-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व लोकायुक्त संजय मिश्र की चयन समिति ने लिया निर्णय
-नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर के लिए पत्रावली जल्द राजभवन भेजे जाने के आसार
परवेज अहमद , लखनऊ : मुख्यमंत्री के सचिव का ओहदा संभाल रहे शंभू यादव प्रदेश के नये उपलोकायुक्त हो सकते हैं। चयन समिति ने उनके नाम पर सहमति व्यक्त कर दी है। नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर के लिये पत्रावली जल्द ही राजभवन भेजे जाने की उम्मीद है।
उपलोकायुक्त का कार्यकाल सितंबर 2015 में पूरा हो गया था, नई नियुक्ति तक कार्यरत रहने का नियम होने के चलते स्वतंत्र देव सिंह अभी काम कर रहे हैं। हालांकि सतर्कता विभाग ने तकरीबन पांच माह पहले उपलोकायुक्त पद के लिये आवेदन मांगा थे। सेवा विस्तार पाकर मुख्यमंत्री के सचिव का जिम्मा संभाल रहे शंभू यादव तकरीबन सौ अभ्यर्थियों ने इस पद के लिये आवेदन किया था, जिसमें डीजीपी, एडीजी पद से रिटायर पुलिस व न्यायिक अधिकारी भी शामिल थे। 14 जुलाई को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संजय मिश्र की चयन समिति ने अभ्यर्थियों के आवेदन की स्क्रीनिंग की और गत दिनों शंभू यादव को उपलोकायुक्त नियुक्त करने को मंजूरी प्रदान कर दी। सूत्रों का कहना है कि प्रक्रिया पूरी करने के बाद सतर्कता विभाग नियुक्ति केवारंट पर हस्ताक्षर के लिए पत्रावली राजभवन भेजेगा।
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नियुक्ति का नियम
उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम-1975 (संशोधित-2012) के मुताबिक सतर्कता विभाग का मंत्री उपलोकायुक्त पद लिए उपयुक्त व्यक्ति के नाम पर लोकायुक्त से परामर्श करेगा। फिर चयनित व्यक्ति को उपलोकायुक्त नियुक्त करने का प्रस्ताव राजभवन भेजेगा। राज्यपाल नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर कर पत्रावली वापस प्रशासकीय महकमे (यूपी में सतर्कता विभाग प्रशासकीय महकमा है) को वापस करेंगे। जहां नियुक्ति आदेश जारी होगा।
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क्या हैं सुविधाएं
उपलोकायुक्त को भारत सरकार के अपर सचिव के बराबर वेतन मिलता है। (मौजूदा समय में यह राशि तकरीबन डेढ़ लाख मासिक बनती है) घरेलू कार्य के लिए पूर्ण वेतन पर कार्यरत दो कर्मचारी, कार, सरकारी आवास, घर के बिजली का बिल और हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति के बराबर सेवानिवृत्ति का लाभ, भत्ते व अन्य सुविधाएं मिलती हैं। मकान की साज-सज्जा के लिए डेढ़ लाख रुपये भी मिलते हैं।
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उपलोकायुक्त को अधिकार
सचिव व उससे ऊपर के अधिकारी, विधायक, मंत्री, नगर पालिका परिषद व जिला पंचायत के अध्यक्षों को छोड़कर उपलोकायुक्त किसी भी जनप्रतिनिधि या लोकसेवक के भ्रष्टाचार की जांच कर सकता है। लोकायुक्त चाहे तो कोई भी जांच उपलोकायुक्त को सौंप सकता है, चाहे वह मंत्रियों की ही क्यों न हो। अलबत्ता प्रदेश के लोकायुक्त अधिनियम में स्वत: संज्ञान का अधिकार नहीं है।
ब्यूरो: शंभू यादव होंगे नये उपलोकायुक्त !
-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व लोकायुक्त संजय मिश्र की चयन समिति ने लिया निर्णय
-नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर के लिए पत्रावली जल्द राजभवन भेजे जाने के आसार
परवेज अहमद , लखनऊ : मुख्यमंत्री के सचिव का ओहदा संभाल रहे शंभू यादव प्रदेश के नये उपलोकायुक्त हो सकते हैं। चयन समिति ने उनके नाम पर सहमति व्यक्त कर दी है। नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर के लिये पत्रावली जल्द ही राजभवन भेजे जाने की उम्मीद है।
उपलोकायुक्त का कार्यकाल सितंबर 2015 में पूरा हो गया था, नई नियुक्ति तक कार्यरत रहने का नियम होने के चलते स्वतंत्र देव सिंह अभी काम कर रहे हैं। हालांकि सतर्कता विभाग ने तकरीबन पांच माह पहले उपलोकायुक्त पद के लिये आवेदन मांगा थे। सेवा विस्तार पाकर मुख्यमंत्री के सचिव का जिम्मा संभाल रहे शंभू यादव तकरीबन सौ अभ्यर्थियों ने इस पद के लिये आवेदन किया था, जिसमें डीजीपी, एडीजी पद से रिटायर पुलिस व न्यायिक अधिकारी भी शामिल थे। 14 जुलाई को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संजय मिश्र की चयन समिति ने अभ्यर्थियों के आवेदन की स्क्रीनिंग की और गत दिनों शंभू यादव को उपलोकायुक्त नियुक्त करने को मंजूरी प्रदान कर दी। सूत्रों का कहना है कि प्रक्रिया पूरी करने के बाद सतर्कता विभाग नियुक्ति केवारंट पर हस्ताक्षर के लिए पत्रावली राजभवन भेजेगा।
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नियुक्ति का नियम
उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम-1975 (संशोधित-2012) के मुताबिक सतर्कता विभाग का मंत्री उपलोकायुक्त पद लिए उपयुक्त व्यक्ति के नाम पर लोकायुक्त से परामर्श करेगा। फिर चयनित व्यक्ति को उपलोकायुक्त नियुक्त करने का प्रस्ताव राजभवन भेजेगा। राज्यपाल नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर कर पत्रावली वापस प्रशासकीय महकमे (यूपी में सतर्कता विभाग प्रशासकीय महकमा है) को वापस करेंगे। जहां नियुक्ति आदेश जारी होगा।
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क्या हैं सुविधाएं
उपलोकायुक्त को भारत सरकार के अपर सचिव के बराबर वेतन मिलता है। (मौजूदा समय में यह राशि तकरीबन डेढ़ लाख मासिक बनती है) घरेलू कार्य के लिए पूर्ण वेतन पर कार्यरत दो कर्मचारी, कार, सरकारी आवास, घर के बिजली का बिल और हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति के बराबर सेवानिवृत्ति का लाभ, भत्ते व अन्य सुविधाएं मिलती हैं। मकान की साज-सज्जा के लिए डेढ़ लाख रुपये भी मिलते हैं।
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उपलोकायुक्त को अधिकार
सचिव व उससे ऊपर के अधिकारी, विधायक, मंत्री, नगर पालिका परिषद व जिला पंचायत के अध्यक्षों को छोड़कर उपलोकायुक्त किसी भी जनप्रतिनिधि या लोकसेवक के भ्रष्टाचार की जांच कर सकता है। लोकायुक्त चाहे तो कोई भी जांच उपलोकायुक्त को सौंप सकता है, चाहे वह मंत्रियों की ही क्यों न हो। अलबत्ता प्रदेश के लोकायुक्त अधिनियम में स्वत: संज्ञान का अधिकार नहीं है।
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