Sunday 18 September 2016

समाजवादी कुनबे की कलह-५


सपा कलह ब्यूरो : कामन इंट्रो
समाजवादी परिवार के प्रमुख सदस्यों की मौजूदगी में रविवार को दिल्ली की एक दावत से निकली 'बातÓ से समाजवादी पार्टी में शुरू हुए बतंगड़ ने गुरुवार रात तक जिस घमासान का रूप लिया, उस पर शुक्रवार को परिवार व पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपना फार्मूला देकर नियंत्रण पा लिया। इसके बावजूद, दिनभर अलग-अलग समय पर अखिलेश यादव व शिवपाल यादव ने अहम, अधिकारों व जज्बातों का जो गुबार उड़ेला उससे यह नियंत्रण सिर्फ ब्रेकर भर प्रतीत होता है। भविष्य में फिर बात बिगडऩे की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

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सपा कलह 4- ब्यूरो : हारे तो मुलायम, जीते तो मुलायम
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-टिकट बंटवारे की अग्नि परीक्षा से भी मुलायम को गुजरना होगा
-रविवार को हाई प्रोफाइल पार्टी से शुरू सियासी घमासान, फैसलों में बदलाव से थमा
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परवेज अहमद, लखनऊ : कहने को समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने फिर घर के चारों खाने दुरुस्त कर लिए मगर सियासी चेतना से परखें तो यह उनकी शिकस्त ही है। हार सिर्फ एक मोर्चे पर नहीं बल्कि कई कोण से हुई है।
बात की शुरुआत रविवार को दिल्ली में अमर सिंह की हाईप्रोफाइल पार्टी से। इस पार्टी में 'निकली एक बातÓ इतनी मारक रही कि सोमवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रजापति व उनके साथ पंचायतीराज मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया। यह भनक लगते ही गायत्री ने मुलायम सिंह के दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाई और तत्कालीन मुख्य सचिव दीपक सिंघल की कुछ टिप्पणियों को उजागर किया। टिप्पणियां परिवार पर थी, यह पता चलते ही अखिलेश ने मंगलवार को दीपक सिंघल को मुख्य सचिव  पद से कार्यमुक्त कर दिया। दीपक पर कार्रवाई की भनक लगते ही 'बाहरी व्यक्तिÓ ने मुलायम से दिल्ली में ही भेंट की और उनकी बातचीत में समाजवादी पार्टी की खराब राजनीतिक स्थिति और युवा ब्रिगेड की कारगुजारियां निशाने पर आये। संगठन कमजोर होने की बात कही गई। तर्क दिया गया कि मुख्यमंत्री संगठन को समय नहीं दे पा रहे हैं। संगठन की कार्यशैली से नाराज सपा मुखिया ने अखिलेश यादव को विश्वास में लिए गये बगैर प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को कुर्सी सौंप दी। जिससे खफा मुख्यमंत्री ने शिवपाल के नौ में से सात विभाग लेकर एक्शन का रि-एक्शन किया। मुख्यमंत्री ने पीडब्लूडी अपने पास रख कर बाकी विभाग उन मंत्रियों को सौंप दिये जो शिवपाल के करीबी कहे जाते थे। इससे नाराज शिवपाल ने इटावा में रहते हुए मंत्री पद व प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का संकेत दिया।
इस हाई प्रोफाइल घटनाक्रम को सामान्य करने के प्रयास भी शुरू हुए मगर गुरुवार को पार्टी के महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव ने पूरे घटनाक्रम का ठीकरा मुलायम सिंह यादव पर फोड़ते हुए कह दिया कि मंत्रियों को हटाने का फैसला उनकी मर्जी से हुआ। मुख्यमंत्री को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का आदेश दबाव डालकर जारी कराया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश ने अपना दर्द जाहिर करते हुए कह ही चुके थे कि बाहरी व्यक्ति परिवार में कलह करा रहा है।
तल्खी भरे बयान के बाद प्रो,रामगोपाल सैफई रवाना हो गए जबकि मुलायम और शिवपाल दोनों लखनऊ में मौजूद थे। प्रो.रामगोपाल के बयान के कुछ घंटे बाद शाम को ही शिवपाल यादव ने लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर मुलायम और फिर पांच कालिदास मार्ग स्थित आवास पर जाकर अखिलेश से मुलाकात की। फिर हालात पर नियंत्रण के दावे किए गए मगर रात होते-होते अचानक शिवपाल ने मंत्री पद और संगठन के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया तो सियासी भूचाल आ गया। शिवपाल समर्थकों का जमावड़ा लग गया। नारेबाजी हुई मगर रात में मुख्यमंत्री ने मंत्री पद से इस्तीफा अस्वीकार कर डैमेज कंट्रोल शुरू किया। शुक्रवार सुबह मुलायम सिंह ने शिवपाल को विक्रमादित्य मार्ग स्थित अपने आवास पर बुलाया और प्रदेश अध्यक्ष पद का इस्तीफा भी अस्वीकार कर दिया। कुछ ही देर बाद मुलायम ने अखिलेश को बुलाया और 20 मिनट के अंदर पांच दिनों से चल रहे संग्र्राम के उपसंहार का फार्मूला तैयार हो गया। कहने को पूरा मामला शिवपाल, अखिलेश के इर्दगिर्द मगर असली कड़ी गायत्री साबित हुए। इस पूरे घटनाक्रम से पहले सपा को फिर से स्थिर कर दिया हो मगर यह तय है कि इसमें हार मुलायम की ही हुई है। क्योंकि इस प्रकरण से भविष्य का वो बीज बो दिया गया जिसकी फसल चुनाव में और उसके बाद भी देखने को मिलेगी। यह सबसे बड़ा दर्द मुलायम को ही देगी जिन्होंने अक्टूबर 1992 में पार्टी के गठन के बाद कभी  'घर की ऐसी रार और हारÓ नहीं देखी है। कहना अतिशयोक्ति न होगी कि अभी सपा मुखिया को एक बार अग्निपरीक्षा से और गुजरना बाकी है। वह मौका होगा टिकट का बंटवारा। शिवपाल-अखिलेश और रामगोपाल अपने करीबियों को Óयादा से Óयादा टिकट दिलाने की होड़ में दिखेंगे जिससे चुनाव बाद पार्टी में असल असर दिख सके।

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सपा कलह & - ब्यूरो : घरेलू अखाड़े में बेबस मुलायम
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सियासी दंगल में विरोधियों पर चरखा दांव आजमाने के माहिर मुलायम सिंह यादव घरेलू अखाड़े में बेबस दिखे। सत्ता पाने के लिए परिवार में जारी घमासान उनका सिरदर्द बना है। पांच दिनों से चल रहे सत्ता संघर्ष से समाजवादी साख को भी बट्टा लगा। वर्ष 2017 में फिर सरकार बनाने की कोशिश में जुटी समाजवादी पार्टी सन्नाटे में है। देखना यह है कि मुलायम घर में उठे तूफान के बाद कैसे डैमेज कंट्रोल कर पाते हैं।
मुलायम 1967 में पहली बार डा. लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर विधायक चुने गए परंतु डा.लोहिया के निधन के बाद 1968 में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह को 1977 तक इंतजार करना पड़ा।
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अजित पर भारी पड़े मुलायम
भारतीय लोकदल में रहते हुए मुलायम सिंह को अपना सियासी वजूद बचाने के लिए चौ. चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह से भी टकराव लेना पड़ा था। वर्ष 1987 में मुलायम ने अजित से अलग होकर लोकदल (ब) बनाया और लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने खुद को केवल प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय सियासत में भी साबित किया।
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अयोध्या गोलीकांड
रामजन्म भूमि मंदिर आंदोलन के दौरान वर्ष 1990 का अयोध्या गोलीकांड भी मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा। पुलिस की गोलियों से 16 कारसेवकों की मौत हो जाने से मुलायम के करियर पर सवाल उठने लगे थे परंतु वर्ष 199& में बसपा के साथ गठजोड़ कर उन्होंने शानदार राजनीतिक वापसी की। यह अलग बात है कि सपा व बसपा गठजोड़ अधिक दिन तक नहीं चल पाया।
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रामपुर तिराहा कांड
मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन में उत्तराखंड आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 का वीभत्स कांड भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस की गोलियों से आधा दर्जन लोग मारे गए थे और महिलाओं से दुष्कर्म के मुद्दे पर मुलायम चौतरफा घिरे थे। रामपुर तिराहा कांड के बाद अलग उत्तराखंड गठन की राह आसान हो गयी थी। मुलायम की राजनीतिक नाव डगमगायी जरूर परंतु जल्द ही मुख्यधारा में आ गयी।
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गेस्ट हाउस कांड
दो जून 1995 की घटना भी मुलायम सिंह यादव के सियासी जीवन की विकट घड़ी रही। वर्ष 199& में जब सपा-बसपा सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ था तब 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गया जय श्रीरामÓ नारे लगे थे। प्रदेश में दलित, पिछड़ा व मुस्लिम गठबंधन की शुरुआत हुई थी। पूरे देश में इस गठबंधन को बड़ी आशा से देखा जा रहा था परंतु दो जून 1995 को मीरा बाई गेस्ट हाउस में घटित घटना ने मुलायम सिंह को एक बार फिर हाशिए पर ला दिया। इसे मुलायम सिंह यादव का जुझारूपन ही कहा जाए जो उन्होंने अगस्त 200& में फिर से मुख्यमंत्री पद हासिल करने में कामयाबी हासिल की।

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राब्यू, लखनऊ : दिन में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा दिये गए फार्मूले की घोषणा पर शाम होते-होते मुख्यमंत्री की मुहर भी लग गयी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने शुक्रवार शाम ट्वीट कर गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल किये जाने और शिवपाल सिंह यादव को विभाग वापस किये जाने की जानकारी दी।

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लीड-सपा कलह पैकेज-मुलायम फार्मूले से टला संकट
परिवार की कलह
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मुलायम बोलेे, मेरे रहने तक पार्टी टूटेगी नहीं
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एकता फार्मूला
-शिवपाल यादव सपा के प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। लोक निर्माण समेत सभी विभाग उन्हें वापस होंगे
-बाहरी व्यक्ति को समाजवादी परिवार से बाहर रखा जाएगा
-अखिलेश समाजवादी पार्टी राज्य संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष होंगे
-सरकार व संगठन में गतिरोध की जानकारी मुलायम को दी जाएगी
-प्रदेश अध्यक्ष सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे
-मुख्यमंत्री भी सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे
-बर्खास्त मंत्री गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्री बनाया जाएगा
-सरकार में ब्राह्मïणों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा
-जियाउद्दीन को मंत्री पद की शपथ दिलायी जाएगी
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार में चल रहे सत्ता संग्राम के पांचवें दिन मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कमान संभाली। म्यान से तलवारें खींचे खड़े योद्धाओं को 'थोड़ा तुम झुको और थोड़ा तुम भीÓ का मंत्र देकर सियासी ड्रामे का उपसंहार किया और शिवपाल यादव के पुराने विभाग उन्हें लौटाने, गायत्री प्रजापति को फिर मंत्री बनाने और अखिलेश यादव को राज्य संसदीय बोर्ड की कमान सौंपने के फार्मूले पर सहमति बनवायी।
मुलायम ने युद्ध विराम का फार्मूला तय करने से पहले शिवपाल यादव को विक्रमादित्य मार्ग बुलाकर उनका इस्तीफा लौटाया और करीब 20 मिनट तक उनसे बातचीत की। शिवपाल ने परिवार के एक सदस्य का नाम लेकर कहा कि वह न सिर्फ भूमाफिया, दलालों को संरक्षण दे रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश को उनके खिलाफ भड़काते भी रहते हैं। उनके लौटने के बाद मुख्यमंत्री सपा मुखिया के पास पहुंचे। मुख्यमंत्री ने मुलायम से कहा कि उनके आदेश सिर माथे मगर उनके सम्मान का क्या होगा? इस पर बीच वाले (अमर सिंह की ओर इशारा) को हटाने और अखिलेश को राज्य संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी। दोनों से चर्चा के बाद मुलायम कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे। कहा कि उनके रहते पार्टी में टूट नहीं हो सकती। पार्टी और परिवार में कलह नहीं है। कहा कि शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे, उनके विभाग भी वापस होंगे। कार्यकर्ताओं में चिंता है मगर अखिलेश, शिवपाल और रामगोपाल में कोई झगड़ा नहीं है। पार्टी के दूसरे नेताओं में भी मतभेद नहीं हैं।Ó सपा सुप्रीमो बोले, 'अखिलेश आए थे। मिलकर गए हैं। चुनाव में कैसे काम करना है, यह बता दिया है। हम अपने क्षेत्र से चुनाव प्रचार शुरू कर रहे हैं। आप लोगों ने पांच साल बहुत मेहनत की है। सरकार बहुत अ'छी चली है।Ó मुलायम ने कहा, 'वे कौन-सी शक्तियां हैं जो नहीं चाहतीं कि समाजवादी पार्टी की सरकार बने, उनसे सतर्क रहना। बहुत बड़ा परिवार है, समाजवादी परिवार है। हमारे परिवार में थोड़ा-बहुत तो होता रहता है। सबसे यही कहा है कि शंका-समाधान कर लेना।Ó मुलायम ने कहा, 'गायत्री प्रजापति की बर्खास्तगी रद की जाएगी। वह फिर मंत्री बनेंगे।Ó
अपने पीएम बनने के बारे में मुलायम ने कहा, हम 11 बार विधायक बने। नेता प्रतिपक्ष रहे, रक्षा मंत्री बने। प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। आज लालूजी से फोन पर बात की। लालूजी सिर्फ रिश्तेदार नहीं, नेता हैं। हैसियत वाले नेता हैं। उन्हें भी चिंता थी। वह हमने दूर कर दी। हमने कहा कि हमारी बात कोई नहीं टालेगा। यह घोषणा कर सपा मुखिया फिर विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पहुंचे, जहां अखिलेश, शिवपाल के साथ फिर तकरीबन आधे घंटे तक चर्चा की और समाधान फार्मूले को अंतिम रूप दिया। सूत्रों का कहना है कि दो दिन में फार्मूले पर अमल होना शुरू हो जाएगा।

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 सिंघल के नये दायित्व पर भी उठे सवाल
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-राज्य सतर्कता आयोग के अध्यक्ष पद पर पहले बिठाए जाते थे अति प्रतिष्ठित अफसर
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लखनऊ : समाजवादी कुनबे की कलह के बीच मुख्य सचिव की कुर्सी से हटाए गये दीपक सिंघल के नये दायित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं। सिंघल को राज्य सतर्कता आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। यह पद भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसने के लिए बेहद अहम माना जाता है।
 एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कहना है कि पहले अति प्रतिष्ठित अफसरों को इस पद पर तैनाती दी जाती थी। विवादों में घिरे सिंघल को यह पद सौंपे जाने पर सरकार के फैसले पर भी टिप्पणी हो रही है। सतर्कता अधिष्ठान अधिनियम 1965 के तहत राज्य सतर्कता आयोग ही विजिलेंस की रिपोर्ट पर तय करता है कि किसके खिलाफ कार्रवाई की जाए और किसके खिलाफ नहीं। एक अफसर ने कहा कि यह पद बेजा दबाव बनाने वालों के लिए उपयुक्त नहीं है। यह अलग बात है कि सरकार कई बार आयोग की संस्तुतियों की भी अनदेखी कर देती है। इसलिए बहुत से लोगों को राहत है। भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों के नेताओं का कहना है कि सरकार खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है तो भ्रष्ट अफसरों को ऐसे पदों पर तैनात नहीं करेगी तो किसे करेगी।
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 रार के पीछे 12 हजार करोड़ का ठेका!
 लखनऊ : 'बाहरी व्यक्तिÓ ने एक कंपनी को प्रदेश सरकार से 12 हजार करोड़ का ठेका दिलाने के लिए एक बड़े अधिकारी से गठजोड़ कर लिया था जिसकी भनक लगने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव पद से दीपक सिंघल को हटाया? इसके बाद समाजवादी परिवार व सरकार में शुरू हुए रार के पीछे कुछ इसी तरह की ही चर्चा है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने जिस व्यक्ति को परिवार के बाहर का बताया है वह सियासी मामलों में ही नहीं, ठेका-पट्टा हासिल करने के मामलों में भी उन पर दबाव बना रहा था। उसने एक बड़े नौकरशाह को अपने पाले में कर दिल्ली की एक कंपनी को समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे परियोजना के 12 हजार करोड़ रुपये के निर्माण कार्य का ठेका दिलाने की रणनीति बना ली थी जबकि अखिलेश यादव उस कंपनी का एकाधिकार कतई नहीं होने देना चाहते थे। मुख्यमंत्री रिकार्ड समय में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस बनाने वाली कंपनियों को भी इस प्रोजेक्ट से जोड़े रखना चाहते थे लेकिन बाहरी व्यक्ति पूरा कार्य उसी कंपनी को दिलाना चाहता था इसके लिए उसने समाजवादी परिवार के सदस्यों के माध्यम से भी दबाव बनाना शुरू कर दिया था। इससे जुड़ी बातचीत का एक ऑडियो टेप मुख्यमंत्री तक भेजा गया। इसके अलावा नोएडा और गाजियाबाद के कुछ प्रोजेक्ट का लाभ भी खास कंपनियों को दिलाने की भूमिका तैयार हो गयी थी, जिसकी भनक लगने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भड़क गये और मुख्य सचिव पद से न सिर्फ दीपक सिंघल की विदाई हो गई बल्कि मुख्यमंत्री ने परिवार में इस बाहरी का दखल रोकने की ठान ली।
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 सिर्फ गायत्री की बहाली पर उठे सवाल
-सोशल मीडिया से सपा कार्यकर्ताओं तक चर्चाओं का बाजार गर्म
लखनऊ : पांच दिन पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से राजभवन को भेजे जिस एक पत्र ने समाजवादी परिवार में संकट की नींव डाली थी, शुक्रवार को समाधान का रास्ता भी उसी पत्र के इर्द-गिर्द कई सवाल लिये घूमता रहा। दरअसल, सोमवार को मुख्यमंत्री ने खनन मंत्री गायत्री प्रजापति व पंचायतीराज मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त किया था। शुक्रवार को सिर्फ गायत्री की बहाली होने पर खूब सवाल उठे।
शुक्रवार दोपहर को जैसे ही सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने गायत्री प्रजापति की बहाली का एलान किया, कार्यकर्ताओं में खुसफुसाहट शरू हो गयी थी। शाम होते-होते यह खुसफुसाहट सोशल मीडिया, वाट्सएप आदि तक भी पहुंच गयी। लोगों का कहना था कि गायत्री के खिलाफ खनन माफिया को संरक्षण देने के साथ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने से लेकर कई गुना संपत्ति बढऩे तक के आरोप हैं। राजकिशोर के खिलाफ भी ऐसे ही आरोप हैं। ऐसे में सिर्फ एक की वापसी सवाल खड़े करती है। कहा गया कि गायत्री हटाए जाने के तत्काल बाद न सिर्फ मुलायम सिंह, राम गोपाल व शिवपाल, सभी की शरण में गए, बल्कि शुक्रवार सुबह से ही शिवपाल के साथ नजर आने लगे थे। इसके विपरीत राजकिशोर इस दौरान दिखाई नहीं दिये। ----

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 नारेबाजी में कलह और जुड़ाव के नजारे
-सपाइयों ने पहली बार प्रो.राम गोपाल विरोधी नारे लगाए
लखनऊ : शुक्रवार को भी कालीदास मार्ग और विक्रमादित्य मार्ग पर समाजवादी कलहके नजारे, नारेबाजी में भी नजर आया। शिवपाल समर्थकों द्वारा पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव के खिलाफ नारेबाजी भीतरी असंतोष को दर्शा रही थी। शिवपाल के फोटो वाली टी शर्ट पहने युवाओं की टोली अधिक सक्रिय थी। हालांकि अखिलेश यादव को बड़ा दिलवाला बताने वाले नारे भी दिन भर लगते रहे।
गुरुवार रात्रि में शिवपाल समर्थक जो तेवर बनाए थे वहीं शुक्रवार को सुबह भी दिखे। समर्थकों को शांत करने के लिए शिवपाल सुबह अपने आवास सात कालीदास बाहर आए तो जिंदाबाद के नारों की गूंज मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच रही थी। शिवपाल ने बाहर निकलकर समर्थकों को शांत कराते हुए पार्टी दफ्तर पहुंचकर नेताजी के सामने अपनी बात रखने को कहा। इस दौरान कुछ लोगों ने शिवपाल की तस्वीरें वाली टी-शर्ट बांटनी शुरू कर दी। जिसे हासिल करने के लिए सपाइयों में जोर आजमाइश शुरू हो गयी। कुछ देर बाद ही सैकड़ों युवक शिवपाल की तस्वीरों वाली टी-शर्ट में नजर आने लगे।
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रामगोपाल विरोधी नारे
समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक कहे जाने वाले प्रो.राम गोपाल यादव के खिलाफ कार्यकर्ताओं ने खुलकर नारे लगाए। उनको सपा से बाहर करने की मांग उठाई। कार्यकर्ताओं ने कहा कि प्रोफेसर ने बिहार का गठबंधन तुड़वाकर मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय नेता बनने से रोक दिया। उन पर भाजपा से मिला होने के इल्जाम भी लगाये गये।
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अखिलेश बड़ा दिलवाला
शिवपाल यादव के विभाग वापसी, प्रदेश अध्यक्ष बना रहने और गायत्री को मंत्री बनाये जाने पर सपाइयों ने मुख्यमंत्री को बड़ा दिल वाला बताते हुए नारे लगाये गये। यह सिलसिला दोपहर साढ़े बारह बजे से शुरू होकर शाम को चार बजे तक चला।
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रिमझिम में बढ़ती तकरार
अपराह्न करीब तीन बजे पार्टी दफ्तर के बाहर कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा थी। अधिकतर कार्यकर्ता इटावा, बदायंू व मैनपुरी जिलों से आए थे। बूंदाबांदी में भीग रहे रामनिवास का कहना था कि झगड़े की जड़ बाहर नहीं घर के भीतर है। उनका इशारा पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव की ओर था। रामनिवास के तर्क पर सुरेशपाल सिंह ने सहमति जतायी तो फीरोजाबाद के सतेंद्र सिंह ने एतराज जताया। तकरार बढऩे लगी तो आसपास खड़े सपाइयों ने माहौल खराब नहीं करने की हिदायत देते हुए कहा नेताजी सब ठीक कर देंगे।
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मुझे लालसा नहीं, अखिलेश फिर बनें सीएम
 कई अहम बातें अलग-अलग सबहेड से दी गई हैं। खबर के डिस्प्ले में इन्हें हाईलाइट किया जा सकता है।
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- नरम पड़े शिवपाल ने कहा, कुछ मसलों का रास्ता नेताजी ने निकाल लिया
-दलालों के खिलाफ बड़ों के आड़े आने की तकलीफ
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लखनऊ : सरकार व संगठन के ओहदों से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी को संकट में डालने वाले शिवपाल यादव के तेवर शुक्रवार को नरम दिखे। कहा कि जमीन कब्जाने व दलालों के खिलाफ कार्रवाई में बड़ों के आड़े आने की तकलीफ है। उनके मन में मुख्यमंत्री पद की लालसा नहीं है और चाहते हैं कि अखिलेश फिर सीएम बनें।
पांच दिनों से सपा में चल रहे घमासान के बीच एक कार्यक्रम में पहुंचे शिवपाल ने कहा कि परिवार में झगड़ा नहीं है। जो कुछ बातें हैं, नेताजी (मुूलायम सिंह) ने उनका रास्ता निकाल लिया है। 2017 में हम प्रचंड बहुमत की सरकार बनाएंगे। नेताजी का फैसला मेरे लिए सब कुछ है। वर्ष 2011 में वह जब कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रहे थे, तभी नेताजी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश को जिम्मेदारी सौंप दी थी, तब भी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की।
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कुछ बातों पर पर्दा रहेगा
कहा कि कुछ बातें हैं, जिन्हें नहीं कहेंगे। टेलीफोन पर कुछ बातें होती है, इससे कई बार गलतफहमी होती है मगर चीजों को समझने की जरूरत है। बेटे, भाई से मतभेद होते हैं, मगर जब परिवार का मुखिया बीच में पड़ जाता है तो सब ठीक हो जाता है।
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नुकसान नहीं कर सकते अमर
शिवपाल यादव ने एक बार फिर अमर सिंह का बचाव करते हुए कहा कि वह समाजवादी पार्टी व हमारे परिवार का कभी नुकसान नहीं कर सकते हैं। अखिलेश के इर्द-गिर्द भी ढेरों ऐसे लोग हैं जो यह सब कार्य करते हैं। वे यहां भी मौजूद होंगे और वाट्सएप पर मैसेज कर रहे होंगे, मगर इसमें बुद्धि लगाने की जरूरत होती है।
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अखिलेश बेटा है, कंप्टीशन नहीं
शिवपाल ने कहा कि अखिलेश चार साल की उम्र से उनके साथ रहे। मैंने और मेरी पत्नी ने उन्हें पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। बेटा सूबे की सबसे ऊंची कुर्सी पर है तो कोई कंप्टीशन नहीं है। नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का सम्मान वापस कराने के लिए बसपा सरकार में संघर्ष किया। 2012 में सरकार बनी तो चाहता था कि नेताजी मुख्यमंत्री बने और लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया जाए। उस समय नेताजी ने फैसला किया तो फिर स्वीकार किया। वह समाजवादी परिवार के मुखिया हैं, उनका कहा मेरे लिए सब कुछ है।
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अखिलेश को अनुभव की जरूरत
शिवपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री को अभी अनुभव की जरूरत है। मैं खुद जब छोटा था तो नेताजी की नकल करता था। छुपकर उनकी धोती पहनकर घूमता था। सब कुछ उनसे ही सीखा है। उनका काम भी संभाला है। अखिलेश को उनके साथ मुझसे भी सीखना चाहिए।
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अखिलेश फिर मुख्यमंत्री बनें
कहा कि जब मुलायम के साथ आया तो छोटी-मोटी नौकरी की इ'छा थी, वह मिल गई थी, मगर छोड़ दिया। नेताजी का काम संभाला, तब भी महत्वाकांक्षा नहीं थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बना। कोआपरेटिव का अध्यक्ष रहा। चार बार एमएलए चुना गया। मंत्री रह लिया। मुख्यमंत्री बनने की चाहत नहीं। प्रदेश अध्यक्ष का पद तो मेहनत का है। संघर्ष करना पड़ेगा। घोषणा की कि 2017 में बहुमत मिलने पर अखिलेश को फिर मुख्यमंत्री बनाऊंगा। स्वयं उनके नाम का प्रस्ताव भी करूंगा।
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कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं
मैने बहुत से मुख्यमंत्री देखे हैं। कुछ लोग कुर्सी पर बैठकर घूमने लगते हैं। याद रखना चाहिए कि यह जनता की दी हुई कुर्सी है। जिसे पार्टी नेतृत्व सौंपता है। इस पर बैठकर घूमना नहीं, न्याय करना आना चाहिये। इसके लिए अनुभव की भी जरूरत होती है।
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टिकट तो मुलायम बांटेंगे
विधानसभा चुनाव को खुद का इम्तिहान बताते हुए मुख्यमंत्री खुद टिकट बांटना चाहते हैं, इस सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि चुनाव कैसे लड़ा जाएगा, यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष (मुलायम सिंह) तय करेंगे और टिकट भी वही बांटेंगे, अखिलेश जिसे टिकट के लिए कहेंगे क्या कोई मना कर देगा? अपराधी छवि के लोगों को टिकट नहीं मिलेगा। तो फिर मुख्तार की पार्टी का विलय क्यों किया? शिवपाल ने कहा कि वह नेताजी की मर्जी के बगैर कुछ नहीं करता है। विलय का फैसला भी उनका था और रद करने का भी फैसला उनका था। अब फिर अफजाल अंसारी और उनके भाई को लेने का फैसला नेताजी ने लिया है।
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 झगड़े की वजह मेरी कुर्सी ः अखिलेश

-मांगने वाला अ'छा हो, तो मुख्यमंत्री पद भी दे दूंगा
-सब ले लो, बस टिकट मुझे बांटने दो
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 लखनऊ : समाजवादी परिवार में मचे सियासी घमासान के बीच शुक्रवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ कहा, 'झगड़ा मेरी नहीं, मेरी कुर्सी की वजह से हैÓ। राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा कि 'मुझसे सब ले लो, बस टिकट मुझे बांटने दो क्योंकि चुनाव में परीक्षा उनकी भी होगी।Ó वह यहां तक कह गए कि 'मांगने वाला अ'छा हो, तो मुख्यमंत्री पद भी दे दूंगाÓ।
पांच दिनों में पहली दफा जनता से सीधा संवाद कर रहे मुख्यमंत्री ने दिल की बातें कीं। उन्होंने कहा, परिवार में कोई झगड़ा नहीं है। वह बोले, मेरी वजह से तो बिल्कुल झगड़ा नहीं है, जो है वह मेरी कुर्सी की वजह से है। मैंने जो फैसले लिये, वे साहसिक थे। यह जनता भी जानती है। इसके बावजूद मैं नेताजी को खुश रखने के लिए कुछ भी करूंगा। गायत्री प्रजापति को पुन: मंत्री बनाने के सवाल पर उन्होंने सकारात्मक संकेत दिये और कहा कि नेताजी के फैसले पर अमल होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि सब कुछ ले लो। जो चाहे विभाग ले लो, प्रदेश अध्यक्षी ले लो, किंतु टिकट मुझे बांटने दो। पांच साल बाद चुनाव में जनता के बीच जाने पर परीक्षा तो मेरी होगी, इसलिए बस इतना कहूंगा कि टिकट वितरण में मेरा कहना माना जाए। मुख्यमंत्री द्वारा 'सब कुछ ले लोÓ कहे जाने पर पूछा गया कि कोई मुख्यमंत्री पद मांगे तो? इस पर वे बोले, 'मांगने वाला अ'छा हो, तो वह पद भी दे दूंगाÓ।
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मेरी व चाचा की बात कोई नहीं जान सकता
शिवपाल से विवाद पर मुखर होकर कहा, 'मैं उनको चाचा मानता हूं, इसीलिए इस्तीफा स्वीकार नहीं किया।Ó हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं है, नाराजगी हो सकती है, मैं उनकी नाराजगी भी खत्म कर दूंगा। मेरी और चाचा के बीच हुई बात कोई नहीं जान सकता। वैसे भी हम सभी एक साथ हों, इससे अ'छा क्या हो सकता है?
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बीच के आदमी को बाहर कर देंगे
अखिलेश से पूछा गया कि उनसे मुलाकात के बाद शिवपाल ने इस्तीफा क्यों दिया तो वे बोले कि मुझसे मिलने व इस्तीफे के बीच डेढ़ घंटे का अंतर है। इस दौरान तमाम वाट्सएप और मोबाइल पर फोन आए, जिसके बाद चीजें बिगड़ीं। यह बीच का आदमी है, जिसने गड़बड़ किया। ये बीच के लोग ही गड़बड़ करते हैं। अब हमने तय किया है कि बीच के इंसान को नहीं आने देंगे। कोई बीच में आएगा तो बाहर निकाल देंगे।
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उन्हें नहीं कहूंगा अंकल
बीच के आदमी की चर्चा के बीच अखिलेश ने वरिष्ठ मंत्री आजम खां का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने चोर की दाढ़ी में तिनका की बात यूं ही नहीं कही। जब मैंने उनका नाम ही नहीं लिया तो वे क्यों बोले? इस पर संचालक ने अमर सिंह का नाम लेकर अमर सिंह व शिवपाल की दोस्ती के बारे में पूछा तो अखिलेश ने कहा कि आप नाम ले रहे हो, मैं नहीं लूंगा। वैसे मुझे उनकी दोस्ती के बारे में नहीं पता। मायावती को बुआजी कहने की बात चली तो संदर्भ अमर सिंह की ओर घूम गया। पूछा गया, आप उन्हें अंकल भी तो कहते हैं। इस पर अखिलेश ने तपाक से कहा, 'अब उन्हें अंकल नहीं कहूंगाÓ।
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भाई-भतीजे का कहना मानना होगा
तमाम कोशिशों के बाद भी शिवपाल के न मानने पर बोले, वह मेरे चाचा और नेताजी के भाई हैं। उन्हें (चाचा को) दोनों (भाई-भतीजे) का कहना मानना होगा। ज्यादा दिन तक उन्हें नाराज नहीं रहने देंगे। जहां तक मुख्य सचिव व मंत्रियों के हटने की बात है तो चाचा भी जानते हैं कि वे कैसे हटे, उन्हें किसने हटाया। इसका जवाब भी चाचा ही देंगे। एक अन्य चाचा प्रो.रामगोपाल की नाराजगी पर कहा कि वे नाराज नहीं हैं, आज ही उनसे बात हुई है।
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हट जाते हैं नारे लगाने वाले
शिवपाल समर्थकों की नारेबाजी पर उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। नारे लगाने वाले अक्सर खुद हट जाते हैं और दूसरों को संकट में डाल देते हैं। शिवपाल समर्थकों द्वारा उनके खिलाफ नारेबाजी के बारे में पूछने पर कहा, ऐसे समय मैं कानों में इयरफोन लगा के गाने सुनने लगता हूं। हालांकि मेरे समर्थकों ने भी 'ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भैया तेरे नामÓ जैसे नारे खूब लगाए।
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बुरा लगा अध्यक्ष पद छिनना
अखिलेश पूरे रौ में थे। कहा, सब लोग मंत्री पद छिनने, विभाग कम करने की बातें तो उठा रहे हैं, मेरी प्रदेश अध्यक्षी छिनने की बात कोई नहीं कर रहा। मुझे भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया था, जो मुझे बुरा लगा। यह स्थिति तब थी, जबकि मैंने साहसिक फैसला किया था। फिर बोले, शायद उम्र का असर होता है। कम उम्र में 'करेजÓ (साहस) अधिक होता है। मेरी उम्र कम थी इसलिए मैं जल्दी और बड़ा फैसला ले सका।
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हम चार साल काम करते रहे
अखिलेश से पूछा गया कि जिस तरह का मजबूत स्टैंड आपने अब लिया है, चार साल पहले क्यों नहीं लिया? इस पर उन्होंने कहा कि हम चार साल काम करते रहे। यही कारण है कि हम पूरी तैयारी से चुनाव में जा रहे हैं। सरकार हमारी ही बनेगी। कौमी एकता दल के सपा में शामिल होने के सवाल पर कहा कि हम तो शामिल कर लें, फिर आरोप न लगाना।
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हमारी साइकिल ट्यूबलेस
राहुल गांधी द्वारा साइकिल पंक्चर होने की बात पर कटाक्ष किया कि उन्हें नहीं पता कि साइकिल में ट्यूबलेस टायर भी होते हैं। हमारी साइकिल ट्यूबलेस टायरों वाली है, यह पंक्चर नहीं होगी। डेमोक्रेसी में तमाम चीजें होती हैं और प्रदेश की जनता को हम पर पूरा भरोसा है। राहुल ने मुझे लड़का कहा, तो मैंने भी उन्हें लड़का कह दिया। वे हमें नेता कहते, तो हम भी उन्हें नेता कहते।
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'वन हू इज ऑन द टॉप, ही इज ऑल एलोनÓ
कार्यक्रम की शुरुआत ही घर के झगड़े और गमजदा होने से हुई। इस पर दार्शनिक अंदाज में अखिलेश ने कहा, गम तो सबको होता है। गम छुपाने की आदत भी होनी चाहिए। दरअसल सारा झगड़ा गम न छुपाने का है। अकेलेपन पर अंग्र्रेजी पंक्ति 'वन हू इज ऑन द टॉप, ही इज ऑल एलोनÓ से जोड़ते हुआ कहा कि शीर्ष पर पहुंचने वाला बिल्कुल अकेला हो जाता है।







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