26.09.2016
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मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार
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-गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा की वापसी
-रियाज, यासर और रविदास स्वंतत्र प्रभार से बने कैबिनेट मंत्री
-अभिषेक,नरेंद्र, शंखलाल राज्यमंत्री से सीधे बने कैबिनेट मंत्री
-तीन माह बाद जियाउद्दीन की शपथ, पप्पू निषाद मंत्रिमंडल से बाहर
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लखनऊ : करीब आती चुनावी बेला में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार किया। जिसमें पूर्व में बर्खास्त मंत्रियों में से तीन की मंत्रिमंडल में वापसी हुई। एक नया चेहरा शामिल हुआ। स्वतंत्र प्रभार वाले तीन व तीन राज्य मंत्रियों को प्रोन्नत कर मंत्री बनाया गया जबकि खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मी नारायण उर्फ पप्पू निषाद को बर्खास्त कर दिया गया। मंत्रिमंडल में सदस्यों की संख्या 60 हो गई है। कैबिनेट हाउसफुल होने से विस्तार की गुंजायश नहीं रह गयी है। फेरबदल के जरियेब्राह्मïण व मुस्लिम वोटरों को साधने का प्रयास नजर आ रहा है।
सोमवार को राज्यपाल राम नाईक ने राजभवन के गांधी सभागार में नए मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। 27 जून को मंत्री नामित हो चुकेजियाउद्दीन रिजवी को सबसे पहले शपथ दिलाई गई। उन्होंने उर्दू और खुदा के नाम पर शपथ ली। 12 सितंबर को बर्खास्तगी के 15वें दिन गायत्री प्रजापति को दूसरे नंबर पर शपथ दिलाकर मंत्रिमंडल में वापसी कराई गयी। मनोज पांडेय को तीसरे व शिवकांत ओझा ने चौथे नंबर पर मंत्री पद की शपथ ली। मत्स्य और सार्वजनिक उद्यम राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रियाज अहमद, परिवहन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) यासर शाह और परिवार कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविदास मेहरोत्रा को प्रोन्नत करते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई जबकि व्यावसायिक शिक्षा राज्यमंत्री अभिषेक मिश्रा, स्वास्थ्य राज्यमंत्री शंखलाल मांझी और समाज कल्याण राज्यमंत्री नरेंद्र वर्मा को प्रोन्नति देते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई।
नए मंत्रियों की शपथ से पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी। निषाद संतकबीरनगर के मेहदावल से विधायक हैं। विधानसभा में विधायकों की संख्या के अनुपात में मंत्रिमंडल में 60 सदस्य ही रह सकते हैं। विस्तार से पूर्व मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल में कुल 57 मंत्री थे। सोमवार को चार नए मंत्रियों को शामिल करने से एक की छुट्टी की बाध्यता थी।
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गायत्री का चौथा शपथ
अखिलेश यादव सरकार में गायत्री प्रजापति इकलौते ऐसे मंत्री हैं जो साढ़े चार साल की सरकार में एक बार बर्खास्त होने के साथ ही चार बार मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। वर्ष 2013 के विस्तार में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था। फिर उन्हें राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार की शपथ दिलाई गयी और तीसरी बार कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी। 12 सितंबर को मंत्रि मंडल से बर्खास्त कर दिया गया और 15वें ही दिन उन्हें चौथी बार मंत्री पद की शपथ दिलायी।
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नाटकीय घटनाक्रम
शपथ ग्रहण समारोह में एक नाटकीय घटनाक्रम भी देखा गया। जब मंत्री पद शपथ लेने के बाद गायत्री प्रजापति मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीब पहुंचे उन्होंने बधाई स्वरूप हाथ बढ़ा दिया, मगर गायत्री ने कम से तीन बार उनके पैर छुए। मुख्यमंत्री मुस्कुराते रहे और हाथ भी मिलाया। यहां से उठकर गायत्री सीधे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीब पहुंचे और साष्टांग दंडवत के अंदाज में उनके पैर छुए। कैमरे प्रजापति की ओर मुड़े मगर बेफिक्र मंत्री ने इसके बाद शिवपाल सिंह यादव के पैर भी छुए।
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एक हड़बड़ी में, दो अटके
27 जून को मंत्री नामित होने के तीन माह बाद शपथ लेने का मौका मिला तो जियाउद्दीन रिजवी ने राज्यपाल की शुरुआत से पहले ही शपथ शुरू कर दी, राज्यपाल ने टोंका और फिर दोबारा उनकी शुरुआत करायी। इसके बाद प्रोन्नत होकर कैबिनेट मंत्री ने रविदास मेहरोत्रा 'संसूचितÓ शब्द का उच्चारण नहीं कर पाये तो राज्यपाल ने उन्हें भी टोंका। हाजी रियाज उदद्ीन शपथ के दौरान 'संविधानÓ शब्द छोड़ गये तो राज्यपाल ने बीच में टोंककर उनकी शपथ ठीक करायी। समारोह के समापन से पूर्व लोगों के डॉयस के बिल्कुल करीब पहुंच जाने पर राज्यपाल ने एक बार फिर माइक संभाला और लोगों को पीछे कराया, तब राष्ट्रगान की धुन बज सकी।
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मंत्रिमंडल की स्थिति
कैबिनेट मंत्री- 32
राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार- नौ
राज्यमंत्री- 19
मौजूदा मंत्रियों की संख्या- 60
कुल बन सकते हैं- 60
कोई स्थान रिक्त नहीं
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पहले भी बदलते रहे हैं सरकार के फैसले
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-तमाम आरोपों में हटने के बाद बहाल किये जा चुके 17 में से छह मंत्री
-मॉल की बत्ती बंद करने व विधायकों को कार जैसे फैसले भी हुए वापस
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लखनऊ : तब प्रदेश सरकार को शपथ लिये तीन महीने ही हुए थे। जून में गर्मी की छुïिट्टयां चल रही थीं। बच्चे व बड़े शाम को मॉल्स में घूमने जाते थे, तभी खबर आई कि राज्य सरकार ने शाम सात बजे मॉल्स की बत्ती बंद करने का फैसला किया है। सरकार बनने के बाद यह पहला बड़ा फैसला था, किंतु इसे वापस लेना पड़ा। ऐसे ही सरकार के फैसले बदलते रहे हैं, जिनमें हटाए जाने के बाद छह मंत्रियों की बहाली भी शामिल है।
अखिलेश सरकार बनने के बाद युवा नेतृत्व, पारदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं। ऐसे में बिजली संकट से निपटने के लिए 17 जून 2012 को मॉल्स की बिजली बंद करने के फैसले की बड़ी आलोचना हुई थी। इसके साथ ही रेस्टोरेंट दस बजे बंद करने का भी फैसला सरकार ने लिया था। बाद में दोनों फैसले वापस लेने पड़े थे। अभी इस फैसले पर बवाल चल ही रहा था कि तीन जुलाई 2012 को विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधायकों को विधायक निधि से बीस लाख रुपये तक की कार खरीदने की अनुमति देने का एलान किया। इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ। हालांकि इसका लाभ सभी विधायकों को मिलना था किंतु विपक्ष के विधायकों ने इसे स्वीकार नहीं किया। यही नहीं वरिष्ठ सपा नेता मोहन सिंह तक ने इसका विरोध किया था। अगले दिन ही सरकार को यह फैसला भी वापस लेना पड़ा था।
अखिलेश सरकार के मौजूदा कार्यकाल में ऐसे ही तमाम फैसले हुए हैं। इस दौरान 17 मंत्री हटे, जिनमें से सात दोबारा मंत्री बन गए। इसकी शुरुआत हुई अक्टूबर 2012 में, जब तत्कालीन राज्यमंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया गया। फरवरी 2013 में पंडित सिंह दोबारा मंत्री बना दिये गए। मार्च 2013 में पुलिस क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) को इस्तीफा देना पड़ा था। सात महीने के भीतर ही अक्टूबर 2013 में राजा भैया को दोबारा मंत्री बनाया गया। इस बीच अप्रैल 2013 में तत्कालीन मंत्री राजाराम पांडेय को बर्खास्त किया गया, जिनका उसी वर्ष निधन भी हो गया। अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने एक साथ आठ मंत्रियों राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, अम्बिका चौधरी, शिवकुमार बेरिया, नारद राय, शिवाकांत ओझा, आलोक शाक्य, योगेश प्रताप सिंह व भगवत शरण गंगवार को बर्खास्त किया था। इनमें से नारद राय इसी साल 27 जून को और शिवाकांत ओझा सोमवार को दोबारा मंत्री बन गए। हालांकि इससे पहले नौ मार्च 2014 को बर्खास्त किये गए आनंद सिंह व मनोज पारस दोबारा मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। इसी वर्ष 21 जून को मुख्यमंत्री ने बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। उनका नाम कौमी एकता दल के सपा में विलय के मसले में सामने आया था। यह बर्खास्तगी महज छह दिन चली और 27 जून को बलराम फिर मंत्री बन गए। 27 जून को बर्खास्त हुए मनोज पांडेय सोमवार को हुए विस्तार में मंत्री बनने में कामयाब हुए। पिछले दिनों समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में कुर्सी गंवाने वाले राज किशोर सिंह व गायत्री प्रजापति में भी गायत्री दोबारा मंत्री बनने में सफल हो गए।
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चलते-चलते खेला ब्राह्मïण-मुस्लिम कार्ड
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- ब्राह्मïणों को साइकिल पर सवार कराने का दारोमदार अब मनोज, अभिषेक, शिवाकांत के कंधों पर
- मुस्लिमों को जोडऩे का नैतिक दबाव रियाज, यासर पर
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परवेज अहमद, लखनऊ : चुनावी बिसात पर जातीय समीकरणों के पांसे ठीक पड़ जाएं तो हार भी जीत में बदल जाती है! संभवत: आखिरी फेरबदल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी सियासी नुस्खे पर चलकर ब्राह्मïण-मुस्लिम गठजोड़ बनाने पर दांव लगाया है। जिसकी सफलता-असफलता का आकलन विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर होगा, पर चुनौती उन मंत्रियों की बढ़ी है, जिन पर मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी ने भरोसा जताया है।
प्रदेश में 13 फीसद ब्राह्मïण और 19 फीसद के करीब मुसलमान मतदाता है। अयोध्या आंदोलन के समय सेही मुस्लिम कांग्र्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आ गया था, वर्ष 2012 में समाजवादी सरकार बनने के बाद के कुछ सियासी व आपराधिक घटनाक्रमों ने इस वर्ग में असमंजस पैदा किया है। जिसे भांपकर अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल के आठवें विस्तार में सुन्नी मुसलमान जियाउद्दीन रिजवी को मंत्री बनाकर पूर्वांचल के मुसलमानों में अपनी पकड़ बरकरार रखने का प्रयास किया है तो गन्ना पट्टी केरियाज अहमद को स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाकर इस क्षेत्र के मुसलमानों को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। यासर शाह की छवि यूं तो मुस्लिमों में प्रभाव वाले नेता की नहीं है मगर अवध क्षेत्र में उनके पिता व पूर्वमंत्री वकार शाह का मुसलमानों में खासा प्रभाव रहा है, शाह के जरिये उसे प्रभाव को सपा के पक्ष में भुनाने का प्रयास किया गया है।
विस्तार में जिस दूसरे वर्ग को अधिक तवज्जो मिली, वह 13 फीसद मतदाताओं वाला ब्राह्मïण समाज है। मनोज पांडेय, शिवकांत ओझा को फिर से मंत्री बनाकर और अभिषेक मिश्र को राज्यमंत्री से सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर अखिलेश यादव ने ब्राह्मïण वोटों के लिए चल रहे 'युद्धÓ में खुद को मजबूत योद्धा साबित करने का प्रयास किया है। इतिहास पर नजर डालें तो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध वर्ग से इतर ब्राह्मïण परिस्थितियों या सजातीय क्षत्रप के इशारे पर ही समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान करता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री ने जिन पुराने ब्राह्मïण सेनापतियों पर दांव लगाया गया है, उन पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा के ब्राह्मïण रिझाओ अभियान में घुसपैठ करने का नैतिक जिम्मा आ गया है। चुनावी इम्तिहान में वह कितने कारगार हुए, यह विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ होगा। हालांकि सरकार में विजय मिश्र, पवन पांडेय, ब्रह्मïशंकर त्रिपाठी, शारदा प्रताप शुक्ल के रूप में ब्राह्मïणों की नुमाइंदगी है। यही नहीं, अति पिछड़े समाज के शंखलाल माझी और कूर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र वर्मा को तरक्की देकर समाजवादी पार्टी ने राज्य को दोनों बड़े वोट बैंक पाले में रखने का प्रयास किया है। सपा इससे पहले भी कूर्मी वोटों के लिए बेनी वर्मा को राज्यसभा भेज चुकी है। मुख्यमंत्री की ये सियासी इंजीनियरिंग से साफ है कि उन्होंने वोट बैंक बढ़ाने की पहल की मगर असर कितना हो पाएगा इसमें संदेह है।
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मनोज, ओझा की चुनौती बढ़ी
विधानसभा चुनाव डुगडुगी पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मनोज पांडेय और शिवाकांत ओझा को मंत्रिमंडल में वापस लेकर जो ब्राह्मïण कार्ड खेला है, उससे दोनों की चुनौती बढ़ गयी है। दरअसल, मनोज समाजवादी पार्टी की प्रबुद्धसभा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें ब्राह्मïण चेहरा बनाकर अभियान में झोंका था। उनके साथ शिवाकांत ओझा और दूसरे मंत्री भी लगाये थे, मगर उस समय ब्राह्मïणों ने सपा को उस अंदाज में समर्थन नहीं किया था, जैसी उनसे अपेक्षा थी।
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गायत्री को ओहदा वापस मिला पर संकट बरकरार
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-सीबीआइ जांच की आंच मंत्री तक पहुंची तो होगी दुश्वारी
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लखनऊ : भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री पद से बर्खास्त होने के 15वें दिन ही फिर गायत्री प्रजापति मंत्री तो बन गए हैं, मगर पूर्व के विभाग में चल रही सीबीआइ जांच के चलते संकट मंडराता रहेगा।
गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन विभाग संभालने के कुछ दिनों बाद ही विवादों में आ गए। उन पर विपक्षी दलों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गंभीर आरोप लगाए। माफिया का सिंडीकेट बनाकर अवैध खनन कराने का उन पर आरोप लगा। पर्यावरणविद और कई प्रमुख लोग गायत्री के खिलाफ सड़क पर उतरे मगर सपा मुखिया बचाव में खड़े दिखे। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर उनके प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच शुरू हो गई। इस पूरे प्रकरण का परीक्षण कराने के बाद आखिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 12 सितंबर को गायत्री प्रजापित को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। इसके चलते सपा परिवार में जो रार शुरू हुई वह संग्र्राम तक पहुंच गई। शांति का जो फार्मूला बना उसमें गायत्री प्रजापित को फिर से मंत्री पद लौटाने की बात हुई, जिस पर सोमवार को अमल को हो गया, मगर मुश्किल यह है कि अवैध खनन, बाधित बढ़ाने, पट्टों के नवीनीकरण में खामियों अब भी सीबीआइ जांच चल रही है और अगर सीबीआइ जांच की आंच विभागीय अधिकारियों से होते हुए गायत्री प्रजापति तक पहुंच गई तब उनके लिए फिर मुश्किल होगी। कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि गायत्री को ओहदा तो मिल गया है मगर संकट की तलवार लटकती रहेगी।
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हाईकोर्ट में याचिका : मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ लंबे समय से अभियान चल रही नूतन ठाकुर ने 26 दिसंबर 2014 को गायत्री के खिलाफ लोकायुक्त के यहां शिकायत दाखिल की थी। 25 मई 2015 को लोकायुक्त ने साक्ष्य के अभाव में जांच बद कर दी। इसके बाद नूतन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एसआइटी जांच के लिए याचिका दाखिल की। यह याचिका कोर्ट में लंबित है। अब गायत्री को दोबारा मंत्री बनाये जाने के खिलाफ नूतन ने नई याचिका दाखिल की है।
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विभाग बंटवारे पर निगाहें
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-मंत्रियों ने मुलायम अखिलेश के घर जाकर आभार जताया
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लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मंत्रिमंडल 'हाउस फुलÓ होने के बाद अब नये व प्रोन्नत वजीरों के विभागों पर निगाहें लग गयी हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथकार्य बंटवारे पर चर्चा कर ली है। एक-दो दिन में विभागों के बंटवारे की उम्मीद है।
आठवें विस्तार में अखिलेश यादव ने चार नये मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने और छह को प्रोन्नति देने व एक राज्यमंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने के बाद उनके विभागों के बंटवारे पर मंथन किया। सपा सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस संबंध में पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथ विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम के आवास पर चर्चा की और अपनी प्राथमिकताएं भी बतायीं। सूत्रों का कहना है कि विभागों के बंटवारे पर राय बन गयी है।
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मुलायम-अखिलेश के घर पहुंचे मंत्री
शपथ लेने के बाद मंत्री सीधी विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम सिंह यादव के घर पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लिया। मुलायम ने मंत्रियों को विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का संदेश दिया और सरकार का कामकाज जनता तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा। सपा मुखिया से मिलने जाने वालों में गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा, हाजी रियाज अहमद, शंखलाल मांझी, रविदास मेहरोत्रा और नरेंद्र वर्मा शामिल थे। यहां से निकलकर मंत्री मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पहुंचे और उनका आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने भी चुनावी तैयारी में जुटने का संदेश दिया।
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मुख्यमंत्री ने सिफारिश मानी : मुलायम
लखनऊ : मंत्रियों के शपथ ग्र्रहण समारोह में एक गायत्री प्रजापति को लेकर पूछे गये सवाल पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि गायत्री प्रजापति कर्मठ कार्यकर्ता हैं, पिछड़ी जाति के हैं। मैंने उनके समेत किसी को भी मंत्री नहीं बनवाया है। कुछ सिफारिशें की थी, जिसे मुख्यमंत्री ने मान लिया। कहा कि नये मंत्रियों को बधाई और उम्मीद है कि वह अच्छा काम करेंगे।
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शपथ, सेल्फी और कोहनी
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- राष्ट्रगान चलता रहा लोग सेल्फी में लगे रहे
- सपा मुखिया के लिए मुख्यमंत्री ने कुर्सी छोड़ी
- नाईक ने उठाकर दिया मुलायम को पानी का गिलास
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लखनऊ : जाने कितने शपथ ग्रहण का मेजबान रहा राजभवन सोमवार को ऐसे पलों का गवाह बना, जिसे नजीर के रूप में याद किया जाएगा। एक, शपथ के बाद मंत्री का पार्टी मुखिया के चरणों में साष्टांग करना। दो, सेल्फी की चाहत में राष्ट्रगान का सम्मान भुलाना। तीन, सुरक्षा कर्मियों द्वारा मेहमानों को 'कोहनीÓ का शिकार बनाना।
राजभवन ने शपथ ग्रहण के लिए सोमवार 12 बजे का समय निर्धारित किया, राजभवन प्रशासन ने शपथ लेने वालों के लिए दस कुर्सियां लगाई, मगर निर्धारित समय तक सिर्फ आठ नामित लोग पहुंचे... बचे हुए दो लोगों पर कयास लगना शुरू हुआ। घड़ी की सुइयां 12.30 तक के करीब पहुंची। तब शंखलाल और रविदास मेहरोत्रा ने आरक्षित कुर्सियों पर आसन जमाया। कुछ सेकेंड बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव एक साथ राजभवन के गांधी सभागार पहुंचे और पीछे-पीछे राज्यपाल राम नाईक व मुख्यमंत्री वहां पहुंच गए। अब तक सब सामान्य था। मगर दूसरे नंबर पर शपथ लेने के बाद मंत्री गायत्री प्रजापति सीधे सपा मुखिया के पास पहुंचे और उनके पैर पकड़कर बैठने का उपक्रम किया। छायाकार उधर मुड़े। उत्सुकता में हाल में मौजूद लोग भी उस दृश्य को देखने की प्रयास करने लगे। दूसरी ओर मनोज पाण्डेय की शपथ चलती रही। मुख्यमंत्री अखिलेश चिर परिचित अंदाज में दृश्य देख मुस्कुराते रहे, आखिर हाथ उठाकर लोगों को बैठने का इशारा किया। उस समय तक मनोज की शपथ पूरी हो गई थी। शपथ का सिलसिला थमा। लोग सेल्फी लेने में इस कदर मशगूल हो गये और मुख्य सचिव ने 'राज्यपाल की आज्ञा से समारोह का सम्पन्न होने का एलान किया, जो अनसुना हो गया।Ó राज्यपाल ने टोका तो कुछ पल को स्थिरता आई। राष्ट्रगान शुरू हो गया मगर सेल्फी का सिलसिला चलता रहा। और फिर स्वल्पाहार कक्ष में घुसने व बाहर निकलने के प्रयास में कई लोगों को सुरक्षा कर्मियों की कोहनियों का शिकार होना पड़ा। हां, यहां का दृश्य सियासी प्रतिबद्धताओं से ऊपर था। कक्ष में सपा मुखिया पहुंचे तो मुख्यमंत्री ने उनके लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी और दूसरे ओर जम गये। एक मंत्री ने उनके बगल में बैठने का प्रयास किया तो उसे रोक अहमद हसन को अपने करीब बैठाया। ऐसे ही नाश्ता करने के बाद मुलायम ने पानी का गिलास उठाने का उपक्रम किया तो राज्यपाल राम नाईक ने झट से उन्हें गिलास थमाया।
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सपा से निकाले गये लोगों की गलती नहीं : रामगोपाल
-इन लोगों को पार्टी में वापस लिया जाये
-अखिलेश में एक दिन बनेंगे प्रधानमंत्री
इटावा : सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि उनकी नेताजी मुलायम ङ्क्षसह यादव से मांग है कि जिन लोगों को पार्टी से निकाला गया है उन्हें वापस ले लिया जाये। उन्हें उम्मीद है नेताजी बड़े दिल के हैं और इन लोगों को पार्टी में वापस ले लेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
सोमवार को जिला पंचायत अध्यक्ष के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनके भांजे एमएलसी अरङ्क्षवद यादव पर अवैध कब्जे के आरोप गलत हैं। इन आरोपों की उन्होंने ही जिलाधिकारी मैनपुरी से शिकायत होने पर जांच करायी थी, यह आरोप जिन लोगों द्वारा लगाये जा रहे हैं वे सही नहीं हैं। आनंद भदौरिया, साजन ङ्क्षसह का भी पार्टी में बड़ा योगदान है। उन्हें विश्वास है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष इनकी गलती माफ करते हुए वापसी करेंगे। पार्टी में कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं है। यह बात उन्होंने कभी नहीं कही। यह मीडिया द्वारा बनायी गयी बात है। जो व्यक्ति पार्टी के अंदर आ गया वह हमारा ही है। सपा व परिवार में कोई फूट नहीं है। सभी लोग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। अखिलेश यादव अगले 25 साल तक पार्टी का चेहरा हैं और उसी के लिए सभी लोग मिलकर काम करेंगे। रामगोपाल ने कहा कि उन्हें पद की कोई लालसा नहीं है। वह जीवन में मंत्री पद नहीं लेंगे।
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मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार
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-गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा की वापसी
-रियाज, यासर और रविदास स्वंतत्र प्रभार से बने कैबिनेट मंत्री
-अभिषेक,नरेंद्र, शंखलाल राज्यमंत्री से सीधे बने कैबिनेट मंत्री
-तीन माह बाद जियाउद्दीन की शपथ, पप्पू निषाद मंत्रिमंडल से बाहर
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लखनऊ : करीब आती चुनावी बेला में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार किया। जिसमें पूर्व में बर्खास्त मंत्रियों में से तीन की मंत्रिमंडल में वापसी हुई। एक नया चेहरा शामिल हुआ। स्वतंत्र प्रभार वाले तीन व तीन राज्य मंत्रियों को प्रोन्नत कर मंत्री बनाया गया जबकि खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मी नारायण उर्फ पप्पू निषाद को बर्खास्त कर दिया गया। मंत्रिमंडल में सदस्यों की संख्या 60 हो गई है। कैबिनेट हाउसफुल होने से विस्तार की गुंजायश नहीं रह गयी है। फेरबदल के जरियेब्राह्मïण व मुस्लिम वोटरों को साधने का प्रयास नजर आ रहा है।
सोमवार को राज्यपाल राम नाईक ने राजभवन के गांधी सभागार में नए मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। 27 जून को मंत्री नामित हो चुकेजियाउद्दीन रिजवी को सबसे पहले शपथ दिलाई गई। उन्होंने उर्दू और खुदा के नाम पर शपथ ली। 12 सितंबर को बर्खास्तगी के 15वें दिन गायत्री प्रजापति को दूसरे नंबर पर शपथ दिलाकर मंत्रिमंडल में वापसी कराई गयी। मनोज पांडेय को तीसरे व शिवकांत ओझा ने चौथे नंबर पर मंत्री पद की शपथ ली। मत्स्य और सार्वजनिक उद्यम राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रियाज अहमद, परिवहन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) यासर शाह और परिवार कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविदास मेहरोत्रा को प्रोन्नत करते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई जबकि व्यावसायिक शिक्षा राज्यमंत्री अभिषेक मिश्रा, स्वास्थ्य राज्यमंत्री शंखलाल मांझी और समाज कल्याण राज्यमंत्री नरेंद्र वर्मा को प्रोन्नति देते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई।
नए मंत्रियों की शपथ से पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी। निषाद संतकबीरनगर के मेहदावल से विधायक हैं। विधानसभा में विधायकों की संख्या के अनुपात में मंत्रिमंडल में 60 सदस्य ही रह सकते हैं। विस्तार से पूर्व मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल में कुल 57 मंत्री थे। सोमवार को चार नए मंत्रियों को शामिल करने से एक की छुट्टी की बाध्यता थी।
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गायत्री का चौथा शपथ
अखिलेश यादव सरकार में गायत्री प्रजापति इकलौते ऐसे मंत्री हैं जो साढ़े चार साल की सरकार में एक बार बर्खास्त होने के साथ ही चार बार मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। वर्ष 2013 के विस्तार में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था। फिर उन्हें राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार की शपथ दिलाई गयी और तीसरी बार कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी। 12 सितंबर को मंत्रि मंडल से बर्खास्त कर दिया गया और 15वें ही दिन उन्हें चौथी बार मंत्री पद की शपथ दिलायी।
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नाटकीय घटनाक्रम
शपथ ग्रहण समारोह में एक नाटकीय घटनाक्रम भी देखा गया। जब मंत्री पद शपथ लेने के बाद गायत्री प्रजापति मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीब पहुंचे उन्होंने बधाई स्वरूप हाथ बढ़ा दिया, मगर गायत्री ने कम से तीन बार उनके पैर छुए। मुख्यमंत्री मुस्कुराते रहे और हाथ भी मिलाया। यहां से उठकर गायत्री सीधे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीब पहुंचे और साष्टांग दंडवत के अंदाज में उनके पैर छुए। कैमरे प्रजापति की ओर मुड़े मगर बेफिक्र मंत्री ने इसके बाद शिवपाल सिंह यादव के पैर भी छुए।
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एक हड़बड़ी में, दो अटके
27 जून को मंत्री नामित होने के तीन माह बाद शपथ लेने का मौका मिला तो जियाउद्दीन रिजवी ने राज्यपाल की शुरुआत से पहले ही शपथ शुरू कर दी, राज्यपाल ने टोंका और फिर दोबारा उनकी शुरुआत करायी। इसके बाद प्रोन्नत होकर कैबिनेट मंत्री ने रविदास मेहरोत्रा 'संसूचितÓ शब्द का उच्चारण नहीं कर पाये तो राज्यपाल ने उन्हें भी टोंका। हाजी रियाज उदद्ीन शपथ के दौरान 'संविधानÓ शब्द छोड़ गये तो राज्यपाल ने बीच में टोंककर उनकी शपथ ठीक करायी। समारोह के समापन से पूर्व लोगों के डॉयस के बिल्कुल करीब पहुंच जाने पर राज्यपाल ने एक बार फिर माइक संभाला और लोगों को पीछे कराया, तब राष्ट्रगान की धुन बज सकी।
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मंत्रिमंडल की स्थिति
कैबिनेट मंत्री- 32
राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार- नौ
राज्यमंत्री- 19
मौजूदा मंत्रियों की संख्या- 60
कुल बन सकते हैं- 60
कोई स्थान रिक्त नहीं
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पहले भी बदलते रहे हैं सरकार के फैसले
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-तमाम आरोपों में हटने के बाद बहाल किये जा चुके 17 में से छह मंत्री
-मॉल की बत्ती बंद करने व विधायकों को कार जैसे फैसले भी हुए वापस
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लखनऊ : तब प्रदेश सरकार को शपथ लिये तीन महीने ही हुए थे। जून में गर्मी की छुïिट्टयां चल रही थीं। बच्चे व बड़े शाम को मॉल्स में घूमने जाते थे, तभी खबर आई कि राज्य सरकार ने शाम सात बजे मॉल्स की बत्ती बंद करने का फैसला किया है। सरकार बनने के बाद यह पहला बड़ा फैसला था, किंतु इसे वापस लेना पड़ा। ऐसे ही सरकार के फैसले बदलते रहे हैं, जिनमें हटाए जाने के बाद छह मंत्रियों की बहाली भी शामिल है।
अखिलेश सरकार बनने के बाद युवा नेतृत्व, पारदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं। ऐसे में बिजली संकट से निपटने के लिए 17 जून 2012 को मॉल्स की बिजली बंद करने के फैसले की बड़ी आलोचना हुई थी। इसके साथ ही रेस्टोरेंट दस बजे बंद करने का भी फैसला सरकार ने लिया था। बाद में दोनों फैसले वापस लेने पड़े थे। अभी इस फैसले पर बवाल चल ही रहा था कि तीन जुलाई 2012 को विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधायकों को विधायक निधि से बीस लाख रुपये तक की कार खरीदने की अनुमति देने का एलान किया। इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ। हालांकि इसका लाभ सभी विधायकों को मिलना था किंतु विपक्ष के विधायकों ने इसे स्वीकार नहीं किया। यही नहीं वरिष्ठ सपा नेता मोहन सिंह तक ने इसका विरोध किया था। अगले दिन ही सरकार को यह फैसला भी वापस लेना पड़ा था।
अखिलेश सरकार के मौजूदा कार्यकाल में ऐसे ही तमाम फैसले हुए हैं। इस दौरान 17 मंत्री हटे, जिनमें से सात दोबारा मंत्री बन गए। इसकी शुरुआत हुई अक्टूबर 2012 में, जब तत्कालीन राज्यमंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया गया। फरवरी 2013 में पंडित सिंह दोबारा मंत्री बना दिये गए। मार्च 2013 में पुलिस क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) को इस्तीफा देना पड़ा था। सात महीने के भीतर ही अक्टूबर 2013 में राजा भैया को दोबारा मंत्री बनाया गया। इस बीच अप्रैल 2013 में तत्कालीन मंत्री राजाराम पांडेय को बर्खास्त किया गया, जिनका उसी वर्ष निधन भी हो गया। अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने एक साथ आठ मंत्रियों राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, अम्बिका चौधरी, शिवकुमार बेरिया, नारद राय, शिवाकांत ओझा, आलोक शाक्य, योगेश प्रताप सिंह व भगवत शरण गंगवार को बर्खास्त किया था। इनमें से नारद राय इसी साल 27 जून को और शिवाकांत ओझा सोमवार को दोबारा मंत्री बन गए। हालांकि इससे पहले नौ मार्च 2014 को बर्खास्त किये गए आनंद सिंह व मनोज पारस दोबारा मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। इसी वर्ष 21 जून को मुख्यमंत्री ने बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। उनका नाम कौमी एकता दल के सपा में विलय के मसले में सामने आया था। यह बर्खास्तगी महज छह दिन चली और 27 जून को बलराम फिर मंत्री बन गए। 27 जून को बर्खास्त हुए मनोज पांडेय सोमवार को हुए विस्तार में मंत्री बनने में कामयाब हुए। पिछले दिनों समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में कुर्सी गंवाने वाले राज किशोर सिंह व गायत्री प्रजापति में भी गायत्री दोबारा मंत्री बनने में सफल हो गए।
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चलते-चलते खेला ब्राह्मïण-मुस्लिम कार्ड
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- ब्राह्मïणों को साइकिल पर सवार कराने का दारोमदार अब मनोज, अभिषेक, शिवाकांत के कंधों पर
- मुस्लिमों को जोडऩे का नैतिक दबाव रियाज, यासर पर
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परवेज अहमद, लखनऊ : चुनावी बिसात पर जातीय समीकरणों के पांसे ठीक पड़ जाएं तो हार भी जीत में बदल जाती है! संभवत: आखिरी फेरबदल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी सियासी नुस्खे पर चलकर ब्राह्मïण-मुस्लिम गठजोड़ बनाने पर दांव लगाया है। जिसकी सफलता-असफलता का आकलन विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर होगा, पर चुनौती उन मंत्रियों की बढ़ी है, जिन पर मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी ने भरोसा जताया है।
प्रदेश में 13 फीसद ब्राह्मïण और 19 फीसद के करीब मुसलमान मतदाता है। अयोध्या आंदोलन के समय सेही मुस्लिम कांग्र्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आ गया था, वर्ष 2012 में समाजवादी सरकार बनने के बाद के कुछ सियासी व आपराधिक घटनाक्रमों ने इस वर्ग में असमंजस पैदा किया है। जिसे भांपकर अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल के आठवें विस्तार में सुन्नी मुसलमान जियाउद्दीन रिजवी को मंत्री बनाकर पूर्वांचल के मुसलमानों में अपनी पकड़ बरकरार रखने का प्रयास किया है तो गन्ना पट्टी केरियाज अहमद को स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाकर इस क्षेत्र के मुसलमानों को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। यासर शाह की छवि यूं तो मुस्लिमों में प्रभाव वाले नेता की नहीं है मगर अवध क्षेत्र में उनके पिता व पूर्वमंत्री वकार शाह का मुसलमानों में खासा प्रभाव रहा है, शाह के जरिये उसे प्रभाव को सपा के पक्ष में भुनाने का प्रयास किया गया है।
विस्तार में जिस दूसरे वर्ग को अधिक तवज्जो मिली, वह 13 फीसद मतदाताओं वाला ब्राह्मïण समाज है। मनोज पांडेय, शिवकांत ओझा को फिर से मंत्री बनाकर और अभिषेक मिश्र को राज्यमंत्री से सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर अखिलेश यादव ने ब्राह्मïण वोटों के लिए चल रहे 'युद्धÓ में खुद को मजबूत योद्धा साबित करने का प्रयास किया है। इतिहास पर नजर डालें तो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध वर्ग से इतर ब्राह्मïण परिस्थितियों या सजातीय क्षत्रप के इशारे पर ही समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान करता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री ने जिन पुराने ब्राह्मïण सेनापतियों पर दांव लगाया गया है, उन पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा के ब्राह्मïण रिझाओ अभियान में घुसपैठ करने का नैतिक जिम्मा आ गया है। चुनावी इम्तिहान में वह कितने कारगार हुए, यह विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ होगा। हालांकि सरकार में विजय मिश्र, पवन पांडेय, ब्रह्मïशंकर त्रिपाठी, शारदा प्रताप शुक्ल के रूप में ब्राह्मïणों की नुमाइंदगी है। यही नहीं, अति पिछड़े समाज के शंखलाल माझी और कूर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र वर्मा को तरक्की देकर समाजवादी पार्टी ने राज्य को दोनों बड़े वोट बैंक पाले में रखने का प्रयास किया है। सपा इससे पहले भी कूर्मी वोटों के लिए बेनी वर्मा को राज्यसभा भेज चुकी है। मुख्यमंत्री की ये सियासी इंजीनियरिंग से साफ है कि उन्होंने वोट बैंक बढ़ाने की पहल की मगर असर कितना हो पाएगा इसमें संदेह है।
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मनोज, ओझा की चुनौती बढ़ी
विधानसभा चुनाव डुगडुगी पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मनोज पांडेय और शिवाकांत ओझा को मंत्रिमंडल में वापस लेकर जो ब्राह्मïण कार्ड खेला है, उससे दोनों की चुनौती बढ़ गयी है। दरअसल, मनोज समाजवादी पार्टी की प्रबुद्धसभा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें ब्राह्मïण चेहरा बनाकर अभियान में झोंका था। उनके साथ शिवाकांत ओझा और दूसरे मंत्री भी लगाये थे, मगर उस समय ब्राह्मïणों ने सपा को उस अंदाज में समर्थन नहीं किया था, जैसी उनसे अपेक्षा थी।
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गायत्री को ओहदा वापस मिला पर संकट बरकरार
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-सीबीआइ जांच की आंच मंत्री तक पहुंची तो होगी दुश्वारी
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लखनऊ : भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री पद से बर्खास्त होने के 15वें दिन ही फिर गायत्री प्रजापति मंत्री तो बन गए हैं, मगर पूर्व के विभाग में चल रही सीबीआइ जांच के चलते संकट मंडराता रहेगा।
गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन विभाग संभालने के कुछ दिनों बाद ही विवादों में आ गए। उन पर विपक्षी दलों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गंभीर आरोप लगाए। माफिया का सिंडीकेट बनाकर अवैध खनन कराने का उन पर आरोप लगा। पर्यावरणविद और कई प्रमुख लोग गायत्री के खिलाफ सड़क पर उतरे मगर सपा मुखिया बचाव में खड़े दिखे। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर उनके प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच शुरू हो गई। इस पूरे प्रकरण का परीक्षण कराने के बाद आखिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 12 सितंबर को गायत्री प्रजापित को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। इसके चलते सपा परिवार में जो रार शुरू हुई वह संग्र्राम तक पहुंच गई। शांति का जो फार्मूला बना उसमें गायत्री प्रजापित को फिर से मंत्री पद लौटाने की बात हुई, जिस पर सोमवार को अमल को हो गया, मगर मुश्किल यह है कि अवैध खनन, बाधित बढ़ाने, पट्टों के नवीनीकरण में खामियों अब भी सीबीआइ जांच चल रही है और अगर सीबीआइ जांच की आंच विभागीय अधिकारियों से होते हुए गायत्री प्रजापति तक पहुंच गई तब उनके लिए फिर मुश्किल होगी। कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि गायत्री को ओहदा तो मिल गया है मगर संकट की तलवार लटकती रहेगी।
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हाईकोर्ट में याचिका : मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ लंबे समय से अभियान चल रही नूतन ठाकुर ने 26 दिसंबर 2014 को गायत्री के खिलाफ लोकायुक्त के यहां शिकायत दाखिल की थी। 25 मई 2015 को लोकायुक्त ने साक्ष्य के अभाव में जांच बद कर दी। इसके बाद नूतन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एसआइटी जांच के लिए याचिका दाखिल की। यह याचिका कोर्ट में लंबित है। अब गायत्री को दोबारा मंत्री बनाये जाने के खिलाफ नूतन ने नई याचिका दाखिल की है।
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विभाग बंटवारे पर निगाहें
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-मंत्रियों ने मुलायम अखिलेश के घर जाकर आभार जताया
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लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मंत्रिमंडल 'हाउस फुलÓ होने के बाद अब नये व प्रोन्नत वजीरों के विभागों पर निगाहें लग गयी हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथकार्य बंटवारे पर चर्चा कर ली है। एक-दो दिन में विभागों के बंटवारे की उम्मीद है।
आठवें विस्तार में अखिलेश यादव ने चार नये मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने और छह को प्रोन्नति देने व एक राज्यमंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने के बाद उनके विभागों के बंटवारे पर मंथन किया। सपा सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस संबंध में पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथ विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम के आवास पर चर्चा की और अपनी प्राथमिकताएं भी बतायीं। सूत्रों का कहना है कि विभागों के बंटवारे पर राय बन गयी है।
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मुलायम-अखिलेश के घर पहुंचे मंत्री
शपथ लेने के बाद मंत्री सीधी विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम सिंह यादव के घर पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लिया। मुलायम ने मंत्रियों को विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का संदेश दिया और सरकार का कामकाज जनता तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा। सपा मुखिया से मिलने जाने वालों में गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा, हाजी रियाज अहमद, शंखलाल मांझी, रविदास मेहरोत्रा और नरेंद्र वर्मा शामिल थे। यहां से निकलकर मंत्री मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पहुंचे और उनका आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने भी चुनावी तैयारी में जुटने का संदेश दिया।
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मुख्यमंत्री ने सिफारिश मानी : मुलायम
लखनऊ : मंत्रियों के शपथ ग्र्रहण समारोह में एक गायत्री प्रजापति को लेकर पूछे गये सवाल पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि गायत्री प्रजापति कर्मठ कार्यकर्ता हैं, पिछड़ी जाति के हैं। मैंने उनके समेत किसी को भी मंत्री नहीं बनवाया है। कुछ सिफारिशें की थी, जिसे मुख्यमंत्री ने मान लिया। कहा कि नये मंत्रियों को बधाई और उम्मीद है कि वह अच्छा काम करेंगे।
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शपथ, सेल्फी और कोहनी
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- राष्ट्रगान चलता रहा लोग सेल्फी में लगे रहे
- सपा मुखिया के लिए मुख्यमंत्री ने कुर्सी छोड़ी
- नाईक ने उठाकर दिया मुलायम को पानी का गिलास
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लखनऊ : जाने कितने शपथ ग्रहण का मेजबान रहा राजभवन सोमवार को ऐसे पलों का गवाह बना, जिसे नजीर के रूप में याद किया जाएगा। एक, शपथ के बाद मंत्री का पार्टी मुखिया के चरणों में साष्टांग करना। दो, सेल्फी की चाहत में राष्ट्रगान का सम्मान भुलाना। तीन, सुरक्षा कर्मियों द्वारा मेहमानों को 'कोहनीÓ का शिकार बनाना।
राजभवन ने शपथ ग्रहण के लिए सोमवार 12 बजे का समय निर्धारित किया, राजभवन प्रशासन ने शपथ लेने वालों के लिए दस कुर्सियां लगाई, मगर निर्धारित समय तक सिर्फ आठ नामित लोग पहुंचे... बचे हुए दो लोगों पर कयास लगना शुरू हुआ। घड़ी की सुइयां 12.30 तक के करीब पहुंची। तब शंखलाल और रविदास मेहरोत्रा ने आरक्षित कुर्सियों पर आसन जमाया। कुछ सेकेंड बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव एक साथ राजभवन के गांधी सभागार पहुंचे और पीछे-पीछे राज्यपाल राम नाईक व मुख्यमंत्री वहां पहुंच गए। अब तक सब सामान्य था। मगर दूसरे नंबर पर शपथ लेने के बाद मंत्री गायत्री प्रजापति सीधे सपा मुखिया के पास पहुंचे और उनके पैर पकड़कर बैठने का उपक्रम किया। छायाकार उधर मुड़े। उत्सुकता में हाल में मौजूद लोग भी उस दृश्य को देखने की प्रयास करने लगे। दूसरी ओर मनोज पाण्डेय की शपथ चलती रही। मुख्यमंत्री अखिलेश चिर परिचित अंदाज में दृश्य देख मुस्कुराते रहे, आखिर हाथ उठाकर लोगों को बैठने का इशारा किया। उस समय तक मनोज की शपथ पूरी हो गई थी। शपथ का सिलसिला थमा। लोग सेल्फी लेने में इस कदर मशगूल हो गये और मुख्य सचिव ने 'राज्यपाल की आज्ञा से समारोह का सम्पन्न होने का एलान किया, जो अनसुना हो गया।Ó राज्यपाल ने टोका तो कुछ पल को स्थिरता आई। राष्ट्रगान शुरू हो गया मगर सेल्फी का सिलसिला चलता रहा। और फिर स्वल्पाहार कक्ष में घुसने व बाहर निकलने के प्रयास में कई लोगों को सुरक्षा कर्मियों की कोहनियों का शिकार होना पड़ा। हां, यहां का दृश्य सियासी प्रतिबद्धताओं से ऊपर था। कक्ष में सपा मुखिया पहुंचे तो मुख्यमंत्री ने उनके लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी और दूसरे ओर जम गये। एक मंत्री ने उनके बगल में बैठने का प्रयास किया तो उसे रोक अहमद हसन को अपने करीब बैठाया। ऐसे ही नाश्ता करने के बाद मुलायम ने पानी का गिलास उठाने का उपक्रम किया तो राज्यपाल राम नाईक ने झट से उन्हें गिलास थमाया।
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सपा से निकाले गये लोगों की गलती नहीं : रामगोपाल
-इन लोगों को पार्टी में वापस लिया जाये
-अखिलेश में एक दिन बनेंगे प्रधानमंत्री
इटावा : सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि उनकी नेताजी मुलायम ङ्क्षसह यादव से मांग है कि जिन लोगों को पार्टी से निकाला गया है उन्हें वापस ले लिया जाये। उन्हें उम्मीद है नेताजी बड़े दिल के हैं और इन लोगों को पार्टी में वापस ले लेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
सोमवार को जिला पंचायत अध्यक्ष के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनके भांजे एमएलसी अरङ्क्षवद यादव पर अवैध कब्जे के आरोप गलत हैं। इन आरोपों की उन्होंने ही जिलाधिकारी मैनपुरी से शिकायत होने पर जांच करायी थी, यह आरोप जिन लोगों द्वारा लगाये जा रहे हैं वे सही नहीं हैं। आनंद भदौरिया, साजन ङ्क्षसह का भी पार्टी में बड़ा योगदान है। उन्हें विश्वास है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष इनकी गलती माफ करते हुए वापसी करेंगे। पार्टी में कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं है। यह बात उन्होंने कभी नहीं कही। यह मीडिया द्वारा बनायी गयी बात है। जो व्यक्ति पार्टी के अंदर आ गया वह हमारा ही है। सपा व परिवार में कोई फूट नहीं है। सभी लोग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। अखिलेश यादव अगले 25 साल तक पार्टी का चेहरा हैं और उसी के लिए सभी लोग मिलकर काम करेंगे। रामगोपाल ने कहा कि उन्हें पद की कोई लालसा नहीं है। वह जीवन में मंत्री पद नहीं लेंगे।