Monday 30 May 2016

अखिलेश मंत्रिमंडल में फेरबदल के कयास फिर तेज

२९ मई २०१'६
-बुजुर्गों के स्थान पर युवा विधायक बन सकते हैं मंत्री
-पिता के स्थान पर पुत्रों को मंत्री बनाने की भी चर्चा
-राज्यसभा, एमएलसी चुनाव के बाद संभव है फेरबदल
लखनऊ : स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र के एमएलसी चुनाव के बाद से शुरू हुई अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। कहा जा रहा है कि चुनावी समर में कूदने से पहले राज्य के कुछ बुजुर्ग मंत्रियों को मार्ग-दर्शक की भूमिका सौंपकर युवा विधायकों को मंत्री का ओहदा मिल सकता है। कुछ मंत्रियों के विभागों में बदलाव भी संभव है। यह कवायद जून के दूसरे हफ्ते में संभावित है।
एमएलसी चुनावों के बाद अप्रैल माह में पहली बार अखिलेश मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना दिखी थी। उस समय बदलाव का खाका भी बन गया था, मगर तब समाजवादी पार्टी के रणनीतिकार युवा विधायकों को इतनी जल्दी मंत्रिमंडल में स्थान देने के विरोध में आ गये थे, जिसके चलते बदलाव टल गया था। अब नामित कोटे की एमएलसी सीटें भी भर गई हैं। राज्यसभा व विधान परिषद सीटों की नामांकन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है, जिससे अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में बदलाव की चर्चा ने फिर जोर पकड़ा है।
सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी के कुछ रणनीतिकार विधानसभा 2017 से पहले तीन कैबिनेट मंत्रियों को 'मार्ग-दर्शकÓ की भूमिका सौंपकर उनके स्थान पर नये लोगों को अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल कराने के हामी हैं। जिन मंत्रियों के बेटे विधायक हैं, उन मंत्रियों को मंत्रिमंडल से मुक्त कर उनके पुत्रों को हिस्सेदारी देने पर भी मंथन चल रहा है। फेरबदल में जातीय, धार्मिक समीकरण साधने का मुद्दा भी नेतृत्व के सामने है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि सरकार में ब्राह्मïणों को अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिली है। राज्यसभा, विधान परिषद के टिकट बंटवारे में मुसलमानों की हिस्सेदारी नहीं होने से उपजी नाराजगी पार्टी नेतृत्व के सामने है। सूत्रों का कहना है कि सपा नेतृत्व विधान परिषद सदस्यों को मंत्री बनाये रखने का पक्षधर नहीं है, वह विधायकों को मंत्री बनाने का तर्क दे रहा है। इस दिशा में कोई निर्णय नहीं हुआ है। राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव के बाद ही मंत्रिमंडल में फेरबदल होने की संभावना जतायी जा रही है।
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अखिलेश मंत्रिमंडल की स्थिति
मंत्रिमंडल में स्थान-     60
कैबिनेट मंत्रियों की संख्या-25
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)-10
राज्यमंत्री-                22
कुल मंत्रियों की संख्या-  57
रिक्त स्थान-              तीन

राज्यसभा, एमएलसी नामांकन- अमर सबसे अमीर, सेठ बे-कार (२५ मई को सपा, २८ को बसपा और ३० को कांग्रेस ने दाखिल किया परचा)



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-सपा के राज्यसभा प्रत्याशियों में सभी करोड़पति
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राज्यसभा के उम्मीदवारों में अमर सिंह सबसे अमीर हैं जबकि संजय सेठ के पास कार नहीं है। अमर सिंह के पास 131 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है जबकि संजय सेठ के पास तकरीबन 67 करोड़ रुपये संपत्ति है। बुधवार को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन करने वाले सातों प्रत्याशी करोड़पति हैं।
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दो साल में अमर की संपत्ति बढ़ी 35 करोड़
अमर सिंह की संपत्ति गत दो वर्ष में 96.16 करोड़ रुपये से बढ़कर 131.2 करोड़ रुपये हो गयी है। अमर सिंह से अधिक संपत्ति पत्नी पंकजा कुमारी सिंह के पास दर्शायी है। नामांकन पत्र दाखिल करते समय अमर सिंह के पास कुल 62.50 करोड़ रुपये की चल अचल संपत्ति दर्शायी गयी है तो पत्नी के पास 68.52 करोड़ रुपये की संपत्ति होना बताया गया। वर्ष 2014 में अमर सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था तब उन्होंने अपने पास 56.16 करोड़ तथा पत्नी के पास 40 करोड़ रुपये की चल अचल संपत्ति हलफनामे में दर्शायी थी। विधि स्नातक अमर सिंह के नाम एक टोयटा लेक्सस व मारूति स्विफ्ट कार है जबकि पत्नी के नाम एक मर्सडीज गाड़ी है। करीब तीन करोड़ रुपये के जेवरात और दो लाख 54 हजार रुपये बैंक बैलेंस पत्नी के नाम है। अमर सिंह के पास 5 लाख 91 हजार की फिक्स डिपोजिट मौजूद है।
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64 करोड़ संपत्ति, 27 करोड़ कर्ज
पहली बार राजनीति में दाखिल हो रहे बिल्डर संजय सेठ ने अपने हलफनामे में कुल 64 करोड़ की संपत्ति होने और 27 करोड़ कर्ज होने का जिक्र किया है। उनके पास 8.81 लाख रुपये पत्नी लीना सेठ के पास 2.28 लाख और बेटी रिया के पास 12 हजार रुपये नकद हैं। इन तीनों के बैंक खातों व निवेश के रूप में 5.94 करोड़ रुपये हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने वाले संजय के पास कृषि भूमि नहीं है। गुडग़ांव में पांच करोड़ का एक भूखंड और दिल्ली में 20 करोड़ की आवासीय संपत्ति है। संजय के पास व्यावसायिक संपत्ति नहीं है हालांकि उनकी पत्नी के पास लखनऊ में राणा प्रताप मार्ग, लालबाग में तीन व्यावसायिक संपत्ति हैं, जिनकी कीमत सिर्फ 3.75 करोड़ दिखायी गयी है। पति-पत्नी के पास लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग पर दो मकान हैं। 20 हजार 412 वर्ग फुट के पहले मकान की कीमत 12.50 करोड़ व 4500 वर्ग फुट के दूसरे मकान की कीमत सिर्फ तीन करोड़ रुपये बतायी गयी है। इसके अलावा महात्मा गांधी मार्ग पर एक लाख 38 हजार 521 वर्ग फुट का बंगला है, जिसकी कीमत पांच करोड़ दिखायी गयी है। इसके अतिरिक्त लखनऊ में सात करोड़ के दो आवास संजय के नाम और डेढ़ करोड़ का एक आवास पत्नी के नाम भी है। बीकाम पास संजय ने अपने खिलाफ कोई मुकदमा न होने की बात कही है।
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7.78 करोड़ के मालिक बेनी मगर ई- मेल नहीं
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा प्रत्याशी व पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा 7.78 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। दो बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा के पास कोई ई-मेल आइडी नहीं है। अलबत्ता उनके खिलाफ हत्या के प्रयास, दंगा भड़काने समेत छह धाराओं में दो मुकदमे दर्ज हैं। राज्यसभा सदस्य के नामांकन पत्र के साथ संलग्न हलफनामे के मुताबिक उनके पास साढ़े तीन लाख और उनकी पत्नी मालती देवी के पास 50 हजार रुपये नकद हैं। चार बैंक खातों में 52.70 लाख रुपये जमा हैं। उनके पास दस लाख 20 हजार मूल्य की तीन कारें व तीन लाख 24 हजार मूल्य के तीन असलहे (पिस्तौल, रायफल, बंदूक) भी हैं। बेनी के पास  45 हजार रुपये मूल्य की एक चेन व अंगूठी है, वहीं उनकी पत्नी के पास 1.36 लाख रुपये के जेवर हैं। उनके पास बाराबंकी जिले में विरासत की 97.08 लाख रुपये कीमत की कृषि भूमि है। उनके पास बाराबंकी में दो मकान सहित लखनऊ के गोमतीनगर में दो मकान भी हैं जिनकी कीमत 6.08 लाख रुपये बतायी गयी है। लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाले बेनी पर कोई कर्ज नहीं है।
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सुखराम के पास थर्टी कार्बाइन
सुखराम सिंह पर कोई मुकदमा नहीं है। लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी सुखराम असलहों के शौकीन हैं। अपने शपथ पत्र में उन्होंने बताया है कि उनके पास थर्टी एमएम की कार्बाइन और एक बंदूक है। पत्नी के पास रिवाल्वर है। सुखराम के पास कृषि भूमि और आवासीय संपत्ति भी है। पति-पत्नी के पास लखनऊ, गाजियाबाद और कानपुर में फ्लैट और अपार्टमेंट हैं। सुखराम ने खुद से दो करेाड़ 15 लाख रुपये की संपत्ति बनाई जबकि उनकी पत्नी ने एक करोड़ 59 लाख 50 हजार रुपये की संपत्ति बनायी है। सुखराम को विरासत में एक करोड़ 36 लाख 50 हजार रुपये की संपत्ति मिली है। कानपुर नगर के रतनलालनगर निवासी सुखराम सिंह ने वाहन के लिए एक लाख 15 हजार 222 रुपये का ऋण लिया है। उन पर बैंकों का कुल दायित्व तीन लाख 15 हजार 222 रुपये जबकि उनकी पत्नी और परिवारीजन पर 15 लाख 61 हजार रुपये का दायित्व है। सुखराम के पास 515 ग्राम सोना है जबकि पत्नी नीता के पास 700 ग्राम। सुखराम वोक्स वैगन-पोलो गाड़ी रखे हैं जबकि पत्नी टाटा सफारी। सुखराम ने आर्यन चौधरी से 13 लाख 91 हजार 142 और नीता सिंह से 11 लाख 73 हजार 813 रुपये ऋण लिए हैं। नीता सिंह ने आर्यन चौधरी से 12 लाख तीन हजार छह सौ रुपये ऋण ली हैं। कुंवर के पास टोयटा फाच्र्यूनर गाड़ी है।
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नागर के पास 25 करोड़ का बंगला
पश्चिमी उप्र में दूध के बड़े कारोबारी सुरेंद्र सिंह नागर ने हलफनामे में 2015-16 में आयकर रिटर्न में दर्शायी गई अपनी आमदनी 73.05 लाख रुपये और पत्नी की 1113979 बतायी है। उनके पास 54077 हजार रुपये और उनकी पत्नी के पास 12943 रुपये नकद है। उनका बैंक डिपाजिट 6.17 लाख रुपये, पत्नी का 79205 रुपये और तीन आश्रितों का कुल डिपाजिट 4.72 लाख रुपये है। बांड, शेयर, डिबेंचर व म्यूचुअल फंड में उन्होंने 99.49 लाख रुपये और राष्ट्रीय बचत योजना, पोस्टल सेविंग, बीमा पॉलिसियों में दो लाख रुपये का निवेश किया है। उन्होंने 8.53 करोड़ रुपये और उनकी पत्नी ने 1.91 करोड़ रुपये का पर्सनल लोन/एडवांस दिया है। उनकी पत्नी के पास 1.9 करोड़ रुपये और उनके एक आश्रित के पास 30 लाख रुपये के जेवर, बुलियन हैं। नागर, उनकी पत्नी व आश्रितों की कुल चल संपत्तियों का मूल्य 16.94 करोड़ रुपये है। इसमें से 11.62 करोड़ रुपये की चल संपत्ति नागर और 3.82 करोड़ रुपये की उनकी पत्नी के पास है। उनकी कुल अचल संपत्ति का मूल्य 28 करोड़ रुपये है। उनके पास बुलंदशहर में उनके गांव गुलावटी में जो जमीनें हैं, उनका वर्तमान मूल्य 1.28 करोड़ रुपये है। उनके पास बुलंदशहर में ही 1.07 लाख वर्ग फीट गैर कृषि भूमि है जिसकी मौजूदा कीमत 1.1 करोड़ रुपये है। ग्रेटर नोएडा में 5382 वर्ग फीट के उनके बंगले की कीमत तीन करोड़ रुपये और नई दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में साढ़े चार हजार वर्ग फीट के उनके बंगले की कीमत 25 करोड़ रुपये है। उनके उपर 3.02 करोड़ रुपये और उनकी पत्नी पर 50 लाख रुपये का कर्ज है।
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रेवती रमण के पास 17 लाख के गहने
पेशे से किसान समाजवादी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार और पूर्व मंत्री कुंवर रेवती रमण सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक हैं। कुंवर रेवती रमण  सिंह ने अपने शपथ पत्र में बताया है कि उनके पास सत्रह लाख के गहने हैं। खुद से उन्होंने तीन करोड़ 23 लाख 46 हजार रुपये संपत्ति अर्जित की जबकि दो करोड़ 95 हजार रुपये की संपत्ति विरासत में मिली। उन पर कोई ऋण नहीं है। कुंवर के पास इलाहाबाद के बरांव में अविभाजित कोठी है जबकि लखनऊ में गोमतीनगर के विनय खंड और फरीदाबाद के रिट्रीटफार्म में आवास है। कुंवर पर कोई मुकदमा भी नहीं है।
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कृषि, वकालत के साथ राजनीति भी पेशा
कांशीराम से राजनीति का ककहरा सीखने वाले विशंभर निषाद ंने अपने हलफनामे में कृषि राजनीति व वकालत को पेशा बताया है। उनके व उनकी पत्नी के पास 3.29 करोड़ की संपत्ति है। उनके पास तीन असलहे और उनकी पत्नी के पास पिस्टल है। विशंभर के पास 69.45 लाख की अचल संपत्ति और उनकी पत्नी के पास 1.38 करोड़ की अचल संपत्ति है। विशंभर पर 13.96 लाख का कर्ज भी है। उन पर तीन मुकदमे भी दर्ज हैं जिनमें दो धारा 188 के और एक आम्र्स एक्ट का है।
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 फिर एक मंच पर सपा का पुराना कुनबा
-गुटबाजी की आशंका से एक तबका बेचैन
-क्षेत्रीय क्षत्रप परिस्थिति के आकलन में जुटे
 लखनऊ  : पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह के राज्यसभा के लिए नामांकन करने के साथ समाजवादी पार्टी (सपा) का पुराना कुनबा फिर एक मंच पर तो आ गया है लेकिन इससे गुटबाजी में बढ़ोतरी की आशंका ने भी जन्म ले लिया है।
सपा के संस्थापक सदस्य रहे बेनी प्रसाद वर्मा ने पार्टी छोडऩे के बाद सियासी दल बनाया, कांग्रेस की सियासत में हिस्सेदारी की और गत दिनों फिर घर वापसी की। ऐसे ही सपा को 'मॉडर्नÓ शक्ल देने वाले अमर सिंह ने निकाले जाने के बाद अपनी पार्टी बनायी। रालोद के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ा और मुलायम सिंह के साथ दिली रिश्तों के चलते अब सदस्यता लेने की घोषणा के बगैर राज्यसभा का टिकट पा गए। बुधवार को दोनों ने पांच अन्य उम्मीदवारों के साथ राज्यसभा सदस्य के लिए नामांकन दाखिल किया। इसके साथ ही पुराना कुनबा फिर समाजवादी पार्टी के मंच पर आ गया। इन पर अब समाजवादी पार्टी के मिशन-2017 की कामयाबी का जिम्मा होगा मगर दिक्कत यह है कि एक और संस्थापक सदस्य आजम खां व पार्टी के रणनीतिकार प्रो.राम गोपाल यादव अलग-अलग कारणों से टिकट बंटवारे को लेकर रूठे हुए हैं। गुजरे पांच-छह सालों में इन्ही पुराने दिग्गजों पर हमले कर लोगों को एकजुट करते रहे क्षेत्रीय क्षत्रप अब सियासी अनहोनी की आशंका में है। इस मनोविज्ञान को भांपकर सियासी दिग्गज पार्टी में गुटबंदी बढऩे की आशंका जता रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रूठने-मनाने का सियासी मामला चलता रहेगा मगर पार्टी में नई रीति-नीति के आगाज की आशंका के साथ नफा-नुकसान का आकलन शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पुराने कार्यकर्ता अमर व बेनी की कार्यशैली से वाकिफ हैं, ऐसे में आशंका होना स्वाभाविक है। हालांकि वह यह भी जोड़ते हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव कार्यकर्ताओं का सम्मान सबसे ऊपर रखते आये हैं।
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 अमर व बेनी समेत 15 ने नामांकन कराया
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-राज्यसभा चुनाव के लिए सपा के सात उम्मीदवारों ने पर्चे भरे
-विधान परिषद के लिए बलराम,  बुक्कल सहित आठ ने किया नामांकन
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लखनऊ : उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए बुधवार को अमर सिंह व बेनी वर्मा समेत समाजवादी पार्टी के सात प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किए गए। वहीं विधान परिषद चुनाव के लिए माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव, बुक्कल नवाब सहित सपा के आठ उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र जमा कराया।
सपा महासचिव रामगोपाल यादव व शिवपाल यादव की उपस्थिति में राज्यसभा के लिए नामांकन करने वालों में संजय सेठ, सुखराम यादव, रेवती रमण सिंह, विशम्भर निषाद और सुरेंद्र नागर भी शामिल थे। जबकि विधान परिषद के लिए शतरुद्र प्रकाश, यशवंत सिंह, रामसुंदर दास निषाद, जगजीवन प्रसाद, कमलेश पाठक व रणविजय सिंह ने भी पर्चे दाखिल किये। विधान सभा के प्रमुख सचिव और पीठासीन अधिकारी प्रदीप दुबे ने बताया कि सभी उम्मीदवारों ने दो-दो सेट में नामांकन कराया है।
बुधवार को नामांकन का दूसरा दिन सपा के नाम रहा। विधान भवन के सेंट्रल हाल में सभी सपा प्रत्याशी एक साथ नामांकन पत्र जमा कराने पहुंचे। दोपहर 12.45 बजे सबसे पहले अमर सिंह ने पर्चा दाखिल किया। इस मौके पर उनकी पत्नी और दो बेटियां भी साथ थीं। इसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने पर्चा भरा, फिर कुंवर रेवती रमण सिंह, संजय सेठ, सुखराम यादव, विशंभर निषाद व सुरेंद्र नागर ने  एक-एक करके नामांकन कराया।
विधान परिषद चुनाव के लिए यशवंत सिंह, बलराम यादव, बुक्कल नवाब, राम सुंदर निषाद, रणविजय सिंह, कमलेश पाठक व जगजीवन प्रसाद ने नामांकन पत्र दाखिल कराया। इससे पहले सपा मुख्यालय पर उम्मीदवार व पार्टी नेता एकत्र हुए और मुलायम सिंह से मिलकर काफिले के रूप में विधानसभा की ओर कूच किया। नामांकन के दौरान वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खां की अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही।
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बसपा उम्मीदवार आज नामांकन करेंगे
बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गुरुवार को नामांकन कराएंगे। बसपा ने सतीश मिश्रा व अशोक सिद्धार्थ को राज्यसभा के लिए उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा व सुरेश कश्यप विधान परिषद के उम्मीदवार होंगे। चुनाव की अधिसूचना मंगलवार को जारी हुई थी लेकिन पहले दिन कोई चर्चा नहीं भरा गया था। नामांकन 31 मई तक कराए जाएंगे और जांच एक जून को होगी।
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 कांग्रेस के सिब्बल राज्यसभा, दीपक एमएलसी प्रत्याशी
लखनऊ : कयासों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उन्हें पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। सिब्बल 30 मई यानी सोमवार को पूर्वाह्न 10 बजे नामांकन करेंगे।
सिब्बल की उम्मीदवारी के साथ ही उप्र से राज्यसभा पहुंचने के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री, इमरान मसूद, कैप्टन सतीश शर्मा की दावेदारी खत्म हो गई है। उप्र कांग्रेस कमेटी के कम्युनिकेशन विभाग के वाइस चेयरमैन वीरेंद्र मदान ने बताया कि पार्टी ने कांग्रेस के प्रदेश महासचिव दीपक सिंह को विधान परिषद चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित किया है। दीपक अमेठी के शाहगढ़ ब्लॉक के पूर्व ब्लॉक प्रमुख और गांधी परिवार के करीबी हैं।
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 बसपा प्रत्याशियों ने किया नामांकन
-राज्यसभा सदस्य के लिए सतीश मिश्र व अशोक सिद्धार्थ ने भरा परचा
-विधान परिषद सदस्य के लिए भी तीन ने किए नामांकन
 लखनऊ : उत्तर प्रदेश कोटे की 11 राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए शनिवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सतीश चंद्र मिश्र व अशोक सिद्धार्थ ने नामांकन किया। विधान परिषद सदस्य के लिए दिनेश चंद्रा, अतर सिंह और सुरेश कश्यप ने परचा दाखिल किया।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, विधान परिषद में नेता विरोधी दल नसीमुद्दीन सिद्दीकी पार्टी के राज्यसभा व विधान परिषद प्रत्याशियों के साथ शनिवार दोपहर 12 बजे विधान भवन के राजर्षि टंडन सभागार में पहुंचे। सबसे पहले राज्यसभा सीट के प्रत्याशी के तौर पर सतीश चंद्र मिश्र ने प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे को नामांकन पत्र सौंपा। बसपा ने राज्यसभा के लिए मिश्र को तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है। मिश्र के बाद फर्रुखाबाद निवासी कई मंडलों के जोनल कोआर्डिनेटर व दक्षिण भारत के राज्यों के प्रभारी अशोक सिद्धार्थ ने राज्यसभा सदस्य के लिए नामांकन किया। राज्यसभा के प्रत्याशियों के नामांकन की कार्यवाही पूरी होने के बाद विधान परिषद सदस्यों की नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई।  पहले अतर सिंह फिर सुरेश कश्यप और आखिर में दिनेश चन्द्र ने नामांकन कराया।
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राज्यसभा के नौ, परिषद के 11 परचे दाखिल
बसपा प्रत्याशियों के नामांकन के साथ राज्यसभा की 11 सीटों के लिए दावेदारी करने वालों की संख्या नौ और विधान परिषद की 13 सीटों के नामांकन कराने वालों की संख्या 11 हो गयी है। नामांकन की अधिसूचना जारी होने के बाद 25 मई को समाजवादी पार्टी के अमर सिंह, बेनी वर्मा, बिल्डर संजय सेठ समेत सात लोगों ने राज्यसभा के लिए और आठ लोगों ने विधान परिषद सदस्य के लिए नामांकन कराया था। शनिवार को बसपा प्रत्याशियों ने भी परचा दाखिल कर दिया है।
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बंद रहा टंडन हाल का एसी
बसपा प्रत्याशियों के नामांकन के समय राजर्षि टंडन हाल का एसी पूरी तरह बंद रहा। इससे प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को खासी दिक्कत हुई। जिस पर बसपाई राज्य सरकार को कोसते नजर आये, हालांकि अधिकारियों का कहना था कि शनिवार होने के चलते आपरेटर के आने में विलंब हो गया, जिससे एसी नहीं चल पाया।
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 बसपा प्रत्याशियों ने किया नामांकन
-राज्यसभा सदस्य के लिए सतीश मिश्र व अशोक सिद्धार्थ ने भरा परचा
-विधान परिषद सदस्य के लिए भी तीन ने किए नामांकन
लखनऊ : उत्तर प्रदेश कोटे की 11 राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए शनिवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सतीश चंद्र मिश्र व अशोक सिद्धार्थ ने नामांकन किया। विधान परिषद सदस्य के लिए दिनेश चंद्रा, अतर सिंह और सुरेश कश्यप ने परचा दाखिल किया।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, विधान परिषद में नेता विरोधी दल नसीमुद्दीन सिद्दीकी पार्टी के राज्यसभा व विधान परिषद प्रत्याशियों के साथ शनिवार दोपहर 12 बजे विधान भवन के राजर्षि टंडन सभागार में पहुंचे। सबसे पहले राज्यसभा सीट के प्रत्याशी के तौर पर सतीश चंद्र मिश्र ने प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे को नामांकन पत्र सौंपा। बसपा ने राज्यसभा के लिए मिश्र को तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है। मिश्र के बाद फर्रुखाबाद निवासी कई मंडलों के जोनल कोआर्डिनेटर व दक्षिण भारत के राज्यों के प्रभारी अशोक सिद्धार्थ ने राज्यसभा सदस्य के लिए नामांकन किया। राज्यसभा के प्रत्याशियों के नामांकन की कार्यवाही पूरी होने के बाद विधान परिषद सदस्यों की नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई।  पहले अतर सिंह फिर सुरेश कश्यप और आखिर में दिनेश चन्द्र ने नामांकन कराया।
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राज्यसभा के नौ, परिषद के 11 परचे दाखिल
बसपा प्रत्याशियों के नामांकन के साथ राज्यसभा की 11 सीटों के लिए दावेदारी करने वालों की संख्या नौ और विधान परिषद की 13 सीटों के नामांकन कराने वालों की संख्या 11 हो गयी है। नामांकन की अधिसूचना जारी होने के बाद 25 मई को समाजवादी पार्टी के अमर सिंह, बेनी वर्मा, बिल्डर संजय सेठ समेत सात लोगों ने राज्यसभा के लिए और आठ लोगों ने विधान परिषद सदस्य के लिए नामांकन कराया था। शनिवार को बसपा प्रत्याशियों ने भी परचा दाखिल कर दिया है।
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बंद रहा टंडन हाल का एसी
बसपा प्रत्याशियों के नामांकन के समय राजर्षि टंडन हाल का एसी पूरी तरह बंद रहा। इससे प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को खासी दिक्कत हुई। जिस पर बसपाई राज्य सरकार को कोसते नजर आये, हालांकि अधिकारियों का कहना था कि शनिवार होने के चलते आपरेटर के आने में विलंब हो गया, जिससे एसी नहीं चल पाया।
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 छह साल में आठ गुना बढ़ी सतीश मिश्र की संपत्ति
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-हांडा सीआरवी व एस्काटर््स ट्रैक्टर की जगह आयीं मर्सिडीज बेंज
-दो करोड़ से अधिक के जेवरातों सहित 193 करोड़ की संपत्ति
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लखनऊ : बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्र की संपत्ति छह वर्षों में आठ गुना बढ़ी है। वर्ष 2010 में जहां उनके पास हांडा सीआरवी जैसी गाड़ी के साथ एस्कार्ट ट्रैक्टर भी था, अब मर्सिडीज बेंज हो गयी हैं। मिश्र के पास दो करोड़ से अधिक के जेवरातों सहित इस समय 193 करोड़ से अधिक की संपत्ति है।
छह वर्ष पूर्व तीन जून 2010 को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन कराते समय दाखिल हलफनामे में सतीश मिश्र ने कुल 24 करोड़ 17 लाख 10 हजार रुपये की चल-अचल संपत्ति की जानकारी दी थी। फिर से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए शनिवार को नामांकन के साथ दाखिल हलफनामे में उन्होंने 193 करोड़ 49 हजार 59 रुपये कुल संपत्ति होने की जानकारी दी है। इस तरह से मिश्र की छह साल में कुल संपत्ति लगभग आठ गुना बढ़ गयी है। सतीश मिश्र व उनकी पत्नी कल्पना मिश्रा के पास महज चल-अचल संपत्ति ही नहीं नकदी में भी वृद्धि हुई है। छह साल पहले सतीश के पास 2.10 लाख रुपये नकद थे, वहीं अब 4,71,678 रुपये नकद हैं। पत्नी के पास उस समय 85 हजार रुपये थे, जो अब 1,24,389 रुपये हैं। 2010 में उनके पास हांडा सीआरवी, टोयोटा कैमरी कारों के साथ एक एस्कॉट्र्स ट्रैक्टर था। अब उनके पास मर्सिडीज बेंज है। 2010 में उनकी पत्नी के पास कोई कार नहीं थी, अब उनके पास भी हांडा ब्रियो आ गयी है। हलफनामे के मुताबिक जेवरों के मामले में भी समृद्धि बढ़ी है। 2010 में सतीश के पास 24 लाख सात हजार और उनकी पत्नी के पास 86 लाख 13 हजार रुपये के जेवर थे। अब उनके पास 37,45,547 रुपये और पत्नी के पास एक करोड़ 70 लाख 30 हजार 91 रुपये के जेवर हैं। सतीश मिश्र के पास लखनऊ की सदर तहसील के काकोरी व बख्शी का तालाब तहसील के महोना क्षेत्र में कृषि संपत्ति के अलावा काकोरी, गोमती नगर के विपुल खंड व विंडसर प्लेस क्षेत्र में आवासीय संपत्तियां हैं। उनके पास मुंबई के बांद्रा कुर्ला काम्पलेक्स व अंधेरी के ओशीरवारा और दिल्ली के कनॉट प्लेस में भी व्यावसायिक संपत्तियां हैं। मिश्र के पास दिल्ली के सुंदर नगर व नोएडा में भी आवासीय संपत्तियां हैं। इस समय सतीश मिश्र के पास कुल 34.78 करोड़ की चल व 68.66 करोड़ की अचल और उनकी पत्नी के पास 25.41 करोड़ की चल व 64.15 करोड़ की अचल संपत्ति है। सतीश पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों व संगठनों की 17.13 करोड़ और उनकी पत्नी पर 21.11 करोड़ की देनदारियां भी हैं।
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अशोक सिद्धार्थ भी 6.87 करोड़ के मालिक
बसपा के दूसरे राज्यसभा प्रत्याशी अशोक सिद्धार्थ 6.87 करोड़ के मालिक हैं। यूं तो वह फर्रुखाबाद के निवासी हैं मगर उनके पास बाराबंकी, लखनऊ में जमीनें हैं। गाजियाबाद व दिल्ली में प्लाट खरीदने के लिए अग्रिम के रूप में तकरीबन 50 लाख रुपये दे रखे हैं। लखनऊ के विपुल खंड में उनका मकान है। आयकर विभाग में दाखिल रिटर्न में सिद्धार्थ ने सालाना आमदनी 12 लाख 14 हजार 810 रुपये और पत्नी सुनीता देवी की सालाना आय 10 लाख, 19 हजार 340 रुपये बतायी है। पति-पत्नी के पास एलआइसी की सात-सात पालिसी है। सिद्धार्थ के पास 170 ग्राम सोने के जेवर और उनकी पत्नी के पास 465 ग्र्राम सोने के जेवर हैं। उनके पास रायफल और रिवाल्वर का लाइसेंस भी है।
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दिनेश को असलहों व गाडिय़ों का शौक
विधान परिषद प्रत्याशी दिनेश चंद्र 2.19 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति के मालिक हैं। महंगाई गाडिय़ां और असलहों का भी इन्हें शौक है। नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामें में फाच्र्युनर, रेनाल्ट डस्टर और फोर्ड फिगो कार का मालिक होने का जिक्र किया है, उनकी पत्नी के पास एक्टिवा स्कूटर भी है। दिनेश के पास दोनाली बंदूक, रायफल और पिस्टल भी है। उनकी पत्नी के पास लखनऊ के मीरानपुर, अहमामऊ में गैर कृषि योग्य जमीने हैं। दिनेश के पास सुलतानपुर के अलावा फतेहपुर में भी मकान व जमीन है। इंटरमीडिएट उत्तीर्ण दिनेश चंद्र ईट भट्ठा के मालिक है।
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करोड़पति है सुरेश कुमार
बसपा प्रत्याशी सुरेश कुमार व उनकी पत्नी के पास 2.29 करोड़ रुपये की संपत्ति है। गाजियाबाद में मकान, शामली व लोनी में कृषि योग्य जमीन के मालिक कश्यप के पास पिस्टल और दो कारें भी हैं। पत्नी नौकरीपेशा हैं। म्युचुअल फंड में भी उनका निवेश है। उन्होने कर्ज भी ले रखा है। इंटरमीडिएट पास सुरेश कश्यप के खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं है।
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1.14 करोड़ के मालिक हैं अतर
विधान परिषद सदस्य पद के बसपा प्रत्याशी अतर सिंह व उनकी पत्नी के पास 1.14 करोड़ की संपत्ति है। अतर के पास बस और एक एक्टिवा स्कूटर है। एक पिस्टल और मेरठ में दो प्लाट हैं। मेरठ में विरासत में मिले मकान के भी वह मालिक हैं। विधि स्नातक अतर सिंह की पत्नी भी व्यापार करती हैं।
























Friday 20 May 2016

वादों-इरादों के बाद फिर उम्मीदों की राह


published:  20 may-2016



-'उम्मीदों का उत्तर प्रदेशÓ नारे संग जनता के बीच जाने की तैयारी
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परवेज अहमद, लखनऊ : पांच साल पहले की ही तो बात है, जब समाजवादी पार्टी (सपा) के तत्कालीन युवराज अखिलेश यादव 'उम्मीदों की साइकिलÓ लेकर निकले थे। जनता ने उस पर अपने भरोसे के पंख लगाए और सूबे का राज सौंप दिया। गुजरे एक साल से उनकी सरकार 'पूरे हुए वादे, अब हैं नए इरादेÓ साथ जनता के बीच थी। चुनावी साल में सरकार फिर 'उम्मीदोंÓ के 'ट्रैकÓ पर है, नया नारा गढ़ा है 'उम्मीदों का उत्तर प्रदेशÓ।
राजनीति के योद्धा विरोधियों पर हमले और अपनी बेहतरी के लिए नारे गढ़ते रहे हैं। ढेरों नारे लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के युवा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 'उम्मीद की साइकिलÓ के साथ चुनावी अभियान को परवान चढ़ाया और सत्ता हासिल की। सरकार को तीसरे साल में मुख्यमंत्री ने 'पूरे हुए वादे, अब हैं नए इरादेÓ नारा दिया। नौकरशाही को भी इसी के अनुरूप विकास को रफ्तार देने का संदेश भी दिया गया। कुछ समय के अंदर ही नए इरादों के साथ 'बन रहा आज, संवर रहा है कलÓ स्लोगन दिया गया और सरकार इसी के साथ पांचवें साल में दाखिल हुई। अब चुनावी साल में समाजवादी सरकार की ओर से नया नारा दिया गया है-'उम्मीदों का प्रदेश-उत्तर प्रदेश।Ó सरकार की उपलब्धियां गिनाने वाली किताबों, पर्चे व होर्डिंग्स में भी यह नारा नजर आना शुरू हो गया है। हालांकि यह नारा सरकार की ओर से दिया गया है, मगर माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी इसे मिशन-2017 के अभियान का हिस्सा बनाएगी।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि अखिलेश यादव सरकार ने निवेश का माहौल पैदा किया है। गांव और शहर दोनों के समग्र विकास का न सिर्फ माहौल बनाया है बल्कि उसे अमल में भी उतारा है। उत्तर प्रदेश में फिल्म, अस्पताल, शिक्षा, उद्योग की ढेरों संभावनाएं हैं। चुनावी घोषणा पत्र के सभी वादे पूरे होते जा रहे हैं। अब उम्मीदों की बारी है।
प्रमुख सचिव नवनीत सहगल का कहना है कि प्रदेश में असीमित संभावनाओं को देखते हुए सरकार ने 'उत्तर प्रदेश को उम्मीदों का प्रदेशÓ कहा है। इसके पीछे लोगों को यह बताने की मंशा है कि अगर प्रगति की दिशा में सोंच रहे हैं तो उत्तर प्रदेश में उसकी उम्मीद पूरी हो सकती है।

कांग्रेस छोड़ बेनी सपा में लौटे

published_ 13th may 2016



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-पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा अब जाएंगे राज्यसभा
-पूर्व मंत्री व जाट नेता किरनपाल सिंह भी सपा में वापस लौटे
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कोट
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'बेनी संघर्षों के साथी रहे हैं। उनकी घर वापसी से पार्टी को मजबूती मिलेगी। अब दिल्ली की लड़ाई ज्यादा मजबूती से लड़ी जाएगी। पार्टी का प्रभाव उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा।Ó
-मुलायम सिंह यादव, सपा प्रमुख
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'राहुल-सोनिया ने सम्मान दिया मगर कांग्रेसी कल्चर में एडजस्ट नहीं हो पा रहा था। राजनीतिक हूं। दो साल से खाली था। घुटन महसूस कर रहा था। समाजवादी पार्टी नाम मैंने दिया था, निशान व झंडा भी मेरा दिया हुआ है। घर में लड़ाई-सुलह होती रहती है। चुनाव नजदीक हैं। अखिलेश का विरोध करने की स्थिति में नहीं था, इसलिए वापस आ गयाÓ
-बेनी प्रसाद वर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री
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लखनऊ : अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा शुक्रवार को 'हाथÓ का साथ छोड़कर 'साइकिलÓ पर सवार हो गए। वर्मा को राज्यसभा में भेजे जाने की पूरी संभावना है। मुलायम सिंह की सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री रहे और पश्चिमी उप्र में प्रभावशाली जाट नेता किरनपाल सिंह ने भी राष्ट्रीय लोकदल छोड़ सपा में वापसी की। मुलायम ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाते हुए कहा कि मंत्री रहते हुए उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, आजम खां व शिवपाल यादव समेत पार्टी के कई अहम नेता मौजूद रहे।
मुलायम सिंह ने पूर्वांचल के रामकोला कांड की याद दिलायी। कहा कि वहीं पार्टी के गठन की मंशा ने जोर पकड़ा और बेनी प्रसाद ने समाजवादी पार्टी नाम सुझाया था। झंडा और चुनाव चिह्न का सुझाव भी उनका ही था। मुलायम ने बसपा से मिलकर बनायी सरकार का जिक्र किया कि उस समय सभी ने मिलकर रात में राज्यपाल को जगाकर इस्तीफा देने का निर्णय किया था। बेनी के पार्टी छोडऩे की घटना याद करते हुए मुलायम ने बताया कि मैं मुख्यमंत्री था। बेनी आए, लंबी बात हुई, फिर मैं उन्हें छोडऩे गेट तक गया और तीन घंटे बाद उनके सपा छोडऩे की जानकारी हुई तो बहुत दुख हुआ था। आजम ने बीच में चुटकी ली, आप छोडऩे गये थे, इसलिए वह छोड़ गये।
बता दें, सपा की बुनियाद रखने व सियासी ताकत बढ़ाने वालों में शुमार रहे बेनी प्रसाद वर्ष 2006-07 में पार्टी को छोड़ गए थे। उस समय पहले उन्होंने क्रांति दल बनाया फिर कांग्र्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की कार्यशैली पर लगातार हमले किए लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में गोंडा संसदीय सीट पर चौथे स्थान पर आने के बाद से खामोशी ओढ़े थे।
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मुसलमानों की समस्या याद आयी
मुलायम ने कहा कि इसमें संदेह नहीं कि मुसलमानों की ढेरों समस्याएं हैं और वे विकास में पीछे हो गए हैं। उनकी उपेक्षा हुई है। हालांकि हर थाने में कम से कम दो-तीन मुसलमान सिपाही तैनात होने की व्यवस्था हुई। इस ओर मुख्यमंत्री को ध्यान देना चाहिए।
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अखिलेश सरकार को सराहा
सपा मुखिया ने एक्सप्रेसवे, मेट्रो, कैंसर हास्पिटल समेत विकास योजनाओं के लिए अखिलेश सरकार को जमकर सराहा। कहा कि लोकसभा में भी जब सरकार के विकास गिनाये तो विपक्षी दल भी प्रतिरोध नहीं कर सके थे। सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र पूरा कर दिया है।
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हर राज्य की अलग स्थिति
नीतीश की रैली को लेकर पूछे गये सवाल पर मुलायम ने कहा कि हर राज्य की अपनी स्थिति होती है। हमने उन्हें नहीं छोड़ा। नीतीश के कहने पर संसदीय दल के नेता बने, पार्टी के विलय की भी बात हुई मगर उनके चलते ही साथ छूट गया। सवाल के बीच ही आजम ने कहा कि बिहार की परिस्थिति अलग थी, यहां तो हम ही हम हैं।
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किसने क्या कहा
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'पुरानी किताब, पुराने दोस्त और पुरानी वाइन भुलाई नहीं जा सकती। नेताजी (मुलायम) के पुराने साथी बेनी वर्मा की वापसी से पार्टी को ताकत मिलेगी। सरकार दोबारा सत्ता में आएगीÓ
-अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री व सपा प्रदेश अध्यक्ष
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'बेनी प्रसाद से कई बार फोन पर बात होती थी, किरनपाल से मुलाकातें भी होती रहती थीं। बेनी बाबू तो मुझे छोटा भाई मानते रहे। उनके आने से सपा मजबूत होगीÓ
-शिवपाल यादव, मंत्री व सपा महासचिव
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'कुछ कारणों के चलते राष्ट्रीय लोकदल में चला गया था, मगर वहां जनतांत्रिक व जनता के लिए काम करने का आजादी नहीं मिली। क्षेत्र और लोगों की भलाई के काम करने की मंशा से वापस समाजवादी पार्टी में लौटा हूंÓ
-किरनपाल सिंह, पूर्वमंत्री
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पार्टी बनाने वालों में जो जिंदा हैं, उनमें मैं और नेताजी (मुलायम सिंह यादव) हैं। एंबेसडर में तकिया व चादर रखकर भागते दौड़ते पार्टी बनाई। बेनी वर्मा उसी संघर्ष के साथी हैं, मगर इन्होंने बहुत दिल दुखाया। दूसरे दल में रहे मगर मुलायम बड़े दिलवाले हैं, तमाम बातों के बाद कभी भी उनकी शान के खिलाफ कोई बात नहीं की।
-आजम खां, मंत्री व सपा महासचिव
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बेनी का सियासी सफरनामा
-1974 में बाराबंकी के दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते
-चौधरी चरण सिंह के संरक्षण में मुलायम सिंह के साथ जुझारू नेता की पहचान बनायी।
-संयुक्त मोर्चा सरकार में मुलायम सिंह रक्षा और बेनी वर्मा संचार मंत्री बने।
-वर्मा 1996, 1998 ,1999 और 2004 में चार बार सपा के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए
-मुलायम के साथ दूरी के बाद 2007 में सपा से अलग होकर समाजवादी क्रांति दल नामक पार्टी बनाई।
-विधानसभा चुनाव में वह खुद हार गए और उनकी पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी
-वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव से कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली
-वर्ष 2009 में गोंडा से सांसद निर्वाचित हुए और मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में पहले राज्यमंत्री और बाद में केंद्रीय इस्पात मंत्री बने
-वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह गोंडा संसदीय क्षेत्र में चौथे नंबर पर पहुंच गए।


 १७मई २०१६

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राजनीति और क्रिकेट में कुछ भी असंभव नहीं। आखिरी पल तक नतीजा कुछ भी हो सकता है। लंगोटिया पहलवान और लंगोटिया यारों के बीच बनी पुरानी जुगलबंदी ने फिर यही साबित किया है। विधानसभा चुनाव से पूर्व अमर सिंह व बेनी वर्मा को राज्यसभा टिकट थमाने वाले धरतीपुत्र के फैसले से कई अपनों के पैरों तले से धरती खिसकती नजर आ रही है पर जमीनी हकीकत अब यही है। समाजवादी पार्टी फिर अमर हो गई है।
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 अमर, बेनी, संजय सेठ जाएंगे राज्यसभा
-सुखराम, रेवतीरमण, विशंभर व अरविंद सपा प्रत्याशी
-बलराम समेत चार सदस्य दोबारा बनेंगे एमएलसी
-अमर की उम्मीदवारी पर दो फाड़ थे सदस्य
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा के सात और विधान परिषद के लिए आठ प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। उम्मीद के मुताबिक अमर सिंह, बेनी वर्मा व बिल्डर संजय सेठ का नाम राज्यसभा के उम्मीदवारों में शामिल है। विधान परिषद के उम्मीदवारों में मंत्री बलराम यादव समेत चार मौजूदा सदस्यों का नाम है।
मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को समाजवादी पार्टी की केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें पहले मिशन-2017 की तैयारी और फिर प्रत्याशियों के नामों पर चर्चा शुरू हुई। सूत्रों का कहना है कि अमर सिंह के नाम पर महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव व मंत्री आजम खां की सहमति नहीं थी। एकाध और सदस्य भी इस नाम पर राजी नहीं थे मगर विरोध आजम व राम गोपाल ने ही जताया। मुस्लिम वर्ग से प्रस्तावित नाम पर भी सदस्यों में एक राय नहीं बन पायी। काफी देर की कवायद के बाद प्रत्याशियों के नाम पर एकराय नहीं बन पायी। देर शाम सपा के प्रदेश प्रभारी शिवपाल यादव ने पत्रकार वार्ता में राज्यसभा व विधान परिषद के उम्मीदवारों की घोषणा की। कहा कि संसदीय बोर्ड की बैठक में नामों पर चर्चा के बाद सदस्यों ने प्रत्याशी चयन का अधिकार मुलायम सिंह को दिया था, जिन्होंने प्रत्याशियों का चयन किया है।
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सपा फंड नहीं जुटाती : शिवपाल
राज्यसभा के उम्मीदवारों में बिल्डर संजय सेठ के नाम को लेकर शिवपाल यादव से पूछा गया कि क्या फंड प्रबंधन के लिए उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है? जवाब में शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी फंड एकत्रित नहीं करती, उल्टे अपने प्रत्याशियों की मदद करती है। संसदीय बोर्ड ने प्रत्याशी चयन का अधिकार मुलायम सिंह को दिया था, उन्होंने प्रत्याशियों का चयन किया है। इससे समाजवादी पार्टी और आगे बढ़ेगी। अमर सिंह ने क्या समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली है? इस सवाल को टालते हुए शिवपाल यादव ने कहा है कि वह नेताजी (मुलायम सिंह) के दिल में हैं, पार्टी में शामिल करने को लेकर वही फैसला लेंगे। सपा पहले भी पीएल पुनिया, प्रमोद तिवारी को राज्यसभा भेजने में मदद कर चुकी है। इस श्रंखला में और भी कई लोग हैं। जया प्रदा पर फैसला कब होगा? जवाब में शिवपाल ने कहा कि यह सब राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को तय करना है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने साफ किया कि पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी के नाम पर चर्चा नहीं हुई थी।
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'स्कूलों में योग दिवस मुद्दा नहींÓ
स्कूलों में योग दिवस मनाने के केंद्र सरकार के फैसले पर समाजवादी पार्टी के रुख पर शिवपाल यादव ने कहा कि यह अभी मुद्दा नहीं है। इस पर बाद में कोई बात की जाएगी।
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सपा के राज्यसभा के प्रत्याशी
बेनी प्रसाद वर्मा, अमर सिंह, संजय सेठ, सुखराम सिंह यादव, रेवती रमण सिंह, विशंभर निषाद, अरविंद कुमार सिंह।
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सपा के एमएलसी पद के प्रत्याशी
बलराम यादव, यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, जगजीवन प्रसाद, कमलेश पाठक और  रणविजय सिंह।
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- आजम और राम गोपाल ने संसदीय बोर्ड की बैठक बीच में छोड़ी
- अमर सिंह का विरोध, बिल्डर भी लिस्ट में
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 लखनऊ : हुआ वही जिसकी उम्मीद अरसे से की जा रही थी। अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में प्रवेश मिला और उधर आजम खां व प्रो रामगोपाल यादव ने नाराजगी जता दी। आजम खां यह कहने से नहीं चूके कि आखिर तो पार्टी मुलायम सिंह की ही है। आजम और रामगोपाल ने संसदीय बोर्ड की बैठक बीच में ही छोड़ दी। राज्यसभा के लिए जारी सपा की लिस्ट में उन बिल्डर संजय सेठ का भी नाम है जिन्हें कई कोशिशों के बाद भी पार्टी एमएलसी नामित नहीं करवा सकी थी।
एमएलसी के लिए चंद ही महीनों पहले संजय सेठ का नाम सरकार ने दो बार राज्यपाल को भेजा पर उन्होंने हर बार आयकर और प्रवर्तन निदेशालय की जांच का हवाला देकर संजय का नाम रोक दिया। वही संजय जो एमएलसी न बन सके, अब राज्यसभा सांसद बनने की राह पर हैं। अलबत्ता बेनी वर्मा को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाने के पीछे कुर्मी वोटों को सपा के पाले में करने की रणनीति है। माना जा रहा है बेनी राज्यसभा की शर्त पर ही पिछले सप्ताह 'हाथÓ का साथ छोड़ 'साइकिलÓ पर सवार हुए।
अब सुनिये अमर सिंह का हाल। दो फरवरी 2010 को पार्टी से बाहर हुए अमर सिंह अक्टूबर 2014 में समाजवादी पार्टी के मंच पर नजर आये। फिर तो वह अक्सर ही सपा नेतृत्व के घर भी दिखने लगे, मगर दल में उन्हें शामिल करने की चर्चा होते ही प्रो. राम गोपाल यादव व मंत्री मो. आजम खां का विरोध सामने होता। 29 जनवरी को इटावा में मुलायम सिंह ने यह कह कर कि अमर सिंह दल में नहीं हैं, मगर मेरे दिल में हैं,Ó उनकी वापसी की राह आसान बनाने का प्रयास किया मगर विरोध थमा नहीं। शिवपाल यादव ने 'दिल डिप्लोमेसीÓ का रंग गाढ़ा करने का प्रयास किया मगर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खामोशी ओढ़ ली जिससे अमर की वापसी पर सवालिया निशान लगा रहा। मंगलवार को संसदीय बोर्ड की बैठक में अमर के नाम का प्रस्ताव आते ही आजम ने विरोध जाहिर किया। सूत्रों का कहना है मुलायम से मुखातिब होकर उन्होंने कहा 'मुझे इस नाम पर एतराज है, मगर पार्टी आपकी है।Ó प्रो.रामगोपाल यादव भी आजम के पक्ष में आ गए। मतभेद बढ़ा तो आजम व राम गोपाल बैठक छोड़कर बाहर निकल गए। रामगोपाल ने फौरन दिल्ली की फ्लाइट पकड़ ली और आजम घर जाकर बैठ गए। कुछ देर बाद आयी राज्यसभा प्रत्याशियों की सूची में अमर के साथ बिल्डर संजय सेठ का नाम भी नजर आया।
राज्यसभा प्रत्याशियों की सूची के साथ एमएलसी उम्मीदवार बनाये गये रणविजय सिंह, कमलेश पाठक को नामित कोटे का एमएलसी बनने के सरकार के प्रस्ताव को भी राजभवन 'नाÓ कह चुका था। सुखराम सिंह यादव व विशंभर निषाद की उम्मीदवारी के पीछे भी सियासी समीकरणों से ज्यादा मुलायम सिंह और उनके पुराने संबंध हैं।
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किसी महिला को नहीं मिला टिकट
राज्यसभा व विधान परिषद के प्रत्याशियों के चयन में महिलाओं को स्थान नहीं मिला है। एक ब्राह्मïण व एक शिया मुसलमान को भी उम्मीदवार बनाया गया है, मगर बड़ी आबादी वाले सुन्नी मुसलमानों टिकट हासिल करने में कामयाबी नहीं पा सके। सूची पर सपा मुखिया मुलायम सिंह की पंसद की छाप नजर आ रही है। चुनावी साल में विधान परिषद व राज्यसभा के चुनाव में जातीय समीकरण साधे जाने की उम्मीद थी, इसी पैमाने को आधार बनाकर पार्टी के अल्पसंख्यक, ब्राह्मïण और महिलाएं टिकट की दावेदारी कर रहे थे, मगर सूची में किसी भी महिला को स्थान नहीं मिला। हालांकि पार्टी ने अति पिछड़े वर्ग के माने जाने वाली निषाद बिरादरी एक-एक नेता को राज्यसभा व विधान परिषद का प्रत्याशी बनाया है। क्षत्रिय समाज को भी पार्टी ने पूरी हिस्सेदारी दी है।
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संजय सेठ पर पड़े थे आयकर छापे
पिछले वर्ष जून में देश भर में संजय सेठ के 15 से अधिक ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापे मारे थे। उस समय सेठ ने लगभग सौ करोड़ रुपये की कर चोरी तो स्वीकार ही कर ली थी, छापे के दौरान एक पार्टनर के घर में डेढ़ करोड़ रुपये नकद भी मिले थे। मई 2015 में विधान परिषद में मनोनीत करने से इनकार के पहले राजभवन ने आयकर विभाग से बाकायदा इस बाबत जानकारी भी मांगी थी। राजभवन ने भले ही संजय सेठ को विधान परिषद नहीं भेजा, किन्तु मंगलवार को जारी हुई सपा की राज्यसभा प्रत्याशियों की सूची में सेठ का नाम शामिल था। चर्चा रही कि सपा ने एक तरह से सेठ का प्रमोशन ही कर दिया है।
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जो हो रहा है अच्छा नहीं है : आजम खां
रामपुर : रात को लखनऊ से रामपुर लौटे नगर विकास मंत्री आजम खां ने अमर सिंह को सपा से राज्यसभा प्रत्याशी बनाए जाने पर नाराज जाहिर की। कहा कि, यह दुखद प्रकरण है। जो हो रहा है, अच्छा नहीं हो रहा। उन्होंने कहा कि नेता जी का फैसला है। उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड ने अधिकृत किया था। वह पार्टी के मालिक हैं। उनके फैसले को चुनौती नहीं दे सकते हैं।

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सपा के  राज्यसभा के प्रत्याशियों का प्रोफाइल
-बेनी प्रसाद वर्मा : सिरौली गौसपुर बाराबंकी के मूल निवासी बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में थे वह सपा से तीन बार सांसद बने, वर्ष 2007 में कांग्रेस में चले गये। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए और इस्पात मंत्री बने। गत दिनों घर वापसी की और अब समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है।
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-अमर सिंह : आजमगढ़ के मूल निवासी 1996 से 2014 तक राज्यसभा में रहे और अब सपा ने फिर प्रत्याशी बनाया है। वर्ष 2010 में निकाले जाने से पूर्व वह समाजवादी पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता थे, उन्हें पार्टी का चेहरा बदलने वाले नेता के रूप में जाना जाता है।
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-सुखराम सिंह यादव : कानपुर के मेहरबान सिंह का पुरवा निवासी व मूलत: समाजवादी हैं। 1990 पहली बार एमएलसी चुने गये। 1993 की मुलायम सरकार में संसदीय कार्य व लोक निर्माण मंत्री रहे। 2002 में दोबारा एमएलसी बने और 2003 में विधान परिषद के सभापति बने। 2008 में तीसरी बार एमएलसी बने।
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-अरविंद कुमार सिंह : गाजीपुर के सबुआ गांव के निवासी अरविंद सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति शुरू की और 1994 में छात्रसंघ के उपाध्यक्ष और 1997 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए। सपा छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और वर्ष 2012 में पहली बार राज्यसभा भेजा था, अब दूसरी बार प्रत्याशी हैं।
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-विशम्भर प्रसाद निषाद : मूल रूप से बांदा के निवासी विशम्भर निषाद ने कांशीराम के साथ दलित मूवमेंट में काम शुरू किया। बसपा से विधायक चुने गए और मंत्री बने। 1992 में बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। सपा में महासचिव बनाये गए। जून 2014 में एसपी सिंह बघेल के इस्तीफे से रिक्त सीट पर राज्यसभा भेजे गये और अब पार्टी ने दूसरी बार राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है।
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-रेवती रमण सिंह : इलाहाबाद की करछना तहसील के बरांव गांव के निवासी रेवती रमण सिंह 1974 में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गये। अब तक आठ बार विधायक, दो बार सांसद रह चुके हैं। वह एक साल विधानसभा में नेता विरोधी दल भी रहे। मुलायम के करीबी साथियों में शुमार रेवती रमण सिंह अब समाजवादी पार्टी के राज्यसभा के उम्मीदवार हैं।
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-संजय सेठ : लखनऊ के निवासी संजय पेशे से बिल्डर हैं और उत्तर प्रदेश में उनका बड़ा कारोबार है। अब वह राजनीति में दस्तक दे रहे हैं।
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'जहर खा लूंगा, मुलायम की सूरत नहीं देखूंगाÓ
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 लखनऊ : पार्टी छोडऩे के सवा छह साल बाद सपा से राज्यसभा का टिकट पाए अमर सिंह ने इस दौरान सपा नेतृत्व को लेकर खासे गंभीर बयान दिये हैं। सपा अध्यक्ष को झूठा, जोकर व धृतराष्ट्र तक कहने वाले अमर सिंह ने यह एलान भी किया था कि वह जहर खा लेंगे, किंतु मुलायम की सूरत नहीं देखेंगे।
दो फरवरी 2010 को समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह ने कई साल तक समूचे सपा नेतृत्व को जमकर कोसा था। 15 जनवरी 2011 को आगरा में उन्होंने एलान किया था कि वह मुलायम सिंह यादव की सूरत देखने से पहले पोटेशियम साइनाइड खाकर जान दे देंगे। वह बोले थे, 'मैंने मुलायम सिंह को अपनी दोनों किडनी सप्लाई कीं, बसपा विधायक सप्लाई किये, इसलिए मैं सप्लायर हूंÓ। इसके बाद भी उन्होंने बार-बार मुलायम को कोसा। कभी सार्वजनिक बयान देकर, कभी ब्लॉग में लिखकर उन्होंने चुभने वाली बातें कहीं। ब्लाग में उन्होंने लिखा, 'मुलायम अब आप अपनी अच्छी-बुरी राजनीति के अकेले दर्जी और कूड़ेदान खुद हैं। आपको अपनी भूमिका मुबारक और मेरे राजनीतिक निर्वाण के लिए शुक्रिया।Ó एक बार तो खुद एकलव्य बताकर लिखा, 'मैं मुलायम के लिए एकलव्य बनकर संतुष्ट हूं, पर एकलव्य की तरह अपना अंगूठा उन्हें नहीं दूंगा।
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विवादों भरे अमर के दस बयान
21 मार्च 2010 : मुलायम सिंह या तो लोहियावादी नहीं हैं या फिर अपने स्वार्थी मुलायमवाद का सफेद झूठ लोहिया जी पर मढऩा चाहते हैं। ऐसा लगता है कि सारी नेतृत्व क्षमता, गुणवत्ता सिर्फ एक ही परिवार में है। मेरी गलती थी कि मैंने 14 साल से हो रही इस धांधली को नहीं देखा। (अपने ब्लॉग में)
11 मई 2010 : मैं मुलायम सिंह का दर्जी और कूड़ेदान रहा हूं। उनकी गलत-सलत नीतियों को नैतिकता का कपड़ा सिलकर संवारने का मैं 14 साल का अपराधी हूं, लेकिन दल की गलतियों का श्रेय लेने वाला कूड़ेदान अब मैं नहीं रहा। (अपने ब्लॉग में)
23 अक्टूबर 2010 : मुलायम सिंह यादव ने लोहिया के सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी है। लोहिया ने कभी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा नहीं दिया। मुलायम इसी को बढ़ावा दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी में सिर्फ दो अपवाद थे। एक जनेश्वर मिश्र और दूसरे अमर सिंह। एक को रामजी खा गए तो दूसरे को रामगोपाल। (लखनऊ)
5 दिसंबर 2010: मैं बोल दूंगा तो मुलायम सिंह मुश्किल में पड़ जाएंगे। मेरा मुंह खुला तो सपा के कई नेता जेल पहुंच जाएंगे और मुलायम सिंह को जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी। (भदोही)
15 जनवरी 2011: मुलायम सिंह की सूरत देखने से पहले मैं पोटेशियम साइनाइड खाकर जान दे दूंगा। मैंने दलाली करके मुलायम की सरकार बनवाई, फिर भी उन्होंने अपने लोगों से मुझे बेशर्म कहलवाया। (आगरा)
14 अप्रैल 2011: मर जाऊंगा पर समाजवादी पार्टी में वापस नहीं जाऊंगा। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। (नागपुर)
25 जनवरी 2012: मैं अब मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी का नौकर नहीं हूं। मुझे उनके तमाम राज मालूम हैं, जिन्हें न तो मैंने उजागर किया है, न कभी करूंगा। (लखनऊ)
21 फरवरी 2012: यूपी के भ्रष्टाचार में मुख्यमंत्री मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों साझीदार हैं। मुलायम सिंह एक पहिए की साइकिल चलाने वाले जोकर हैं। (लखनऊ)
12 अप्रैल 2012: मुलायम सिंह ने बलात्कार पर बयान दिया है कि लड़के हैं, मन मचल जाता है। ऐसा लगता है कि मुलायम सिंह का वश चले तो रेप को भी जायज कर दें। (आगरा)
5 अगस्त 2013: मुलायम सिंह यादव धृतराष्ट्र हो गए हैं। वे भूल जाते हैं कि वे राजा नहीं, जनता के नौकर हैं। (नई दिल्ली)
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Friday 13 May 2016

समाधान, सुविधा, सुलेखा और सुगम से होगा चुनाव




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- विधानसभा चुनाव के लिए चार नये साफ्टवेयर तैयार
- बिलारी व जंगीपुर के उपचुनाव में चल रहा है परीक्षण
 लखनऊ : राजनीतिक दल नहीं, चुनाव आयोग भी  विधानसभा चुनाव के लिये 'तीर-तरकशÓ सहेजने में जुट गया है। मतदाता सूची ठीक करने की ऑनलाइन व ऑफलाइन प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा समाधान, सुविधा, सुलेखा और सुगम नाम के चार साफ्टवेयरों की उपयोगिता बिलारी व जंगीपुर उपचुनाव में परखी जा रही है, विधानसभा के आम चुनाव में इन साफ्टवेयरों का इस्तेमाल होगा।
प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, भाजपा, बसपा और कांग्रेस के साथ चुनाव आयोग भी तैयारी कर रहा है। मतदाताओं को नाम दुरुस्त कराने, हटवाने या नया नाम शामिल कराने के लिये राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल के जरिये जहां ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है, वहीं जिला निर्वाचन कार्यालयों में आवेदन किया जा सकता है। चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया 28 जुलाई तक चलेगी, जिसके बाद विशेष अभियान भी चलेगा। इससे इतर आयोग ने विधानसभा चुनाव 2017 में चुनावी जनसभा की इजाजत से लेकर गाडिय़ों, हेलीकाप्टर उतारने, प्रत्याशियों व चुनावी कार्य के खर्च के लिए चार विशेष साफ्टवेयर का इस्तेमाल करने की भी तैयारी में है। बिलारी व जंगीपुर विधानसभा उपचुनाव में इन साफ्टवेयरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी अरुण सिंघल ने बाताया कि इस बार के विधानसभा चुनाव में पारदर्शी व त्वरित फैसले के लिए चार तरह के साफ्टवेयरों का इस्तेमाल किया जाएगा। परीक्षण चल रहा है। इस सुविधा से राजनीतिक दलों व चुनाव कार्य में लगे अधिकारियों, कर्मचारियों को भी खासी सुविधा होगी।
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सॉफ्टवेयर के नाम और काम
समाधान : यह ऐसा साफ्टवेयर, जिस पर व्यक्ति या राजनीतिक दल चुनावी गड़बड़ी की शिकायत अपलोड कर सकेंगे। दस्तावेजों के साथ शिकायत अपलोड होने पर स्वत: एक कोड जारी होगा, जिसके जरिए कार्रवाई का ब्योरा देखा जा सकेगा। 72 घंटे अंदर शिकायत निस्तारित हो जाएगी। विलंब होने पर संबंधित अधिकारी को आटोमेटिक कारण बताओ नोटिस जारी हो जाएगा और चुनाव आयोग को अलर्ट संदेश चला जाएगा।
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सुविधा : चुनाव के समय राजनीतिक दलों से लेकर मतदाताओं को जनसभा, जनसभा स्थल, हेलीकाप्टर, जहाज की लैंडिंग, चुनाव क्षेत्र में चलने गाडिय़ों, झंडा, बैनर की इजाजत की आवश्यकता होती है, इसके लिए आयोग ने यह साफ्टवेयर तैयार किया है। इसके जरिये 24 घंटे के अंदर आवेदन पत्र का निस्तारण होगा। आपत्ति लगाने पर निर्वाचन अधिकारी को उसका कारण भी ऑनलाइन दर्ज करना होगा। आवेदक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर प्रार्थना पत्र की स्थिति देख सकेंगे।
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सुलेखा : यह साफ्टवेयर चुनाव में इस्तेमाल होने वाली सामग्री के इस्तेमाल की इजाजत के काम में इस्तेमाल होगा। मसलन, किसी क्षेत्र में आयोग को शामियाना लगाना तो जिला निर्वाचन अधिकारी सुलेखा पर मांग पत्र भेजकर इजाजत ले सकेंगे। चुनाव के दौरान अधिकारियों को 17 बिंदुओं पर इजाजत की आवश्यकता होती है। एडीएम की अध्यक्षता में समिति बनेगी जो दिन में दो बार कार्यवाही का परीक्षण करेगी।
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सुगम : इस साफ्टवेयर के जरिए चुनाव के दौरान प्रयोग होने वाले प्रत्याशियों के वाहनों का ब्यौरा दिया जाएगा। इसमें वाहनों पर खर्च और इनकी संख्या भी शामिल होगी।
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सपा में केरल से बिहार तक की दावेदारी



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-जॉय एंटोनी, देवेन्द्र, सुखराम यादव, रामजी लाल सुमन दावेदारों में शुमार
-माता प्रसाद पाण्डेय, बलराम यादव के समर्थक भी पैरवी में जुटे
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लखनऊ : राज्यसभा चुनाव की डुगडुगी बजने के साथ समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बनने के लिए दिग्गजों ने जोड़तोड़ तेज कर दी है। केरल व बिहार के समाजवादियों से लेकर प्रदेश के दिग्गज राज्यसभा जाने का ख्वाहिशमंद हैं। चार जुलाई को रिक्त होने वाली राज्यसभा की 11 सीटों में से सर्वाधिक सात समाजवादी पार्टी के खाते में जाने की संभावना है, लिहाजा सबसे ज्यादा जोर आजमाइश इसी दल में हैं। गुरुवार देर शाम लखनऊ पहुंचे सपा मुखिया मुलायम सिंह शुक्रवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मंत्री व सपा के प्रदेश प्रभारी शिवपाल यादव के साथ प्रत्याशियों के बारे में चर्चा कर सकते हैं।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने को बेचैन समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के बाहर के पुराने कार्यकर्ताओं को राज्यसभा में भेजकर दायरा व्यापक करने की रणनीति पर काम कर रही है। केरल के रहने वाले व राष्ट्रीय महासचिव जॉय एंटोनी को पार्टी राज्यसभा भेजने पर गंभीरता से विचार कर रही है। पूर्व मंत्री देवेन्द्र प्रसाद को भी राज्यसभा भेजकर समाजवादी पार्टी बिहार में न सिर्फ जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर सकती है बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सियासी जवाब देने का दांव चल सकती है। इसके  अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी झंडा उठाने और अनुसूचित जाति की नुमाइंदगी करने वाले पूर्व सांसद रामजी लाल सुमन या शैलेंद्र कुमार को राज्यसभा का टिकट मिलने की संभावना जतायी जा रही है। सपा मुखिया के संघर्ष के दिनों में साथ रहे सुखराम यादव को भी राज्यसभा का टिकट मिल सकता है। मध्य प्रदेश के सपा प्रदेश अध्यक्ष गौरी शंकर यादव की दावेदारी की भी चर्चा है।
मुस्लिम चेहरे के रूप में समाजवादी पार्टी शफीकुर्रहमान बर्क को टिकट देने पर विचार कर सकती है। वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आजम खां के करीबियों में शुमार बर्क के नाम पर हालांकि सपा के मुस्लिमों का दूसरा खेमा सहमत नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय व माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव के समर्थक भी दोनों को राज्यसभा भेजने की लामबंदी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक पूर्व राज्यसभा सदस्य अमर सिंह का नाम सूची में अब तक सबसे ऊपर है लेकिन पार्टी के दो महासचिव उनकी दावेदारी का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में मुलायम के वीटो से उन्हें राज्यसभा भेजे जाने की उम्मीद है। भगवती सिंह, रेवती रमण सिंह, संजय सेठ का नाम दावेदारों में लिया जा रहा है।
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बसपा का दलित-ब्राह्मïण कार्ड
राब्यू, लखनऊ : राज्यसभा में बसपा की ताकत कम होगी। बसपा के छह सदस्यों की सदस्यता समाप्त होगी और केवल दो सदस्य ही जा सकेंगे। इसमें एक सतीश मिश्रा का राज्यसभा में पुन: जाना सुनिश्चित हो चुका है। इसकी घोषणा स्वयं मायावती ने डा. अंबेडकर जयंती समारोह में की थी। राज्यसभा जाने वाला दूसरा बसपाई दलित समाज से होगा। जाहिर है दलित-ब्राह्मण कार्ड के जरिए बसपा आगामी विधानसभा चुनाव का समीकरण साधने की कोशिश करेगी।
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कैप्टन शर्मा की वापसी पर सवाल
कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा की राज्यसभा में वापसी होने पर सवाल उठ रहे हैं। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार के निकटस्थ होने के बावजूद कैप्टन शर्मा की सदस्यता बची रहना आसान नहीं क्योंकि प्रदेश में नयी रणनीति बनाने में जुटा कांग्रेस नेतृत्व चौंकाने वाला फैसला ले सकता है।

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एमएलसी बनने को सपा में लाबिंग तेज
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-समाजवादी पार्टी के आठ सदस्य बन सकते हैं एमएलसी
-ब्राह्मïण, क्षत्रिय, मुसलमान, अति पिछड़ा और यादव पर लग सकता है दांव
-छह जुलाई को एमएलसी की 13 सीटें रिक्त होंगी, 10 जून को होगा मतदान
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 लखनऊ : विधानसभा सदस्य (एमएलए) के वोट से विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के निर्वाचन की तारीख घोषित होते ही समाजवादी पार्टी (सपा) में दावेदारों ने लाबिंग तेज कर दी है। छह जुलाई को रिक्त होने वाली 13 सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। एमएलए की संख्या के आधार पर न्यूनतम आठ सीटें सपा के खाते में जा सकती हैं।
विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी कील-कांटा दुरुस्त करने में जुटी है। ऐसे समय में एमएलए के वोटों के कोटे की एमएलसी सीटों केचुनाव की तारीख घोषित होते ही उम्मीदवारों ने 'गॉड फादरÓ के दरवाजे खटखटाने शुरू कर दिये हैं, रणनीतिकार अभी चुप हैं मगर मिशन-2017 के समीकरणों का आकलन शुरू हो गया है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी प्रत्याशी चयन में मुसलमान, यादव, अति पिछड़ा और ब्राह्मïण के बीच संतुलन साधने पर मंथन चल रहा है। जिन 13 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें समाजवादी पार्टी के भी चार सदस्य हैं। इनमें मुसलमान, ठाकुर, यादव और अति पिछड़ा के एक-एक सदस्य हैं। पार्टी कोटे की रिक्त सीटों का संतुलन वैसा ही है, जिस पर चलने की समाजवादी पार्टी रणनीति बना रही है।  अति पिछड़ा कोटे से राम सुंदर निषाद और क्षत्रिय कोटे से यशवंत सिंह को दोबारा परिषद का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि अंतिम फैसला अभी होना बाकी है लेकिन पार्टी में लांबिग तेज हो गयी है।
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समाजवादी पार्टी से दावेदार
समाजवादी पार्टी से विधान परिषद की सदस्यता के लिये दावेदारों में रंजना वाजपेयी, हीरा ठाकुर, नईमुल हसन, संजय लाठर , वीरेन्द्र सिंह, जूही सिंह, चन्द्रभूषण उर्फ गुड्डू राजा, कमलेश पाठक, सरफराज खां, डॉ.राम आसरे कुशवाहा, सुरेन्द्र अग्रवाल, शतरूद्ध प्रकाश, रणविजय सिंह, जयशंकर पाण्डेय और संजय सेठ का नाम चर्चा में है, जिस पर अंतिम फैसला समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली संसदीय समिति करेगी। छह जुलाई को रिटायर होने वाले यशवंत सिंह व रामसुंदर दास निषाद का दूसरी बार दावा मजबूत माना जा रहा है।
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चुनाव कार्यक्रम
विधान परिषद की रिक्त सीटों की संख्या-13
अधिसूचना की तारीख : 24 मई
नामांकन की अंतिम तारीख : 31 मई
नामांकन पत्रों की जांच: एक जून
नाम वापसी की अंतिम तारीख : तीन जून
मतदान:  10 जून, सुबह नौ से शाम चार बजे तक
मतगणना : 10 जून, शाम पांच बजे से
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छह जुलाई को रिटायर होने वाले सदस्य
अतहर खां, ऋषिपाल, रामकुमार कुरील, लाल चन्द्र निषाद, वीरेन्द्र कुमार चौहान, सतीश चन्द्र और सुबोध कुमार (सभी बहुजन समाज पार्टी), नसीब पठान (कांग्रेस), हृदय नारायण दीक्षित (भाजपा), बलराम यादव, बुक्कल नवाब, राम सुंदर निषाद और यशवंत सिंह (समाजवादी पार्टी) का विधान परिषद में कार्यकाल छह जुलाई 2016 तक है, इस दिन ये सदस्य रिटायर हो जाएंगे।
---------ब्यूरो: अपडेट: एमएलसी बनने को सपा में लाबिंग तेज
नोट : दावेदारों के नाम बढ़ाये गये हैं और कुछ तथ्यों बदले गये हैं।
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-समाजवादी पार्टी के आठ सदस्य बन सकते हैं एमएलसी
-ब्राह्मïण, क्षत्रिय, मुसलमान, अति पिछड़ा और यादव पर लग सकता है दांव
-छह जुलाई को एमएलसी की 13 सीटें रिक्त होंगी, 10 जून को होगा मतदान
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : विधानसभा सदस्य (एमएलए) के वोट से विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के निर्वाचन की तारीख घोषित होते ही समाजवादी पार्टी (सपा) में दावेदारों ने लाबिंग तेज कर दी है। छह जुलाई को रिक्त होने वाली 13 सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। एमएलए की संख्या के आधार पर न्यूनतम आठ सीटें सपा के खाते में जा सकती हैं।
विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी कील-कांटा दुरुस्त करने में जुटी है। ऐसे समय में एमएलए के वोटों के कोटे की एमएलसी सीटों केचुनाव की तारीख घोषित होते ही उम्मीदवारों ने 'गॉड फादरÓ के दरवाजे खटखटाने शुरू कर दिये हैं, रणनीतिकार अभी चुप हैं मगर मिशन-2017 के समीकरणों का आकलन शुरू हो गया है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी प्रत्याशी चयन में मुसलमान, यादव, अति पिछड़ा और ब्राह्मïण के बीच संतुलन साधने पर मंथन चल रहा है। जिन 13 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें समाजवादी पार्टी के भी चार सदस्य हैं। इनमें मुसलमान, ठाकुर, यादव और अति पिछड़ा के एक-एक सदस्य हैं। पार्टी कोटे की रिक्त सीटों का संतुलन वैसा ही है, जिस पर चलने की समाजवादी पार्टी रणनीति बना रही है।  अति पिछड़ा कोटे से राम सुंदर निषाद और क्षत्रिय कोटे से यशवंत सिंह को दोबारा परिषद का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि अंतिम फैसला अभी होना बाकी है लेकिन पार्टी में लांबिग तेज हो गयी है।
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समाजवादी पार्टी से दावेदार
समाजवादी पार्टी से विधान परिषद की सदस्यता के लिये दावेदारों में रंजना वाजपेयी, हीरा ठाकुर, नईमुल हसन, संजय लाठर , वीरेन्द्र सिंह, जूही सिंह, चन्द्रभूषण उर्फ गुड्डू राजा, कमलेश पाठक, सरफराज खां, डॉ.राम आसरे कुशवाहा, सुरेन्द्र अग्रवाल, शतरूद्ध प्रकाश, रणविजय सिंह, जयशंकर पाण्डेय और संजय सेठ का नाम चर्चा में है, जिस पर अंतिम फैसला समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली संसदीय समिति करेगी। छह जुलाई को रिटायर होने वाले यशवंत सिंह व रामसुंदर दास निषाद का दूसरी बार दावा मजबूत माना जा रहा है।
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चुनाव कार्यक्रम
विधान परिषद की रिक्त सीटों की संख्या-13
अधिसूचना की तारीख : 24 मई
नामांकन की अंतिम तारीख : 31 मई
नामांकन पत्रों की जांच: एक जून
नाम वापसी की अंतिम तारीख : तीन जून
मतदान:  10 जून, सुबह नौ से शाम चार बजे तक
मतगणना : 10 जून, शाम पांच बजे से
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छह जुलाई को रिटायर होने वाले सदस्य
अतहर खां, ऋषिपाल, रामकुमार कुरील, लाल चन्द्र निषाद, वीरेन्द्र कुमार चौहान, सतीश चन्द्र और सुबोध कुमार (सभी बहुजन समाज पार्टी), नसीब पठान (कांग्रेस), हृदय नारायण दीक्षित (भाजपा), बलराम यादव, बुक्कल नवाब, राम सुंदर निषाद और यशवंत सिंह (समाजवादी पार्टी) का विधान परिषद में कार्यकाल छह जुलाई 2016 तक है, इस दिन ये सदस्य रिटायर हो जाएंगे।
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 24 मई को राज्यसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होगी
- कुल 57 सीटों के लिए 11 जून को होगा चुनाव
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 नई दिल्ली।
राज्यसभा के कुल 57 स्थान रिक्त होंगे, जिसके लिए 11 जून को चुनाव होगा। इनमें छह केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग 24 मई को अधिसूचना जारी करेगा।
गुरुवार को राज्यसभा केवल इसीलिए बुलाई गई थी ताकि रिटायर होने वाले सदस्यों को को विदाई दी जा सके। लेकिन सदन की कार्यवाही शुरु होते ही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई। गुजरात से कांग्रेस के सांसद प्रवीण राष्ट्रपाल के निधन की खबर मिलते ही सदन में दो मिनट का मौन रखा गया।  
शुक्रवार को तो खैर कई सदस्य अपनी बात रखेंगे। इनमें से कई सदस्य वापस भी आएंगे। 15 राज्यों के 55 सदस्य जून से अगस्त के बीच रिटायर हो रहे हैैं। कांग्र्रेस के आनंद शर्मा के राजस्थान से सीट खाली करने और कर्नाटक से विजय माल्या के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर भी चुनाव होना है। इस तरह कुल 57 सीटों पर निर्वाचन होगा। इन 57 सीटों में से कांग्र्रेस और भाजपा के खाते की 14-14 सीटें हैैं। जबकि बसपा की छह, जद यू की पांच और सपा, बीजू जनता दल व अन्नाद्रमुक में से प्रत्येक की तीन-तीन सीटें हैैं। डीएमके, एनसीपी और टीडीपी की दो-दो सदस्य रिटायर हो रहे हैैं। जबकि एक सदस्य शिवसेना का भी है। इसके अलावा निर्दलीय सदस्य माल्या भी है, जिसने पांच मई को अपने पद से इस्तीफा  दे दिया है।
रिटायर होने वाले राज्यसभा प्रमुख सांसदों में मोदी सरकार के छह केंद्रीय मंत्री भी शुमार हैं। इनमें एम. वेंकैया नायडू, बिरेंदर सिंह, सुरेश प्रभु, निर्मला सीतारमन, पीयूष गोयल व मुख्तार अब्बास नकवी है। इनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, जद यू नेता शरद यादव और जाने-माने वकील राम जेठमलानी हैैं। फिलहाल जो आंकड़ा है उसके अनुसार भाजपा संभवत: अपना खाता बरकरार रखेगी। कांग्र्रेस की सीटें जरूर कम हो सकती हैैं। बिहार में जदयू को बड़ा नुकसान होने  जा रहा है क्योंकि पांच में से संभवत: दो ही सदस्य जदयू के खाते में जुड़ेंगे।
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा पहुंचने वाले सबसे अधिक 11 सदस्य रिटायर हो रहे हैैं। तमिलनाडु और महाराष्ट्र की छह सीटें खाली हो रही हैैं। बिहार की पांच सीटों पर चुनाव होना है, जबकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से चार-चार सदस्य रिटायर हो रहे हैैं। मध्य प्रदेश और उड़ीसा से तीन-तीन सांसद रिटायर हो रहे हैैं। पंजाब, झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और हरियाणा की दो-दो सीटें रिक्त हो रही हैैं। जबकि उत्तराखंड की एक सीट पर चुनाव कराना पड़ेगा।






Friday 6 May 2016

सपा जल्दी घोषित करेगी प्रत्याशियों की दूसरी सूची

29 april 2016

 -हारी सीटों पर बचे प्रत्याशियों पर मंथन जारी
-दूसरी सूची में युवाओं को मिल सकती है तरजीह

 लखनऊ : विधानसभा चुनाव की तैयारियों का ताना-बाना बुन रही समाजवादी पार्टी ने दो दर्जन प्रत्याशियों की दूसरी सूची भी तैयार हो गयी है। जिसके जल्दी जारी होने की संभावना है।
चुनावी तैयारियों में विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की रणनीति पर चल रही समाजवादी पार्टी ने मार्च के आखिरी हफ्ते में वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में हारी 176 सीटों में 141 के प्रत्याशी घोषित किये। कुछ प्रत्याशियों का विरोध हुआ और कई प्रत्याशी बदले गए और मुलायम सिंह की छोटी बहू को लखनऊ कैन्ट का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया।
 सूत्रों का कहना है कि पार्टी के रणनीतिकार प्रत्याशियों की दूसरी सूची को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इसमें उन हारी सीटों को ही शामिल किया गया है, जिन पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं हुये हैं। सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी का नेतृत्व बची हुई सीटों पर नए और युवा दावेदारों को पुराने प्रत्याशियों पर तरजीह मिलने की संभावना है। सपा के रणनीतिकारों का कहना है कि राजनीति की दिशा बदल रही है, समाजवादी पार्टी विकास के नारे व अखिलेश सरकार के काम को लेकर चुनावी मैदान में जाएगी। ऐसे में युवा प्रत्याशियों के मैदान में होने से इस वर्ग के मतदाताओं को पार्टी से जोडऩे में मदद मिलेगी। हारी सीटों के प्रत्याशी घोषित करने के बाद ही पार्टी अन्य सीटों के प्रत्याशियों का पैनल तैयार करना शुरू करेगी। ध्यान रहे समाजवादी पार्टी ने महासचिव अरविंद गोप, मंत्री शाहिद मंजूर, प्रदेश सचिव व एमएलसी एसआरएस यादव, पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के  नरेश उत्तम समेत आधा दर्जन मंत्रियों की कमेटी गठित कर हारी हुई सीटों पर टिकट मांग रहे दावेदारों में से तीन का पैनल बनाने का जिम्मा दिया था। उसी पैनल में दर्ज नामों में से ही एक के चयन पर शीर्ष नेतृत्व विचार कर रहा है।

सपा और चुनाव आयोग से जुड़ी कुछ खबरें

 १-०४-२०१६
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अपडेट:मुस्लिमों के सहारे असम में जमीन की तलाश

ध्यानार्थ: इन्ट्रो में बदलाव किया गया है।
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-सपा ने 15 प्रत्याशी उतारे, इनमें 12 मुस्लिम
-प्रचार के लिए जाएंगे आठ मुस्लिम मंत्री
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बहुमत की सरकार चला रही समाजवादी पार्टी (सपा) अब असम में सियासी जमीन तैयार करने में जुट गयी है। राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों में से 12 पर न सिर्फ प्रत्याशी उतारे हैं बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह और राज्य के आठ मुस्लिम मंत्रियों को स्टार प्रचारक नियुक्त किया है।
इससे पहले समाजवादी पार्टी ने वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में भी असम की 26 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, मगर तब पार्टी के रणनीतिकार उत्तर प्रदेश की चुनावी तैयारी में ही जुटे थे, लिहाजा वहां कोई भी प्रचार करने नहीं गया था। बावजूद इसके पार्टी को तीन फीसद वोट मिले थे। इस बार सपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में है और नेतृत्व सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की मुहिम में जुटा है। असम की मुस्लिम बहुल सीटों में से 12 पर प्रत्याशी उतराने और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मंत्रियों को स्टार प्रचारक बनाने के पीछे यही रणनीति मानी जा रही है। पार्टी ने कुल 15 प्रत्याशियों को टिकट दिया है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रत्याशियों की क्षेत्रीय पकड़ दिखी और सपा के नाम पर मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ तो भाजपा को उसका फायदा भी हो सकता है।
सपा के स्टार प्रचारकों में मोहम्मद आजम खां व श्रम मंत्री शाहिद मंजूर का नाम सबसे ऊपर है जिन्हें मुस्लिमों का अलंबरदार माना जाता है। इनके अलावा मंत्री अहमद हसन, इकबाल महमूद, कमाल अख्तर, महबूब अली, वसीम अहमद, सांसद मुनव्वर सलीम, युवाजन सभा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नफीस अहमद, महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष अबु आसिम आजमी, राष्ट्रीय महसचिव मौलाना यासीन अली उस्मानी का नाम शामिल है। इससे इतर आरक्षित वर्ग खासकर पिछड़ों को लुभाने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा को असम में कैम्प करने का निर्देश दिया गया है। उनके साथ राज्यसभा सदस्य विशंभर निषाद को भी लगाया गया है। पार्टी ने चुनावी अभियान की कमान महासचिव किरनमय नंदा को सौंपी है। जरूरत पडऩे पर मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव की जनसभा कराने की बात भी कही गयी है।
असम के प्रदेश अध्यक्ष हाफिज रशीद अहमद चौधरी ने फोन पर बताया कि इस बार न सिर्फ पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ेगा बल्कि पार्टी कुछ सीटें भी जीतेगी। पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि देश के सबसे बड़े सूबे की जनता ने सपा को बहुमत दिया है, दूसरे राज्यों में भी यहां के विकास कार्यों की जानकारी दी जा रही है। इसका फायदा उन राज्यों में भी मिलेगा।

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२-०५-२०१६
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 सपा ने भी किया 'गांव की ओरÓ रुख

-साइकिलयात्रियों के साथ रात्रि पंचायत में जाएं बड़े नेता
-केंद्र की वादाखिलाफी के साथ गिनाएं सपा की योजनाएं
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 लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ग्रामोदय अभियान के जवाब में समाजवादी पार्टी ने मंत्रियों, विधायकों व पूर्व सांसदों के साथ 'गांव की ओरÓ रुख करने का फैसला लिया है। पार्टी ने नेताओं से साइकिल यात्रियों द्वारा आयोजित रात्रि पंचायत में हिस्सा लेने का हुक्म दिया है।
समाजवादी पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ वाला दल माना जाता रहा है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पार्टी को 'मार्डन नजरियाÓ दिया और जिसका नतीजा विधानसभा में पूर्ण बहुमत के रूप के सामने आया। अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हुई तो केन्द्र सरकार ने 'ग्रामोदय से भारत उदयÓ अभियान का एलान किया। भाजपा इस अभियान की हमसफर बन गयी। इससे चौकन्ना समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों ने भी कार्यकर्ताओं को गांव-गिरांव का रुख करने का हुक्म सुनाया है।
रविवार से शुरू हुई प्रदेशव्यापी साइकिल यात्रा में शामिल कार्यकर्ताओं को गांव में रात्रि पंचायत लगाने को कहा गया है। पार्टी नेतृत्व ने राज्य सरकार के मंत्रियों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्षों को भी पंचायतों में शामिल होने की हिदायत दी है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रात्रि पंचायत में केन्द्र व राज्य सरकार के कार्यो की तुलना करने का कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है। कहा गया है कि काला धन वापस नहीं होने, सबके खाते में 15 लाख आने का वादा झूठा होने, महंगाई बढऩे के लिए केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाए और राज्य की समाजवादी पेंशन योजना, बुंदेलखण्ड में तीन माह मुफ्त खाद्यान्न वितरण, एक्सप्रेसवे, एम्बुलेंस सेवा 108-102 के बारे में विस्तार से बताया जाये। पार्टी नेतृत्व ने प्रदेश सचिव व एमएलसी एसआरएस यादव को समन्वय बनाने का जिम्मा सौंपा है।
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जनता ने भी चलायी साइकिल
सपा प्रवक्ता व मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने दावा किया कि कड़ी धूप के बावजूद आगरा, इलाहाबाद, झांसी, सहारनपुर, गोरखपुर, गाजियाबाद, मेरठ, अलीगढ़, मीरजापुर, फैजाबाद, बलरामपुर, बस्ती, रायबरेली, कानपुर, सुलतानपुर, बहराइच में साइकिल यात्रा में जनता भी शामिल हुई। लखनऊ में महिला सभा की प्रदेश अध्यक्ष व लखनऊ पूर्व की प्रत्याशी डॉ.श्वेता सिंह व कैन्ट की प्रत्याशी अपर्णा यादव ने भी अपने-अपने क्षेत्रों में साइकिल चलायी। ग्राम्य विकास मंत्री अरविन्द कुमार सिंह गोप ने साइकिल यात्रियों को रवाना किया और अपने क्षेत्र रामनगर में रात्रि चौपाल लगायी।

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३.-०५.२०१६

 आयोग भी जुटा चुनावी तैयारी में
-जर्जर, ध्वस्त मतदान केन्द्रों का ब्यौरा मांगा
-राजनीतिक दलों की सहमति से नए प्रस्ताव मांगे
 लखनऊ : चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव-2017 के इम्तिहान की तैयारी शुरू कर दी है। जिला निर्वाचन अधिकारियों को जर्जर या ध्वस्त हो चुके मतदान केन्द्रों का ब्योरा जुटाने और राजनीति दलों के क्षेत्रीय नुमाइंदों के साथ बैठक कर नये केन्द्रों का 30 जून तक प्रस्ताव आयोग को भेजने को कहा गया है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय धीरे-धीरे करीब आ रहा है, सियासी दलों ने अपने लश्कर और तरकश दुरुस्त करने शुरू कर दिये हैं तो चुनाव आयोग भी पीछ नहीं है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अरुण सिंहल ने जिला निर्वाचन अधिकारियों से उनके क्षेत्र में ध्वस्त, जर्जर मतदान केन्द्रों की ब्यौरा तैयार करने और विकल्प के रूप में नए केन्द्रों का प्रस्ताव बनाने का हिदायत दी है।
 जिला निर्वाचन अधिकारियों से गया है कि नए मतदान केन्द्रों का प्रस्ताव तैयार करने से पहले सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय नुमाइंदों के साथ संयुक्त बैठक की जाये और आम सहमति सेमतदान केन्द्रों का चयन किया जाए।  30 जून तक प्रस्ताव आयोग को भेजने को कहा गया है। आयोग अधिकारियों का कहना है कि पांच सालों में कई मतदान केन्द्र गिर जाते हैं। कई भवन का विस्तार हो जाता है, ऐसे में चुनाव से पहले की यह सामान्य कवायद होती है। नए मतदान केन्द्रों का प्रस्ताव आने पर उसे केन्द्रीय निर्वाचन आयोग को भेज दिया जाता है।
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-अभी पोलिंग बूथों की संख्या-1,40,259
-पोलिंग स्टेशनों की संख्या-89,377

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०४.०५.२०१६
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 एक मतदान केन्द्र पर सिर्फ दो बूथ होंगे
-चुनाव आयोग ने शुरू की कवायद
-अभी दो से अधिक बूथ बनते रहे हैं

 लखनऊ : चुनाव आयोग एक मतदान केन्द्र पर सिर्फ दो बूथ बनाने की कवायद में जुट गया है। अभी एक केन्द्र पर दो से अधिक बूथ बनते रहे हैं। इस प्रयास के पीछे मतदान के दौरान सुरक्षा पुख्ता करने की मंशा है।
 विधानसभा के चुनाव की कुछ माह के अंदर उल्टी गिनती शुरू होगी, लिहाज चुनाव आयोग अभी से अपनी तैयारी में जुट गया है। इस बार एक मतदान केन्द्र पर अधिकतम दो बूथ बनाने की कवायद शुरू की गयी है। दरअसल, 15 सौ मतदाता पर एक बूथ बनाने का नियम है, राज्य में तकरीबन तीन हजार ऐसे मतदान केन्द्र हैं, जहां एक बूथ पर 15 दूसरे पर आठ सौ मतदाता हैं। यानी एक बूथ में कम और दूसरे में काफी ज्यादा मतदाता हैं, लिहाजा ऐसे केन्द्रों पर आयोग तीन बूथ बनाने की इजाजत देता रहा है, इस बार एक मतदान केन्द्र पर दो से अधिक बूथ नहीं बनाने की हिदायत दी गयी है यदि तीसरा बूथ बनाने के सिवाय विकल्प नहीं होने पर उसका कारण भी स्पष्ट करना होगा।
आयोग के अधिकारियों का कहना है कि एक मतदान केन्द्र के जिन दो बूथों में मतदाताओं की संख्या में अंतर है, वहां मतदाता संख्या का समान बंटवारा कर दिया जाएगा। इससे तीसरा बूथ बनाने की जरूरत खत्म हो जाएगा। इससे चुनाव में संसाधन कम होगा। सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हो सकेगी। आयोग ने जिला निर्वाचन अधिकारियों से ऐसे केन्द्रों का ब्यौरा मांगा है। ध्यान रहे, गत दिनों चुनाव आयोग जिला निर्वाचन अधिकारियों को पांच सालों के अंतराल में जर्जर या ध्वस्त हो गए मतदान केन्द्रों का ब्यौरा तैयार करने की हिदायत दी है। ताकि ऐसे मतदान केन्द्रों में बदलाव किया जा सके।

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२२.०४.२०१६
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 नजर में रहेंगी बूथ कमेटियां

-अब हर दो माह में होगी राज्य कार्य कारिणी की बैठक
-अखिलेश यादव चेहरा होंगे और शिवपाल संगठन संभालेंगे
lucknow : समाजवादी पार्टी (सपा) के चुनावी अभियान का रंग धीरे-धीरे चटक हो रहा है। हारी सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा फिर एक अप्रत्याशित फैसले में प्रदेश प्रभारी की नियुक्ति के बाद अब मुलायम सिंह यादव बूथ कमेटियों के गठन की निगरानी भी करेंगे। और हर दो माह पर राज्य कार्यकारिणी की बैठक होगी। सपा छह माह से 'एक बूथ-बीस यूथÓ की रणनीति पर चल रही है।
सपा अपने प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि व प्रदेश प्रभारी शिवपाल यादव की संगठनात्मक क्षमता के बूते विधानसभा-2017 के चुनावी मैदान में कूदने की रणनीति तैयार कर रही है। कुछ माह पहले शुरू हुए एक बूथ पर बीस यूथ की योजना पर अमल की समीक्षा भी शुरू हो गयी है। प्रभारी नियुक्त होने के बाद शिवपाल यादव ने जिलाध्यक्षों को एक पखवारे के अंदर बूथ कमेटियों के गठन का कार्य पूरा करने की हिदायत दी है। पदाधिकारियों को बताया गया है कि चुनावी साल में पार्टी पूर्व की भांति दो माह पर राज्य कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करेगी, जिसमें अपनी चुनावी तैयारियों व विपक्ष की रणनीति पर चर्चा होगी। इसमें सामने आयी जानकारी उसी दिन जिलाध्यक्ष, नगर अध्यक्ष व महामंत्रियों के साथ साझा की जाएगी। बैठक को मुलायम सिंह यादव भी संबोधित किया करेंगे।
सपा के लोगों का दावा है कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश की छवि साफ-सुथरी है, लिहाजा उन्हें विकास की राह पर ही चलते रहने का मंत्र दिया गया है, जबकि शिवपाल को विपक्ष के हमले पर त्वरित प्रतिक्रिया देने के साथ संगठन को सक्रिय बनाने का दायित्व दिया गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि चुनावी कार्यो में विभाजन के बाद भी मुलायम खुद बूथ कमेटियों की समीक्षा करेंगे। सूत्रों का कहना है कि बीते सप्ताह में दो बार मुलायम ने दाधिकारियों से बूथ कमेटियों की तैयारियों की जानकारी ली है। जिलाध्यक्षों को भी वह लगातार चेता रहे हैं कि अगर एक भी बूथ कमेटी फर्जी मिली को उसी समय अनुशासनहीनता की कार्रवाई होगी, उसके परिणाम चाहे जो हों। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि पार्टी का संगठन सबसे बड़ा है, बूथ कमेटियों के गठन का कार्य पूरा हो गया है। कार्यकर्ता उत्साह में है। इन्ही कार्यकर्ताओं के बल समाजवादी पार्टी की सरकार रिपीट होगी।







Monday 2 May 2016

दूसरे विश्वविद्याालय का दर्जा

2 may 2016 published_ 3 may
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-लंबित छह विधेयकों में दो-तीन भेजे जा सकते हैं राष्ट्रपति को
-वापसी की दशा में संशोधित विधेयक को मिल सकती है मंजूरी
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लखनऊ: राज्यपाल राम नाईक ने सैफई के ग्रामीण इंस्टीट्यूट को प्रदेश के दूसरे चिकित्सा विश्वविद्यालय  का दर्जा देकर  भले ही सपा सरकार को बड़ी राहत दी हो लेकिन अन्य लंबित विधेयकों को यूं ही राजभवन से हरी झंडी मिलती नहीं दिख रही है। अब आधा दर्जन लंबित विधेयकों में से दो-तीन को जहां राज्यपाल, राष्ट्रपति को भेज सकते हैं वहीं शेष को तभी मंजूरी मिलने के आसार हैं जब राज्य सरकार, राज्यपाल द्वारा उठाई गई आपत्तियों को दूर करने को तैयार हो।
दरअसल, महापौरों के अधिकारों में कटौती करने संबंधी उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2015 सहित कुल सात विधेयक पिछले वर्ष से राजभवन में लंबित थे। विधानमंडल से पारित इस विधेयक को मंजूरी न मिलने पर तो संसदीय कार्यमंत्री मो. आजम खां सदन के अंदर से बाहर तक राज्यपाल पर लगातार टिप्पणी कर रहे हैं। इस पर नाराज नाईक द्वारा कड़ी आपत्ति उठाने पर 30 अप्रैल को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद राजभवन पहुंचे थे। लगभग एक घंटे की मुलाकात में नाईक ने अखिलेश को बताया कि आखिर वह क्यों विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं? मुलाकात के बाद ही राज्यपाल ने दो-चार दिनों में सभी विधेयकों को निस्तारित करने के संकेत दिए थे।
हुआ भी वैसा ही, रविवार के अवकाश के बाद सोमवार दोपहर में ही राजभवन के प्रवक्ता ने राज्यपाल द्वारा उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई, इटावा, विधेयक, 2015 को मंजूरी देने की जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि सैफई से जुड़े विधेयक को हरी झंडी दिलाने के लिए पूर्व में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी राज्यपाल से मिलने पहुंचे थे।
गौर करने की बात यह कि अब राजभवन में लंबित रह गए छह विधेयकों में से किसी पर भी मौजूदा रूप में राज्यपाल की सहमति मिलने की कतई उम्मीद नहीं है। सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल द्वारा उठाई गई आपत्तियों के मद्देनजर जिन विधेयकों को सरकार संशोधित करने को तैयार होगी उन्हें राज्यपाल एक-दो दिन में वापस सरकार को भेज देंगे। इनमें डॉ0 राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान विधेयक, 2015 व आईआईएमटी विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश विधेयक, 2016 हो सकता है। चूंकि लोकायुक्त का चयन हो चुका है इसलिए अब उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त एवं उप लोक आयुक्त  (संशोधन) विधेयक, 2015 को लेकर सरकार भी फिक्रमंद नहीं है। सरकार इसे वापस ले सकती है।
सूत्र बताते हैं कि महापौरों के अधिकारों में कटौती करने संबंधी उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2015, उत्तर प्रदेश नगरपालिका विधि (संशोधन) विधेयक, 2015, उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015 को राज्यपाल राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। कारण है कि आजम के रुख से यही लगता है कि सरकार इन विधेयकों में किसी तरह का बदलाव नहीं करना चाहती है। राज्यपाल भी इन्हें वापस नहीं करना चाहेंगे क्योंकि यदि सरकार ने फिर विधानमंडल से पारित कराकर राजभवन को भेजा तो उनके सामने सिवाय मंजूरी देने के दूसरा कोई रास्ता नहीं बचेगा। ऐसे में यही माना जा रहा है कि राज्यपाल इन विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो शायद ही मौजूदा सरकार के दौरान संबंधित विधेयक को हरी झंडी मिल पाए।
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क्या है लंबित विधेयकों में
1-उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2015 : नगर निगम से लेकर नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के लिए सरकार एक कानून चाहती है। वर्तमान में नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के लिए सौ वर्ष पुराना उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 जबकि नगर निगमों के लिए उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 है। विधेयक में चूंकि कर्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वहन में किसी तरह की चूक के लिए प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के अध्यक्षों की तरह कारण बताओ नोटिस जारी होते ही महापौर के भी वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार पर रोक लगाने और जांच में दोषी पाए जाने पर सरकार द्वारा उन्हें पद से हटाने की व्यवस्था है, इसलिए महापौर इसे संंविधान की मंशा के विपरीत बताते हुए इसका विरोध कर रहे हैं।
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2.-उत्तर प्रदेश नगर पालिका विधि (संशोधन) विधेयक-2015 : इससे राज्य सरकार नगर निगम में नामित पार्षदों को निगम की बैठक तथा नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत में नामित सदस्य को नगर पालिका की बैठकों में मत देने के अधिकार को समाप्त करना चाहती है। गौरतलब है वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 व उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में संशोधन कर सरकार ने नामित पार्षदों व सदस्यों को मत देने का अधिकार दिया था। अब मनोनीत पार्षदों व सदस्यों को बैठकों में मत देने के अधिकार को संविधान के विपरीत मानते हुए सरकार, उत्तर प्रदेश विधि (संशोधन) विधेयक के माध्यम से मताधिकार समाप्त करना चाहती है। राज्य सकार नगर निगम में 10 पार्षद और नगर पालिका परिषद में पांच व नगर पंचायतों में तीन सदस्य नामित कर सकती है।
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3. उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015: इसमें अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा देने का प्रस्ताव है। इसके लिए राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1994 में संशोधन करने का निर्णय किया था। सूत्रों के मुताबिक अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा देने को संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत मानते हुए ही राज्यपाल इस विधेयक को मंजूरी नहीं दे रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के मंत्री का दर्जा देने की प्रक्रिया राज्य सरकार ने सितंबर 2014 में शुरू हुई थी। समाजवादी सरकार ने उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1994 (उप्र अधिनियम संख्या 22) में बदलाव करते हुए उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) अध्यादेश-2014 के जरिये आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का प्रस्ताव राजभवन भेजा था। राज्यपाल राम नाईक अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने के बजाय सरकार से कुछ सवालों के जवाब मांगे। 10 सितंबर 2014 को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र कहा था कि अध्यादेश में 'तात्कालिकताÓ होना जरूरी शर्त होती है जब 1994 से अब तक आयोग बिना मंत्री के दर्जा के चल रहा है, तब अध्यादेश क्यों? इसके अलावा राज्यपाल ने कहा कि केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को सिर्फ लोकसेवक माना गया है और राज्य के दूसरे आयोग के अध्यक्षों को मंत्री का दर्जा नहीं है। इसके अलावा सांविधानिक और अदालती आदेशों का हवाला दिया था।
राजभवन के इस रुख के बाद समाजवादी सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा देने का बिल विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित कराया। और उसे उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015 नाम देते हुए राजभवन को भेज दिया। राज्यपाल ने इस बिल पर अभी हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

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4-डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान विधेयक, 2015 :  इसमें संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) की तुलना में राज्यपाल का हस्तक्षेप कम किया गया है। एसजीपीजीआइ में निदेशक की नियुक्ति सहित अन्य अतिमहत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन राज्यपाल, संस्थान के विजिटर के रूप में करते हैं। लोहिया संस्थान में यह भूमिका समाप्त कर अध्यक्ष के रूप में मुख्य सचिव को सौंप दी गयी है। माना जा रहा है कि इसी कारण राज्यपाल ने यह विधेयक अब तक मंजूर नहीं किया है।
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5-उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप लोक आयुक्त (संशोधन) विधयेक, 2015: इसमें लोकायुक्त चयन समिति से हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश की भूमिका खत्म करने और उनके स्थान पर नयी चयन समिति का प्रस्ताव है। मौजूदा समय में लोकायुक्त समिति में मुख्यमंत्री, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सदस्य हैं। इस विधेयक के विचाराधीन रहते ही सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्त की नियुक्ति कर दी है।
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6-आइआइएमटी विश्वविद्यालय, मेरठ, उप्र विधेयक, 2016 : इस विधेयक के कुछ प्रावधानों से राज्यपाल सहमत नहीं है। विधेयक में विश्वविद्यालय कर्मचारियों की सेवा शर्तों को लेकर उन्हें आपत्ति है। विधेयक की धारा-32 में प्रावधान है कि विश्वविद्यालय और उसमें मौलिक रूप से नियुक्त किसी कर्मचारी के बीच हुआ विवाद कुलपति को संदर्भित किया जाएगा। कुलपति विवाद के संदर्भित होने से तीन महीने के अंदर कर्मचारी को अवसर देने के बाद विवाद का निपटारा करेगा। कुलपति के आदेश से व्यथित कर्मचारी कुलाधिपति को अपील कर सकता है। ऐसे मामले में कुलाधिपति का निर्णय अंतिम होगा जिसके खिलाफ किसी न्यायालय में कोई वाद नहीं दाखिल किया जाएगा। कर्मचारियों को अदालत जाने के अधिकार से वंचित करने के प्रावधान से राज्यपाल असहमत हैं। विधेयक में कहा गया है कि प्रायोजक निकाय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित मानकों व शर्तों को पूरा करेगा। लेकिन विधेयक के कई प्रावधान यूजीसी की मंशा के विपरीत हैं जिनसे राज्यपाल संतुष्ट नहीं हैं। 

Sunday 1 May 2016

रार पर राजभवन से नहीं मिला करार

10th april 2016 publi
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-विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय पहुंचे राज्यपाल से मिलने
-लंबित विधेयकों से लेकर अधिकारों तक पर हुई चर्चा
-आजम की टिप्पणियों को फिर आपत्तिजनक कहा नाईक ने
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : विधेयक रोकने को लेकर विधानसभा में राजभवन की कार्यशैली पर टिप्पणी से शुरू 'रारÓ पर विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय की शनिवार को राज्यपाल राम नाईक से हुई मुलाकात में भी 'करारÓ जैसी स्थितियां न बन सकीं। राज्यपाल ने सांविधानिक शक्तियों का हवाला देते हुए विधेयक विचाराधीन रखने के कारण जरूर गिना दिये। माना जा रहा है अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जल्द ही राज्यपाल से मिल सकते हैं।
शनिवार शाम को ही राजधानी में हुए एक कार्यक्रम में राज्यपाल ने यह भी कह दिया कि उन्होंने विधेयकों को उनकी कानूनी कमियों के कारण रोका है। इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष व राज्यपाल में 50 मिनट तक छह विधेयकों को लंबित रखने के कारणों पर चर्चा हुई। सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान संसदीय कार्य मंत्री आजम खां द्वारा की गयी टिप्पणियों को आपत्तिजनक ठहराया। कहा कि वह मुख्यमंत्री से चर्चा करेंगे। अध्यक्ष ने भी मुख्यमंत्री से चर्चा की बात कही। राजभवन प्रवक्ता ने बताया कि  राज्यपाल ने मुलाकात के दौरान कौन-कौन से विधेयक किन कारणों से उनके पास विचाराधीन हैं, इसकी जानकारी अध्यक्ष को दी और दो जून, 1949 को संविधान सभा में राज्यों के प्रशासनिक एवं विधायी विषयों पर मुख्यमंत्रियों से सूचनाएं और अभिलेख तलब करने संबंधी राज्यपालों के अधिकारों और मुख्यमंत्रियों के कर्तव्यों पर हुई बहस की प्रति विधानसभा अध्यक्ष को सौंपी। संविधान सभा में अनुच्छेद 147 पर बहस प्रारम्भ हुई थी जिसे अंतत: संविधान सभा द्वारा अनुच्छेद 167 के रूप में स्वीकार किया गया। इसमें राज्यपाल को सरकार से कोई भी दस्तावेज, सूचना तलब करने का अधिकार है।
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राजभवन में विचाराधीन विधेयक
1-उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2015
नगर निगम से लेकर नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के लिए सरकार एक कानून चाहती है। वर्तमान में नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के लिए सौ वर्ष पुराना उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 जबकि नगर निगमों के लिए उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 है। विधेयक में चूंकि कर्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वहन में किसी तरह की चूक के लिए प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के अध्यक्षों की तरह कारण बताओ नोटिस जारी होते ही महापौर के भी वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार पर रोक लगाने और जांच में दोषी पाए जाने पर सरकार द्वारा उन्हें पद से हटाने की व्यवस्था है, इसलिए महापौर इसे संविधान की मंशा के विपरीत बताते हुए इसका विरोध कर रहे हैं।
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2.-उत्तर प्रदेश नगर पालिका विधि (संशोधन) विधेयक-2015 इससे राज्य सरकार नगर निगम में नामित पार्षदों को निगम की बैठक तथा नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत में नामित सदस्य को नगर पालिका की बैठकों में मत देने के अधिकार को समाप्त करना चाहती है। गौरतलब है वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 व उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में संशोधन कर सरकार ने नामित पार्षदों व सदस्यों को मत देने का अधिकार दिया था। अब मनोनीत पार्षदों व सदस्यों को बैठकों में मत देने के अधिकार को संविधान के विपरीत मानते हुए सरकार, उत्तर प्रदेश विधि (संशोधन) विधेयक के माध्यम से मताधिकार समाप्त करना चाहती है। राज्य सकार नगर निगम में 10 पार्षद और नगर पालिका परिषद में पांच व नगर पंचायतों में तीन सदस्य नामित कर सकती है।
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3. उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015
इसमें अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा देने प्रस्ताव है। इसके लिए राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1994 में संशोधन करने का निर्णय लिया था।
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4.- उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई इटावा विधेयक, 2015
उप्र ग्रामीण आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान का गठन 15 दिसंबर 2005 को हुआ था। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा देने के लिए आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई विधेयक -2015 राज्यपाल को भेजा था, इसमें विश्वविद्यालय का कुलाधिपति मुख्यमंत्री को बनाने की बात थी। कुलाधिपति के बिन्दु पर ही एतराज जताते हुए राज्यपाल ने बिल रोक रखा है।
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5 -उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप लोक आयुक्त (संशोधन) विधयेक, 2015
इसमें लोकायुक्त चयन समिति से हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश की भूमिका खत्म करने और उनके स्थान पर नयी चयन समिति का प्रस्ताव है। मौजूदा समय में लोकायुक्त समिति में मुख्यमंत्री, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सदस्य हैं। इस बिल के विचाराधीन रहते ही सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्त की नियुक्ति कर दी।
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6- डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान विधेयक, 2015
इसमें लखनऊ स्थित राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय का लोहिया आयुर्विज्ञान में विलय कर विश्वविद्यालय का दर्जा देने और मुख्यमंत्री को इसका कुलाधिपति नियुक्त करने की बात है, सामान्यत: विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति राज्यपाल होते हैं। मुख्यमंत्री को कुलाधिपति बनाने के प्रस्ताव पर राजभवन को एतराज है।