प्रदीप मिश्र ने सवालों के जवाब में 40 पेज का उत्तर भेजा है। जिसमें प्रति कुलपति प्रो.मनीष गौड अध्यक्षता में गठित प्रो.एचके पालीवाल, प्रो. राजीव कुमार, प्रो.वाईएन सिंह और प्रो.गिरीश चन्द्र की छह पेज की जांच रिपोर्ट संलग्न की गयी है।  रिपोर्ट में परीक्षा नियंत्रक रहे प्रो.अनुराग त्रिपाठी को छात्रों के अंकों में फेरबदल करने का दोषी माना गया है। जिनके नम्बर बदले गये उनके नाम, रोलनम्बर का जिक्र भी है। एक विषय में फेल 28 हजार छात्रों के परीक्षा परिणाम रोकने का विस्तार से उल्लेख है। यह भी कहा गया है कि इसके पीछे छात्रों में आक्रोश पैदा करना, सत्र को विलंबित करने की मंशा थी। सीधे नहीं पर, इशारों में यह जरूर कहने का प्रयास किया गया है कि घूसखोरी में नामजद प्रो.विनय पाठक के इशारे पर उनसे उपकृत लोग विवि में अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। जांच कमेटी ने नौ बिन्दुओं की संस्तुतियां भी दी हैं, जिसमें परीक्षा कार्य विश्वविद्यालय के अपने कर्मचारियो से कराये जाने की बात है। निजी संस्था परीक्षा कार्य कराने से शुचिता बाधित होने का जिक्र है।

सूत्रों का कहना है कि कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल को भेजे गये जवाब में स्पष्ट कहा गया है कि परीक्षा से हटायी गई कंपनी मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन के विरुद्ध उत्तराखंड में परीक्षा प्रश्न पत्र लीक करने का मुकदमा दर्ज है।  संचालक, कर्मचारी जेल में हैं। जांच चल रही है। जवाब में ये भी कहा गया है कि ये तथ्य सामने आने पर कंपनी को नोटिस जारी किया गया तो वह हजारों छात्रों का डेटा लेकर भाग गयी। इसमें तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक अनुराग त्रिपाठी की भूमिका संदिग्ध है क्योंकि उन्हें इस बिन्दु पर अलर्ट रहने के लिये कहा गया था। सूत्रों का कहना है कि जवाब में प्रो.अनुराग त्रिपाठी की प्रोन्नति की एसटीएफ द्वारा जांच किये जाने का उल्लेख करते हुये ढेरों दस्तावेज लगाये गये हैं।

प्रमुख सचिव कुलाधिपति कल्पना अवस्थी के सवालों का बिन्दुवार विधिक जवाब दिया गया है। निर्णयों का कारण नियमों के साथ बताया गया है। सूत्रों का कहना है कि प्रमुख सचिव की एक कारण बताओ नोटिस से एकेटीयू के भ्रष्टाचार की सिर्फ एक बेल सामने आयी है। अभी नियुक्तियों, निर्माण कार्य और इंजीनियरिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के बट वृक्ष सामने आने बाकी हैं।

 

 

शिकायत पर कुलाधिपति की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी का सवाल

- परीक्षा के डिजिटल मूल्यांकन एवं रिजल्ट प्रासेसिंग करने वाली एजेंसी का एक साल से भुगतान क्यों नहीं किया गया ?

-भुगतान न होने से रिजल्ट अपडेशन, मार्कशीट प्रिंटिंग का कार्य 35 दिनों से बंद है, जिससे आगामी परीक्षा के फार्म भरे जाने में छात्रों को असुविधा हो रही है ?

-परीक्षा ठीक से कराने का उत्तरदाय़ित्व कुलपति का है। तीन माह के लिए एजेंसी कुलपति नियुक्त कर सकता है, परन्तु बिना टेंडर नई कंपनी को कार्य क्यों दिया गया, कारण स्पष्ट करें ?

-ऩई फर्म को कितनी दर पर कार्य दिया गया, नई फर्म बचे हुए 24 दिन में कार्य पूरा नहीं , जिससे छात्रों में असंतोष है ?

-डिजिटल मूल्यांकन एजेंसी का टेंडर 27 दिसम्बर को पूरा हो गया लेकिन कुलसचिव ने नए टेंडर की कार्रवाई नहीं की-ये सूचना कुलपति को दी फिर क्यो ऐसा हुआ ?

 

कुलपति की ओर से भेजा गया जवाब

- मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ उत्तराखंड में परीक्षा की शुचिता भंग करने समेत पेपर लीक करने की एफआईआर दर्ज है, मालिक, कर्मचारी जेल में हैं।

-एफआईआर और परीक्षा की शुचिता भंग करने से संबंधित प्रकरण पर नोटिस भेजे जाने के बाद कंपनी छात्रों का डेटा और अपना सिस्टम लेकर गायब हो गयी है। मूल डेटा उपलब्ध कराने पर ही भुगतान किया जाएगा

-परीक्षा कार्यों की शुचिता के लिये नियमों के मुताबिक डिप्टी रजिस्ट्रार आरके सिंह ने पांच सरकारी कंपनियों से कार्यदायी संस्था के लिये पत्राचार किया। यूपी इलेक्ट्रानिक्स ने ऑफर स्वीकारा। जिनके थ्रू आईआईएस को 89 दिनों का कार्य दिया गया।

-कंपनी को सात रुपये 12 पैसे प्रति कापी की दर से काम दिया गया जो पिछली दर से कम है।

-माइंडल़ॉजिक्स इंफ्राटेक लिमिटेड का अनुबंध 27 को खत्म हो गया। टेंडर प्रक्रिया से पहले ही परीक्षा नियंत्रक अनुराग त्रिपाठी ने खुद पत्र लिखकर इस कंपनी का कार्य संतोषजनक बताया। एक साल का अनुबंध बढ़ाने का अनुरोध किया, जिसे स्वीकारा नहीं गया है।

 

एकेटीयू में किसको क्या काम

1-मेसर्स आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड ( निदेशक मंडलः संजीव कुमार, सोनिका सिंह, डेविड मारियो डेनिस, ललित चौहान) :

एकेटीयू के कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक ने इस कंपनी को परीक्षा कार्यो का ठेका सौंपा। करोड़ों रुपये का भुगतान किया।

2-माइंडल़ॉजिक्स इंफ्राटेक लिमिटेड बंगलुरूः ( निदेशक मंडल: श्रीजीत सिद्धार्थ पल्लीवाल, सुरेश एलंगोवन, सोमनाथ राव कोनाजे , इसी कंपनी में यूपी एक आईएएस की पत्नी साइलेंट पार्टनर बतायी जा रही हैं)

प्रो.विनय पाठक ने कुलपति के रूप में इस कंपनी को उत्तर पुस्तिकाओं का स्कैनिंग और आन लाइन अपलोडिंग का करोड़ों का ठेका दिया।

3-इंटीग्रेटेड सॉफ्टवेयर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड ( निदेशकः हर्षनारायण, उदयनारायण और दीपनारायण, इस कंपनी में भी एक प्रभावशाली व्यक्ति की साइलेंट हिस्सेदारी)

एकेटीयू के मौजूदा कुलपति प्रो. प्रदीप मिश्र ने यूपी इलेक्ट्रानिक्स के जरिये इस कंपनी को 89 दिन का ठेका दिया। प्रति कापी 7 रुपया 12 पैसे की दर से।)