महिला हिंसा के इस कारण के विरुद्ध कभी गठबधंन होगा?
तापमान गिर-चढ़ रहा है। कोहरा-ओला (पहाड़ अपवाद हैं) इस बार पड़ा नहीं। लेकिन धुंआ फैला है। कहीं प्रदूषण, कहीं भ्रष्टाचार, कहीं छीजते नैतिक मूल्यों का धुंआ है। इस सबके बीच सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा से राजनीतिक आंच की लौ निकली है। जिसका जैसा चश्मा है, उसको इस लौ का वैसा रंग व ताप दिखायी दे रहा। मगर जिन्होंने चश्मा नहीं चढ़ा रखा, उनके पास ढेरों सवाल हैं। एक-यह गठबंधन किसका है? भाजपा के खिलाफ दुहाई देकर जिन्होंने गठबंधन किया, क्या उनके पास वैचारिक थाती है? दलीय रस्सी से बंधे व्यक्तियों के सामने यह सवाल रखिये तो वे कहेंगे-हां, बसपा अांबेडकर और सपा, डॉ.लोहिया के विचारों वाला दल है। 2019 में आंबेडकरवादी और लोहियावादी मिलकर एकात्ममानवाद की दुहाई देने वालों को धूल चटा देंगे। भाजपा को हरा देंगे। सत्ता में लौटेंगे। वक्त के साथ यह आवाज तेज होगी। लोकसभा चुनाव का परिणाम आने पर थम जाएगी।...मगर जिनके वोटों से विरोधी को धूल चटाने और खुद हकूमत करने का मंसूबा संजोये हैं, वे बेखर हैं कि इंटरनेट, शार्ट फिल्मों के रूप में परोसा जा रहा 'पोर्न' महिला हिंसा की सबसे बड़ी वजह बन गया है? सर्वे को आधार नुमाया हुई ये खबर दम क्यों तोड़ गयी। इर्द-गिर्द निगाह दौड़ाइये तो पोर्न फिल्म, चुटकुलों का कचरा बेतरतीब बिखरा दिखायी देगा। लड़कियों के साथ जबरदस्ती का वीडियो शूट कर इंटरनेट के जरिये शेयर करने की शिकायतें आम हैं। कुछ वीडियो तो प्रोफेशनल कैमरे से शूट प्रतीत होते हैं। ऐसी हिंसक पोर्नोग्राफी बड़ी मात्रा में शेयर होती है। समाज में विकृति का रूप लेती इस समस्या से लड़ने के लिए गठबंधन क्यों हो रहा? क्या इसलिये कि इस समस्या में जाति, धर्म, संप्रदाय, अगड़ा-पिछड़ा। हमारी जाति वाला, तुम्हारी जाति वाला जैसा तड़का नहीं है। कुछ समय पहले महिलावादियों ने ऐसी समस्या पर आवाज बुलंद की थी, तब केन्द्र सरकार ने 827 पोर्न साइटोंं को बंद करने का हुक्म दिया। मगर ये साइटें बंद हुयी, इसकी पड़ताल तक नहीं की गयी। सर्वे बताता है भारत में सबसे अधिक पोर्न साइटें देखी जाती हैं, मगर क्यों? साधारण सा जवाब होता है-सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। दूसरे देशों से औसत निकालिये। हम काफी पीछे मिलेंगे। मगर नेट फिल्टरिंग फर्म आॅप्टेनेट की रिपोर्ट इस कुतर्क को खारिज करते हुए कहती है कि इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री में से 37 फीसद पोर्नग्राफी है। जिससे महिलाओं के प्रति हिंसक भाव को बढ़ावा मिलता है। यह सच है तब क्या महिला पर होने वाले जुल्म को रोके बिना भारत को विश्व गुरु बनाने, राष्ट्रवाद जेहन में भरने की कोशिशें सकारात्मक परिणाम दे सकेंगी? कुछ अरसे में बलात्कार, मारपीट, घर से निकालने, तलाक (सभी धर्म के मानने वालों में) से जुड़ी आपराधिक वारदातों की इंट्रोगेशन रिपोर्टों से जो इशारा मिलता है, उसका सिरा कहीं न कहीं पोनग्राफी से जुड़ा होता है। नई पीढ़ी की जिज्ञासा की बात करें तो वे पोर्न के जरिए वह कुछ जानने की जिज्ञासा पूरी करते हैं। सीखने का असफल प्रयास कर रहे हैं, तब आखिर सेक्स को स्कूलों में पढ़ाया क्यों न जाये। ताकि नैतिकता का वह आवरण तो बचा रहे, जिसे भारत वर्ष की यूएसपी कहा जाता है। मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक दोनों मानते हैं कि पोर्न अनिवार्य तौर पर हिंसक और सैडिस्ट होता है। इसलिए नई पीढ़ी पोर्न के जरिए हिंसा, परपीड़ा सीख रही है। दुर्ग्यावश सूचना क्रांति ने विजुअल सेक्स का तथाकथित तौर पर लोकतांत्रीकरण होता जा रहा है। सेक्शुअली रिप्रेस्ड खासकर उत्तर भारतीय समाज इसको कुंठा अभिव्यक्त करने का आसान जरिया बना रहा है। पोर्न से एक समाज कैसे डील करता है यह भी उसकी मानसिक शिक्षा को दर्शाता है। सवाल ये है कि भारतीय राजनीतिक इस सामाजिक समस्या से संघर्ष के लिए कब गठबंधन करना पसंद करेंगे। लोकसभा का चुनाव करीब है क्या किसी दल के विजन डायूक्यमेंट, चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पोनग्राफी पर पूर्ण प्रतिबंध या इसको शेयर करने वालों पर सख्त कार्रवाई का कोई वायदा करेगी। क्या युवा जोश वाले दल से यह उम्मीद की जाए? क्या महिला जुल्म के खिलाफ लड़ने वाले दल से यह आशा रखनी चाहिये। क्या राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाला दल यह वादा करेगा? या फिर आजादी के आंदोलन से उपजे राजनीतिक दल से यह उम्मीद की जाए। सवाल सामने है क्या देश को आगे बढ़ाने वाला दावा करने वाले लोग दोहरे मापदंडों से बाहर आयेंगे।
तापमान गिर-चढ़ रहा है। कोहरा-ओला (पहाड़ अपवाद हैं) इस बार पड़ा नहीं। लेकिन धुंआ फैला है। कहीं प्रदूषण, कहीं भ्रष्टाचार, कहीं छीजते नैतिक मूल्यों का धुंआ है। इस सबके बीच सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा से राजनीतिक आंच की लौ निकली है। जिसका जैसा चश्मा है, उसको इस लौ का वैसा रंग व ताप दिखायी दे रहा। मगर जिन्होंने चश्मा नहीं चढ़ा रखा, उनके पास ढेरों सवाल हैं। एक-यह गठबंधन किसका है? भाजपा के खिलाफ दुहाई देकर जिन्होंने गठबंधन किया, क्या उनके पास वैचारिक थाती है? दलीय रस्सी से बंधे व्यक्तियों के सामने यह सवाल रखिये तो वे कहेंगे-हां, बसपा अांबेडकर और सपा, डॉ.लोहिया के विचारों वाला दल है। 2019 में आंबेडकरवादी और लोहियावादी मिलकर एकात्ममानवाद की दुहाई देने वालों को धूल चटा देंगे। भाजपा को हरा देंगे। सत्ता में लौटेंगे। वक्त के साथ यह आवाज तेज होगी। लोकसभा चुनाव का परिणाम आने पर थम जाएगी।...मगर जिनके वोटों से विरोधी को धूल चटाने और खुद हकूमत करने का मंसूबा संजोये हैं, वे बेखर हैं कि इंटरनेट, शार्ट फिल्मों के रूप में परोसा जा रहा 'पोर्न' महिला हिंसा की सबसे बड़ी वजह बन गया है? सर्वे को आधार नुमाया हुई ये खबर दम क्यों तोड़ गयी। इर्द-गिर्द निगाह दौड़ाइये तो पोर्न फिल्म, चुटकुलों का कचरा बेतरतीब बिखरा दिखायी देगा। लड़कियों के साथ जबरदस्ती का वीडियो शूट कर इंटरनेट के जरिये शेयर करने की शिकायतें आम हैं। कुछ वीडियो तो प्रोफेशनल कैमरे से शूट प्रतीत होते हैं। ऐसी हिंसक पोर्नोग्राफी बड़ी मात्रा में शेयर होती है। समाज में विकृति का रूप लेती इस समस्या से लड़ने के लिए गठबंधन क्यों हो रहा? क्या इसलिये कि इस समस्या में जाति, धर्म, संप्रदाय, अगड़ा-पिछड़ा। हमारी जाति वाला, तुम्हारी जाति वाला जैसा तड़का नहीं है। कुछ समय पहले महिलावादियों ने ऐसी समस्या पर आवाज बुलंद की थी, तब केन्द्र सरकार ने 827 पोर्न साइटोंं को बंद करने का हुक्म दिया। मगर ये साइटें बंद हुयी, इसकी पड़ताल तक नहीं की गयी। सर्वे बताता है भारत में सबसे अधिक पोर्न साइटें देखी जाती हैं, मगर क्यों? साधारण सा जवाब होता है-सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। दूसरे देशों से औसत निकालिये। हम काफी पीछे मिलेंगे। मगर नेट फिल्टरिंग फर्म आॅप्टेनेट की रिपोर्ट इस कुतर्क को खारिज करते हुए कहती है कि इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री में से 37 फीसद पोर्नग्राफी है। जिससे महिलाओं के प्रति हिंसक भाव को बढ़ावा मिलता है। यह सच है तब क्या महिला पर होने वाले जुल्म को रोके बिना भारत को विश्व गुरु बनाने, राष्ट्रवाद जेहन में भरने की कोशिशें सकारात्मक परिणाम दे सकेंगी? कुछ अरसे में बलात्कार, मारपीट, घर से निकालने, तलाक (सभी धर्म के मानने वालों में) से जुड़ी आपराधिक वारदातों की इंट्रोगेशन रिपोर्टों से जो इशारा मिलता है, उसका सिरा कहीं न कहीं पोनग्राफी से जुड़ा होता है। नई पीढ़ी की जिज्ञासा की बात करें तो वे पोर्न के जरिए वह कुछ जानने की जिज्ञासा पूरी करते हैं। सीखने का असफल प्रयास कर रहे हैं, तब आखिर सेक्स को स्कूलों में पढ़ाया क्यों न जाये। ताकि नैतिकता का वह आवरण तो बचा रहे, जिसे भारत वर्ष की यूएसपी कहा जाता है। मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक दोनों मानते हैं कि पोर्न अनिवार्य तौर पर हिंसक और सैडिस्ट होता है। इसलिए नई पीढ़ी पोर्न के जरिए हिंसा, परपीड़ा सीख रही है। दुर्ग्यावश सूचना क्रांति ने विजुअल सेक्स का तथाकथित तौर पर लोकतांत्रीकरण होता जा रहा है। सेक्शुअली रिप्रेस्ड खासकर उत्तर भारतीय समाज इसको कुंठा अभिव्यक्त करने का आसान जरिया बना रहा है। पोर्न से एक समाज कैसे डील करता है यह भी उसकी मानसिक शिक्षा को दर्शाता है। सवाल ये है कि भारतीय राजनीतिक इस सामाजिक समस्या से संघर्ष के लिए कब गठबंधन करना पसंद करेंगे। लोकसभा का चुनाव करीब है क्या किसी दल के विजन डायूक्यमेंट, चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पोनग्राफी पर पूर्ण प्रतिबंध या इसको शेयर करने वालों पर सख्त कार्रवाई का कोई वायदा करेगी। क्या युवा जोश वाले दल से यह उम्मीद की जाए? क्या महिला जुल्म के खिलाफ लड़ने वाले दल से यह आशा रखनी चाहिये। क्या राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाला दल यह वादा करेगा? या फिर आजादी के आंदोलन से उपजे राजनीतिक दल से यह उम्मीद की जाए। सवाल सामने है क्या देश को आगे बढ़ाने वाला दावा करने वाले लोग दोहरे मापदंडों से बाहर आयेंगे।
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