07 sept 2017
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जियाउद्दीन की शपथ में फंसा समीकरणों का पेंच
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लखनऊ : प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा की निर्धारित उम्र पूरी होने के करीब बढ़ रही है फिर भी जियाउद्दीन रिजवी की शपथ न होने कौतूहल का विषय है, ऊपर से अब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछकर इसको और हवा दे दी है। रिजवी 27 जून को मंत्री नामित हुए थे। कहा जा रहा है कि उनकी शपथ पार्टी के सियासी समीकरणों की पेंच में उलझी है।
सूत्रों के मुताबिक सियासी समीकरणों में बदलाव व सपा के अंदर चल रहे वैचारिक द्वंद के चलते निर्णय अटका हुआ है। दरअसल, सरकार में सिर्फ साठ मंत्री बनाये जा सकते हैं और 59 मंत्री हैं। जियाउद्दीन के शपथ के साथ कोटा पूरा हो जाएगा। 27 जून को मंत्रिमंडल के सातवें विस्तार में मुख्यमंत्री ने पार्टी के ब्राह्मïïण नेता मनोज पाण्डेय को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। इसके चंद दिनों के बाद घोषित सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से राजेश दीक्षित (पूर्व राष्ट्रीय सचिव) बाहर कर दिये गए। राजेश दिल्ली में सपा के ब्राह्मïण चेहरे के रूप में स्थापित थे। दो ब्राह्मïïण नेताओं के मुख्य धारा से बाहर होने का प्रभाव विधानसभा चुनाव पर पडऩे की चर्चा शुरू हुई और समाजवादी सोच के ब्राह्मïणों ने मनोज के पक्ष में लामबंदी शुरू की तो नेतृत्व ने मंथन शुरू कर दिया। सूत्रों का कहना है कि दूसरी बार के विधायक रिजवी के विरोधियों ने नेतृत्व के सामने यह भी तर्क रखा कि वह जिस बिरादरी से आते हैं, उसका वोट प्रतिशत बहुत कम है और हाल के दिनों में इसी वर्ग का एक एमएलसी बनाया जा चुका है और एक स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि जियाउद्दीन मुख्यमंत्री की पंसद हैं। ऐसे में राज्यपाल के पत्र लिखकर पूछने के बाद इस प्रकरण में जल्द अंतिम निर्णय होने के आसार हैं।
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समाजवाद से परिवारवाद की ओर
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- आजम के पुत्र अब्दुल्ला उतर सकते हैं चुनाव मैदान में
- बलराम यादव, महबूब, रेवतीरमण सिंह, राजकिशोर, विनोद सिंह के पुत्र भी लड़ सकते हैं चुनाव
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने दल में 'परिवारÓ को स्थापित करना शुरू किया, तब उनके हमकदम छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र ने इसके मर्म को परखकर एक सिद्धांत गढ़ा और इस परिपाटी को नाम दिया 'संघर्ष का परिवारवादÓ। फिर मंत्री, विधायक, ओहदेदार अपने परिवारों को स्थापित करने लगे। ताजा कड़ी आजम खां ने यह कहकर जोड़ी कि उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को राजनीति में जाने की इजाजत है मगर उनका टिकट मुलायम सिंह घोषित करेंगे।
सपा विधायकों, मंत्रियों ने अपने परिवार के सदस्यों को दल में स्थापित करने का सिलसिला तो काफी पहले से शुरू कर रखा है, मगर अब सिद्धांतों की सियासत का दावा करने वाले आजम खां भी सूची में शामिल हो गए हैं। शुरुआत उनकी पत्नी को राज्यसभा भेजने के साथ हुई थी मगर अब वह खुद बेटे अब्दुल्ला को उसी जहाज पर बैठाने की जुगत में लग गए हैं जिसे वह जाने-अनजाने कुछ दिन पहले 'डूबता जहाजÓ कह चुके हैं।
उधर सपा का परिवारवाद लोगों को हजम नहीं हो रहा। खासकर ऐसे मौके पर जब भाजपा अपने सांसदों, मंत्रियों और विधायकों के परिवार के सदस्यों को जनप्रतिनिधि न बनाने का धड़ल्ले से प्रचार कर रही है। टिकट निर्धारण में गोपनीय रिपोर्ट को आधार बनाने वाले पार्टी नेता चयन मानक ताख पर रखते जा रहे हैं। आलम यह है कि जिस मंत्री के परिवार से जितने पदाधिकारी हैं, वह सपा रणनीतिकारों का उतना ज्यादा करीबी माना जा रहा है। इस फेहरिस्त में शिवपाल यादव, प्रो.रामगोपाल यादव, आजम खां, महबूब अली, राजकिशोर सिंह, विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह, बलराम यादव, पारसनाथ यादव, रेवती रमण सिंह, नरेश अग्रवाल जैसे कई और नाम हैं।
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दो साल से सक्रिय हैं अब्दुल्ला
जासं, रामपुर : मुहम्मद आजम खां के बेटे मुहम्मद अब्दुल्ला आजम करीब सवा दो साल पहले राजनीति में सक्रिय हुए। लोकसभा चुनाव के दौरान जब चुनाव आयोग ने आजम खां पर पाबंदी लगा दी थी तब अब्दुल्ला ने ही कमान संभाली थी। उन्होंने जनसभाओं में मंच से आजम खां के विचारों से जनता को अवगत कराया, दिल्ली में चुनाव आयोग के खिलाफ धरना दिया। चुनाव जीतने के बाद हुए राजनीतिक कार्यक्रमों में भी अब्दुल्ला शामिल होते रहे। पिछले साल अगस्त में समाजवादी पार्टी ने प्रदेशभर में साइकिल रैली निकाली तो आजम खां ने रामपुर में साइकिल रैली की कमान अब्दुल्ला को सौंपी। उस दिन अब्दुल्ला ने आजम खां के अंदाज में ही तकरीर की। पिछले काफी दिनों से स्वार-टांडा क्षेत्र के लोग आजम खां से अब्दुल्ला को चुनाव लड़ाने की मांग कर रहे थे। तीन दिन पहले स्वार में हुई जनसभा में आजम खां ने अब्दुल्ला को स्वार-टांडा विधानसभा से चुनाव लड़ाने की बात कही। एमटेक शिक्षा प्राप्त अब्दुल्ला मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के सीईओ भी हैं।
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जियाउद्दीन की शपथ में फंसा समीकरणों का पेंच
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लखनऊ : प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा की निर्धारित उम्र पूरी होने के करीब बढ़ रही है फिर भी जियाउद्दीन रिजवी की शपथ न होने कौतूहल का विषय है, ऊपर से अब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछकर इसको और हवा दे दी है। रिजवी 27 जून को मंत्री नामित हुए थे। कहा जा रहा है कि उनकी शपथ पार्टी के सियासी समीकरणों की पेंच में उलझी है।
सूत्रों के मुताबिक सियासी समीकरणों में बदलाव व सपा के अंदर चल रहे वैचारिक द्वंद के चलते निर्णय अटका हुआ है। दरअसल, सरकार में सिर्फ साठ मंत्री बनाये जा सकते हैं और 59 मंत्री हैं। जियाउद्दीन के शपथ के साथ कोटा पूरा हो जाएगा। 27 जून को मंत्रिमंडल के सातवें विस्तार में मुख्यमंत्री ने पार्टी के ब्राह्मïïण नेता मनोज पाण्डेय को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। इसके चंद दिनों के बाद घोषित सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से राजेश दीक्षित (पूर्व राष्ट्रीय सचिव) बाहर कर दिये गए। राजेश दिल्ली में सपा के ब्राह्मïण चेहरे के रूप में स्थापित थे। दो ब्राह्मïïण नेताओं के मुख्य धारा से बाहर होने का प्रभाव विधानसभा चुनाव पर पडऩे की चर्चा शुरू हुई और समाजवादी सोच के ब्राह्मïणों ने मनोज के पक्ष में लामबंदी शुरू की तो नेतृत्व ने मंथन शुरू कर दिया। सूत्रों का कहना है कि दूसरी बार के विधायक रिजवी के विरोधियों ने नेतृत्व के सामने यह भी तर्क रखा कि वह जिस बिरादरी से आते हैं, उसका वोट प्रतिशत बहुत कम है और हाल के दिनों में इसी वर्ग का एक एमएलसी बनाया जा चुका है और एक स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि जियाउद्दीन मुख्यमंत्री की पंसद हैं। ऐसे में राज्यपाल के पत्र लिखकर पूछने के बाद इस प्रकरण में जल्द अंतिम निर्णय होने के आसार हैं।
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समाजवाद से परिवारवाद की ओर
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- आजम के पुत्र अब्दुल्ला उतर सकते हैं चुनाव मैदान में
- बलराम यादव, महबूब, रेवतीरमण सिंह, राजकिशोर, विनोद सिंह के पुत्र भी लड़ सकते हैं चुनाव
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने दल में 'परिवारÓ को स्थापित करना शुरू किया, तब उनके हमकदम छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र ने इसके मर्म को परखकर एक सिद्धांत गढ़ा और इस परिपाटी को नाम दिया 'संघर्ष का परिवारवादÓ। फिर मंत्री, विधायक, ओहदेदार अपने परिवारों को स्थापित करने लगे। ताजा कड़ी आजम खां ने यह कहकर जोड़ी कि उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को राजनीति में जाने की इजाजत है मगर उनका टिकट मुलायम सिंह घोषित करेंगे।
सपा विधायकों, मंत्रियों ने अपने परिवार के सदस्यों को दल में स्थापित करने का सिलसिला तो काफी पहले से शुरू कर रखा है, मगर अब सिद्धांतों की सियासत का दावा करने वाले आजम खां भी सूची में शामिल हो गए हैं। शुरुआत उनकी पत्नी को राज्यसभा भेजने के साथ हुई थी मगर अब वह खुद बेटे अब्दुल्ला को उसी जहाज पर बैठाने की जुगत में लग गए हैं जिसे वह जाने-अनजाने कुछ दिन पहले 'डूबता जहाजÓ कह चुके हैं।
उधर सपा का परिवारवाद लोगों को हजम नहीं हो रहा। खासकर ऐसे मौके पर जब भाजपा अपने सांसदों, मंत्रियों और विधायकों के परिवार के सदस्यों को जनप्रतिनिधि न बनाने का धड़ल्ले से प्रचार कर रही है। टिकट निर्धारण में गोपनीय रिपोर्ट को आधार बनाने वाले पार्टी नेता चयन मानक ताख पर रखते जा रहे हैं। आलम यह है कि जिस मंत्री के परिवार से जितने पदाधिकारी हैं, वह सपा रणनीतिकारों का उतना ज्यादा करीबी माना जा रहा है। इस फेहरिस्त में शिवपाल यादव, प्रो.रामगोपाल यादव, आजम खां, महबूब अली, राजकिशोर सिंह, विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह, बलराम यादव, पारसनाथ यादव, रेवती रमण सिंह, नरेश अग्रवाल जैसे कई और नाम हैं।
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दो साल से सक्रिय हैं अब्दुल्ला
जासं, रामपुर : मुहम्मद आजम खां के बेटे मुहम्मद अब्दुल्ला आजम करीब सवा दो साल पहले राजनीति में सक्रिय हुए। लोकसभा चुनाव के दौरान जब चुनाव आयोग ने आजम खां पर पाबंदी लगा दी थी तब अब्दुल्ला ने ही कमान संभाली थी। उन्होंने जनसभाओं में मंच से आजम खां के विचारों से जनता को अवगत कराया, दिल्ली में चुनाव आयोग के खिलाफ धरना दिया। चुनाव जीतने के बाद हुए राजनीतिक कार्यक्रमों में भी अब्दुल्ला शामिल होते रहे। पिछले साल अगस्त में समाजवादी पार्टी ने प्रदेशभर में साइकिल रैली निकाली तो आजम खां ने रामपुर में साइकिल रैली की कमान अब्दुल्ला को सौंपी। उस दिन अब्दुल्ला ने आजम खां के अंदाज में ही तकरीर की। पिछले काफी दिनों से स्वार-टांडा क्षेत्र के लोग आजम खां से अब्दुल्ला को चुनाव लड़ाने की मांग कर रहे थे। तीन दिन पहले स्वार में हुई जनसभा में आजम खां ने अब्दुल्ला को स्वार-टांडा विधानसभा से चुनाव लड़ाने की बात कही। एमटेक शिक्षा प्राप्त अब्दुल्ला मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के सीईओ भी हैं।
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