Friday 17 March 2017

UP ELECTION_SP

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की जनता चाहती क्या थी? 11 मार्च को वोटों की गिनती के साथ इसका खुलासा हो गया। ऐतिहासिक जनादेश भाजपा के पक्ष में है। ऐसा कैसे हुआ? इसका विश्लेषण शुरू हो गया है। मगर मंथन का एक विषय समाजवादी पार्टी (सपा) की हार भी है। जिसमें यह परखने का प्रयास हो रहा है कि क्या सपा के अध्यक्ष पद से मुलायम सिंह को हटाकर अखिलेश यादव को उस पर आसीन कराना भी एक चुनावी मुद्दा (फैक्टर) था? 
55 लाख औरतों को पेंशन, रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार, लैपटॉप, कन्या विद्या धन जैसी लोक हितकारी योजना के बावजूद चुनाव में विधायकों की संख्या न्यूनतम (47) पर पहुंचने के पीछे 'तख्ता पलटÓ भी एक कारण था? यह समझने के लिए 13 सितंबर-2016 से बात शुरू करते हैैं। यह वही तारीख है जब समाजवादी कुनबे की कलह सड़क पर आई। शुरूआती संघर्ष अखिलेश बनाम शिवपाल दिख रहा था। मुलायम 'अम्पायरÓ की भूमिका में थे। प्रो. रामगोपाल, राजेन्द्र चौधरी अखिलेश यादव के सलाहकार का दायित्व निभाते दिख रहे थे। उस समय यह धारणा थी कि अखिलेश अब तीन-साढ़े तीन मुख्यमंत्री के इल्जामों से उबरने का प्रयास कर रहे हैैं। इससे उनकी छवि निखरती दिख रही है। माना जाने लगा था कि अखिलेश कठोर फैसले लेने के लिए खुद तैयार कर रहे हैैं। इससे जनभावना उनके पक्ष में दिख रही थी। मगर इस संघर्ष ने अचानक मुलायम सिंह यादव को भी अपनी चपेट में ले लिया। पत्र बम छोड़े जाने लगे। जिससे ओहदा, अधिकार और वर्चस्व के प्रयास जनशक्ति प्रदर्शन में तब्दील हो गए। निर्णयराष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन बुलाने तक पहुंच गया।
मुलायम, कई वरिष्ठ समाजवादियों के ढेरों प्रयास नाकाम करते हुए प्रो.राम गोपाल यादव ने एक जनवरी-2017 को जनेश्वर मिश्र पार्क में विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया। हजारों की भीड़ जुटी। चंद मिनट की औपचारिकता के बाद प्रो.राम गोपाल यादव ने ही फैसला सुनाते हुए कहा कि शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद और अमर सिंह को सपा से निकालने का निर्णय लिया गया है। इस पर अखिलेश के पक्ष में खुब नारेबाजी हुई। मगर रामगोपाल मुंह से यह सुनते ही कि मुलायम सिंह यादव के स्थान पर अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है, भीड़ में सन्नाटा पसर गया। उसी समय खुसुर-पुसुर होने लगी। युवा ब्रिगेड के चंद लोगों ने नारेबाजी की मगर ज्यादातर लोग समारोह स्थल से उठ गये। राजनीति की नब्ज परखने वालों ने मुलायम को सपा अध्यक्ष पद से हटाने की दीर्घकालिक परिणाम सामने आने का अंदेशा जाहिर किया। कुछ देर बाद ही मुलायम जब फैसले को असंवैधानिक ठहराया उस समय आशंकाओं को बल मिला। बाद में यह लड़ाई चुनाव आयोग तक गई। कुनबे की लड़ाई अखिलेश यादव जीते। सब ठीक होने का संदेश देने का प्रयास हुआ। मुलायम ने कभी रहस्यमयी चुप्पी साधी, कभी कहा कि आशीवार्द है। कभी सब ठीक, कभी कुछ गड़बड़ होने की बात होती रही। इसी बीच चुनावी समर शुरू हो गया। मगर मुलायम प्रचार अभियान में नहीं निकले, मुलायम के इस तरह घर बैठने का यह पहला चुनाव था।
11 मार्च को परिणाम आया। सपा को सिर्फ 47 सीटें मिलीं, तब से यह बात जेरे-बहस है कि क्या मुलायम से अध्यक्ष पद छीना जाना जनता को नागवार गुजरा था? विधानसभा चुनाव में क्या यह भी 'गुप्तÓ मुद्दा था। समाज विज्ञानियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां 'राजा रामचन्द्रÓ के स्थान पर 'वनवासी श्रीरामÓ की पूजा-अर्चना ज्यादा होती है। पिता की आज्ञा मान भगवान राम वन गये थे, ऐसे में यह फैसला निश्चित रूप से सपा प्रत्याशियों के खिलाफ गया होगा। 
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तब क्या कहा गया
'मैं नेताजी का जितना सम्मान पहले करता था, राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उससे ज्यादा करूंगा। नेताजी का जो स्थान है, वह सबसे बड़ा है। मैं, नेताजी का बेटा हूं और रहूंगा। यह रिश्ता कोई खत्म नहीं कर सकता। परिवार के लोगों को बचाना पड़ेगा तो वह काम भी करूंगा।ÓÓ
- अखिलेश यादव (एक जनवरी-2017 राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद)
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'दो व्यक्तियों ने साजिश कर अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। संसदीय बोर्ड की बैठक के बगैर टिकट बांट दिए, ये लोग नहीं चाहते कि अखिलेश फिर सीएम बनें।Ó
- प्रो. रामगोपाल यादव (एक जनवरी-2017 कोअधिवेशन में)

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