हां या ना, प्रो.विनय पाठक प्रकरण में ढूंढे जा रहे इस सवाल की सीबीआई पर का जवाब-हां
एसटीएफ की जांच, फैक्ट फाइंडिंग पर अब सीबीआई को खड़ी करनी होगी सत्य की इमारत
परवेज अहमद
लखनऊ । उत्तर प्रदेश की उच्च, तकनीकी शिक्षा के बाजीगर और छत्रपति शाहू जी महाराज
(सीएसजेएमयू) कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक के खिलाफ जांच की संस्तुति
स्वीकारने के बाद सीबीआई की दिल्ली स्थित एसी-सेकेन्ड ब्रांच ने पुर्नएफआईआर दर्ज कर
ली, जिसमें आईपीसी की वे धाराएं भी शामिल की गयी, जिनका अपराध यूपीएसटीएफ की विवेचना
में सामने आया। विवेचना के तथ्य कहते हैं कुलपति के रूप में प्रो.विनय पाठक ने खूब
‘चार सौ बीसी’ ( बोलचाल की भाषा, अधिकारिक
धोखाधड़ी) की। सीबीआई की एफआईआर में जांच क्षेत्र लखनऊ, कानपुर, आगरा व अन्य स्थान
दर्ज है। यानी उन विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार की भी जांच होगी, जहां प्रो.विनय पाठक
कुलपति या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में रहे। साफ है कि एसटीएफ ने जो नींव और बाउंड्री
निर्धारित की है, सीबीआई को उस पर जांच परिणाम की बुलंद इमारत खड़ी करने की चुनौती
का सामना करना होगा क्योंकि पहली बार सीबीआई जांच से पहले जनता सोशल प्लेटफार्म पर
परिमाण पर कयास लगा रही है।
देश की सबसे प्रतिष्ठित और प्रशिक्षित अधिकारियों से लैस जांच सीबीआई यूपी में
50 से अधिक प्रकरणों की जांच कर रही है। अब उच्च शिक्षा में घूसखोरी की नई जांच उसकी
फेहरिश्त में हैं। 29 अक्टूबर को लखनऊ के इंदिरानगर कोतवाली में सीएसजेएमयू के कुलपति
प्रो.विनय पाठक के खिलाफ आगरा विवि के कुलपति रहने के दौरान के परीक्षा कार्यो के बदले
डेढ़ करोड़ की घूस लेने की एफआईआर हुई थी। दो माह की लंबी जांच में तीन लोगों की गिरफ्तारी,
चार लोगों के कलमबंद बयान और दो सौ से अधिक लोगों से हुई पूछताछ हुई। बड़ी गिरफ्तारियों
की क्रम शुरू होता इससे पहले ही 29 दिसंबर यानी दो माह बाद राज्य सरकार ने इस पूरे
प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति कर दी। 9 दिनों तक सीबीआई की जांच को लेकर
असमंजस रहा आखिर 7 जनवरी को सीबीआई ने रि-एफआईआर दर्ज करने के साथ विवेचना अपने हाथ
में ले ली। सीबीआई अधिकारियों ने एसटीएफ से संपर्क कर विवेचना की पत्रावलियां और संबंधित
दस्तावेज हस्तानांतरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इस बीच सीबीआई जांच रोकने के
लिए दाखिल की गयी याचिका को हाईकोर्ट खारिज कर दिया।
सीबीआई जांच शुरू होते ही सबसे ज्यादा खलबली अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि (एकेटीयू)
में मची है क्योंकि यहां के प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे 60 फीसदी से अधिक लोगों की
नियुक्तियां नियमों को शिथिल करके की गयी हैं। कई ऐसे लोगों की नियुक्तियां हुई हैं,
जिनके पद ही रिक्त नहीं थे। ढेरों लोगों के चरित्र व डिग्री का सत्यापन नहीं कराया
गया। इस विश्वविद्यालय के इंजीनियर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। कई सौ
करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी की गयी है। कालेजों की संबद्धता में जमकर भ्रष्टाचार
हुआ है और ये सिलसिला अभी जारी भी है। इसी तरह ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विवि,
छत्रपति शाहू जी महाराज विवि कानपुर, एबीटीयू और अन्य विवि शामिल हैं। भ्रष्टाचार का
दायरा व्यापक है और एक करोड़ से अधिक लोग सीधे इससे प्रभावित हैं। फीस, परीक्षा, परीक्षा
में शुचिता, नाकाबिल शिक्षकों की नियुक्तियों के चलते पीढ़ियों की जीवन दांव पर लगने
की चलते राज्य की बहुसंख्यक जनता की नजर सीबीआई की जांच पर है। दरअसल, कुछ सालों में
सीबीआई जांच को लेकर जन मानस में ढेरों सवाल हैं, इसलिए भी इस मामले में सीबीआई की
जांच उनकी साख को बनाये और बिगाड़ेगी। क्योंकि ये मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी
पकड़ रहा है, समाजवादी पार्टी खुलकर धरना-प्रदर्शन करने लगी हैं।
राजभवन भी आयेगा जांच की जद में
सीबीआई ने अगर सिर्फ डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के भ्रष्टाचार की
जांच को आगे बढ़ाया तो सबसे पहली पूछताछ कुलाधिपति कार्यालय से ही शुरू होगी। आखिर
किन परिस्थितियों में बार-बार प्रो.विनय पाठक को कुलपति का चार्ज दिया गया। क्योंकि
इनके अलावा दूसरे कुलपति प्रो.आलोक राय हैं, जिन्हें बार-बार अन्य विश्वविद्लयों का
चार्ज दिया गया है। इत्तिफाक है और जो तथ्य सामने आये हैं, उससे ये संकेत तो हैं कि
दोनों ही प्रोफेसर जब कुलपति नियुकित हुये
तो ये पद ही अर्हता ही नहीं रखते थे। दोनों के पास दस साल के प्रोफेसर होने का अनुभव
नहीं था। तब इन दोनों को ही बार-बार चार्ज क्यों दिया गया।
आईपीसी की इन धाराओं में नामजद विनय-अजय
120 बी- गैरकानूनी कार्य की साजिश करना
471- दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को कपटपूर्वक
या बेईमानी से कूटरचित करना
386- किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर आघात के भय में
डालकर ज़बरदस्ती वसूली
342- कोई
किसी व्यक्ति को ग़लत तरीके से प्रतिबंधित करना
504- गाली-गलौज
506- जान से मारने की धमकी
409-लोक सेवक के नाते जिस संपत्ति पर प्रभुत्व हो
उसके विषय में विश्वास का आपराधिक हनन
420- धोखाधड़ी, किसी व्यक्ति को बेईमानी से प्रेरित
करना
467-मूल्यवान प्रतिभूति वसीयत या किसी मूल्यवान
प्रतिभूति को बनाने या हस्तांतरण करने का प्राधिकार, धन प्राप्त करने आदि
के लिए कूटरचना।
468- इस आशय से कूटरचना करना ताकि दस्तावेज़ों को
छल के लिए इस्तेमाल कर सके
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 : लोक सेवक द्वारा पदीय कार्य के संबंध में परितोषण, घूस लेना
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