Monday 28 November 2022

वाह प्रो. विनय पाठक ! झूठ के बल गढ़ा कुलपति बनने का रिकार्ड

-वीसी बनने के पहले दावे में 36 शोध पत्र, चौथे दावे में सिर्फ 20 बचे

-3 बार कुलपति रहने के बाद चौथे में शैक्षिक उपलब्धियां घटने का अजूबा

परवेज अहमद

लखनऊ। तीन विश्वविद्यालयों का कुलपति रहने के बाद किसी शिक्षाविद की शैक्षिक, शोध उपलब्धियां कम होती हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में  शैक्षिक दुनिया की गहराइयों से अनभिज्ञ व्यक्ति भी कहेगा-नहीं, यह नहीं हो सकता। उपलब्धियां तो बढ़ेंगी। पर, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक का वैयक्तिक ब्योरा ( बायोडेटा) इसे झुठलाता है। राजस्थान, उत्तराखंड और अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय (एकेटीयू) का कुलपति रहने के बाद चौथी बार कुलपति बनने के लिए उन्होंने जो बायोडेटा कुलाधिपति को भेजा, उसमें उनके शोध, रिसर्च पेपर, प्रजेंटेशन घट गये थे। आश्चर्यजनक रूप से मूल शोधों की संख्या-11 से घटकर शून्य हो गयी। इसके बावजूद राजभवन के अधिकारियों व सर्च कमेटी ने पूर्व के वैयक्तिक ब्योरे का अध्ययन किये बगैर ही उन्हें चौथी बार कुलपति नियुक्त कर दिया।

अगर दस्तावेजों की दृष्टि से देखें तो यह प्रतीत होता है कि प्रो.विनय पाठक ने झूठ और फरेबी दस्तावेज के बल पर कुलपति बनने की शुरूआत की। पहली बार जब कुलपति बने तो उन्होंने एचबीटीआई (अब विवि) में डीन व दस साल का अनुभव होने का दावा किया था, जबकि उस समय सिर्फ डीन का एक पद सृजित था, जिस पर कोई दूसरा प्रोफेसर नियुक्त था और पाठक को प्रोफेसर हुए दस साल भी नहीं हुए थे। कुलपति बनने के लिए उनकी ओर  से कुलाधिपति कार्यालय भेजे गये बायोडेटा में स्पेन, पोलैंड, यूएसए, पुर्तगाल, हंगरी, कोरिया, चीन, सिंगापुर, इजिप्ट जैसे देशों के साहित्यिक, इंजीनियरिंग के जनरलों में 36 रिसर्च पेपर प्रकाशित होने व बड़ी संख्या में पेपर प्रजेंट करने का दावा किया। इनमें 11 शोधपत्रों के सोल प्रापर्टी (मूल शोध) होने का दावा है। इसी के बल पर तीन पर कुलपति नियुक्त होने व कार्यकाल पूरा करने के बाद जब चौथी बार एकेटीयू का कुलपति बनने के लिए वैयक्तिक ब्योरा राजभवन को भेजा तो आश्चर्यजनक ढंगे से उनके शोधों की संख्या व शैक्षिक उपलब्धियां कम हो गईं, यह शैक्षिक दुनिया का नया अजूबा था। जन सूचना अधिकार के जरिये हासिल प्रो.विनय पाठक के दूसरे बायोटेडा में पहली की उपलब्धियों को घटाते हुए दावा किया गया है कि उनके सिर्फ 20 शोध पत्र इंटरनेशनल जनरल में प्रकाशित हुए हैं। पहले के बायोडेटा में 36 थे यानी 16 पेपर घट गये। सिर्फ ये नहीं सोल आर्थर ( मूल शोधकर्ता) के रूप में लिखे पेपर शून्य हो गये। जबकि पहले बायोडेटा में 11 पेपर घोषित थे। यानी तीन बार कुलपति रहने के बाद उनके शैक्षिक योग्य़ता, उपलब्धि घट गई। जिससे उनका झूठ तो सामने आ ही रहा है पर उनको नाम शार्ट करके आगे बढ़ाने वाली चयन समिति भी सवालों से बच नहीं सकती है। कांग्रेस के प्रवक्ता अमरनाथ अग्रवाल कहते हैं कि दुनिया में हमने पहली बार ये जादू देखा है जिसमें नौ साल तक कुलपति जैसा दायित्व संभालने वाले शिक्षाविद की उपलब्धि घट जाए। कांग्रेस के ही बृजेन्द्र सिंह कहते हैं जिस पर लाखों छात्रों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी होती है, वह ही अगर तथ्यों पर फरेब का मुल्लमा चढ़ा रहा है तो ये आपराधिक कृत्य है। प्रो.विनय पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच से पहले बायोडेटा में धोखाधड़ी की एफआईआर होनी चाहिए। वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि दो जन्मतिथि प्रमाण पत्र होने पर सपा विधायक अब्दुला आजम की सदस्यता रद हो सकती है तो जिस पर लाखों-लाख छात्रों के अभिभावक होने का दायित्व है, उस पर तो पहले मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करना चाहिए।

 

इंसेट-एक

दो जन्म प्रमाण पत्र पर सपा विधायक अब्दुला आजम की सदस्यता रद हुई, मुकदमा दर्ज हुआ तो जिस पर लाखों छात्रों के अभिभावक होने का दायित्व उसके फरेब पर अब तक मुकदमा क्यों दर्ज नहीं हुआ- बृजेन्द्र सिंह, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस

इंसेट-दो

हमने पहली बार ये जादू देखा है जिसमें नौ साल तक कुलपति का दायित्व संभालने वाले शिक्षाविद की उपलब्धि घट जाए- अमरनाथ अग्रवाल, यूपी कांग्रेस प्रवक्ता

 

एकेटीयू में अधूरों निर्माण पर भी करोड़ों का भुगतान जारी

 कुलसचिव ने कार्यदायी संस्था को लिखे पत्र में स्वीकारा भुगतान के बाद भी कार्य अधूरा

विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ। अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के भ्रष्टाचारों की परत-दर-परत खुलती जा रही है। भर्ती से लेकर ठेके पट्टे तक में भ्रष्टाचार का चरम उजागर हो रहा है बावजूद इसके वे सारे कार्य हो रहे हैं जिसमें भ्रष्टाचार की गंध स्पष्ट महसूस हो रही है। एकेटीयू के घटक संस्थान आईईटी में 16 नवम्बर को सड़क निर्माण के नाम पर तकरीबन दो करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। आश्चर्यजनक बात ये है कि विवि के रजिस्ट्रार सचिन कुमार सिंह ने यूपीपीसीएल की इकाई-14 के परियोजना प्रबंधक को लिखे पत्र में स्वीकारा है कि भुगतान के बाद भी निर्माण कार्य नहीं किया गया है।

प्रो.विनय पाठक के कार्यकाल में नियुक्तियों, ठेके, निर्माण कार्य, सेवा प्रदाता कंपनी, परीक्षा की गड़बड़ियों की स्पेशल टॉस्क फोर्स पहले से जांच कर रही है। करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार का खुलासा हो रहा है। हर दिन पत्रावलियां मांगी जा रही है। बावजूद दूसरी ओर से विश्वविद्यालय प्रशासन आधे-अधूरे निर्माण का करोड़ों रुपया भुगतान करने पर आमादा है। ये कार्य प्रो.विनय पाठक के दौरान ही निर्धारित किये थे, बावजूद इसके भुगतान किया जा रहा है। गत दिनों सड़क निर्माण के लिए पौने दो करोड़ के करीब का भुगतान कर दिया गया। सूत्रों का मुताबिक एकेटीयू के कुलपति सचिन कुमार सिंह ने 16 नवम्बर को य़ूपी प्रोजेक्ट कारपोरेशन के परियोजना प्रबंधक ईकाई-14 को लिखे पत्र में कहा है कि अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय ने आईईटी परिसर में सड़क की मरम्मत के लिए 209.37 लाख मंजूर किया। इसके बाद कुछ दिनों के अंतराल में पहली किश्त के रूप में 83.75 लाख रुपये, दूसरी किश्त के रूप में 83.75 लाख रुपया और तीसरी किश्त के रूप में 22.50 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया।  बावजूद इसके बाद भी निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। सूत्रों का कहना है कि अब तक सिर्फ 30 फीसदी काम भी नहीं हुआ है। कुलसचिव ने कार्यदायी संस्था को लिखे पत्र में कहा है कि आईईटी प्रशासन के साथ सामंजस्य बनाकर तत्काल निर्माण कार्य पूरा कराया जाए। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का कहना है कि वित्तीय गड़बड़ियों की व्यापक जांच के दौर में भी अधूरे निर्माण कार्य का भुगतान किया जाना भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है।

 

कुलाधिपति रामनाईक ने भी प्रो.विनय पाठक को दिया संरक्षण

 -इग्नू के डिप्टी डायरेक्टर ने प्रो.पाठक के विरुद्ध भ्रष्टाचार, षणयंत्र का मुकदमा चलाने की राम नाईक से मांगी थी अनुमति

-आईआईटी कानपुर के पूर्व निदेशक प्रो.संजय धाण्डे ने प्रो.पाठक का इग्नू में उपकुलपति बनाने का इन्टरव्यू किया, विजिलेंस क्लीयरेंस में फंसी थी फाइल

परवेज अहमद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की तकनीकी शिक्षा के शीर्ष अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के कुलपति प्रो.विनय पाठक के संरक्षण में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने इंदिरागांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के डिप्टी डायरेक्टर डॉ.आर.सुदर्शन के उस ई-मेल और दस्तावेजों को रद्दी टोकरी में डाल दिया, जिसमें प्रो.विनय के विरुद्ध आपराधिक षडयंत्र का मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गई थी। आरोपों के समर्थन में इग्नू कार्य परिषद की चार मीटिंगों के मिनट्स, कानूनों की धाराओं, दिल्ली हाईकोर्ट फिर सुप्रीमकोर्ट की याचिका का उल्लेख था। आश्चर्यजनक बात ये है कि अपने बायोडेटा में छोटी-छोटी उपलब्धियों का उल्लेख करने वाले प्रो.विनय पाठक ने इग्नू बोर्ड ऑफ मैनेजमेन्ट (बीओएम) का सदस्य होने और तत्कालीन कुलपति प्रो.एम.आलम की गैरमौजूदगी में विवि की प्रोसीडिंग का नेतृत्व करने का उल्लेख नहीं किया है। सूत्रों का कहना है कि डॉ भीमराव आंबेडकर विवि के प्रिंटिंग कार्य में घूसखोरी की जांच कर रही यूपी स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ) ने आर.सुदर्शन के गुडगांव ( हरियाणा) में संपर्क साधा है।

केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल (यूपी) में उनके सचिव रह चुके उत्तर प्रदेश कॉडर के आईएएस अनंत कुमार सिंह के मानव संसाधन मंत्रालय (शिक्षा मंत्रालय) में संयुक्त सचिव उच्च शिक्षा रहते हुए प्रो.विनय पाठक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) कार्य परिषद के सदस्य नियुक्त हुये थे । कुछ अरसे बाद ही इग्नू के बाद उपकुलपति पद पर योग्य उम्मीदवार चयनित करने के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित किया गया, इस पैनल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के निदेशक प्रो.संजय गोविंद धाण्डे (प्रो.विनय पाठक के पीएचडी के गाइड), यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ.हरिगौतम और सीएसआईआर के निदेशक प्रो.एससी जोशी शामिल थे। इस कमेटी ने दस उम्मीदवारों की सूची तैयार की मगर साक्षात्कार सिर्फ प्रो.कपिल कुमार, प्रो.रविन्द्र कुमार श्रीवास्तव, प्रो.विनय पाठक का कराया गया। नियमानुसार उपकुलपति पद के लिए पैनल में शामिल उम्मीदवारों की विजिलेंस व आईबी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) की क्लीयरेंस आवश्यक होती है। सूत्रों का कहना है विजिलेंस जांच से पहले ही इन तीनों उम्मीदवारों के विरुद्ध किस्म-किस्म के आरोपों का कुलासा होने लगा। लिहाजा  उपकुलपति नियुक्त करने की प्रोसीडिंग रुक गई। मगर प्रो.विनय पाठक कार्य परिषद के सदस्य बने रहे।

सूत्रों का कहना है कि प्रो.एम आलम ने इग्नू का कार्यवाहक कुलपति रहते हुए और फिर पूर्णकालिक कुलपति के रूप में प्रो. विनय पाठक को विभिन्न कमेटियों का अध्यक्ष नामित किया। प्रो.आलम खुद भी भ्रष्टाचार, गैर कानूनी ढंग से विश्वविद्यालयों को मान्यता देने के आरोपों से घिरे थे। अपुष्ट आरोप तो ये भी है कि प्रो.विनय पाठक ने अपने राजनीतिक रसूखों के बल प्रो.आलम को पूर्णकालित कुलपति नियुक्त कराया था। सूत्रों का कहना है कि इग्नू के कुलपति, कई कमेटियों के चेयरमैन की कार्यशैली का विरोध करने पर तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर योजना एवं विकास डॉ.आर सुदर्शन को पहले न सिर्फ प्रताड़ित किया गया बल्कि नवम्बर 2014 में निलंबित कर दिया गया। प्रो. विनय पाठक की कमेटी ने 6 दिसम्बर 2014 को 45 दिनों के लिए निलंबन बढ़ा दिया। आर.सुदर्शन ने इग्नू कार्य परिषद की 118, 119, 120 और 122वीं की रिपोर्टों का हवाला देते हुये याचिका में साबित करने का प्रयास किया कि प्रो.विनय पाठक ने अनुशासन समिति की अध्यक्षता करते हुए आपराधिक साजिश के तहत उन्हें निलंबित कराया। इस बीच उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति ने आईआईटी कानपुर के तत्कालीन निदेशक प्रो.संजय धाण्डे को ही एकेटीयू की कुलपति चयन के लिए सर्च कमेटी का अध्यक्ष बना दिया और अनंततः प्रो.विनय पाठक ही अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हो गये।

आखिर आर.सुदर्शन ने राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति व राज्यपाल राम नाईक को ई-मेल, डाक से दस्तावेजों के साथ प्रत्यावेदन भेजा। जिसमें प्रो.विनय पाठक की आपराधिक साजिशों का उल्लेख करते हुए उसमें इग्नू के तत्कालीन कुलपति प्रो.एम आलम को दोषी बताते हुये पाठक के खिलाफ आपराधिक षणयंत्र का मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी। ल तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक के कार्यालय ने तथ्यों से भरी इस शिकायत को नजर अंदाज कर दिया था।

 

इग्नू के 263वें प्रतिवेदन में भी गड़बड़ी का उल्लेख

राज्यसभा के 10 और लोकसभा के 31 सांसदों वाली समिति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का कार्यकरण दो सौ तिरसठवां प्रतिवेदन में विवि के कार्यवाहक कुलपति और कार्य परिषद की कार्यशैली पर सवाल उठाया गया है। 11 जून 2014 को राज्यसभा के पटल पर पेश इस रिपोर्ट में विवि प्रबंधन की मनमानी, नियम विरुद्ध निर्णय, मान्यता में गड़बड़ी जैसे उल्लेख बार-बार आये हैं। प्रोफेसरों, अधिकारियों के निलंबन पर समिति ने आश्चर्य जाहिर किया है। जिम्मेदारों पर कार्रवाई की संस्तुति भी की है। सूत्रों का कहना कि इग्नू के कुलपति प्रो.एम आलम ने ही राजस्थान और उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में कुलपति पद पर प्रो.विनय पाठक की नियुक्ति की प्रोसीडिंग को बढ़ाया है। प्रो.आलम से फोन पर संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हुए।

 

कोट----

हां, मैने प्रो.विनय पाठक के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई करने और स्थानीय स्तर पर पाठक की कार्यशैली व अतीत की जांच कराने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को विस्तृत विवरण के साथ ई-मेल भेजा था। अदालत में मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी, मगर मुझे कोई जवाब नहीं मिला- डॉ.आर सुदर्शन, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर उच्च शिक्षा मानव संसाधन मंत्रालय ( फोन पर इस संवाददाता से)

 

 

 

 

 

  

हाईकोर्ट में कहा-तीन माह बचे फैसले नहीं ले सकते फिर 18 प्रोफेसर भर्ती कर डाले

 उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शी व्यवस्था कटघरे में लाने वालों में लखनऊ विश्वविद्यालय  प्रबंधन का भी शुमार

प्रो.आलोक राय का 34 दिन का कार्यकाल, भर्ती की और प्रोन्नतियों की तिथियां घोषित की

परवेज अहमद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शी व्यवस्था कटघरे में लाने वालों में लखनऊ विश्वविद्यालय (एलयू) प्रबंधन का भी शुमार है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में कुलपति प्रो.आलोक राय की ओर से कहा गया कि तीन माह का कार्यकाल शेष रहते नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकता। कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की ओर से भी यही शपथ पत्र हाईकोर्ट में दिया गया है। पर, शपथ पत्र के चंद दिनों बाद प्रबंधन विज्ञान संस्थान में 18 असिस्टेंट प्रोफेसर, दो लाइब्रेरियन की नियुक्ति कर दी गयी। प्रो.राय का कार्यकाल 31 दिसम्बर तक है। यानी बमुश्किल 34 दिन। फिर भी 28, 29 नवम्बर, पांच, नौ व 14 दिसंबर को शिक्षक प्रोन्नति समिति की तिथि घोषित कर दी गयी है। सवाल ये कि विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट में झूठ बोला या प्रोन्नति तिथियां गलत ढंग से निर्धारित हो रहीं ? कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूरे प्रकरण की शिकायत की गयी है।

प्रदेश के प्रतिष्ठित राज्य विश्वविद्यालयों में शुमार लखनऊ विवि के तत्कालीन कुलपति प्रो.एसपी सिंह ने कारिअर एडवांसमेन्ट योजना के तहत 24 अक्टूबर 2019 में शिक्षा विभाग, ओरियंटल स्टडीज इन अरेबिक एन्ड परसियन विभाग, गणित और खगोल शास्त्र विभाग के शिक्षकों की प्रोन्नति के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई। जिसने आधा दर्जन शिक्षकों को प्रोन्नत करने की सहमति प्रदान की। शिक्षा विभाग के एसोसिएट प्रो.अरुण कुमार, प्रो. श्रवण कुमार और परर्सियन विभाग एक प्रो.ए.ए.जाफरी को सशर्त प्रोन्नति की सहमति के साथ लिफाफा बंद कर दिया। कुछ ही अंतराल में तत्कालीन कुलपति प्रो.एसपी सिंह के स्थान पर तत्कालीन रजिस्ट्रार शैलेश शुक्ला को कुलपति का दायित्व दिया गया। उन्होंने यह कहते हुए कि प्रोन्नतियों के निर्णय पर विश्वविद्यालय कार्य परिषद (ईसी) ने मंजूरी नहीं दी है, इसलिए अंतिम निर्णय के लिए प्रकरण कुलाधिपति कार्यालय भेज दिया। इस बीच एसपी शुक्ला ने भी प्रोन्नति कमेटी की मीटिंग की मगर अंतराल में उन्हें हटाकर प्रो.आलोक राय को लखनऊ विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक कुलपति बना दिया गया।

प्रत्यावेदन देने पर प्रोन्नति का आदेश जारी हुआ  लेकिन जिन तीन शिक्षकों का लिफाफा बंद था, उन पर निर्णय नहीं लिया। नतीजे में शिक्षा विभाग के दोनों शिक्षक हाईकोर्ट चले गये, अदालत ने प्रोन्नति लिफाफा खोलने का आदेश दिया। अंतिम बचे पर्सियन विभाग के सहायक प्रो.एएस जाफरी ने हाईकोर्ट का रुख किया, उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय के काउंटर मांगा, जिस पर डिप्टी रजिस्ट्रार ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि उत्तर प्रदेश विवि अधिनिमय 1973 के मुताबिक जब कुलपति का कार्यकाल सिर्फ तीन माह बचता है तब नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

परन्तु हाईकोर्ट में ये हलफनामा दाखिल करने के बाद 22 अक्टूबर 2022 यानी जब कुलपति आलोक राय का कार्यकाल दो माह आठ दिन ही बचा था, तब उनकी अध्यक्षता में दर्शनशास्त्र, अरबी एवं अरबी सम्यता, फ्रेंच ( अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपियन भाषा) और पुस्तकालय विभाग के 6 शिक्षकों को प्रोन्नत कर दिया गया। यही नहीं पुस्तकालय विज्ञान में दो नई नियुक्तियां कर दी गयीं। स्ववित्त पोषित पाठयक्रम के सहारे प्रबंधन विज्ञान संस्थान पर 18 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्तियां कर दी गयीं। प्रो.आलोक राय का कार्यकाल खत्म होने अब सिर्फ 35 दिन बचे हैं, तब विभिन्न विभागों के शिक्षकों की प्रोन्नित और नई भर्तियां करने की तिथियां भी घोषित की जा रही हैं। सवाल ये है सच क्या है हाईकोर्ट में दाखिल किया गया शपथ पत्र या फिर विवि में हो रहे ताबड़तोड़ नीतिगत फैसले ?  इन सारे सवालों के साथ कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को शिकायत भेजी गयी है।

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उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम व कुलाधिपति कार्यालय के पुराने आदेश में जरूर ये बात कही गयी है कि तीन माह बचने पर कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकता है। पर, वर्ष-2018 में हाईकोर्ट का एक निर्णय आया है, जिसमें कहा गया है कि कुलपति का जब कार्यकाल तीन साल का है तो उसे अंतिम दिन तक काम करने, निर्णय लेने का अधिकार है। अभी कुछ माह पहले कार्यकाल पूरा करने वाले मेरठ विश्वविद्यालय के कुलपति ने अंतिम दिन तक निर्णय लिया जिस पर कोई आपत्ति नहीं हुई। उन्हीं नजीरों की तहत हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रोन्नति दे रहे हैं और जरूरी नियुक्तियां कर रहे हैं। हाईकोर्ट के हलफनामें के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हम इसका परीक्षण करायेंगेः

आलोक राय, कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय

  

दिलों के ओसन में खुशी नहीं, गम का विस्फोट बढ़ा !

 -प्रो.विनय पाठक पर शिकंजा कसते ही कुछ शिक्षकों, अधिकारियों के परिजनों में सोशल मीडिया अकाउंट, ग्रुप डिएक्टीवेट किये

-सुबह शाम तक तारीफों के लिए कसे जाने वाले प्रेम जुमले बंद, अधिकतर लोगों ने वाल्क टाइम भी बदला

 

विशेष प्रतिनिधि/  परवेज अहमद

लखनऊ।...जहां पतियों की विजयगान होता। सफलता की डींगे हांकी जाती। नये गहनों की नुमाइश होती... भाभी, जेठानी, बहन, ननद के रिश्ते गढ़े जाते। बेटे-बेटियों की शादी का जिक्र फिर समधी मान रिश्ता और मजबूत करने की बातें होती।...ह्वाट का ब्यूटीफुल साड़ी, नाइज मेकप, लुकिंग लाइक...जैसे जुमलों से छेड़खानियां ( मजाक) होती, अब उस आवासीय परिसर में सन्नाटा है। कुछ घरों में ताला लटकने लगा है। यानी स्त्रियां मायके चली गयी।... और प्रेम का पंचौरा बंद हो गया। जिनके पति जांच के घेरे में हैं, उऩमें से अधिकतर ने आश्चर्यजनक रूप से अपना सोशल मीडिया अकांउट डिएक्टीवेट कर दिया।

ये किस्सागोई है-अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के  घटक संस्थान आईईटी कैम्पस में स्थित शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारियों के आवासीय परिसर की। यहां की रौनक पर अजीब से रहस्यमयी सन्नाटे की परत चढ़ गई है। सब एक दूसरे को संदेह की नजर से देखने लगे हैं।किसी के घर नये व्यक्ति के आने की भनक लगते ही ये जानने का प्रयास शुरू हो जाता है कि वह व्यक्ति कहीं स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ), इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी), एलआईओ ( लोकल इंटेलीजेंस ब्यूरो) का नुमाइंदा तो नहीं ?

आप सोंच रहे होंगे, क्यों हुआ-ये सब ? जानिये। अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय और उसके घटक संस्थान आईईटी के 60 से 70 फीसदी लोगों की नियुक्तियां, प्रोन्नतियां अथवा प्रशासनिक कार्रवाईयां प्रो.विनय पाठक के कुलपति रहते हुई हैं। इनमें वह सीधे इंवाल्ब रहते थे। अब प्रो.पाठक की वित्तीय, प्रशासनिक कारगुजारियों की गहराई से जांच हो रही है। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है। ये भी इत्तिफाक है कि हर दिन उनके नये भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो रहा। संकेत मिल रहे हैं कि सरकार रियायत करने को तैयार नहीं है। इससे उन  परिवारों में दहशत फैल गई जिनके परिजन नियमों के विपरीत एकेटीयू अथवा आईईटी में नौकरी पर रखे गये, प्रोन्नित पाये। जो लाभ पाये फिर प्रताड़ित भी हुये  वे भी परेशान हैं। पुराने निजाम के कई दागियों ने नये निजाम के साथ सहमे-सहमें अंदाज में गलबहियां शुरू कर दी हैं, पर उनके परिजन भी खौफ में हैं।    

सूत्रों का कहना है कि आईईटी परिसर में रहने वाले शिक्षकों, प्रशासनिक अधिकारियों व समूह ख के अधिकारियों के परिवार का एक ग्रुप था। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर वे एक दूसरे से जुड़े थे। मार्निग, इवनिंग वाल्क के समय खुलेमन और दिल से चुहलबाजियां करते। पतियों अथवा पत्नियों की कामयाबी और घर के लिए खरीदे गये नये सामानों की चर्चा होती थी। पेशेगत से बातों से ऊपर उठकर रक्त संबंध जोड़ने के वादे किये, कराये जाते थे। एक दूसरे घरों में पार्टियां होती। प्रो.विनय पाठक से जुड़े और आरोपों से घिरे लोगों की पत्रावलियां एसटीएफ ले क्या गई और कुछ को लखनऊ में रहने की हिदायत क्या दे डाली, एकेटीयू के नौकरीपेशों लोगों के परिजनों की सोशल गतिविधियां ठप हो गयीं। सूत्रों का कहना है कि कई लोगों ने घरों के सामने खड़ी रहने वाली रूतबे की प्रतीक कीमती गाडियां हटा दी हैं। कुछ लोगों ने परिवार के सदस्यों को अनयंत्र भेज दिया। यहां नौकरी करते हुए कई करोड़ की सम्पतियों के मालिक बने और परिसर के बाहर रह रहे कतिपय लोगों ने घर से बेशकीमती सजावटी सामान हटाने शुरू कर दिये हैं। उन्हें डर है कि एसटीएफ के साथ आयकर, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने सर्च कर ली तो आय का जरिया क्या बतायेंगे। रसीदें कहां से दिखायेंगे क्योंकि वेतन तो समूह ग, ख की श्रेणी का है। नतीजे में परिसर में रह रहे परिवारों के दिल के ओसन में खुशी नहीं गम का विस्फोट हो रहा है। यही नहीं, छात्रों के अभिभावकों की हाड़तोड़ मेहनत से कमाई गई राशि को दोनों हाथों से खर्च करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों , शिक्षकों के कमरों, कार्यालयों में भी सन्नाटा बिखर गया है। बस, सबको परिणाम का इंतजार है।  

 

41 सांसदों ने कहा-खेदजनक प्रो.विनय पाठक की शैली, यूपी ने सौंपे 5 विश्वविद्यालय

 -देश के 532 सामुदायिक महाविद्य़ालय बंद करने का अधूरे बोर्ड में लिया निर्णय

-मानव संसाधन विकास संबंधी स्थायी समिति ने इग्नू की 263वीं रिपोर्ट में किया खुलासा

परवेज अहमद

लखनऊ। क्या आप विश्वास करेंगे कि राज्यसभा के दस, लोकसभा के 31 सदस्य यानी 41 सांसद जिस कथित शिक्षाविद के शैक्षिक निर्णय को निराशजनक, खेदजनक, अत्यंत निराशाजनक और विहित मानकों के विरुद्ध ठहरा चुके हों। जिनकी रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी गयी हो- वो शिक्षाविद उत्तर प्रदेश के पांच विश्वविद्यालयों का छह बार कुलपति बनाया सकता है ? शायद नहीं। पर, यूपी की उच्च शिक्षा के संचालकों ने ये सच कर दिखाया। और वह शिक्षाविद है प्रो.विनय पाठक, जो छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर कार्यरत हैं। उन पर अंबेडकर विवि आगरा के प्रिटिंग वर्क के बदले बिचौलिये के जरिये करोड़ों घूस लेने का आरोप है। एफआईआर दर्ज है। संगठित अपराध नियंत्रण के लिए गठित यूपी पुलिस की इकाई एसटीएफ उसकी एक महीने से जांच कर रही है। उसके हाथ इतने दस्तावेज हाथ लग गये हैं कि समेटना मुश्किल हो रहा है, डीआईजी स्तर का एक अतिरिक्त अधिकारी तैनात किये जाने पर विचार शुरू हो गया है।

उत्तर प्रदेश के तीन सांसदों को शामिल करते हुए  31 अगस्त 2013 को गठित 41 सांसदों की समिति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ( इग्नू) के कार्यकरण का 263वां प्रतिवेदन 6 मई 2014 को राज्यसभा के सभापति व लोकसभा के अध्यक्ष को सौंपा था। इसमें इग्नू की शैक्षिक, सामाजिक गतिविधियों, शोध कार्यो, नियुक्तियों से जुड़े ढेरों प्रकरण पर विस्तार से चर्चा की गयी है। कुलपति प्रो.एम आलम की कार्यशैली पर सवाल उठाये गये। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि समिति ने इग्नू द्वारा संचालित सामुदायिक महाविद्यालय को योजना को बंद करने के तौर-तरीकों को नियम विरुद्ध बताया। यह योजना 4 जुलाई 2009 को शुरू हुई थी और इसके लिए 532 सामुदायिक महाविद्यालय खोले गये थे।

सांसदों ने अपनी रिपोर्ट के पेज संख्या-17 के पैरा संख्या-5.19 में स्पष्ट करते हुए लिखा इस योजना को बंद करने का निर्णय जिस शिक्षा समीक्षा समिति ने लिया, उसके अध्यक्ष वर्धमान महावीर मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक थे। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इग्नू प्रबंध मंडल की 118वीं बैठक के कार्यवृत्त में समीक्षा समिति के अध्यक्ष प्रो.विनय पाठक की उपस्थिति में यह निर्णय हुआ, जबकि उस समय समिति का कोरम पूरा नहीं था। मनमानी तरीके से निर्णय लिया गया। समिति ने शुरूआत में इस निर्णय पर निराशा जाहिर करते हुए कहा है कि समिति का ध्यान 9 अप्रैल 2012 प्रबंध बोर्ड की 112वीं बैठक की ओर भी गया, जिसमें सिर्फ छह सदस्यों ने हिस्सा लिया, इसमें से एक सचिव का प्रतिनिधित्व करने वाले विभाग का संयुक्त सचिव था। सांविधानिक प्रावधान के मददेनजर संयुक्त सचिव को पूर्ण सदस्य नहीं माना जा सकता है, समिति का यह दृढ़ मत है कि बिना गणपूर्ति ( कोरम पूरा हुए) के हुई कोई भी बैठक, वह भी कार्यवाहक कुलपति की अध्यक्षता में विहित मानकों के विरुद्ध है। ऐसी बैठकों में लिये गये निर्णयों पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में ढेरों खामियों का उल्लेख किया है और प्रकरण में अपेक्षित सुधार की जरूरत जाहिर की है।

अब सवाल उठता है कि जिस प्रो.विनय पाठक के निर्णय को 41 ( राज्य सभा और लोकसभा दोनों के) सांसद निराशजनक, खेदजनक और विधि विरुद्ध कह चुके हों, उसे उत्तर प्रदेश में बार-बार कुलपति का दायित्व कैसे सौंपा गया ? कुलपति चयन में बायोडेटा का ही परीक्षण होता है, अगर प्रो.विनय पाठक ने संसदीय समिति की टिप्पणी की बात अपने बायोडेटा से छुपा ली अथवा उत्तर प्रदेश के कुलाधिपति को नहीं बताई तो क्या तथ्य राजभवन को उनके विरुद्ध चोरी करने का मुकदमा दर्ज नहीं कराया जाना चाहिए ?  ये सवाल अब चारों ओर से उठ रहा है।

 

कोट

सामुदायिक महाविद्यालय के जरिये सदूर गांवों में रहने वाले युवक, युवतियों को कौशल विकास प्रशिक्षण के साथ दूरस्थ शिक्षा के जरिये डिग्री कोर्स कराया जाता है।

Thursday 24 November 2022

प्रो.विनय पाठक एक, किस्से-कारगुजारी अनेक !

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो.विनय पाठक जिस भी विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक या कार्यवाहक कुलपति रहे, वहां भ्रष्टाचार, नियमों की अनदेखी की नई इबारतें गढ़ीं। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीति के चलते लखनऊ के इंदिरानगर थाने में प्रो.विनय पाठक के खिलाफ घूसखोरी की एक रिपोर्ट लिखी गयी। हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इंकार किया। तब उनकी मॉडस आपरेन्डी (कार्य शैली) के किस्से शिक्षकों के घरों, छात्रावासों, कैन्टीनों में सुनाये जा रहे हैं। हर ओर दो सवाल- पहला, अब प्रो.विनय पाठक की कौन सी इबारत खुलने वाली है। दूसरा, आखिर इतने तथ्य सामने होने के बाद भी कुलाधिपति कार्यालय खामोश क्यों ? सवालों की श्रंखला के बीच पढ़िये- छह साल  एकेटीयू के कुलपति रहे प्रो.विनय पाठक के सिर्फ दस किस्से ब-कलम-विशेष प्रतिनिधि परवेज अहमद

 

एकः

कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने बौद्धिक संपदा पर सिर्फ झूठ नहीं बोला बल्कि यूनिवसिर्टी ऑफ एसेक्स (इंग्लैड) की रिसर्चर हेबा लकानेइ का 3 नवम्बर 2007 को पब्लिश्ड शोध पत्र का टाइपिक बदलकर तीन साल बाद अपने नाम से प्रकाशित करवा लिया। एचबीटीआई के कम्प्यूटर साइंस एन्ड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के तत्कालीन लेक्चरर रोहित कटियार को-आर्थर हैं। कुलपति पद हासिल करने के लिए इस रिसर्च का उपयोग किया गया।

दोः

एकेटीयू में कुलपति रहने के दौरान जब निर्णयों, कार्यशैली पर एक वह्सिल ब्लोअर ने आवाज उठाई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की, तब उसका अपहरण कराने का प्रयास किया गया। तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने पीड़ित की एफआईआर लिखने से इंकार किया। तब उसने हाईकोर्ट से सुरक्षा मांगी। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान, न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय के पीठ ने सरकार, एकेटीयू को चेताते हुए लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी ( कुछ दिनों बाद कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ) को याची की सुरक्षा का निर्देश दिया। भी कहा का उसका हैरेशमेंट न हो, यह सुनिश्चित किया जाए।

 

तीनः

सरकार मदद वाले डिग्री स्तरीय तकनीकी संस्थानों में प्रोफेसर, एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर पद के लिये सामूहिक विज्ञापन 06 सिम्बर 2021 को निकाला। जबकि जिन कालेजों के लिये विज्ञापन थे, उनकी बीओजी ( बोर्ड ऑफ गर्न्वेर्स) स्वायत्तशासी संस्था है। विज्ञापन भी एक साथ निकाला पर प्रत्येक पद के लिए आवेदन शुल्क (20000 प्रत्येक पद) अलग-अलग मांगे गये। आरक्षण नियम नहीं बताये। आवेदन शुल्क चेयरमैन एफएसआरईसी के खाते में सामूहिक जमा कराया गया। इस वित्तीय, बौद्धिक भ्रष्टाचार की बिन्दुवार शिकायत राजभवन से हुई पर पत्रावली कथित रूप से गायब हो गई।

चारः

सरकारी धन निजी बैंकों में न जमा करने के शासनादेश ( संख्या-3/ 2016/ए-1-170/दस-2016-10 (33)/2010 दिनांक 23 फरवरी 2016) की खिल्ली उड़ाते हुये 650 करोड़ रुपये निजी संस्था में निवेश किया। 400 करोड़ पीएनबी हाउसिंग फन्ड, 50 करोड़ एचडीएफसी हाउसिंग और 200 करोड़ बैंकों से प्राप्त दरों के आधार पर निवेश कराये। पीएनबी हाउसिंग फन्ड निजी संस्था है। ( इन संस्थाओं के रिलेशनशिप मैनेजर एकाध करोड़ का निवेश करने पर ही ग्राहक को सुख-सुविधा उपलब्ध कराते हैं ) यहां राशि 650 करोड़ है।

पांचः

निजी संस्था में धन निवेश का फैसला प्रो.विनय पाठक का था। 24 मार्च 2018 को एकेटीयू की वित्त समिति के 50वें कार्यवृत्त में इसका उल्लेख है। मद संख्या-18 : 50: 11 में चेयरमैन प्रो.विनय पाठक ने वित्त अधिकारी, कुलसचिव ( दोनों एकेटीयू ) को पदेन और सेंटर फ़ॉर एडवांस स्टडीज के निदेशक मनीष गौड़ को सदस्य नामित किया। जमा राशि प्री म्येच्योर निकाली गयी, इससे कितना लाभ-नुकसान बट्टे खाते में डाला गया। ब्योरा उपलब्ध नहीं।

 

छहः

प्रो.विनय पाठक की अध्यक्षता वाली वित्त समिति ने 2018-19 में एकेटीयू के छात्रों का बीमा कराने के नाम पर छह करोड़ रुपये खर्च किये, पर किसी छात्र को बीमा कार्ड उपलब्ध नहीं कराया गया। कोविड के आतंक काल में जब छात्रों का स्वास्थ्य बीमा होना जरूरी था और आवश्यकता भी थी, तब छात्रों को उसका लाभ नहीं दिलाया। ये धन कहां और किस कंपनी में खर्च हुआ, आंतरिक आडिट से ही निपटा दिया गया।

 

सातः

जनवरी 2018 में परीक्षा शुचिता तार करने वाले मुन्ना भाई गैंग का आईईटी के तत्कालीन निदेशक प्रो.एएस विद्यार्थी ने खुलासा किया। प्रो.विनय पाठक के करीबी प्रोफेसरों व अधिकारियों को नोटिस जारी हुई तो कुलपति ने तत्कालीन समय के  मंत्री व अधिकारियों से प्रो.विद्यार्थी को ही निदेशक पद के कार्य से विरत करा दिया। मुन्ना भाई गैंग को मदद के मामले में जिन प्रोफेसरों, शिक्षकों को नोटिस जारी किया गया था, उसे वापस ले लिया गया। प्रो.विनय पाठक के घोषित करीबी प्रोफेसर को जांच अधिकारी बनाकर मामला खत्म कर दिया गया।

 

आठः

प्रो. विनय पाठक ने अपने रसूख से तत्कालीन वित्त अधिकारी अभिषेक कुमार त्रिपाठी को निलंबित कर दिया। अभिषेक त्रिपाठी ने शैक्षिक योग्यता न होने के आरोपों से घिरे आईईटी के निदेशक विनीत कंसल पर वित्तीय व प्रशासनिक अनियमितता के 14 आरोप लगाये थे। कुलपति व प्राविधिक शिक्षा विभाग से लिखित शिकायत भेजी थी, जिसमें वित्तीय हैंडबुक के आदेशों का उल्लेख थाय़कहा जाता है कि प्रो.पाठक ने शासन में अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए लेखा सेवा के अधिकारी अभिषेक कुमार को पहले पद से हटाने का आदेश कराया। तबादला कराया। फिर निलंबित कर दिया गया। आंतरिक जांच में विनीत कंसल को क्लीन चिट भी दिला दी।

 

नौः

छत्रपति शाहूजी महाराज विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक पर इल्जाम ये भी है कि जो भी अधिकारी, कर्मचारी, प्रोफेसर उनके निर्णयों के विरोध में सिर उठाता था, उसके खिलाफ अचानक अज्ञात शिकायत उनके पास पहुंच जाती थी, जिसे आधार बनाकर वह संबंधित प्रोफेसर, प्रशासनिक, वित्त अधिकारी को निलंबित कर या करा देते थे। अधिकार छीन लेते थे। एकेटीयू में आधा दर्जन नजीरें मौजूद हैं। जबकि शासन का स्पष्ट निर्देश है कि बिना पूरे नाम-पते और हलफनामे की शिकायत को इंटरटेन न किया जाए। एकेटीयू के शिक्षकों का दावा है कि ये शिकायतें प्रो.विनय पाठक की मॉडस आपरेन्डी ( कार्यशैली) का हिस्सा होती हैं।

 

दसः

एकेटीयू, उसके घटक संस्थान आईईटी, राजकीय इंजीनियरिंग कालेजों में होने वाले निर्माण कार्य, तकनीकी कार्य, मैन पॉवर, संसाधन विकास जैसे कार्यो उन्ही कंपनियों को मिले हैं, जिन पर प्रो.विनय पाठक का वरदहस्त है। ये ही नहीं, ठेकों के लिए टेंडर नियमों की परवाह नहीं होती। बिना शर्त, अनुभव वाली कंपनियों को भारी भरकम धनराशि के काम दिये गये हैं। जबकि इस पर केन्द्र सरकार की जांच कमेटियों ने बार-बार आपत्ति की लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। कमेटी पर कमेटी बनायी जाती रही।

 

इंसेट

विदेशों में पिटाई भारत की भद

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक बौद्धिक संपदा की कथित चोरी में भारत का नाम विदेशों में भी बदनाम किया है। दुनिया के मशहूर शोध जनरल पैटर्न रिक्गनीशन में  यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स के डिपार्टमेन्ट ऑफ कम्प्यूटर साइंसेज की हेबा लकानेइ ने -एक्सट्रैक्टिंग अ डाइग्नोस्टिक गेट सिग्नेचर- नामक शीषर्क से 2 नवम्बर 2007 को रिसर्च पेपर प्रकाशित कराया। कमोवेश इसी पेपर को उठाकर प्रो.विनय पाठक और रोहित कटियार ने- क्लीनिकल गेट डेटा एनालिसिस बेस्ड ऑन टेम्पोरल फीचर्स- शीर्षक से कम्प्यूटर साइंस के जनरल आईजेसीएसआईएस में 11 फरवरी 2010 को प्रकाशित किया। हेड लाइन अलग देखकर चौंकियेगा नहीं- हेबा के रिसर्च पेपर के इन्ट्रोडक्शन की शुरूआत की पहली लाइन- नॉमर्ल वॉल्किंग इन ह्यूमन मे बी डिफाइन्ड ऐज अ मैथड ऑफ लोकोमोशन इनवॉल्विंग द यूज ऑफ टू लेग्स .....है। और कामा, फुल स्टाप तक की यही लाइन प्रो. विनय पाठक के रिसर्च पेपर में हैं। बौद्धिक संपदा की कथित चोरी के इस मामले में कनक्लयूजन ( निष्कर्ष) तक का शब्द नहीं बदला गया है। इस तरह के एक अपराध में भारत के एक कुलपति जेल जा चुके हैं। अब सोंचिए, अगर भारत का कोई छात्र कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के लिए एसेक्स विवि पहुंच गया तो भारत कुलपतियों व भारत का इमेज का क्या होगा ?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

      

पदमश्री गुरु प्रो.धाण्डे ने शिष्य प्रो.विनय पाठक का किया उद्धार

 -जिस रिसर्च पेपरों के कई शोधार्थी को-आर्थर थे, उसे प्रो.विनय पाठक की सोल प्रापर्टी स्वीकारा

-पाठक ने 2015 में जिन 11 पेपरों का खुद को सोल-आर्थर बताया, उसमें 4 के को-आर्थर थे प्रो.एसजी धाण्डे

 

परवेज़ अहमद

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति और उच्च शिक्षा के बाहुबली प्रो.विनय पाठक के विरूद्ध चल रही घूसखोरी, नियम विपरीत नियुक्ति, रिसर्च चोरी की जांच घेरे में अब आईआईटी ( इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) कानपुर के पूर्व निदेशक पदमश्री प्रो. संजय जी धाण्डे भी आ गये हैं। कुलपति सर्च कमेटी का चेयरमैन रहते हुये उन्होने ही प्रो.विनय पाठक के प्रत्येक झूठ पर सच की मुहर लगायी। नाम शार्ट लिस्ट कर  नियुक्ति की संस्तुति की। फिर उन विश्वविद्यालयों में लाभ का पद हासिल किया, जहां प्रो.विनय पाठक कुलपति रहे।

कम्प्यूटर साइंस, तकनीकी शिक्षा में अभिनव प्रयोग के लिए वर्ष 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने प्रो.एस जी धाण्डे को पदमश्री का तमगा दिया, उन दिनों वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) के निदेशक थे। प्रो.विनय पाठक की पीएचडी कोर्स के को-गाइड रह चुके थे। उस अंतराल में उन्होंने प्रो.विनय पाठक के साथ नेशनल, इंटरनेशनल जरनलों में कई रिसर्च पेपर पब्लिश कराये। वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी, राज्यपाल के रूप में राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति रामनाईक थे। तब अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के कुलपति पद के लिए उपयुक्त शिक्षाविद चयनित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके लिये तत्कालीन कुलाधिपति राम नाईक ने आईआईटी-कानपुर के निदेशक एस जी धाण्डे को सर्च कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया।किसी भी शिक्षाविद के कुलपति चयनित होने में सर्च कमेटी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पदमश्री धाण्डे ने उम्मीदवार प्रो.विनय पाठक के बायोडेटा का अध्ययन किया। उस समय पाठक ने अपना जो बायोडेटा राजभवन भेजा था, उसके एनेक्जर-2 में सोल आर्थर (मूल रिसर्चर, लेखक) के रूप में 11 नेशनल, इंटरनेशनल रिसर्च पेपरों उल्लेख था- सचाई ये है कि इनमें से पांच पेपरों में अन्य लोगों के साथ प्रो.एसजी धाण्डे को-आर्थर थे। जिन पेपरों के वह को-आर्थर थे, उसे उन्होंने प्रो.विनय पाठक की सोल प्रापर्टी कैसे स्वीकारा ? रिसर्च पेपर और 2015 में राजभवन को भेजे गये प्रो.पाठक के बॉयोटेडा की सत्यापित प्रतियां इस संवाददाता के पास हैं। जिससे साफ है कि सर्च कमेटी के अध्यक्ष के रूप में प्रो.एसजी धाण्डे ने कुलपति पद पर विनय पाठक की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिए नियम-कानून को ताक पर रख दिया। वर्ष 2018 में दूसरी बार प्रो. विनय पाठक एकेटीयू के कुलपति नियुक्त हुए, उस समय भी सर्च कमेटी के अध्यक्ष प्रो.एसजी धाण्डे ही थे। बायोडेटा का अध्ययन से इतर प्रो.एसजी धांण्डे छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक की पीएचडी के को-गाइड भी हैं। जिससे इस तर्क की गुंजाइश नहीं है कि वे जिसका बायोडेटा शार्ट लिस्ट करते नियुक्ति समिति के पास भेज रहे हैं, उससे व्यक्तिगत परिचित नहीं थे, इसलिए बॉयोडेटा अध्ययन में ह्यूमन इरर हो गया।

 

पाठक ने कुलपति बनते ही धाण्डे को सलाहकार बनाया

अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि के कुलपति का कार्य संभालने के बाद प्रो.विनय पाठक ने आईआईटी के पूर्व निदेशक व अपनी नियुक्ति की सर्च कमेटी के अध्यक्ष प्रो.एसजी धांण्डे को एकेटीयू का सलाहकार नियुक्त कर दिया। बदले में उन्हे विवि से भारी व निश्चित धनराशि दी जाती। उन्हे एकेटीयू की शीर्ष संस्था कार्य परिषद (ईसी) का सदस्य भी नामित करा दिया। ठहराव यहीं नहीं, बल्कि प्रो.पाठक के प्रयासों के चलते प्रो. धाण्डे आजमगढ़ राजकीय इंजीनियरिंग कालेज के शासी निकाय (बीएजी) के अध्यक्ष बना दिये गये। अतर्रा बांदा समेत कई इंजीनियरिंग कालेजों की कार्यकारी निकाय के सदस्य भी बन गये। अब उच्च शिक्षा के गलियारों में सवाल उठ रहा है कि ये रिश्ता क्या कहलाता है ? 

 

 

एसटीएफ परेशान आखिर कैसे हाथ डालें !

लखनऊ। प्रो.विनय पाठक की घूसखोरी की जांच कर रही स्पेशल टॉस्क फोर्स उच्च व तकनीकी शिक्षा के काकस में इतने बड़े-बडे नाम सामने आने से बेचैन है। उनके अधिकारियों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि शीर्ष स्तर पर ऊंची पकड़ रखने वालों पर हाथ कैसे डालें। एसटीएफ के बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा हमें भ्रष्टाचार, घूसखोरी की जांच मिली है, जिसकी जांच पड़ताल कर रहे हैं। इस मामले में विस्तृत जांच के लिए स्पेशल सेल बनाये जाने की जरूरत है। निर्णय शीर्ष स्तर पर ही संभव है।

      

उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार का नया नाम है प्रो.विनय पाठक !

 -कानपुर के छह पूर्व विधायकों ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री के लिखे पत्र में लगाया आरोप

-राजस्थान, उत्तराखंड और यूपी के चार विवि में प्रो.विनय पाठक के कार्यकाल की सीबीआई, ईडी जांच की मांग की

परवेज अहमद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा में बेहद प्रभावी व छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो.विनय पाठक पर अब छह पूर्व विधायकों ने भ्रष्टाचार, भर्ती में गड़बड़ी, सत्र अनियमित करना और उच्च शिक्षा की गरिमा गिराने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखा है। इसकी एक कापी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी भेजी गयी है। पत्र में साफ कहा गया है कि केन्द्र सरकार के एक वरिष्ठतम मंत्री व उनके परिवार के सदस्यों व राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों व अधिकारियों का भी उन्हें संरक्षण है, जिसके चलते जांच शिथिल की जा रही है। पूर्व विधायकों ने कहा है कि प्रो.विनय पाठक के कारनामों की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों से करायी जाए, क्योंकि आरोपी के भ्रष्टाचार का दायरा राजस्थान, उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त उतराखंड तक फैला हुआ है, जिसकी जांच यूपी एसटीएफ के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

पूर्व विधायक भूधर नारायण मिश्र, पूर्व विधायक गणेश दीक्षित, पूर्व विधायक नेकचन्द्र पांडेय, पूर्व विधायक संजीव दरियाबादी, पूर्व विधायक सरदार कुलदीप सिंह और पूर्व विधायक हाफिज मोहम्मद उमर के संयुक्त हस्ताक्षर से राज्यपाल व राज्य के विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल को भेजे गये पत्र में संस्कृत के श्लोक जिसका अर्थ है कि बिना साफ सुधरी और उच्च शिक्षा के मानव समाज अधूरा है।से बात शुरू करके प्रो.विनय पाठक पर गंभीर आरोपों का उल्लेख किया गया है।  कहा गया है कि प्रो.विनय पाठक उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार कदाचार के पर्याय हैं। उन्होंने शिक्षा के उच्च मंदिरों, हल्द्वानी (उत्तराखंड) कोटा (राजस्थान), अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि (एकेटीयू), आंबेडकर विवि आगरा, ख्वाजा मुईन उद्दीन चिश्ती भाषा विवि और छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विवि के निर्माण कार्य, भर्ती, आधुनिकीकरण, कर्मचारियों, प्रोफेसरों की नियुक्त में व्यापक अनियमितता की है। एसे लोगों को संविदा शिक्षक या पूर्णकालिक प्रोफेसरों का पद पर नियुक्त किया गया है, जो किसी भी यूजीसी के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। इस काम में रूकावट पैदा करने वाले शिक्षकों, कर्मचारियों, अधिकारियों को उत्पीड़त किया जा रहा है।

अब आंबेडकर विवि आगरा के एक मामले में घूसखोरी की एफआईआर होने और दस्तावेजी सबूत होने के बाद अब तक प्रो.विनय पाठक की गिरफ्तारी न होना, उनकी बेनामी संपत्तियों तक बुलडोजर के न पहुंचने से ढेरों सवाल खड़े हो रहे हैं। अखिर विनय पाठक को राज्यपाल ने अब तक निलंबित क्यों नहीं किया ? पूर्व विधायकों ने पत्र में कहा है कि एसा प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार के एक वरिष्ठतम मंत्री व उनके परिवार के दबाव में कार्रवाई के नाम पर सिर्फ लीपापोती चल रही है। इससे उच्च शिक्षा की गरिमा, छात्रों के भविष्य और मेहनत से कमा कर विवि में जमा कराई गयी फीस की राशि पर ग्रहण लग गया है। जबिक प्रो.पाठक का कुकृत्य से जनता की करोड़ों की लूट हुई है। पत्र में कहा गया है कि कुलपति का पद आदर्श और गरिमा का प्रतीक होता है, भ्रष्टाचार की सारी सीमाएँ लांघ जाने वाले इस कुलपति के विरूद्ध एफआईआर दर्ज होने के बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। जबकि वह स्वच्छंद रूप से कानपुर, लखनऊ और दिल्ली घूम रहा है। पत्र में तो यहां तक आरोप लगाया गया है कि प्रो.विनय पाठक ने भ्रष्टाचार से अर्जित धनराशि अपने संरक्षणदाताओं पर खर्च की गयी है। जिसके चलते राज्य सरकार के छोटे अधिकारी कार्रवाई करने में डर रहे हैं।

पूर्व विधायकों ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रो.विनय पाठक की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करने के साथ पूरे मामले की सीबीआई और ईडी से जांच कराने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि जनता का विश्वास मजबूत रखने के लिए इनके खिलाफ कार्रवाई के साथ साफ सुथरी छवि के कुलपतियों की विवि में नियुक्त करने की मांग की गयी है।

 

इंसेट

( आशीष पटेल की फोटो लगा दीजिए।)

 

शासन की मंजूरी के बगैर 250 कालेजों को दिया एफिलिएशन

इसमें इजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मा. आकिर्टेचर के कोर्स शामिल

एकेटीयू का कुलपति रहते प्रो.विनय पाठक का कारनामा

विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ। घूसखोरी के आरोप में घिरे छत्रपति शाहू जी महराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने शासन की अनुमति के बिना 250 कालेजों को अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) से संबंद्धता प्रदान कर दी। शीट मैट्रिक्स में अनियमितता के जरिये करोड़ों रुपय़े की वसूली की है। उत्तर प्रदेश के प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल ने मदन मोहन मालवीय विवि के कुलपति जेपी पांडेय की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की है। लेकिन ये जांच भी लंबे समय से लंबित है।

अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय इजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मा. आकिर्टेचर के कोर्सों को मान्यता प्रदान करता है। विवि अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी निजी कालेजों के कोर्सो को मान्यता देने से पहले प्राविधक शिक्षा के प्रमुख सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है। बिना इस अनुमति के किसी भी कालेज व कोर्स को संबद्धता प्रदान नहीं की जा सकती, यहां तक कि सरकारी कालेजों के कोर्स को भी सबंद्धता से पहले शासन की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है। पर, एकेटीयू के तत्कालीन कुलपित ने बिना पूर्व अनुमति चार सालों के अन्तराल में लगभग 250 कालेजों को मान्यता प्रदान कर दी गयी। सूत्रों कहना है कि इस एक कोर्स की मान्यता में ही करोड़ों के वारे न्यारे किये हैं। यही नहीं इन कालेजों की सीट मैट्रिक में भी व्यापक गड़बड़ियां की गयी।

क्या होता है शीट मैट्रिक्स

किसी भी कोर्स की मान्यता के बाद विवि प्रशासन एक आन लाइन शीट तैयार करता है। जिसमें प्रत्येक कालेज की छात्रों की  संख्या, आरक्षित सीटों की संख्या, भरी हुई सीट की संख्या, कितनी लड़कियां, कितने लड़के, कितनी सीटें भरी और कितनी खाली के ब्योरो को शीट मैट्रिक्स कहा गया जाता है। विवि की इसी शीट मैट्रिक को एऩआईसी (नेशनल इनफरर्मेशन सेन्टर) मान्यता प्रदान करता है। शिकायत कर्ताओं का आरोप है कि सबंद्धता प्रदान में गड़बड़ी के साथ शीट मैक्ट्रिक्स में भी व्यापक गड़बड़ी की गयी। जिससे वास्तिवक छात्रों का उसका लाभ नहीं मिला और रिक्त सीटों पर सांठगाठ के जरिये प्रवेश का खेल किया गया।

 

प्राविधक शिक्षा मंत्री ने जांच कमेटी बनायी

संबद्धता और शीटमैट्रिक्स में गड़बड़ी के प्रारम्भिक साक्ष्य मिलने के बाद प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय विवि के कुलपति प्रो.जेपी पांडेय की अध्यक्षता दो सदस्यीय कमेटी का गठित कर दी है।  जिसने अभी जांच भी शुरू नहीं की है। बताया गया है कि जांच अधिकारी पर जांच विलंबित करने का भारी दबाव है।