आईएएस बनाम आईएएस। आईपीएस बनाम आईपीएस। यूपी की नौकरशाही का ये नया रंग है। एक दूसरे के काम के तरीके पर आईएएस उलझे, मगर टकराव वन आॅन वन रहा। इस संवर्ग का प्रकरण अभी ठंडा नहीं हुआ था कि सीनियर आईपीएस अधिकारी ने अपने संवर्ग के दूसरे अधिकारी के साथ अन्याय का एक किस्सा सोशल मीडिया पर बने ब्रदर ग्रुप में साझा क्या किया-मसला व्यक्तिगत वार तक पहुंच गया। इशारों में ही सही, चरित्र पर उंगलियां उठा दी गयीं। कुछ तथ्यों का जिक्र भी हो गया। शस्त्र के रूप में बेसिर-पैर के इल्जामों का इस्तेमाल हो गया। वरिष्ठ कूदे। सुलह-सफाई। माफी, खेद का दौर चला। पुलिस प्रमुख ओपी सिंह ने वार-नसीहत ग्रुप बना ब्रदर ग्रुप छोड़ दिया। एकाध और लोग इस राह पर चले। आखिर यह सब क्यों हुआ? कहा जा रहा है कि फील्ड, महत्वपूर्ण पोस्टिंग की महत्वाकांक्षा। तू बड़ा कि मैं भी एक मसला हो सकता है। मगर गहराई में देखें। केन्द्र सरकार का 360डिग्री फार्मूला भी एक वजह है। संभवत: इसी फार्मूले के चलते डेढ़ सालों से यूपी कॉडर का कोई अधिकारी केन्द्रीय सेवा के लिये इनपैनल्ड नहीं हुआ। इस फार्मूले में संबंधित अधिकारी के समक्षक, जूनियर के साथ आम शोहरत का आकलन होता है। इस फार्मूले के चलतेएडीजी स्तर के दो अफसर वापस लौट रहे हैं। और यूपी से बाहर कोई जाने वाला नहीं है। ऐसे में प्रोन्नतियों के मौके कम होंगे। वैकेंसी के सापेक्ष जिनकी प्रोन्नति हुई है, 2019 में उन्हें पद नहीं मिलने वाला। जाहिर है, तब तक आम चुनाव हो चुके होंगे। राजनीतिक समीकरणों में बदलाव भी संभव है। ऐसे में कथित रूप से व्यक्तिगत लॉयलटी व खास पॉलिटिकल विचारों के हामीकारों का नफा-नुकसान संभव है। ये बातें कुछ लोगोंं को पहले अधीर किये हुये हैं। सिर्फ इतना नहीं, भाजपा सरकार ने पुलिस रेंज में आईजी व जोन में एडीजी नियुुक्ति का जो फैसला लिया, उसे लागू करने में एकरूपता नहीं रही है। इसका दर्द भी है। भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद से जिलों में तैनात कई आईपीएस डीआईजी पद पर प्रोन्नत हो गये हैं। वह फील्ड में पोस्टिंग के ख्वाहिशमंद हैं। कुछ ने अपनी कार्यशैली से लॉयलटी साबित कर रखी है। पद सीमित हैं। जाहिर है, अब कौन ज्यादा लॉयल है, इसका भी आकलन होगा। पुलिस में यह धारणा है कि अधिकारी से पहले शोहरत पहुंचती है। यानि कुछ छिपा नहीं होता। सब पारदर्शी रहता है। सवाल यहीं से बढ़ता है कि ग्रुप में वार-प्रतिवार के पीछे का दूसरा कारण यह तो नहीं है। जनता भले न जानती हो पर ब्रदर ग्रुप के सदस्य तो एक दूसरे की कार्यशैली, क्षमता और ईमानदारी को जानते ही हैं। सब कुछ जानने के चलते जो निष्कर्ष निकलता है, उससे फ्रेशट्रेशन का स्तर बढ़ना स्वाभाविक है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इसका समाधान कैसे होगा। कौन इसकी पहल करेगा? आईपीएस अधिकारियों को नये सिरे आत्ममंथन की जरूरत है-इस सवाल का जवाब संवर्ग के अधिकारी या हुकूमत चलाने वाले ही ढूंढ सकते हैं।
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