Monday 5 September 2016

कार्यकर्ता अब सुन नहीं, सुना भी रहा

५ सितंबर २०१६
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-सपा का विधानसभा वार बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन 'कहीं फेल-कहीं पासÓ
-पार्टी का दावा सम्मेलनों में उमड़ रहे कार्यकर्ता, हो रहा उत्साह का संचार
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 लखनऊ : समाजवादी पार्टी को सरकार की विकास योजनाओं के प्रचार-प्रसार में शिथिलता की कार्यकर्ताओं से जो शिकायत थी, वह विधानसभा बूथ सम्मेलनों में सामने आ रही है मगर इस बार कार्यकर्ता उपेक्षा का दर्द बयां करने से हिचक नहीं रहा है। पार्टी के लिए यही नसीहत का समय भी है।
विधानसभा चुनाव-2017 की प्रक्रिया साल के आखिरी माह में शुरू हो जाने की संभावना के मद्देनजर समाजवादी पार्टी (सपा) विधानसभा बूथ सम्मेलनों के जरिये जमीनी कार्यकर्ताओं 'उत्साहÓ का संचार करने में जुटी है। प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की हिदायत पर राज्य के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में बूथ कमेटियों के प्रभारियों, सदस्यों के प्रशिक्षण शिविर लगने हैं, जिसकी शुरुआत एक सितंबर से हो गयी है। जिन क्षेत्रों में अब तक सम्मेलन हुए वहां चुनावी तैयारी के साथ मतदान के दिन बूथ कमेटी के सदस्यों के कर्तव्यों एवं दायित्वों की जानकारी दी गयी है। पार्टी की ओर से जिला,महानगर अध्यक्ष, महासचिव, सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक और हाल में ही विधान परिषद सदस्य बन गए युवा नेता प्रदेश में चल रही विकास योजनाओं की जानकारी साझा कर रहे हैं। एक बूथ-बीस यूथ की सच्चाई को परखा जा रहा है। सपा महासचिव अरविंद सिंह गोप का दावा है कि सम्मेलनों अपेक्षा से ज्यादा कार्यकर्ता जुट रहे हैं। उनमें दोबारा सरकार बनाने का उत्साह हिलोरे ले रहा है। अब तक जिन सौ से अधिक विधानसभा में बूथ सम्मेलन हुए हैं, वहां जनसभा जैसा दृश्य रहा है। हकीकत यह है कि अब तक के सम्मेलनों में 'कहीं पास-कहीं फेलÓ सा हाल रहा है। इलाहाबाद, जालौन, झांसी, बांदा, मेरठ, लखीमपुर, जौनपुर में उम्मीद के मुताबिक कार्यकर्ता नही जुटे। साफ है कि इन क्षेत्रों के ओहदेदारों के कार्यकर्ताओं से रिश्ते आत्मीय नहीं है। अलबत्ता बाराबंकी सदर में सुरेश यादव, जैदपुर में रामगोपाल लखीमपुर में उत्कर्ष वर्मा, सीतापुर के महमूदाबाद में नरेन्द्र सिंह वर्मा और  लखनऊ पूर्वी डॉ.श्वेता सिंह ने अपेक्षा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को जुटाया। दरअसल, लखनऊ से दिल्ली तक कूच करने व नीतियां तय करने वालों ने संगठन को अपेक्षित तवज्जो नहीं दिया। जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने वाले ओहदेदारों पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। बूथ सम्मेलनों में पहुंचने वाले कार्यकर्ता भी जनप्रतिनिधियों से उपेक्षा मिलने का दर्द बयां करने में पीछे नहीं रह रहे हैं। यही कारण है कि योजनाओं की उपलब्धियां असल मतदाता तक नहीं पहुंची हैं।

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