लखनऊ। एक तरफ पर उत्तर
प्रदेश पुलिस को अपराधियों को ‘ठोंक दो’ अधिकार। दूसरी तरफ यूपी कॉडर के तीन आईपीएस अधिकारियों को
जबरन रिटायर करने का फरमान सुनाकर सरकार ने ‘जीरो टालरेंस’ की नीति को सार्थक करने का प्रयास किया है।
आईजी अमिताभ ठाकुर, डीआईजी राकेश शंकर और एसपी राजेश कृष्ण को सरकारी सेवा के लिए
अनुपयुक्त पाते हुये जबरन रिटायर कर दिया गया है। तीनों ही अधिकारियों ने सरकार के
निर्णय पर चुप्पी साध ली है, मगर जिन आरोपों में इन आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई
हुई है, उससे ज्यादा आरोपों वाले अधिकारी न सिर्फ सेवारत हैं, बल्कि प्राइम
पोस्टिंग में हैं, यह भी एक सवाल तेजी से उठ रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग की संस्तुति, जांच रिपोर्ट को आधार बनाकर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आईजी रूल्स एवं मैनुअल अमिताभ ठाकुर को वीआरएस दिया है। ठाकुर व्यवस्था पर सवाल उठाने, पुलिस की जांचों को सवालों के घेरे में लाने वाले अफसरों में शुमार थे। पिछले कुछ सालों से व्यवस्था पर सवाल उठा रहे थे। उनके खिलाफ सरकारी सेवा नियमावली के उल्लंघन समेत कई मामलों की जांच चल रही थी। अमिताभ व उनकी समाजसेवी पत्नी नूतन ठाकुर पहले समाजवादी पार्टी की सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं। उनके सवालों को तत्कालीन विपक्ष हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहा। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद कुछ महीनों बाद अमिताभ ठाकुर ने इस सरकार की पुलिस कार्यशैली को भी आलोचना की जद में लिया। कप्तानों द्वारा थाने बेचे जाने व थानों की अवैध आमदनी का ब्यौरा भी जारी किया। यूपी सरकार के गृह मंत्रालय ने इसे अनुशासनहीनता मानी और पुराने इतिहास का हवाला देते हुए उन्हें जबरन सेवानिवृत करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने स्क्रीनिंग के बाद आखिर उन्हें जबरन रिटायर करने का आदेश जारी कर दिया। प्रांतीय पुलिस सेवा से आईपीएस में प्रोन्नत होकर डीजीआई स्थापना नियुक्त हुए राकेश शंकर की कार्यशैली को देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में संदिग्ध माना गया था। विभागीय जांच उन आईपीएस अधिकारियों ने की थी, जिनसे उनके वैचारिक रूप से मतभेद थे। यह बात उन्होंने अपने प्रत्यावेदनों में कही थी। राकेश शंकर को जबरन सेवानिवृत देने के मामले में जालौन में दो बहनों की संदिग्ध मौत को आधार बनाया गया है। राकेश उन दिनों जालौन के एसएसपी थे। जबरन रिटायरमेन्ट की कार्रवाई की जद में आये राजेश कृष्ण इन दिनों 10वीं बटालियन बाराबंकी में कमांडेंट के पद पर तैनात ते, उन पर आजमगढ़ में पुलिस भर्ती घोटाले का इल्जाम है, जिसके आधार पर उन्हें जबरन रिटायर किया गया है। सवाल ये है कि जिस पुलिस भर्ती के लिए राजेश कृष्ण को सेवा के अनुपयुक्त पाया गया है, वैसे आरोप यूपी कॉडर के आधा दर्जन से अधिक आईपीएस और दो दर्जन से अधिक पीपीएस पर लगे थे।