Thursday 25 March 2021

तीन आईपीएस अधिकारी जबरन रिटायर !

 

लखनऊ। एक तरफ पर उत्तर प्रदेश पुलिस को अपराधियों को ठोंक दो अधिकार। दूसरी तरफ यूपी कॉडर के तीन आईपीएस अधिकारियों को जबरन रिटायर करने का फरमान सुनाकर सरकार ने जीरो टालरेंस की नीति को सार्थक करने का प्रयास किया है। आईजी अमिताभ ठाकुर, डीआईजी राकेश शंकर और एसपी राजेश कृष्ण को सरकारी सेवा के लिए अनुपयुक्त पाते हुये जबरन रिटायर कर दिया गया है। तीनों ही अधिकारियों ने सरकार के निर्णय पर चुप्पी साध ली है, मगर जिन आरोपों में इन आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है, उससे ज्यादा आरोपों वाले अधिकारी न सिर्फ सेवारत हैं, बल्कि प्राइम पोस्टिंग में हैं, यह भी एक सवाल तेजी से उठ रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग की संस्तुति, जांच रिपोर्ट को आधार बनाकर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आईजी रूल्स एवं मैनुअल अमिताभ ठाकुर को वीआरएस दिया है। ठाकुर व्यवस्था पर सवाल उठाने, पुलिस की जांचों को सवालों के घेरे में लाने वाले अफसरों में शुमार थे। पिछले कुछ सालों से व्यवस्था पर सवाल उठा रहे थे। उनके खिलाफ सरकारी सेवा नियमावली के उल्लंघन समेत कई मामलों की जांच चल रही थी। अमिताभ व उनकी समाजसेवी पत्नी नूतन ठाकुर पहले समाजवादी पार्टी की सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं। उनके सवालों को तत्कालीन विपक्ष हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहा। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद कुछ महीनों बाद अमिताभ ठाकुर ने इस सरकार की पुलिस कार्यशैली को भी आलोचना की जद में लिया। कप्तानों द्वारा थाने बेचे जाने व थानों की अवैध आमदनी का ब्यौरा भी जारी किया। यूपी सरकार के गृह मंत्रालय ने इसे अनुशासनहीनता मानी और पुराने इतिहास का हवाला देते हुए उन्हें जबरन सेवानिवृत करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने स्क्रीनिंग के बाद आखिर उन्हें जबरन रिटायर करने का आदेश जारी कर दिया।  प्रांतीय पुलिस सेवा से आईपीएस में प्रोन्नत होकर डीजीआई स्थापना नियुक्त हुए राकेश शंकर की कार्यशैली को देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में संदिग्ध माना गया था। विभागीय जांच उन आईपीएस अधिकारियों ने की थी, जिनसे उनके वैचारिक रूप से मतभेद थे। यह बात उन्होंने अपने प्रत्यावेदनों में कही थी। राकेश शंकर को जबरन सेवानिवृत देने के मामले में जालौन में दो बहनों की संदिग्ध मौत को आधार बनाया गया है। राकेश उन दिनों जालौन के एसएसपी थे। जबरन रिटायरमेन्ट की कार्रवाई की जद में आये राजेश कृष्ण इन दिनों 10वीं बटालियन बाराबंकी में कमांडेंट के पद पर तैनात ते, उन पर आजमगढ़ में पुलिस भर्ती घोटाले का इल्जाम है, जिसके आधार पर उन्हें जबरन रिटायर किया गया है। सवाल ये है कि जिस पुलिस भर्ती के लिए राजेश कृष्ण को सेवा के अनुपयुक्त पाया गया है, वैसे आरोप यूपी कॉडर के आधा दर्जन से अधिक आईपीएस और दो दर्जन से अधिक पीपीएस पर लगे थे।

 

एक हजार विस्तारक चुनावी ताप लेने में जुटे हैं

 

परवेज़ अहमद

लखनऊ। शोर। प्रदर्शन। जनसभा। आरोप-प्रत्यारोप। सुर्खियां। सब बंगाल-असम में है।  2 मई तक यही दृश्य दिखेगा। यह सामान्य धारणा है। इस घोषित अखाड़े से इतर उत्तर प्रदेश में  एक हजार विस्तारक ( आरएसएस के पूर्ण कालिक सदस्य) चुनावी ताप लेने में जुटे हैं। यह सतही नहीं, गहरी पैठ के साथ है। प्रारम्भिक आकलन के बाद ही भाजपा ने दलीय आधार पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कूदने का निर्णय किया है। ग्राम, क्षेत्र पंचायत के तीन-तीन दावेदारों का ब्योरा तैयार किया है। भाजपा इन्हीं के माध्यम से  विधानसभा-2022 के लिये बूथ प्रबंधन करेगी। गांव-गलियारे तक काम कर रहे विस्तारक मानते हैं कि 2014, 2019 के लोकसभा का चुनाव बूथ प्रबंधन से नहीं, ध्रुवीकरण से जीता गया था। 2017 के विधानसभा चुनाव की जीत में तत्कालीन बसपा सरकार पर भ्रष्टाचार और समाजवादी परिवार की जंग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। साथ ही ध्रुवीकरण व नरेन्द्र मोदी मैजिक ने इतिहास रच दिया था। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की परिस्थितियां बदली हुयी होंगी। कोविड के चलते आर्थिक ढांचा गड़बड़ाया है, सत्ताजनित नाराजगी भी जनता में है और महत्वाकांक्षा की पूर्ति न होने के चलते कतिपय नेताओं में नाराजगी है। जिसका प्रभाव धरातल पर कार्यरत कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। इस भाव को समझने के बाद भाजपा ने इस बार बूथ प्रबंधन पर फोकस बढ़ाया है। सूत्रों का कहना है कि पंचायत चुनाव के दौरान यह आकलन भी करेगा कि किस प्रत्याशी में कितनी क्षमता है, उसी के अनुरूप उसे बूथ प्रबंधन का दायित्व सौंपा जाएगा। भाजपा इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ऊर्जा का उपयोग विधानसभा चुनावों में कर सकती है। अब तक छात्रों के संगठन को सीधे तौर पर चुनावी प्रबंधन में नहीं लगाया जाता था।

सूत्रों का कहना है कि बदली परिस्थितियों को भांपकर भाजपा प्रबंधन विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बजने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उत्तर प्रदेश में 60 से अधिक जिला स्तरीय रैली कराने की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटा है। प्रधानमंत्री की रैलियों के जरिये राष्ट्रवाद, विकास पर फोकस कराने की रणनीति के साथ भाजपा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभी 75 जिलों में रैली कराने की रणनीति है। अब यह सर्वमान्य तथ्य है कि सबका साथ, सबका का विकास की नीति पर उत्तर प्रदेश में सरकार चला रहे योगी आदित्यनाथ भाजपा को सीधा लाभ दिलाने वाले राजनीतिक ध्रुवीकरण के मॉस्टर हो गये हैं। उनकी रैलियां लोगों को गोलबंद करने में कारगर होती रही हैं। उनके अंदाज इतना आक्रामक है कि कभी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी अथवा कांग्रेस की झंडाबरदारी करने वाले लोग भी ध्रुवीकरण के झन्डे तले आ जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि 2 मई को बंगाल, आसाम समेत पांच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ ही भाजपा का राजनीतिक युद्धक साजो-सामान उत्तर प्रदेश में मुस्तैद हो जाएगा। चुनाव के केन्द्र बिन्दु में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही होंगे।

 

 

कर्मकांडी बनाम समाजवादी...और ठोंक दो !

 परवेज अहमद

प्रदेश सरकार आज (19 मार्च) को चार साल पूरे कर रही है। इंवेस्टर्स मीट, एक्सप्रेस-वे का जाल,  मेडिकल कालेज, दंगाई से वसूली, लव जेहाद जैसे कानून, कोविड जैसी आपदा में ओडीओपी के जरिये अवसर बढ़ाने का सरकार का दावा है। एलान ये भी कि सरकार सबका साथ-सबका विकास के ध्येय वाक्य पर चली। भेदभाव के बिना नौकरियां दी। हर सेक्टर में इंसाफ हुआ। जब भी जिसकी सरकार होती है, वह कमोवेश इसी अंदाज में विकास का दावा किया जाता है। जाहिर है, भाजपा सरकार के प्रचार में भी अतिरेक नहीं ढूंढना चाहिए। पर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना इस बात के लिए होना चाहिए कि उन्होंने परम्परा और मिथक तोड़ने में कोई हिचक नहीं दिखायी। सिस्टम को रेग्युलेट करने के लिये नया शब्द गढ़ा। विपक्ष को उनके जिस एक शब्द पर एतराज है-वह है ठोंक दो ! ” और मिथक, नोएडा जाने का है।

इसकी सराहना इसलिए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर्मकांडी भाव के हैं, फिर भी वे बार-बार नोएडा गए। जबकि इस शहर से एक मिथक जुड़ा था कि जो मुख्यमंत्री वहां गया, उसकी सरकार चली गई। राजनीतिकों के मानस पटल पर इस मिथक की पैठ इतनी गहरी थी कि खांटी समाजवादी, प्रोग्रेसिव अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा जाने से गुरेज कर गये। मायावती, मुलायम सिंह और भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री सरकारी समारोह में यहां जाने से गुरेज करते ही रहे हैं, उन परम्पराओं के बीच किसी कर्मकांडी मुख्यमंत्री का मिथक तोड़ना सराहना का विषय है ही। इतना ही, नहीं योगी ने पुलिस की हौसला आफजाई करते हुए खुले मंच से वाक्य उछाला ठोंक दो...यह जुमला ठोस निर्णय लेने की क्षमता का संदेश देता है। मानवाधिकारवादी, विपक्षी इसको आलोचना की जद में लेते रहे हैं। मगर, सामान्य धारणा ये कि वाक्य ने अपराधियों में खौफ भरा है। यह कारण हो सकता है कि चार सालों में कहीं एसा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ, जिसे विपक्ष मुद्दा बना सके। ये अलग बात है कि ठोंक दो वाक्य का कतिपय स्थानों पर पुलिस ने बेजा इस्तेमाल किया। पर, कलयुग में सब कुछ शत-प्रतिशत ठीक नहीं हो सकता है। आने वाले समय में मुख्यमंत्री को अधिकारों के बेजा इस्तेमाल की निगरानी करने की जरूरत होगी। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर लखनऊ, नोएडा को पुलिस कमिश्नरेट घोषित करना भी मुख्यमंत्री का साहसिक कदम है, क्योंकि आईएएस लाबी कमिश्नरेट के पक्ष में नहीं थी।  हां, किसी मुख्यमंत्री के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि है कि विपक्ष उस पर भ्रष्टाचार के इल्जाम नहीं लगा सकी है, हालांकि उनकी सरकार का प्रत्येक तंत्र उनकी तरह नहीं है।