Monday 28 September 2015

उपलोकायुक्त पद की दौड़, कई नौकरशाह शामिल

28 sept 2015
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-30 सितंबर को पूरा होगा उपलोकायुक्त स्वतंत्र सिंह का कार्यकाल
-लोकायुक्त कार्यालय ने मुख्यमंत्री को भेजी जानकारी

लखनऊ: लोकायुक्त के चयन पर कानूनी पेंच अभी सुलझा नहीं है और उपलोकायुक्त का कार्यकाल 30 सितंबर को पूरा जाएगा। जिस पर काबिज होने के लिए सेवानिवृत नौकरशाहों, न्यायिक अधिकारियों व पत्रकारों ने जुगत शुरू कर दी है। शासन न
प्रदेश के लोकायुक्त के चयन में कानूनी पेंच फंसे हैं, जिन्हें सुलझाने में सरकार के ओहदेदारों के पसीने छूट रहे हैं। और बुधवार यानी 30 सितंबर को उपलोकायुक्त स्वतंत्र सिंह का कार्यकाल भी पूरा हो जायेगा। उपलोकायुक्त पद के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है। चयन समिति में मुख्यमंत्री व लोकायुक्त सदस्य हैं। ऐसे में सेवानिवृत, पुर्ननियुक्ति के जरिये कार्यरत नौकरशाह, न्यायिक अधिकारी उपलोकायुक्त का पद हासिल करने का प्रयास में लग गए हैं।
सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त कार्यालय ने राज्यपाल के 10 जून 2015 के पत्र का हवाला देकर 30 सितंबर को उपलोकायुक्त का कार्यकाल पूरा होने की जानकारी मुख्यमंत्री सचिवालय को भेजी है। गौरतलब है कि राज्यपाल ने 10 जून को मुख्यमंत्री, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में लोकायुक्त व उपलोकायुक्त की नियुक्ति के लिए चयन समिति की बैठक बुलाने का सुझाव दिया था। सूत्रों का कहना है कि शासन ने उपलोकायुक्त के नाम पर मंथन शुरू कर दिया है।
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  उपलोकायुक्त की नियुक्ति का नियम
 उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम-1975 (संशोधित-2012) के मुताबिक सतर्कता विभाग के मंत्री (विभाग मुख्यमंत्री के पास है) उपलोकायुक्त पद लिए उपयुक्त व्यक्ति का नाम प्रस्तावित कर उस पर लोकायुक्त से परामर्श करेगा। सहमति से चुने गये व्यक्ति को उपलोकायुक्त नियुक्त करने की पत्रावली राज्यपाल को भेजी जायेगी। राज्यपाल नियुक्ति केवारंट पर हस्ताक्षर कर फाइल मुख्यमंत्री को वापस करेंगे। इसके बाद सतर्कता विभाग उपलोकायुक्त की नियुक्ति का आदेश जारी करेगा।
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उपलोकायुक्त पद की अर्हता
उपलोकायुक्त पद के विशेषज्ञ योग्यता नहीं है। दावेदार को भारत का नागरिक होना चाहिए। आपराधिक इतिहास नहीं होना चाहिये। वर्ष 2012 में संशोधित लोकायुक्त अधिनियम-1975 में उपलोकायुक्त पद की योग्यता में कोई बदलाव नहीं किया गया था, लिहाजा मूल अधिनियम के आधार पर ही उपलोकायुक्त की नियुक्ति होगी।
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जिनकी दावेदारी पर चर्चा
समाजवादी सरकार में ही डीजीपी पद पर पहुंच कर रिटायर्ड हुये तीन आइपीएस अधिकारी, पुर्ननियुक्ति पाकर सरकार व शासन में अति महत्वपूर्ण पदों का जिम्मा संभाल रहे तीन आइएएस, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार पद से सेवानिवृत एक अधिकारी समेत तीन न्यायिक अधिकारी, दो पत्रकार और दो समाजसेवियों के नाम चर्चा में है।
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नई नियुक्ति तक कार्य करते रहेंगे उपलोकायुक्त
 वर्ष 2012 से पहले लोकायुक्त का कार्यकाल छह साल का था। मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने लोकायुक्त अधिनियम संशोधित कर लोकायुक्त और उप लोकायुक्त का कार्यकाल आठ साल कर दिया था। इसमें कार्यकाल खत्म होने के बाद नई नियुक्ति होने तक लोकायुक्त व उपलोकायुक्त के कार्य करते रहने की व्यवस्था है।सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ सरकार के इस संशोधन को सही ठहरा चुकी है।


आजम का एक और रहस्यमयी फैसला

28 spept 2015

-ब्राजील के लिये दिल्ली जाकर वापस लौटे आजम
-लखनऊ आने का संदेश भेजा, पहुंचे रामपुर
 लखनऊ : कभी खत, कभी जुमलों व फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले वजीर मोहम्मद आजम खां के ब्राजील के दौरे पर निकलने और सोमवार को दिल्ली से वापस लौटने का फैसला रहस्य और कयासों में है। चर्चा है कि एक अधिकारी की कारगुजारी से नाराज होकर उन्होंने दौरा टाला जबकि कुछ लोग इसे मंत्रिमंडल में फेरबदल की आहट जोड़ रहे हैं। इससे इतर आजम के करीबी लोगब्राजील न जाने की वजह पंचायत चुनाव बता रहे हैं हालांकि उनका ये तर्क लोगों के गले नहीं उतर रहा।
नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां को कूड़ा प्रबंधन की बारीकियां सीखने के लिए मध्य ब्राजील के साओपालो जाना था। उनके साथ जाने वालों में मुख्यमंत्री के विशेष सचिव प्रांजल यादव, सचिव नगर विकास एसपी सिंह, सूडा के निदेशक शैलेन्द्र कुमार सिंह, मंत्री के विशेष कार्याधिकारी आफाक अहमद, झांसी के नगर आयुक्त अरुण प्रकाश, इलाहाबाद के नगर आयुक्त देवेन्द्र पाण्डेय, लखनऊ के नगर आयुक्त उदयराज सिंह, जल निगम के निदेशक प्रेम कुमार आसुदानी, सीएंडडीएस के एके राय और आईईसी सूडा के योगेश आदित्य का नाम था। प्रतिनिधि मंडल को चार अक्टबूर को वापस लौटना था।
रविवार की दोपहर आजम खां रामपुर से दिल्ली के लिये रवाना हुए और उनके अधिकारियों की टोली लखनऊ से दिल्ली के लिए रवाना हुई। सूत्रों का कहना है कि इन सभी को मंत्री के नेतृत्व में सोमवार की तड़के दिल्ली से ब्राजील की फ्लाइट पकडऩी थी। सूत्रों का कहना है कि दौरे की शुरूआत से पहले ही एक अधिकारी की किसी बात पर आजम खां बिफर गये और ब्राजील नहीं जाने का निर्णय लिया। उन्होंने वापस लखनऊ लौटने का संदेश भेजा। यहां सुरक्षा कर्मी अलर्ट हुए लेकिन वह रामपुर रवाना हो गये। बाकी का प्रतिनिधि मंडल ब्राजील चला गया। अधिकारी से नाराजगी की पुष्टि तो नहीं हुई लेकिन पूर्व में अमेरिका दौरे, सचिवालय कर्मचारियों की तैनाती, इंजीनियरोंं की कार्य प्रणाली पर टिप्पणी, नाराज होकर पार्टी की राष्ट्रीय कार्य समिति तक में न जाने का उनका जो अतीत रहा है, उससे इस चर्चा को बल जरूर मिला है।




Monday 21 September 2015

उम्मीदों का झुनझुना

लखनऊ. यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने सोमवार को 5 केडी स्थित अपने सरकारी आवास पर शिक्षामित्रों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। सीएम ने शिक्षामित्रों को आश्वासन देते हुए कहा कि आप लोग हिम्मत मत हारें। आत्महत्या न करें। सरकार आपके एडजस्टमेंट पर विचार कर रही है। आज यूपी दूरस्थ बीटीसी शिक्षक  संघ और महाराष्ट्र से आए एक डेलिगेशन ने भी सीएम से मुलाकात की और उन्हें महाराष्ट्र के पैटर्न का कागजात सौंपा। इस बारे में बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने कहा कि सरकार कानून का सम्मान करती है। हम लोग शिक्षामित्रों की हरसंभव मदद करेंगे। वहीं, मानदेय के सवाल पर बताया कि कैसा मानदेय। यह अब शिक्षक है तो मानदेय क्यों।

जनहित को ध्यान में रखकर सरकार लेती है फैसले
 ने कहा- परेशान न हों शिक्षामित्र, सरकार कर रही उनके भविष्य पर विचारसड़क पर उतरे हजारों शिक्षामित्र, दो महिला सहित चार हुए बेहोशहाईकोर्ट के फैसले के बाद शिक्षामित्र नेताओं में छिड़ी बहस, लगाए आरोप
बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा, हमारा यही मानना है कि जब उत्तराखंड और महाराष्ट्र में टीईटी को छूट मिल सकती है, तो यूपी में ऐसा क्यों नहीं हो सकता यह 1.72 लाख शिक्षामित्रों और उनके परिवार का मामला है। सरकार कानून, जनहित, शिक्षा, समस्याओं और दूसरे सभी पहलुओं को देखते हुए ही फैसले लेती है। वहीं, मीटिंग के बाद संघ के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि हम लोगों ने एक मोर्च बनाकर सीएम से मुलाकात की। सीएम के सामने सारे मुद्दे रखें गए। सीएम ने हमारी समस्याओं को दूर करने का भरोसा दिया है।

जंतर-मंतर पर करेंगे प्रदर्शन
सुनील यादव ने कहा, हमारी आगे की रणनीति यही है कि राष्‍ट्रीय अध्यापक शिक्षा संघ के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि पहले उन्होंने हम लोगों को अनुमति दे दी थी और बाद में वह मुकुर गए। उन्होंने कहा, उत्तराखंड, राजस्थान और महाराष्ट्र के लिए अलग नियम और यूपी के लिए अलग नियम कैसे हो सकते है बनारस में पीएम मोदी ने जो हमे आश्वासन दिया है, उस पर उन्हें अमल करते हुए काम करना चाहिए। क्योंकि जो कमी रह गई है वह राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा संघ के चलते हुए ही हुई है। हम लोग सोमवार से सकूल जाएंगे और 1 बजे स्कूल समाप्त होने के बाद बैठक करेंगे।
सीएम को सौंपे गए कागजात
महाराष्ट्र से आए एमएलसी कपिल हरिश्चंद्र पाटिल समेत 6 लोगों का दल भी मिटिंग में मौजूद था। कपिल पाटिल ने बताया कि हम लोग सीएम अखिलेश यादव के साथ खड़े हैं। हर तरह से कानून का सम्मान होगा और उसके अंदर रहकर ही हल निकाला जाएगा। महारष्ट्र में जो पैर्टन इस्तेमाल किया गया था, उसकी एक कॉपी सीएम को दी गई है। उम्मीद करता हूं कि जल्द ही अच्छे नतीजे सामने आएंगे।
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क्यों कैंसिल हुई अप्वाइंटमेंट
शिक्षामित्रों को अप्वाइंट करने को लेकर वकीलों ने कहा था कि इनकी भर्ती अवैध रूप से हुई है। जजों ने प्राइमरी स्कूलों में शिक्षामित्रों की तैनाती बरकरार रखने और उन्हें असिस्टेंट टीचर के रूप में एडजस्ट करने के मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के वकीलों की कई दिन तक दलीलें सुनीं।
किस ग्राउंड पर ऑर्डर
हाईकोर्ट ने कहा, ये टीईटी पास नहीं हैं, इसलिए असिस्टट टीचर के पदों पर इन्हें अप्वॉइंट नहीं किया जा सकता।  शिक्षामित्रों की तरफ से वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने नियम बनाकर इन्हें एडस्ट करने का फैसला लिया है। इसलिए इनके अप्वाइंटमेंट में कोई कानूनी दिक्कत नहीं है। यह भी कहा गया कि शिक्षामित्रों का सिलेक्शन प्राइमरी स्कूलों में टीचरों की कमी दूर करने के लिए किया गया है।
क्या कहते हैं शिक्षामित्र
सोनभद्र में शिक्षामित्र पी.एस. खराटिया ने बताया, हाईकोर्ट का फैसला सुनने के बाद ऐसा लगा जैसे मेरी जान चली गई। कोर्ट का ये फैसला लंबे अरसे से रोजगार की आस लगाए बैठे शिक्षामित्रों पर कहर बनकर टूटा है। अप्वॉइंटमेंट कैंसिल होने से परेशानियां बढ़ गई हैं। वहीं, लखनऊ की शिक्षामित्र सुजाता का कहना है, कई साल से सहायक टीचर बनने की उम्मीद लगा रखी थी, कोर्ट के फैसले ने इसे एक पल में तोड़ दिया।



Saturday 19 September 2015

लोकायुक्त नहीं बनेंगे जस्टिस रवींद्र सिंह

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-मुख्यमंत्री को पत्र भेज जताई अनिच्छा
-कहा, विचारार्थ न शामिल किया जाए मेरा नाम
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 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रवींद्र सिंह ने लोकायुक्त पद के प्रति अपनी अनिच्छा जताई है। शुक्रवार को उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर अपने इस फैसले अवगत कराया है। उन्होंने अनुरोध किया है कि  लोकायुक्त के पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर उनके नाम को विचारार्थ शामिल न किया जाए। जस्टिस रवींद्र सिंह के इस फैसले से लोकायुक्त पद को लेकर सरकार और राजभवन के बीच का गतिरोध समाप्त होने के आसार हैं।
मुख्यमंत्री ने एक दिन पहले ही लोकायुक्त चयन के लिए नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की बैठक बुलाई थी। मुख्य न्यायाधीश के न पहुंचने की वजह से यह बैठक टाल दी गई। दूसरे ही दिन शुक्रवार को जस्टिस रवींद्र सिंह ने अप्रत्याशित रूप से यह फैसला ले लिया। माना जा रहा है कि राजभवन द्वारा फाइल रोक लिए जाने की वजह से उन्होंने यह कदम उठाया है। अपने पत्र में उन्होंने इस बात के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया है कि लोकायुक्त पद के लिए उनके नाम का चयन किया गया। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि लोकायुक्त जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद को लेकर इतना विवाद उचित नहीं था। इस पद की गरिमा है और इससे जनता की आस्था व विश्वास जुड़ा है।
न्यायमूर्ति सिंह के नाम को लेकर जुलाई से ही चर्चा चल रही थी कि वही प्रदेश के नये लोकायुक्त बनेंगे। सरकार ने उनके नाम पर विचार कर नियुक्ति के राजभवन भेजा लेकिन  राज्यपाल ने उनके नाम पर असहमति जताते हुए फाइल वापस सरकार को वापस भेज दी। मुख्य न्यायाधीश ने भी उनके नाम पर आपत्तियां जताई थीं।  

Thursday 17 September 2015

दावेदारों की तादाद से घबराए मंत्री

17.09.2015
दावेदारों की तादाद से घबराए मंत्री
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-पंचायत चुनाव
-किसी एक समर्थक को समर्थन से दूसरों की नाराजगी की दुविधा 
-तटस्थ रहने को अपने क्षेत्र के बजाय दूसरे क्षेत्रों में कर रहे दौरा
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परवेज अहमद, लखनऊ
पंचायत चुनाव के अखाड़े में ताल ठोंकने वाले सपाइयों की बढ़ती संख्या से समाजवादी सरकार के मंत्री खासे बेचैन हैं। किसी एक को समर्थन से दूसरे समर्थकों के नाराज होने का खामियाजा विधानसभा में भुगतने का डर उन्हें अभी से सताने लगा है। पार्टी पहले ही हर किसी को चुनाव लडऩे की इजाजत दे चुकी है। ऐसे में कई मंत्रियों ने क्षेत्र में रहने के बजाय दूसरे इलाकों में दौरे लगा लिये हैं।
पंचायत चुनाव का रंग धीरे-धीरे चटख हो रहा है। सियासी दल विधानसभा-2017 का पूर्वाभ्यास मानकर इस चुनाव में परचम फहराने को प्रयासरत हैं। परोक्ष समर्थन के जरिये पुराने कार्यकर्ताओं की जीत सुनिश्चित कराने की रणनीति तैयार हो  रही है लेकिन समाजवादी पार्टी अजब मुश्किलों में हैं। एक वार्ड से कई दावेदारों के चलते 'समर्थक उम्मीदवारÓ का चयन मुश्किल का सबब बना है, क्योंकि 'एम-वाईÓ गठजोड़ वाले दावेदारों की तादाद बहुत अधिक है। नतीजे में पार्टी ने 'तटस्थÓ रहने का फैसला किया। इससे सरकार के अधिकतर मंत्रियों की दुश्वारी बढ़ गयी है क्योंकि उनके समर्पित समर्थकों में से ही कई एक ही वार्ड पर दावा ठोंक रहे हैं। पार्टी किसी को भी चुनाव लडऩे से न रोकने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में किसी एक को समर्थन देने पर अन्य की नाराजगी तय है। ऐसे में नाराज कार्यकर्ताओं ने विधानसभा-2017 में मुंह फेर लिया तो फिर उनकी राह भी दुश्वार हो जाएगी। एक वरिष्ठ मंत्री का कहना है कि हर सियासी व्यक्ति चुनाव लडऩे की ख्वाहिश रखता है। इस बार राज्य में सरकार है, लिहाजा दावेदार भी ज्यादा हैं। चुनाव जीतने वाले कार्यकर्ताओं को जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख बनने की उम्मीद भी नजर आ रही है। ऐसे में चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे कार्यकर्ताओं को समझाना टेढ़ी खीर है। एक दूसरे मंत्री का मानना है कि संगठन के नुमाइंदे पहले ही पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव से मंत्रियों की शिकायतें करते रहते हैं। सपा समर्थकों की लड़ाई में दूसरे दल का समर्थक जीत गया तो सारी गाज मंत्रियों पर गिरेगी। ऐसे में तटस्थ रहने का तरीका खोजना जरूरी हो गया है। प्रदेश महासचिव अरविंद सिंह गोप का कहना है कि चुनाव लडऩे वाले दावेदारों की संख्या में अपूर्व इजाफा होना पार्टी और उसके नेतृत्व की लोकप्रियता की पहचान है। वह कहते हैं कि यह सही है कि एक वार्ड से कई  दावेदार हैं, लेकिन उनमें सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है। वह दावा करते हैं कि जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत के वार्डो में सपा समर्थकों की जीत होगी।

मुलायम सिंह के विरुद्ध मुकदमे का आदेश

17.09.2015

मुलायम सिंह के विरुद्ध मुकदमे का आदेश
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लखनऊ : आइपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को फोन पर धमकी देने के मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सोम प्रभा मिश्रा ने बुधवार को इंस्पेक्टर हजरतगंज कोतवाली को सपा प्रमुख मुलायम सिंह के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना का आदेश दिया है।
अदालत ने यह आदेश निलंबित आइजी अमिताभ ठाकुर की अर्जी पर दिया। अर्जी में मुलायम सिंह के अलावा खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के विरुद्ध भी आरोप लगाए गए हैं। वादी की ओर सेअधिवक्ता अखिलेश अवस्थी ने कहा कि अमिताभ ठाकुर की पत्नी सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने खनन मंत्री के विरुद्ध लोकायुक्त के समक्ष शिकायत की थी। शिकायत के बाद तीन जनवरी को वादी को फोन से धमकी मिली कि उसकी पत्नी स्वयं को गायत्री प्रसाद की संपत्ति से अलग रखें, अन्यथा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। नूतन की शिकायत पर जब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तब अदालत में मुकदमा दायर किया गया। नौ जुलाई को गोमती नगर थाने से रिपोर्ट भेजी गई कि रिपोर्ट 20 जून को दर्ज हो चुकी है। अर्जी में अमिताभ ने मुलायम सिंह यादव पर आरोप लगाया है कि जब वह आइजी नागरिक सुरक्षा के पद पर थे, तब 10 जुलाई की शाम उनके मोबाइल पर एक फोन आया था। कहा गया कि नेता जी बात करना चाहते हैं। वादी के पूछने पर मुलायम सिंह का नाम लिया गया। थोड़ी ही देर में उधर से मुलायम सिंह यादव की आवाज आई। उन्होंने छूटते ही कहा कि जसराना वाली घटना भूल गए, अब आपके साथ वही करना पड़ेगा। फोन पर मुलायम सिंह ने यह भी धमकी दी कि एफआइआर क्यों दर्ज कराई। यह भी कहा कि जसराना में जो भी कुछ हुआ उससे भी अधिक हो जाएगा। अंत में मुलायम सिंह ने शिकायत न करने की बात कहते हुए सुधर जाने के लिए कहा। अर्जी में ठाकुर ने जसराना की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2006 में वह फीरोजाबाद में पुलिस अधीक्षक थे और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। तत्कालीन जसराना विधायक रामवीर सिंह जो संभवत: मुलायम सिंह के समधी हैं, उनके गांव पैडस में मंत्री शिवपाल सिंह यादव का वीआइपी कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में शिवपाल सिंह हेलीकॉप्टर से आने वाले थे। आरोप है कि रामवीर सिंह तमाम गलत आदेशों का पालन कराना चाहते थे, जिसे पूरा न करने पर रामवीर सिंह नाराज थे। इस कार्यक्रम में शाम को मौके पर रामवीर सिंह व अन्य लोगों द्वारा इसी नाराजगी की वजह से वादी पर कातिलाना हमला किया गया। इस घटना की रिपोर्ट भी दर्ज न करने की हिदायत मुलायम सिंह यादव ने दी थी।
अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि मामले में संज्ञेय अपराध प्रकट होता है। लिहाजा इंस्पेक्टर हजरतगंज कोतवाली समुचित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर विवेचना करे।

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अमिताभ पर भ्रष्टïाचार का मुकदमा दर्ज
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-आय के सापेक्ष ठाकुर के व्यय का अनुपात 83.15 प्रतिशत ज्यादा
लखनऊ : सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सीधे मोर्चा खोलने वाले निलंबित आइजी अमिताभ ठाकुर के खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान ने राजधानी के गोमतीनगर थाने में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कराया है। उन पर आय से 83.15 प्रतिशत अधिक व्यय का आरोप है। शासन के निर्देश के बाद सतर्कता अधिष्ठान ने यह कार्रवाई की है।
सतर्कता अधिष्ठान के निरीक्षक महेश सिंह ने बुधवार को गोमतीनगर थाने में अमिताभ ठाकुर के खिलाफ तहरीर दी। तहरीर के आधार पर ठाकुर के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-13 (एक) (ई) और 13 (दो) (आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। ठाकुर पर आरोप है कि उनकी आय के जो भी ज्ञात स्रोत हैं, उसके सापेक्ष चेक की गयी अवधि में उनकी 98 लाख 12 हजार 164 रुपए अवैध आय पायी गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक जांच के लिए निर्धारित अवधि में अमिताभ और उनके आश्रित परिजनों ने वैध स्रोत से एक करोड़ 17 लाख 99 हजार 465 रुपए की आय की जबकि इसके सापेक्ष दो करोड़ 16 लाख 11 हजार 629 रुपए व्यय किए। अमिताभ पर यह भी आरोप लगा है कि पर्याप्त अवसर देने के बावजूद उन्होंने इस संदर्भ में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। वर्ष 1992 बैच के निलंबित आइपीएस अमिताभ ठाकुर के खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान के संयुक्त निदेशक ने खुली जांच पूरी कर शासन को चार सिंतबर को रिपोर्ट भेजी थी। इसमें उन्हें दोषी ठहराया गया था। इस रिपोर्ट पर विचार के बाद शासन के सतर्कता विभाग के उप सचिव एसपी सिंह ने मंगलवार को निदेशक सतर्कता अधिष्ठान भानु प्रताप सिंह को पत्र लिखकर अन्वेषण (मुकदमा दर्ज कर विवेचना पूरी करने) की आख्या उपलब्ध कराने को कहा। निदेशक/एडीजी भानु प्रताप सिंह के निर्देश पर मुकदमा दर्ज कराया गया है।
ध्यान रहे, ठाकुर के खिलाफ सात जुलाई 2012 को आइजी कार्मिक ने सतर्कता जांच की सिफारिश की थी लेकिन हाल में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खिलाफ ठाकुर द्वारा धमकी की तहरीर देने के बाद इस जांच में तेजी आयी। अमिताभ ठाकुर के खिलाफ लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने भी पिछले माह जांच की सिफारिश की थी।





























Wednesday 16 September 2015

महागठबंधन की टूट के पांच कारण

मुलायम के इन 5 फैसलों के कारण महागठबंधन से अलग हुई समाजवादी पार्टी
10/09/2015
मुलायम के इन 5 फैसलों के कारण महागठबंधन से अलग हुई समाजवादी पार्टी
 महागठबंधन में सीट बंटवारे से नाराज सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बिहार में विधानसभा चुनाव अपने दम पर लडऩे का ऐलान कर दिया है। सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने गुरूवार को कहा कि सपा की संसदीय बैठक में यह फैसला लिया गया है, हालांकि इस चुनाव में सपा कितनी सीटों पर लड़ेगी इसकी घोषणा नही हुई है। इससे पहले महागठबंधन से नाराज चल रहे मुलायम सिंह यादव पटना में आयोजित स्वाभिमान रैली से किनारा कर लिया था, लेकिन इस रैली में उन्होंने अपने भाई रामगोपाल को जरूर भेजा था। राजद अध्यक्ष लालू यादव के 5 सीटें देने के बावजूद सपा सुप्रीमों ने अपनी सहमति नहीं जताई और अकेले चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया।

आइये जानते हैं मुलायम के फैसले के पांच कारण-
1.बिहार में सीटों के बंटवारे में समाजवादी पार्टी से बात ही नहीं की गई। जब सीटों का बंटवारा सामने आया तो पार्टी को दर्शक की भूमिका में रखा गया। सपा का मानना है कि पांच सीटों पर चुनाव लडऩे से पार्टी का कद घटेगा।

2. सपा नेताओं का मानना है कि पांच सीटों पर लडऩे से यूपी की सबसे बड़ी पार्टी की छवि को धक्का लगेगा। स्वाभिमान रैली में मुलायम सिंह यादव
 की जगह शिवपाल के जरिये नाराजगी का संदेश गठबंधन के अन्य नेताओं तक पहुंचा दिया था।

3. यही नहीं अगर पांच सीटों पर ही चुनाव लड़ते हैं तो जीत की उम्मीद और कम हो जाएगी और सपा के राष्ट्रीय स्तर विस्तार की संभावनाओं को इससे कोई बल नहीं मिलेगा।

4. पार्टी का बिहार में जनाधार नाम मात्र का है, इसलिए केवल पांच सीटों पर लडऩे से इसमें कोई इजाफा होने वाला नहीं है, उल्टे लालू के साथ जाने से सपा की छवि को नुकसान हो सकता है।

5. सपा के थिंक टैंक का मानना है कि अगर बाहर से समर्थन दिया तो छवि और गठबंधन दोनों बचे रहेंगे। सपा की सेक्युलर छवि को कोई नुकसान नहीं होगा और साथ ही सांप्रदायिक शक्तियों से लडऩे का उसका दावा भी कायम रहेगा, जो उसे निकट भविष्य में उत्तर प्रदेश चुनाव में फायदा पहुंचा सकता है।

राजनीति की प्रारंभिक पाठशाला

 सत्ता बदलने का असर राजनीति की प्रारंभिक पाठशाला यानी पंचायतों में भी दिखाई देने लगा है.। 2010 के अंत में जब जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो श्रावस्ती में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समर्थित उम्मीदवार रुक्मिणी सिंह जीत गईं. मगर समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार बनने के बाद वे जिला पंचायत सदस्यों को खटकने लगीं.
सदस्यों के अविश्वास प्रस्ताव से जब उनकी कुर्सी जाने का खतरा मंडराया तो उन्होंने अपने पति राम प्रताप सिंह समेत सपा की सदस्यता ले ली। कुछ ऐसा ही वाकया रामपुर में सामने आया है, जहां बसपा समर्थित पंचायत अध्यक्ष अब्दुल सलाम सत्ता बदलते ही सपा के खेमे में जाने की जुगत में लग गए। उनके बदले रुख की जानकारी मिलते ही बसपा ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। हरदोई में कामिनी अग्रवाल ने भी हाथी पर सवार होकर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता, लेकिन पति मुकेश अग्रवाल के साइकिल सवार होते ही वे बसपा छोड़ सपा में शामिल हो गईं। ये कुछ उदाहरण इस ओर इशारा करते हैं कि राज्य की जिला पंचायतों में इस वक्त दलगत निष्ठा बदलने का खेल शुरू हो चुका है। 2010 के अंत में हुए चुनाव में 72 सीटों में से 55 पर बसपा ने जीत का परचम लहराया था, जबकि दस सीटें सपा ने जीती थी। बाकी कांग्रेस, रालोद और भाजपा के बीच साझ हुई थीं। यही हाल प्रदेश के 813 क्षेत्र पंचायत अध्यक्षों (ब्लॉक प्रमुख) के चुनाव का भी था. यह सत्ता की हनक ही थी कि बसपा नेताओं ने करीब दो दर्जन सीटों पर अपने रिश्तेदारों को बगैर सदस्य का चुनाव लड़े जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया।
इन जिला पंचायत अध्यक्षों पर कोई आंच न आए, इसके लिए भी उस समय सत्तारूढ़ बसपा ने 'उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत संशोधन विधेयक-2011' के जरिए क्षेत्र पंचायत प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों के खिलाफ लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव की मियाद को एक वर्ष से बढ़ाकर दो वर्ष कर दी। 
हालांकि इस विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली थी. मगर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद सपा ने उक्त संशोधन विधेयक को वापस लेकर बसपाई जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों को हटाने का रास्ता साफ कर दिया. फिर तो लगभग हर जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों के खिलाफ अविश्वास प्रस्तावों की बाढ़ आ गई.
खाता खुला हमीरपुर से. यहां बसपा प्रत्याशी संजय दीक्षित को कुर्सी गंवानी पड़ी. इसी तरह सिद्घार्थनगर के प्रमोद यादव, कन्नौज में मुन्नी देवी आंबेडकर की कुर्सी छिन गई. आजमगढ़ में वरिष्ठ बसपा नेता गांधी आजाद के भाई की पत्नी मीरा आजाद भी रुखसत हो गईं. इसी तरह बिजनौर की नसरीन सैफी, सोनभद्र के दिलीप मौर्य, पीलीभीत की अनीता वर्मा को भी अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा. मिर्जापुर, लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, बागपत, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर में बदलाव की सुगबुगाहट महसूस की जा रही है.
बाराबंकी में भाजपा के पंचायत प्रकोष्ठ के पूर्व अध्यक्ष रामजी तिवारी बताते हैं कि बसपा समर्थित जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों ने डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में कोई विकास कार्य नहीं किया. इससे जिला और क्षेत्र पंचायत सदस्यों में भारी असंतोष था. चूंकि इन्हें अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाने की मियाद बढ़ा दी गई थी, ऐसे में इन जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लाक प्रमुखों ने निरंकुश ढंग से अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया.
जिस तरह जिला पंचायत अध्यह्नों और ब्लॉक प्रमुखों की कुर्सी जाने का खतरा मंडरा रहा है उससे बचने के लिए ये नेता सत्तारूढ़ दल में ठिकाना तलाशने की कवायद में जुट गए हैं. करीब तीन दर्जन जिला पंचायत अध्यक्ष और 100 के करीब ब्लॉक प्रमुख सपा में आने को बेचैन हैं. इनमें से कई ने पंचायतीराज मंत्री बलराम यादव से संपर्क साधा है.
यादव कहते हैं, ''जिन लोगों ने सत्ता का दबाव बनाकर जिला पंचायत अध्यक्ष या ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी हथियाई है, उनमें से अधिकांश सपा में शामिल होना चाहते हैं. ऐसे लोगों को डर है कि प्रतिद्वंद्वी उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं. हालांकि सपा किसी के भी खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई नहीं करेगी.''
सपा सरकार इस मामले में भले ही किसी भूमिका से इनकार कर रही हो, लेकिन जिस तरह से एक-एक कर बसपा के जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ रही है, उसने राज्य के सियासी माहौल को गरमा दिया है. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं, ''सपा ने सरकार बनाते ही पंचायतों के लोकतांत्रिक स्वरूप को खत्म करना शुरू कर दिया है.'' मगर सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी बसपा के ऊपर पलटवार करते हुए कहते हैं, ''बसपा सरकार में लोकतंत्र को बंधक बनाकर जबरदस्ती कुर्सी कब्जाने वालों को अब जनता जवाब दे रही है.''

बिहार में असंतुष्टों पर दांव लगाएगी सपा

15 sept 2015

-22 सितंबर को पटना में सहमिलन सम्मेलन, शामिल होंगे अखिलेश
-विभिन्न दलों के असंतुष्टों के सपा में आने की संभावना
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परवेज़ अहमद, लखनऊ : 'जनता परिवारÓ से नाता तोडऩे केबाद समाजवादी पार्टी राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) व जद (यू)-राजद के असंतुष्ट क्षत्रपों पर दांव लगाने की तैयारी में हैं। पटना में 22 सितंबर को होने वाले 'सक्रिय कार्यकर्ता व सहमिलन सम्मेलनÓ में प्रदेश सपा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मौजूदगी इसी रणनीति का हिस्सा होगी। सम्मेलन में विभिन्न दलों से छिटके कई नेताओं के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के आसार आसार भी हैं।
सीटों के बंटवारे में समाजवादी पार्टी को तवज्जो नहीं मिलने से नाराज मुलायम सिंह यादव ने'महागठबंधनÓ से नाता तोडऩे का निर्णय किया था। जिसकी घोषणा राष्ट्रीय महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव ने करते हुए बिहार में अपने बूते चुनाव लडऩे का एलान किया। उस समय 140 सीटों पर ताल ठोंकने का संकेत दिया गया था। पार्टी अब 243 सीटों पर भाग्य आजमाने की तैयारी में है, हालांकि राष्ट्रवादी कांग्र्रेस पार्टी (एनसीपी) मुखिया शरद पवार, तारिक अनवर और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बीच गठबंधन पर बातचीत चल रही है। नये समीकरण गढऩे के प्रयासों के बीच समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव 22 सितंबर को पटना के कृष्णा मेमोरियल हाल में प्रस्तावित सम्मेलन में शामिल हिस्सा लेंगे। सपा के बिहार प्रभारी किरनमय नंदा भी मौजूद रहेंगे।
सूत्रों का कहना है कि कार्यक्रम में अपने-अपने दलों से नाराज आधा दर्जन नेता समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे जिन्हें पार्टी प्रत्याशी बनाने का निर्णय लेगी। सपा के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र यादव का दावा है कि राजग, जद (यू)-राजद गठगोड़ से बड़ी संख्या में लोग नाराज हैं। ये सभी लोग सपा के संपर्क में हैं। एनसीपी समेत कई अन्य नेताओं के साथ बातचीत चल रही है। उन्होंने संकेत दिया कि अखिलेश यादव की बिहार दौरे के दौरान इस  बातचीत के सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।
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रघुनाथ झा 17 को शामिल होंगे
एक जमाने में 'शेर-ए-बिहारÓ कहे जाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुनाथ झा 17 सितंबर को सपा कीऔपचारिक सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। उन्हें लखनऊ में मुलायम सिंह सदस्यता दिलायेंगे। दो दशक तक शिवहर विधानसभा से चुनाव जीतते रहे रघुनाथ झा इस बार अपने बेटे का टिकट दिलाने में नाकाम होने के बाद राजद को अलविदा कह चुके हैं। 

सपा के सिपहसालार

15 sept 2015

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-नावेद सिद्दीकी ललित कला के अध्यक्ष बनाए गए
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लखनऊ : सरकार ने समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अच्छेलाल सोनी को संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) का अध्यक्ष नियुक्त किया है। इस पद का काम देख रहे नावेद सिद्दीकी को अब ललित कला अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कुशीनगर के मूल निवासी अच्छेलाल लंबे समय से समाजवादी पार्टी की सांस्कृतिक गतिविधियों को संचालित करते रहे हैं। उन्होंने पार्टी के लिए कई गीत लिखे और गाये भी हैं। विजय यादव को एसएनए का उपाध्यक्ष बनाया गया है। वहीं हाजी इकराम कुरैशी को समाज कल्याण निर्माण निगम का सलाहकार नियुक्त किया गया है।

Tuesday 15 September 2015

एनएसए कार्यवाही 26-09-2013

एन0एस0ए0 के अन्तर्गत कार्यवाही
दिनांक 26-09-2013
जनपद मुजफ्फरनगर
1-मुकर्रम निवासी ग्राम कवाल थाना जानसठ जनपद मुजफ्फरनगर
2-विक्रम सैनी निवासी ग्राम कवाल थाना जानसठ जनपद मुजफ्फरनगर
जनपद शामली
1-राधे श्याम पुत्र शीतला प्रसाद मो0 नन्दू प्रसाद कस्बा व थाना कोतवाली जनपद शामली
2-घनश्याम पुत्र शीतला प्रसाद नि0 मो0 नन्दू प्रसाद कस्बा व थाना कोतवाली जनपद शामली
3-इसरार पुत्र इलियास नि0 मो0 तिमरसा कस्बा व थाना कोतवाली जनपद शामली
4-श्री सुरेश राणा मा0 विधायक भवन जनपद शामली
जनपद सहारनपुर
1-वीरेन्द्र सिंह पुत्र संजीत सिंह नि0 मिरगपुर थाना देवबंद जनपद सहारनपुर
जनपद बागपत
1-अमित पुत्र तेलपाल नि0 ग्राम वाजिदपुर थाना बड़ौत जनपद बागपत
2-सुबोध पुत्र ब्रहमपाल नि0 ग्राम वाजिदपुर थाना बड़ौत जनपद बागपत
3-ओम प्रकाश पुत्र सुरेश नि0 ग्राम वाजिदपुर थाना बड़ौत जनपद बागपत
4-प्रमोद पुत्र जनेश्वर नि0 वाजिदपुर थाना बड़ौत जनपद बागपत
जनपद मेरठ
1-मनोज पुत्र सहेन्द्र नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
2-मोनू पुत्र तेजपाल नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
3-प्रशांत पुत्र अरविन्द नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
4-अश्वनी पुत्र नरेन्द्र नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
5-राहुल उर्फ नन्दू पुत्र विनोद नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
6-विकास पुत्र राजवीर नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
7-सोनू पुत्र तेजपाल नि0 ग्राम निलोहा थाना मवाना जनपद मेरठ
8-श्री संगीत सोम मा0 विधायक सरधना जनपद मेरठ

आमजगढ़ की जनता



1978 में आजमगढ़ के उपचुनाव में कांग्रेस ने पहली बार महिला प्रत्याशी मोहसिना किदवई को चुनाव मैदान में उतारा, जो 1975-77 में उत्तर प्रदेश शासन में लघु उद्योग कैबिनेट मंत्री थी. एंटी कांग्रेस लहर के बावजूद आमजगढ़ की जनता ने महिला प्रत्याशी मोहसिना किदवई को चुनाव जीता दिया. इसके बाद कांग्रेस ने 1984 में पूर्वाचल की करीब पांच संसदीय क्षेत्रों से महिला प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा. सिर्फ चंदौली से चंद्रा त्रिपाठी ही जीत सकीं. क्योंकि वह पंडित कमलापति त्रिपाठी की बहू व लोकपति की पत्नी थीं. पूर्वाचल में पंडित जी की अच्छी साख थी. इस जीत के पीछे कहीं-कहीं यही साख कारगर रही. इसके बाद 1996 में सपा ने एक नया प्रयोग करते हुए भदोही-मिर्जापुर से दस्यु सुंदरी फूलन देवी को मैदान में उतारा, जो छोटी जाति से आती थी. फूलन देवी यहां से चुनाव जीत गयी.
जानकारों का मानना था कि इस संसदीय क्षेत्र में छोटी जातियों की संख्या अधिक होने का लाभ उन्हें मिला था. इसके बाद 1999 में वह सपा के बैनर तले फिर चुनाव जीत गयीं. इसके अलावा बांसगांव से सपा की सुभावती पासवान भी संसद में पहुंचने में कामयाब रहीं. इसके बाद 2004 व 2009 में लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुआ, लेकिन कोई महिला संसद में नहीं पहुंची. क्योंकि इन दोनों चुनावों में पूर्वाचल की कई सीटों से बाहुबली मैदान में आ गये. आजमगढ़ से रमाकांत यादव, मछलीशहर से उमाकांत यादव, गाजीपुर से मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी, जौनपुर से धनंजय सिंह, वाराणसी से मुख्तार अंसारी आदि. अब इन बाहुबलियों के सामने कोई महिला खड़ी होना तो दूर चुनाव कैसे लड़ेगी. यह हम सभी जानते हैं. अभी हाल ही में एक जनसभा में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने महिलाओं से राजनीति में आने व लोस चुनाव लड़ने की अपील की थी.
पूर्वाचल के नक्शे में 17 जिलें वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, भदोही, सोनभद्र, मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीर नगर व सिद्धार्थ नगर दिखेंगे. इन जिलों में लगभग 23 लोकसभा क्षेत्र व 117 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. अगर इन जिलों से संबंधित संसदीय क्षेत्र के इतिहास को देखेंगे तो आजमगढ़ से 1978 में कांग्रेस से एक बार मोहसिना किदवई, भदोही-मिर्जापुर से 1996 व 1999 में सपा से फूलन देवी, चंदौली से 1984 में कांग्रेस से चंद्रा त्रिपाठी और बांसगांव से 1996 में सपा की सुभावती पासवान ही लोकसभा की सदस्य बन सकीं, जिसमें से फूलन देवी की हत्या कर दी गयी, चंद्रा त्रिपाठी का निधन हो गया. मोहसिना किदवई हज कमेटी की चेयरमैन व राज्यसभा से सांसद हैं. आजादी के बाद 1952 से लेकर 2009 तक 15 बार लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुआ, लेकिन इतने लम्बे संसदीय इतिहास में सिर्फ चार महिलाएं ही संसद में पहुंच सकी,ं जो उनकी आबादी के हिसाब से काफी कम है. ऐसा नहीं है कि महिला नेताओं की संख्या पूर्वाचल की धरती पर कम रही हो. देश में एंटी कांग्रेस की लहर 1977 से शुरू हुई.
1977 में 6वीं आम चुनाव में पूर्वाचल की चंदौली सीट से कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी चंद्रा त्रिपाठी को मैदान में उतरा था, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ माहौल होने के चलते वह बीएलडी के नरसिंह से करीब 2,04,416 वोट से चुनाव हार गयीं. 1977 में जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनी, लेकिन बीच में ही सरकार गिर गयी और 1980 में 7वां आम चुनाव हुआ. इस चुनाव में भी पूर्वाचल से जुड़े संसदीय क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर रही. सिर्फ पडरौना   सीट से निर्दल के रूप में एक महिला प्रत्याशी ने चुनाव लड़ा, जिसे हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1978 में आजमगढ़ के उपचुनाव में कांग्रेस ने मोहसिनया किदवई को मैदान में उतारा. उन्होंने जीत दर्ज करते हुए पहली बार संसद में आजमगढ़ के साथ पूर्वाचल की प्रतिनिधि के रूप में संसद में उपस्थिति दर्ज करायी.
1984 में 8वां लोकसभा का चुनाव सम्पन्न हुआ. चंदौली से कांग्रेस ने फिर चंद्रा त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया. इस बार चंद्रा त्रिपाठी ने पार्टी का परचम लहराया. उन्होंने सिटिंग सांसद निहाल सिंह को 51101 वोटों से हराया. निर्दल मुन्नी अलिस चंदन को सिर्फ 1758 वोट ही मिला. इसके अलावा खलिलाबाद से निर्दल उषा को 4411 मत मिले, बलिया से कमलारानी सिंह को 2185 मत ही मिला. 1989 के 9वें आम चुनाव में गाजीपुर से निर्दल सयैदा ने 2596, सलेमपुर से निर्दल राजपति को 3488, महाराजगंज से अंसारी को 4888, खलिलाबाद से निर्दल उषा को 5152 वोट मिले थे. चंदौली से निर्दल चंद्रा देवी पर 1477 व सात्रिती पर 1041 वोटरों ने विश्वास जताया था. देवरिया से कांग्रेस ने शशि शर्मा को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह जद के राजमंगल से हार गयीं. वह दूसरे नम्बर थीं और 145870 मत प्राप्त किये थे. 1991 में सम्पन्न हुए 10वें लोकसभा चुनाव में डुमरियागंज से कांग्रेस ने मोहसिना किदवई को मैदान में उतारा, लेकिन वह भाजपा के रामपाल को शिकस्त नहीं दे सकीं. 139631 वोट पाकर किदवई दूसरे तथा आईसीएस की सीमा मुस्तफा 49553 मत पाकर चौथे स्थान पर रहीं. इसके अलावा कांग्रेस ने पडरौना से कुंवरानी मोहिनी देवी (42436 मत) व देवरिया से फिर शशि शर्मा (59834 मत) को उम्मीदवार बनाया था. खलिलाबाद से निर्दल उषा देवी को 2285 व चंदौली से जेएनपी की सावित्री को सिर्फ 843 मत ही मिल थे.
1996 के 11वें लोकसभा चुनाव में डूमरियागंज से फिर कांग्रेस की ओर से मोहसिना किदवई, निर्दल सीमा मुस्तफा, रफिया खातून व शिवपति देवी ने भाग्य आजमाया, लेकिन   सफलता नहीं मिली. खलिलाबाद से निर्दल उषा पांडेय, बांसगांव से सपा की ओर से सुभावति पासवान, गोरखपुर से निर्दल दुर्गावति व त्रिवेनी गांधी, देवरिया से कांग्रेस से शशि शर्मा, चंदौली से निर्दल कमला, वाराणसी से निर्दल मुस्तरी, कृष्णा निगम व मदिना बेगम, रार्बट्सगंज से अपना दल की रीता, मिर्जापुर से सपा की फूलन देवी, निर्दल जयश्री देवी व रमज्ञा देवी ने चुनाव लड़ा. इस बार सिर्फ सपा की दो प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. बांसगांव से सुभावति पासवान व मिर्जापुर से फूलन देवी ने पार्टी का परचम लहराया. 1998 के 12वें आम चुनाव में बांसगांव से सपा ने सीटिंग सांसद सुभावति पासवास व मिर्जापुर से फूलन देवी को फिर प्रत्याशी बनाया, लेकिन इस बार दो महिला प्रत्याशी हार गयीं. दोनों सीटों पर जहां भाजपा ने परचम लहराया, वहीं अपना दल की महिला प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गयी थी. रार्बट्सगंज से अपना दल की रीता व निर्दल सविता ने चुनाव लड़ा.
केंद्र में बनी राजग की सरकार सिर्फ 13 माह के बाद गिर गयी और 1999 में आम चुनाव फिर से हुआ. खलिलाबाद से एजेबीपी से मतता, बांसगांव से सपा की सुभावति पासवास, गोरखपुर से निर्दल पुष्पा देवी, महराजगंज से बसपा से तलत अजीज, घोसी से कांग्रेस से सुधा राय व निर्दल निर्मला राय, लालगंज से कांग्रेस की ओर से लालती देवी, मछलीशहर से निर्दल तारावति पटेल, मिर्जापुर से सपा की ओर से फूलन देवी व एजेबीपी से सुनीता ने चुनाव लड़ा. सिर्फ मिर्जापुर से सपा प्रत्याशी फूलन देवी ने ही चुनाव जीता.   2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में 9 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था, लेकिन सफलता किसी को नहीं मिली.
केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी. इसके बाद 2009 में 15वां लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुआ. इस बार पूर्वाचल से जुड़ी संसदीय सीट से करीब 15 महिला प्रत्याशियों ने किस्मत आजमायी, लेकिन सफलता किसी को नहीं मिली. हालांकि लालगंज भाजपा की नीलम सोनकर, जौनपुर से भाजपा प्रत्याशी सीमा व घोसी से कांग्रेस प्रत्याशी सुधा राय ने चुनाव अच्छा लड़ा. बाकी महिला प्रत्याशियों ने सिर्फ उपस्थिति ही दर्ज करायी. हालांकि यह सारी चीजें बीते समय की, लेकिन संभावना व उम्मीद हमेशा रहती है. पांच साल बाद एक बार फिर आम चुनाव होने वाला है. इन पांच वर्षो में बहुत कुछ बदला है. राजनीतिक समीकरण के साथ अपने अधिकारों व महत्व को लेकर महिलाएं काफी जागरूक हुई हैं. आने वाले आम चुनाव का रिजल्ट एक बार फिर महिलाओं की उपस्थिति दर्शायेगा.

दबाव का दर्द खुलकर छलका


- दबाव का दर्द खुलकर छलका जिस पर चढ़ाया सियासी मुलम्मा
-कहा, एक मुख्यमंत्री प्रेशर में हाफ सेंचुरी पूरी करने से पहले ही भाग गए
, लखनऊ:...'भाग दौड़, ऊपर से हर पल प्रेशर! आप नहीं जानते, सीएम पर कैसे-कैसे प्रेशर होते हैं।Ó सियासी थपेड़ों से मुकाबिल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन जुमलों के सहारे दिल का गुबार निकाला, फिर दर्द पर सियासी मुलम्मा चढ़ाते हुए बोले-एक मुख्यमंत्री तो प्रेशर में पचासा पूरा नहीं कर सके और भाग खड़े हुए। निशाना, अरविन्द केजरीवाल की ४९ दिन की सरकार की ओर था। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को लोकसभा का चुनाव जनता लड़ाएगी। जहां भ्रष्टाचार हो रहा हो,उसका खुलासा करें, कार्रवाई होगी।
दरअसल, शहरी स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत के लिए गुरुवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के खुले मैदान में समारोह आयोजित था। जिसमें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लेना था, वक्त शाम चार बजे का तय था। लेकिन मुख्यमंत्री साढ़े पांच बजे वहां पहुंचे। ये ठंड का असर  था इंतजार का, पैरामेडिकल के कुछ छात्र जाने के उपक्रम में हुए....तो अधिकारियों ने उन्हें बैठा दिया। मुख्यमंत्री की बारी आयी तो उन्होंने योजना और स्वास्थ्य महकमे की तारीफ करने के बाद अपना गुबार भी निकाला। कहा कि सुबह से निकला हूं। सदन गया। वहां बलिया गया, जो बिहार की सीमा से लगा है। लौटने में थोड़ी देर हो गयी। आप नहीं जानते कि सीएम पर कितने प्रेशर होते हैं। कैसे-कैसे प्रेशर होते हैं। फिर इस दर्द को सियासी जामा पहनाते हुए बोले कि-एक मुख्यमंत्री तो प्रेशर में आधी सेंचुरी से पहले ही भाग गए। फिर छात्रों की ओर मुखातिब हुए कहा शाम होने पर चिडिय़ां भी घोसलों की ओर लौट पड़ती हैं, आप को भी देर हो रही है। ज्यादा नहीं बोलूंगा और स्वास्थ्य संदेश वाहिनी को उसकी मंजिल की ओर रवाना करने पहुंचे।
यहां पत्रकारों के सवालों के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि समाजवादी पार्टी को लोकसभा का चुनाव जनता लड़ाएगी। वह सब देख रही है। जहां अच्छा काम हो रहा है, उसे बताएं। जहां करप्शन हो रहा है, उसे भी उजागर करें। समाजवादी य ह मानते हैं कि खामियां सामने नहीं आएंगी तो दूर भी नहीं होगी। इसलिए करप्शन को भी  उजागर कीजिए, मगर अच्छा काम को अच्छा भी कहिए। 

मुलायम का वास्ता

सपा अध्यक्ष ने इटावा के बाद इसे अपना दूसरा घर बताते हुए यादव बहुल मैनपुरी की सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी की जीत के लिए इज्जत का वास्ता दिया है। सभी चार विधानसभा सीटों पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है। सपा के गढ़ को चुनौती इस विधानसभा में उनकी पार्टी की सदस्य रही लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी संध्या कटारिया दे रही हैं तो दूसरी ओर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सच्चिदानंद महाराज भी सामने डटे हैं।
मैनपुरी जिले की चार विधानसभा सीटों के लिए पांचवे चरण में २३ फरवरी को मतदान होना है। चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों ने पूरी शक्ति लगा दी है। चारों विधानसभा क्षेत्र में कुल ११लाख ५१हजार ९९१ मतदाता है। इनमें युवा मतदाता पांच लाख हैं जिन्हे हाल ही में वोट डालने का अधिकार हासिल हुआ है।
मैनपुरी जिले में पिछले चुनाव में पांच विधानसभा क्षेत्र थे। परिसीमन के बाद घिटोर विधानसभा सीट को समाप्त कर दिया गया। अब मैनपुरी, किशनी, भोगांव और करहल विधान सीट है। मैनपुरी सपा के गढ़ के रुप में जाना जाता है। करहल, किशनी और भोगांव सीट विधानसभा के पिछले चुनाव में सपा ने ही जीती थीं।
इस बार सपा प्रत्याशी प्रत्येक सीट पर कडे़ संघर्ष में हैं। इसका कारण समाजवादी पार्टी के बागी नेता ही है। मैनपुरी विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में भाजपा के अशोक चौहान जीते थे। इस बार भाजपा ने नरेन्द्र सिंह राठौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा ने राजकुमार यादव उर्फ राजू यादव पर अपना दॉव खेला है।
सपा के कई नेताओं को राजू यादव की उम्मीदवारी पसन्द नहीं आई और उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी। अब सपा के बागी प्रो. के.सी. यादव कांग्रेस के प्रत्याशी है। सीधा सादा व्यक्तित्व भी उन्हें सपा, भाजपा और बसपा के साथ संघर्ष में ले आया है।
करहल विधानसभा सीट से बसपा सरकार में मंत्री जयवीर सिंह इस सीट पर पहली बार संघर्षरत है। सपा ने अपने वर्तमान विधायक सोबरन सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन यहॉ भी मुलायम सिंह को अपनों का ही विरोध झेलना पड़ रहा है। सपा के बागी अनिल यादव जहॉ भाजपा प्रत्याशी हैं वहीं उर्मिला यादव कांग्रेस से चुनाव मैदान में है।
सबसे खास बात यह है कि उर्मिला यादव मुलायम सिंह की रिश्ते में समधिन भी हैं और खत्म हुई घिरोर सीट से दो बार विधायक भी रह चुकी हैं। यहां भी सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस में चतुष्कोणीय संघर्ष है।
किशनी सीट से सपा की बागी वर्तमान विधायक सन्ध्या कठेरिया इस बार हाथी की सवारी कर पहली बार यहां बसपा का खाता खोलने को बेताब हैं। उनका मुख्य मुकाबला सपा के बृजेश कठेरिया से है। सपा, बसपा में कांटे की टक्कर है। भाजपा से सुनील जाटव व कांग्रेस से रामसिंह भी अपनी ताकत चुनाव जीतने में लगा रहे हैं।
भोगांव सीट पर भाजपा के सच्चिदानन्द महाराज के चुनाव मैदान में आने से और लोध बाहुल्य इस सीट पर उमा भारती के प्रचार के बाद यहां महाराज और सपा के आलोक शाक्य के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला है। साक्षी महाराज विवादों में रहे हैं लेकिन इलाके में उनकी अपनी साख है। लोध बहुल इस इलाके में उमा भारती प्रचार करने आई थीं।
मैनपुरी में भाजपा के राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी उमा भारती, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, सतपाल महाराज, सपा के मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती यहां चुनावी सभाएं कर चुकी हैं। नेताओं ने भ्रष्टाचार, महंगाई, साम्प्रदायिकता, कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, किसानों की समस्या और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है। वायदे तमाम हुए हैं। मैनपुरी आजादी के ६३ वर्ष बाद भी पिछडे जिलों में शुमार है जबकि सपा प्रमुख यहॉ से सांसद हैं और मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। लोगों में भारी पीडा है। सपा सरकार के पिछले कार्यकाल में ६०० करोड़ रुपए मैनपुरी को आदर्श जिला बनाने के लिए मंजूर हुए हैं। मैनपुरी तो आदर्श नहीं बना पर ६०० करोड़ रुपए कहां गया इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
टिकट वितरण के ठीक बाद कांग्रेस के तीन युवा चेहरे पार्टी से किनारा करके चुनाव मैदान में उतरकर पार्टी प्रत्याशी के समक्ष परेशानी खड़े कर रहे हैं। युवा कांग्रेस में पदाधिकारी रहे सतीश नागर (नट) अपनी बिरादरी के वोटों में सेंधमारी के लिए लोकमंच के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे हैं, वहीं टिकट के लिए आखिरी वक्त तक जद्दोजहद करते रहे पारपट्टी के उदी गांव निवासी जोगेंदर सिंह भदौरिया, तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के रुप में अपने क्षेत्र के ठाकुर बिरादरी के मतदाताओं को कांग्रेस से खींचकर अपने पक्ष में लाने में जुटे हैं।
पिछले एक डेढ़ वर्ष तक टिकट की आशा में कांग्रेस में संघर्षरत रहे बृजेंद्र कुशवाहा कांग्रेस से किनारा करके सपा में चले गए हैं। ठीक चुनाव के वक्त कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रबंधन में फैली अफरा तफरी ही इसकी जिम्मेदार बताई जा रही है।
जिले की तीसरी और नए परिसीमन के बाद सुरक्षित बना दी गई भरथना विधानसभा सीट पर भी मुकाबला इतना कठिन है कि कुछ भी कह पाने की स्थिति में कोई नही है।
सपा ने सौम्य और अच्छी छवि वाली पूर्व विधायक सुखदेवी वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। बसपा की टिकट वितरण नीति से भरथना सुरक्षित सीट पर भी प्रत्याशी के मामले में पार्टी के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को अचंभे में डालने का काम किया है। यहां राघवेन्द्र गौतम भरथना को प्रत्याशी बना दिया गया है।