Thursday 24 November 2022

दो टर्म एकेटीयू कुलपति फिर ईसी सदस्य बने प्रो.विनय

 

लगातार दो बार कुलपति के बाद कार्य परिषद में नामित होने का यूपी में अनोखा मामला

-19 सितम्बर 2022 की ईसी में बतौर सदस्य विनय पाठक ने हिस्सा लिया, अपने कार्यकाल के कार्यों का समर्थन किया

परवेज़ अहमद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा और उसके सिस्टम में छत्रपति शाहूजी महराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विनय पाठक की पैठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि (एकेटीयू) के वह दो टर्म कुलपति रहे उसी विश्वविद्यालय की कार्य परिषद (ईसी) का उन्हें सदस्य नियुक्त कर दिया गया। कार्य परिषद विश्वविद्यालय की सर्वोच्च नीति निर्धारक समिति होती है। वित्त, प्रशासनिक निर्णयों की वैद्धता तभी होती है जब कार्य परिषद उसे मंजूरी प्रदान दे। और कुलपति का दूसरा टर्म पूरा होते ही किसी भी व्यक्ति को उसी विवि की कार्य परिषद नियुक्त कर देने का ये अनोखा मामला है आखिर ये सब किस मंशा से और कैसे हुआ ? उच्च शिक्षा की दुनिया में चर्चा का विषय है। विधानसभा में सपा विधायक दल के सचेतक मनोज पांडेय का कहना है कि मुख्यमंत्री की आंख के नीचे उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार की बेल परवान चढ़ी, जब भी विधानसभा का सत्र होगा, इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा।

अखिलेश यादव की सरकार के दौरान तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने 2015 में प्रो.विनय पाठक को अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि का कुलपति नियुक्त किया था। 2018 में राम नाईक ने ही इन्हें दूसरा टर्म देते हुए कुलपति नियुक्त किया। जिस दिन इन्हें दूसरी बार एकेटीयू का कुलपति नियुक्त किया गया, उके दिन पहले कुलपतियों के शोध में गड़बड़ी को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में 2 अगस्त 2018 को राज्यसभा में लिखित उत्तर में स्वीकारा गया था कि प्रो.विनय पाठक के शोध व पीएचडी में गड़बड़ी है। पर, उन्होंने सिर्फ दूसरा टर्म पूरा किया बल्कि टर्म के बाद भी पद पर बने रहे। इस बीच कुलाधिपति व राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उन्हें छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विवि का कुलपति नियुक्त कर दिया। प्रो.विनय पाठक ने एकेटीयू के कुलपति का तब चार्ज छोड़ा तो विवि के घटक कालेज आईईटी के निदेशक डॉ.विनीत कुमार कंसल को चार्ज सौंप दिया, जबकि निदेशक पद ही उनकी नियुक्ति को लेकर सवाल उठ रहे थे। प्रो. विनय पाठक की अध्यक्षता वाले  बोर्ड ने ही विनीत कंसल को आईईटी का निदेशक नियुक्त किया था।

सूत्रों का कहना है कि बाद में कार्यवाहक कुलपति डॉ.विनीत कंसल ने छत्रपति शाहू जी महाराज विवि के कुलपति नियुक्त प्रो.विनय पाठक को एकेटीयू की कार्य परिषद का सदस्य नामित करने का प्रस्ताव पास कराया। अनुमोदन किया और उन्हें कार्य परिषद का सदस्य नियुक्त करने का प्रस्ताव शासन भेज दिया। प्राविधिक शिक्षा विभाग से होता हुआ ये प्रस्ताव कुलाधिपति कार्यालय पहुंचा जहां से प्रो.विनय पाठक को एकेटीयू कार्य परिषद का सदस्य नियुक्त कर दिया गया, जबकि कुलपति पद से हटने के निर्धारित कूलिंग पीरीयड का भी ध्यान नहीं रखा गया। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा का यह अनोखा फैसला है, जब लगातार दो टर्म कुलपति रहने वाले व्यक्ति को दूसरा टर्म खत्म होते ही सीधे कार्य परिषद का सदस्य नामित किया गया हो।

सूत्रों का कहना है कि 19 सितम्बर 2022 को एकेटीयू कार्य परिषद की बैठक में बतौर कार्य परिषद सदस्य विनय पाठक ने हिस्सा भी लिया। अब तक जो व्यक्ति कार्य परिषद का चेयरमैन होता था, वह सदस्य के रूप में न सिर्फ मौजूद रहा बल्कि अपने कार्यकाल में कार्यों को जायज ठहराने, प्रस्ताव को मंजूर करने के पक्ष में सहमति भी प्रदान की। सूत्रों संदेह जाहिर करते हुए कहते हैं कि सभवतः प्रो.पाठक कार्य परिषद के सदस्य नियुक्त ही इसलिए हुए ताकि विवि की सर्वोच्य प्रशासनिक, वित्तीय समिति में आने वाले विषय, एजेंडे को अपने कार्यकाल के निर्णयों की दृष्टि से परख सकें।

सवाल ये है कि किसी विवि का लगातार दो बार कुलपति रहे व्यक्ति जिसके  कार्यकाल के कार्यो को लेकर शिकायतों का अंबार हो, उसे ईसी का सदस्य कैसे नामित किया गया। अब ये सवाल भाजपा के अंदर से भी उठ रहा है। समाजवादी पार्टी के विधायक दल के मुख्य सचेक मनोज पांडेय का कहना है कि उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा में व्यापक भ्रष्टाचार व्याप्त है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ईमानदार व्यक्ति हैं लेकिन उनकी आंख के सामने ही भ्रष्टाचार सिरसा की तरह पांव फैलाता चला रहा है। विधानसभा का जब भी सत्र आहूत होगा, उनकी पार्टी के विधायक उच्च शिक्षा के इस गोरखधंधे को पुरजोर ढंग से उठायेंगे।  

 

11 सदस्य और छह विशेष आमंत्रित सदस्य हैं

एकेटीयू की कार्य परिषद में 11 सदस्य और छह विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। विवि के कुलपति पदेन अध्यक्ष होते हैं और कुलसचिव पदेन सचिव होते हैं। कार्य परिषद वित्तीय, प्रशासनिक, अनुशासनात्मक निर्णयों पर सहमति, असहमित व्यक्त करती है। नई कार्ययोजनाओं को अंतिम रूप देती है। कार्य परिषद की मंजूरी के बगैर कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं हो  सकता है।

 

 

 

No comments:

Post a Comment