Tuesday 27 September 2016

अखिलेश कैबिनेट हाउसफुल

26.09.2016
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मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार
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-गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा की वापसी
-रियाज, यासर और रविदास स्वंतत्र प्रभार से बने कैबिनेट मंत्री
-अभिषेक,नरेंद्र, शंखलाल राज्यमंत्री से सीधे बने कैबिनेट मंत्री
-तीन माह बाद जियाउद्दीन की शपथ, पप्पू निषाद मंत्रिमंडल से बाहर
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 लखनऊ : करीब आती चुनावी बेला में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल का आठवां विस्तार किया। जिसमें पूर्व में बर्खास्त मंत्रियों में से तीन की मंत्रिमंडल में वापसी हुई। एक नया चेहरा शामिल हुआ। स्वतंत्र प्रभार वाले तीन व तीन राज्य मंत्रियों को प्रोन्नत कर मंत्री बनाया गया जबकि खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मी नारायण उर्फ पप्पू निषाद को बर्खास्त कर दिया गया। मंत्रिमंडल में सदस्यों की संख्या 60 हो गई है। कैबिनेट हाउसफुल होने से विस्तार की गुंजायश नहीं रह गयी है। फेरबदल के जरियेब्राह्मïण व मुस्लिम वोटरों को साधने का प्रयास नजर आ रहा है।
 सोमवार को राज्यपाल राम नाईक ने राजभवन के गांधी सभागार में नए मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। 27 जून को मंत्री नामित हो चुकेजियाउद्दीन रिजवी को सबसे पहले शपथ दिलाई गई। उन्होंने उर्दू और खुदा के नाम पर शपथ ली। 12 सितंबर को बर्खास्तगी के 15वें दिन गायत्री प्रजापति को दूसरे नंबर पर शपथ दिलाकर मंत्रिमंडल में वापसी कराई गयी। मनोज पांडेय को तीसरे व शिवकांत ओझा ने चौथे नंबर पर मंत्री पद की शपथ ली। मत्स्य और सार्वजनिक उद्यम राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रियाज अहमद, परिवहन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) यासर शाह और परिवार कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविदास मेहरोत्रा को प्रोन्नत करते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई जबकि व्यावसायिक शिक्षा राज्यमंत्री अभिषेक मिश्रा, स्वास्थ्य राज्यमंत्री शंखलाल मांझी और समाज कल्याण राज्यमंत्री नरेंद्र वर्मा को प्रोन्नति देते हुए कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी गई।
नए मंत्रियों की शपथ से पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी। निषाद संतकबीरनगर के मेहदावल से विधायक हैं। विधानसभा में विधायकों की संख्या के अनुपात में मंत्रिमंडल में 60 सदस्य ही रह सकते हैं। विस्तार से पूर्व मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल में कुल 57 मंत्री थे। सोमवार को चार नए मंत्रियों को शामिल करने से एक की छुट्टी की बाध्यता थी।
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गायत्री का चौथा शपथ
अखिलेश यादव सरकार में गायत्री प्रजापति इकलौते ऐसे मंत्री हैं जो साढ़े चार साल की सरकार में एक बार बर्खास्त होने के साथ ही चार बार मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। वर्ष 2013 के विस्तार में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था। फिर उन्हें राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार की शपथ दिलाई गयी और तीसरी बार कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलायी। 12 सितंबर को मंत्रि मंडल से बर्खास्त कर दिया गया और 15वें ही दिन उन्हें चौथी बार मंत्री पद की शपथ दिलायी।
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 नाटकीय घटनाक्रम
 शपथ ग्रहण समारोह में एक नाटकीय घटनाक्रम भी देखा गया। जब मंत्री पद शपथ लेने के बाद गायत्री प्रजापति मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीब पहुंचे उन्होंने बधाई स्वरूप हाथ बढ़ा दिया, मगर गायत्री ने कम से तीन बार उनके पैर छुए। मुख्यमंत्री मुस्कुराते रहे और हाथ भी मिलाया। यहां से उठकर गायत्री सीधे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीब पहुंचे और साष्टांग दंडवत के अंदाज में उनके पैर छुए। कैमरे प्रजापति की ओर मुड़े मगर बेफिक्र मंत्री ने इसके बाद शिवपाल सिंह यादव के पैर भी छुए।
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एक हड़बड़ी में, दो अटके
27 जून को मंत्री नामित होने के तीन माह बाद शपथ लेने का मौका मिला तो जियाउद्दीन रिजवी ने राज्यपाल की शुरुआत से पहले ही शपथ शुरू कर दी, राज्यपाल ने टोंका और फिर दोबारा उनकी शुरुआत करायी। इसके बाद प्रोन्नत होकर कैबिनेट मंत्री ने रविदास मेहरोत्रा 'संसूचितÓ शब्द का उच्चारण नहीं कर पाये तो राज्यपाल ने उन्हें भी टोंका। हाजी रियाज उदद्ीन शपथ के दौरान 'संविधानÓ शब्द छोड़ गये तो राज्यपाल ने बीच में टोंककर उनकी शपथ ठीक करायी। समारोह के समापन से पूर्व लोगों के डॉयस के बिल्कुल करीब पहुंच जाने पर राज्यपाल ने एक बार फिर माइक संभाला और लोगों को पीछे कराया, तब राष्ट्रगान की धुन बज सकी।
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मंत्रिमंडल की स्थिति
कैबिनेट मंत्री-           32
राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार- नौ
राज्यमंत्री-              19
मौजूदा मंत्रियों की संख्या- 60
कुल बन सकते हैं- 60
कोई स्थान रिक्त नहीं

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 पहले भी बदलते रहे हैं सरकार के फैसले
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-तमाम आरोपों में हटने के बाद बहाल किये जा चुके 17 में से छह मंत्री
-मॉल की बत्ती बंद करने व विधायकों को कार जैसे फैसले भी हुए वापस
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लखनऊ : तब प्रदेश सरकार को शपथ लिये तीन महीने ही हुए थे। जून में गर्मी की छुïिट्टयां चल रही थीं। बच्चे व बड़े शाम को मॉल्स में घूमने जाते थे, तभी खबर आई कि राज्य सरकार ने शाम सात बजे मॉल्स की बत्ती बंद करने का फैसला किया है। सरकार बनने के बाद यह पहला बड़ा फैसला था, किंतु इसे वापस लेना पड़ा। ऐसे ही सरकार के फैसले बदलते रहे हैं, जिनमें हटाए जाने के बाद छह मंत्रियों की बहाली भी शामिल है।
अखिलेश सरकार बनने के बाद युवा नेतृत्व, पारदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं। ऐसे में बिजली संकट से निपटने के लिए 17 जून 2012 को मॉल्स की बिजली बंद करने के फैसले की बड़ी आलोचना हुई थी। इसके साथ ही रेस्टोरेंट दस बजे बंद करने का भी फैसला सरकार ने लिया था। बाद में दोनों फैसले वापस लेने पड़े थे। अभी इस फैसले पर बवाल चल ही रहा था कि तीन जुलाई 2012 को विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधायकों को विधायक निधि से बीस लाख रुपये तक की कार खरीदने की अनुमति देने का एलान किया। इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ। हालांकि इसका लाभ सभी विधायकों को मिलना था किंतु विपक्ष के विधायकों ने इसे स्वीकार नहीं किया। यही नहीं वरिष्ठ सपा नेता मोहन सिंह तक ने इसका विरोध किया था।  अगले दिन ही सरकार को यह फैसला भी वापस लेना पड़ा था।
अखिलेश सरकार के मौजूदा कार्यकाल में ऐसे ही तमाम फैसले हुए हैं। इस दौरान 17 मंत्री हटे, जिनमें से सात दोबारा मंत्री बन गए। इसकी शुरुआत हुई अक्टूबर 2012 में, जब तत्कालीन राज्यमंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया गया। फरवरी 2013 में पंडित सिंह दोबारा मंत्री बना दिये गए। मार्च 2013 में पुलिस क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) को इस्तीफा देना पड़ा था। सात महीने के भीतर ही अक्टूबर 2013 में राजा भैया को दोबारा मंत्री बनाया गया। इस बीच अप्रैल 2013 में तत्कालीन मंत्री राजाराम पांडेय को बर्खास्त किया गया, जिनका उसी वर्ष निधन भी हो गया। अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने एक साथ आठ मंत्रियों राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, अम्बिका चौधरी, शिवकुमार बेरिया, नारद राय, शिवाकांत ओझा, आलोक शाक्य, योगेश प्रताप सिंह व भगवत शरण गंगवार को बर्खास्त किया था। इनमें से नारद राय इसी साल 27 जून को और शिवाकांत ओझा सोमवार को दोबारा मंत्री बन गए। हालांकि इससे पहले नौ मार्च 2014 को बर्खास्त किये गए आनंद सिंह व मनोज पारस दोबारा मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। इसी वर्ष 21 जून को मुख्यमंत्री ने बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। उनका नाम कौमी एकता दल के सपा में विलय के मसले में सामने आया था। यह बर्खास्तगी महज छह दिन चली और 27 जून को बलराम फिर मंत्री बन गए। 27 जून को बर्खास्त हुए मनोज पांडेय सोमवार को हुए विस्तार में मंत्री बनने में कामयाब हुए। पिछले दिनों समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में कुर्सी गंवाने वाले राज किशोर सिंह व गायत्री प्रजापति में भी गायत्री दोबारा मंत्री बनने में सफल हो गए।

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चलते-चलते खेला ब्राह्मïण-मुस्लिम कार्ड
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- ब्राह्मïणों को साइकिल पर सवार कराने का दारोमदार अब मनोज, अभिषेक, शिवाकांत के कंधों पर
- मुस्लिमों को जोडऩे का नैतिक दबाव रियाज, यासर पर
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परवेज अहमद, लखनऊ : चुनावी बिसात पर जातीय समीकरणों के पांसे ठीक पड़ जाएं तो हार भी जीत में बदल जाती है! संभवत: आखिरी फेरबदल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसी सियासी नुस्खे पर चलकर ब्राह्मïण-मुस्लिम गठजोड़ बनाने पर दांव लगाया है। जिसकी सफलता-असफलता का आकलन विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर होगा, पर चुनौती उन मंत्रियों की बढ़ी है, जिन पर मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी ने भरोसा जताया है।
प्रदेश में 13 फीसद ब्राह्मïण और 19 फीसद के करीब मुसलमान मतदाता है। अयोध्या आंदोलन के समय सेही मुस्लिम कांग्र्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आ गया था, वर्ष 2012 में समाजवादी सरकार बनने के बाद के कुछ सियासी व आपराधिक घटनाक्रमों ने इस वर्ग में असमंजस पैदा किया है। जिसे भांपकर अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल के आठवें विस्तार में सुन्नी मुसलमान जियाउद्दीन रिजवी को मंत्री बनाकर पूर्वांचल के मुसलमानों में अपनी पकड़ बरकरार रखने का प्रयास किया है तो गन्ना पट्टी केरियाज अहमद को स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाकर इस क्षेत्र के मुसलमानों को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। यासर शाह की छवि यूं तो मुस्लिमों में प्रभाव वाले नेता की नहीं है मगर अवध क्षेत्र में उनके पिता व पूर्वमंत्री वकार शाह का मुसलमानों में खासा प्रभाव रहा है, शाह के जरिये उसे प्रभाव को सपा के पक्ष में भुनाने का प्रयास किया गया है।
विस्तार में जिस दूसरे वर्ग को अधिक तवज्जो मिली, वह 13 फीसद मतदाताओं वाला ब्राह्मïण समाज है। मनोज पांडेय, शिवकांत ओझा को फिर से मंत्री बनाकर और अभिषेक मिश्र को राज्यमंत्री से सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर अखिलेश यादव ने ब्राह्मïण वोटों के लिए चल रहे 'युद्धÓ में खुद को मजबूत योद्धा साबित करने का प्रयास किया है। इतिहास पर नजर डालें तो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध वर्ग से इतर ब्राह्मïण परिस्थितियों या सजातीय क्षत्रप के इशारे पर ही समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान करता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री ने जिन पुराने ब्राह्मïण सेनापतियों पर दांव लगाया गया है, उन पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा के ब्राह्मïण रिझाओ अभियान में घुसपैठ करने का नैतिक जिम्मा आ गया है। चुनावी इम्तिहान में वह कितने कारगार हुए, यह विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ होगा। हालांकि सरकार में विजय मिश्र, पवन पांडेय, ब्रह्मïशंकर त्रिपाठी, शारदा प्रताप शुक्ल के रूप में ब्राह्मïणों की  नुमाइंदगी है। यही नहीं, अति पिछड़े समाज के शंखलाल माझी और कूर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र वर्मा को तरक्की देकर समाजवादी पार्टी ने राज्य को दोनों बड़े वोट बैंक पाले में रखने का प्रयास किया है। सपा इससे पहले भी कूर्मी वोटों के लिए बेनी वर्मा को राज्यसभा भेज चुकी है। मुख्यमंत्री की ये सियासी इंजीनियरिंग से साफ है कि उन्होंने वोट बैंक बढ़ाने की पहल की  मगर असर कितना हो पाएगा इसमें संदेह है।
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 मनोज, ओझा की चुनौती बढ़ी
विधानसभा चुनाव डुगडुगी पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मनोज पांडेय और शिवाकांत ओझा को मंत्रिमंडल में वापस लेकर जो ब्राह्मïण कार्ड खेला है, उससे दोनों की चुनौती बढ़ गयी है। दरअसल, मनोज समाजवादी पार्टी की प्रबुद्धसभा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें ब्राह्मïण चेहरा बनाकर अभियान में झोंका था। उनके साथ शिवाकांत ओझा और दूसरे मंत्री भी लगाये थे, मगर उस समय ब्राह्मïणों ने सपा को उस अंदाज में समर्थन नहीं किया था, जैसी उनसे अपेक्षा थी।

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 गायत्री को ओहदा वापस मिला पर संकट बरकरार
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-सीबीआइ जांच की आंच मंत्री तक पहुंची तो होगी दुश्वारी
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लखनऊ : भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री पद से बर्खास्त होने के 15वें दिन ही फिर गायत्री प्रजापति मंत्री तो बन गए हैं, मगर पूर्व के विभाग में चल रही सीबीआइ जांच के चलते संकट मंडराता रहेगा।
गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन विभाग संभालने के कुछ दिनों बाद ही विवादों में आ गए। उन पर विपक्षी दलों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गंभीर आरोप लगाए। माफिया का सिंडीकेट बनाकर अवैध खनन कराने का उन पर आरोप लगा। पर्यावरणविद और कई प्रमुख लोग गायत्री के खिलाफ सड़क पर उतरे मगर सपा मुखिया बचाव में खड़े दिखे। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर उनके प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच शुरू हो गई। इस पूरे प्रकरण का परीक्षण कराने के बाद आखिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 12 सितंबर को गायत्री प्रजापित को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। इसके चलते सपा परिवार में जो रार शुरू हुई वह संग्र्राम तक पहुंच गई। शांति का जो फार्मूला बना उसमें गायत्री प्रजापित को फिर से मंत्री पद लौटाने की बात हुई, जिस पर सोमवार को अमल को हो गया, मगर मुश्किल यह है कि अवैध खनन, बाधित बढ़ाने, पट्टों के नवीनीकरण में खामियों अब भी सीबीआइ जांच चल रही है और अगर सीबीआइ जांच की आंच विभागीय अधिकारियों से होते हुए गायत्री प्रजापति तक पहुंच गई तब उनके लिए फिर मुश्किल होगी। कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि गायत्री को ओहदा तो मिल गया है मगर संकट की तलवार लटकती रहेगी।
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हाईकोर्ट में याचिका : मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ लंबे समय से अभियान चल रही नूतन ठाकुर ने 26 दिसंबर 2014 को गायत्री के खिलाफ लोकायुक्त के यहां शिकायत दाखिल की थी। 25 मई 2015 को लोकायुक्त ने साक्ष्य के अभाव में जांच बद कर दी। इसके बाद नूतन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एसआइटी जांच के लिए याचिका दाखिल की। यह याचिका कोर्ट में लंबित है। अब गायत्री को दोबारा मंत्री बनाये जाने के खिलाफ नूतन ने नई याचिका दाखिल की है।
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विभाग बंटवारे पर निगाहें
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-मंत्रियों ने मुलायम अखिलेश के घर जाकर आभार जताया
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 लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मंत्रिमंडल 'हाउस फुलÓ होने के बाद अब नये व प्रोन्नत वजीरों के विभागों पर निगाहें लग गयी हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथकार्य बंटवारे पर चर्चा कर ली है। एक-दो दिन में विभागों के बंटवारे की उम्मीद है।
आठवें विस्तार में अखिलेश यादव ने चार नये मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने और छह को प्रोन्नति देने व एक राज्यमंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने के बाद उनके विभागों के बंटवारे पर मंथन किया। सपा सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस संबंध में पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के साथ विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम के आवास पर चर्चा की और अपनी प्राथमिकताएं भी बतायीं। सूत्रों का कहना है कि  विभागों के बंटवारे पर राय बन गयी है।
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मुलायम-अखिलेश के घर पहुंचे मंत्री
शपथ लेने के बाद मंत्री सीधी विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम सिंह यादव के घर पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लिया। मुलायम ने मंत्रियों को विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का संदेश दिया और सरकार का कामकाज जनता तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा। सपा मुखिया से मिलने जाने वालों में गायत्री प्रजापति, मनोज पांडेय, शिवाकांत ओझा, हाजी रियाज अहमद, शंखलाल मांझी, रविदास मेहरोत्रा और नरेंद्र वर्मा शामिल थे। यहां से निकलकर मंत्री मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पहुंचे और उनका आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने भी चुनावी तैयारी में जुटने का संदेश दिया।
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मुख्यमंत्री ने सिफारिश मानी : मुलायम
 लखनऊ : मंत्रियों के शपथ ग्र्रहण समारोह में एक गायत्री प्रजापति को लेकर पूछे गये सवाल पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि गायत्री प्रजापति कर्मठ कार्यकर्ता हैं, पिछड़ी जाति के हैं। मैंने उनके समेत किसी को भी मंत्री नहीं बनवाया है। कुछ सिफारिशें की थी, जिसे मुख्यमंत्री ने मान लिया। कहा कि नये मंत्रियों को बधाई और उम्मीद है कि वह अच्छा काम करेंगे।
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शपथ, सेल्फी और कोहनी
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- राष्ट्रगान चलता रहा लोग सेल्फी में लगे रहे
- सपा मुखिया के लिए मुख्यमंत्री ने कुर्सी छोड़ी
- नाईक ने उठाकर दिया मुलायम को पानी का गिलास
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 लखनऊ : जाने कितने शपथ ग्रहण का मेजबान रहा राजभवन सोमवार को ऐसे पलों का गवाह बना, जिसे नजीर के रूप में याद किया जाएगा। एक, शपथ के बाद मंत्री का पार्टी मुखिया के चरणों में साष्टांग करना। दो, सेल्फी की चाहत में राष्ट्रगान का सम्मान भुलाना। तीन, सुरक्षा कर्मियों द्वारा मेहमानों को 'कोहनीÓ का शिकार बनाना।
राजभवन ने शपथ ग्रहण के लिए सोमवार 12 बजे का समय निर्धारित किया, राजभवन प्रशासन ने शपथ लेने वालों के लिए दस कुर्सियां लगाई, मगर निर्धारित समय तक सिर्फ आठ नामित लोग पहुंचे... बचे हुए दो लोगों पर कयास लगना शुरू हुआ। घड़ी की सुइयां 12.30 तक के करीब पहुंची। तब शंखलाल और रविदास मेहरोत्रा ने आरक्षित कुर्सियों पर आसन जमाया। कुछ सेकेंड बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव एक साथ राजभवन के गांधी सभागार पहुंचे और पीछे-पीछे राज्यपाल राम नाईक व मुख्यमंत्री वहां पहुंच गए। अब तक सब सामान्य था। मगर दूसरे नंबर पर शपथ लेने के बाद मंत्री गायत्री प्रजापति सीधे सपा मुखिया के पास पहुंचे और उनके पैर पकड़कर बैठने का उपक्रम किया। छायाकार उधर मुड़े। उत्सुकता में हाल में मौजूद लोग भी उस दृश्य को देखने की प्रयास करने लगे। दूसरी ओर मनोज पाण्डेय की शपथ चलती रही। मुख्यमंत्री अखिलेश चिर परिचित अंदाज में दृश्य देख मुस्कुराते रहे, आखिर हाथ उठाकर लोगों को बैठने का इशारा किया। उस समय तक मनोज की शपथ पूरी हो गई थी। शपथ का सिलसिला थमा। लोग सेल्फी लेने में इस कदर मशगूल हो गये और मुख्य सचिव ने 'राज्यपाल की आज्ञा से समारोह का सम्पन्न होने का एलान किया, जो अनसुना हो गया।Ó राज्यपाल ने टोका तो कुछ पल को स्थिरता आई। राष्ट्रगान शुरू हो गया मगर सेल्फी का सिलसिला चलता रहा। और फिर स्वल्पाहार कक्ष में घुसने व बाहर निकलने के प्रयास में कई लोगों को सुरक्षा कर्मियों की कोहनियों का शिकार होना पड़ा। हां, यहां का दृश्य सियासी प्रतिबद्धताओं से ऊपर था। कक्ष में सपा मुखिया पहुंचे तो मुख्यमंत्री ने उनके लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी और दूसरे ओर जम गये। एक मंत्री ने उनके बगल में बैठने का प्रयास किया तो उसे रोक अहमद हसन को अपने करीब बैठाया। ऐसे ही नाश्ता करने के बाद मुलायम ने पानी का गिलास उठाने का उपक्रम किया तो  राज्यपाल राम नाईक ने झट से उन्हें गिलास थमाया।

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सपा से निकाले गये लोगों की गलती नहीं : रामगोपाल
-इन लोगों को पार्टी में वापस लिया जाये
-अखिलेश में एक दिन बनेंगे प्रधानमंत्री
 इटावा : सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि उनकी नेताजी मुलायम ङ्क्षसह यादव से मांग है कि जिन लोगों को पार्टी से निकाला गया है उन्हें वापस ले लिया जाये। उन्हें उम्मीद है नेताजी बड़े दिल के हैं और इन लोगों को पार्टी में वापस ले लेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
सोमवार को जिला पंचायत अध्यक्ष के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनके भांजे एमएलसी अरङ्क्षवद यादव पर अवैध कब्जे के आरोप गलत हैं। इन आरोपों की उन्होंने ही जिलाधिकारी मैनपुरी से शिकायत होने पर जांच करायी थी, यह आरोप जिन लोगों द्वारा लगाये जा रहे हैं वे सही नहीं हैं। आनंद भदौरिया, साजन ङ्क्षसह का भी पार्टी में बड़ा योगदान है। उन्हें विश्वास है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष इनकी गलती माफ करते हुए वापसी करेंगे। पार्टी में कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं है। यह बात उन्होंने कभी नहीं कही। यह मीडिया द्वारा बनायी गयी बात है। जो व्यक्ति पार्टी के अंदर आ गया वह हमारा ही है। सपा व परिवार में कोई फूट नहीं है। सभी लोग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। अखिलेश यादव अगले 25 साल तक पार्टी का चेहरा हैं और उसी के लिए सभी लोग मिलकर काम करेंगे। रामगोपाल ने कहा कि उन्हें पद की कोई लालसा नहीं है। वह जीवन में मंत्री पद नहीं लेंगे।





Sunday 18 September 2016

समाजवादी परिवार की कलह-६

-शिवपाल की मानी होती तो पीएम होता
हाईलाइटर
मुख्यमंत्री को सराहा
मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री पर नाराजगी जाहिर करने के साथ ही उनके विकास कार्यों को सराहा भी। कहा कि दवाई, पढ़ाई, सिंचाई मुफ्त की है। वह मेरी सरकार की योजनाएं लागू कर रहे हैं। मेट्रो बना रहा है मगर सिर्फ लखनऊ मेट्रो से क्या वोट मिलेगा। अगली बार सरकार बनेगी तो लखनऊ-कानपुर और लखनऊ-फैजाबाद तक मेट्रो बनायेंगे।
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कार्यकर्ताओं और अखिलेश पर बरसे मुलायम
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अपने खून से सींचा है इस पार्टी को
 लखनऊ : समाजवादी परिवार का घमासान नियंत्रित करने का फार्मूला सुझाने के बाद भी शनिवार को युवा ब्रिगेड के आक्रामक आंदोलन से बिफरे मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी को 'खून से सींचा है, तमाशा बर्दाश्त नहीं कर सकता।Ó कहा, कि मुख्यमंत्री ने बिना पूछे शिवपाल के विभाग वापस लिये थे, यह ठीक नहीं था।
समाजवादी पार्टी के लोहिया सभागार पहुंचे मुलायम सिंह ने कहा कि वर्ष 2012 में बहुमत मिलने के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा गया तब शिवपाल यादव ने मुखर होकर कहा था कि 2014 के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए वरना लोकसभा चुनाव में कामयाबी नहीं मिलेगी। 2014 के चुनाव में हश्र क्या हुआ? सिर्फ पांच सीटें मिलीं। उनकी बात सच हो गई। शिवपाल की सुनी होती तो मैं प्रधानमंत्री होता। अगर अखिलेश को मुख्यमंत्री न बनाता तो वह कभी न बन पाते। वर्ष 2012 में तो अखिलेश की सब बात मानी थी। शिवपाल के संघर्षों को भुलाया नहीं जा सकता है। वह पुलिस से छिपकर लखनऊ के अलीगंज में रहते थे, शाम को आते थे। इस दौरान अखिलेश के पक्ष में नारेबाजी कर रहे कार्यकर्ताओं को डपटते हुए कहा कि 'वह मेरा बेटा है, तुम उसकी फोटो मुझे दिखा रहे हो, उसका दर्द और उसकी बेहतरी मुझसे ज्यादा चाहते हो।Ó चापलूसी करने आए हो, सिखा कर भेजा गया है। मुलायम यहीं नहीं रुके बल्कि बीमारी की जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री के कई दिन बाद देखने जाने पर मलाल भी जताया।
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अमर ने सीबीआइ से बचाया
एक कार्यकर्ता ने जब खड़े होकर अमर सिंह को बाहर निकालने की आवाज बुलंद की तो मुलायम सिंह ने उसे डपटते हुए कहा कि अमर के बारे में क्या जानते हो? वह उस वक्त साथ थे जब पार्टी के लोग साथ छोड़ रहे थे। कांग्रेस ने मेरे खिलाफ सीबीआइ जांच कराई तब भी अमर सिंह ने मदद की थी। अब भी मदद कर रहे हैं।
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भाजपा से टक्कर
युवा ब्रिगेड की नारेबाजी पर भड़के मुलायम ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के लोग बूथों पर जाकर चुनावी तैयारी कर रहे हैं और तुम यहां आकर तमाशा कर रहे हो। मैं गुजरात जाकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोला, संसद में उन्हें मानवता का हत्यारा कहा, वह प्रधानमंत्री बने तब भी संसद में कहा कि झूठे सपने दिखाकर लोगों को ठग लिया। फिर भी मोदी ने कहा कि 'देश में नेताजी से ज्यादा समझदार नेता नहीं है।Ó मुख्यमंत्री की ओर इशारा करते हुए कहा कि बड़े पदों पर बैठे लोगों को दिल बड़ा रखना चाहिए और धैर्य होना चाहिये। चुनाव में भाजपा से मुकाबला है, एकजुट होकर सरकार बनाने को जुटें।
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मेरे पास बड़े गुंडे
मुख्यमंत्री के पक्ष में लगातार नारे लगा रहे कार्यकर्ताओं और चारों युवा संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों को डपटते हुए मुलायम सिंह ने कहा कि यह घर का मामला है, जिसे निपटाने के लिए हम हैं। अभी सब देख रहे हैं, एक दिन में सब ठीक कर देंगे। तुम चुनाव में लगने के स्थान पर हंगामा कर रहे हो, मुझे बोलने नहीं दे रहो, निकाल बाहर कर दूंगा। कार्यकर्ता फिर भी बोलते रहे तो मुलायम ने कहा गुंडई कर रहे हो, तुमसे ज्यादा बड़े-बड़े गुंडे मेरे पास हैं।
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...सबे दोस्त तटस्थ हो गए
-मुलायम, अखिलेश के कई करीबी मंत्री, विधायक भी खामोश हुए

परवेज अहमद, लखनऊ : '...जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने!Ó ये फिल्मी लाइनें समाजवादी परिवार के सत्ता संग्राम के दोध्रुवों पर सटीक है। जिस तेजी से कालचक्र चला, उसी रफ्तार से दल के ढेरों लोग 'तटस्थÓ होते नजर आये।
भू-माफिया पर कार्रवाई न होने पर मंत्री पद से इस्तीफा देने की शिवपाल ने इटावा में चेतावनी दी तो 15 अगस्त को मुलायम ने उनका पक्ष लेते हुए लखनऊ में कहा था कि 'उसने पार्टी छोड़ी तो मुश्किल हो जाएगीÓ। यही आम धारणा भी थी, मगर 15 सितंबर की शाम जब शिवपाल यादव ने मंत्री, संगठन के ओहदों से इस्तीफा भेजा तो उपकृत विधायकों, मंत्रियों में से अधिकतर लखनऊ में होने के बाद भी तटस्थ हो गए। उनके पास चंद विधायक और मंत्री ही पहुंचे, इनमें से एक मंत्री सपा मुखिया के कहने पर गया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हाल अपेक्षाकृत बेहतर रहा। युवा एमएलसी की टोली और कुछ मंत्री उनके घर पहुंचे मगर मुख्यमंत्री के संरक्षण के चलते ही तरक्की करने वाले कई मंत्रियों ने लखनऊ छोड़कर अपने क्षेत्र का रुख कर लिया। कई और करीबी भी तटस्थ भूमिका में आ गए। अलबत्ता नौकरशाही का एक तबका मुख्यमंत्री के साथ खड़ा हो गया है लेकिन शायद सत्ता के प्रभाव में...।
सपा के एक बुजुर्ग नेता का कहना है कि अच्छा हुआ इस प्रकरण से दोनों पक्षों को कम से कम अपने पराये की पहचान तो हो जाएगी क्योंकि  अखिलेश और शिवपाल यादव एक दूसरे के प्रति भले ही शुभेच्छा प्रकट कर रहे हों मगर सब कुछ ठीक नहीं हो पाया है। मुलायम सिंह ने जैसे-तैसे विवाद बढऩे से रोकने का प्रयास किया है। अंदरखाने यह चर्चा आम है कि रार थमी नहीं बल्कि तरीका बदल गया है। यानी जिस कुर्सी की मियाद महज चार महीने है, उसके लिए आगे के पांच साल धूल में मिला देने की कसरत पार्टी के लिए दुर्भाग्य से कम नहीं। यह बात भी साफ हो गई कि सपा कुनबे में एक या दो नहीं ढेरों खेमे हैं जो अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
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 समाजवादी एक्सप्रेसवे के ठेके पर निगाहें
-कंस्ट्रक्शन कंपनियों में होड़
-दिल्ली की कंपनी को ठेका दिलाने के लिए बुना जा रहा था तानाबाना
 लखनऊ : लखनऊ को बलिया से जोडऩे के लिए 19437 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के बहुप्रतीक्षित शिलान्यास से पहले कंस्ट्रक्शन कंपनियों में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का ठेका हासिल करने के लिए जबर्दस्त होड़ है। समाजवादी सरकार में मचे घमासान की एक अहम वजह इस परियोजना का ठेका दिल्ली की एक कंपनी को दिलाने के लिए बुने गए तानेबाने को भी बताया जा रहा है।
राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को प्रदेश के पूर्वी हिस्से से जोडऩे के लिए समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बनाने का फैसला किया है। सूबे के 10 जिलों से गुजरने वाला यह एक्सप्रेसवे 348 किमी लंबा होगा। राज्य सरकार ने समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को अपने खर्च पर आठ टुकड़ों (पैकेजों) में बनाने का फैसला किया है। एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए तकरीबन चार हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। परियोजना की कुल लागत में लगभग 4000 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण पर खर्च होने की संभावना है। यानी परियोजना के निर्माण पर तकरीबन साढ़े पंद्रह हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
अखिलेश सरकार चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का शिलान्यास करना चाहती है। एक्सप्रेसवे के शिलान्यास से पहले उप्र एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का 50 प्रतिशत यानी लगभग दो हजार हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत करना चाहता है। अभी तकरीबन 15 फीसद जमीन ही अधिग्रहीत की गई है। परियोजना के लिए हुई तकनीकी बिड में 16 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखायी थी जिनमें से फाइनेंशियल बिड के लिए 10 कंपनियों को शार्टलिस्ट किया गया है। इन 10 कंपनियों में से चार वे हैं, जो कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे भी बना रही हैं, बाकी छह अन्य कंपनियां हैं। सूत्रों के मुताबिक इनमें से दिल्ली की एक कंपनी को ठेका दिलाने का ताना-बाना बुने जाने की जानकारी मुख्यमंत्री को मिलना ही मुख्य सचिव पद से दीपक सिंघल को हटाये जाने का सबब बना।
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 शिवपाल को पीडब्ल्यूडी नहीं
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-विभाग बढ़ाकर कद ऊंचा दिखाने की कोशिश
-पीडब्ल्यूडी सहित मुख्यमंत्री के पास अब 48 विभाग
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लखनऊ : समाजवादी संग्राम को नियंत्रित करने के'मुलायम फार्मूलेÓ को आंशिक बदलाव से साथ लागू करने की शुरुआत हो गयी है। शनिवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का पीडब्ल्यूडी विभाग अपने पास रखते हुए सभी विभाग वापस कर दिये। उन्हें चिकित्सा शिक्षा व लघु सिंचाई विभाग का कार्य सौंपा गया है। इसे उनका कद बढ़ा दिखाने का प्रयास माना जा रहा है। शिवपाल के पास अब 14 विभाग हो गये हैं जबकि अखिलेश ने 48 विभाग संभाल रखे हैं। विभागों के बंटवारे पर राज्यपाल राम नाईक की मुहर के बाद देर रात मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने अधिसूचना भी जारी कर दी।
समाजवादी परिवार में रविवार को शुरू हुए सत्ता संग्राम पर विराम के लिए शुक्रवार को 'मुलायम फार्मूलाÓ सामने आया था, जिसमें शिवपाल यादव का विभाग लौटाने व प्रदेश अध्यक्ष पद बनाये रखने की भी बात थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस पर अमल करते हुए शनिवार को राज्यपाल राम नाईक को शिवपाल यादव को सिंचाई, सिंचाई (यांत्रिक), बाढ़ नियंत्रण, राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुर्नवास, लोक सेवा प्रबंधन, सहकारिता, चिकित्सा शिक्षा, आयुष और लघु सिंचाई विभाग का अतिरिक्त कार्यभार सौंपने का प्रस्ताव भेजा। परती भूमि विकास, भूमि विकास एवं जल संसाधन, समाज कल्याण विभाग उनके पास पहले से थे। अब उनके विभागों की संख्या 14 हो गयी है। अलबत्ता लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) अपने पास रख लिया है। मुख्यमंत्री ने अपने विभागों में से चिकित्सा शिक्षा व लघु सिंचाई शिवपाल को देकर जहां उनका कद बड़ा दिखाने का प्रयास किया है, वहीं लोक निर्माण विभाग न देकर यह संकेत भी दिया है कि परिवार में विवाद के कारणों में कहीं न कहीं 'ठेका-पट्टाÓ की भी भूमिका थी।
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चार दिन में विभाग वापस
मुख्यमंत्री ने 13 सितंबर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जाने की नाराजगी में शिवपाल यादव से लेकर सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग अवधेश प्रसाद को सौंपा था। चार दिन में ही उनसे यह विभाग वापस हो गया है। वह अब वह होमगार्ड एवं पीआरडी संगठन के मंत्री रहेंगे। इसी तरह उसी दिन माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव को शिवपाल के पास रहा राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुनर्वास, लोक सेवा प्रबंधन तथा सहकारिता विभाग दिया गया था, जो वापस हो गया है। उनके पास अब सिर्फ माध्यमिक शिक्षा विभाग ही रहेगा। ये अलग बात है कि दोनों मंत्रियों ने शिवपाल यादव से लेकर दिये गये विभागों का कार्यभार संभाला ही नहीं था।
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ïअब शिवपाल के विभाग
सिंचाई, सिंचाई (यांत्रिक), बाढ़ नियंत्रण, राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुर्नवास, लोक सेवा प्रबंधन, सहकारिता, परती भूमि विकास, भूमि विकास एवं जल संसाधन, समाज कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, आयुष और लघु सिंचाई विभाग।
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मंत्रिमंडल विस्तार का समय मांगा
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार के आठवें विस्तार के लिए राज्यपाल से समय मांगा है। राज्यपाल को भेजे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि अमेठी के विधायक गायत्री प्रजापति को मंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए समय निर्धारित करने को कहा है। सूत्रों का कहना है कि नये मंत्री को सोमवार को शपथ दिलायी जा सकती है। इसी विस्तार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश व अवध क्षेत्र के दो मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल किये जाने की संभावना है।
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अखिलेश मंत्रिमंडल की स्थिति
मंत्रिमंडल में स्थान-       60
मंत्रियों की संख्या-        23
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)-12
राज्यमंत्री-                 22
कुल मंत्रियों की संख्या-   57
रिक्त स्थान-               03
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जब मुख्यमंत्री चाहेंगे तब होगा शपथ ग्रहण : राज्यपाल
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार के सियासी घमासान को थामने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के फार्मूले के तहत गायत्री प्रसाद प्रजापति को फिर मंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को राज्यपाल राम नाईक को पत्र लिखकर शपथ दिलाने का समय मांगा। हालांकि, राज्यपाल ने दिन व समय तय करने के बजाय मुख्यमंत्री पर ही छोड़ दिया है कि वह कब शपथ दिलवाना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने दोपहर में राज्यपाल को प्रस्ताव भेज कर गायत्री को शपथ दिलाये जाने का अनुरोध किया था। पत्र मिलने के बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से फोन पर इस संबंध में विचार-विमर्श किया। देर शाम राज्यपाल ने बताया कि शपथ ग्रहण कार्यक्रम का अभी दिन व समय तय नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री की सुविधा को देखते हुए कार्यक्रम का दिन व समय तक किया जाएगा। नाईक ने बताया कि कल रविवार को कार्यक्रम नहीं रखा जाएगा। ऐसे में साफ है कि गायत्री कब शपथ लेंगे यह अब मुख्यमंत्री अखिलेश को ही तय करना है।

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अब अपनों के खिलाफ 'हल्ला बोलÓ
-सत्ता संग्राम में जवाबी नारेबाजी ने बढ़ाई तल्खी
- मुलायम को आया गुस्सा, अखिलेश को करनी पड़ी समर्थकों से बात
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19, विक्रमादित्य मार्ग, सुबह नौ बजे : समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर भारी संख्या में युवा सपाई पहुंचे। युवा संगठन प्रभारियों द्वारा सामूहिक इस्तीफे की पेशकश।
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5, विक्रमादित्य मार्ग, सुबह 10:30 बजे: युवाओं की टोली सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के घर पहुंची। भीतर घुसने को लेकर सुरक्षाकर्मियों से झड़प। अखिलेश के समर्थन में नारे।
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7, कालिदास मार्ग, सुबह 11:30 बजे: प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के घर जुटने लगे समर्थक। अखिलेश समर्थकों के खिलाफ नारेबाजी।
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5, कालिदास मार्ग, दोपहर 12 बजे: मुख्यमंत्री आवास पर अखिलेश ने समर्थकों को बुलाया। सभी युवा फ्रंटल संगठनों के नेता पहुंचे। जवाबी नारेबाजी पर बुलाई पुलिस।
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लखनऊ: ऊपर लिखे चार दृष्टांत चार अलग-अलग समय अगल-बगल, आगे-पीछे के चार भवनों के सामने घटित हुए। बीते छह दिन से चल रहे समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में शनिवार का दिन हंगामे भरा रहा। कभी एक दूसरे के लिए 'जिंदाबादÓ के नारे लगाने वाले आज उन्हीं 'अपनोंÓ के लिए 'हल्ला बोलÓ के नारे लगा रहे थे। तल्खी इस कदर बढ़ी कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को गुस्सा आ गया और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को स्वयं आगे आकर समर्थकों को शांत कराना पड़ा।
नए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच सीधा मोर्चा खुल गया था। गुरुवार रात अखिलेश से मिलने के बाद शिवपाल ने इस्तीफा दिया तो उनके समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की थी। शुक्रवार को कई स्थानों पर शिवपाल समर्थक सड़क पर उतरे थे। शनिवार को बारी थी अखिलेश समर्थकों की। विधायकों आनंद भदौरिया, सुनील साजन, सुनील यादव सन्नी, राजेश यादव, रामवृक्ष यादव व राजपाल कश्यप आदि के साथ बड़ी संख्या में अखिलेश समर्थक पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे। आनंद ने मुलायम से अखिलेश को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने की मांग कर दी, तो युवा संगठनों के मुखिया कहां पीछे रहने वाले थे। मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, छात्र सभा के मौजूदा अध्यक्ष दिग्विजय सिंह व पूर्व अध्यक्ष अतुल प्रधान, लोहिया वाहिनी के अध्यक्ष प्रदीप तिवारी व युवजन सभा अध्यक्ष बृजेश यादव ने खुद को अपने पदों से मुक्त करने की पेशकश कर दी।
सपा कार्यालय पर कोई नहीं आया तो ये लोग बगल में मुलायम सिंह के घर पहुंच गए और वहां भीतर घुसने के लिए सुरक्षाकर्मियों से भिडऩे में भी कोताही नहीं की। हंगामा बढ़ता रहा। इससे मुलायम गुस्सा गए। उन्होंने अखिलेश से अपने समर्थकों को शांत करने को कहा। इस बीच शिवपाल समर्थक भी उनके घर के पास इकट्ठे हो गए। मुलायम के गुस्साने पर अखिलेश ने समर्थकों को अपने घर बुला लिया। अखिलेश समर्थक वहां पहुंचे तो उधर शिवपाल समर्थकों के साथ उनकी जवाबी नारेबाजी शुरू हो गई। 'जिंदाबादÓ के साथ 'हल्ला बोलÓ के नारे लग रहे थे। एक जमाने में विरोधियों के लिए मुलायम का दिया नारा 'हल्ला बोलÓ अपनों के खिलाफ ही लग रहा था।
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 अब समझे अखिलेश, खेल नहीं है राजनीति
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-दोहराया इम्तिहान हमारा तो टिकट बंटवारे का अधिकार भी मेरा
-कार्यकर्ताओं के बीच अधिकारों का संघर्ष जारी रखने का संदेश
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लखनऊ : समाजवादी परिवार के 'सत्ता संग्रामÓ के एक अहम किरदार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दर्द अब जुबां पर आने लगा है। शनिवार को उन्होंने कहा कि 'पॉलिटिक्स इज नॉट ए गेम, इट्स ए सीरियस बिजनेस।Ó (राजनीति खेल नहीं, गंभीर कारोबार है) अब इम्तिहान मेरा होगा तो टिकट बंटवारे का अधिकार भी चाहिए। इसके जरिये उन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने का संदेश दे दिया।
समाजवादी परिवार के सत्ता संग्राम पर शांति की चादर डाले जाने के कुछ घंटे बाद ही पांच कालिदास मार्ग स्थित आवास पर अखिलेश ने कहा कि जब उन्हें जिम्मेदारी मिली, समस्याएं आईं, तब पता चला कि राजनीति गंभीर विषय है। नेताजी (मुलायम सिंह) ने उन पर विश्वास किया जिसे बनाये रखने के लिए वह काम कर रहे हैं। भूल गया था कि नेताजी ने उन्हें यूथ विंग काराष्ट्रीय प्रभारी बना रखा है। अब इस जिम्मेदारी की याद आयी तो लगा नौजवानों के बीच बहुत काम करने का मौका मिलेगा। इस सत्ता संग्र्राम से सपा को नुकसान हुआ? इस सवाल पर मुख्यमंत्री बोले, जनता होशियार है। समाजवादी पार्टी नंबर एक पर है। वर्ष 2012 के चुनाव में सिर्फ वादा किया था, जनता सपा से जुड़ी और बहुमत की सरकार बना दी। इस बार जनता के सामने ढेरों काम हैं, कई शहरों में मेट्रो बन रही है।
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गायत्री, पीडब्ल्यूडी पर चुप्पी
अवैध खनन के इल्जामों से घिरे गायत्री प्रजापति को फिर मंत्री बनाने और शिवपाल यादव को पीडब्ल्यूडी महकमा वापस नहीं करने के सवाल को टालते हुए अखिलेश ने कहा कि इस पर फिर बात होगी।
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अध्यक्ष नहीं, चाचा के घर गया
अखिलेश यादव ने कहा कि नए प्रदेश अध्यक्ष को बधाई दी है, कार्यकर्ताओं को भी ऐसा करना चाहिए। जोड़ा कि वह प्रदेश अध्यक्ष के नहीं, चाचा के घर गए थे, जहां चाय भी पी। तंजिया अंदाज में कहा कि मीडिया कर्मियों ने तो खाना खाने से लेकर और ढेरों और बातें दिखा डालीं। अखिलेश शनिवार दोपहर करीब पौने दो बजे शिवपाल के सात, कालिदास मार्ग स्थित आवास पर गए और 25 मिनट वहां रहे।
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कानपुर मेट्रो का शिलान्यास चार को
मुख्यमंत्री ने कहा कई शहरों में एक साथ मेट्रो का काम चल रहा है और वह चार अक्टूबर को कानपुर मेट्रो का शिलान्यास करेंगे। लखनऊ की तरह की तेजी से उसका काम भी कराया जाएगा। एक्सप्रेस वे से क्या फायदा होगा, यह जाकर कार्यकर्ता लोगों को बताएं।
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 नौजवान षड्यंत्र समझें
समर्थन में सड़कों पर उतरी युवा ब्रिगेड को अपने पांच कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास पर बुलाकर मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकारों का संघर्ष तो चलता रहेगा मगर मैं नेताजी के फैसलों को मानूंगा। कार्यकर्ता सरकार बनाने के लिए जुटें, आंदोलन खत्म करें। किसी के खिलाफ नारेबाजी नहीं करें। कुछ युवा कार्यकर्ताओं ने पद छोडऩे की धमकी दी है, उन्हें पद छोडऩे की जरूरत नहीं। पद पर बने रहें और सरकार बनाने के लिए काम करें। बहुत लोग षड्यंत्र कर रहे हैं, उनसे सावधान रहें।

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युवाओं की लड़ाई जारी रहेगी : अखिलेश
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लखनऊ : पत्नी डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज के सैकड़ों कार्यकर्ता शनिवार देर शाम जब मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो अखिलेश यादव ने उन्हें बुलाया और कहा कि वह युवाओं की लड़ाई लड़ रहे हैं, परिवार में सब ठीक है, परेशान होने की जरूरत नहीं है। वर्ष 2017 में फिर सरकार बनाने के लिए जुटना होगा। कन्नौज से आने वालों जिलाध्यक्ष नवाब सिंह, यूथ ब्रिगेड की मोना यादव, संजय दुबे, संजू कटियार, गणेश द्विवेदी, अमित मिश्र राजकला, योगेन्द्र यादव समेत तकरीबन दो सौ लोग थे। इससे पहले मुख्यमंत्री ने सुबह से शाम तक कई चक्रों में युवा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव की तैयारी में लगें, किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं किया जाए। नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ चुनाव जीतने में ताकत झोंके।

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न्यूज प्वाइंट
-दिलीप अवस्थी
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बड़े नेता बड़े-बड़े पद छोड़कर यूं ही नहीं पार्टी के छोटे से कार्यकर्ता बनने की बात करने लगते हैं। पिछले एक हफ्ते में परिवारवाद का गहराता साया सरकार की और विशेषकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि को एक ही सांस में लील गया।
लीपापोती होनी ही थी सो सपा प्रमुख मुलायम सिंह के बीच में पड़ते ही हो भी गई। वक्ती समझौता भी सामने आ गया है जिसके अनुसार अखिलेश से लेकर शिवपाल को दिया गया पद चाचा के पास ही रहेगा। उनके चार विभाग तो वापस हुए लेकिन, पीडब्ल्यूडी नहीं मिला। उनके खास गायत्री प्रजापति फिर से मंत्री बनाए जाएंगे। एक संवाददाता सम्मेलन में आमतौर पर हंसमुख अखिलेश यादव तल्ख दिखे - 'नेता जी (मुलायम) जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा। चाचा के सारे विभाग वापस हो गए हैं लेकिन, मेरा क्या? मेरा भी तो अध्यक्ष पद गया है।Ó फिर शनिवार को जिस तरह अखिलेश की यूथ सेना समर्थकों ने सुबह से आक्रामक रुख अपनाया हुआ था, उससे साफ जाहिर है कि परिवार की अंदरूनी लड़ाई अब सड़क पर आ चुकी है। अखिलेश समर्थक नारेबाजी करते, शोर मचाते मुलायम के घर के सामने जब प्रदर्शन करने लगे तो मुलायम को मजबूरन अखिलेश को फोन पर कहना पड़ा 'इनको यहां से तुरंत हटाओ।Ó उधर शिवपाल के घर पर भी उनके समर्थकों की भीड़ सड़क पर खड़ी गुस्से से मुख्यमंत्री आवास की ओर घूर रही थी। जब मुलायम के यहां से अखिलेश समर्थक मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो लगा कि कहीं दोनों नेताओं के समर्थकों में टकराव न हो जाए।
शिवपाल भी दो दिन से पूरे तेवर में थे। घर से बाहर निकलते वक्त उन्होंने खास ध्यान रखा कि गायत्री प्रजापति उनके बगल में हों और अखबार के फोटोकर्मियों को अच्छी तस्वीरें बनाने का मौका मिल सके। पहले उन्होंने मुलायम सिंह से मुलाकात की और फिर दरबार में अखिलेश की हाजिरी हुई। शुक्रवार को अखिलेश के टीवी कार्यक्रम के बाद उसी मंच पर शिवपाल भी पहुंचे और मन की पूरी भड़ास भी निकाली।
बुधवार को अखिलेश जिसे परिवार का नहीं सरकार का झगड़ा बता रहे थे वह समझौता होते-होते दरअसल कुर्सी का झगड़ा निकला और वह भी 2017 में अगर कुर्सी मिली तो किसकी होगी? स्वयं अखिलेश ने टीवी कार्यक्रम में स्वीकार करते हुए कहा, 'यह परिवार का नहीं, असल में कुर्सी का झगड़ा है।Ó इसी मंच पर जब शिवपाल से पूछा गया झगड़ा है? तो उनका कहना था, 'हमने भी कई मुख्यमंत्री देखे हैं लेकिन कुछ लोग कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं। उनमें अहम आ जाता है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि यह जनता की कुर्सी है, इस पर बैठकर न्याय करना चाहिए।Ó
कुल मिलाकर सियासी शोले ऊपर से तो बुझे दिखते हैं लेकिन फिर हवाएं चलीं तो दहकते नजर आएंगे। इस एक हफ्ते के दौरान अखिलेश ने अगले चुनाव की दौड़ में सपा को जो बढ़त दी थी वह काफी हद तक बराबर सी हुई दिखती है। जब बाकी सारी पार्टियों की कमजोरियां सपा के खाते को मजबूत कर रही थीं, वहीं अब मुलायम की पारिवारिक कलह ने उनकी पार्टी को भी बाकी तीनों पार्टियों के लगभग समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपने बड़े नेताओं की भगदड़ से त्रस्त नजर आ रही, वहीं प्रदेश भाजपा नेतृत्वहीन व दिशाहीन दिख रही थी। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को प्रदेश का चेहरा बनाकर 2017 के चुनाव को दर्शक दीर्घा से ही देखने का फैसला ले लिया था। ऐसे में एकमात्र युवा नेता होने के कारण और प्रदेश की तस्वीर बदलने का सपना बुन रहे अखिलेश को उनके विरोधियों का भी समर्थन उनकी छवि के कारण मिल जाया करता था लेकिन, इस बार घर के बर्तन सिर्फ जोर से बजे ही नहीं, सबके सामने सड़क पर फेंके भी गए। इससे अखिलेश के नेतृत्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। ऐसे में जब प्रदेश का 51 प्रतिशत वोटर युवा है (18 से 35 वर्ष), अखिलेश का स्पष्ट नेतृत्व सपा को लाभ पहुंचा सकता था। उम्र की इस दहलीज पर मुलायम सिंह ने किसी तरह परिवार बांधे रखने को वरीयता दी है।
शनिवार को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम ने शिवपाल की प्रशंसा के पुल बांध दिए और कहा कि 'शिवपाल की कुर्बानियों को भूलना नहीं चाहिएÓ। शिवपाल सिंह ने देर शाम पार्टी महासचिव अरविंद सिंह 'गोपÓ और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी पर अब उनका ही अधिकार रहेगा। इस सारे घटनाक्रम के चलते अब अब जल्द ही पूछा जाने लगेगा कि सपा से अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?

समाजवादी कुनबे की कलह-५


सपा कलह ब्यूरो : कामन इंट्रो
समाजवादी परिवार के प्रमुख सदस्यों की मौजूदगी में रविवार को दिल्ली की एक दावत से निकली 'बातÓ से समाजवादी पार्टी में शुरू हुए बतंगड़ ने गुरुवार रात तक जिस घमासान का रूप लिया, उस पर शुक्रवार को परिवार व पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपना फार्मूला देकर नियंत्रण पा लिया। इसके बावजूद, दिनभर अलग-अलग समय पर अखिलेश यादव व शिवपाल यादव ने अहम, अधिकारों व जज्बातों का जो गुबार उड़ेला उससे यह नियंत्रण सिर्फ ब्रेकर भर प्रतीत होता है। भविष्य में फिर बात बिगडऩे की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

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सपा कलह 4- ब्यूरो : हारे तो मुलायम, जीते तो मुलायम
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-टिकट बंटवारे की अग्नि परीक्षा से भी मुलायम को गुजरना होगा
-रविवार को हाई प्रोफाइल पार्टी से शुरू सियासी घमासान, फैसलों में बदलाव से थमा
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परवेज अहमद, लखनऊ : कहने को समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने फिर घर के चारों खाने दुरुस्त कर लिए मगर सियासी चेतना से परखें तो यह उनकी शिकस्त ही है। हार सिर्फ एक मोर्चे पर नहीं बल्कि कई कोण से हुई है।
बात की शुरुआत रविवार को दिल्ली में अमर सिंह की हाईप्रोफाइल पार्टी से। इस पार्टी में 'निकली एक बातÓ इतनी मारक रही कि सोमवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रजापति व उनके साथ पंचायतीराज मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया। यह भनक लगते ही गायत्री ने मुलायम सिंह के दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाई और तत्कालीन मुख्य सचिव दीपक सिंघल की कुछ टिप्पणियों को उजागर किया। टिप्पणियां परिवार पर थी, यह पता चलते ही अखिलेश ने मंगलवार को दीपक सिंघल को मुख्य सचिव  पद से कार्यमुक्त कर दिया। दीपक पर कार्रवाई की भनक लगते ही 'बाहरी व्यक्तिÓ ने मुलायम से दिल्ली में ही भेंट की और उनकी बातचीत में समाजवादी पार्टी की खराब राजनीतिक स्थिति और युवा ब्रिगेड की कारगुजारियां निशाने पर आये। संगठन कमजोर होने की बात कही गई। तर्क दिया गया कि मुख्यमंत्री संगठन को समय नहीं दे पा रहे हैं। संगठन की कार्यशैली से नाराज सपा मुखिया ने अखिलेश यादव को विश्वास में लिए गये बगैर प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को कुर्सी सौंप दी। जिससे खफा मुख्यमंत्री ने शिवपाल के नौ में से सात विभाग लेकर एक्शन का रि-एक्शन किया। मुख्यमंत्री ने पीडब्लूडी अपने पास रख कर बाकी विभाग उन मंत्रियों को सौंप दिये जो शिवपाल के करीबी कहे जाते थे। इससे नाराज शिवपाल ने इटावा में रहते हुए मंत्री पद व प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का संकेत दिया।
इस हाई प्रोफाइल घटनाक्रम को सामान्य करने के प्रयास भी शुरू हुए मगर गुरुवार को पार्टी के महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव ने पूरे घटनाक्रम का ठीकरा मुलायम सिंह यादव पर फोड़ते हुए कह दिया कि मंत्रियों को हटाने का फैसला उनकी मर्जी से हुआ। मुख्यमंत्री को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का आदेश दबाव डालकर जारी कराया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश ने अपना दर्द जाहिर करते हुए कह ही चुके थे कि बाहरी व्यक्ति परिवार में कलह करा रहा है।
तल्खी भरे बयान के बाद प्रो,रामगोपाल सैफई रवाना हो गए जबकि मुलायम और शिवपाल दोनों लखनऊ में मौजूद थे। प्रो.रामगोपाल के बयान के कुछ घंटे बाद शाम को ही शिवपाल यादव ने लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर मुलायम और फिर पांच कालिदास मार्ग स्थित आवास पर जाकर अखिलेश से मुलाकात की। फिर हालात पर नियंत्रण के दावे किए गए मगर रात होते-होते अचानक शिवपाल ने मंत्री पद और संगठन के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया तो सियासी भूचाल आ गया। शिवपाल समर्थकों का जमावड़ा लग गया। नारेबाजी हुई मगर रात में मुख्यमंत्री ने मंत्री पद से इस्तीफा अस्वीकार कर डैमेज कंट्रोल शुरू किया। शुक्रवार सुबह मुलायम सिंह ने शिवपाल को विक्रमादित्य मार्ग स्थित अपने आवास पर बुलाया और प्रदेश अध्यक्ष पद का इस्तीफा भी अस्वीकार कर दिया। कुछ ही देर बाद मुलायम ने अखिलेश को बुलाया और 20 मिनट के अंदर पांच दिनों से चल रहे संग्र्राम के उपसंहार का फार्मूला तैयार हो गया। कहने को पूरा मामला शिवपाल, अखिलेश के इर्दगिर्द मगर असली कड़ी गायत्री साबित हुए। इस पूरे घटनाक्रम से पहले सपा को फिर से स्थिर कर दिया हो मगर यह तय है कि इसमें हार मुलायम की ही हुई है। क्योंकि इस प्रकरण से भविष्य का वो बीज बो दिया गया जिसकी फसल चुनाव में और उसके बाद भी देखने को मिलेगी। यह सबसे बड़ा दर्द मुलायम को ही देगी जिन्होंने अक्टूबर 1992 में पार्टी के गठन के बाद कभी  'घर की ऐसी रार और हारÓ नहीं देखी है। कहना अतिशयोक्ति न होगी कि अभी सपा मुखिया को एक बार अग्निपरीक्षा से और गुजरना बाकी है। वह मौका होगा टिकट का बंटवारा। शिवपाल-अखिलेश और रामगोपाल अपने करीबियों को Óयादा से Óयादा टिकट दिलाने की होड़ में दिखेंगे जिससे चुनाव बाद पार्टी में असल असर दिख सके।

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सपा कलह & - ब्यूरो : घरेलू अखाड़े में बेबस मुलायम
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सियासी दंगल में विरोधियों पर चरखा दांव आजमाने के माहिर मुलायम सिंह यादव घरेलू अखाड़े में बेबस दिखे। सत्ता पाने के लिए परिवार में जारी घमासान उनका सिरदर्द बना है। पांच दिनों से चल रहे सत्ता संघर्ष से समाजवादी साख को भी बट्टा लगा। वर्ष 2017 में फिर सरकार बनाने की कोशिश में जुटी समाजवादी पार्टी सन्नाटे में है। देखना यह है कि मुलायम घर में उठे तूफान के बाद कैसे डैमेज कंट्रोल कर पाते हैं।
मुलायम 1967 में पहली बार डा. लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर विधायक चुने गए परंतु डा.लोहिया के निधन के बाद 1968 में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह को 1977 तक इंतजार करना पड़ा।
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अजित पर भारी पड़े मुलायम
भारतीय लोकदल में रहते हुए मुलायम सिंह को अपना सियासी वजूद बचाने के लिए चौ. चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह से भी टकराव लेना पड़ा था। वर्ष 1987 में मुलायम ने अजित से अलग होकर लोकदल (ब) बनाया और लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने खुद को केवल प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय सियासत में भी साबित किया।
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अयोध्या गोलीकांड
रामजन्म भूमि मंदिर आंदोलन के दौरान वर्ष 1990 का अयोध्या गोलीकांड भी मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा। पुलिस की गोलियों से 16 कारसेवकों की मौत हो जाने से मुलायम के करियर पर सवाल उठने लगे थे परंतु वर्ष 199& में बसपा के साथ गठजोड़ कर उन्होंने शानदार राजनीतिक वापसी की। यह अलग बात है कि सपा व बसपा गठजोड़ अधिक दिन तक नहीं चल पाया।
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रामपुर तिराहा कांड
मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन में उत्तराखंड आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 का वीभत्स कांड भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस की गोलियों से आधा दर्जन लोग मारे गए थे और महिलाओं से दुष्कर्म के मुद्दे पर मुलायम चौतरफा घिरे थे। रामपुर तिराहा कांड के बाद अलग उत्तराखंड गठन की राह आसान हो गयी थी। मुलायम की राजनीतिक नाव डगमगायी जरूर परंतु जल्द ही मुख्यधारा में आ गयी।
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गेस्ट हाउस कांड
दो जून 1995 की घटना भी मुलायम सिंह यादव के सियासी जीवन की विकट घड़ी रही। वर्ष 199& में जब सपा-बसपा सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ था तब 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गया जय श्रीरामÓ नारे लगे थे। प्रदेश में दलित, पिछड़ा व मुस्लिम गठबंधन की शुरुआत हुई थी। पूरे देश में इस गठबंधन को बड़ी आशा से देखा जा रहा था परंतु दो जून 1995 को मीरा बाई गेस्ट हाउस में घटित घटना ने मुलायम सिंह को एक बार फिर हाशिए पर ला दिया। इसे मुलायम सिंह यादव का जुझारूपन ही कहा जाए जो उन्होंने अगस्त 200& में फिर से मुख्यमंत्री पद हासिल करने में कामयाबी हासिल की।

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राब्यू, लखनऊ : दिन में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा दिये गए फार्मूले की घोषणा पर शाम होते-होते मुख्यमंत्री की मुहर भी लग गयी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने शुक्रवार शाम ट्वीट कर गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल किये जाने और शिवपाल सिंह यादव को विभाग वापस किये जाने की जानकारी दी।

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लीड-सपा कलह पैकेज-मुलायम फार्मूले से टला संकट
परिवार की कलह
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मुलायम बोलेे, मेरे रहने तक पार्टी टूटेगी नहीं
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एकता फार्मूला
-शिवपाल यादव सपा के प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। लोक निर्माण समेत सभी विभाग उन्हें वापस होंगे
-बाहरी व्यक्ति को समाजवादी परिवार से बाहर रखा जाएगा
-अखिलेश समाजवादी पार्टी राज्य संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष होंगे
-सरकार व संगठन में गतिरोध की जानकारी मुलायम को दी जाएगी
-प्रदेश अध्यक्ष सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे
-मुख्यमंत्री भी सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे
-बर्खास्त मंत्री गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्री बनाया जाएगा
-सरकार में ब्राह्मïणों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा
-जियाउद्दीन को मंत्री पद की शपथ दिलायी जाएगी
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार में चल रहे सत्ता संग्राम के पांचवें दिन मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कमान संभाली। म्यान से तलवारें खींचे खड़े योद्धाओं को 'थोड़ा तुम झुको और थोड़ा तुम भीÓ का मंत्र देकर सियासी ड्रामे का उपसंहार किया और शिवपाल यादव के पुराने विभाग उन्हें लौटाने, गायत्री प्रजापति को फिर मंत्री बनाने और अखिलेश यादव को राज्य संसदीय बोर्ड की कमान सौंपने के फार्मूले पर सहमति बनवायी।
मुलायम ने युद्ध विराम का फार्मूला तय करने से पहले शिवपाल यादव को विक्रमादित्य मार्ग बुलाकर उनका इस्तीफा लौटाया और करीब 20 मिनट तक उनसे बातचीत की। शिवपाल ने परिवार के एक सदस्य का नाम लेकर कहा कि वह न सिर्फ भूमाफिया, दलालों को संरक्षण दे रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश को उनके खिलाफ भड़काते भी रहते हैं। उनके लौटने के बाद मुख्यमंत्री सपा मुखिया के पास पहुंचे। मुख्यमंत्री ने मुलायम से कहा कि उनके आदेश सिर माथे मगर उनके सम्मान का क्या होगा? इस पर बीच वाले (अमर सिंह की ओर इशारा) को हटाने और अखिलेश को राज्य संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी। दोनों से चर्चा के बाद मुलायम कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे। कहा कि उनके रहते पार्टी में टूट नहीं हो सकती। पार्टी और परिवार में कलह नहीं है। कहा कि शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे, उनके विभाग भी वापस होंगे। कार्यकर्ताओं में चिंता है मगर अखिलेश, शिवपाल और रामगोपाल में कोई झगड़ा नहीं है। पार्टी के दूसरे नेताओं में भी मतभेद नहीं हैं।Ó सपा सुप्रीमो बोले, 'अखिलेश आए थे। मिलकर गए हैं। चुनाव में कैसे काम करना है, यह बता दिया है। हम अपने क्षेत्र से चुनाव प्रचार शुरू कर रहे हैं। आप लोगों ने पांच साल बहुत मेहनत की है। सरकार बहुत अ'छी चली है।Ó मुलायम ने कहा, 'वे कौन-सी शक्तियां हैं जो नहीं चाहतीं कि समाजवादी पार्टी की सरकार बने, उनसे सतर्क रहना। बहुत बड़ा परिवार है, समाजवादी परिवार है। हमारे परिवार में थोड़ा-बहुत तो होता रहता है। सबसे यही कहा है कि शंका-समाधान कर लेना।Ó मुलायम ने कहा, 'गायत्री प्रजापति की बर्खास्तगी रद की जाएगी। वह फिर मंत्री बनेंगे।Ó
अपने पीएम बनने के बारे में मुलायम ने कहा, हम 11 बार विधायक बने। नेता प्रतिपक्ष रहे, रक्षा मंत्री बने। प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। आज लालूजी से फोन पर बात की। लालूजी सिर्फ रिश्तेदार नहीं, नेता हैं। हैसियत वाले नेता हैं। उन्हें भी चिंता थी। वह हमने दूर कर दी। हमने कहा कि हमारी बात कोई नहीं टालेगा। यह घोषणा कर सपा मुखिया फिर विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पहुंचे, जहां अखिलेश, शिवपाल के साथ फिर तकरीबन आधे घंटे तक चर्चा की और समाधान फार्मूले को अंतिम रूप दिया। सूत्रों का कहना है कि दो दिन में फार्मूले पर अमल होना शुरू हो जाएगा।

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 सिंघल के नये दायित्व पर भी उठे सवाल
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-राज्य सतर्कता आयोग के अध्यक्ष पद पर पहले बिठाए जाते थे अति प्रतिष्ठित अफसर
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लखनऊ : समाजवादी कुनबे की कलह के बीच मुख्य सचिव की कुर्सी से हटाए गये दीपक सिंघल के नये दायित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं। सिंघल को राज्य सतर्कता आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। यह पद भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसने के लिए बेहद अहम माना जाता है।
 एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कहना है कि पहले अति प्रतिष्ठित अफसरों को इस पद पर तैनाती दी जाती थी। विवादों में घिरे सिंघल को यह पद सौंपे जाने पर सरकार के फैसले पर भी टिप्पणी हो रही है। सतर्कता अधिष्ठान अधिनियम 1965 के तहत राज्य सतर्कता आयोग ही विजिलेंस की रिपोर्ट पर तय करता है कि किसके खिलाफ कार्रवाई की जाए और किसके खिलाफ नहीं। एक अफसर ने कहा कि यह पद बेजा दबाव बनाने वालों के लिए उपयुक्त नहीं है। यह अलग बात है कि सरकार कई बार आयोग की संस्तुतियों की भी अनदेखी कर देती है। इसलिए बहुत से लोगों को राहत है। भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों के नेताओं का कहना है कि सरकार खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है तो भ्रष्ट अफसरों को ऐसे पदों पर तैनात नहीं करेगी तो किसे करेगी।
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 रार के पीछे 12 हजार करोड़ का ठेका!
 लखनऊ : 'बाहरी व्यक्तिÓ ने एक कंपनी को प्रदेश सरकार से 12 हजार करोड़ का ठेका दिलाने के लिए एक बड़े अधिकारी से गठजोड़ कर लिया था जिसकी भनक लगने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव पद से दीपक सिंघल को हटाया? इसके बाद समाजवादी परिवार व सरकार में शुरू हुए रार के पीछे कुछ इसी तरह की ही चर्चा है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने जिस व्यक्ति को परिवार के बाहर का बताया है वह सियासी मामलों में ही नहीं, ठेका-पट्टा हासिल करने के मामलों में भी उन पर दबाव बना रहा था। उसने एक बड़े नौकरशाह को अपने पाले में कर दिल्ली की एक कंपनी को समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे परियोजना के 12 हजार करोड़ रुपये के निर्माण कार्य का ठेका दिलाने की रणनीति बना ली थी जबकि अखिलेश यादव उस कंपनी का एकाधिकार कतई नहीं होने देना चाहते थे। मुख्यमंत्री रिकार्ड समय में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस बनाने वाली कंपनियों को भी इस प्रोजेक्ट से जोड़े रखना चाहते थे लेकिन बाहरी व्यक्ति पूरा कार्य उसी कंपनी को दिलाना चाहता था इसके लिए उसने समाजवादी परिवार के सदस्यों के माध्यम से भी दबाव बनाना शुरू कर दिया था। इससे जुड़ी बातचीत का एक ऑडियो टेप मुख्यमंत्री तक भेजा गया। इसके अलावा नोएडा और गाजियाबाद के कुछ प्रोजेक्ट का लाभ भी खास कंपनियों को दिलाने की भूमिका तैयार हो गयी थी, जिसकी भनक लगने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भड़क गये और मुख्य सचिव पद से न सिर्फ दीपक सिंघल की विदाई हो गई बल्कि मुख्यमंत्री ने परिवार में इस बाहरी का दखल रोकने की ठान ली।
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 सिर्फ गायत्री की बहाली पर उठे सवाल
-सोशल मीडिया से सपा कार्यकर्ताओं तक चर्चाओं का बाजार गर्म
लखनऊ : पांच दिन पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से राजभवन को भेजे जिस एक पत्र ने समाजवादी परिवार में संकट की नींव डाली थी, शुक्रवार को समाधान का रास्ता भी उसी पत्र के इर्द-गिर्द कई सवाल लिये घूमता रहा। दरअसल, सोमवार को मुख्यमंत्री ने खनन मंत्री गायत्री प्रजापति व पंचायतीराज मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त किया था। शुक्रवार को सिर्फ गायत्री की बहाली होने पर खूब सवाल उठे।
शुक्रवार दोपहर को जैसे ही सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने गायत्री प्रजापति की बहाली का एलान किया, कार्यकर्ताओं में खुसफुसाहट शरू हो गयी थी। शाम होते-होते यह खुसफुसाहट सोशल मीडिया, वाट्सएप आदि तक भी पहुंच गयी। लोगों का कहना था कि गायत्री के खिलाफ खनन माफिया को संरक्षण देने के साथ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने से लेकर कई गुना संपत्ति बढऩे तक के आरोप हैं। राजकिशोर के खिलाफ भी ऐसे ही आरोप हैं। ऐसे में सिर्फ एक की वापसी सवाल खड़े करती है। कहा गया कि गायत्री हटाए जाने के तत्काल बाद न सिर्फ मुलायम सिंह, राम गोपाल व शिवपाल, सभी की शरण में गए, बल्कि शुक्रवार सुबह से ही शिवपाल के साथ नजर आने लगे थे। इसके विपरीत राजकिशोर इस दौरान दिखाई नहीं दिये। ----

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 नारेबाजी में कलह और जुड़ाव के नजारे
-सपाइयों ने पहली बार प्रो.राम गोपाल विरोधी नारे लगाए
लखनऊ : शुक्रवार को भी कालीदास मार्ग और विक्रमादित्य मार्ग पर समाजवादी कलहके नजारे, नारेबाजी में भी नजर आया। शिवपाल समर्थकों द्वारा पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव के खिलाफ नारेबाजी भीतरी असंतोष को दर्शा रही थी। शिवपाल के फोटो वाली टी शर्ट पहने युवाओं की टोली अधिक सक्रिय थी। हालांकि अखिलेश यादव को बड़ा दिलवाला बताने वाले नारे भी दिन भर लगते रहे।
गुरुवार रात्रि में शिवपाल समर्थक जो तेवर बनाए थे वहीं शुक्रवार को सुबह भी दिखे। समर्थकों को शांत करने के लिए शिवपाल सुबह अपने आवास सात कालीदास बाहर आए तो जिंदाबाद के नारों की गूंज मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच रही थी। शिवपाल ने बाहर निकलकर समर्थकों को शांत कराते हुए पार्टी दफ्तर पहुंचकर नेताजी के सामने अपनी बात रखने को कहा। इस दौरान कुछ लोगों ने शिवपाल की तस्वीरें वाली टी-शर्ट बांटनी शुरू कर दी। जिसे हासिल करने के लिए सपाइयों में जोर आजमाइश शुरू हो गयी। कुछ देर बाद ही सैकड़ों युवक शिवपाल की तस्वीरों वाली टी-शर्ट में नजर आने लगे।
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रामगोपाल विरोधी नारे
समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक कहे जाने वाले प्रो.राम गोपाल यादव के खिलाफ कार्यकर्ताओं ने खुलकर नारे लगाए। उनको सपा से बाहर करने की मांग उठाई। कार्यकर्ताओं ने कहा कि प्रोफेसर ने बिहार का गठबंधन तुड़वाकर मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय नेता बनने से रोक दिया। उन पर भाजपा से मिला होने के इल्जाम भी लगाये गये।
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अखिलेश बड़ा दिलवाला
शिवपाल यादव के विभाग वापसी, प्रदेश अध्यक्ष बना रहने और गायत्री को मंत्री बनाये जाने पर सपाइयों ने मुख्यमंत्री को बड़ा दिल वाला बताते हुए नारे लगाये गये। यह सिलसिला दोपहर साढ़े बारह बजे से शुरू होकर शाम को चार बजे तक चला।
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रिमझिम में बढ़ती तकरार
अपराह्न करीब तीन बजे पार्टी दफ्तर के बाहर कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा थी। अधिकतर कार्यकर्ता इटावा, बदायंू व मैनपुरी जिलों से आए थे। बूंदाबांदी में भीग रहे रामनिवास का कहना था कि झगड़े की जड़ बाहर नहीं घर के भीतर है। उनका इशारा पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव की ओर था। रामनिवास के तर्क पर सुरेशपाल सिंह ने सहमति जतायी तो फीरोजाबाद के सतेंद्र सिंह ने एतराज जताया। तकरार बढऩे लगी तो आसपास खड़े सपाइयों ने माहौल खराब नहीं करने की हिदायत देते हुए कहा नेताजी सब ठीक कर देंगे।
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मुझे लालसा नहीं, अखिलेश फिर बनें सीएम
 कई अहम बातें अलग-अलग सबहेड से दी गई हैं। खबर के डिस्प्ले में इन्हें हाईलाइट किया जा सकता है।
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- नरम पड़े शिवपाल ने कहा, कुछ मसलों का रास्ता नेताजी ने निकाल लिया
-दलालों के खिलाफ बड़ों के आड़े आने की तकलीफ
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लखनऊ : सरकार व संगठन के ओहदों से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी को संकट में डालने वाले शिवपाल यादव के तेवर शुक्रवार को नरम दिखे। कहा कि जमीन कब्जाने व दलालों के खिलाफ कार्रवाई में बड़ों के आड़े आने की तकलीफ है। उनके मन में मुख्यमंत्री पद की लालसा नहीं है और चाहते हैं कि अखिलेश फिर सीएम बनें।
पांच दिनों से सपा में चल रहे घमासान के बीच एक कार्यक्रम में पहुंचे शिवपाल ने कहा कि परिवार में झगड़ा नहीं है। जो कुछ बातें हैं, नेताजी (मुूलायम सिंह) ने उनका रास्ता निकाल लिया है। 2017 में हम प्रचंड बहुमत की सरकार बनाएंगे। नेताजी का फैसला मेरे लिए सब कुछ है। वर्ष 2011 में वह जब कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रहे थे, तभी नेताजी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश को जिम्मेदारी सौंप दी थी, तब भी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की।
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कुछ बातों पर पर्दा रहेगा
कहा कि कुछ बातें हैं, जिन्हें नहीं कहेंगे। टेलीफोन पर कुछ बातें होती है, इससे कई बार गलतफहमी होती है मगर चीजों को समझने की जरूरत है। बेटे, भाई से मतभेद होते हैं, मगर जब परिवार का मुखिया बीच में पड़ जाता है तो सब ठीक हो जाता है।
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नुकसान नहीं कर सकते अमर
शिवपाल यादव ने एक बार फिर अमर सिंह का बचाव करते हुए कहा कि वह समाजवादी पार्टी व हमारे परिवार का कभी नुकसान नहीं कर सकते हैं। अखिलेश के इर्द-गिर्द भी ढेरों ऐसे लोग हैं जो यह सब कार्य करते हैं। वे यहां भी मौजूद होंगे और वाट्सएप पर मैसेज कर रहे होंगे, मगर इसमें बुद्धि लगाने की जरूरत होती है।
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अखिलेश बेटा है, कंप्टीशन नहीं
शिवपाल ने कहा कि अखिलेश चार साल की उम्र से उनके साथ रहे। मैंने और मेरी पत्नी ने उन्हें पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। बेटा सूबे की सबसे ऊंची कुर्सी पर है तो कोई कंप्टीशन नहीं है। नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का सम्मान वापस कराने के लिए बसपा सरकार में संघर्ष किया। 2012 में सरकार बनी तो चाहता था कि नेताजी मुख्यमंत्री बने और लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया जाए। उस समय नेताजी ने फैसला किया तो फिर स्वीकार किया। वह समाजवादी परिवार के मुखिया हैं, उनका कहा मेरे लिए सब कुछ है।
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अखिलेश को अनुभव की जरूरत
शिवपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री को अभी अनुभव की जरूरत है। मैं खुद जब छोटा था तो नेताजी की नकल करता था। छुपकर उनकी धोती पहनकर घूमता था। सब कुछ उनसे ही सीखा है। उनका काम भी संभाला है। अखिलेश को उनके साथ मुझसे भी सीखना चाहिए।
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अखिलेश फिर मुख्यमंत्री बनें
कहा कि जब मुलायम के साथ आया तो छोटी-मोटी नौकरी की इ'छा थी, वह मिल गई थी, मगर छोड़ दिया। नेताजी का काम संभाला, तब भी महत्वाकांक्षा नहीं थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बना। कोआपरेटिव का अध्यक्ष रहा। चार बार एमएलए चुना गया। मंत्री रह लिया। मुख्यमंत्री बनने की चाहत नहीं। प्रदेश अध्यक्ष का पद तो मेहनत का है। संघर्ष करना पड़ेगा। घोषणा की कि 2017 में बहुमत मिलने पर अखिलेश को फिर मुख्यमंत्री बनाऊंगा। स्वयं उनके नाम का प्रस्ताव भी करूंगा।
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कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं
मैने बहुत से मुख्यमंत्री देखे हैं। कुछ लोग कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं। याद रखना चाहिए कि यह जनता की दी हुई कुर्सी है। जिसे पार्टी नेतृत्व सौंपता है। इस पर बैठकर घूमना नहीं, न्याय करना आना चाहिये। इसके लिए अनुभव की भी जरूरत होती है।
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टिकट तो मुलायम बांटेंगे
विधानसभा चुनाव को खुद का इम्तिहान बताते हुए मुख्यमंत्री खुद टिकट बांटना चाहते हैं, इस सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि चुनाव कैसे लड़ा जाएगा, यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष (मुलायम सिंह) तय करेंगे और टिकट भी वही बांटेंगे, अखिलेश जिसे टिकट के लिए कहेंगे क्या कोई मना कर देगा? अपराधी छवि के लोगों को टिकट नहीं मिलेगा। तो फिर मुख्तार की पार्टी का विलय क्यों किया? शिवपाल ने कहा कि वह नेताजी की मर्जी के बगैर कुछ नहीं करता है। विलय का फैसला भी उनका था और रद करने का भी फैसला उनका था। अब फिर अफजाल अंसारी और उनके भाई को लेने का फैसला नेताजी ने लिया है।
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 झगड़े की वजह मेरी कुर्सी ः अखिलेश

-मांगने वाला अ'छा हो, तो मुख्यमंत्री पद भी दे दूंगा
-सब ले लो, बस टिकट मुझे बांटने दो
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार में मचे सियासी घमासान के बीच शुक्रवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ कहा, 'झगड़ा मेरी नहीं, मेरी कुर्सी की वजह से हैÓ। राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा कि 'मुझसे सब ले लो, बस टिकट मुझे बांटने दो क्योंकि चुनाव में परीक्षा उनकी भी होगी।Ó वह यहां तक कह गए कि 'मांगने वाला अ'छा हो, तो मुख्यमंत्री पद भी दे दूंगाÓ।
पांच दिनों में पहली दफा जनता से सीधा संवाद कर रहे मुख्यमंत्री ने दिल की बातें कीं। उन्होंने कहा, परिवार में कोई झगड़ा नहीं है। वह बोले, मेरी वजह से तो बिल्कुल झगड़ा नहीं है, जो है वह मेरी कुर्सी की वजह से है। मैंने जो फैसले लिये, वे साहसिक थे। यह जनता भी जानती है। इसके बावजूद मैं नेताजी को खुश रखने के लिए कुछ भी करूंगा। गायत्री प्रजापति को पुन: मंत्री बनाने के सवाल पर उन्होंने सकारात्मक संकेत दिये और कहा कि नेताजी के फैसले पर अमल होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि सब कुछ ले लो। जो चाहे विभाग ले लो, प्रदेश अध्यक्षी ले लो, किंतु टिकट मुझे बांटने दो। पांच साल बाद चुनाव में जनता के बीच जाने पर परीक्षा तो मेरी होगी, इसलिए बस इतना कहूंगा कि टिकट वितरण में मेरा कहना माना जाए। मुख्यमंत्री द्वारा 'सब कुछ ले लोÓ कहे जाने पर पूछा गया कि कोई मुख्यमंत्री पद मांगे तो? इस पर वे बोले, 'मांगने वाला अ'छा हो, तो वह पद भी दे दूंगाÓ।
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मेरी व चाचा की बात कोई नहीं जान सकता
शिवपाल से विवाद पर मुखर होकर कहा, 'मैं उनको चाचा मानता हूं, इसीलिए इस्तीफा स्वीकार नहीं किया।Ó हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं है, नाराजगी हो सकती है, मैं उनकी नाराजगी भी खत्म कर दूंगा। मेरी और चाचा के बीच हुई बात कोई नहीं जान सकता। वैसे भी हम सभी एक साथ हों, इससे अ'छा क्या हो सकता है?
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बीच के आदमी को बाहर कर देंगे
अखिलेश से पूछा गया कि उनसे मुलाकात के बाद शिवपाल ने इस्तीफा क्यों दिया तो वे बोले कि मुझसे मिलने व इस्तीफे के बीच डेढ़ घंटे का अंतर है। इस दौरान तमाम वाट्सएप और मोबाइल पर फोन आए, जिसके बाद चीजें बिगड़ीं। यह बीच का आदमी है, जिसने गड़बड़ किया। ये बीच के लोग ही गड़बड़ करते हैं। अब हमने तय किया है कि बीच के इंसान को नहीं आने देंगे। कोई बीच में आएगा तो बाहर निकाल देंगे।
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उन्हें नहीं कहूंगा अंकल
बीच के आदमी की चर्चा के बीच अखिलेश ने वरिष्ठ मंत्री आजम खां का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने चोर की दाढ़ी में तिनका की बात यूं ही नहीं कही। जब मैंने उनका नाम ही नहीं लिया तो वे क्यों बोले? इस पर संचालक ने अमर सिंह का नाम लेकर अमर सिंह व शिवपाल की दोस्ती के बारे में पूछा तो अखिलेश ने कहा कि आप नाम ले रहे हो, मैं नहीं लूंगा। वैसे मुझे उनकी दोस्ती के बारे में नहीं पता। मायावती को बुआजी कहने की बात चली तो संदर्भ अमर सिंह की ओर घूम गया। पूछा गया, आप उन्हें अंकल भी तो कहते हैं। इस पर अखिलेश ने तपाक से कहा, 'अब उन्हें अंकल नहीं कहूंगाÓ।
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भाई-भतीजे का कहना मानना होगा
तमाम कोशिशों के बाद भी शिवपाल के न मानने पर बोले, वह मेरे चाचा और नेताजी के भाई हैं। उन्हें (चाचा को) दोनों (भाई-भतीजे) का कहना मानना होगा। ज्यादा दिन तक उन्हें नाराज नहीं रहने देंगे। जहां तक मुख्य सचिव व मंत्रियों के हटने की बात है तो चाचा भी जानते हैं कि वे कैसे हटे, उन्हें किसने हटाया। इसका जवाब भी चाचा ही देंगे। एक अन्य चाचा प्रो.रामगोपाल की नाराजगी पर कहा कि वे नाराज नहीं हैं, आज ही उनसे बात हुई है।
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हट जाते हैं नारे लगाने वाले
शिवपाल समर्थकों की नारेबाजी पर उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। नारे लगाने वाले अक्सर खुद हट जाते हैं और दूसरों को संकट में डाल देते हैं। शिवपाल समर्थकों द्वारा उनके खिलाफ नारेबाजी के बारे में पूछने पर कहा, ऐसे समय मैं कानों में इयरफोन लगा के गाने सुनने लगता हूं। हालांकि मेरे समर्थकों ने भी 'ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भैया तेरे नामÓ जैसे नारे खूब लगाए।
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बुरा लगा अध्यक्ष पद छिनना
अखिलेश पूरे रौ में थे। कहा, सब लोग मंत्री पद छिनने, विभाग कम करने की बातें तो उठा रहे हैं, मेरी प्रदेश अध्यक्षी छिनने की बात कोई नहीं कर रहा। मुझे भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया था, जो मुझे बुरा लगा। यह स्थिति तब थी, जबकि मैंने साहसिक फैसला किया था। फिर बोले, शायद उम्र का असर होता है। कम उम्र में 'करेजÓ (साहस) अधिक होता है। मेरी उम्र कम थी इसलिए मैं जल्दी और बड़ा फैसला ले सका।
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हम चार साल काम करते रहे
अखिलेश से पूछा गया कि जिस तरह का मजबूत स्टैंड आपने अब लिया है, चार साल पहले क्यों नहीं लिया? इस पर उन्होंने कहा कि हम चार साल काम करते रहे। यही कारण है कि हम पूरी तैयारी से चुनाव में जा रहे हैं। सरकार हमारी ही बनेगी। कौमी एकता दल के सपा में शामिल होने के सवाल पर कहा कि हम तो शामिल कर लें, फिर आरोप न लगाना।
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हमारी साइकिल ट्यूबलेस
राहुल गांधी द्वारा साइकिल पंक्चर होने की बात पर कटाक्ष किया कि उन्हें नहीं पता कि साइकिल में ट्यूबलेस टायर भी होते हैं। हमारी साइकिल ट्यूबलेस टायरों वाली है, यह पंक्चर नहीं होगी। डेमोक्रेसी में तमाम चीजें होती हैं और प्रदेश की जनता को हम पर पूरा भरोसा है। राहुल ने मुझे लड़का कहा, तो मैंने भी उन्हें लड़का कह दिया। वे हमें नेता कहते, तो हम भी उन्हें नेता कहते।
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'वन हू इज ऑन द टॉप, ही इज ऑल एलोनÓ
कार्यक्रम की शुरुआत ही घर के झगड़े और गमजदा होने से हुई। इस पर दार्शनिक अंदाज में अखिलेश ने कहा, गम तो सबको होता है। गम छुपाने की आदत भी होनी चाहिए। दरअसल सारा झगड़ा गम न छुपाने का है। अकेलेपन पर अंग्र्रेजी पंक्ति 'वन हू इज ऑन द टॉप, ही इज ऑल एलोनÓ से जोड़ते हुआ कहा कि शीर्ष पर पहुंचने वाला बिल्कुल अकेला हो जाता है।







समाजवादी कुनबे में कलह चौथा दिन

पुन: पुन: अपडेट: लीड : शिवपाल 'बागीÓ, संकट में सपा
नोट : इंट्रो में कुछ मंत्रियों के नाम जोड़े गए हैं।
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कॉमन इन्ट्रो
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गुरुवार का दिन समाजवादी पार्टी के लिए अभूतपूर्व संकट वाला रहा। सोमवार से शुरू हुए 'गृहयुद्धÓ में गुरुवार रात होते होते शिवपाल यादव के तेवर बगावती हो गए। उनके सरकार व संगठन से इस्तीफा देने के साथ संकट और गंभीर हो गया। हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल का मंत्री पद से इस्तीफा स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। शिवपाल के इस कदम पर देर रात मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से बात भी की। सपा का संकट इस कदर गंभीर है कि देर रात मंत्री नारद राय, हाजी रियाज के अलावा अंबिका चौधरी शिवेन्द्र सिंह, रेहान, उदयराज यादव, रणविजय सिंह, रामलाल अकेला समेत दर्जन भर विधायक व बड़ी संख्या में समर्थक शिवपाल के आवास पर डट गए। शुक्रवार का दिन सपा के लिए नया इतिहास रच सकता है। इससे पहले दिन में राम गोपाल यादव ने परिवार में झगड़े के पीछे अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुए पार्टी की बर्बादी की वजह ठहराया था।
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-सरकार व संगठन के सभी पदों से इस्तीफा, समर्थक जुटे
-आवास खाली करने की दी धमकी, मुख्यमंत्री ने इस्तीफा अस्वीकारा
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी व सरकार में वर्चस्व की जंग के बीच गुरुवार को दिल्ली से लखनऊ लौटे शिवपाल यादव ने शाम को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, फिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की और मंत्री के साथ समाजवादी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देकर सपा के सामने अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया। हालांकि सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री ने शिवपाल का मंत्री पद से इस्तीफा स्वीकार करने से इनकार करते हुए उसे बैरंग लौटा दिया है। माना जा रहा है कि शिवपाल द्वारा संगठन के पदों से दिया गया इस्तीफा भी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव स्वीकार नहीं करेंगे। देर रात मुलायम ने इस मसले पर अखिलेश से बात भी की।
चार दिनों से चल रहे सियासी घटनाक्रम के बीच गुरुवार को शिवपाल यादव दिल्ली से लखनऊ लौटे। यहां पहुंचने के बाद शिवपाल ने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष पद की न कभी दावेदारी की थी न ही इसकी भनक थी। सपा मुखिया मुलायम ने यह फैसला लिया। कहा कि कोई पद छोटा, बड़ा नहीं होता। वह मंत्री हैं व प्रदेश अध्यक्ष का कार्य दिया गया है, उस दायित्व को निभाएंगे। विभाग हटाने के सवाल पर शिवपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी सरकार पर फैसला लेने का अधिकार है। विभाग वापस लेने का फैसला उनका है। मुझसे विभाग वापस लेने का फैसला मुलायम (नेताजी) की राय से नहीं लिया गया होगा। उनकी बात न मानने की हैसियत किसी में नहीं है। अब हमें एक होकर 2017 का चुनाव लडऩा है। शिवपाल ने बगैर किसी इशारे के कहा कि लोगों को अपनी बुद्धि से फैसले लेने चाहिए। किसी की कही सुनी बात पर नहीं। कहा सब बुद्धिमान मुख्यमंत्री और मुलायम सिंह नहीं बन सकते है। यह जोड़ा किहर कोई शिवपाल यादव नहीं हो सकता। बाहरी व्यक्ति के मुख्यमंत्री व प्रो.राम गोपाल के इशारे के सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि पार्टी में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं है। अमर सिंह को पार्टी में लेने का फैसला नेताजी (मुलायम सिंह) का है।
इन बातों के कुछ घंटे बाद ही वह सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से मिलने पहुंचे। करीब एक घंटे की मुलाकात के बाद मुलायम की हिदायत पर शिवपाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने उनके सरकारी आवास पर पहुंचे। लगभग 15 मिनट की मुलाकात के बाद शिवपाल वहां से लौटे और परिवार के साथ चर्चा के बाद मंत्री व समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रभारी व प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उनके पास सपा के प्रदेश प्रभारी, मुख्य प्रवक्ता का पद भी था। प्रवक्ता ने बताया कि मंत्री ने सभी पदों से इस्तीफा दिया है। शिवपाल के इस फैसले के बाद से समाजवादी पार्टी में हड़कंप की स्थिति है, इसके दूरगामी परिणाम के संकेत हैं। चर्चा रही कि मुख्यमंत्री से वार्ता के बाद स्थितियां तेजी से बदलीं और शिवपाल के तेवर उग्र्र हो गए। शिवपाल के साथ उनके बेटे आदित्य यादव उर्फ अंकुर ने पीसीएफ के चेयरमैन पद व उनकी पत्नी सरला यादव ने कोआपरेटिव निदेशक के पद से भी इस्तीफा देने की चर्चा रही। हालांकि बाद में शिवपाल के प्रवक्ता ने इसका खंडन किया।
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इनसेट......
समर्थकों की भीड़ देख सुरक्षा बढ़ी
शिवपाल के इस्तीफे की जानकारी मिलते ही उनके समर्थकों का जमावड़ा आवास पर लगने लगा। समर्थक शिवपाल तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं, जैसे नारे लगा रहे थे। इस दौरान वहां दर्जन भर सपा विधायक भी पहुंच गए। यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। समर्थकों की भीड़ बढ़ती देख उनके आवास की सुरक्षा भी बढ़ा दी गयी।
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अखिलेश को हटाना नेतृत्व की गलती : रामगोपाल
-मुलायम के कहने पर बर्खास्त किए गए गायत्री, राजकिशोर
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी व परिवार की कलह के सड़क पर आने के चौथे दिन महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव ने कहा-'अखिलेश को पार्टी की प्रदेश इकाई के प्रेसिडेंट पद से हटाकर नेतृत्व ने माइनर मिसटेक (छोटी गलती) की।Ó उनसे इस्तीफा मांगा जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि मुलायम सिंह के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री ने गायत्री प्रजापति व राजकिशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया था।
गुरुवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात से पहले और फिर बाद में प्रो.रामगोपाल यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा कही गई पार्टी में 'बाहरी व्यक्तिÓ के हस्तक्षेप की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह व्यक्ति पार्टी को बर्बाद करने पर आमादा है। इशारों में अमर सिंह को खलनायक की संज्ञा देते हुए कहा कि यह व्यक्ति नेताजी (मुलायम सिंह) की सरलता का फायदा उठाता है, उसने ही सपा के संविधान में प्रभारी, कार्यकारी का पद नहीं होने के बावजूद प्रभारी नियुक्त करा दिया। उसी ने प्रदेश अध्यक्ष बनवाया है। इस सवाल पर कि अमर सिंह तो खुद को मुलायमवादी कहते हैं? प्रो.यादव ने कहा कि जो समाजवादी नहीं हो सकता, वह मुलायमवादी नहीं हो सकता। प्रो.यादव ने कहा कि अमर सिंह का मकसद होता है कि उनका काम हो जाए पार्टी भाड़ में जाए। पार्टी के इंट्र्ेस्ट (फायदा) से उसे लेना देना नहीं है। चुनाव का समय है। अब बाहरी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं।
गायत्री व राजकिशोर की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी और शिवपाल से विभाग छीने जाने के सवाल पर रामगोपाल ने ठीकरा मुलायम पर फोड़ते हुए कहा कि दोनों को उनके कहने पर बर्खास्त किया गया। नेताजी के बारे में वह और क्या बतायें। सरकार में किस मंत्री से क्या काम लेना है, यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है, उन्होंने जो बेहतर समझा होगा, वह फैसला लिया। इस पूरे घटनाक्रम में चूक कहां हुई? इस सवाल पर रामगोपाल ने कहा कि अखिलेश से (पार्टी के यूपी चीफ के पद से) इस्तीफा देने को कहा जाना चाहिये था, वह इस्तीफा दे देते। उनसे कहा जा सकता था कि चुनाव नजदीक हैं, आप सीएम रहिये और प्रदेश अध्यक्ष का कामकाज वे (शिवपाल) संभालेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ, मुझे तुरंत आदेश जारी करने को कहा गया। आप तो थिंक टैंक कहे जाते हैं, आपने मुलायम को समझाया क्यों नहीं? इस सवाल को टालते हुए रामगोपाल ने कहा कि कुछ गलतफहमी हुई। इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। अब सब ठीक है। मुलायम का जो इशारा होगा, वैसा फैसला हो जाएगा। अधिकारियों की तैनाती और मुख्य सचिव को हटाने के सवाल पर सपा महासचिव ने कहा यह सवाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से पूछा जाना चाहिए।
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संसदीय बोर्ड की बैठक टली
समाजवादी पार्टी की शुक्रवार को प्रस्तावित समाजवादी संसदीय बोर्ड की बैठक टाल दी गयी है। राम गोपाल यादव ने कहा कि इस मसले पर बोर्ड की बैठक की जरूरत नहीं है। टिकट और प्रत्याशी का बात होती तो बोर्ड की बैठक बुलाई जाती।
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 आज 'फैसले का शुक्रवारÓ, मुलायम पर निगाहें
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-राजनीतिक गलियारों में गूंज रहे 'अब क्या होगाÓ जैसे सवाल
-राष्ट्रीय व प्रदेश कार्यकारिणी भंग करने जैसे कड़े फैसले संभव
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 लखनऊ: समाजवादी परिवार के सत्ता संघर्ष में गुरुवार रात आए भूचाल के बाद शुक्रवार का दिन फैसले भरा होने की उम्मीद है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर सभी की निगाहें लगी हैं।
समाजवादी कुनबे में बीते चार दिनों से चल रहा घमासान गुरुवार को राजधानी में परिवार के सभी दिग्गजों के जुटने के बाद भी शांत नहीं हुआ। दिन भर चलीं मुलायम की कोशिशें भी रंग नहीं लाईं और रात होते-होते शिवपाल के इस्तीफे के साथ विस्फोट के रूप में सामने आईं। एक बार फिर चर्चाओं के ज्वालामुखी फटने लगे, कयासों के दौर चलने लगे और लोग 'लाइवÓ हो गए। राजनीतिक गलियारे में 'अब क्या होगा?Ó जैसा सवाल तेजी से गूंज रहा है। जिस तरह शिवपाल के घर विधायक व समर्थक जुटने शुरू हुए, उससे सपा के दोफाड़ होने की संभावनाओं पर भी चर्चा शुरू हो गयी। कार्यकर्ताओं का एक खेमा इस पूरे घटनाक्रम को अमर बनाम रामगोपाल का विस्फोटक परिणाम करार दे रहा है। अब शुक्रवार की प्रतीक्षा हो रही है। मुलायम सिंह राजधानी में ही हैं। माना जा रहा है कि शुक्रवार को वे माहौल को नियंत्रित करने के लिए कुछ कड़े फैसले भी ले सकते हैं। यही कारण है कि देर रात समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय व प्रदेश कार्यकारिणी भंग करने की चर्चाएं भी शुरू हो गईं। कहा गया कि अभी तक शिवपाल व अखिलेश को आमने-सामने बिठाकर मुलायम ने पंचायत नहीं की है। अब ऐसी पंचायत की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा रहा है।
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- घटनाक्रम को लेकर दिन भर चला कयासों का दौर
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 लखनऊ : प्रदेश सरकार व समाजवादी पार्टी के फैसलों के चलते समाजवादी परिवार के घमासान का चौथे दिन केंद्र लखनऊ रहा। सुबह राम गोपाल और शाम को शिवपाल मीडिया से मुखातिब हुए तो रात में मुख्यमंत्री विक्रमादित्य मार्ग स्थित अपने आवास पर पहुंचे, जहां उनकी सपा मुखिया मुलायम सिंह से मुलाकात हुई मगर बात क्या हुई, यह छनकर बाहर नहीं आई। वैसे माना यही जा रहा है कि शुक्रवार सुबह मुख्यमंत्री व सपा मुखिया के बीच बात होगी, जिसमें बिगड़ी बात संभालने की रणनीति तय हो सकती है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कयासों का क्रम चलता रहा। राजनीतिक विश्लेषक अपने-अपने तरीके से घटनाक्रम को विश्लेषित करते रहे।
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लड़ते रहे कयासों के पेंच
-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने चाचा व मंत्री शिवपाल के पुराने विभाग वापस कर दें और शिवपाल अखिलेश के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ दें।
-मंत्री शिवपाल मौजूदा विभाग भी छोड़ दें और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ही काम शुरू कर दें। हालांकि रात में शिवपाल ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया, जिसे ठुकरा भी दिया गया।
-सपा मुखिया मुलायम सिंह मुख्यमंत्री को मंत्रिमंडल के एक और फेरबदल का निर्देश देकर नए सिरे से विभागों का बंटवारा करा दें और उसमें शिवपाल को प्रभावी विभाग मिल जाए।
- अमर सिंह को पार्टी से बाहर कर विवाद का पटाक्षेप कर दिया जाए।
- दागी, विवादित और कुछ विधायकों का टिकट काटकर अखिलेश यादव की छवि प्रभावशाली बनाने का संदेश दिया जाए।
-मंत्री शिवपाल यादव को नापंसद अधिकारियों को हटा दिया जाए।
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शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे : मुलायम
सुबह दिल्ली से लखनऊ रवाना होने से पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये गये हैं, वह प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे। हालांकि उनके इस बयान के बाद लखनऊ में परिस्थितियों में खासा बदलाव आया है।
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-सुबह से रात तक मिलने आते रहे सूरमा
-रामगोपाल, शिवपाल, मुलायम के आने से दृश्य बदला
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 लखनऊ : समाजवादी कुनबे में कलह को लेकर लोगों में बेइंतहा जिज्ञासा है। गुरुवार सुबह से कुनबे के सूरमाओं के आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो निरंतर दृश्य बदलता रहा। इनसे सवाल-दर-सवाल होते रहे और जवाब भी मिले लेकिन कौतूहल खत्म नहीं हुआ। रात में शिवपाल के इस्तीफे की घोषणा से यह कौतूहल और बढ़ गया।
गुरुवार सुबह करीब सवा दस बजे सपा महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव वीवीआइपी गेस्टहाउस पहुंचे। राम गोपाल ने पिछले घटनाक्रमों से उठे सवालों के जवाब दिए। उन्होंने दो बातें साफ तौर पर कहीं। पहली यह कि मंत्रियों की बर्खास्तगी से लेकर मुख्य सचिव के हटाने तक के फैसले नेताजी के ही थे और दूसरी यह कि अखिलेश यादव से बिना पूछे शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाना नेतृत्व की गलती थी। उन्होंने घर में कलह के लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया। प्रोफेसर राम गोपाल इसके बाद अखिलेश यादव से मिलने पांच कालिदास मार्ग स्थित उनके सरकारी आवास पहुंचे। दोनों के बीच भविष्य पर चर्चा हुई लेकिन अखिलेश के घर से निकलने के बाद प्रोफेसर के टोन कुछ बदल गए थे। शिवपाल के प्रति भी उनका रुख नरम था। कहा कि शिवपाल बेहतर अध्यक्ष होंगे और चुनाव अभियान को गति देंगे। दोपहर को शिवपाल सिंह यादव भी दिल्ली से लखनऊ आ गये। शिवपाल ने अध्यक्ष का दायित्व निभाने और मंत्री बने रहने की बात कहकर भविष्य की कई आशंकाओं को खारिज कर दिया। शिवपाल बोले, हमारी पार्टी में किसी की हैसियत नहीं कि नेताजी की बात टाल दे। करीब तीन बजे मुलायम सिंह यादव भी दिल्ली से लखनऊ आ गये। शाम साढ़े पांच बजे शिवपाल सिंह यादव मुलायम से मिलने उनके आवास पहुंच गये। शिवपाल दिल्ली में भी अपने पुत्र आदित्य यादव के साथ थे और दोबारा लखनऊ में उनकी मुलाकात को और महत्वपूर्ण माना गया। इस बीच यह बात उठी कि अखिलेश भी मिलने जाएंगे लेकिन वह गये नहीं। अलबत्ता अखिलेश ने दोपहर को ही विवादों की वजह बनने वाले दीपक सिंघल को राज्य सतर्कता आयोग का अध्यक्ष बनाकर यह साफ कर दिया कि वह सिंघल को लेकर समझौते को तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री सिंघल की टिप्पणी से आहत हैं। नेताजी और शिवपाल के बीच क्या बात हुई यह तो पता नहीं लेकिन उनकी मुलाकात का असर यह हुआ कि करीब साढ़े सात बजे शिवपाल यादव खुद मुख्यमंत्री से मिलने उनके घर चले गये। अक्सर पहले भी मनमुटाव रहते हुए कभी अखिलेश शिवपाल के घर गये तो कभी शिवपाल अखिलेश के घर। इस बार माना जा रहा था कि शिवपाल अपने हठ पर कायम रहेंगे लेकिन उनके मुख्यमंत्री आवास जाने से एक संदेश जरूर निकला कि कुनबे की कलह सुलह में बदलने वाली है। इसके विपरीत शिवपाल ने मुख्यमंत्री आवास से लौटने के बाद रात दस बजे के आसपास सपरिवार इस्तीफे की घोषणा कर दी। इसके बाद एक बार फिर न सिर्फ समाजवादी कुनबे में, बल्कि पूरे राजनीतिक गलियारे में हलचल बढ़ गयी। उधर रामगोपाल ने कहा था कि वह सुबह छह बजे जाएंगे लेकिन मुलायम के आते ही वह सैफई चले गये।
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किस पर गिरेगी तलवार
प्रोफेसर रामगोपाल ने कहा कि जो कुछ फैसले हुए सब नेताजी ने किए। शिवपाल ने कहा कि किसी की हैसियत नहीं जो नेताजी की बात टाल दे। अखिलेश पहले से ही नेताजी की छांव में हैं। फिर इस सवाल का जवाब नहीं निकल सका कि कलह क्यों है। जब सभी फैसले नेताजी के हैं और सभी उनकी बात मानने को तैयार हैं तो दिक्कत कहां है। बाहरी के नाम पर अमर सिंह को परिवार ने निशाना बना दिया है। इसकी भूमिका अखिलेश ने लिखी और रामगोपाल ने इसे विस्तार दे दिया। उधर शिवपाल ने अमर सिंह के प्रति जो भावना उड़ेली उससे साफ है कि टकराव के केंद्र में अमर सिंह भी हैं। अटकलें यह हैं कि क्या कलह पर पटाक्षेप के लिए अमर सिंह पर तलवार गिरेगी। संकेत तो राम गोपाल ने दे दिया है लेकिन शिवपाल-अखिलेश की मुलाकात से कुछ और भी समीकरण बनने के संकेत मिले हैं।
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अखिलेश के तेवर बरकरार
अखिलेश यादव ने अपने तेवर बरकरार रखे हैं। प्रोफेसर राम गोपाल यादव हों या शिवपाल सिंह यादव सभी अखिलेश से मिलने गए। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश ने एक बात साफ कर दी है कि वह कोई बेजा दबाव बर्दाश्त नहीं करेंगे। किसी दागी को महत्व नहीं देंगे और बिचौलियों का हस्तक्षेप भी स्वीकार नहीं करेंगे।
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टाइमलाइन
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सुबह 10:15 बजे : सपा महासचिव रामगोपाल यादव लखनऊ पहुंचे
दोपहर 12:30 बजे : रामगोपाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने गए
अपराह्न 2:15 बजे : शिवपाल सिंह यादव दिल्ली से लखनऊ पहुंचे
अपराह्न 3:10 बजे : सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव लखनऊ पहुंचे
सायं 5:30 बजे : मुलायम सिंह से मिलने उनके घर पहुंचे शिवपाल
सायं 7:30 बजे : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर पहुंचे शिवपाल
रात 9:45 बजे : शिवपाल ने सरकार व संगठन के सभी पदों से दिया इस्तीफा
रात 10:40 बजे : मुख्यमंत्री का इस्तीफा स्वीकार करने से इन्कार
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 'अमर सिंह बर्बाद कर रहे पार्टीÓ
नोट : शीर्षक को इनवर्टेड में किया गया है।
-इस फाइल में कामन इंट्रो, रामगोपाल, शिवपाल और मुलायम के लखनऊ पहुंचने की खबरें हैं। खबर अपडेट हो सकती है।
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सब हेड-ठीकरा अमर के सिर, परिवार में फिलहाल शांति
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सोमवार से गुरुवार तक समाजवादी परिवार के भीतर लड़े गए 'गृहयुद्धÓ पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एक सीमा तक नियंत्रण पा लिया। योद्धाओं ने घमासान का ठीकरा मुलायम के फैसलों पर फोड़ा, मगर उनके आदेश मानने का संकल्प भी दोहराया। अलबत्ता प्रो.रामगोपाल ने संकेतों में अमर सिंह को दल व परिवार का 'खलनायकÓ बताया और शिवपाल ने अमर का बचाव किया। अखिलेश पहले ही अमर सिंह को केंद्रित कर निशाना साध चुके हैं। समाजवादी परिवार में भड़की आग फिलहाल ठंडी पड़ती दिख रही है लेकिन उसकी राख में दबी चिंगारी कभी भी फिर भड़क सकती है, यह अंदाज लगाना कठिन नहीं।
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अखिलेश को हटाना नेतृत्व की गलती : रामगोपाल
-मुलायम के कहने पर बर्खास्त किए गए गायत्री, राजकिशोर
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी व परिवार की कलह के सड़क पर आने के चौथे दिन महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव ने कहा-'अखिलेश को पार्टी की प्रदेश इकाई के प्रेसिडेंट पद से हटाकर नेतृत्व ने माइनर मिसटेक (छोटी गलती) की।Ó उनसे इस्तीफा मांगा जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि मुलायम सिंह के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री ने गायत्री प्रजापति व राजकिशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया था।
गुरुवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात से पहले और फिर बाद में प्रो.रामगोपाल यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा कही गई पार्टी में 'बाहरी व्यक्तिÓ के हस्तक्षेप की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह व्यक्ति पार्टी को बर्बाद करने पर आमादा है। इशारों में अमर सिंह को खलनायक की संज्ञा देते हुए कहा कि यह व्यक्ति नेताजी (मुलायम सिंह) की सरलता का फायदा उठाता है, उसने ही सपा के संविधान में प्रभारी, कार्यकारी का पद नहीं होने के बावजूद प्रभारी नियुक्त करा दिया। उसी ने प्रदेश अध्यक्ष बनवाया है। इस सवाल पर कि अमर सिंह तो खुद को मुलायमवादी कहते हैं? प्रो.यादव ने कहा कि जो समाजवादी नहीं हो सकता, वह मुलायमवादी नहीं हो सकता। प्रो.यादव ने कहा कि अमर सिंह का मकसद होता है कि उनका काम हो जाए पार्टी भाड़ में जाए। पार्टी के इंट्र्ेस्ट (फायदा) से उसे लेना देना नहीं है। चुनाव का समय है। अब बाहरी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं।
गायत्री व राजकिशोर की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी और शिवपाल से विभाग छीने जाने के सवाल पर रामगोपाल ने ठीकरा मुलायम पर फोड़ते हुए कहा कि दोनों को उनके कहने पर बर्खास्त किया गया। नेताजी के बारे में वह और क्या बतायें। सरकार में किस मंत्री से क्या काम लेना है, यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है, उन्होंने जो बेहतर समझा होगा, वह फैसला लिया। इस पूरे घटनाक्रम में चूक कहां हुई? इस सवाल पर रामगोपाल ने कहा कि अखिलेश से (पार्टी के यूपी चीफ के पद से) इस्तीफा देने को कहा जाना चाहिये था, वह इस्तीफा दे देते। उनसे कहा जा सकता था कि चुनाव नजदीक हैं, आप सीएम रहिये और प्रदेश अध्यक्ष का कामकाज वे (शिवपाल) संभालेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ, मुझे तुरंत आदेश जारी करने को कहा गया। आप तो थिंक टैंक कहे जाते हैं, आपने मुलायम को समझाया क्यों नहीं? इस सवाल को टालते हुए रामगोपाल ने कहा कि कुछ गलतफहमी हुई। इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। अब सब ठीक है। मुलायम का जो इशारा होगा, वैसा फैसला हो जाएगा। अधिकारियों की तैनाती और मुख्य सचिव को हटाने के सवाल पर सपा महासचिव ने कहा यह सवाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से पूछा जाना चाहिए।
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संसदीय बोर्ड की बैठक टली
समाजवादी पार्टी की शुक्रवार को प्रस्तावित समाजवादी संसदीय बोर्ड की बैठक टाल दी गयी है। राम गोपाल यादव ने कहा कि इस मसले पर बोर्ड की बैठक की जरूरत नहीं है। टिकट और प्रत्याशी का बात होती तो बोर्ड की बैठक बुलाई जाती।
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मुझे हटाने का फैसला नेताजी की राय से हुआ होगा : शिवपाल
-अमर सिंह का बचाव किया, सबको जोडऩे से संगठन मजबूत होता है
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की जंग के बीच प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दिल्ली से लखनऊ लौटे शिवपाल यादव ने कहा कि इस पद की न दावेदारी कभी की न भनक थी। सपा मुखिया मुलायम ने यह फैसला लिया। कहा कि कोई पद छोटा, बड़ा नहीं होता। वह मंत्री हैं व प्रदेश अध्यक्ष का कार्य दिया गया है, उस दायित्व को निभाएंगे।
विभाग हटाने के सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी सरकार पर फैसला लेने का अधिकार है। विभाग वापस लेने का फैसला उनका है। मुझसे विभाग वापस लेने का फैसला मुलायम (नेताजी) की राय से लिया गया होगा। उनकी बात न मानने की हैसियत किसी में नहीं है। अब हमें एक होकर 2017 का चुनाव लडऩा है। शिवपाल ने बगैर किसी इशारे के कहा कि लोगों को अपनी बुद्धि से फैसले लेने चाहिए। हालांकि सब बुद्धिमान हो जाएंगे तो सभी मुख्यमंत्री बन जाएंगे।हर कोई शिवपाल यादव नहीं हो सकता।
बाहरी व्यक्ति के मुख्यमंत्री व प्रो.राम गोपाल के इशारे के सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि पार्टी में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं है। अमर सिंह को पार्टी में लेने का फैसला नेताजी (मुलायम सिंह) का है। कहा कि सबको जोडऩे से संगठन को मजबूती मिलेगी, तोडऩे से संगठन मजबूत नहीं होते हैं। कोई भी व्यक्ति पद से न बड़ा और न ही छोटा होता है। बाद में गुरुवार शाम शिवपाल पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से मिलने उनके घर पहुंचे। एक घंटे की बातचीत के बाद वह वहां से निकल कर सीधे पांच कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंचे और अखिलेश से तकरीबन एक घंटे तक बातचीत की। माना जा रहा है कि चार दिनों से चल रहे घमासान को नियंत्रित करने के प्रयास हुआ।
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मुलायम लखनऊ पहुंचे, सीएम से करेंगे बात
घमासान के चौथे दिन यानी गुरुवार दोपहर पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव लखनऊ पहुंचे और विक्रमादित्य मार्ग स्थित अपने आवास पर कुछ नेताओं से मुलाकात की। सूत्रों का कहना है कि वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव समेत कुछ लोगों से मुलाकात कर सकते हैं। इससे पहले दिल्ली हवाई अड्डे पर उन्होंने कुछ मीडिया कर्मियों से कहा है कि दल व परिवार में ऐसी बातें पहले भी हुई हैं, तब सबसे बात कर उसे सुलझाया था। इस बार भी बात कर सब ठीक कर दिया जाएगा।

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फाइनल अपडेट: टाइमलाइन
नोट : टाइमलाइन में अंत में दो प्वाइंट बढ़ाए गए हैं।
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टाइमलाइन
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सुबह 10:15 बजे : सपा महासचिव रामगोपाल यादव लखनऊ पहुंचे
दोपहर 12:30 बजे : रामगोपाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने गए
अपराह्न 2:15 बजे : शिवपाल सिंह यादव दिल्ली से लखनऊ पहुंचे
अपराह्न 3:10 बजे : सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव लखनऊ पहुंचे
सायं 5:30 बजे : मुलायम सिंह से मिलने उनके घर पहुंचे शिवपाल
सायं 7:30 बजे : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर पहुंचे शिवपाल
रात 9:45 बजे : शिवपाल ने सरकार व संगठन के सभी पदों से दिया इस्तीफा
रात 10:40 बजे : मुख्यमंत्री का इस्तीफा स्वीकार करने से इन्कार
रात 11 बजे : शिवपाल के आवास पर जुटने लगे विधायक व कार्यकर्ता
रात 12:25 बजे : शिवपाल ने घर के बाहर आकर कार्यकर्ताओं से वापस जाने की अपील की
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समाजवादी कुनबे में कलह-का तीसरा दिन


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लखनऊ: दोपहर के ढाई बजे हैं। सामान्य दिनों में गुलजार रहने वाला समाजवादी पार्टी कार्यालय आज शांत सा है। कमरों में ताला पड़ा है और फरियादी भटक रहे हैं। जब इन फरियादियों की आवाजें सन्नाटा तोडऩे लगीं तो उन्हें इकट्ठा कर शिकायतें सहेज ली गईं और फिर सन्नाटा कायम हो गया।
बुधवार को सपा कार्यालयमें सन्नाटे सा आलम था तो अन्य दलों के प्रदेश कार्यालयों में समाजवादी परिवार के संघर्ष की गूंज होती रही। दरअसल सूबे का सत्ता संघर्ष सभी राजनीतिक दिलों के विमर्श का बड़ा बिंदु बना हुआ है। कांग्र्रेस, भाजपा व बसपा के प्रदेश मुख्यालयों में चटखारे लेकर चर्चा करते हुए इस पूरे विवाद को 'पारिवारिक समाजवादÓ का नाम दिया गया। ये लोग इस संघर्ष के परिणाम को लेकर अटकलें लगाने के साथ समीकरणों में बदलाव पर भी चर्चा करते रहे।
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...नेताजी सब ठीक कर देंगे
समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सामान्य रूप से पहुंचने वाले फरियादी तो थे ही, मुख्यमंत्री निवास से निराश फरियादी भी वहां पहुंच गए थे। कार्यालय में अगल-बगल के कमरों में राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के साथ प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अखिलेश यादव और लोकनिर्माण मंत्री के रूप में शिवपाल सिंह यादव की नाम पट्टिकाएं लगी थीं। लोग इन कमरों के पास आते, झांकते और फिर बरामदे में इंतजार करने लगते। जब बहुत देर हो गई और कोई नहीं आया तो फरियादी कुछ शोर करने लगे। दफ्तर के बाहर मीडिया की ओवी वैन लाइन प्रसारण में लगी थीं, इसलिए वहां मौजूद कर्मचारी भी सक्रिय हो गए। आनन फानन में विधायक एसआरएस यादव को बुलाया गया। वे सभी फरियादियों को कांफ्रेंस हॉल में ले गए, वहां उनकी शिकायतों के आवेदन लिए और बिना बोले ही चले आए। इस बीच कुछ कार्यकर्ता आए तो वे उनसे भी मुखातिब नहीं हुए। किसी ने पूछा, यह सब क्या हो रहा है.... तो आवाज आई, 'चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। नेताजी सब ठीक कर देंगेÓ।
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...बेअसर होगा यह नाटक
बहुजन समाज पार्टी कार्यालय के गेट में प्रवेश करते ही नीला कुर्ता पहने अकबरपुर के रामप्रवेश मिलते हैं। उनके साथ कुछ और कार्यकर्ता आए हैं। यहां बहुत भीड़ तो नहीं है किंतु जो कार्यकर्ता हैं वे उत्साहित हैं। यहां भी चर्चा सूबे के सत्ता संघर्ष को लेकर ही हो रही है। कार्यकर्ता कहते हैं कि बहनजी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुई समाजवादी पार्टी ने यह नाटक किया है। एक कार्यकर्ता बोला, इससे कोई फायदा नहीं होना है। यह नाटक बेअसर होगा और अबकी सरकार तो बहनजी ही बनाएंगी।
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...पुत्रमोह सबसे खतरनाक
कांग्र्रेस कार्यालय में अल्पसंख्यक विभाग के संयोजक सिराज मेंहदी व मीडिया विभाग के संयोजक सत्यदेव त्रिपाठी के कमरों में पंचायत चल रही है। एक नेता बोले, 'अरे सब मुलायम का प्लांड प्रोग्र्राम है। वे अखिलेश को साफ-सुथरा और बहुत बड़ा कर देना चाहते हैंÓ। इस बीच दूसरे नेता बोले, 'जनता सब समझ रही है, इसका कोई असर नहीं होगा।Ó चर्चा क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दलों तक पहुंच जाती है। एक आवाज आई, 'राष्ट्रीय दलों में ऐसी कोई गड़बड़ी नहीं होती, अब जनता को क्षेत्रीय दलों का दुष्परिणाम समझ में आ रहा होगा। इसका फायदा कांग्र्रेस को होगा और लोग हमसे जुड़ेंगेÓ। अचानक एक नेता उठे और बोले, 'देखो, सब इतना आसान नहीं है। पुत्रमोह सबसे खतरनाक होता है और यहां भी यही दिख रहा हैÓ।
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...विषय से न भटकेगी जनता
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित के कमरे में कुछ नेता बैठे हैं। यहां भी चर्चा में प्रदेश का सत्ता संग्र्राम ही है। एक संगठन मंत्री कहते हैं, सब तरफ से निराश होकर सपा ने नई चाल चली है। यहां तो कोई इसे स्वाभाविक संघर्ष ही नहीं मान रहा। एक नेता बोले, 'सब स्क्रिप्टेड (पहले से तैयार पटकथा का हिस्सा) हैÓ। एक आवाज आई, 'भाजपा की मेहनत व बदलते माहौल से जनता का ध्यान बांटने की कोशिश हो रही हैÓ। चर्चा चलती रही और बार-बार निष्कर्ष निकलता रहा, 'अखिलेश की इमेज ब्रांडिंग के लिए हो रहा है यह सब, पर इस बार जनता विषय से न भटकेगीÓ।
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कितना स्वाभाविक कितना नियोजित
 अन्तर्कथा
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-अखिलेश की इमेज बनाने के लिए तो नहीं लिखी गयी स्क्रिप्ट
- सपा का एक वर्ग अमर सिंह को ठहरा रहा जिम्मेदार
- सरकार में झगड़े की वजह बना कोई 'बाहरीÓ
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लखनऊ : समाजवादी कुनबे की कलह सतह पर आने के बाद सियासत के सारे मुद्दे पीछे हो गये हैं। लोग-बाग इसके निहितार्थ तलाश रहे हैं। विपक्षी दलों ने बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इसे सपा का नाटक करार दिया है जबकि खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 'परिवार एक है, झगड़ा सरकार में है और अगर कोई बाहरी व्यक्ति हस्तक्षेप करेगा तो पार्टी और सरकार कैसे चलेगीÓ कहकर  बहस को आगे बढ़ा दिया है।
 मुख्यमंत्री ने बुधवार को पांच कालिदास मार्ग स्थित अपने सरकारी आवास पर एक आयोजन के दौरान मीडिया से यह बात कही। सवाल उठना स्वाभाविक है कि मुख्यमंत्री किसे बाहरी बता रहे हैं। क्या उनके निशाने पर अमर सिंह हैं। संकेतों से तो यह बात स्पष्ट थी और जब खुद अमर सिंह ने 'बाहरीÓ शब्द पर जवाब दिया तो इसकी पुष्टि भी हो गयी। मुद्दा यह है कि सपाई कुनबे की रार स्वाभाविक है या फिर इसकी स्क्रिप्ट लिखी गयी है। क्या यह अखिलेश यादव की इमेज बनाने का प्रयास है। क्या सपा सरकार में भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और बढ़ते अपराधों से ध्यान हटाकर उन्हें लोकप्रिय साबित करने की कवायद है। विपक्षी दल तो कम से कम यही कह रहे हैं लेकिन, सपा का एक तबका इस रार और कलह के लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहा है। अमर सिंह की सपा में वापसी के बाद से ही अंदरखाने चल रही लड़ाई खुलकर सामने आयी है। अमर सिंह को शिवपाल का करीबी माना जाता है। वैसे तीन माह पहले कौमी एकता दल के विलय और फिर उसे निरस्त किये जाने के बाद से ही परदे के पीछे चलने वाली लड़ाई खुले मंच पर दिखने लगी थी। बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय शिवपाल सिंह यादव का प्रयास था और उसे मुख्यमंत्री ने पूरा जोर लगाकर खारिज करा दिया। इस मसले पर चाचा-भतीजे के अहं की भभकती लौ पर नेताजी ने पानी की बौछार कर मामला ठंडा कर दिया। स्थिति यह हुई कि शिवपाल भी अखिलेश की भाषा बोलने लगे थे पर इसके लिए मुख्यमंत्री को शिवपाल के करीबी किंतु भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाना पड़ा। सिंघल को कभी पसंद न करने वाले मुख्यमंत्री ने उन्हें सवा दो माह तक बर्दाश्त किया। अगर दिल्ली में अमर सिंह द्वारा दी गयी पार्टी में दीपक सिंघल की मुख्यमंत्री पर कथित टिप्पणी की शिकायत सामने न आती तो शायद अभी वह मुख्य सचिव बने रहते। मुख्यमंत्री यह बर्दाश्त नहीं कर सके कि मुख्य सचिव उन पर टिप्पणी करें क्योंकि पहले भी कई सार्वजनिक मंचों पर सिंघल की जुबान फिसलती रही है।
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अखिलेश के फैसलों से सुलगी चिंगारी
मुख्यमंत्री के दो और बड़े फैसले विवाद का कारण बने। मुख्यमंत्री द्वारा सोमवार को खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी से चिंगारी सुलग उठी। माना जा रहा है कि अवैध खनन के मामले में हाईकोर्ट व सीबीआइ जांच का कड़ा रुख देखते हुए मुख्यमंत्री ने गायत्री को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया। ऐसी ही जांच से जुड़ा एक मामला राजकिशोर का भी है। राजकिशोर, शिवपाल सिंह यादव के ही करीबी माने जाते हैं और इसे भी शिवपाल की प्रतिष्ठा से जोड़ा गया। यह बात भी चर्चा में है कि मुख्य सचिव बनने के लिए दीपक सिंघल ने न केवल शिवपाल बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों का भी सहयोग लिया था।
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सभी नेताजी के आज्ञाकारी तो रार क्यों
सपा प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद शिवपाल सिंह यादव से मुख्यमंत्री ने सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए तो उनके समर्थक दावा करने लगे कि वह इस्तीफा दे देंगे पर बुधवार को जिस तरह शिवपाल सिंह यादव ने नेताजी पर अपना विश्वास और भरोसा कायम करते हुए उनके दिशा निर्देश पर ही काम करने का एलान किया उससे मंगलवार सुबह से सुलगती आग, चिंगारी बनने के बजाय तब और ठंडी होती दिखी जब मुलायम सिंह यादव ने उन्हें इटावा से सीधे दिल्ली बुला लिया। इधर, बुधवार को राजधानी में अपने सरकारी आवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने भी शिवपाल की ही भाषा बोलते हुए कहा कि जहां तक नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की बात है तो उनकी बात कौन नहीं मानेगा? परिवार में नेता जी का सब कहना मानते हैं लेकिन, जब सभी नेताजी के आज्ञाकारी हैं तो रार क्यों है।
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नौकरशाहों का भी खेल
सपा का एक वर्ग इस झगड़े में नौकरशाहों की बड़ी भूमिका बता रहा है। अखिलेश यादव पर नौकरशाहों की सलाह से भी फैसले लेने के आरोप लग रहे हैं। सपा के कई विधायक और पुराने कार्यकर्ता ऐसा कह रहे हैं।
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शिवपाल तोड़ सकेंगे अखिलेश का रिकार्ड!
मुलायम सिंह ने अखिलेश से सपा के प्रदेश नेतृत्व की बागडोर लेकर ऐसे समय में शिवपाल सिंह यादव को सौंपी है जब 2017 का विधानसभा चुनाव सिर पर है। अखिलेश ने 2012 में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए साइकिल यात्रा निकाली और पूर्ण बहुमत की सपा सरकार बनाई। अब शिवपाल के सामने अखिलेश के इस रिकार्ड को तोडऩे की चुनौती रहेगी। यह अलग बात है कि 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद ही नेताजी ने कहा था कि यह जनादेश उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए मिला है।
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शिवपाल के फैसले अस्वीकार
सपा सरकार में हाल में शिवपाल के मनमाफिक काम होने बंद हो गये थे। दो वर्षों में यह कुछ ज्यादा ही हो गया। मसलन, दीपक सिंघल को सिंचाई विभाग के साथ ही प्रमुख सचिव गृह भी बनाया गया लेकिन, मुख्यमंत्री उन्हें एक पखवारा भी बर्दाश्त नहीं कर सके। कहा जाता है कि पीडब्लूडी में आराधना शुक्ला को प्रमुख सचिव बनाया गया तो शिवपाल ने उन्हें हटाने के काफी प्रयास किए लेकिन, बात नहीं बनी।
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चुनावी हार से पहले समाजवादी बौखलाहट
-विपक्ष को सपा की कलह में नजर आ रही खुद को राहत
लखनऊ : विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी कुनबे में मचे घमासान पर नजर लगाए विपक्षी दलों को प्रदेश सरकार की विदाई के साथ अपनी जीत के आसार भी दिख रहे हैं।
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बाप-बेटे की ड्रामेबाजी : बसपा
बसपा प्रमुख मायावती ने समाजवादी सरकार में जारी उठापटक को बाप बेटे की ड्रामेबाजी करार देते हुए आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव से पहले अपनी खामियां छिपाने के लिए ही दिखावटी नाटकबाजी कर जनता को भ्रम में डाला जा रहा है।
प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने आरोप लगाया कि दो मंत्रियों को घोर भ्रष्टाचार के मामलों में बर्खास्त कर देने से प्रदेश सरकार का महापाप कम नहीं हो पाएगा। गायत्री प्रजापति व राजकिशोर सिंह जैसे भ्रष्टाचार में फंसे लोगों को संरक्षण देने की समाजवादी पार्टी में पुरानी परंपरा है। भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की रिपोर्ट को दबाए रखने वाली सरकार से राज्यपाल द्वारा बार-बार पूछने पर भी कोई कार्रवाई न हो पाना समाजवादी नेतृत्व की मंशा को दर्शाता है। मायावती का कहना है कि बसपा शासन में ऐसे मामलों पर तत्काल सख्त कार्रवाई की जाती थी।
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मुख्यमंत्री को पद छोडऩे का निर्देश दें मुलायम: भाजपा
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के अनुसार मुलायम सिंह बुरी तरह फेल सपा सरकार से जनता का ध्यान हटाने के लिए ही अपने पुत्र व मुख्यमंत्री की छवि बचाने का नाटक कर रहे हैं जबकि अखिलेश से इस्तीफा देने के लिए कहना चाहिए। सैफई परिवार जनधन की लूट, अराजकता व अपराधवृद्धि से त्रस्त जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है।
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जनता को फैसला करने दें : कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का कहना है कि समाजवादी घमासान की वजह भ्रष्टाचारी व सत्ता के भूखे लोगों की अतिमहत्वाकांक्षा है। 27 साल से प्रदेश की जनता बदहाली झेलती चली आ रही हैं। सरकारी धन की लूट, भ्रष्टाचार व जमीनों के कब्जे के माहिर दलों से छुटकारे का जनता ने मन बना लिया हैं। विदाई की वेला पर समाजवादी कुनबे में बिखराव भी दिख रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश को चाहिए कि त्यागपत्र दे कर जनता के बीच जाने का साहस दिखाए।
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डूबती नाव के सवारों में कलह : लोकदल
राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डा. मसूद अहमद का कहना है कि जिस तरह डूबती नाव के सवारों में कलह होती है उसी तरह से आकंठ भष्ट्राचार डूबे समाजवादी कुनबे की आपसी रार जनता के सामने आ रही है।
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बड़बोले सिंघल के जाने से सुकून
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-बेढंगी कार्यशैली और बड़बोलापन सिंघल को ले डूबा
-बॉस को हटाये जाने पर नौकरशाही में तरह-तरह की चर्चाएं
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लखनऊ : सत्तर दिन के अपने अत्यंत संक्षिप्त कार्यकाल में कड़कमिजाजी के शोशे छोडऩे और मातहतों को गाहे-बगाहे 'आइ एम द बॉसÓ का अहसास कराने वाले दीपक सिंघल को मुख्य सचिव पद से हटाये जाने पर बुधवार को नौकरशाही में चर्चाएं सरगर्म रहीं। उनसे ब्यूरोक्रेसी के बॉस की कुर्सी छिनने पर ज्यादातर नौकरशाहों की आंखों में सुकून झलका तो कई ने इसे 'यह तो होना ही थाÓ के अंदाज में बयां किया। ज्यादातर नौकरशाहों का मानना है कि मुख्य सचिव के तौर पर उनकी अधिनायकवादी कार्यशैली और बड़बोलापन ही उन्हें ले डूबा।
बीती छह जुलाई को जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सिंघल को नौकरशाही की कमान सौंपी थी तो सत्ता प्रतिष्ठान में हर आम-ओ-खास को यह बखूबी इल्म था कि सरकार के मुखिया ने कलेजे पर पत्थर रखकर यह फैसला किया है। सिंघल की 'शोहरतÓ और कार्यशैली को जहां मुख्यमंत्री पसंद नहीं करते थे, वहीं कुछ विशिष्ट लोगों के प्रति उनकी निष्ठा को लेकर वह सशंकित भी थे। दबाव में ही सही, उन्होंने सिंघल को मुख्य सचिव बनाया और उनकी आशंकाएं सच साबित होती गईं। उधर सिंघल ने भी पहले दिन से खुद को सुपर बॉस साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बुधवार को सचिवालय में वरिष्ठ आइएएस अफसरों के कमरों से लेकर गलियारों तक लोग यह चर्चा करते रहे कि मुख्य सचिव रहते कैसे सिंघल बैठकों में पहुंचने वाले विशेष सचिवों को डपटकर मीटिंग रूम से बाहर कर दिया करते थे। इस बात की भी चर्चा रही कि कई बार बैठकों के एजेंडे से इतर वह अधिकारियों से अपनी व्यक्तिगत रुचि की जानकारियां हासिल करते और उसे डायरी में नोट करते। बैठकों में दबाव डाल कर महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर दस्तखत करवा लेने का उनका तरीका महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कई वरिष्ठ नौकरशाहों को बेहद नागवार गुजरा और कुछ ने तो इसकी शिकायत 'ऊपरÓ भी की। यह कहते हुए कि यह कार्यशैली शासकीय पद्धति के खिलाफ है। यही वजह थी कि बॉस के रूप में सिंघल ज्यादातर नौकरशाहों के गले नहीं उतर रहे थे। नोएडा-ग्रेटर नोएडा के मामलों में उनकी दिलचस्पी और सक्रियता की खबरें भी सत्ता शीर्ष तक पहुंचती रहीं।
सिंघल का बड़बोलापन भी चर्चा का विषय रहा। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कई कार्यक्रमों में उनकी जुबान फिसली। मसलन एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जाते-जाते तोहफा देना चाहते हैं। हालांकि उन्होंने बीच में ही बात संभाली लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था। एक अन्य कार्यक्रम के दौरान उन्होंने आपस में गुफ्तगू करते मुख्यमंत्री और मुख्य सलाहकार आलोक रंजन को टोक कर उनका ध्यान अपने संबोधन की ओर आकृष्ट किया। इतने पर ही नहीं रुके और आलोक रंजन से कहा कि 'सलाहकार महोदय, आप सलाह बाद में दे दीजिएगा।Ó इस पर बगल में बैठे मुख्यमंत्री का चेहरा तन गया था। चाहे अफसरों को जेल भेजवाने का उनका चर्चित बयान रहा हो या थानेदारों को सीधे फोन कर कानून व्यवस्था का फीडबैक लेने का शोशा, सत्ता प्रतिष्ठान में इन्हें सुर्खियां बटोरने का सस्ता तरीका ही समझा गया। बैठकों में उन्हें कई बार यह कहते हुए भी सुना गया कि गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट मुख्यमंत्री की योजना है लेकिन उससे पहले यह मेरी योजना है।
इन चर्चाओं के बीच नये मुख्य सचिव राहुल भटनागर बुधवार को अपनी नई जिम्मेदारी के तहत मीटिंगों और समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना की लांचिंग के कार्यक्रम में व्यस्त रहे। उन्होंने राजभवन जाकर राज्यपाल राम नाईक से भी शिष्टाचार भेंट की।
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बहुत दिनों से सुलग रही थी चिंगारी
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-भ्रष्टाचार विरोधी छवि को मजबूत करने में जुटे अखिलेश
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लखनऊ : अखिलेश यादव अब सियासी राह में रोड़ा बनते लोगों को न सिर्फ हटा रहे हैं बल्कि अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को मजबूत करने में जुट गए हैं। अतिरेक कहीं देखने को मिलता है तो शिवपाल यादव के मामले में। चाचा के विभागों में कटौती कर अखिलेश ने खुद ही बगावती सुरों को हवा दे दी है। चुनाव में इसके नतीजे खराब भी हो सकते हैं।
मुलायम सिंह ने डैमेज कंट्रोल का जो नुस्खा इस बार अपनाया है, वह उलटा पड़ सकता है। मुलायम ने मंत्रियों की बर्खास्तगी को हरी झंडी देकर तो अखिलेश की बेदाग छवि का सफल संदेश दे दिया मगर शिवपाल मामले में वह चूक गए। शिवपाल के विभागों में कटौती की भरपाई उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर नहीं हो सकती। यही एक कदम पूरे घटनाक्रम को जल्दबाजी का फैसला करार दे रहा है। जब अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने की बात हुई थी, तब अंदर खाने कई वरिष्ठ सपाई नाखुश थे जिनकी आवाज में शिवपाल यादव ने हां में हां मिलाई थी। अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सत्ता के समानांतर केंद्र विकसित होते रहे जिन्हें समाजवादी परिवार के अंदर भी लोग हवा देते रहे। चूंकि परिवार का एक हिस्सा अघोषित रूप से शिवपाल और दूसरा अखिलेश के साथ रहा, इससे दोनों के बीच की खाई बढती चली गई। ऊपर से बर्खास्त मंत्री गायत्री प्रजापति के परिवार के अंदर बढ़ते दखल से भी कुनबे की रार में इजाफा हुआ।
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घर में पक्ष-विपक्ष
ऐन चुनाव के मौके पर सपा परिवार के लिए विकट चुनौती है। हालात यह हैं कि पक्ष और विपक्ष घर ही में दिख रहे हैं। उलझाव ऐसा कि विरोधी पार्टियों को अब हमलावर होना ही नहीं पड़ रहा है। पार्टी कार्यकर्ताओं को जब क्षेत्र में जुटने की जरूरत है तो ऐसे नाजुक मौके पर वह अंदरखाने मचे तमाशे का क्लाइमेक्स देख रहे हैं। पिछले चार साल का घटनाक्रम देखें तो साफ हो जाता है कि सपा परिवार में उपजे विवादों के बीज चार साल पहले ही पड़ गए थे। एक तरफ प्रोफेसर रामगोपाल और अखिलेश रहे तो दूसरी ओर शिवपाल। दोनों ही पक्ष एक दूसरे को मात देने का मौका तलाशते रहे और वार भी करते रहे। कौमी एकता दल के विलय को नकार अखिलेश गुट ने बढ़त बनाई तो शिवपाल गुट ने प्रो. रामगोपाल समर्थित एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अवैध कब्जों की जांच का मामला छेड़ दिया। शह मात का यह खेल अब निर्णायक मोड़ पर है।
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 मुख्यमंत्री आवास 'पांच कालिदासÓ पर बढ़ी सतर्कता
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-मीडियाकर्मियों के भी मोबाइल बाहर रखवाए गये
- पहले से आयोजित दो कार्यक्रम निरस्त
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लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पांच कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास का माहौल बदला-बदला सा दिखा। मुख्यमंत्री ने पूर्व निर्धारित दो कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया और इस बीच वहां आने-जाने वालों पर कड़ी निगाहें लगी रहीं। यहां तक कि मीडिया के लिए भी प्रतिबंध रहा।
मुख्यमंत्री ने बुधवार को अपने आवास पर पीडब्लूडी की सड़कों के सिलसिले में एक सरकारी कार्यक्रम आयोजित किया था। मंगलवार को शिवपाल सिंह यादव से पीडब्लूडी विभाग छीने जाने के बाद यह कार्यक्रम तय हुआ लेकिन बुधवार को इसे निरस्त कर दिया गया। हिन्दी संस्थान का भी एक कार्यक्रम निरस्त किया गया। दोनों कार्यक्रम रद हुए तो एक बार यह चर्चा उठी कि मुख्यमंत्री मीडिया को फेस नहीं करना चाहते पर कुछ ही समय बाद उन्होंने हाल ही में डेंगू की चपेट में आने से मृत अनुदेशक को दस लाख मुआवजा देने के लिए बुलाया तो मीडिया को भी आमंत्रित किया गया। वहां जाने पर सिर्फ कुछ छायाकारों को ही प्रवेश मिला। बाकी पत्रकारों को रोक दिया गया। इसके बाद सिने स्टार नवाजुद्दीन सिद्दीकी को समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया तो भी बहुत कम लोगों को प्रवेश मिला। जो फाइव केडी के अंदर जा सके उनके भी मोबाइल बाहर ही रखवा लिए गए।
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'यह परिवार का नहीं, सरकार का झगड़ाÓ
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बोले अखिलेश
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-घर के बाहर के लोग हस्तक्षेप करेंगे, तो पार्टी कैसे चलेगी
-नेताजी के कहने पर लिये निर्णय लेकिन कुछ फैसले मेरे
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लखनऊ : दो दिन से प्रदेश सरकार और समाजवादी परिवार में चल रहे घमासान के बाद बुधवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुप्पी तोड़ी। उन्होंने साफ कहा कि यह परिवार का नहीं सरकार का झगड़ा है।
पिछले सप्ताह राजधानी में धरना दे रही कंप्यूटर अनुदेशक किरण सिंह की मौत के बाद उसके परिवारीजन को आर्थिक सहायता देने के लिए बुधवार को अपने सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह परिवार का झगड़ा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, ये सरकार का झगड़ा है। उन्होंने खुद ही कहा कि मुख्य सचिव को हमने हटाया। सरकार में हमने बदलाव किये। उन्होंने संकेत दिये कि मुख्य सचिव को हटाने के बाद ही पूरा विवाद शुरू हुआ था। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा कि घर के बाहर के लोग हस्तक्षेप करेंगे तो पार्टी कैसे चलेगी। बाहरी लोगों का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता। जहां तक नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की बात है तो उनकी बात कौन नहीं मानेगा? परिवार में नेता जी का सब कहना मानते हैं किंतु कभी-कभी कुछ निर्णय अपने आप भी लिये जाते हैं। मैंने नेताजी के कहने पर भी निर्णय लिये हैं और कुछ निर्णय स्वयं भी लिये हैं।
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'क्यूं भई चाचा! हां भतीजा!Ó
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-सोशल मीडिया पर छाई, चाचा-भतीजा की लड़ाई
-हैशटैग 'चाचावर्सेजभतीजाÓ व 'यादवपरिवारÓ हुए ट्रेंड
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लखनऊ : सूबे का सत्ता संग्राम सोशल मीडिया पर चाचा-भतीजे की लड़ाई के रूप में छाया रहा। हैशटैग 'चाचावर्सेजभतीजाÓ और 'यादवपरिवारÓ संग कटाक्ष किये गए।
चाचा-भतीजा की लड़ाई को 1977 में आई मनमोहन देसाई की फिल्म 'चाचा-भतीजाÓ से भी जोड़ा गया। धर्मेन्द्र और रणधीर कपूर अभिनीत इस फिल्म का एक गीत 'बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यूं भई चाचा हां भतीजाÓ खूब चर्चित हुआ था। समाजवादी परिवार में चल रहे घमासान को सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों ने चाचा-भतीजा के बीच विवाद का नाम देकर इस फिल्म का उदाहरण भी दिया। रणधीर कपूर व धर्मेन्द्र की फोटो के साथ शिवपाल व अखिलेश की फोटो लगाकर लिखा गया, 'और एक ये चाचा भतीजा हैंÓ। ट्विटर पर कोई इसे 'ब्रांड अखिलेशÓ से जोड़ रहा था, तो किसी ने 'हिस्ट्री इन द मेकिंगÓ बताकर लिखा कि मुलायम अब अपने बेटे को निर्विवाद नेता बना देना चाहते हैं। एक ट्वीट में इस पूरे घटनाक्रम को 'बुरे काम का बुरा नतीजाÓ करार दिया गया, वहीं अखिलेश समर्थक उन्हें 'क्लीन इमेजÓ वाला बताते भी दिखे। फेसबुक व ट्विटर पर तमाम लोग इस लड़ाई को कांग्र्रेस व भाजपा के लिए फायदेमंद बताते हुए दिखे। किसी ने कहा कि चाचा-भतीजा मंत्रालय व विभागों के लिए लड़ रहे हैं, साम्प्रदायिक भाजपा से लडऩे की फुर्सत किसी को नहीं है, ऐसे में कांग्र्रेस का ही फायदा होगी। एक अन्य अपडेट में 'यूपी मांगे भाजपा सरकारÓ के साथ लिखा गया कि चाचा-भतीजा आपस में लड़कर यूपी को पीछे ढकेल रहे हैं। ट्विटर पर कुछ देर के लिए हैशटैग 'अमर सिंहÓ भी ट्रेंड किया। लोगों ने अमर सिंह को 'ब्रोकरÓ व 'फैमिली ब्रेकरÓ तक बता दिया। एक अन्य हैशटैग 'यादवपरिवारÓ भी खूब ट्रेंड किया। किसी ने 'ओमशांतिओमÓ लिखकर शांति की अपील की, तो किसी ने लिखा, 'पूरा कुनबा चिडिय़ा उड़ खेल रहा हैÓ।
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नेता जी जो कहेंगे वही करूंगा : शिवपाल
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- चाचा-भतीजे के रिश्तों में खटास को नकारा
- कहा, संगठन की जिम्मेदारी संभालेंगे
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 इटावा : समाजवादी परिवार में चल रही सियासी उठापटक के बीच बुधवार को सैफई में सपा के प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री शिवपाल ङ्क्षसह यादव ने कहा कि वह नेता जी (मुलायम सिंह) का आदेश मानेंगे, जो वह कहेंगे वही करूंगा। स्वयं मंत्री पद से और उनके पुत्र अंकुर यादव पीसीएफ चेयरमैन पद से इस्तीफा देने का फैसला भी वह नेता जी से बातचीत के बाद करेंगे। कहा कि वह संगठन की जिम्मेदारी संभालेंगे और आने वाले चुनाव के लिए तैयारी में जुटेंगे।
बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में शिवपाल ने चाचा-भतीजे के रिश्तों में चल रही खटास को नकारते हुए कहा, यहां सब ठीक है। परिवार में नेता जी की बात कोई नहीं टाल सकता है। उन्होंने इशारों में मुख्यमंत्री को इंगित करते हुए कहा कि आपस में बहकाने व फूट डालने वाले लोग बहुत हैं, जिनसे हमें सावधान रहने की जरूरत है। जिम्मेदारी वाले पदों पर रहते हुए यह समझदारी बरतनी चाहिए। उन्हें तो कोई नहीं बरगला सकता परंतु दूसरों को भी यह बात समझनी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि वह अखिलेश यादव की सरकार के साथ हैं या पार्टी के साथ, उन्होंने कहा, हम समाजवादी पार्टी और नेता जी के साथ हैं। कई विभाग हटाये जाने पर कहा कि यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। कहा, अब तक जो लोग उपेक्षित पड़े थे उन्हें काम दिया जायेगा। चार साल में जो विकास कार्य हुए उनको लेकर जनता के बीच जाएंगे।
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परिवारीजन से किया विचार विमर्श
बदले हालात पर शिवपाल ने सैफई में परिवारीजन से विचार विमर्श किया। बुधवार तड़के करीब तीन बजे उनकी पत्नी सरला व पुत्र अंकुर यादव लखनऊ से सैफई पहुंच गये थे। शिवपाल के बहनोई अजंट ङ्क्षसह यादव सुबह उनसे मिलने पहुंचे। उनके छोटे भाई राजपाल ङ्क्षसह यादव व उनकी पत्नी प्रेमलता यादव भी पहुंचीं। मंगलवार रात जो नाराजगी का भाव उनके चेहरे पर दिखा था वह बुधवार सुबह बदला बदला नजर आया। नेता जी की बात के बाद वह काफी हद तक सामान्य दिखे।
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शिवपाल के समर्थन में नारेबाजी
सैफई का नजारा बुधवार सुबह बदला हुआ था। शिवपाल के समर्थन में सुबह पांच बजे से ही लोग जुटने लगे थे। भीड़ ने नारे लगाये शिवपाल तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं। अपरोक्ष रूप से कहीं न कहीं अपने घर में ही अपने समर्थकों की शक्ति का अहसास भी कराया गया। जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से आये सैकड़ों लोग सिर्फ शिवपाल से मिलना चाहते थे। शिवपाल जैसे ही पहुंचे लोग नारे लगाने लगे। भीड़ में शिवपाल को निकलने का रास्ता नहीं मिला तो वह माइक लेकर कार की बोनट पर चढ़ गये। बोले, जोश में होश बरकरार रखना है। नेता जी का आदेश सिर माथे है। उसी को माना जायेगा। इस बीच शिवपाल की मुलायम से फोन पर कई बार बातचीत हुई। उन्हें दिल्ली बुलाया गया। दोपहर में चार्टर्ड प्लेन से वह व अंकुर यादव दिल्ली चले गए। हालांकि सुबह लखनऊ या दिल्ली जाने को लेकर ऊहापोह की स्थिति रही।
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सियासी कलह से सकते में समर्थक, धड़कनें तेज
-शिवपाल और अखिलेश के अगले कदम पर टिकी निगाहें

मैनपुरी : प्रदेश में सत्ता और समाजवादी पार्टी में सियासी कलह ने पार्टी नेताओं की नींद उड़ा दी है। अपने ही गढ़ में धड़ों में बंटे सपाई ताजा राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर सकते में हैं। मंगलवार शाम से ही उनकी धड़कनें तेज हो गई हैं। शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अगले कदम पर सभी की निगाहें टिकी हैं। दोनों के समर्थक लखनऊ और दिल्ली में डेरा डाले हैं। सबसे ज्यादा ङ्क्षचता उन्हें है, जो विधानसभा टिकट की दौड़ में हैं।
मैनपुरी सपा का गढ़ है। छोटे से लेकर सभी बड़े राजनीतिक पदों पर सपा का कब्जा है। ये राजनीतिक विडंबना है कि जिस क्षेत्र को सपा मुखिया मुलायम ङ्क्षसह यादव की कर्मभूमि माना जाता है, वहां वर्षों से उनकी ही पार्टी धड़ों में बंटी है। पार्टी के दो बड़े नेताओं के बीच की खटपट भले ही सार्वजनिक नहीं हुई, लेकिन उनके समर्थक यहां दो-दो हाथ करने से पीछे नहीं रहे। मंगलवार को सत्ता और पार्टी में आए सियासी भूचाल ने यहां भी समर्थकों को हिलाकर रख दिया। कैबिनेट मंत्री शिवपाल ङ्क्षसह यादव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का एलान हुआ, तो शिवपाल यादव समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ी, लेकिन कुछ ही देर बाद उनसे महत्वपूर्ण विभाग छीने जाने की खबर आई, तो मायूस हो गए। मंगलवार देर रात शिवपाल सैफई में अपने आवास पर पहुंचे, तो बड़ी संख्या में उनके समर्थक वहां पहुंच गए। दरअसल, मैनपुरी में जमीनी नेता के रूप में शिवपाल यादव की पहचान है। जिले में सपा मुखिया के बाद उनकी कार्यकर्ताओं में अधिक पकड़ है। विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। ऐसे में टिकट की चाह रखने वाले ङ्क्षचतित हैं। राजनीतिक हालात पर हर पल नजर रख रहे हैं।
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 नहीं लगा जनता दरबार, निराश लौटे फरियादी
- फरियादियों से कहा गया अब दरबार दो हफ्ते बाद लगेगा
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लखनऊ : गोद में छोटी बच्ची और लाठी के सहारे एक पैर पर चलती पत्नी के साथ अरविंद कुमार दुबे मंगलवार रात ही लखनऊ पहुंच गए थे। बड़ी उम्मीद लेकर आए अरविंद ने स्टेशन पर रात काटी और सुबह सात बजे कालीदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंच गए। बारिश में तीन घंटे इंतजार किया, लेकिन 10 बजे जब पता चला कि मुख्यमंत्री का जनता दरबार नहीं लगेगा तो निराश लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था।
सरकार और समाजवादी परिवार में खींचतान बुधवार को प्रदेश भर से यहां आए फरियादियों की पीड़ा पर भारी पड़ी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुधवार के अपने दो सरकारी कार्यक्रम निरस्त किए तो उनका जनता दरबार भी इसकी भेंट चढ़ गया। दूरदराज से गुहार लेकर आए फरियादी यह बताए जाने के बाद भी काफी देर तक बैठे रहे कि मुख्यमंत्री का जनता दरबार अब दो हफ्ते बाद लगेगा, फिर धीरे-धीरे वापस लौट गए। कन्नौज के अरविंद भी इनमें से एक थे। वह अपेक्षा लेकर आए थे कि मजदूरी करके जिस विकलांग पत्नी को बीएससी, एमए और बीएड कराया, उसे शिक्षक की नौकरी और रहने को आवास की प्रार्थना प्रदेश के सबसे बड़े दरबार में जरूर सुनी जाएगी।
इसी तरह सीतापुर की चंद्रकाली बुधवार के दरबार के इंतजार में कई दिनों से सपा के प्रदेश कार्यालय के बाहर टिकी थी, लेकिन आखिरकार उसे निराश लौटना पड़ा। विकलांग पुत्र के लिए वह मुख्यमंत्री से आर्थिक मदद की आस में लखनऊ पहुंची थी। मऊ की दोहरीघाट निवासी और लखनऊ में रह कर पढऩे वाली ओजस्वी राय भी गांव में पड़ोसियों के उत्पीडऩ और कब्जा करने के प्रयास की शिकायत लेकर मुख्यमंत्री आवास पहुंची थी। बाराबंकी निवासी विकलांग सुनीता देवी भी निराश लौटने वाले लोगों में शामिल थीं। सुनीता अपने लिए आर्थिक मदद और ससुराल पक्ष द्वारा सताई जा रही जेठ की बेटी के लिए इंसाफ मांगने आई थीं।
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