-यादव परिवार में संग्राम छिडऩे के बाद धड़ल्ले से चले जा रहे भावनात्मक दांव
-दबाव बनाने और अपना पक्ष रखने में भी जज्बातों का सहारा
लखनऊ : समाजवादी पार्टी (सपा) में आंसू सियासी दांव का हिस्सा बन रहे हैं। परिवार में संग्राम शुरू होने के बाद से आंसू बहाने के सिलसिले में बढ़ोत्तरी हुई है। सपा से निष्कासित प्रो.राम गोपाल यादव ने इटावा में जिस अंदाज में आंसुओं को सफाई का जरिया बनाया, उसे मुलायम सिंह को लुभाने की कूटनीति के रूप में देखा जा रहा है।
सपा में भावनात्मक दांव की शुरुआत बिहार में महागठबंधन से नाता तोडऩे के फैसले से हुई। उस समय जनता परिवार केएक होने पर 'साइकिल निशान और हरे-लालÓ झंडे काअस्तित्व खत्म होने का भावनात्मक तर्क मुलायम के सामने रखा गया था। यह तर्क रखने वालों के अगुआ राम गोपाल थे। यहां से यह सिलसिला चला और मुख्तलिफ मौकों पर परवान चढ़ा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल यादव ने भी अपनी बात रखने में भावनात्मक पक्ष को ही आगे रखा। इसकी परिणति 24 अक्टूबर को सपा मुखिया की ओर से बुलायी गई पार्टी विधायकों की बैठक में दिखी जिसमें मंच पर उनके साथ अखिलेश और शिवपाल भी थे। बैठक को संबोधित करते हुए पिता मुलायम के सामने अपना पक्ष रखते हुए अखिलेश का गला कई बार भर आया। परिवार की कलह से परेशान मुलायम ने भी द्रवित होकर अखिलेश को चाचा शिवपाल से गले लगने को कहा था। अखिलेश ने पिता और चाचा के पैर छुए थे। एक बार फिर इसकी बानगी सपा के रजत जयंती समारोह के मंच पर देखने को मिली शिवपाल ने अखिलेश से कहा कि खून मांगोगे तो वह भी दे दूंगा।
भावनाओं की भंवर से निकल कर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुनाव की तैयारियों पर फोकस शुरू किया ही था कि सोमवार को सपा से निष्कासित राम गोपाल ने इटावा में ने डबडबाती आंखों से कहा कि 'अब भी सपा में हूं, राष्ट्रीय पदाधिकारी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बर्खास्त कर सकता है।Ó ध्यान रहे प्रोफेसर के निष्कासन का आदेश मुलायम के कहने पर शिवपाल यादव ने जारी किया था, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। रामगोपाल ने पत्र के मार्फत जो मांग रखी, उसमें टिकट बंटवारे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की राय अनिवार्य करने, निष्कासित एमएलसी व पदाधिकारियों की वापसी और अनिर्णय की स्थिति में राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने की मांग शामिल है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रोफेसर ने मुख्यमंत्री के कंधे पर बंदूक रखकर सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव पर निशाना साधने का कूटनीतिक दांव चला है। यह भी कहा जा रहा है कि भावनात्मक दांव के जरिये राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के नेता का पद बचाये रखने का प्रयास किया गया है।
कहा जा रहा है कि यादव परिवार के सदस्यों में स्वीकार्य माने जाने वाले संजय सेठ को राज्यसभा में दल का नेता नियुक्त किया जा सकता है। हालांकि चुनावी साल में पिछड़ा वर्ग के विश्वंभर निषाद या भूमिहार रेवतीरमण सिंह में से किसी एक को भी यह पद मिल सकता है।
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