Sunday 26 May 2019

मुस्लिम छिटके लेकिन बाकियों ने बचा लिया

लखनऊ
पिछली बार उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा नहीं पहुंचा था, लेकिन इस बार प्रदेश से छह मुस्लिम चेहरे लोकसभा में होंगे। जीतने वाले छह सांसदों में से तीन एसपी से और तीन बीएसपी से हैं। प्रत्याशियों की बात की जाए तो एसपी ने चार, जबकि बीएसपी ने छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। वहीं, कांग्रेस ने सात मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था।
अगर इन जीते हुए चेहरों को देखा जाए तो समीकरण साफ इशारा करते हैं कि मुस्लिम बहुल आबादी वाले इलाकों में जब दलित और ओबीसी वोटरों ने साथ दिया तो इनकी बात बन गई। जीत के आंकड़ों को उन्होंने छुआ और बीजेपी की उम्मीदें उन्होंने यहां पूरी नहीं होने दीं। अमरोहा सीट को देखा जाए तो यहां मुस्लिम और जाट वोटरों की तादाद काफी ज्यादा है। यही वजह है कि बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट वोटरों को साधकर कंवर सिंह तंवर को यहां से जीत दिलवाने में सफलता पाई थी। हालांकि इस बार एसपी और बीएसपी गठबंधन के साथ में आरएलडी भी थी। इस वजह से मुस्लिम वोटरों के साथ जाट वोटरों का कुछ हिस्सा यहां कुंवर दानिश अली के पक्ष में आया। साथ ही दलित और ओबीसी वोटरों की जुटान ने दानिश की राह आसान कर दी। दानिश अली को यहां पड़े कुल वोटों में से 51 फीसदी वोट मिले।
मुस्लिम छिटके लेकिन बाकियों ने बचा लिया
सहारनपुर की सीट का गणित समझा जाए तो यहां करीब 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। जाट और जाटव आबादी भी यहां अच्छी संख्या में है। पिछले चुनाव में यहां राघव लखनपाल बीजेपी के प्रत्याशी थे और उन्होंने बेहद कड़े मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद को 65 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। लेकिन इस बार तो यहां के समीकरण और जटिल हो गए थे। वजह यह थी कि इस बार इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी के खिलाफ दो मुस्लिम चेहरे थे। सभी प्रत्याशियों को मिले कुल वोटों को देखा जाए तो यह साफ है कि कुछ मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ जरूर। लेकिन एसपी-बीएसपी और आरएलडी के वोटरों के वोट ट्रांसफर से स्थितियां हाजी फजलुर्रहमान के पक्ष में आ गई।
मुस्लिमों का रुख बिल्कुल साफ रहा
मुरादाबाद की लोकसभा सीट पर पिछली बार कमल खिला था। कुंवर सर्वेश कुमार यहां से जीते थे। अगर इस सीट के जातीय समीकरण को देखा जाए तो इस सीट पर भी 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। लेकिन पिछली बार चुनाव हारने वाले एसटी हसन के पक्ष में इस बार एसपी-बीएसपी की एकजुटता काम आई। मुस्लिम वोटरों के साथ उन्हें ओबीसी और दलित वोटरों का साथ मिला। यह सीट इस मामले में दिलचस्प रही कि यहां पर बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ दो मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। लेकिन मुस्लिमों ने अपना रुख बिल्कुल साफ रखा। यहां मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हुआ। कांग्रेस उम्मीदवार इमरान प्रतापगढ़ी को मुस्लिम मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया और वह केवल साठ हजार वोट ही पा सके।
इस बार यह मामूली अंतर नहीं जाने दिया बीजेपी के पक्ष में
संभल उन लोकसभा सीटों में है, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या के तकरीबन आधी है। पिछली बार एसपी और बीएसपी के वोटरों के बीच मुस्लिम मतदाता बंट गए थे। नतीजा यह रहा था कि यहां से बीजेपी के सत्यपाल सैनी मामूली अंतर से सीट जीतने में सफल रहे थे। लेकिन इस बार एसपी और बीएसपी के एक साथ होने का असर यह रहा कि मुस्लिमों के सामने वोटों के बिखराव जैसा समीकरण नहीं बना और शफीकुर्रहमान बर्क की जीत का रास्ता साफ हो गया।
रामपुर में बरकरार रहा मुस्लिमों का एका
रामपुर भी उन सीटों में शुमार है, जहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या कुल वोटरों के कमोबेश आधी है। यही वजह रहा है कि कभी कांग्रेस के लिए यहां नूर महल मुस्लिमों की पहली पसंद हुआ करता था और इसके बाद के वर्षों में यह एसपी के गढ़ में तब्दील हो गया। इस चुनाव में एसपी की तरफ से आजम खां चुनाव मैदान में थे। वह मुस्लिमों का एका बरकरार रखने में सफल रहे। बाकी की पार्टियों के कोर वोट उनके खाते में गए। आजम को यहां पड़े कुल वोटों में से 52 फीसदी वोट मिले हैं।
गैर मुस्लिम बहुल सीट पर अफजाल रहे विजयी
जिन छह लोकसभा सीटों पर मुस्लिम सांसद चुने गए हैं, उनमें केवल गाजीपुर ही वह सीट है, जहां मुस्लिम निर्णायक भूमिका में नहीं हैं। यहां पर ओबीसी और दलितों वोटरों की संख्या कुल मिलाकर करीब आठ लाख तक जाती है। मुस्लिम महज डेढ़ लाख हैं। यही अफजाल की जीत की वजह भी रही। एसपी और बीएसपी के वोटरों ने मिलकर मनोज सिन्हा की दावेदारी को नकार दिया। अफजाल को भी यहां पड़े कुल वोटों में से 51 फीसदी वोट मिले हैं।

कांग्रेस के सातों इसलिए हारे क्योंकि और नहीं थे उनके साथ
कांग्रेस ने इस चुनाव मैदान में सात मुस्लिम चेहरों को उतारा था। इमरान मसूद, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इमरान प्रतापगढ़ी, सलीम इकबाल शेरवानी, जफर अली नकवी, सलमान खुर्शीद और नियाज अहमद इनमें शामिल थे। हालांकि कांग्रेस के पास किसी भी जाति के वोट इन मुस्लिम प्रत्याशियों के साथ प्लस होने वाले नहीं थे। इसकी वजह से इनकी बात नहीं बनी। सभी ने गठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवारों में ही विश्वास जताया। 

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