सपा अध्यक्ष ने इटावा के बाद इसे अपना दूसरा घर बताते हुए यादव बहुल मैनपुरी की सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी की जीत के लिए इज्जत का वास्ता दिया है। सभी चार विधानसभा सीटों पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है। सपा के गढ़ को चुनौती इस विधानसभा में उनकी पार्टी की सदस्य रही लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी संध्या कटारिया दे रही हैं तो दूसरी ओर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सच्चिदानंद महाराज भी सामने डटे हैं।
मैनपुरी जिले की चार विधानसभा सीटों के लिए पांचवे चरण में २३ फरवरी को मतदान होना है। चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों ने पूरी शक्ति लगा दी है। चारों विधानसभा क्षेत्र में कुल ११लाख ५१हजार ९९१ मतदाता है। इनमें युवा मतदाता पांच लाख हैं जिन्हे हाल ही में वोट डालने का अधिकार हासिल हुआ है।
मैनपुरी जिले में पिछले चुनाव में पांच विधानसभा क्षेत्र थे। परिसीमन के बाद घिटोर विधानसभा सीट को समाप्त कर दिया गया। अब मैनपुरी, किशनी, भोगांव और करहल विधान सीट है। मैनपुरी सपा के गढ़ के रुप में जाना जाता है। करहल, किशनी और भोगांव सीट विधानसभा के पिछले चुनाव में सपा ने ही जीती थीं।
इस बार सपा प्रत्याशी प्रत्येक सीट पर कडे़ संघर्ष में हैं। इसका कारण समाजवादी पार्टी के बागी नेता ही है। मैनपुरी विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में भाजपा के अशोक चौहान जीते थे। इस बार भाजपा ने नरेन्द्र सिंह राठौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा ने राजकुमार यादव उर्फ राजू यादव पर अपना दॉव खेला है।
सपा के कई नेताओं को राजू यादव की उम्मीदवारी पसन्द नहीं आई और उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी। अब सपा के बागी प्रो. के.सी. यादव कांग्रेस के प्रत्याशी है। सीधा सादा व्यक्तित्व भी उन्हें सपा, भाजपा और बसपा के साथ संघर्ष में ले आया है।
करहल विधानसभा सीट से बसपा सरकार में मंत्री जयवीर सिंह इस सीट पर पहली बार संघर्षरत है। सपा ने अपने वर्तमान विधायक सोबरन सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन यहॉ भी मुलायम सिंह को अपनों का ही विरोध झेलना पड़ रहा है। सपा के बागी अनिल यादव जहॉ भाजपा प्रत्याशी हैं वहीं उर्मिला यादव कांग्रेस से चुनाव मैदान में है।
सबसे खास बात यह है कि उर्मिला यादव मुलायम सिंह की रिश्ते में समधिन भी हैं और खत्म हुई घिरोर सीट से दो बार विधायक भी रह चुकी हैं। यहां भी सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस में चतुष्कोणीय संघर्ष है।
किशनी सीट से सपा की बागी वर्तमान विधायक सन्ध्या कठेरिया इस बार हाथी की सवारी कर पहली बार यहां बसपा का खाता खोलने को बेताब हैं। उनका मुख्य मुकाबला सपा के बृजेश कठेरिया से है। सपा, बसपा में कांटे की टक्कर है। भाजपा से सुनील जाटव व कांग्रेस से रामसिंह भी अपनी ताकत चुनाव जीतने में लगा रहे हैं।
भोगांव सीट पर भाजपा के सच्चिदानन्द महाराज के चुनाव मैदान में आने से और लोध बाहुल्य इस सीट पर उमा भारती के प्रचार के बाद यहां महाराज और सपा के आलोक शाक्य के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला है। साक्षी महाराज विवादों में रहे हैं लेकिन इलाके में उनकी अपनी साख है। लोध बहुल इस इलाके में उमा भारती प्रचार करने आई थीं।
मैनपुरी में भाजपा के राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी उमा भारती, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, सतपाल महाराज, सपा के मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती यहां चुनावी सभाएं कर चुकी हैं। नेताओं ने भ्रष्टाचार, महंगाई, साम्प्रदायिकता, कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, किसानों की समस्या और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है। वायदे तमाम हुए हैं। मैनपुरी आजादी के ६३ वर्ष बाद भी पिछडे जिलों में शुमार है जबकि सपा प्रमुख यहॉ से सांसद हैं और मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। लोगों में भारी पीडा है। सपा सरकार के पिछले कार्यकाल में ६०० करोड़ रुपए मैनपुरी को आदर्श जिला बनाने के लिए मंजूर हुए हैं। मैनपुरी तो आदर्श नहीं बना पर ६०० करोड़ रुपए कहां गया इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
टिकट वितरण के ठीक बाद कांग्रेस के तीन युवा चेहरे पार्टी से किनारा करके चुनाव मैदान में उतरकर पार्टी प्रत्याशी के समक्ष परेशानी खड़े कर रहे हैं। युवा कांग्रेस में पदाधिकारी रहे सतीश नागर (नट) अपनी बिरादरी के वोटों में सेंधमारी के लिए लोकमंच के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे हैं, वहीं टिकट के लिए आखिरी वक्त तक जद्दोजहद करते रहे पारपट्टी के उदी गांव निवासी जोगेंदर सिंह भदौरिया, तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के रुप में अपने क्षेत्र के ठाकुर बिरादरी के मतदाताओं को कांग्रेस से खींचकर अपने पक्ष में लाने में जुटे हैं।
पिछले एक डेढ़ वर्ष तक टिकट की आशा में कांग्रेस में संघर्षरत रहे बृजेंद्र कुशवाहा कांग्रेस से किनारा करके सपा में चले गए हैं। ठीक चुनाव के वक्त कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रबंधन में फैली अफरा तफरी ही इसकी जिम्मेदार बताई जा रही है।
जिले की तीसरी और नए परिसीमन के बाद सुरक्षित बना दी गई भरथना विधानसभा सीट पर भी मुकाबला इतना कठिन है कि कुछ भी कह पाने की स्थिति में कोई नही है।
सपा ने सौम्य और अच्छी छवि वाली पूर्व विधायक सुखदेवी वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। बसपा की टिकट वितरण नीति से भरथना सुरक्षित सीट पर भी प्रत्याशी के मामले में पार्टी के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को अचंभे में डालने का काम किया है। यहां राघवेन्द्र गौतम भरथना को प्रत्याशी बना दिया गया है।
मैनपुरी जिले की चार विधानसभा सीटों के लिए पांचवे चरण में २३ फरवरी को मतदान होना है। चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों ने पूरी शक्ति लगा दी है। चारों विधानसभा क्षेत्र में कुल ११लाख ५१हजार ९९१ मतदाता है। इनमें युवा मतदाता पांच लाख हैं जिन्हे हाल ही में वोट डालने का अधिकार हासिल हुआ है।
मैनपुरी जिले में पिछले चुनाव में पांच विधानसभा क्षेत्र थे। परिसीमन के बाद घिटोर विधानसभा सीट को समाप्त कर दिया गया। अब मैनपुरी, किशनी, भोगांव और करहल विधान सीट है। मैनपुरी सपा के गढ़ के रुप में जाना जाता है। करहल, किशनी और भोगांव सीट विधानसभा के पिछले चुनाव में सपा ने ही जीती थीं।
इस बार सपा प्रत्याशी प्रत्येक सीट पर कडे़ संघर्ष में हैं। इसका कारण समाजवादी पार्टी के बागी नेता ही है। मैनपुरी विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में भाजपा के अशोक चौहान जीते थे। इस बार भाजपा ने नरेन्द्र सिंह राठौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा ने राजकुमार यादव उर्फ राजू यादव पर अपना दॉव खेला है।
सपा के कई नेताओं को राजू यादव की उम्मीदवारी पसन्द नहीं आई और उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी। अब सपा के बागी प्रो. के.सी. यादव कांग्रेस के प्रत्याशी है। सीधा सादा व्यक्तित्व भी उन्हें सपा, भाजपा और बसपा के साथ संघर्ष में ले आया है।
करहल विधानसभा सीट से बसपा सरकार में मंत्री जयवीर सिंह इस सीट पर पहली बार संघर्षरत है। सपा ने अपने वर्तमान विधायक सोबरन सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन यहॉ भी मुलायम सिंह को अपनों का ही विरोध झेलना पड़ रहा है। सपा के बागी अनिल यादव जहॉ भाजपा प्रत्याशी हैं वहीं उर्मिला यादव कांग्रेस से चुनाव मैदान में है।
सबसे खास बात यह है कि उर्मिला यादव मुलायम सिंह की रिश्ते में समधिन भी हैं और खत्म हुई घिरोर सीट से दो बार विधायक भी रह चुकी हैं। यहां भी सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस में चतुष्कोणीय संघर्ष है।
किशनी सीट से सपा की बागी वर्तमान विधायक सन्ध्या कठेरिया इस बार हाथी की सवारी कर पहली बार यहां बसपा का खाता खोलने को बेताब हैं। उनका मुख्य मुकाबला सपा के बृजेश कठेरिया से है। सपा, बसपा में कांटे की टक्कर है। भाजपा से सुनील जाटव व कांग्रेस से रामसिंह भी अपनी ताकत चुनाव जीतने में लगा रहे हैं।
भोगांव सीट पर भाजपा के सच्चिदानन्द महाराज के चुनाव मैदान में आने से और लोध बाहुल्य इस सीट पर उमा भारती के प्रचार के बाद यहां महाराज और सपा के आलोक शाक्य के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला है। साक्षी महाराज विवादों में रहे हैं लेकिन इलाके में उनकी अपनी साख है। लोध बहुल इस इलाके में उमा भारती प्रचार करने आई थीं।
मैनपुरी में भाजपा के राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी उमा भारती, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, सतपाल महाराज, सपा के मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती यहां चुनावी सभाएं कर चुकी हैं। नेताओं ने भ्रष्टाचार, महंगाई, साम्प्रदायिकता, कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, किसानों की समस्या और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है। वायदे तमाम हुए हैं। मैनपुरी आजादी के ६३ वर्ष बाद भी पिछडे जिलों में शुमार है जबकि सपा प्रमुख यहॉ से सांसद हैं और मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। लोगों में भारी पीडा है। सपा सरकार के पिछले कार्यकाल में ६०० करोड़ रुपए मैनपुरी को आदर्श जिला बनाने के लिए मंजूर हुए हैं। मैनपुरी तो आदर्श नहीं बना पर ६०० करोड़ रुपए कहां गया इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
टिकट वितरण के ठीक बाद कांग्रेस के तीन युवा चेहरे पार्टी से किनारा करके चुनाव मैदान में उतरकर पार्टी प्रत्याशी के समक्ष परेशानी खड़े कर रहे हैं। युवा कांग्रेस में पदाधिकारी रहे सतीश नागर (नट) अपनी बिरादरी के वोटों में सेंधमारी के लिए लोकमंच के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे हैं, वहीं टिकट के लिए आखिरी वक्त तक जद्दोजहद करते रहे पारपट्टी के उदी गांव निवासी जोगेंदर सिंह भदौरिया, तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के रुप में अपने क्षेत्र के ठाकुर बिरादरी के मतदाताओं को कांग्रेस से खींचकर अपने पक्ष में लाने में जुटे हैं।
पिछले एक डेढ़ वर्ष तक टिकट की आशा में कांग्रेस में संघर्षरत रहे बृजेंद्र कुशवाहा कांग्रेस से किनारा करके सपा में चले गए हैं। ठीक चुनाव के वक्त कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रबंधन में फैली अफरा तफरी ही इसकी जिम्मेदार बताई जा रही है।
जिले की तीसरी और नए परिसीमन के बाद सुरक्षित बना दी गई भरथना विधानसभा सीट पर भी मुकाबला इतना कठिन है कि कुछ भी कह पाने की स्थिति में कोई नही है।
सपा ने सौम्य और अच्छी छवि वाली पूर्व विधायक सुखदेवी वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। बसपा की टिकट वितरण नीति से भरथना सुरक्षित सीट पर भी प्रत्याशी के मामले में पार्टी के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को अचंभे में डालने का काम किया है। यहां राघवेन्द्र गौतम भरथना को प्रत्याशी बना दिया गया है।
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