Sunday 18 September 2016

समाजवादी परिवार की कलह-६

-शिवपाल की मानी होती तो पीएम होता
हाईलाइटर
मुख्यमंत्री को सराहा
मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री पर नाराजगी जाहिर करने के साथ ही उनके विकास कार्यों को सराहा भी। कहा कि दवाई, पढ़ाई, सिंचाई मुफ्त की है। वह मेरी सरकार की योजनाएं लागू कर रहे हैं। मेट्रो बना रहा है मगर सिर्फ लखनऊ मेट्रो से क्या वोट मिलेगा। अगली बार सरकार बनेगी तो लखनऊ-कानपुर और लखनऊ-फैजाबाद तक मेट्रो बनायेंगे।
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कार्यकर्ताओं और अखिलेश पर बरसे मुलायम
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अपने खून से सींचा है इस पार्टी को
 लखनऊ : समाजवादी परिवार का घमासान नियंत्रित करने का फार्मूला सुझाने के बाद भी शनिवार को युवा ब्रिगेड के आक्रामक आंदोलन से बिफरे मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी को 'खून से सींचा है, तमाशा बर्दाश्त नहीं कर सकता।Ó कहा, कि मुख्यमंत्री ने बिना पूछे शिवपाल के विभाग वापस लिये थे, यह ठीक नहीं था।
समाजवादी पार्टी के लोहिया सभागार पहुंचे मुलायम सिंह ने कहा कि वर्ष 2012 में बहुमत मिलने के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा गया तब शिवपाल यादव ने मुखर होकर कहा था कि 2014 के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए वरना लोकसभा चुनाव में कामयाबी नहीं मिलेगी। 2014 के चुनाव में हश्र क्या हुआ? सिर्फ पांच सीटें मिलीं। उनकी बात सच हो गई। शिवपाल की सुनी होती तो मैं प्रधानमंत्री होता। अगर अखिलेश को मुख्यमंत्री न बनाता तो वह कभी न बन पाते। वर्ष 2012 में तो अखिलेश की सब बात मानी थी। शिवपाल के संघर्षों को भुलाया नहीं जा सकता है। वह पुलिस से छिपकर लखनऊ के अलीगंज में रहते थे, शाम को आते थे। इस दौरान अखिलेश के पक्ष में नारेबाजी कर रहे कार्यकर्ताओं को डपटते हुए कहा कि 'वह मेरा बेटा है, तुम उसकी फोटो मुझे दिखा रहे हो, उसका दर्द और उसकी बेहतरी मुझसे ज्यादा चाहते हो।Ó चापलूसी करने आए हो, सिखा कर भेजा गया है। मुलायम यहीं नहीं रुके बल्कि बीमारी की जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री के कई दिन बाद देखने जाने पर मलाल भी जताया।
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अमर ने सीबीआइ से बचाया
एक कार्यकर्ता ने जब खड़े होकर अमर सिंह को बाहर निकालने की आवाज बुलंद की तो मुलायम सिंह ने उसे डपटते हुए कहा कि अमर के बारे में क्या जानते हो? वह उस वक्त साथ थे जब पार्टी के लोग साथ छोड़ रहे थे। कांग्रेस ने मेरे खिलाफ सीबीआइ जांच कराई तब भी अमर सिंह ने मदद की थी। अब भी मदद कर रहे हैं।
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भाजपा से टक्कर
युवा ब्रिगेड की नारेबाजी पर भड़के मुलायम ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के लोग बूथों पर जाकर चुनावी तैयारी कर रहे हैं और तुम यहां आकर तमाशा कर रहे हो। मैं गुजरात जाकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोला, संसद में उन्हें मानवता का हत्यारा कहा, वह प्रधानमंत्री बने तब भी संसद में कहा कि झूठे सपने दिखाकर लोगों को ठग लिया। फिर भी मोदी ने कहा कि 'देश में नेताजी से ज्यादा समझदार नेता नहीं है।Ó मुख्यमंत्री की ओर इशारा करते हुए कहा कि बड़े पदों पर बैठे लोगों को दिल बड़ा रखना चाहिए और धैर्य होना चाहिये। चुनाव में भाजपा से मुकाबला है, एकजुट होकर सरकार बनाने को जुटें।
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मेरे पास बड़े गुंडे
मुख्यमंत्री के पक्ष में लगातार नारे लगा रहे कार्यकर्ताओं और चारों युवा संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों को डपटते हुए मुलायम सिंह ने कहा कि यह घर का मामला है, जिसे निपटाने के लिए हम हैं। अभी सब देख रहे हैं, एक दिन में सब ठीक कर देंगे। तुम चुनाव में लगने के स्थान पर हंगामा कर रहे हो, मुझे बोलने नहीं दे रहो, निकाल बाहर कर दूंगा। कार्यकर्ता फिर भी बोलते रहे तो मुलायम ने कहा गुंडई कर रहे हो, तुमसे ज्यादा बड़े-बड़े गुंडे मेरे पास हैं।
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...सबे दोस्त तटस्थ हो गए
-मुलायम, अखिलेश के कई करीबी मंत्री, विधायक भी खामोश हुए

परवेज अहमद, लखनऊ : '...जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने!Ó ये फिल्मी लाइनें समाजवादी परिवार के सत्ता संग्राम के दोध्रुवों पर सटीक है। जिस तेजी से कालचक्र चला, उसी रफ्तार से दल के ढेरों लोग 'तटस्थÓ होते नजर आये।
भू-माफिया पर कार्रवाई न होने पर मंत्री पद से इस्तीफा देने की शिवपाल ने इटावा में चेतावनी दी तो 15 अगस्त को मुलायम ने उनका पक्ष लेते हुए लखनऊ में कहा था कि 'उसने पार्टी छोड़ी तो मुश्किल हो जाएगीÓ। यही आम धारणा भी थी, मगर 15 सितंबर की शाम जब शिवपाल यादव ने मंत्री, संगठन के ओहदों से इस्तीफा भेजा तो उपकृत विधायकों, मंत्रियों में से अधिकतर लखनऊ में होने के बाद भी तटस्थ हो गए। उनके पास चंद विधायक और मंत्री ही पहुंचे, इनमें से एक मंत्री सपा मुखिया के कहने पर गया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हाल अपेक्षाकृत बेहतर रहा। युवा एमएलसी की टोली और कुछ मंत्री उनके घर पहुंचे मगर मुख्यमंत्री के संरक्षण के चलते ही तरक्की करने वाले कई मंत्रियों ने लखनऊ छोड़कर अपने क्षेत्र का रुख कर लिया। कई और करीबी भी तटस्थ भूमिका में आ गए। अलबत्ता नौकरशाही का एक तबका मुख्यमंत्री के साथ खड़ा हो गया है लेकिन शायद सत्ता के प्रभाव में...।
सपा के एक बुजुर्ग नेता का कहना है कि अच्छा हुआ इस प्रकरण से दोनों पक्षों को कम से कम अपने पराये की पहचान तो हो जाएगी क्योंकि  अखिलेश और शिवपाल यादव एक दूसरे के प्रति भले ही शुभेच्छा प्रकट कर रहे हों मगर सब कुछ ठीक नहीं हो पाया है। मुलायम सिंह ने जैसे-तैसे विवाद बढऩे से रोकने का प्रयास किया है। अंदरखाने यह चर्चा आम है कि रार थमी नहीं बल्कि तरीका बदल गया है। यानी जिस कुर्सी की मियाद महज चार महीने है, उसके लिए आगे के पांच साल धूल में मिला देने की कसरत पार्टी के लिए दुर्भाग्य से कम नहीं। यह बात भी साफ हो गई कि सपा कुनबे में एक या दो नहीं ढेरों खेमे हैं जो अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
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 समाजवादी एक्सप्रेसवे के ठेके पर निगाहें
-कंस्ट्रक्शन कंपनियों में होड़
-दिल्ली की कंपनी को ठेका दिलाने के लिए बुना जा रहा था तानाबाना
 लखनऊ : लखनऊ को बलिया से जोडऩे के लिए 19437 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के बहुप्रतीक्षित शिलान्यास से पहले कंस्ट्रक्शन कंपनियों में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का ठेका हासिल करने के लिए जबर्दस्त होड़ है। समाजवादी सरकार में मचे घमासान की एक अहम वजह इस परियोजना का ठेका दिल्ली की एक कंपनी को दिलाने के लिए बुने गए तानेबाने को भी बताया जा रहा है।
राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को प्रदेश के पूर्वी हिस्से से जोडऩे के लिए समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बनाने का फैसला किया है। सूबे के 10 जिलों से गुजरने वाला यह एक्सप्रेसवे 348 किमी लंबा होगा। राज्य सरकार ने समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को अपने खर्च पर आठ टुकड़ों (पैकेजों) में बनाने का फैसला किया है। एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए तकरीबन चार हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। परियोजना की कुल लागत में लगभग 4000 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण पर खर्च होने की संभावना है। यानी परियोजना के निर्माण पर तकरीबन साढ़े पंद्रह हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
अखिलेश सरकार चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का शिलान्यास करना चाहती है। एक्सप्रेसवे के शिलान्यास से पहले उप्र एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का 50 प्रतिशत यानी लगभग दो हजार हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत करना चाहता है। अभी तकरीबन 15 फीसद जमीन ही अधिग्रहीत की गई है। परियोजना के लिए हुई तकनीकी बिड में 16 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखायी थी जिनमें से फाइनेंशियल बिड के लिए 10 कंपनियों को शार्टलिस्ट किया गया है। इन 10 कंपनियों में से चार वे हैं, जो कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे भी बना रही हैं, बाकी छह अन्य कंपनियां हैं। सूत्रों के मुताबिक इनमें से दिल्ली की एक कंपनी को ठेका दिलाने का ताना-बाना बुने जाने की जानकारी मुख्यमंत्री को मिलना ही मुख्य सचिव पद से दीपक सिंघल को हटाये जाने का सबब बना।
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 शिवपाल को पीडब्ल्यूडी नहीं
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-विभाग बढ़ाकर कद ऊंचा दिखाने की कोशिश
-पीडब्ल्यूडी सहित मुख्यमंत्री के पास अब 48 विभाग
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लखनऊ : समाजवादी संग्राम को नियंत्रित करने के'मुलायम फार्मूलेÓ को आंशिक बदलाव से साथ लागू करने की शुरुआत हो गयी है। शनिवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का पीडब्ल्यूडी विभाग अपने पास रखते हुए सभी विभाग वापस कर दिये। उन्हें चिकित्सा शिक्षा व लघु सिंचाई विभाग का कार्य सौंपा गया है। इसे उनका कद बढ़ा दिखाने का प्रयास माना जा रहा है। शिवपाल के पास अब 14 विभाग हो गये हैं जबकि अखिलेश ने 48 विभाग संभाल रखे हैं। विभागों के बंटवारे पर राज्यपाल राम नाईक की मुहर के बाद देर रात मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने अधिसूचना भी जारी कर दी।
समाजवादी परिवार में रविवार को शुरू हुए सत्ता संग्राम पर विराम के लिए शुक्रवार को 'मुलायम फार्मूलाÓ सामने आया था, जिसमें शिवपाल यादव का विभाग लौटाने व प्रदेश अध्यक्ष पद बनाये रखने की भी बात थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस पर अमल करते हुए शनिवार को राज्यपाल राम नाईक को शिवपाल यादव को सिंचाई, सिंचाई (यांत्रिक), बाढ़ नियंत्रण, राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुर्नवास, लोक सेवा प्रबंधन, सहकारिता, चिकित्सा शिक्षा, आयुष और लघु सिंचाई विभाग का अतिरिक्त कार्यभार सौंपने का प्रस्ताव भेजा। परती भूमि विकास, भूमि विकास एवं जल संसाधन, समाज कल्याण विभाग उनके पास पहले से थे। अब उनके विभागों की संख्या 14 हो गयी है। अलबत्ता लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) अपने पास रख लिया है। मुख्यमंत्री ने अपने विभागों में से चिकित्सा शिक्षा व लघु सिंचाई शिवपाल को देकर जहां उनका कद बड़ा दिखाने का प्रयास किया है, वहीं लोक निर्माण विभाग न देकर यह संकेत भी दिया है कि परिवार में विवाद के कारणों में कहीं न कहीं 'ठेका-पट्टाÓ की भी भूमिका थी।
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चार दिन में विभाग वापस
मुख्यमंत्री ने 13 सितंबर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जाने की नाराजगी में शिवपाल यादव से लेकर सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग अवधेश प्रसाद को सौंपा था। चार दिन में ही उनसे यह विभाग वापस हो गया है। वह अब वह होमगार्ड एवं पीआरडी संगठन के मंत्री रहेंगे। इसी तरह उसी दिन माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव को शिवपाल के पास रहा राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुनर्वास, लोक सेवा प्रबंधन तथा सहकारिता विभाग दिया गया था, जो वापस हो गया है। उनके पास अब सिर्फ माध्यमिक शिक्षा विभाग ही रहेगा। ये अलग बात है कि दोनों मंत्रियों ने शिवपाल यादव से लेकर दिये गये विभागों का कार्यभार संभाला ही नहीं था।
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ïअब शिवपाल के विभाग
सिंचाई, सिंचाई (यांत्रिक), बाढ़ नियंत्रण, राजस्व, अभाव, सहायता एवं पुर्नवास, लोक सेवा प्रबंधन, सहकारिता, परती भूमि विकास, भूमि विकास एवं जल संसाधन, समाज कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, आयुष और लघु सिंचाई विभाग।
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मंत्रिमंडल विस्तार का समय मांगा
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार के आठवें विस्तार के लिए राज्यपाल से समय मांगा है। राज्यपाल को भेजे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि अमेठी के विधायक गायत्री प्रजापति को मंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए समय निर्धारित करने को कहा है। सूत्रों का कहना है कि नये मंत्री को सोमवार को शपथ दिलायी जा सकती है। इसी विस्तार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश व अवध क्षेत्र के दो मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल किये जाने की संभावना है।
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अखिलेश मंत्रिमंडल की स्थिति
मंत्रिमंडल में स्थान-       60
मंत्रियों की संख्या-        23
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)-12
राज्यमंत्री-                 22
कुल मंत्रियों की संख्या-   57
रिक्त स्थान-               03
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जब मुख्यमंत्री चाहेंगे तब होगा शपथ ग्रहण : राज्यपाल
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार के सियासी घमासान को थामने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के फार्मूले के तहत गायत्री प्रसाद प्रजापति को फिर मंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को राज्यपाल राम नाईक को पत्र लिखकर शपथ दिलाने का समय मांगा। हालांकि, राज्यपाल ने दिन व समय तय करने के बजाय मुख्यमंत्री पर ही छोड़ दिया है कि वह कब शपथ दिलवाना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने दोपहर में राज्यपाल को प्रस्ताव भेज कर गायत्री को शपथ दिलाये जाने का अनुरोध किया था। पत्र मिलने के बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से फोन पर इस संबंध में विचार-विमर्श किया। देर शाम राज्यपाल ने बताया कि शपथ ग्रहण कार्यक्रम का अभी दिन व समय तय नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री की सुविधा को देखते हुए कार्यक्रम का दिन व समय तक किया जाएगा। नाईक ने बताया कि कल रविवार को कार्यक्रम नहीं रखा जाएगा। ऐसे में साफ है कि गायत्री कब शपथ लेंगे यह अब मुख्यमंत्री अखिलेश को ही तय करना है।

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अब अपनों के खिलाफ 'हल्ला बोलÓ
-सत्ता संग्राम में जवाबी नारेबाजी ने बढ़ाई तल्खी
- मुलायम को आया गुस्सा, अखिलेश को करनी पड़ी समर्थकों से बात
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19, विक्रमादित्य मार्ग, सुबह नौ बजे : समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर भारी संख्या में युवा सपाई पहुंचे। युवा संगठन प्रभारियों द्वारा सामूहिक इस्तीफे की पेशकश।
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5, विक्रमादित्य मार्ग, सुबह 10:30 बजे: युवाओं की टोली सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के घर पहुंची। भीतर घुसने को लेकर सुरक्षाकर्मियों से झड़प। अखिलेश के समर्थन में नारे।
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7, कालिदास मार्ग, सुबह 11:30 बजे: प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के घर जुटने लगे समर्थक। अखिलेश समर्थकों के खिलाफ नारेबाजी।
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5, कालिदास मार्ग, दोपहर 12 बजे: मुख्यमंत्री आवास पर अखिलेश ने समर्थकों को बुलाया। सभी युवा फ्रंटल संगठनों के नेता पहुंचे। जवाबी नारेबाजी पर बुलाई पुलिस।
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लखनऊ: ऊपर लिखे चार दृष्टांत चार अलग-अलग समय अगल-बगल, आगे-पीछे के चार भवनों के सामने घटित हुए। बीते छह दिन से चल रहे समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में शनिवार का दिन हंगामे भरा रहा। कभी एक दूसरे के लिए 'जिंदाबादÓ के नारे लगाने वाले आज उन्हीं 'अपनोंÓ के लिए 'हल्ला बोलÓ के नारे लगा रहे थे। तल्खी इस कदर बढ़ी कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को गुस्सा आ गया और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को स्वयं आगे आकर समर्थकों को शांत कराना पड़ा।
नए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच सीधा मोर्चा खुल गया था। गुरुवार रात अखिलेश से मिलने के बाद शिवपाल ने इस्तीफा दिया तो उनके समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की थी। शुक्रवार को कई स्थानों पर शिवपाल समर्थक सड़क पर उतरे थे। शनिवार को बारी थी अखिलेश समर्थकों की। विधायकों आनंद भदौरिया, सुनील साजन, सुनील यादव सन्नी, राजेश यादव, रामवृक्ष यादव व राजपाल कश्यप आदि के साथ बड़ी संख्या में अखिलेश समर्थक पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे। आनंद ने मुलायम से अखिलेश को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने की मांग कर दी, तो युवा संगठनों के मुखिया कहां पीछे रहने वाले थे। मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, छात्र सभा के मौजूदा अध्यक्ष दिग्विजय सिंह व पूर्व अध्यक्ष अतुल प्रधान, लोहिया वाहिनी के अध्यक्ष प्रदीप तिवारी व युवजन सभा अध्यक्ष बृजेश यादव ने खुद को अपने पदों से मुक्त करने की पेशकश कर दी।
सपा कार्यालय पर कोई नहीं आया तो ये लोग बगल में मुलायम सिंह के घर पहुंच गए और वहां भीतर घुसने के लिए सुरक्षाकर्मियों से भिडऩे में भी कोताही नहीं की। हंगामा बढ़ता रहा। इससे मुलायम गुस्सा गए। उन्होंने अखिलेश से अपने समर्थकों को शांत करने को कहा। इस बीच शिवपाल समर्थक भी उनके घर के पास इकट्ठे हो गए। मुलायम के गुस्साने पर अखिलेश ने समर्थकों को अपने घर बुला लिया। अखिलेश समर्थक वहां पहुंचे तो उधर शिवपाल समर्थकों के साथ उनकी जवाबी नारेबाजी शुरू हो गई। 'जिंदाबादÓ के साथ 'हल्ला बोलÓ के नारे लग रहे थे। एक जमाने में विरोधियों के लिए मुलायम का दिया नारा 'हल्ला बोलÓ अपनों के खिलाफ ही लग रहा था।
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 अब समझे अखिलेश, खेल नहीं है राजनीति
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-दोहराया इम्तिहान हमारा तो टिकट बंटवारे का अधिकार भी मेरा
-कार्यकर्ताओं के बीच अधिकारों का संघर्ष जारी रखने का संदेश
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लखनऊ : समाजवादी परिवार के 'सत्ता संग्रामÓ के एक अहम किरदार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दर्द अब जुबां पर आने लगा है। शनिवार को उन्होंने कहा कि 'पॉलिटिक्स इज नॉट ए गेम, इट्स ए सीरियस बिजनेस।Ó (राजनीति खेल नहीं, गंभीर कारोबार है) अब इम्तिहान मेरा होगा तो टिकट बंटवारे का अधिकार भी चाहिए। इसके जरिये उन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने का संदेश दे दिया।
समाजवादी परिवार के सत्ता संग्राम पर शांति की चादर डाले जाने के कुछ घंटे बाद ही पांच कालिदास मार्ग स्थित आवास पर अखिलेश ने कहा कि जब उन्हें जिम्मेदारी मिली, समस्याएं आईं, तब पता चला कि राजनीति गंभीर विषय है। नेताजी (मुलायम सिंह) ने उन पर विश्वास किया जिसे बनाये रखने के लिए वह काम कर रहे हैं। भूल गया था कि नेताजी ने उन्हें यूथ विंग काराष्ट्रीय प्रभारी बना रखा है। अब इस जिम्मेदारी की याद आयी तो लगा नौजवानों के बीच बहुत काम करने का मौका मिलेगा। इस सत्ता संग्र्राम से सपा को नुकसान हुआ? इस सवाल पर मुख्यमंत्री बोले, जनता होशियार है। समाजवादी पार्टी नंबर एक पर है। वर्ष 2012 के चुनाव में सिर्फ वादा किया था, जनता सपा से जुड़ी और बहुमत की सरकार बना दी। इस बार जनता के सामने ढेरों काम हैं, कई शहरों में मेट्रो बन रही है।
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गायत्री, पीडब्ल्यूडी पर चुप्पी
अवैध खनन के इल्जामों से घिरे गायत्री प्रजापति को फिर मंत्री बनाने और शिवपाल यादव को पीडब्ल्यूडी महकमा वापस नहीं करने के सवाल को टालते हुए अखिलेश ने कहा कि इस पर फिर बात होगी।
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अध्यक्ष नहीं, चाचा के घर गया
अखिलेश यादव ने कहा कि नए प्रदेश अध्यक्ष को बधाई दी है, कार्यकर्ताओं को भी ऐसा करना चाहिए। जोड़ा कि वह प्रदेश अध्यक्ष के नहीं, चाचा के घर गए थे, जहां चाय भी पी। तंजिया अंदाज में कहा कि मीडिया कर्मियों ने तो खाना खाने से लेकर और ढेरों और बातें दिखा डालीं। अखिलेश शनिवार दोपहर करीब पौने दो बजे शिवपाल के सात, कालिदास मार्ग स्थित आवास पर गए और 25 मिनट वहां रहे।
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कानपुर मेट्रो का शिलान्यास चार को
मुख्यमंत्री ने कहा कई शहरों में एक साथ मेट्रो का काम चल रहा है और वह चार अक्टूबर को कानपुर मेट्रो का शिलान्यास करेंगे। लखनऊ की तरह की तेजी से उसका काम भी कराया जाएगा। एक्सप्रेस वे से क्या फायदा होगा, यह जाकर कार्यकर्ता लोगों को बताएं।
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 नौजवान षड्यंत्र समझें
समर्थन में सड़कों पर उतरी युवा ब्रिगेड को अपने पांच कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास पर बुलाकर मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकारों का संघर्ष तो चलता रहेगा मगर मैं नेताजी के फैसलों को मानूंगा। कार्यकर्ता सरकार बनाने के लिए जुटें, आंदोलन खत्म करें। किसी के खिलाफ नारेबाजी नहीं करें। कुछ युवा कार्यकर्ताओं ने पद छोडऩे की धमकी दी है, उन्हें पद छोडऩे की जरूरत नहीं। पद पर बने रहें और सरकार बनाने के लिए काम करें। बहुत लोग षड्यंत्र कर रहे हैं, उनसे सावधान रहें।

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युवाओं की लड़ाई जारी रहेगी : अखिलेश
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लखनऊ : पत्नी डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज के सैकड़ों कार्यकर्ता शनिवार देर शाम जब मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो अखिलेश यादव ने उन्हें बुलाया और कहा कि वह युवाओं की लड़ाई लड़ रहे हैं, परिवार में सब ठीक है, परेशान होने की जरूरत नहीं है। वर्ष 2017 में फिर सरकार बनाने के लिए जुटना होगा। कन्नौज से आने वालों जिलाध्यक्ष नवाब सिंह, यूथ ब्रिगेड की मोना यादव, संजय दुबे, संजू कटियार, गणेश द्विवेदी, अमित मिश्र राजकला, योगेन्द्र यादव समेत तकरीबन दो सौ लोग थे। इससे पहले मुख्यमंत्री ने सुबह से शाम तक कई चक्रों में युवा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव की तैयारी में लगें, किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं किया जाए। नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ चुनाव जीतने में ताकत झोंके।

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न्यूज प्वाइंट
-दिलीप अवस्थी
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बड़े नेता बड़े-बड़े पद छोड़कर यूं ही नहीं पार्टी के छोटे से कार्यकर्ता बनने की बात करने लगते हैं। पिछले एक हफ्ते में परिवारवाद का गहराता साया सरकार की और विशेषकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि को एक ही सांस में लील गया।
लीपापोती होनी ही थी सो सपा प्रमुख मुलायम सिंह के बीच में पड़ते ही हो भी गई। वक्ती समझौता भी सामने आ गया है जिसके अनुसार अखिलेश से लेकर शिवपाल को दिया गया पद चाचा के पास ही रहेगा। उनके चार विभाग तो वापस हुए लेकिन, पीडब्ल्यूडी नहीं मिला। उनके खास गायत्री प्रजापति फिर से मंत्री बनाए जाएंगे। एक संवाददाता सम्मेलन में आमतौर पर हंसमुख अखिलेश यादव तल्ख दिखे - 'नेता जी (मुलायम) जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा। चाचा के सारे विभाग वापस हो गए हैं लेकिन, मेरा क्या? मेरा भी तो अध्यक्ष पद गया है।Ó फिर शनिवार को जिस तरह अखिलेश की यूथ सेना समर्थकों ने सुबह से आक्रामक रुख अपनाया हुआ था, उससे साफ जाहिर है कि परिवार की अंदरूनी लड़ाई अब सड़क पर आ चुकी है। अखिलेश समर्थक नारेबाजी करते, शोर मचाते मुलायम के घर के सामने जब प्रदर्शन करने लगे तो मुलायम को मजबूरन अखिलेश को फोन पर कहना पड़ा 'इनको यहां से तुरंत हटाओ।Ó उधर शिवपाल के घर पर भी उनके समर्थकों की भीड़ सड़क पर खड़ी गुस्से से मुख्यमंत्री आवास की ओर घूर रही थी। जब मुलायम के यहां से अखिलेश समर्थक मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो लगा कि कहीं दोनों नेताओं के समर्थकों में टकराव न हो जाए।
शिवपाल भी दो दिन से पूरे तेवर में थे। घर से बाहर निकलते वक्त उन्होंने खास ध्यान रखा कि गायत्री प्रजापति उनके बगल में हों और अखबार के फोटोकर्मियों को अच्छी तस्वीरें बनाने का मौका मिल सके। पहले उन्होंने मुलायम सिंह से मुलाकात की और फिर दरबार में अखिलेश की हाजिरी हुई। शुक्रवार को अखिलेश के टीवी कार्यक्रम के बाद उसी मंच पर शिवपाल भी पहुंचे और मन की पूरी भड़ास भी निकाली।
बुधवार को अखिलेश जिसे परिवार का नहीं सरकार का झगड़ा बता रहे थे वह समझौता होते-होते दरअसल कुर्सी का झगड़ा निकला और वह भी 2017 में अगर कुर्सी मिली तो किसकी होगी? स्वयं अखिलेश ने टीवी कार्यक्रम में स्वीकार करते हुए कहा, 'यह परिवार का नहीं, असल में कुर्सी का झगड़ा है।Ó इसी मंच पर जब शिवपाल से पूछा गया झगड़ा है? तो उनका कहना था, 'हमने भी कई मुख्यमंत्री देखे हैं लेकिन कुछ लोग कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं। उनमें अहम आ जाता है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि यह जनता की कुर्सी है, इस पर बैठकर न्याय करना चाहिए।Ó
कुल मिलाकर सियासी शोले ऊपर से तो बुझे दिखते हैं लेकिन फिर हवाएं चलीं तो दहकते नजर आएंगे। इस एक हफ्ते के दौरान अखिलेश ने अगले चुनाव की दौड़ में सपा को जो बढ़त दी थी वह काफी हद तक बराबर सी हुई दिखती है। जब बाकी सारी पार्टियों की कमजोरियां सपा के खाते को मजबूत कर रही थीं, वहीं अब मुलायम की पारिवारिक कलह ने उनकी पार्टी को भी बाकी तीनों पार्टियों के लगभग समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपने बड़े नेताओं की भगदड़ से त्रस्त नजर आ रही, वहीं प्रदेश भाजपा नेतृत्वहीन व दिशाहीन दिख रही थी। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को प्रदेश का चेहरा बनाकर 2017 के चुनाव को दर्शक दीर्घा से ही देखने का फैसला ले लिया था। ऐसे में एकमात्र युवा नेता होने के कारण और प्रदेश की तस्वीर बदलने का सपना बुन रहे अखिलेश को उनके विरोधियों का भी समर्थन उनकी छवि के कारण मिल जाया करता था लेकिन, इस बार घर के बर्तन सिर्फ जोर से बजे ही नहीं, सबके सामने सड़क पर फेंके भी गए। इससे अखिलेश के नेतृत्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। ऐसे में जब प्रदेश का 51 प्रतिशत वोटर युवा है (18 से 35 वर्ष), अखिलेश का स्पष्ट नेतृत्व सपा को लाभ पहुंचा सकता था। उम्र की इस दहलीज पर मुलायम सिंह ने किसी तरह परिवार बांधे रखने को वरीयता दी है।
शनिवार को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम ने शिवपाल की प्रशंसा के पुल बांध दिए और कहा कि 'शिवपाल की कुर्बानियों को भूलना नहीं चाहिएÓ। शिवपाल सिंह ने देर शाम पार्टी महासचिव अरविंद सिंह 'गोपÓ और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी पर अब उनका ही अधिकार रहेगा। इस सारे घटनाक्रम के चलते अब अब जल्द ही पूछा जाने लगेगा कि सपा से अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?

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