Wednesday 1 May 2024

20 लोगों को पीछे छोड़ डीजीपी बने

परवेज अहमद

लखनऊ। फरवरी की पहली सुबह जब मौसम खुशगवार होगा। देश श्रीराम की आस्था में सराबोर होगा, तब यूपी पुलिस की ऊंची डीजीपी की कुर्सी रिक्त होगी। मई 2022 से ये कुर्सी कार्यवाहक अधिकारी संभालते आ रहे हैं। परम्परा आगे बढेगी ? तकनीकी स्थितियां कहती हैं कि मार्च 2024 तक यूपी पुलिस को कार्यवाहक डीजीपी ही संभालेंगे। रेस में आनंद कुमार आगे हैं। उनका कार्यकाल दो माह हो सकता है। वैसे, सरकार असीमित शक्तियों प्रयोग कर डीजी स्तर के किसी अधिकारी को दायित्व दे सकती है। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र को छह माह का तीसरा सेवा विस्तार मिलने के बाद यह सवाल जोर पकड़ रहा है। अगर, कार्यवाहक डीजीपी चुनाव कराते हैं तो यूपी पुलिस के नये इतिहास में यह नया अध्याय होगा।

प्रदेश सरकार ने 11 मई 2022 को डीजीपी मुकुल गोयल को हटाकर डॉ.डीएस चौहान को डीजीपी नियुक्त किया। उन्होंने पांच आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया था। मगर लोकसेवा आयोग व सरकार के  बीच विधिक पत्राचार की पेंच ऐसी उलझी कि वह पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बन सके। उनके रिटायर होने पर राजकुमार विश्वकर्मा को यह ओहदा मिला। फिर विजय कुमार की बारी आई। मगर ये सभी कार्यवाहक डीजीपी हैं। 31 जनवरी को विजय कुमार सेवानिवृत हो रहे हैं। नया डीजीपी कौन ? दरअसल, 11 मई 2022 को मुकुल गोयल को हटाने के बाद लोकसेवा आयोग ने जो पेंच फंसाया था, वह अभी सुलझा नहीं है क्योंकि मुकुल 28 फरवरी 2024 को रिटायर होंगे।

ऐसे में सवाल ये है कि आखिर देश की सबसे बड़ी यूपी पुलिस का चौथा मुखिया भी कार्यवाहक होगा ?  क्या सरकार मुकुल गोयल के रिटायर होने तक दो माह के लिए आनंद कुमार को कार्यवाहक डीजीपी का जिम्मा देगी, क्योंकि मार्च 24 में वह भी रिटायर हो जाएंगे। सुभाष चन्द्रा भी मार्च में सेवा की अवधि पूरी कर लेंगे। तनुजा श्रीवास्तव, सतीश कुमार माथुर भी सेवानिवृति की ओर बढ़ चलेंगे। ऐसे में प्रशांत कुमार प्रथम को डीजीपी बनाने में सुपरशीट करने वाले अधिकारियों की संख्या आठ के आसपास ही बचेगी। इससे पहले सपा सरकार में जावीद अहमद को डीजीपी बनाने के लिए आधा दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया गया था। नजीर का लाभ प्रशांत कुमार को मार्च में मिल सकता है, परन्तु सरकार ने विजय कुमार के सेवानिवृत्त होते ही प्रशांत कुमार-प्रथम को डीजीपी का दायित्व दे दिया तो वह भी कार्यवाहक डीजीपी बनकर ही रह जाएंगे। क्योंकि वरिष्ठता सूची में उनसे ऊपर शफी अहसान रिजवी, आशीष गुप्ता, आदित्य मिश्र, पीवी रमाशास्त्री, संदीप सांलुके, रेणुका शास्त्री, वीके मौर्य भी होंगे। इन अधिकारियों की छवि, प्रशासनिक क्षमता को भी चुनौती देना कठिन है। जाहिर है, इनके रहते लोकसेवा आयोग पूर्णकालिक डीजीपी की लिस्ट में प्रशांत कुमार-प्रथम के नाम का चयन करे, इसमें संदेह है। इतने ही नहीं अविनाश चन्द्र, संजय एम तरडे भी वरिष्ठता कोटि में उनसे ऊपर हैं।

प्रकाश सिंह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी प्रशांत कुमार-प्रथम के पूर्णकालिक डीजीपी बनने की राह में बाधा होगा। ऐसे में सरकार पहले आनंद कुमार दो माह के लिए कार्यवाहक डीजीपी बनाकर मुकुल गोयल के रिटायरमेन्ट के साथ पांच अधिकारियों को डीजीपी की रेस से बाहर कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी तकनीकी पक्षों का अध्ययन करने में जुट गये हैं।

वैसे, सरकार ने कानून व्यवस्था की बदहाली के इल्जाम में मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से विदा किया था और डीएस चौहान को दायित्व सौंपा था। यह इत्तिफाक ही चौहान के कार्यकाल में प्रयागराज में उमेश पाल व दो सिपाहियों की सनसनीखेज हत्या हो गयी। जिससे सरकार की किरकिरी हुई, मगर उन्होंने उस वारदात का खुलासा करने के लिये जिन अधिकारियों को मुस्तैद कराया, वह परिणाम देते उससे पहले ही डीएस चौहान विदा हो गये और क्रेडिट बिना कुछ किये ही राजकुमार विश्वकर्मा के हिस्से में चला गया। तीसरे कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार के दौर में यूपी पुलिस कोई बड़ा आपरेशन करने में सफल नहीं रही है। अलबत्ता कई सनसनीखेज वारदातें हो गयीं। एसटीएफ में भी सरकार की छवि बेहतर करने वाले आपरेशनल तजुर्बे वाले अधिकारियों की कमी है।

सूत्रों का कहना है कि 31 जनवरी को नये डीजीपी पर कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार ने इन सभी पहलुओं पर अभी से मंथन शुरू कर दिया है। जिससे संकेत तो यही हैं कि प्रशांत कुमार-प्रथम को कमान से पहले आनंद कुमार को कार्यवाहक डीजीपी की जिम्मा दिया जा सकता है।

 

1-मुकुल गोयल

मेरिटः पुलिसिंग का लंबा अनुभव। डीजीपी रह चुके। एडीजी एलओ भी रहे।

डिमेरिटः फरवरी 24 में रिटायरमेंट। डीजीपी पद से अचानक हटाये गये। जिसके बाद से यूपी को पूर्णकालिक डीजीपी नहीं मिला। सरकार की पसंद नहीं।

2- आनंद कुमार

मेरिटः सरल, ईमानदार, न्याय और पुलिसिंग को समर्पित अधिकारी। एडीजी एलओ के पद पर रहते हुये ईमानदारी से प्रदेश में पुलिसिंग का अनुभव।

डिमेरिटः मार्च-24 में रिटायरमेन्ट। डीजी जेल रहते मुख्तार अंसारी के विधायक बेटे अब्बास अंसारी की जेल अधिकारियों से सांठगांठ कर नियम विरुद्ध मुलाकात। जेल अधिकारियों की मिलीभगत से उनकी पत्नी का जेल प्रवास व विश्राम का खुलासा। जिससे सरकार नाराज।

3-शफी अहसान रिजवी

मेरिटः यूपी में कई जिलों के कप्तान, डीआईजी, आईजी जोन संभालने का अनुभव। केन्द्र की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी आईबी में कार्य का लंबा अनुभव।

डिमेरिटः मुस्लिम (अघोषित)। लंबे समय से केन्द्र की सेवा में हैं, यूपी की बदली पुलिसिंग से वाकिफ नहीं

4-आदित्य मिश्र

मेरिटः साफ-सुथरी पुलिसिंग। सहज उपलब्धता। मानवीयता प्रथम के मूल सिद्धांत पर वर्किग

डिमेरिटः एडीजी (एलओ) रहते मातहातों पर सख्ती नहीं करने का आरोप। दिसम्बर 2019 में केन्द्रीय सेवा में गये। यूपी वापस आने को कम इच्छुक।

5-पीवी रमा शास्त्री

मेरिटः साफ-सुथरी छवि। यूपी में कप्तान के रूप में तैनाती के दौरान भी विवादों से दूरी।

डिमेरिटः आंध्र प्रदेश के निवासी। लंबे समय से उत्तर प्रदेश की पुलिसिंग के दूर हैं।

6-संदीप सांलुके

मेरिटः हीनियस क्राइम ट्रैकिंग सिस्टम यूपी पुलिस में लागू किया। साइबर एक्सपर्ट। सिपाहियों, उपनिरीक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता का प्रयोग किया। कई जिलों के कप्तान रहे।

डिमेरिटः व्यवहारिक नहीं होने का इल्जाम। पिक एन्ड चूज की कार्यशैली। जेन्युइन सिफारिशों की अनदेखी का भी इल्जाम।

7-दलजीत चौधरी-1990 बैच

मेरिटः डकैत आपरेशन का तजुर्बा, व्यवहारिक। यूपी में एडीजी (कानून व्यवस्था) रहते अधिकारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण। जनता से ओपन संवाद में विश्वास। फरियादियों को समय देने की प्रतिबद्धता। सरकार की छवि सुधारने वाले अधिकारी।

डिमेरिटः सपा सरकार के करीबी का आरोप। मुलायम सरकार में पुलिस भर्ती में जिन आईपीएस पर गड़बड़ी करने के आरोप लगे उनमें से एक। वैसे, इस प्रकरण में उन्हें क्लीन चिट मिल गयी है। केन्द्रीय सेवा में हैं , यूपी आने को इच्छुक नहीं।

 

8-रेणुका मिश्र शास्त्री-1990 बैच

मेरिटः परफेक्शनिस्ट, न्यायवादी। ईमानदार। जेंडर इश्यू (यह सरकार की प्राथमिकता है) पर मुखर। पुलिस व समाज में स्त्री-पुरुष समानता की पक्षधर। स्पोर्ट्स परसन, अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की पक्षधर। अच्छे अधिकारियों की समर्थक लेकिन भ्रष्ट पर मुखर।

डिमेरिटः महिला (अघोषित), लंबे समय से फील्ड की पुलिसिंग से बाहर।

9-वीके मौर्य-1990 बैच

मेरिटः स्पष्टवादी परन्तु व्यावहिरक। परम्परागत पुलिसिंग में विश्वास।

डिमेरिटः लंबे समय से फील्ड में नहीं है। एडीजी रेलवे के पद तैनाती के दौरान उनकी कार्यशैली पर कुछ सवाल उठे।

10-सत्य नारायण सावंत-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी।

डिमेरिटः डीजी जेल रहने के दौरान पत्नी के राजस्थान में एक विवि में कुलपति बनने पर उनके ओहदों की भूमिका को लपेटा गया। लेकिन वह थम गयी। कैदियों को लेकर कोई भी अभिनव प्रयोग नहीं कर पाये हैं।

11-अविनाश चन्द्र-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी।

डिमेरिटः कुछ खास नहीं

12-संजय तरडे-1990 बैच

मेरिटः  औसत अधिकारी।

डिमेरिटः सपा सरकार में तैनाती के दौरान उनको लेकर एक मुहावरा प्रचलित हुआ, जो कभी प्रमाणित नहीं हुआ।

13-एमके बशाल-1990 बैच

मेरिटः जनता के लिए सरल उपलब्ध। कई जिलों की कप्तानी, रेंज पुलिसिंग का अनुभव।

डिमेरिटः लंबे समय से फील्ड की तैनाती से बाहर। मायावती सरकार में प्रमुख पदों पर रहे।

14-तनुजा श्रीवास्तव-1990 बैच

मेरिटः औसत अधिकारी

डिमेरिटः जुलाई 24 में रिटायरमेंट। महिला (अघोषित)

15-सुभाष चन्द्र-1990 बैच

मेरिटः साफ सुथरे अधिकारी। लखनऊ में आईजी रहते जनता के लिये सदैव उपलब्ध रहने,   जनहित के त्वरित फैसले लेने वाले अधिकारी। गोल्फ क्लब के अध्यक्ष होने के चलते निवेशकों, उद्योगपतियों में पकड़।

डिमेरिटः मार्च 24 में रिटायरमेंट। सपा सरकार के करीब होने का आरोप। पत्नी अनीता सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के विधानसभा क्षेत्र बाराबंकी की लबे समय डीएम, मुलायम सिंह य़ादव सरकार में विशेष सचिव मुख्यमंत्री, अखिलेश सरकार में प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री रहीं।

16- प्रशांत कुमार-प्रथम-1990 बैच

मेरिटः शांत स्वभाव के अधिकारी। सरकार की फिलासिपी पर चलने वाले, मेरठ में एडीजी जोन रहने के दौरान कावंडियों पर हेलीकाप्टर से फूल बरसाने पर चर्चा में आये। उसके बाद से सरकार की नीतियों में फिट। पुलिस अधिकारियों में शक्तिशाली आईपीएस की छवि।

डिमेरिटः सामान्य जनता के लिये उपलब्धता कम।

(नोटः अधिकारियों की मेरिट, डिमेरिट जनता, पुलिस कर्मियों से बातचीत के आधार पर लिखी गयी है। जरूरी नहीं है, उससे हर कोई इत्तिफाक रखे। धारणा बनाने से पहले स्वयं परखें )

 

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