Sunday 18 September 2016

समाजवादी कुनबे में कलह-२

१३ सितंबर २०१६

 समाजवादी कुनबे में कल
1.-हटाये गए मुख्य सचिव दीपक सिंघल
2.-शिवपाल बनाए गए प्रदेश सपा अध्यक्ष
3-शिवपाल से छिने महत्वपूर्ण विभाग
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सब हेड
- लगातार तीन फैसलों से सियासत व नौकरशाही में हलचल
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 लखनऊ : मंगलवार को समाजवादी कुनबे की रार खुलकर सामने आ गई। बकरीद की छुट्टी के बावजूद लगातार तीन फैसलों ने उत्तर प्रदेश की सियासत और नौकरशाही में हलचल पैदा कर दी। सुबह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल की छुट्टी करते हुए उनकी जगह राहुल भटनागर की ताजपोशी कर दी तो शाम होते-होते सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने अनुज और मंत्री शिवपाल सिंह यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंप दी। अभी तक यह दायित्व मुख्यमंत्री के ही पास था। इसके कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री ने मंत्री शिवपाल सिंह यादव से सभी महत्वपूर्ण विभाग ले लिए। समाजवादी कुनबे में ये तीनों फैसले बड़े कलह की ओर इशारा कर रहे हैं।
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शिवपाल बनाये गये सपा के प्रदेश अध्यक्ष
 इससे पहले जारी प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद शिवपाल के रुख पर टिकी निगाहें, खबर को रद कर दिया गया है।
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मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी ऐसे समय पर सौंपी है जिसे परिवार की अन्तर्कलह दूर करने का प्रयास माना जा रहा है। दरअसल, मंत्रियों गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी और मंगलवार को मुख्य सचिव दीपक सिंघल को अचानक हटा दिए जाने से यह सवाल उठने लगा था कि चाचा-भतीजा के बीच फिर रार बढ़ेगी। दीपक सिंघल और राजकिशोर शिवपाल के ही करीब माने जाते हैं। वैसे भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मंत्री शिवपाल सिंह यादव के तल्ख रिश्ते समय-समय पर सार्वजनिक होते रहे हैं। कभी शिवपाल ने आगे बढ़कर इस पर विराम लगाया तो कभी खुद मुख्यमंत्री ने पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि दोनों के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है। दो दिनों के घटनाक्रम में मुख्यमंत्री के फैसले तो यही कहते हैं। ऐसे में यह बात उठने लगी थी कि शिवपाल की नाराजगी बढ़ेगी। हालांकि शिवपाल सिंह यादव ने मुख्य सचिव को हटाये जाने को मुख्यमंत्री के विशेषाधिकार की बात कहकर सधा हुआ बयान दिया लेकिन समर्थकों को कुछ दूसरी तरह की ही चर्चा होने लगी।
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पुत्र का मोह, भाई की चिंता
मुलायम ने विधानसभा चुनाव के पहले हर मोर्चे पर कील-कांटा दुरुस्त करने की पहल की है। वह अखिलेश की छवि के प्रति जितना सजग दिख रहे हैं उतना ही उन्हें अपने अनुज की भावनाओं का भी ख्याल है। शिवपाल संगठन के मजे खिलाड़ी हैं। उन्हें जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर माना जाता है। चुनाव के दृष्टिगत वह बेहतर ढंग से संगठन का संचालन कर सकेंगे क्योंकि मुख्यमंत्री की व्यस्तता भी बढ़ी है। वैसे भी पहले शिवपाल को सपा का प्रदेश प्रभारी बनाया गया तो यह संदेश गया कि संगठन अब उन्हीं के हाथ में होगा। शिवपाल ने विधान पंचायत चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि विधान परिषद के चुनाव में अखिलेश ने ही अपना प्रभाव दिखाया।
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सिंघल की ताजपोशी से दूर हुई शिवपाल की नाराजगी
सिंघल लंबे समय तक शिवपाल के विभागों के प्रमुख सचिव रहे और जब उन्हें ंिसंचाई के साथ ही गृह विभाग दिया गया तो मुख्यमंत्री पखवारे भर भी बर्दाश्त नहीं कर पाए। सिंघल को गृह विभाग से हटा दिया गया। सिंघल को जिस समय मुख्य सचिव बनाया गया उन्हीं दिनों मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के विलय और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर चाचा-भतीजे के मतभेद सार्वजनिक हो गए थे। बात इस हद तक बढ़ी कि खुद मुलायम सिंह यादव को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। इस लड़ाई के दरमियान ही दीपक सिंघल मुख्य सचिव बनाए गए तो यह संदेश गया कि शिवपाल को खुश करने की पहल हुई है। अब सिंघल मुख्य सचिव की कुर्सी से हटाए गए हैं तो दूसरी ओर शिवपाल के करीबी अमर सिंह को भी मुख्यमंत्री ने महत्व देना कम कर दिया है। शिवपाल के ही करीबी समझे जाने वाले राजकिशोर सिंह की बर्खास्तगी की कड़ी भी इसी से जुड़ गई है। राजकिशोर सदन से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर शिवपाल के ही करीब देखे जाते हैं।

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मुख्य सचिव को हटाना सीएम का विशेषाधिकार : शिवपाल
-गायत्री व राजकिशोर को हटाने की जानकारी नहीं थी
जेएनएन, कानपुर : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा मंगलवार को मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाये जाने के मुद्दे पर कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। वह जिस अधिकारी को चाहें रखें और जिस अधिकारी को चाहें हटा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह उनसे पूछे बगैर मंत्रिमंडल से हटाया है। इस बारे में उन्हें या नेताजी मुलायम सिंह यादव को भी कोई जानकारी नहीं थी। मंगलवार को इटावा और कानपुर देहात जिले के आंट गांव में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यह मुख्यमंत्री की मर्जी पर निर्भर करता है कि वे किससे सलाह लें या न लें। अगर मुख्यमंत्री उनसे सलाह मांगेंगे तो वे अपनी सलाह देंगे। जो मुख्यमंत्री के नजदीक है वही हमारे नजदीक है, मुख्यमंत्री का निर्णय सभी को मान्य होता है।
इटावा में उन्होंने कहा कि चुनाव नजदीक हैं जो गड़बड़ी करेगा उसे जाना होगा चाहे वह नेता हो या अफसर। हमारी जबावदेही जनता के प्रति है इसलिए मुख्यमंत्री जो भी निर्णय ले रहे हैं उसमें जनहित जुड़ा हुआ है।
बाद में कानपुर देहात में मैथा के आंट गांव में पत्रकारों से मुखातिब हुए शिवपाल ने कहा कि सरकार में कौन रहेगा और कौन नहीं रहेगा, यह भी मुख्यमंत्री के अधिकार में है। वे जिसे चाहे हटा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा इस पर वह कुछ नहीं कहना चाहते हैं। अवैध खनन में गायत्री प्रजापति के शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह जांच का बिंदु है।
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बदले नजर आये शिवपाल
इटावा : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम ङ्क्षसह यादव द्वारा मंगलवार की शाम कैबिनेट मंत्री व छोटे भाई शिवपाल ङ्क्षसह यादव को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के फैसले के बाद शिवपाल बदले नजर आए। शाम को शिवपाल लोगों से बातचीत कर रहे थे परंतु फैसला आने के बाद देर रात उन्होंने किसी से बातचीत नहीं की और चल दिए।
देर रात इटावा के ङ्क्षसचाई डाक बंगले में जब मीडिया के लोगों ने उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बात नहीं की। एक दम तेजी से डाक बंगले से शिवपाल निकले और कहा कि कोई बात नहीं होगी, कहकर अपनी गाड़ी में बैठकर सैफई के लिए चले गये। बताया गया है कि किसी के फोन आने के बाद उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव दिखाई दिये। इससे पहले शाम करीब सात बजे मुलायम ङ्क्षसह यादव ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की सूचना फोन पर दी थी। हालांकि वे शाम को जेल में भी कुछ लोगों से मिलने गये और देर रात ङ्क्षसचाई विभाग के डाक बंगले में भी कुछ लोगों से मुलाकात की।
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:शिवपाल के चेहरे पर शिकन, वक्त 'मुलायमÓ या 'कठोरÓ
 पूर्व में भेजी गई खबर 'मुख्य सचिव को हटाना सीएम का विशेषाधिकार : शिवपालÓ के स्थान पर इसी खबर का प्रयोग करें।
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-करीबियों को हटाए जाने के बाद भी थे सामान्य
-मुख्यमंत्री के फैसले को बताया उनका विशेषाधिकार
-अपना मंत्रालय छिनने के बाद खामोशी से सैफई रवाना
कानपुर : सूबे की सियासत कर रहे इस आला सियासी परिवार में मंगलवार को दोपहर से रात तक धूप-छांव का खेल चलता रहा। कद्दावर मंत्री शिवपाल यादव के चेहरे के रह-रहकर बदले भावों को थोड़ा पढऩे की कोशिश करें तो यूं ही लगा कि वह खुद उलझे रहे कि ये वक्त उनके लिए 'मुलायमÓ है या 'कठोरÓ। उनके अजीम दीपक सिंघल की कुर्सी छिनने के बाद 'चाचा-भतीजेÓ प्रकरण गर्माने से पहले परिवार और दल के मुखिया मुलायम सिंह ने छोटे भाई को प्रदेश की कमान सौंपकर बेहतर 'संतुलनÓ का प्रयास किया। मगर, रात होते ही उनके मंत्रालय में फेरबदल पर सवालों के बदले मिली शिवपाल की खामोशी और चेहरे पर शिकन।
इटावा में लोक निर्माण विभाग के डाक बंगले में और बाद में कानपुर देहात के आंट गांव में पत्रकारों से बातचीत करते हुए शिवपाल यादव ने कहा कि यह मुख्यमंत्री की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह किससे सलाह लें या न लें। अगर मुख्यमंत्री उनसे सलाह मांगेंगे तो वह अपनी सलाह देंगे। बाद में कानपुर देहात जिले के मैथा के आंट गांव में पत्रकारों से मुखातिब हुए शिवपाल ने मंत्रिमंडल से खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति व पंचायतीराज मंत्री राज किशोर को हटाने के फैसले पर भी मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार दोहराया। हां, इतना जरूर कहा कि सीएम ने उनसे या नेताजी से बिना पूछे दोनों मंत्रियों को हटाया है।
बेशक, यहां शिवपाल यादव अब तक 'कूलÓ थे, लेकिन शायद देश के खांटी राजनीतिज्ञ माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने परिवार में कुछ 'गर्माहटÓ महसूस कर ली। बताया जाता है कि शाम को शिवपाल यादव के पास नेताजी का फोन आया कि आपको प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा रहा है। जाहिर है, इस फैसले ने उनका कद बढ़ाया। तभी तो बेफिक्री से फिर कार्यकर्ताओं से मुलाकात और बतियाने में जुट गए। शाम लगभग 8.30 बजे डाक बंगले पहुंचे और वहां भी लोगों से मुलाकात की। मगर, नौ बजे वह सीधे बाहर आए। तब तक उनसे लोक निर्माण विभाग लिये जाने की खबर आम हो गई थी। मीडिया ने प्रतिक्रिया जाननी चाही, लेकिन वह किसी बात से इन्कार कर कार में बैठ सीधे सैफई रवाना हो गए। खबर है कि अखिलेश के इस कठोर फैसले के बाद मुलायम सिंह दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हो गए हैं। चर्चा है कि सुबह नेताजी या शिवपाल कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। उधर, शिवपाल के इटावा स्थित आवास पर पहुंच उनके समर्थकों ने जिंदाबाद के नारे लगाए तथा संघर्ष में उनका साथ देने की हुंकार भरी।
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दिग्गजों के सामने अखिलेश को मिला था सपा नेतृत्व
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 लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद भले ले लिया गया हो लेकिन उनके हिस्से में लगातार सात वर्षों तक पार्टी की प्रदेश इकाई का नेतृत्व संभालने का रिकार्ड दर्ज है। छोटी उम्र में जब अखिलेश को सपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई तब पार्टी के दिग्गज नेताओं के सामने नेतृत्व करना आसान नहीं था। जनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह, ब्रजभूषण तिवारी और शारदानंद अंचल  जैसे कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के बावजूद अखिलेश ने सपा की कमान संभाली थी। इसके पहले मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई कन्नौज लोकसभा सीट पर जब वह चुनाव मैदान में उतरे तब वहां एक नारा गूंजता था- टीपू को सुलतान बना दो। टीपू यानि अखिलेश ने कन्नौज के उप चुनाव से सफर शुरू किया तो कभी मात नहीं खायी। सियासी दांव-पेंच में पहली बार उन्हें झटका लगा है। 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश यादव ने साइकिल यात्रा निकाली और पूरे प्रदेश में सीधा जनसंपर्क किया। अखिलेश यादव के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सपा की सरकार बनी और वाकई टीपू सुलतान बन गये। वर्ष 2000 में शुरू हुआ उनका सियासी सफर 16 वर्षों की यात्रा में ऐसे मुकाम पर पहुंच गया जहां उन्हें बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ घर-परिवार से जूझना पड़ रहा है। इस अवधि में अखिलेश परिपक्व होने के साथ-साथ शतरंज की बिसात पर मोहरे बिछाना भी सीख गये हैं।
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 मंत्रिमंडल का विस्तार जल्द संभव
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- क्षत्रिय व अति पिछड़ी जाति के नेताओं को आगे लाने की तैयारी
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 लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो मंत्रियों की बर्खास्तगी की है और अभी एक-दो और उनके निशाने पर हैं। इस बीच कुछ नए चेहरों को भी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की बात चल पड़ी है। बर्खास्त किए गए मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति अति पिछड़ी जाति के हैं जबकि राजकिशोर सिंह क्षत्रिय हैं। सपा इस लिहाज से भी संतुलन साधने की कोशिश करेगी। इसके साथ जातीय संतुलन के लिए भी कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।
 विधानसभा चुनाव सामने है। अखिलेश यादव दोबारा सत्ता में लौटने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। वह सरकार की छवि के साथ ही अपने इमेज को लेकर भी सतर्क हैं। मंत्रियों से लेकर नौकरशाही में अपनी मर्जी से फेरबदल कर वह विपक्ष का मुंह बंद करना चाहते हैं। विपक्ष ने लगातार कहा है कि उत्तर प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री काम करते हैं। अखिलेश के सामने नई चुनौतियां भी हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे होने और खराब छवि के बावजूद गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह वोट के समीकरण में सपा के लिए मुफीद रहे हैं। ऐसे में उन्हें किनारे करने से कहीं न कहीं गैप भरने की भी चुनौती है। चर्चा है कि अभी एक-दो और मंत्री बर्खास्त किए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री तीन से चार मंत्रियों को शपथ दिला सकते हैं। संकेत मिल रहे हैं कि कम से कम दो मंत्री अति पिछड़ी जाति के बनाए जा सकते हैं जबकि क्षत्रिय को भी मौका मिल सकता है। विस्तार में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उप्र दोनों को अवसर मिल सकता है।
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अति पिछड़ी जातियों को जोडऩे की चलेगी मुहिम
लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने गायत्री प्रसाद प्रजापति को अति पिछड़ी जातियों को जोडऩे की मुहिम सौंपी। गायत्री के नेतृत्व में सपा की सामाजिक न्याय अधिकार यात्रा जिलों-जिलों में घूमी। यह सही है कि इस यात्रा का कोई असर नहीं हुआ और मुलायम परिवार के अलावा सपा लोकसभा की कोई सीट भी नहीं जीत सकी पर गायत्री का कद बढ़ गया। उन्हें स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री से प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। तब सपा सरकार ने एक शासनादेश जारी कर कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिय़ा, मांझी और मछुआ आदि जातियों को ग्राम्य विकास की योजनाओं में अनुसूचित जाति के समान लाभ देने की बात की। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने गायत्री को आगे कर उनको इन जातियों के नेता के रूप में प्रस्तुत किया। जाहिर है कि गायत्री को साइड लाइन करने के बाद अब इन जातियों को जोडऩे की पहल नए सिरे से सपा करेगी। सपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी एमएलसी नरेश उत्तम, राम आसरे विश्वकर्मा, राजपाल कश्यप, हीरा ठाकुर और राम सुंदर दास जैसे कुछ नेताओं को आगे किया था। अब इस चुनाव में इन नेताओं को आगे कर फिर से मुहिम शुरू करने की तैयारी है। सूत्रों की माने तो जल्द ही सामाजिक न्याय यात्रा की तारीख घोषित कर दी जाएगी।
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