-वीसी बनने के पहले दावे में 36 शोध पत्र, चौथे दावे में सिर्फ 20 बचे
-3 बार कुलपति रहने के बाद चौथे में शैक्षिक उपलब्धियां घटने का अजूबा
परवेज अहमद
लखनऊ। तीन विश्वविद्यालयों का कुलपति रहने के बाद किसी शिक्षाविद की शैक्षिक,
शोध उपलब्धियां कम होती हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में शैक्षिक दुनिया की गहराइयों से अनभिज्ञ व्यक्ति भी कहेगा-नहीं,
यह नहीं हो सकता। उपलब्धियां तो बढ़ेंगी। पर, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय
के कुलपति प्रो.विनय पाठक का वैयक्तिक ब्योरा ( बायोडेटा) इसे झुठलाता है। राजस्थान,
उत्तराखंड और अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय (एकेटीयू) का कुलपति रहने के बाद चौथी बार
कुलपति बनने के लिए उन्होंने जो बायोडेटा कुलाधिपति को भेजा, उसमें उनके शोध, रिसर्च
पेपर, प्रजेंटेशन घट गये थे। आश्चर्यजनक रूप से मूल शोधों की संख्या-11 से घटकर शून्य
हो गयी। इसके बावजूद राजभवन के अधिकारियों व सर्च कमेटी ने पूर्व के वैयक्तिक ब्योरे
का अध्ययन किये बगैर ही उन्हें चौथी बार कुलपति नियुक्त कर दिया।
अगर दस्तावेजों की दृष्टि से देखें तो यह प्रतीत होता है कि प्रो.विनय पाठक
ने झूठ और फरेबी दस्तावेज के बल पर कुलपति बनने की शुरूआत की। पहली बार जब कुलपति बने
तो उन्होंने एचबीटीआई (अब विवि) में डीन व दस साल का अनुभव होने का दावा किया था, जबकि
उस समय सिर्फ डीन का एक पद सृजित था, जिस पर कोई दूसरा प्रोफेसर नियुक्त था और पाठक
को प्रोफेसर हुए दस साल भी नहीं हुए थे। कुलपति बनने के लिए उनकी ओर से कुलाधिपति कार्यालय भेजे गये बायोडेटा में स्पेन,
पोलैंड, यूएसए, पुर्तगाल, हंगरी, कोरिया, चीन, सिंगापुर, इजिप्ट जैसे देशों के साहित्यिक,
इंजीनियरिंग के जनरलों में 36 रिसर्च पेपर प्रकाशित होने व बड़ी संख्या में पेपर प्रजेंट
करने का दावा किया। इनमें 11 शोधपत्रों के सोल प्रापर्टी (मूल शोध) होने का दावा है।
इसी के बल पर तीन पर कुलपति नियुक्त होने व कार्यकाल पूरा करने के बाद जब चौथी बार
एकेटीयू का कुलपति बनने के लिए वैयक्तिक ब्योरा राजभवन को भेजा तो आश्चर्यजनक ढंगे
से उनके शोधों की संख्या व शैक्षिक उपलब्धियां कम हो गईं, यह शैक्षिक दुनिया का नया
अजूबा था। जन सूचना अधिकार के जरिये हासिल प्रो.विनय पाठक के दूसरे बायोटेडा में पहली
की उपलब्धियों को घटाते हुए दावा किया गया है कि उनके सिर्फ 20 शोध पत्र इंटरनेशनल
जनरल में प्रकाशित हुए हैं। पहले के बायोडेटा में 36 थे यानी 16 पेपर घट गये। सिर्फ
ये नहीं सोल आर्थर ( मूल शोधकर्ता) के रूप में लिखे पेपर शून्य हो गये। जबकि पहले बायोडेटा
में 11 पेपर घोषित थे। यानी तीन बार कुलपति रहने के बाद उनके शैक्षिक योग्य़ता, उपलब्धि
घट गई। जिससे उनका झूठ तो सामने आ ही रहा है पर उनको नाम शार्ट करके आगे बढ़ाने वाली
चयन समिति भी सवालों से बच नहीं सकती है। कांग्रेस के प्रवक्ता अमरनाथ अग्रवाल कहते
हैं कि दुनिया में हमने पहली बार ये जादू देखा है जिसमें नौ साल तक कुलपति जैसा दायित्व
संभालने वाले शिक्षाविद की उपलब्धि घट जाए। कांग्रेस के ही बृजेन्द्र सिंह कहते हैं
जिस पर लाखों छात्रों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी होती है, वह ही अगर तथ्यों पर
फरेब का मुल्लमा चढ़ा रहा है तो ये आपराधिक कृत्य है। प्रो.विनय पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार
की जांच से पहले बायोडेटा में धोखाधड़ी की एफआईआर होनी चाहिए। वह उदाहरण देते हुए कहते
हैं कि दो जन्मतिथि प्रमाण पत्र होने पर सपा विधायक अब्दुला आजम की सदस्यता रद हो सकती
है तो जिस पर लाखों-लाख छात्रों के अभिभावक होने का दायित्व है, उस पर तो पहले मुकदमा
दर्ज कर गिरफ्तार करना चाहिए।
इंसेट-एक
दो जन्म प्रमाण पत्र पर सपा विधायक अब्दुला आजम की सदस्यता रद हुई, मुकदमा दर्ज
हुआ तो जिस पर लाखों छात्रों के अभिभावक होने का दायित्व उसके फरेब पर अब तक मुकदमा
क्यों दर्ज नहीं हुआ- बृजेन्द्र सिंह, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस
इंसेट-दो
हमने पहली बार ये जादू देखा है जिसमें नौ साल तक कुलपति का दायित्व संभालने
वाले शिक्षाविद की उपलब्धि घट जाए- अमरनाथ अग्रवाल, यूपी कांग्रेस प्रवक्ता