12sept 2016
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-अवैध खनन पर हाई कोर्ट का सख्त रुख देख मुख्यमंत्री ने गायत्री प्रजापति को हटाया
-भ्रष्टाचार और जमीन कब्जे की शिकायतें बनीं राज किशोर सिंह की विदा का सबब
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लखनऊ : भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और पंचायती राज, पशुधन व लघु सिंचाई मंत्री राजकिशोर सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से सोमवार को बर्खास्त कर दिया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सिफारिश पर राज्यपाल राम नाईक ने दोनों मंत्रियों को बर्खास्त किया है। अवैध खनन को बढ़ावा देने पर मुख्यमंत्री गायत्री से अरसे से नाराज थे जबकि जमीन कब्जा करने और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण राजकिशोर भी उनके निशाने पर थे।
बर्खास्त किये गए गायत्री को जहां सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का करीबी बताया जाता है, वहीं राजकिशोर मंत्री शिवपाल सिंह यादव के नजदीक रहे हैं। दोनों मंत्रियों की बर्खास्तगी को सरकार की छवि सुधारने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। बहुचर्चित गायत्री प्रजापति की बर्खास्तगी हाई कोर्ट द्वारा प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच के अपने आदेश को वापस लेने के सरकार के अनुरोध को नामंजूर करने के तीन दिन बाद हुई है। हाईकोर्ट ने नौ सितंबर को उस एप्लीकेशन को खारिज कर दिया था जिसमें सरकार ने अदालत से प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच के अपने आदेश को वापस लेने का आग्रह किया था। हाई कोर्ट ने 28 जुलाई को प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच कराने का आदेश दिया था। माना जा रहा है कि अवैध खनन को लेकर शासन की खराब होती छवि और इस मुद्दे पर हाई कोर्ट के आदेश से शासन के लिए उपजी असहज स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री गायत्री को बर्खास्त करने के लिए मजबूर हुए।
मंत्रियों के खिलाफ मुख्यमंत्री की यह कार्रवाई हाल ही में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के उस बयान के बाद आयी है जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि सपा सत्ता में वापसी चाहती है तो उसे जमीन कब्जा करने वालों और भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी नेताओं से छुटकारा पाना होगा।
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बर्खास्त मंत्रियों के विभाग बांटे
दोनों मंत्रियों को बर्खास्त करने के साथ ही मुख्यमंत्री ने उनके विभाग भी बांट दिये हैं। समाज कल्याण मंत्री राम गोविंद चौधरी को पंचायती राज विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है जबकि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मूलचंद चौहान को भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। वहीं लघु सिंचाई और पशुधन विभाग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अधीन होंगे।
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बर्खास्तगी से सीएम ने दिखाए तेवर
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-कोई अवरोध बर्दाश्त करने के मूड में नहीं अखिलेश
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लखनऊ : विपक्ष भले ही सपा सरकार के दो मंत्रियों की बर्खास्तगी को नाटक करार दे रहा है लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने देर से ही सही, तेवर दिखाए हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उनका यह फैसला कम से कम इस बात का संकेत है कि अब उनकी मर्जी भी चलने लगी है और अब अखिलेश सख्ती के मूड में हैं। मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी इसका नमूना है।
सत्ता में अपनी अहमियत के लिए पहचान रखने वाले गायत्री प्रसाद प्रजापति मुख्यमंत्री की नापसंदगी के बावजूद अरसे से मंत्री बने हुए थे। वह सार्वजनिक स्थलों पर भी बेजा टिप्पणी करने से बाज नहीं आते थे और उनकी कारनामे भी सुर्खियां बनते रहे। जाहिर है चुनाव से पहले उन्हें किनारे कर मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। गायत्री के संरक्षणदाताओं के नाम भी छिपे नहीं हैं। लेकिन, इनकी परवाह ने करते हुए बर्खास्तगी का फैसला लिया गया तो निसंदेह इसमें बड़ी रणनीति छिपी है।
दूसरे मंत्री राजकिशोर की भी स्थिति कुछ ऐसी ही रही। विधान परिषद सदस्य के चुनाव और उसके पहले जिला पंचायत चुनाव में भी राजकिशोर ने अपने भाई के लिए जिस तरह सपा नेतृत्व पर दबाव बनाया और बदले में भाई के लिए पद और खुद के लिए एक महत्वपूर्ण मंत्रालय हासिल किया वह मुख्यमंत्री को नागवार लगा था। शिकायतें भी इनकी खूब हुईं। चुनाव मैदान में जाने से पहले मुख्यमंत्री ने इन्हें किनारे करना ही श्रेयस्कर समझा।
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बर्खास्त मंत्रियों के भविष्य पर सवालिया निशान
यूं तो समाजवादी पार्टी ने अभी यह साफ नहीं किया है कि गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह सपा में बने रहेंगे या नहीं लेकिन मुख्यमंत्री के तेवर से स्पष्ट हो गया है कि विधानसभा चुनाव में इन्हें वह शायद ही मौका दें। अमेठी के विधायक प्रजापति ने अमीता सिंह को चुनाव हराकर पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद उनका संजाल फैलता गया। राजकिशोर सिंह बस्ती के हरैया विधानसभा क्षेत्र से कई बार चुनाव जीते और अपनी सुविधा अनुसार दल भी बदलते रहे हैं। मुख्यमंत्री अगर दोनों बर्खास्तगी से साफ सुथरी छवि का संदेश देना चाहते हैं तो जाहिर है कि इनको उम्मीदवार बनाने से परहेज करेंगे। हालांकि समाजवादी पार्टी में फैसलों के ऊपर भी फैसलों की रवायत है, इसलिए किसी भी तरह की गुंजायश से इन्कार नहीं किया जा सकता है। संभव है कि दोनों सपा के ही टिकट पर चुनाव लड़ जाएं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री फिलहाल तो दोनों को सपा उम्मीदवार बनाने के मूड में नहीं है।
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पहले भी चली बर्खास्तगी की तलवार
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-करीब डेढ़ दर्जन मंत्रियों को साढ़े चार वर्ष में बर्खास्त कर चुके अखिलेश
-कई दोबारा शपथ लेने में भी हुए कामयाब
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ऐन चुनाव से पहले मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी ने सूबे का सियासी ताप जरूर बढ़ा दिया है लेकिन, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में करीब 15 मंत्रियों पर बर्खास्तगी की तलवार चलायी है।
वर्ष 201& में एक महिला आइएएस अधिकारी पर खादी ग्रामोद्योग मंत्री राजाराम पांडेय ने टिप्पणी की तो पूरे देश में इसकी निंदा शुरू हो गयी। मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लिया और पांडेय को बर्खास्त कर दिया। अखिलेश सरकार में पांडेय सबसे पहले बर्खास्त होने वाले मंत्री रहे। बाद में उनका निधन हो गया। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2014 में अदालती आरोपों से घिरे मंत्री मनोज पारस और सियासी दांव-पेंच के तहत कृषि मंत्री आनन्द सिंह को भी बर्खास्त किया। अयोध्या से चुनाव जीते और मुख्यमंत्री के करीबी रहे पवन पांडेय की शिकायतें कुछ ज्यादा बढ़ गयीं तो उन पर भी बर्खास्तगी की तलवार चली। पांडेय पर अवैध खनन रोकने गये एक आइपीएस अधिकारी के साथ अभद्रता का आरोप लगा था। स्टांप तथा न्याय शुल्क पंजीयन व नागरिक सुरक्षा मंत्री महेन्द्र अरिदमन सिंह, पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अंबिका सिंह, वस्त्र उद्योग मंत्री शिवकुमार बेरिया, खेल मंत्री नारद राय, प्राविधिक शिक्षा मंत्री शिवाकांत ओझा, प्राविधिक शिक्षा राज्य मंत्री आलोक शाक्य और बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री योगेश प्रताप के अलावा स्वतंत्र प्रभार के लघु उद्योग मंत्री भगवत शरण गंगवार को भी मुख्यमंत्री ने बर्खास्त किया। यह अलग बात है कि कई लोगों को फिर मौका भी मिला। हाल में मंत्री मनोज पांडेय को भी मुख्यमंत्री ने बर्खास्त कर दिया। सर्वाधिक सुर्खियों में माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव की बर्खास्तगी रही जिन्हें कुछ ही दिनों बाद दोबारा शपथ दिलाकर वही विभाग लौटा दिया गया। देखा जाए तो मुख्यमंत्री ने कई मंत्रियों से इस्तीफे भी लिए। कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या के बाद रघुराज प्रताप सिंह या फिर गोंडा में अधिकारियों से अभद्र व्यवहार पर विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह का इस्तीफा भी मुख्यमंत्री के अनुकूल रहा। हालांकि इन दोनों की मंत्रिमंडल में वापसी हो गयी। अपने कार्यकाल में अखिलेश मुस्लिम मंत्रियों पर मेहरबान रहे। उन्होंने किसी मुसलमान मंत्री पर बर्खास्तगी की कार्रवाई नहीं की।
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गायत्री के लिए मुसीबत बनेगी सीबीआइ जांच
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-हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हो गयी गायत्री की उल्टी गिनती
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लखनऊ : सरकार नहीं चाहती थी कि अवैध खनन की सीबीआइ जांच हो लेकिन हाईकोर्ट नहीं मानी। इसी के साथ सत्ता प्रतिष्ठान में खलबली मची और खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। दरअसल, खनन विभाग में जिस तरह नियमों की अनदेखी की गयी उससे यह तो साफ था कि जिम्मेदार लोग इसके दायरे में आएंगे।
गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन विभाग संभालने के कुछ दिनों बाद ही विवादों में आ गये। उन पर विपक्षी दलों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गंभीर आरोप लगाए। खनन माफिया का नेटवर्क बनाकर पूरे प्रदेश में अवैध ढंग से बालू खनन किया गया। पर्यावरणविद और कई प्रमुख लोग गायत्री के खिलाफ सड़क पर उतरे लेकिन सपा मुखिया खुद उनके बचाव में आते रहे। दिलचस्प यह कि जब मुलायम सिंह यादव मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नसीहत देते तब गायत्री उनकी बगल में मौजूद होते। मंत्रियों को हटाने, विभाग बदलने और बर्खास्तगी तक के दौरान गायत्री का नाम कई बार आया लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई।
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मुलायम ने दी हरी झंडी
मुलायम सिंह यादव ने बर्खास्तगी पर भले ही अनभिज्ञता जतायी हो लेकिन, यह चर्चा बड़े दावे के साथ की जा रही है कि दिल्ली की एक पार्टी में मुलायम की सहमति के बाद ही गायत्री और राजकिशोर की बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि बनी। गायत्री के बारे में एक शीर्ष अफसर ने मुलायम को ब्यौरा दिया। इसमें दो और कद्दावर शामिल थे जबकि राजकिशोर का नाम भी किसी जांच में सामने आ रहा है। इसलिए उन्हें किनारे लगाने की बात तय हुई।
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लोकायुक्त से क्लीन चिट
गायत्री प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त के यहां चार जांचें थी जो अब बंद हो चुकी हैं। इसके बाद से गायत्री प्रसाद प्रजापति के तेवर और तीखे हो गये थे। इस दौरान अवैध खनन में भी खूब तेजी आयी। गायत्री के खिलाफ शिकायत करने वाले कई शिकायतकर्ता बदल गये। अलबत्ता सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने गायत्री के खिलाफ लोकायुक्त से की गयी शिकायत को लेकर लगातार सक्रियता दिखाई।
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एसआइटी जांच की मांग
नूतन ठाकुर ने लोकायुक्त से 26 दिसंबर 2014 को गायत्री प्रजापति की शिकायत की। 25 मई 2015 को लोकायुक्त ने प्रजापति को क्लीन चिट दे दी। इसके बाद नूतन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में प्रजापति की संपत्ति की एसआइटी जांच के लिए याचिका दाखिल की। यह याचिका कोर्ट में लंबित है।
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नौकरों के नाम संपत्ति
नूतन ने गायत्री के सिंडीकेट में विकास वर्मा, पिंटू यादव और पिंटू सिंह को प्रमुख सहयोगी बताया है। गायत्री के पुत्र अनिल प्रजापति और अनुराग प्रजापति, पुत्री सुधा और अंकिता तथा पत्नी महराजी के नाम संपत्ति है। उनकी महिला सहयोगी गुड्डा, गुड्डा की बहन पूनम, भाई रमाशंकर और जगदीश प्रसाद, ड्राइवर राम सहाय, सहयोगी रामराज, सुरेन्द्र कुमार बैठा, प्रमोद कुमार सिंह, सरोज कुमार, जन्मेजय खरवार और देवतादीन के नाम नूतन की शिकायत में प्रमुखता से आये हैं।
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गायत्री के लोगों की कंपनी
एक-डीसेंट कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली (निदेशक-अनिल प्रजापति) दो- लाइफ क्योर मेडिकल एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली (निदेशक-अनिल प्रजापति) तीन-एमजी कोलोनाइजर, (पूर्व निदेशक- गायत्री प्रजापति, बाद में पुत्र अनिल प्रजापति) चार- शुभांग एक्सपोर्ट लिमिटेड, कोलकाता (निदेशक- अनिल प्रजापति) पांच- ड्रीम डेस्टिनेशन इन्फ्रा-लैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, लखनऊ (निदेशक-आलोक श्रीवास्तव) छह-पावनी देवेलोपेर्स प्राइवेट लिमिटेड (निदेशक- विकास वर्मा) सात- वैष्णो इन्फ्राहाइट्स प्राइवेट लिमिटेड (निदेशक-विकास वर्मा)।
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तय था सरकार तक पहुंचेगी जांच की आंच
'नदियों से अवैध खनन की शिकायतें आ रही हैं लेकिन सरकार को दिखाई नहीं दे रहा। अवैध खनन की सूचना न होना, आंखों में धूल झोंकने जैसा है।Ó
-इलाहाबाद हाईकोर्ट-28 जुलाई, 2016
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-खनन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाओं की भरमार
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प्रदेश में अवैध खनन का मुद्दा हाईकोर्ट में आने के बाद ही तय हो गया था कि इसकी जांच की आंच सरकार तक पहुंचेगी। यही वजह है कि सीबीआइ जांच रोकने के लिए सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन अधिकारियों के विरोधाभासी बयान ही उसके आड़े आ गए।
प्रदेश में अवैध खनन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक दर्जन से अधिक याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाएं देवरिया, संभल, बदायंू, बागपत, कौशाम्बी, शामली, जालौन, बांदा, हमीरपुर, सहारनपुर, मिर्जापुर आदि जिलों से दाखिल हुई हैं। सीबीआइ जांच का आदेश अमर सिंह व अन्य दर्जनों याचिकाओं की सुनवाई में 28 जुलाई को दिया गया था। उस वक्त कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी कि नदियों में अवैध खनन हो रहा है और सरकार को दिखाई नहीं दे रहा। तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वीके शुक्ल तथा न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह तक कह दिया था कि अधिकारी आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। कोर्ट ने सीबीआइ से आठ सितंबर तक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट मांगी थी।
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हठधर्मिता से किरकिरी
इसके बाद सरकार ने इस आदेश को रीकॉल किए जाने की अर्जी दी और जांच पर रोक लगाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। सरकार जांच रोकने के लिए किस हद तक गंभीर थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासकीय अधिवक्ताओं की फौज तो कोर्ट में खड़ी ही हुई, सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन तक को बुलाया गया। सरकार ने बहुत दलील दी कि कोर्ट का आदेश एकतरफा है और उसका पक्ष नहीं सुना गया लेकिन इस सवाल का जवाब न दिया जा सका कि आखिर सीबीआइ जांच में आपत्ति क्या है। कोर्ट में याचियों की ओर से अवैध खनन के फोटोग्र्राफ पेश किए जा चुके थे।
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विरोधाभासी बयान
प्रमुख सचिव की ओर से कहा गया कि प्रदेश में कहीं भी अवैध खनन नहीं हो रहा है। दूसरी और सरकार की ओर से ही कहा गया कि अवैध खनन रोकने के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं और कई ट्रक पकड़े भी गए हैं।
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अवमानना की भी परवाह नहीं
इलाहाबाद : अफसरों ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया ही नहीं। मसलन हमीरपुर के एडीएम ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि उनके यहां अवैध खनन नहीं हो रहा। इस अदालत ने दो एडवोकेट कमिश्नर वहां पड़ताल के लिए भेज दिए। उन्होंने एडीएम की रिपोर्ट को झूठा पाया। इस पर कोर्ट खफा हुई और डीएम को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए लिखा।
सहारनपुर में अवैध खनन के नाम पर जब्त बालू का मामला सामने आया। प्रशासन ने बिना नीलामी के ही उन्हीं लोगों को बालू ले जाने की छूट दे दी जिनसे जब्त की गई थी। तीन दिन पहले ही कोर्ट ने सहारनपुर के डीएम और प्रमुख सचिव खनन को तलब किया है।
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बाजीगरी और विवादों से गलबहियां
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-आरोपों के चलते सुर्खियों में बने रहे गायत्री प्रजापति
लखनऊ : गायत्री प्रसाद प्रजापति ने कामयाबी की सीढिय़ां तेजी से चढ़ीं। सपा मुखिया मुलायम का वरदहस्त उन्हें हासिल रहा। भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों ने उन्हें सुर्खियों का विषय बनाया तो अपने खिलाफ शिकायतों को भेदने में भी वह काफी कामयाब रहे।
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तीसरी कोशिश में बने विधायक
199& में बहुजन क्रांति दल के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार अमेठी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे वाले गायत्री प्रसाद प्रजापति तब महज 1526 वोट पाकर सातवें स्थान पर रहे थे। तीन साल बाद 1996 में उन्होंने सपा प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव में दोबारा भाग्य आजमाया और तीसरे पायदान पर रहे। तीसरे प्रयास में 2012 में हुए चुनाव में वह बतौर सपा उम्मीदवार कांग्रेस की अमीता सिंह को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे।
फरवरी 201& से जनवरी 2014 तक अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल का तीन बार विस्तार किया और तीनों बार शपथ लेने वाले गायत्री की स्थिति सरकार में पहले से मजबूत होती चली गई। पहली बार विधायक बने गायत्री को फरवरी 201& में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में सिंचाई महकमे का राज्य मंत्री बनाया गया। जुलाई 201& में मुख्यमंत्री ने उन्हें तरक्की देते हुए भूतत्व एवं खनिकर्म में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दर्जा दिया और जनवरी 2014 में उन्हें प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में 17 अति पिछड़ी जातियों को लामबंद करने के लिए बागडोर गायत्री को सौंपी गई।
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1.71 करोड़ की संपत्ति
गायत्री ने 2012 के विधानसभा चुनाव में दाखिल किये गए हलफनामे में अपनी अचल संपत्ति 1.21 करोड़ रुपये और चल संपत्ति 50.88 लाख रुपये दर्शायी थी।
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तड़क-भड़क और दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे
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-विवादों में रहना राजकिशोर सिंह का शगल
-लगते रहे हैं धनबल, बाहुबल के इस्तेमाल के आरोप
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लखनऊ : गले में सोने का मोटा लॉकेट, कलाई पर ब्रेसलेट, भड़कीली डिजाइन वाली शर्ट और पैरों में अक्सर सफेद तो कभी रंगीन चमकीले जूते। विधानभवन के लिफ्टमैन भी बखूबी जानते हैं कि यह हुलिया अखिलेश मंत्रिमंडल से सोमवार को बर्खास्त किये गए पंचायती राज, पशुधन और लघु सिंचाई मंत्री राजकिशोर सिंह का है।
राजकिशोर के दामन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़े जमीन घोटाले की जांच में उनका नाम आना उनकी बर्खास्तगी की अहम वजह माना जा रहा है। पंचायती राज विभाग में भर्तियों में घपले की शिकायतें रही हों या हाल ही में पंचायती राज और ग्राम्य विकास विभागों के बीच चली तनातनी, मुख्यमंत्री उनकी कार्यशैली से खुश नहीं थे। अखिलेश मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये गए प्राविधिक शिक्षा विभाग के पूर्व मंत्री शिवाकांत ओझा ने प्रतापगढ़ में चेकडैम घोटाले का आरोप लगाया था। इस मामले में भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।
बस्ती की हर्रैया सीट से 2002 में बसपा के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर आये राजकिशोर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व में बसपा-भाजपा की साझा सरकार में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाये गए थे। सत्ता से मायावती सरकार की बेदखली के बाद मुलायम सरकार बनवाने में राजकिशोर की अहम भूमिका रही थी। वह बसपा के 40 विधायकों के साथ सपा में शामिल हो गए थे। गाढ़े वक्त में की गई इस मदद का मुलायम ने भी उन्हें सिला दिया-अपनी सरकार में भी उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री का दर्जा देकर। वर्ष 2007 में राजकिशोर दोबारा हर्रैया सीट से बतौर सपा उम्मीदवार जीते। वर्ष 2007 में वह तीसरी बार विधायक बने। अखिलेश सरकार में भी वह उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाये गए लेकिन 2014 में उनका महकमा बदल कर उन्हें बदलकर लघु ङ्क्षसचाई मंत्री बना दिया गया। वर्ष 2014 में अपने भाई बृजकिशोर सिंह उर्फ डिंपल को बस्ती सीट से बतौर सपा प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जितवाने के लिए उन पर प्रशासनिक मशीनरी के दुरुपयोग के साथ धनबल और बाहुबल इस्तेमाल के भी आरोप लगे। पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में अपने सियासी रसूख को और बढ़ाते हुए वह बस्ती के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ शानू को बैठाने में कामयाब रहे। विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उनके भाई बृजकिशोर का टिकट काटा तो मुख्यमंत्री ने राजकिशोर को पंचायती राज विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंप कर और बृजकिशोर को ऊर्जा सलाहकार बनाकर भरपाई की।
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गवर्नर का पत्र 'ताबूत में आखिरी कीलÓ
पिछले सप्ताह कुछ लोगों ने राज्यपाल राम नाईक से मिलकर लिखित शिकायत की थी कि मंत्री राजकिशोर सिंह सहित सपा के कुछ नेताओं ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी है। सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखने के साथ ही बात भी की। ऐसे में राजकिशोर की बर्खास्तगी के पीछे नाईक के पत्र की भी अहम भूमिका मानी जा रही है।
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बर्खास्तगी नाकाफी, मुख्यमंत्री दें इस्तीफा
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-सरकार में आपरेशन क्लीन से विपक्ष संतुष्ट नहीं, साधा निशाना
लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा भ्रष्टाचार व अन्य आरोपों में फंसे दो कैबिनेट मंत्रियों को बर्खास्त करने से विपक्षी पार्टियां संतुष्ट नहीं है। कार्रवाई को अधूरी करार देते हुए विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री से त्यागपत्र देने की मांग की है।
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बर्खास्तगी की नौटंकी से अब कुछ नहीं होने वाला : राम अचल
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने मंत्रियों की बर्खास्तगी को अखिलेश सरकार की नौटंकी करार देते हुए कहा कि जनता सब समझ रही है। राजभर ने कहा कि सपा सरकार हर क्षेत्र में फेल हो गई है। अब जनता की नजर में छवि सुधारने के लिए इस तरह की नौटंकी करने से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि प्रदेश की जनता अबकी चुनाव में इनके झांसे में आने वाली नहीं है। राजभर ने दावा किया कि चुनाव में जनता सपा सरकार को उखाड़ फेंकेगी और सत्ता में बसपा की वापसी होगी।
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मुख्यमंत्री ने खुद को बचाने को किया बर्खास्तगी का नाटक : केशव
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने खुद को बचाने के लिए बर्खास्तगी का नाटक किया है। यह सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसा है। मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ थे तो हाईकोर्ट द्वारा खनन के भ्रष्टाचार की सीबीआइ जांच रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट क्यों गए? मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं सकते। केशव ने भाजपा में भ्रष्टाचारियों के लिए कोई जगह नहीं होने की बात भी कही।
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सुलतान को बचाने के लिए पियादों की बलि : राजबब्बर
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने दो मंत्रियों को बर्खास्त करने की कार्रवाई को छलावा बताया। आरोप लगाया कि सूबे के सुलतान को बचाने के लिए ही दो पियादों की बलि ली गयी। मुख्यमंत्री को सरकार की विदाई के समय भ्रष्टाचार नजर आया है। सरकारी सरंक्षण मिले बगैर इतने व्यापक स्तर पर अराजकता नहीं हो सकती है। छवि सुधार की कोशिश में लगी सपा अपने दामन को साफ नहीं कर सकेगी क्योंकि जनता ने प्रदेश में बड़े बदलाव का मन बना लिया है। बेहतर यही है कि मुख्यमंत्री नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दें और जनादेश प्राप्त करने के लिए जनता के बीच में जाएं।
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भ्रष्टाचारियों को अब तक क्यों बचाया : डा. मसूद
राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डा. मसूद अहमद ने मुख्यमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्रियों की बर्खास्तगी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अखिलेश यादव जनता को बताए कि भ्रष्टाचारियों को अब तक क्यों बचाए रखा? सीबीआइ जांच के दबाव में मुख्यमंत्री ने मजबूरन मंत्रियों पर कार्रवाई का फैसला किया है। ऐसे निर्णय लेकर अपनी छवि को निखारने की उम्मीद लगा रही सपा को जनता सबक सिखाएगी। मसूद ने कहा कि लोकायुक्त ने बसपाकाल के कई मंत्रियों पर कार्रवाई की संस्तुति मुख्यमंत्री को की परंतु अब तक उन फाइलों का पता ही नहीं। इससे सिद्ध होता है कि सपा-बसपा दोनों भ्रष्टाचार की पोषक हैं।
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बसपा की तर्ज पर सपा का डेमैज कंट्रोल
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- चुनाव से पहले छवि सुधारने को और भी मंत्रियों के गिर सकते हैं विकेट
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लखनऊ : विधान सभा चुनाव से पहले छवि सुधारने के लिए समाजवादी पार्टी ने भी पूर्ववर्ती बसपा सरकार की तर्ज पर मंत्रियों का विकेट गिरा कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश शुरू की है। सोमवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस तरह गायत्री प्रसाद प्रजापति व राजकिशोर सिंह को बर्खास्त किया है उससे मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों में भी बेचैनी बढ़ गई है।
कभी सर्वाधिक चहेते मंत्री रहें गायत्री प्रसाद व राजकिशोर सिंह को अचानक बर्खास्त करने के बाद अभी कई अन्य विवादित मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री द्वारा बाहर का रास्ता दिखाने की चर्चा जोरों पर है। सूत्रों का कहना है कि बर्खास्त किए जाने वाले मंत्रियों की फेहरिस्त में अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े नाम भी शामिल है। उक्त मंत्रियों का भी विकेट गिराया जाना था परन्तु ईद उल अजहा के कारण फिलहाल बर्खास्तगी टाल दी है। ईद के बाद मुख्यमंत्री का आपरेशन क्लीन तेज होगा। मंत्रिपरिषद के साथ नौकरशाही में भी अहम बदलाव होंगे।
काम नहीं आया मंत्रियों को हटाना : वर्ष 2012 के चुनाव में सरकार बनाए रखने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भ्रष्टाचार व अन्य कारणों से करीब तीन दर्जन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया था। छवि सुधारने को बसपा शासन में मंत्रियों की भेंट चढ़ाने का फार्मूला कारगर न हो सका था और मायावती की सूबे की सत्ता में वापसी की उम्मीद धरी रह गयी। बसपा के उस फार्मूले पर समाजवादी पार्टी ने चुनाव निकट आते ही मंत्रियों का विकेट गिरा कर सत्ता में बने रहने की आस लगायी है।
नये विधायकों को मौका मिलने की उम्मीद : मुख्यमंत्री द्वारा विवादित मंत्रियों की छुट्टी करने का अभियान को देख कर जहां एक और मायूसी हैं, वही नये विधायकों को लाटरी लगने की आस भी जगी है। सूत्रों का कहना है कि छवि सुधारने और युवा वर्ग को रिझाने के लिए अखिलेश कुछ नए चेहरों को भी मंत्रिपरिषद में स्थान दे सकते हैं। इसके साथ ही जियाउद्दीन रिजवी का मंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण का इंतजार भी खत्म हो सकता है।
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रास नहीं आया पंचायतराज विभाग
पंचायतीराज विभाग में मंत्री पद को संभालने वालों की विदाई दुखदायी रही है। शुरुआती दौर में वरिष्ठ नेता बलराम यादव को पंचायतीराज विभाग सौंपा गया। बलराम जैसा अनुभवी नेता को कंबल साड़ी वितरण योजना फ्लाप होने के कारण विभाग से हटाया गया। इतना ही ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ बढ़ाने की इस महत्वाकांक्षी चुनावी घोषणा से समाजवादी पार्टी को पीछा ही छुड़ाना पड़ा। बलराम यादव के बाद पंचायत राज विभाग कैलाश यादव को सौंपा गया परन्तु उनके आकस्मिक निधन के कारण मंत्री पद रिक्त हुआ। राजकिशोर सिंह को जिन परिस्थितियों में पंचायती राज विभाग सौंपा था उसको सियासी कद बढ़ाना माना जा रहा था, लेकिन मात्र आठ माह ही राजकिशोर मंत्री रह सके।
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सपा फिर अखिलेश के अंदाज में
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- मुख्यमंत्री के बढ़ते दखल से बदल रही सपा की तस्वीर
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लखनऊ : सपा प्रमुख मुलायम सिंह के करीबी गायत्री प्रसाद प्रजापति व शिवपाल यादव के चहेते राजकिशोर सिंह को एक झटके में मंत्रिपरिषद से बर्खास्त किया जाना समाजवादी पार्टी के नए युग का अहसास करा देता है। यानी समाजवादी पार्टी अब अखिलेश यादव की मंशा से ही चलेगी।
कहने को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव है लेकिन पार्टी के अहम फैसले लेने में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की ही चलती है। मंत्रिपरिषद के पिछले फेरबदल में अचानक मनोज पांडेय को बाहर का रास्ता दिखाना हो या कौमी एकता दल से मेल की घोषणा होने के बाद नाता तोड़ लेने का फैसला। अखिलेश की मर्जी हो तो एनआरएचएम घोटाले के आरोपी कांग्रेसी विधायक मुकेश श्रीवास्तव जैसे भी समाजवादी कुनबे में शामिल हो जाएंगे तब छवि बनने बिगडऩे का सवाल नहीं होगा।
सोमवार को भ्रष्टाचार के आरोपी दो मंत्रियों को हटाए जाने के सवालों को सपा प्रमुख मुलायम सिंह का अनभिज्ञ बनकर टाल जाना साबित करता है कि 2017 में समाजवादी साइकिल केवल अखिलेश के इशारे पर दौड़ेगी। उधर जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी सोची समझी रणनीति के तहत ही अखिलेश को युवा अवतार के तौर पर सामने ला रही है। अखिलेश की बेदाग छवि पर लगे 'डमी मुख्यमंत्रीÓ होने के आरोपों को भी हटाया जा रहा है ताकि सत्ता की दौड़ में समाजवादी बने रहें।
सूत्रों के मुताबिक आने वाले दिनों में अखिलेश यादव की कड़क नेता वाली छवि को मजबूती प्रदान करने के लिए कई चौंकाने वाले निर्णय लिए जाएंगे।
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-अवैध खनन पर हाई कोर्ट का सख्त रुख देख मुख्यमंत्री ने गायत्री प्रजापति को हटाया
-भ्रष्टाचार और जमीन कब्जे की शिकायतें बनीं राज किशोर सिंह की विदा का सबब
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लखनऊ : भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और पंचायती राज, पशुधन व लघु सिंचाई मंत्री राजकिशोर सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से सोमवार को बर्खास्त कर दिया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सिफारिश पर राज्यपाल राम नाईक ने दोनों मंत्रियों को बर्खास्त किया है। अवैध खनन को बढ़ावा देने पर मुख्यमंत्री गायत्री से अरसे से नाराज थे जबकि जमीन कब्जा करने और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण राजकिशोर भी उनके निशाने पर थे।
बर्खास्त किये गए गायत्री को जहां सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का करीबी बताया जाता है, वहीं राजकिशोर मंत्री शिवपाल सिंह यादव के नजदीक रहे हैं। दोनों मंत्रियों की बर्खास्तगी को सरकार की छवि सुधारने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। बहुचर्चित गायत्री प्रजापति की बर्खास्तगी हाई कोर्ट द्वारा प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच के अपने आदेश को वापस लेने के सरकार के अनुरोध को नामंजूर करने के तीन दिन बाद हुई है। हाईकोर्ट ने नौ सितंबर को उस एप्लीकेशन को खारिज कर दिया था जिसमें सरकार ने अदालत से प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच के अपने आदेश को वापस लेने का आग्रह किया था। हाई कोर्ट ने 28 जुलाई को प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआइ जांच कराने का आदेश दिया था। माना जा रहा है कि अवैध खनन को लेकर शासन की खराब होती छवि और इस मुद्दे पर हाई कोर्ट के आदेश से शासन के लिए उपजी असहज स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री गायत्री को बर्खास्त करने के लिए मजबूर हुए।
मंत्रियों के खिलाफ मुख्यमंत्री की यह कार्रवाई हाल ही में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के उस बयान के बाद आयी है जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि सपा सत्ता में वापसी चाहती है तो उसे जमीन कब्जा करने वालों और भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी नेताओं से छुटकारा पाना होगा।
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बर्खास्त मंत्रियों के विभाग बांटे
दोनों मंत्रियों को बर्खास्त करने के साथ ही मुख्यमंत्री ने उनके विभाग भी बांट दिये हैं। समाज कल्याण मंत्री राम गोविंद चौधरी को पंचायती राज विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है जबकि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मूलचंद चौहान को भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। वहीं लघु सिंचाई और पशुधन विभाग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अधीन होंगे।
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बर्खास्तगी से सीएम ने दिखाए तेवर
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-कोई अवरोध बर्दाश्त करने के मूड में नहीं अखिलेश
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लखनऊ : विपक्ष भले ही सपा सरकार के दो मंत्रियों की बर्खास्तगी को नाटक करार दे रहा है लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने देर से ही सही, तेवर दिखाए हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उनका यह फैसला कम से कम इस बात का संकेत है कि अब उनकी मर्जी भी चलने लगी है और अब अखिलेश सख्ती के मूड में हैं। मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी इसका नमूना है।
सत्ता में अपनी अहमियत के लिए पहचान रखने वाले गायत्री प्रसाद प्रजापति मुख्यमंत्री की नापसंदगी के बावजूद अरसे से मंत्री बने हुए थे। वह सार्वजनिक स्थलों पर भी बेजा टिप्पणी करने से बाज नहीं आते थे और उनकी कारनामे भी सुर्खियां बनते रहे। जाहिर है चुनाव से पहले उन्हें किनारे कर मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। गायत्री के संरक्षणदाताओं के नाम भी छिपे नहीं हैं। लेकिन, इनकी परवाह ने करते हुए बर्खास्तगी का फैसला लिया गया तो निसंदेह इसमें बड़ी रणनीति छिपी है।
दूसरे मंत्री राजकिशोर की भी स्थिति कुछ ऐसी ही रही। विधान परिषद सदस्य के चुनाव और उसके पहले जिला पंचायत चुनाव में भी राजकिशोर ने अपने भाई के लिए जिस तरह सपा नेतृत्व पर दबाव बनाया और बदले में भाई के लिए पद और खुद के लिए एक महत्वपूर्ण मंत्रालय हासिल किया वह मुख्यमंत्री को नागवार लगा था। शिकायतें भी इनकी खूब हुईं। चुनाव मैदान में जाने से पहले मुख्यमंत्री ने इन्हें किनारे करना ही श्रेयस्कर समझा।
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बर्खास्त मंत्रियों के भविष्य पर सवालिया निशान
यूं तो समाजवादी पार्टी ने अभी यह साफ नहीं किया है कि गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह सपा में बने रहेंगे या नहीं लेकिन मुख्यमंत्री के तेवर से स्पष्ट हो गया है कि विधानसभा चुनाव में इन्हें वह शायद ही मौका दें। अमेठी के विधायक प्रजापति ने अमीता सिंह को चुनाव हराकर पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद उनका संजाल फैलता गया। राजकिशोर सिंह बस्ती के हरैया विधानसभा क्षेत्र से कई बार चुनाव जीते और अपनी सुविधा अनुसार दल भी बदलते रहे हैं। मुख्यमंत्री अगर दोनों बर्खास्तगी से साफ सुथरी छवि का संदेश देना चाहते हैं तो जाहिर है कि इनको उम्मीदवार बनाने से परहेज करेंगे। हालांकि समाजवादी पार्टी में फैसलों के ऊपर भी फैसलों की रवायत है, इसलिए किसी भी तरह की गुंजायश से इन्कार नहीं किया जा सकता है। संभव है कि दोनों सपा के ही टिकट पर चुनाव लड़ जाएं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री फिलहाल तो दोनों को सपा उम्मीदवार बनाने के मूड में नहीं है।
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पहले भी चली बर्खास्तगी की तलवार
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-करीब डेढ़ दर्जन मंत्रियों को साढ़े चार वर्ष में बर्खास्त कर चुके अखिलेश
-कई दोबारा शपथ लेने में भी हुए कामयाब
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ऐन चुनाव से पहले मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी ने सूबे का सियासी ताप जरूर बढ़ा दिया है लेकिन, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में करीब 15 मंत्रियों पर बर्खास्तगी की तलवार चलायी है।
वर्ष 201& में एक महिला आइएएस अधिकारी पर खादी ग्रामोद्योग मंत्री राजाराम पांडेय ने टिप्पणी की तो पूरे देश में इसकी निंदा शुरू हो गयी। मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लिया और पांडेय को बर्खास्त कर दिया। अखिलेश सरकार में पांडेय सबसे पहले बर्खास्त होने वाले मंत्री रहे। बाद में उनका निधन हो गया। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2014 में अदालती आरोपों से घिरे मंत्री मनोज पारस और सियासी दांव-पेंच के तहत कृषि मंत्री आनन्द सिंह को भी बर्खास्त किया। अयोध्या से चुनाव जीते और मुख्यमंत्री के करीबी रहे पवन पांडेय की शिकायतें कुछ ज्यादा बढ़ गयीं तो उन पर भी बर्खास्तगी की तलवार चली। पांडेय पर अवैध खनन रोकने गये एक आइपीएस अधिकारी के साथ अभद्रता का आरोप लगा था। स्टांप तथा न्याय शुल्क पंजीयन व नागरिक सुरक्षा मंत्री महेन्द्र अरिदमन सिंह, पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अंबिका सिंह, वस्त्र उद्योग मंत्री शिवकुमार बेरिया, खेल मंत्री नारद राय, प्राविधिक शिक्षा मंत्री शिवाकांत ओझा, प्राविधिक शिक्षा राज्य मंत्री आलोक शाक्य और बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री योगेश प्रताप के अलावा स्वतंत्र प्रभार के लघु उद्योग मंत्री भगवत शरण गंगवार को भी मुख्यमंत्री ने बर्खास्त किया। यह अलग बात है कि कई लोगों को फिर मौका भी मिला। हाल में मंत्री मनोज पांडेय को भी मुख्यमंत्री ने बर्खास्त कर दिया। सर्वाधिक सुर्खियों में माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव की बर्खास्तगी रही जिन्हें कुछ ही दिनों बाद दोबारा शपथ दिलाकर वही विभाग लौटा दिया गया। देखा जाए तो मुख्यमंत्री ने कई मंत्रियों से इस्तीफे भी लिए। कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या के बाद रघुराज प्रताप सिंह या फिर गोंडा में अधिकारियों से अभद्र व्यवहार पर विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह का इस्तीफा भी मुख्यमंत्री के अनुकूल रहा। हालांकि इन दोनों की मंत्रिमंडल में वापसी हो गयी। अपने कार्यकाल में अखिलेश मुस्लिम मंत्रियों पर मेहरबान रहे। उन्होंने किसी मुसलमान मंत्री पर बर्खास्तगी की कार्रवाई नहीं की।
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गायत्री के लिए मुसीबत बनेगी सीबीआइ जांच
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-हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हो गयी गायत्री की उल्टी गिनती
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लखनऊ : सरकार नहीं चाहती थी कि अवैध खनन की सीबीआइ जांच हो लेकिन हाईकोर्ट नहीं मानी। इसी के साथ सत्ता प्रतिष्ठान में खलबली मची और खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। दरअसल, खनन विभाग में जिस तरह नियमों की अनदेखी की गयी उससे यह तो साफ था कि जिम्मेदार लोग इसके दायरे में आएंगे।
गायत्री प्रसाद प्रजापति खनन विभाग संभालने के कुछ दिनों बाद ही विवादों में आ गये। उन पर विपक्षी दलों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गंभीर आरोप लगाए। खनन माफिया का नेटवर्क बनाकर पूरे प्रदेश में अवैध ढंग से बालू खनन किया गया। पर्यावरणविद और कई प्रमुख लोग गायत्री के खिलाफ सड़क पर उतरे लेकिन सपा मुखिया खुद उनके बचाव में आते रहे। दिलचस्प यह कि जब मुलायम सिंह यादव मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नसीहत देते तब गायत्री उनकी बगल में मौजूद होते। मंत्रियों को हटाने, विभाग बदलने और बर्खास्तगी तक के दौरान गायत्री का नाम कई बार आया लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई।
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मुलायम ने दी हरी झंडी
मुलायम सिंह यादव ने बर्खास्तगी पर भले ही अनभिज्ञता जतायी हो लेकिन, यह चर्चा बड़े दावे के साथ की जा रही है कि दिल्ली की एक पार्टी में मुलायम की सहमति के बाद ही गायत्री और राजकिशोर की बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि बनी। गायत्री के बारे में एक शीर्ष अफसर ने मुलायम को ब्यौरा दिया। इसमें दो और कद्दावर शामिल थे जबकि राजकिशोर का नाम भी किसी जांच में सामने आ रहा है। इसलिए उन्हें किनारे लगाने की बात तय हुई।
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लोकायुक्त से क्लीन चिट
गायत्री प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त के यहां चार जांचें थी जो अब बंद हो चुकी हैं। इसके बाद से गायत्री प्रसाद प्रजापति के तेवर और तीखे हो गये थे। इस दौरान अवैध खनन में भी खूब तेजी आयी। गायत्री के खिलाफ शिकायत करने वाले कई शिकायतकर्ता बदल गये। अलबत्ता सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने गायत्री के खिलाफ लोकायुक्त से की गयी शिकायत को लेकर लगातार सक्रियता दिखाई।
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एसआइटी जांच की मांग
नूतन ठाकुर ने लोकायुक्त से 26 दिसंबर 2014 को गायत्री प्रजापति की शिकायत की। 25 मई 2015 को लोकायुक्त ने प्रजापति को क्लीन चिट दे दी। इसके बाद नूतन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में प्रजापति की संपत्ति की एसआइटी जांच के लिए याचिका दाखिल की। यह याचिका कोर्ट में लंबित है।
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नौकरों के नाम संपत्ति
नूतन ने गायत्री के सिंडीकेट में विकास वर्मा, पिंटू यादव और पिंटू सिंह को प्रमुख सहयोगी बताया है। गायत्री के पुत्र अनिल प्रजापति और अनुराग प्रजापति, पुत्री सुधा और अंकिता तथा पत्नी महराजी के नाम संपत्ति है। उनकी महिला सहयोगी गुड्डा, गुड्डा की बहन पूनम, भाई रमाशंकर और जगदीश प्रसाद, ड्राइवर राम सहाय, सहयोगी रामराज, सुरेन्द्र कुमार बैठा, प्रमोद कुमार सिंह, सरोज कुमार, जन्मेजय खरवार और देवतादीन के नाम नूतन की शिकायत में प्रमुखता से आये हैं।
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गायत्री के लोगों की कंपनी
एक-डीसेंट कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली (निदेशक-अनिल प्रजापति) दो- लाइफ क्योर मेडिकल एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली (निदेशक-अनिल प्रजापति) तीन-एमजी कोलोनाइजर, (पूर्व निदेशक- गायत्री प्रजापति, बाद में पुत्र अनिल प्रजापति) चार- शुभांग एक्सपोर्ट लिमिटेड, कोलकाता (निदेशक- अनिल प्रजापति) पांच- ड्रीम डेस्टिनेशन इन्फ्रा-लैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, लखनऊ (निदेशक-आलोक श्रीवास्तव) छह-पावनी देवेलोपेर्स प्राइवेट लिमिटेड (निदेशक- विकास वर्मा) सात- वैष्णो इन्फ्राहाइट्स प्राइवेट लिमिटेड (निदेशक-विकास वर्मा)।
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तय था सरकार तक पहुंचेगी जांच की आंच
'नदियों से अवैध खनन की शिकायतें आ रही हैं लेकिन सरकार को दिखाई नहीं दे रहा। अवैध खनन की सूचना न होना, आंखों में धूल झोंकने जैसा है।Ó
-इलाहाबाद हाईकोर्ट-28 जुलाई, 2016
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-खनन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाओं की भरमार
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प्रदेश में अवैध खनन का मुद्दा हाईकोर्ट में आने के बाद ही तय हो गया था कि इसकी जांच की आंच सरकार तक पहुंचेगी। यही वजह है कि सीबीआइ जांच रोकने के लिए सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन अधिकारियों के विरोधाभासी बयान ही उसके आड़े आ गए।
प्रदेश में अवैध खनन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक दर्जन से अधिक याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाएं देवरिया, संभल, बदायंू, बागपत, कौशाम्बी, शामली, जालौन, बांदा, हमीरपुर, सहारनपुर, मिर्जापुर आदि जिलों से दाखिल हुई हैं। सीबीआइ जांच का आदेश अमर सिंह व अन्य दर्जनों याचिकाओं की सुनवाई में 28 जुलाई को दिया गया था। उस वक्त कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी कि नदियों में अवैध खनन हो रहा है और सरकार को दिखाई नहीं दे रहा। तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वीके शुक्ल तथा न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह तक कह दिया था कि अधिकारी आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। कोर्ट ने सीबीआइ से आठ सितंबर तक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट मांगी थी।
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हठधर्मिता से किरकिरी
इसके बाद सरकार ने इस आदेश को रीकॉल किए जाने की अर्जी दी और जांच पर रोक लगाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। सरकार जांच रोकने के लिए किस हद तक गंभीर थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासकीय अधिवक्ताओं की फौज तो कोर्ट में खड़ी ही हुई, सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन तक को बुलाया गया। सरकार ने बहुत दलील दी कि कोर्ट का आदेश एकतरफा है और उसका पक्ष नहीं सुना गया लेकिन इस सवाल का जवाब न दिया जा सका कि आखिर सीबीआइ जांच में आपत्ति क्या है। कोर्ट में याचियों की ओर से अवैध खनन के फोटोग्र्राफ पेश किए जा चुके थे।
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विरोधाभासी बयान
प्रमुख सचिव की ओर से कहा गया कि प्रदेश में कहीं भी अवैध खनन नहीं हो रहा है। दूसरी और सरकार की ओर से ही कहा गया कि अवैध खनन रोकने के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं और कई ट्रक पकड़े भी गए हैं।
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अवमानना की भी परवाह नहीं
इलाहाबाद : अफसरों ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया ही नहीं। मसलन हमीरपुर के एडीएम ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि उनके यहां अवैध खनन नहीं हो रहा। इस अदालत ने दो एडवोकेट कमिश्नर वहां पड़ताल के लिए भेज दिए। उन्होंने एडीएम की रिपोर्ट को झूठा पाया। इस पर कोर्ट खफा हुई और डीएम को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए लिखा।
सहारनपुर में अवैध खनन के नाम पर जब्त बालू का मामला सामने आया। प्रशासन ने बिना नीलामी के ही उन्हीं लोगों को बालू ले जाने की छूट दे दी जिनसे जब्त की गई थी। तीन दिन पहले ही कोर्ट ने सहारनपुर के डीएम और प्रमुख सचिव खनन को तलब किया है।
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बाजीगरी और विवादों से गलबहियां
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-आरोपों के चलते सुर्खियों में बने रहे गायत्री प्रजापति
लखनऊ : गायत्री प्रसाद प्रजापति ने कामयाबी की सीढिय़ां तेजी से चढ़ीं। सपा मुखिया मुलायम का वरदहस्त उन्हें हासिल रहा। भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों ने उन्हें सुर्खियों का विषय बनाया तो अपने खिलाफ शिकायतों को भेदने में भी वह काफी कामयाब रहे।
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तीसरी कोशिश में बने विधायक
199& में बहुजन क्रांति दल के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार अमेठी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे वाले गायत्री प्रसाद प्रजापति तब महज 1526 वोट पाकर सातवें स्थान पर रहे थे। तीन साल बाद 1996 में उन्होंने सपा प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव में दोबारा भाग्य आजमाया और तीसरे पायदान पर रहे। तीसरे प्रयास में 2012 में हुए चुनाव में वह बतौर सपा उम्मीदवार कांग्रेस की अमीता सिंह को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे।
फरवरी 201& से जनवरी 2014 तक अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल का तीन बार विस्तार किया और तीनों बार शपथ लेने वाले गायत्री की स्थिति सरकार में पहले से मजबूत होती चली गई। पहली बार विधायक बने गायत्री को फरवरी 201& में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में सिंचाई महकमे का राज्य मंत्री बनाया गया। जुलाई 201& में मुख्यमंत्री ने उन्हें तरक्की देते हुए भूतत्व एवं खनिकर्म में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दर्जा दिया और जनवरी 2014 में उन्हें प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में 17 अति पिछड़ी जातियों को लामबंद करने के लिए बागडोर गायत्री को सौंपी गई।
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1.71 करोड़ की संपत्ति
गायत्री ने 2012 के विधानसभा चुनाव में दाखिल किये गए हलफनामे में अपनी अचल संपत्ति 1.21 करोड़ रुपये और चल संपत्ति 50.88 लाख रुपये दर्शायी थी।
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तड़क-भड़क और दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे
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-विवादों में रहना राजकिशोर सिंह का शगल
-लगते रहे हैं धनबल, बाहुबल के इस्तेमाल के आरोप
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लखनऊ : गले में सोने का मोटा लॉकेट, कलाई पर ब्रेसलेट, भड़कीली डिजाइन वाली शर्ट और पैरों में अक्सर सफेद तो कभी रंगीन चमकीले जूते। विधानभवन के लिफ्टमैन भी बखूबी जानते हैं कि यह हुलिया अखिलेश मंत्रिमंडल से सोमवार को बर्खास्त किये गए पंचायती राज, पशुधन और लघु सिंचाई मंत्री राजकिशोर सिंह का है।
राजकिशोर के दामन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़े जमीन घोटाले की जांच में उनका नाम आना उनकी बर्खास्तगी की अहम वजह माना जा रहा है। पंचायती राज विभाग में भर्तियों में घपले की शिकायतें रही हों या हाल ही में पंचायती राज और ग्राम्य विकास विभागों के बीच चली तनातनी, मुख्यमंत्री उनकी कार्यशैली से खुश नहीं थे। अखिलेश मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये गए प्राविधिक शिक्षा विभाग के पूर्व मंत्री शिवाकांत ओझा ने प्रतापगढ़ में चेकडैम घोटाले का आरोप लगाया था। इस मामले में भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।
बस्ती की हर्रैया सीट से 2002 में बसपा के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर आये राजकिशोर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व में बसपा-भाजपा की साझा सरकार में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाये गए थे। सत्ता से मायावती सरकार की बेदखली के बाद मुलायम सरकार बनवाने में राजकिशोर की अहम भूमिका रही थी। वह बसपा के 40 विधायकों के साथ सपा में शामिल हो गए थे। गाढ़े वक्त में की गई इस मदद का मुलायम ने भी उन्हें सिला दिया-अपनी सरकार में भी उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री का दर्जा देकर। वर्ष 2007 में राजकिशोर दोबारा हर्रैया सीट से बतौर सपा उम्मीदवार जीते। वर्ष 2007 में वह तीसरी बार विधायक बने। अखिलेश सरकार में भी वह उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाये गए लेकिन 2014 में उनका महकमा बदल कर उन्हें बदलकर लघु ङ्क्षसचाई मंत्री बना दिया गया। वर्ष 2014 में अपने भाई बृजकिशोर सिंह उर्फ डिंपल को बस्ती सीट से बतौर सपा प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जितवाने के लिए उन पर प्रशासनिक मशीनरी के दुरुपयोग के साथ धनबल और बाहुबल इस्तेमाल के भी आरोप लगे। पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में अपने सियासी रसूख को और बढ़ाते हुए वह बस्ती के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ शानू को बैठाने में कामयाब रहे। विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उनके भाई बृजकिशोर का टिकट काटा तो मुख्यमंत्री ने राजकिशोर को पंचायती राज विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंप कर और बृजकिशोर को ऊर्जा सलाहकार बनाकर भरपाई की।
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गवर्नर का पत्र 'ताबूत में आखिरी कीलÓ
पिछले सप्ताह कुछ लोगों ने राज्यपाल राम नाईक से मिलकर लिखित शिकायत की थी कि मंत्री राजकिशोर सिंह सहित सपा के कुछ नेताओं ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी है। सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखने के साथ ही बात भी की। ऐसे में राजकिशोर की बर्खास्तगी के पीछे नाईक के पत्र की भी अहम भूमिका मानी जा रही है।
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बर्खास्तगी नाकाफी, मुख्यमंत्री दें इस्तीफा
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-सरकार में आपरेशन क्लीन से विपक्ष संतुष्ट नहीं, साधा निशाना
लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा भ्रष्टाचार व अन्य आरोपों में फंसे दो कैबिनेट मंत्रियों को बर्खास्त करने से विपक्षी पार्टियां संतुष्ट नहीं है। कार्रवाई को अधूरी करार देते हुए विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री से त्यागपत्र देने की मांग की है।
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बर्खास्तगी की नौटंकी से अब कुछ नहीं होने वाला : राम अचल
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने मंत्रियों की बर्खास्तगी को अखिलेश सरकार की नौटंकी करार देते हुए कहा कि जनता सब समझ रही है। राजभर ने कहा कि सपा सरकार हर क्षेत्र में फेल हो गई है। अब जनता की नजर में छवि सुधारने के लिए इस तरह की नौटंकी करने से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि प्रदेश की जनता अबकी चुनाव में इनके झांसे में आने वाली नहीं है। राजभर ने दावा किया कि चुनाव में जनता सपा सरकार को उखाड़ फेंकेगी और सत्ता में बसपा की वापसी होगी।
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मुख्यमंत्री ने खुद को बचाने को किया बर्खास्तगी का नाटक : केशव
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने खुद को बचाने के लिए बर्खास्तगी का नाटक किया है। यह सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसा है। मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ थे तो हाईकोर्ट द्वारा खनन के भ्रष्टाचार की सीबीआइ जांच रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट क्यों गए? मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं सकते। केशव ने भाजपा में भ्रष्टाचारियों के लिए कोई जगह नहीं होने की बात भी कही।
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सुलतान को बचाने के लिए पियादों की बलि : राजबब्बर
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने दो मंत्रियों को बर्खास्त करने की कार्रवाई को छलावा बताया। आरोप लगाया कि सूबे के सुलतान को बचाने के लिए ही दो पियादों की बलि ली गयी। मुख्यमंत्री को सरकार की विदाई के समय भ्रष्टाचार नजर आया है। सरकारी सरंक्षण मिले बगैर इतने व्यापक स्तर पर अराजकता नहीं हो सकती है। छवि सुधार की कोशिश में लगी सपा अपने दामन को साफ नहीं कर सकेगी क्योंकि जनता ने प्रदेश में बड़े बदलाव का मन बना लिया है। बेहतर यही है कि मुख्यमंत्री नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दें और जनादेश प्राप्त करने के लिए जनता के बीच में जाएं।
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भ्रष्टाचारियों को अब तक क्यों बचाया : डा. मसूद
राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डा. मसूद अहमद ने मुख्यमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्रियों की बर्खास्तगी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अखिलेश यादव जनता को बताए कि भ्रष्टाचारियों को अब तक क्यों बचाए रखा? सीबीआइ जांच के दबाव में मुख्यमंत्री ने मजबूरन मंत्रियों पर कार्रवाई का फैसला किया है। ऐसे निर्णय लेकर अपनी छवि को निखारने की उम्मीद लगा रही सपा को जनता सबक सिखाएगी। मसूद ने कहा कि लोकायुक्त ने बसपाकाल के कई मंत्रियों पर कार्रवाई की संस्तुति मुख्यमंत्री को की परंतु अब तक उन फाइलों का पता ही नहीं। इससे सिद्ध होता है कि सपा-बसपा दोनों भ्रष्टाचार की पोषक हैं।
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बसपा की तर्ज पर सपा का डेमैज कंट्रोल
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- चुनाव से पहले छवि सुधारने को और भी मंत्रियों के गिर सकते हैं विकेट
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लखनऊ : विधान सभा चुनाव से पहले छवि सुधारने के लिए समाजवादी पार्टी ने भी पूर्ववर्ती बसपा सरकार की तर्ज पर मंत्रियों का विकेट गिरा कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश शुरू की है। सोमवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस तरह गायत्री प्रसाद प्रजापति व राजकिशोर सिंह को बर्खास्त किया है उससे मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों में भी बेचैनी बढ़ गई है।
कभी सर्वाधिक चहेते मंत्री रहें गायत्री प्रसाद व राजकिशोर सिंह को अचानक बर्खास्त करने के बाद अभी कई अन्य विवादित मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री द्वारा बाहर का रास्ता दिखाने की चर्चा जोरों पर है। सूत्रों का कहना है कि बर्खास्त किए जाने वाले मंत्रियों की फेहरिस्त में अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े नाम भी शामिल है। उक्त मंत्रियों का भी विकेट गिराया जाना था परन्तु ईद उल अजहा के कारण फिलहाल बर्खास्तगी टाल दी है। ईद के बाद मुख्यमंत्री का आपरेशन क्लीन तेज होगा। मंत्रिपरिषद के साथ नौकरशाही में भी अहम बदलाव होंगे।
काम नहीं आया मंत्रियों को हटाना : वर्ष 2012 के चुनाव में सरकार बनाए रखने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भ्रष्टाचार व अन्य कारणों से करीब तीन दर्जन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया था। छवि सुधारने को बसपा शासन में मंत्रियों की भेंट चढ़ाने का फार्मूला कारगर न हो सका था और मायावती की सूबे की सत्ता में वापसी की उम्मीद धरी रह गयी। बसपा के उस फार्मूले पर समाजवादी पार्टी ने चुनाव निकट आते ही मंत्रियों का विकेट गिरा कर सत्ता में बने रहने की आस लगायी है।
नये विधायकों को मौका मिलने की उम्मीद : मुख्यमंत्री द्वारा विवादित मंत्रियों की छुट्टी करने का अभियान को देख कर जहां एक और मायूसी हैं, वही नये विधायकों को लाटरी लगने की आस भी जगी है। सूत्रों का कहना है कि छवि सुधारने और युवा वर्ग को रिझाने के लिए अखिलेश कुछ नए चेहरों को भी मंत्रिपरिषद में स्थान दे सकते हैं। इसके साथ ही जियाउद्दीन रिजवी का मंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण का इंतजार भी खत्म हो सकता है।
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रास नहीं आया पंचायतराज विभाग
पंचायतीराज विभाग में मंत्री पद को संभालने वालों की विदाई दुखदायी रही है। शुरुआती दौर में वरिष्ठ नेता बलराम यादव को पंचायतीराज विभाग सौंपा गया। बलराम जैसा अनुभवी नेता को कंबल साड़ी वितरण योजना फ्लाप होने के कारण विभाग से हटाया गया। इतना ही ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ बढ़ाने की इस महत्वाकांक्षी चुनावी घोषणा से समाजवादी पार्टी को पीछा ही छुड़ाना पड़ा। बलराम यादव के बाद पंचायत राज विभाग कैलाश यादव को सौंपा गया परन्तु उनके आकस्मिक निधन के कारण मंत्री पद रिक्त हुआ। राजकिशोर सिंह को जिन परिस्थितियों में पंचायती राज विभाग सौंपा था उसको सियासी कद बढ़ाना माना जा रहा था, लेकिन मात्र आठ माह ही राजकिशोर मंत्री रह सके।
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सपा फिर अखिलेश के अंदाज में
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- मुख्यमंत्री के बढ़ते दखल से बदल रही सपा की तस्वीर
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लखनऊ : सपा प्रमुख मुलायम सिंह के करीबी गायत्री प्रसाद प्रजापति व शिवपाल यादव के चहेते राजकिशोर सिंह को एक झटके में मंत्रिपरिषद से बर्खास्त किया जाना समाजवादी पार्टी के नए युग का अहसास करा देता है। यानी समाजवादी पार्टी अब अखिलेश यादव की मंशा से ही चलेगी।
कहने को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव है लेकिन पार्टी के अहम फैसले लेने में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की ही चलती है। मंत्रिपरिषद के पिछले फेरबदल में अचानक मनोज पांडेय को बाहर का रास्ता दिखाना हो या कौमी एकता दल से मेल की घोषणा होने के बाद नाता तोड़ लेने का फैसला। अखिलेश की मर्जी हो तो एनआरएचएम घोटाले के आरोपी कांग्रेसी विधायक मुकेश श्रीवास्तव जैसे भी समाजवादी कुनबे में शामिल हो जाएंगे तब छवि बनने बिगडऩे का सवाल नहीं होगा।
सोमवार को भ्रष्टाचार के आरोपी दो मंत्रियों को हटाए जाने के सवालों को सपा प्रमुख मुलायम सिंह का अनभिज्ञ बनकर टाल जाना साबित करता है कि 2017 में समाजवादी साइकिल केवल अखिलेश के इशारे पर दौड़ेगी। उधर जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी सोची समझी रणनीति के तहत ही अखिलेश को युवा अवतार के तौर पर सामने ला रही है। अखिलेश की बेदाग छवि पर लगे 'डमी मुख्यमंत्रीÓ होने के आरोपों को भी हटाया जा रहा है ताकि सत्ता की दौड़ में समाजवादी बने रहें।
सूत्रों के मुताबिक आने वाले दिनों में अखिलेश यादव की कड़क नेता वाली छवि को मजबूती प्रदान करने के लिए कई चौंकाने वाले निर्णय लिए जाएंगे।
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