-निजी आवास पर मुर्गे, बकरे के गोश्त और फूलों की सुंगध पर उड़ाये थे हजारों
- लेखा परीक्षा रिपोर्ट में कार्रवाई की संस्तुति पर प्रो.विनय पाठक ने ओढ़ी
खामोशी
-एनबी सिंह ने घर, गेस्ट हाउस पर फूंके करोड़ तो अनीस अंसारी ने दावतों में
उड़ाया धन
परवेज अहमद
लखनऊ । ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनबी सिंह
ने ही नहीं, घर-गेस्ट हाउस पर करोड़ों रूपये खर्च किये। बल्कि ये परम्परा विश्वविद्यालय
की बुनियाद के साथ पड़ी थी। पहले कुलपति अनीस अंसारी (रिटायर आईएएस) ने तो निजी आवास
पर बकरे-मुर्गे के गोश्त के स्वाद और दावत में फूलों की सुंगध पर गरीब छात्रों की फीस
के हजारों रुपये फूंके थे। स्थानीय निधि लेखा परीक्षक की आपत्ति और दोषियों से वूसली
की सिफारिश को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
यूपी कॉडर के आईएएस अधिकारी रहे अनीस अंसारी सेवाकाल में डिजाइनर कपड़े पहनने,
ऊंचाई पर पहुंचे लोगों के लिये थीम पार्टियां करने के लिए चर्चा में रहते थे। अपर मुख्य
सचिव के पद से सेवानिवृत होने पर तत्कालीन सरकार ने उन्हें गरीब छात्रों को ऊंची तालीम
देने, भाषा के उत्थान की मंशा से ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय (केएमसी)
का पहला कुलपति नियुक्त किया। कुलपति के रूप में उनके ढेरों फैसलों पर विवाद विचाराधीन
हैं। गत वर्ष केएमसी के पांचवें कुलपति नियुक्त प्रो.एनबी सिंह ने कुलपति आवास की साज
सज्जा पर 49 लाख, अतिथि गृह के सुंदरीकरण पर लाखों रुपये फीस मद से खर्च कर दिये। इस
प्रकरण को लेकर विवि की वित्तीय अनियमितता व प्रशासनिक भेदभाव के प्रकरणों की पड़ताल
में इस संवाददाता को सूत्रों से स्थानीय निधि लेखा परीक्षा की एक रिपोर्ट मिली। जिसमें
2010 से 2017 के वित्तीय व्यय, प्रशासनिक अनियमितता का ब्यौरा है।
जिसमें स्पष्ट दर्ज है कि कुलपति के रूप में सेवानिवृत आईएएस अधिकारी अनीस अंसारी
ने गोमतीनगर स्थित निजी आवास पर फीस के पैसे से करीबियों के लिये आलीशान दावत का आयोजन
किया। जिसमें बकरे-मुर्गे के गोश्त पर हजारों रुपये खर्च हुये। यही नहीं, दावत में
शामिल मेहमानों को खुशनुमा खुशबू का अहसास होता रहे, इसके फूलों का डेकोरेशन किया गया।
सवाल ये है कि अभिभावकों ने कमर कमान कर बच्चों की पढ़ाई के लिये जो राशि विवि को सौंपी
उसको दावत पर उड़ाने का अधिकार कुलपति
को किसने दिया ? स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग ने भी यही सवाल उठाया है।
उपनिदेशक स्थानीय निधि लेखा नीरज कुमार गुप्ता ने संस्तुतियों में लिखा है कि
छात्रों की फीस की ये राशि दावत पर खर्च हुई, जिसका कुछ भुगतान कारपोरेशन बैंक खातों
से भी किया गया, मगर रोक़ड बही में इसका उल्लेख नहीं किया गया। ये विश्वविद्यालय की
राशि का दुरुपयोग है, जिसका उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुये प्रभावी कार्रवाई की
जाए। ये रिपोर्ट 10 दिसंबर 2020 को तत्कालीन कुलपति प्रो.विनय पाठक को सौंपी गयी, जिन्होंने
कार्रवाई करने के साथ पर उसे एफओ (वित्तीय अधिकारी) लिखकर बढ़ा दिया। कोई कार्रवाई
नहीं हुई। इसके बाद के कुलपतियों ने भी निजी सुविधा पर विश्वविद्यालय का धन खर्च किया।
नतीजा ये हुआ कि इसके बाद हर कुलपति ने छात्रों की फीस का राशि का अपने हितों में अपने
तरीकों से उपयोग किया।
एक दावत पर ऑन रिकार्ड खर्च
स्नैक्स- 13,600
बकरे, मुर्गे का गोश्त-14,200
सुंदरता हेतु सुगंधित फूल-16,250
फल-फ्रूट-12,300
कैटरिंग-19,650
टेन्ट सामग्री-17,625
दावत के दौरान बीमार थे कुलपति, इलाज को दो लाख लिये
स्थानीय निधि लेखा रिपोर्ट से स्पष्ट है कि तत्कालीन कुलपति अनीस अंसारी ने
निजी आवास में दावत पर छात्रों का पैसा ही नहीं उड़ाया बल्कि बीमारी के इलाज के नाम
पर 2,04,297 रुपये का भुगतान लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनीस अंसारी भारतीय प्रशासनिक
सेवा के अधिकारी थे, जिन्हें इलाज के लिये होम कॉडर से इलाज की राशि मिलती है, लेकिन
उन्होंने छात्रों की फीस के पैसे खर्च किये। आडिटर ने रिपोर्ट में कहा है कि चिकित्सा
प्रतिपूर्ति का भुगतान संबंधित पूर्व अधिकारी के पेंशन भुगतानकर्ता विभाग द्वारा किया
जाना चाहिए। ये शासन का नियम है, ये देखना समाचीनी होगा कि वहां से भी भुगतान लिया
या नहीं। ये राशि विवि पर बोझ थी। जिसके लिए संबंधित पर विधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।
मायावती ने बनाया था ये विवि
एक अक्टूबर 2009 को उत्तर प्रदेश उर्दू, अरबी, फारसी विवि, लखनऊ स्थापना की।
4 मार्च 2011 को उन्होंने इस विवि से उत्तर प्रदेश शब्द हटाते हुये इसे मान्यवर कांशीराम
जी उर्दू, अरबी फारसी विश्वविद्यालय नाम कर दिया। प्रदेश सपा सरकार बनने पर 16 अगस्त
2012 को इस विवि का नाम बदलकर ख्वाजा मोईन उद्दीन अरबी फारसी विवि किया गया। भाजपा
सरकार बनने पर योगी आदित्यनाथ सरकार उर्दू, फारसी, अरबी शब्द हटाकर इसे भाषा विश्वविद्यालय
कर दिया। इसी विवि के पहले कुलपति थे, अनीस अंसारी थी, प्रो.विनय पाठक के पास भी इस
विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त चार्ज था। .
No comments:
Post a Comment