Wednesday 23 January 2019

भाजपा के सामने यूपी की पांच सीटें बचाने की कठिन चुनौती

मोदी लहर में भी काफी कम अंतर से भाजपा जीती थी संभल, रामपुर, बस्ती, गाजीपुर, कौशांबी सीट
परवेज अहमद
लखनऊ।  उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने की संभावनायें बननी शुरू हो गयी हैं। 80 लोकसभा सीटों में से पांच पर जीत जहां गठबंधन (सपा, बसपा व रालोद) के लिये चुनौती होगी, वहीं पांच सीटें ऐसी भी हैं, जिसे झोली में बनाये रखना भाजपा के लिये चुनौती होगी। 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी के समर्थन की आंधी चल रही थी, उस दौर में भाजपा संभल, रामपुर, गाजीपुर, बस्ती और कौशांबी सीट पांच हजार से 30 हजार वोटों से ही जीत पायी थी, जबिक अन्य प्रत्याशियों की जीत का अंतर 90 हजार से चार लाख तक था। भाजपा के रणनीतिकारों को भी संभवत: इसका भान है, इसीलिए इन क्षेत्रों में उसने अनुसांगिक संगठनों के तजुर्बेकारों की टोली को अभी से तैनात कर दिया है।
2014 में जिस एक सीट में सबसे कम वोटों के अंतर से हारजीत हुई, वह संभल थी। यहां भाजपा के सत्यपाल सिंह ने सपा के शफीकुर्ररहमान बर्क को महज 5174 वोटों से हराया था। हार जीत का इतना कम अंतर इसलिए भी था कि इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में अतीकुर्ररहमान चुनाव लड़ रहे थे। जिन्हें संसदीय सीट का हिस्सा चंदौसी विधानसभा क्षेत्र में ही अकेले 43217 मत मिल गये थे और वह तीसरे नम्बर पर थे। अब सपा-बसपा का गठबंधन है। सीट सपा के खाते में जाने के संकेत हैं, ऐसे में भाजपा के सामने जीत दोहराने की बड़ी चुनौती होगी। दूसरी सीट रामपुर है। जहां 23435 मतों की बढ़त के साथ डॉ.नैपाल सिंह सांसद हुए थे और दूसरे नम्बर पर सपा के नसीर अहमद खां थे। इत्तिफाक से कांग्रेस का प्रत्याशी अल्पसंख्यक वर्ग का था। रामपुर संसदीय सीट में पड़ने वाली मिलक व बिलासपुर विधानसभा सीटों से भाजपा प्रत्याशी को बढ़त हासिल हुई थी, इन दोनों क्षेत्रों में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का औसत 15 फीसद से ऊपर है। जाहिर है जीत का दोहराव भाजपा के लिए चुनौती होगी। गाजीपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद व रेल राज्य मंत्री मनोज कुमार सिन्हा 2014 में सिर्फ 32452 वोटों से जीत पाये थे। जबकि उनके सामने सपा की ओर से राजनीतिक गणित से अनजान सुकन्या कुशवाहा थीं। अति पिछड़ों व अल्पसंख्यकों में खासी पकड़ रखने वालेउनके पति बाबू सिंह कुशवाहा सुदूर गाजियाबाद कारागार में निरुद्ध थे। सपा के अग्रणी नेताओं में से कई सुकन्या के भितरघात में जुटे थे। सपा के पूर्व मंत्री  ओम प्रकाश सिंह की विधानसभा सीट जमानियां से उतने वोट नहीं मिल पाये थे, जितने सपा को मिलते रहे हैं। इन परिस्थितियों के बावजूद वह सिर्फ 32 हजार वोटों से हारी थीं। तीसरी सीट बस्ती है। जहां भाजपा के हरीश द्विवेदी सिर्फ 33562 वोटों से जीत हासिल कर पाये थे। जबकि वह उसी समय दो विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गये थे। एक सीट पर उन्हें बसपा के राम प्रसाद चौधरी (56559) से चुनौती मिल गयी थी। यहां सपा तीसरे नम्बर पर खिसक गयी थी। भाजपा की लहर के बाद भी सपा के बृज किशोर उर्फ डिंपल  सिर्फ 33 हजार वोटों से चुनाव हारे थे। इस बार सपा-बसपा का गठबंधन है और दोनों दलों को मिले वोटों को जोड़ दिया जाये तो भाजपा को मिले मतों से तीन फीसद से अधिक हो जाता है। ऐसे में यह सीट भाजपा के लिए चुनौती है। पांचवीं सीट कौशांबी सुरक्षित है। इस सीट पर भाजपा विनोद कुमार सोनकर को सिर्फ 40 हजार वोटों से जीत हासिल हुयी थी। इस सीट पर सपा के उम्मीदवार शैलेन्द्र कुमार सिराथू, मंझनपुर और चायल विधानसभा क्षेत्र में बसपा से पिछड़ गये थे। अब दोनों दलों के बीच गठबंधन है। जाहिर है चुनौती भाजपा की ही बढ़ेगी। सूत्रों का कहना है कि इन संभावनाओं से वाकिफ भाजपा ने तजुर्बेकार कार्यकर्ताओं की टोली इन क्षेत्रों में उतार दी है। आनुसांगिक संगठन के ओहदेदारों का दल भी लगाया है। भाजपा के सामने जहां इन पांच सीटों की चुनौती है, वहां सपा-बसपा गठबंधन के लिए लखनऊ, बरेली, गाजियाबाद, वाराणसी और कानपुर संसदीय सीट जीतने की चुनौती है। अमेठी, रायबरेली में उसने प्रत्याशी ही न उतारने की घोषणा कर रखी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की सीट दर सीट मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना है। राजनीतिक दांव पेंचों का तिलिस्म भी दिखने के आसार हैं।


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